हस्तरेखा विश्वकोश :: A TREATISE ON PALMISTRY (42.1) हस्तरेखा शास्त्र


हस्तरेखा विश्वकोश 
A TREATISE ON PALMISTRY (42) हस्तरेखा शास्त्र

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com 
santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com
अकर्मण्य :: हृदय रेखा कमजोर और अस्पष्ट हो। आधा अधूरा एक ही मणिबन्ध हो। जीवन रेखा सीढ़ी नुमा हो। जीवन रेखा का अन्त द्वीप-यव में हो रहा हो। मंगल का मैदान दबा हुआ हो। अन्य रेखाओं का न होना। 
अकर्मण्य IDLE :: रूढ़ि-प्रिय, निकम्मा, आलसी, निष्क्रिय, बेकार, व्यर्थ, निरुपयोगी; indolent, mandarin. 
अकाल मृत्यु :: बड़े त्रिभुज में भाग्य रेखा के पास, राहु क्षेत्र में धन चिन्ह (+) हो। शनि पर अथवा मध्यमा-शनि की अँगुली के तीसरे पर्व पर गुणक चिन्ह (X) हो। मस्तिष्क रेखा बुध से शनि-सूर्य के बीच तक एक स्वतंत्र रेखा के रूप में ही हो या शनि पर्वत तक हो। मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे अचानक झुककर निम्न चन्द्र पर जाये। जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा जीवन रेखा के आरम्भ में जुड़ी हों। 
अग्निमन्द-मन्दाग्नि :: स्वास्थ्य रेखा में कई खड़ी रेखाएँ रेलपथ संकेत की तरह हों। बुध रेखा जीवन रेखा को स्पर्श करे। 
अचानक नुक्सान-हानि :: बुध पर तिल का बनना। 
अचानक तकलीफ-कष्ट :: जीवन रेखा अपने मार्ग से हटकर शुक्र पर्वत को छोटा करते हुए, अँगूठे की तरफ बढ़े। जीवन रेखा या ह्रदय रेखा पीछे की ओर मुड़ जाये। 
अच्छा स्वास्थ्य :: मंगल रेखा या जीवन रेखा की सहायक रेखा मौजूद हो। शुक्र क्षेत्र विकारहीन और बड़ा हो। स्वास्थ्य रेखा मस्तिष्क रेखा तक ही सीमित हो। नाखूनों पर दाग, धब्बा, कालापन आदि न हों।
अच्छाई-न्याय प्रियता :: मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा प्रारम्भ में जुड़ी हुई हों। सीधी मस्तिष्क रेखा के अन्त में, उच्च मंगल पर गुणक चिन्ह उपस्थित हो; जहाँ पर कनिष्ठा के तीसरे पर्व से एक रेखा आकर उसमें संयोजित हो रही हो। बुध सामान्य हो। 
अदीठ :: ह्रदय रेखा सूर्य पर्वत के नीचे, ऊपर से कटी हुई हो तो, जातक की पीठ में फोड़ा-अदीठ हो सकता है। 
अभियन्ता-इंजीनियर :: हाथ की आकृति उद्यमी प्रकार की हो-चौकोर हाथ। बुध पर्वत उत्कृष्ट हो जिस पर 2-3 खड़ी रेखाएँ विज्ञान हों। मंगल पर्वत अच्छा हो। मस्तिष्क रेखा लम्बी हो। सूर्य पर्वत के नीचे सूर्य रेखा के निकट ध्वज-पताका चिन्ह हो। 
उच्चाधिकारी :: सूर्य रेखा की शाखा वृहस्पति पर्वत पर पहुँचे। बुध पर्वत पर एक छोटा त्रिभुज उपस्थित हो। अँगूठा सुदृढ़, मस्तिष्क रेखा लम्बी हो। 
अध्ययन शीलता :: जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा प्रारम्भ में जुड़ी हों। मस्तिष्क रेखा सीधी हो। तर्जनी अँगुली सीधी हो। सूर्य पर्वत पर एक सीधी खड़ी रेखा हो। शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो।
अध्यापक :: अँगूठे का दूसरा पर्व लम्बा हो। बुध उभरा हुआ हो। कनिष्ठा लम्बी और नुकीली हो। मस्तिष्क रेखा सीधी हो। शुक्र पर्वत पर त्रिभुज उपस्थित हो। हाथ में सूर्य रेखा के होने से जातक गणित का अच्छा, नामी अध्यापक होता है और धन के साथ यश भी कमाता है।
अनाथ :: भाग्य रेखा के शुरू में यव  हो और कोई आड़ी रेखा उसे काट रही हो। शुक्र पर्वत से कोई रेखा जीवन रेखा को पार करके उच्च मंगल तक पहुँचे। बहुत से अव्यवस्थित रेखाएँ जीवन रेखा के आरम्भ में हों और माता-पिता की रेखाओं के साथ हों तो बालक बचपन में ही अनाथ हो सकता है।  
अँगुलियों की बनावट-आकार :: 
सभी अँगुलियाँ अलग-अलग :: हर पर्वत संतुलित अवस्‍था में होगा जो कि ग्रहों की अनुकूल और शुभ फलदायक स्थिति को बताता है।
अँगुलियाँ एक-दूसरे की ओर झुकी हुई :: ऐसा व्यक्ति लचीले स्वभाव का होता है। यदि सभी अँगुलियों का झुकाव मध्यमा की ओर है तो उनमें शनि पर्वत के गुण तथा विशेषताएं बढ़ जाती हैं।
अनामिका अँगुली सीधी और लंबी :: जातक धन के मामले में काफी भाग्यशाली रहता है।
तर्जनी अँगुली का झुकाव अँगूठे की ओर :: जातक में अहंकार कम होता है। 
मध्यमा की ओर तर्जनी का झुकाव :: जातक खुले मिजाज का होता है।
मध्यमा अँगुली का झुकाव तर्जनी की ओर :: जातक गंभीर स्वभाव का होता है। ऐसा व्यक्ति कोई भी काम बहुत ही सोच विचार कर करते हैं और उनमें  अहंकार  कम रहता है।
कनिष्ठा अँगुली का झुकाव अनामिका की ओर :: जातक स्वार्थी स्वभाव का होता है। 
कनिष्ठा का झुकाव हथेली के बाहर की ओर :: जातक लापरवाह हो सकता है।  
अनामिका  अँगुली :: 
चौकोर :- रूप रेखा तैयार करना, सजावट, गृह निर्माण-कार्य, कारीगर। 
तीखी-नुकीली :- शीघ्र उत्प्रेरणा, विवेकशील होना, प्रेरणा प्राप्त कर कार्य तो त्वरित करना।
लम्बी :- सफल शिल्पी-मूर्तिकार, अभिनय क्षमता, भावों की अभिव्यक्ति, किसी भी कार्य का सुंदर प्रदर्शन। 
सामान्य :: सामान्य बुद्धि-विवेक, चातुर्य।
अधिक छोटी :: भौतिक सुख सम्पत्ति की चाहत, धन कमाने की इच्छा।
अधिक लम्बी :: सौदा, फाटका, जुआ, झगड़ालू।
मुड़ी हुई अँगुली :: झूँठी शान-शौकत, कला से दूर। 
तर्जनी से छोटी :: अकेलापन, सामाजिकता से दूर, ख्याली पुलाव बनाना, दिवास्वप्न। 
तर्जनी के बराबर :: यश-प्रसिद्धि की इच्छा, लड़ाई-झगड़े से परहेज़, सामाजिक प्राणी। 
मध्यमा की ओर मुड़ी हुई :: घमण्डी-अत्यघिक अभिमानी। 
कनिष्ठा की ओर मुड़ी हुई :: व्यापारिक-व्यावसयिक कुशलता। 
मध्यमा के बराबर :: जिस व्यक्ति की अनामिका ऊँगली मध्यमा के बराबर की हो तो ऐसा व्यक्ति सट्टेबाज और जुआरी होता है। 
मध्यमा से बड़ी :: असम्भव; परन्तु भी ऐसा व्यक्ति ऐसे खतरे मोल ले लेता है, जिनमें निराशा ही हाथ लगती है।  
अनामिका तीसरा पर्व :: 
एक खड़ी रेखा :: सफलता और सौभाग्य। 
गोलाकार-वृत्त :: धनि, यशस्वी। 
बहुत सी खड़ी रेखाएँ :: निर्णय क्षमता।
नक्षत्र :: चिड़चिड़ापन।
जाली :: गरीबी और दुर्भाग्य। 
तीनों पर्वों पर एक कड़ी रेखा :: ईर्ष्यालु स्वभाव। 
चद्राकृति :: दुर्भाग्य।  
रेखाएँ पर्वत क्षेत्र पर पहुँचें :: अच्छी आमदनी। 
एक रेखा दूसरे से तीसरे पर्व पर पहुँचे :: सौभाग्यशाली और अच्छा स्वभाव। 
आड़ी रेखाएँ :: गऱीबी। 
गुणक चिन्ह (X) :: जीवन में बाधाएँ-परेशानियाँ। 
त्रिभुज :: व्यवसाय में सफलता-प्रशंसा। 
अनामिका दूसरा पर्व :: 
खड़ी रेखाएँ :: सामान्य बुद्धि। 
दूसरे पर्व से तीसरे पर्व तक रेखाएँ :: महान यश।
चिमटा :: एक बहुत सारे काम करना और असफलता हाँसिल करना।
जाली और आड़ी रेखाएँ :: ईर्ष्यालु स्वभाव। 
नक्षत्र चिन्ह (*) :: योग्यता।
गुणक चिन्ह (X) :: घमण्डी स्वभाव। 
गोला-वृत्त (O) :: सफलता।  
त्रिभुज :: अच्छी प्रस्तुति करने-व्याख्या करने की क्षमता।
अनामिका पहला पर्व :: 
खड़ी रेखाएँ :: अस्थिर स्वभाव।
आड़ी रेखाएँ :: अस्थिर स्वभाव। 
जाली :: पागलपन।
नक्षत्र-तारा :: अस्थिर स्वभाव।
त्रिभुज :: ज्ञान-विज्ञान में रूचि।
वृत्त :: लाभ और उन्नति। 
गुणक चिन्ह :: मूर्ति निर्माण में कुशलता, अच्छा कारीगर। 
अनिश्चित स्वभाव :: (1). नाख़ून सफ़ेद, छोटे और चौकोर;  (2). मंगल पर्वत उभरे हुए हों; (3). अँगूठा मुग्दर की बनावट का हो। 
अनिश्चितता :: (1). मङ्गल का मैदान दबा हुआ हो; (2). गुरु पर्वत सामान्य हो, (3). अँगूठे का पहला पर्व छोटा हो, (4). सूर्य और भाग्य रेखा द्विजिव्हित हों-अन्त में चिमटा हो, (5). मुलायम हाथ में अँगुलियाँ नम्र हों।  
अनैतिक :: (1). मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत की ओर झुकी हुई हो, (2). हृदय रेखा बिना किसी शाखा के शनि पर्वत तक ही हो, (3). मस्तिष्क रेखा द्विजिव्हित हो, (4). सूर्य और गुरु दबे हुए हों, शुक्र पर्वत पर महीन जाली हो, (5). चन्द्र पर्वत असामान्य रूप से उभरा हुआ हो, (6). शुक्र मुद्रिका टूटी हुई हो। 
अनैतिक सम्बन्ध :: भाग्य रेखा पर यव हो। शुक्र मुद्रिका उपस्थित हो और दो या तीन टूटी हुई रेखाओं से बनी हो।  निम्न मङ्गल से रेखाएँ जीवन रेखा को काटते हुए राहु क्षेत्र में प्रवेश कर रही हों। जीवन रेखा कटे तो परेशानी भी हो। निम्न मङ्गल से रेखा मस्तिष्क रेखा को छुए या काटे तो भी अपने ही लिंग वाले से सम्बन्ध हो। मस्तिष्क रेखा कटे तो परेशानी भी हो। 
अपमान :: जीवन रेखा की उच्चवर्ती शाखा को दो आड़ी रेखाएँ काटें तो तरक्की में बाधा और मुकदमे में फँसने से ऐसा हो। बुध पर्वत पर तारा हो। 
अपराधिक प्रवत्ति :: (1). मस्तिष्क रेखा भाग्य रेखा को काटती हुई हृदय रेखा को पार करे तो जातक अपराध में संलग्न हो। (2). यदि मस्तिष्क रेखा हृदय रेखा में ऊपर जाकर संयुक्त हो जाये या (3). हृदय रेखा को काटकर ऊपर चली जाये तो व्यक्ति आपराधिक प्रवृत्ति का हो सकता है। (4). दोनों रेखाओं (मंकी-सिमीयन लाइन) के मिलकर एक होने से भी व्यक्ति बिना किसी स्वार्थवश ऐसा कुछ कर सकता है और छोटी-छोटी बातों पर भड़क सकता है। दोनों हाथों को परखकर ही इसका निर्णय किया जा सकता है। शनि और बुध पर्वतों के ज्यादा उठे होने पर व्यक्ति आपराधिक प्रवत्ति का हो सकता है। उठा हुआ बुध धन का लालच और उठा हुआ शनि सनक में अपराध करवाता है। ऐसे व्यक्ति की अँगुलियाँ छोटी और मोटी हों, नाख़ून छोटे हों तथा अँगूठा मूसलाकार हो तो संभावना बढ़ जाती है। 
अप्रतिष्ठित :: (1). अँगूठे का पहला पर्व भारी। (2). चन्द्र और शुक्र पर्वत दबे हुए। (3). तर्जनी छोटी और मुड़ी हुई। (4). शाखाहीन, छोटी हृदय रेखा। (5). अँगुलियों के बीच छेद-काफ़ी अन्तर हो। 
अप्रत्याशित लाभ :: मणिबन्ध पर एक गुणक चिन्ह हो। सूर्य रेखा का उदय भाग्य रेखा में से हो। भाग्य रेखा का उदय मस्तिष्क रेखा से हो। भाग्य रेखा का अन्त तारे का चिन्ह-नक्षत्र में हो। भाग्य रेखा की शाखा वृहस्पति पर पहुँचे।
नाड़ी में अर्बुद-कैंसर :: (1).  सूर्य पर्वत पर आड़ी-तिरछी रेखाएँ हों। (2). हृदय रेखा शनि पर्वत के नीचे टूटी हो। (3). सूर्य पर्वत अत्यधिक उभरा हुआ हो। (4). स्वास्थ्य रेखा में से दो-तीन रेखाएँ भाग्य रेखा की ओर छितराई-बिखरी हुई दिखें। 
अनुपस्थित-प्रमुख रेखाएँ :: जीवन रेखा, हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखाओं में से किसी एक या दो दो का न होना जातक के लिए परेशानियों का कारण बन  सकता है। यदि यह लक्षण दोनों हाथों में मौजूद है तो निश्चित रूप से परेशानी, विपत्ति का सूचक है। यदि भाग्य रेखा भी अनुपस्थित है, तो  दुर्भाग्य का सूचक भी है। 
अभिमान-घमण्ड (1) :: (1.1). अनामिका का झुकाव मध्यमा अँगुली की ओर हो। (1.2).  मस्तिष्क रेखा की एक शाखा पहले वृहस्पति की ओर जाये और फिर मुड़कर शनि की तरफ आ जाये। (1.3). गुरु पर्वत शनि की ओर और उभरा हुआ हो। (1.4). वृहस्पति पर जाली हो। 
(2) गुरु तथा सूर्य पर्वत बहुत ज्यादा उभरे हुए हों। ह्रदय रेखा अनुपस्थित हो। अँगूठे का पहला पोर बड़ा हो। वृहस्पति के ऊपर जाली हो। रेखाएँ काला-नीला रंग लिए हुए हों। अनामिका लम्बी हो। वृहस्पति, शुक्र तथा चन्द्र उठे हुए-असामान्य हों। जीवन रेखा की शुरुआत चिमटे से हो रही हो, जिनमें से एक शाखा तर्जनी के तीसरे पर्व से शुरू हो रही हो। मस्तिष्क रेखा की शुरुआत भी द्विजिव्हित हो, जिसमें एक शाखा वृहस्पति पर हो और दूसरी जीवन रेखा को स्पर्श कर रही हो।  
अभिनेता :: लचीली अँगुलियाँ हों, अनामिका शिल्पी प्रकार की हो, शुक्र और चंद्र अनुकूल-अच्छे हों, कनिष्ठा का पहला पर्व लम्बा हो, मस्तिष्क रेखा का स्वाभाविक झुकाव चंद्र पर्वत पर हो। 
अभिनेत्री :: अँगुलियाँ लम्बी और पतली हों, नाख़ून चिकने और चौड़े हों, गुरु और सूर्य पर्वत विकसित-अच्छे हों, अँगुलियों के मध्य पर्व अच्छे और लम्बे हों, अँगुलियों के सिरे नुकीले हों, हथेली का ऊपरी-तीसरा भाग चौड़ा हो। इस प्रकार की लड़कियों-स्त्रियों के हाथ में मस्तिष्क और हृदय रेखाएँ एक दूसरे से काफ़ी दूरी पर होती हैं।
अम्लता :: मस्तिष्क रेखा का पूर्वार्ध सामान्य और उत्तरार्ध बारीक जंजीरनुमा हो।
अयोग्यता :: (1). नुकीले-तीखे सिरों के साथ लम्बी अँगुलियाँ, (2). अँगूठे का पहला पर्व लचीला, (3). तर्जनी अँगुली छोटी, (4). बुध, गुरु और शनि पर्वत दबे हुए हों तथा (5). अँगुलियों के बीच झिर्रियाँ-छेद (फिजूल खर्ची के लक्षण) हों। 
अलगाव :: जीवन रेखा और मंगल रेखा के बीच, जीवन रेखा के पास, अँगूठे की और यदि वर्ग-चतुर्भुजाकार बन्द आकृति उपस्थित हो तो जातक समाज-बिरादरी से दूरी बनाकर रखता है। यह चिन्ह कभी-कभी कैदियों के हाथों में भी दिखाई देता है। वर्ग मूल रूप से रक्षा करता है। अतः कैद में होने से व्यक्ति के जीवन की रक्षा होती है। मंगल रेखा भी यही कार्य करती है। 
अलगाव अँगुलियों में :: जब हाथ के पँजे को फैलाया जाता है तो अँगुलियाँ और अँगूठा ऊपर से अलग-अलग हो जाते हैं। अँगूठे और तर्जनी की दूरी व्यक्ति की उदारता, तर्जनी से मध्यमा के बीच की दूरी उसके विचारों-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मध्यमा और अनामिका के बीच की दूरी सनक और अनामिका और कनिष्ठका के बीच का अन्तर आज़ादी को प्रकट करता है। तर्जनी से मध्यमा के बीच की दूरी ज्यादा :- व्यक्तिगत चरित्र से सांसारिक गतिविधि को दूर रखे। इसके साथ यदि अँगूठा हथेली के साथ समकोण बनाये तो व्यक्ति क्रांतिकारी विचारधारा और एकान्तवादी भी हो सकता है। अनामिका और कनिष्ठका के बीच का अन्तर ज्यादा :- कला और व्यापार के मार्ग भिन्न-भिन्न होते हैं। ऐसे व्यक्ति सक्रिय क्रांतिकारी होते हैं। 
अलगाव-वस्तुओं से :: (1). कठोर हाथों में शिल्पी अँगुलियाँ, (2). छोटी अनामिका, (3). हृदय रेखा छोटी और धुँधली, (4). चन्द्र सुन्दर-सुविकसित, (5). सूर्य पर्वत अपने स्थान से विचलित और दबा हुआ। 
अल्पायु :: (1.1). जीवन रेखा कई स्थानों पर टूटी हुई हो, (1.2). हृदय रेखा शनि पर्वत को छुए नहीं तो यह योग होता है। स्पर्श करने पर मध्यम आयु तथा गुरु पर्वत को पार करने पर पूर्णायु हो। (2). भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा तक पहुँचने से पहले ही पेड़ की छितराई हुई शाखाओं के समान विभक्त हो जाये तो आयु के कम रहने की संभावना। (3.1). तीनों मुख्य रेखाएँ एक ही स्थान पर जाकर मिलें। (3.2). ह्रदय रेखा शनि पर्वत के नीचे झुककर मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा से मिले। (4). जीवन रेखा कई भागों में विभक्त हो तथा शुक्र पर्वत पर 4-5 खड़ी रेखाएं हों। 
अवचेतन मन :: हाथ की उर्ध्व दिशा में कनिष्ठा, अनामिका और आधी मध्यमा तक का क्षेत्र अवचेतन मन और शेष क्रियाशील मस्तिष्क-मन को प्रकट करता है। हथेली को दो भागों में विभाजित करने वाली रेखा पर कोई अशुभ रेखा अथवा चिन्ह हो तो वो तामसिक गुणों को प्रकट करता है। मध्यमा के सिरे से मणिबंध तक इसका विस्तार है। 
अवस्थाएँ :: मनुष्य के जीवन की चार अवस्थाएँ बाल्यावस्था-ब्रह्मचर्य 25 वर्ष तक की आयु, युवावस्था-गृहस्थावस्था 26-50 वर्ष, वानप्रस्थ 51-75 वर्ष और सन्यास 76-100 वर्ष को अँगूठे के ऊपर, नाख़ून के नीचे स्थित 3-4 रेखाएँ दर्शाती हैं। इन रेखाओं का पुष्ट होना, टूटा होना, अस्पष्ट होना जीवन के इन चार चरणों को स्पष्ट करते हैं। 
अविवाहित :: भाग्य रेखा और मस्तिष्क रेखा में यव हो, भाग्य रेखा टेढ़ी हो, विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़ जाये तो व्यक्ति खुद विवाह नहीं करना चाहता, कनिष्ठिका के पहले पर्व में गुणक चिन्ह हो और भाग्य रेखा से कई रेखाएँ निकलकर हृदय रेखा को स्पर्श करें। 
अविश्वास :: हृदय रेखा की एक शाखा शनि पर्वत पर स्वयं वृहस्पति पर्वत पर जाये तो ऐसा व्यक्ति विश्वास के लायक नहीं होता। हृदय रेखा मस्तिष्क के नजदीक हो और मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे जीवन रेखा से मिल जाये तो व्यक्ति विश्वास के लायक नहीं होता। वह कामुक और व्यभिचारी भी हो। हृदय रेखा में शनि के नीचे एक यव हो। 
अविश्वासी :: हृदय रेखा से अंगुष्ठ की ओर 7-8 छोटी रेखाएँ विपरीत दिशा में निकल रही हों।  
अवैध सन्तान :: भाग्य रेखा के आरम्भ में मणिबन्ध के ऊपर यव उपस्थित हो। जीवन रेखा के आरम्भ में मस्तिष्क रेखा के ऊपर से होकर जो यव बनता है वह भी यही दर्शाता है।
अशांन्ति :: (1). मस्तिष्क रेखा पीली हो, उसके प्रारम्भ में चिमटा हो या उसका मुँह खुला हो, वह बहुत ज्यादा घूम गई हो। (2). शुक्र पर्वत से कोई रेखा आकर मस्तिष्क रेखा को छुए।(3). स्वास्थ्य रेखा मस्तिष्क रेखा से आरम्भ हो या उसमें आकर मिले। (4). प्रभावी रेखा मस्तिष्क रेखा पर स्थित तारे-नक्षत्र तक आकर रूक जाये। (5). चन्द्र पर्वत पर अस्त-व्यस्त रेखाएँ हों और मस्तिष्क रेखा पर काला धब्बा हो। 
अशुभ हाथ :: (1). हाथ कठोर हो और अँगुलियाँ अन्दर की ओर मुड़ी हुई हों।(2).  मस्तिष्क रेखा छोटी और मोटी हो। हथेली भारी और खुरदरी हो।  (3). मस्तिष्क रेखा थोड़ी ऊपर उठकर हृदय रेखा में मिल जाये (अपराधी प्रवत्ति) (4). अँगूठा छोटा हो और उसका दूसरा पर्व मोटा हो। (5). शुक्र पर्वत लम्बा और छितरा हुआ हो। (6). नाख़ून छोटे और लालिमा लिए हुए हों।
अशिक्षा :: (1). मस्तिष्क रेखा शनि को पार करके जीवन रेखा से अलग हो। जातक की शिक्षा-दीक्षा पर पर माता-पिता ध्यान ने दें, उसका कुपोषण हो और वह गणित में कमजोर रहे। उसका विकास जीवन में थोड़ी देरी से हो। (2). मस्तिष्क रेखा पर वृहस्पति के नीचे यव चिन्ह हो। 
असंतोष :: मस्तिष्क रेखा के नीचे कई छोटी-छोटी रेखाएँ ऊपरी मंगल और चन्द्र पर्वत की ओर हों। 
असत्य भाषण :: (1). बुध पर्वत पर कटी-फटी रेखाएँ हों। (2). मस्तिष्क रेखा झुकी हुई हो और उसका अन्त एक चिमटे में हुआ हो। (3). कनिष्ठिका मुड़ी हुई हो। वृहस्पति असामान्य और दबा हुआ हो। (4). चंद्र पर्वत उभरा हुआ हो। (5). बुध पर्वत पर गुणक चिन्ह हो।अस्थिरता :: (1). अँगूठे का पहला पर्व छोटा और लचीला हो। (2). मस्तिष्क रेखा छोटी हो।(3). ह्रदय रेखा जंजीर नुमा हो। (4). निम्न मंगल पर बाधा रेखाएँ हों। (5). बड़े त्रिभुज में चन्द्राकृति हो। (6). तीखी अँगुलियों के साथ मुलायम हाथ। 
असन्तुष्ट :: (1). छोटी चिकनी अँगुलियाँ, (2). स्वास्थ्य रेखा खराब, (3). हृदय रेखा में फैलाव, चन्द्र पर्वत ज्यादा उभरा हुआ अथवा उस पर अस्त-व्यस्त रेखाएँ, (4). जीवन रेखा गोलाई में न होकर थोड़ी सीढ़ी हो और उसे प्रभाव रेखाएँ काटें, 
असहनशील :: हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा समानांतर और शुरू से आखिर तक साथ-साथ जायें तो जातक व्याकुल, असहनशील और उतावला हो। 
असहिष्णु :: (1). मंगल रेखा में से निकलकर एक रेखा चन्द्र पर्वत पर पहुँचे :- जातक का मन इतना ख़राब हो जाये की उसके लिए सभी कुछ असहनीय हो जाये। इसका प्रभाव उस उम्र में दिखेगा जब कि यह जीवन रेखा को काटेगी। इस अवस्था में जातक शराब पीकर मृत्युग्रस्त भी हो सकता है, यदि इस रेखा का झुकाव निम्न चन्द्र पर बहुत ही ज्यादा हो।(2). हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा के बेहद करीब हो। इसके साथ-साथ अनामिका का लम्बा होना और अँगूठे का लचीला होना भी यही दर्शाता है। 
असफलता :: (1). मस्तिष्क रेखा का अन्त में यव व्यक्ति की कार्य-योजनाओं को सफलता प्राप्त नहीं होने देता क्योंकि वे त्रुटिपूर्ण होती हैं। (2). सुन्दर शुक्र मुद्रिका को एक गहरी रेखा सूर्य पर्वत के नीचे काट रही हो तो जातक की पत्नी उसकी असफलता की कारण बनती है। 
असाध्य रोग :: (1). शनि पर्वत पर तारे-नक्षत्र की उपस्थिति। (2). जीवन रेखा के अन्त में गौ पुच्छाकार आकृति और गुणक चिन्ह का होना। 
अस्थमा-साँस रोग ::  (1). मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा बीच में कटे हुए डमरू की आकृति बनाये या एक दूसरे के काफी करीब हों। (2). मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा बीच में कला धब्बा हो। (3). हृदय रेखा का झुकाब नीचे की तरफ मस्तिष्क रेखा की ओर हो। (4). स्वास्थ्य रेखा कटी-फटी हुई हो। 
अस्थिर चरित्र :: मस्तिष्क रेखा के नीचे अँगूठे की ओर छोटी-छोटी रेखाएँ समान दूरी पर हों तो जातक नीच, जल्दबाज़, और दुष्ट हो सकता है। बड़े त्रिभुज में चन्द्राकृति हो।
अस्वस्थ :: रेखाओं पर काले या नीले रंग के बिंदु। नाख़ून टूटने वाले हों और ज्यादा कड़े हों तथा नीले हों। हाथ अस्वाभाविक हो, अँगुलियाँ मुड़ी हुई हों। त्वचा नरम तथा हाथ गीला रहने वाला हो। पर्वतों पर यव, जाली, गुणक चिन्ह उपस्थित हों। तीनों मुख्य रेखाों के अन्त में गौपुच्छ  हो। 
 
 
 
आग का भय :: ह्रदय रेखा की कोई शाखा मस्तिष्क रेखा को काटती हुई न्यून कोण तक पहुँचे। 
आज़ादी :: तर्जनी और मध्यमा के बीच दूरी अधिक हो। तर्जनी अँगूठे की तरफ झुकी हुई हो। गुरु पर्वत काफी उठा हुआ हो। अँगूठे का पहला पर्व लम्बा हो। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखाओं के बीच की दूरी ज्यादा हो। मस्तिष्क रेखा लम्बी हो। 
आत्मधिक्कार :: भाग्य रेखा अस्पष्ट और टुकड़ों में हो। मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा का जोड़ शनि पर्वत तक हो। अँगूठा ज्यादा लचीला हो। जीवन रेखा के शुरू और अन्त में गुणक चिन्ह हो। मस्तिष्क रेखा पर काला बिन्दु हो और कनिष्ठिका मुड़ी हुई हो। 
आत्मविश्वास :: अँगूठा सुदृढ़, सीधा और सामान्य लम्बाई का हो। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा प्रारम्भ में जरा सा स्पर्श करें। तर्जनी और अनामिका की लम्बाई बराबर हो। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा में ज्यादा दूरी हो तो जातक गलतियाँ करने वाला अपने पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करने वाला होगा। 
आत्महत्या :: मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे जाकर एकदम नीचे निम्न चन्द्र पर पहुँचती है। दोनों हाथों में यह लक्षण हो, शनि पर काला तिल हो तो जातक को अत्यधिक संयत और सतर्क रहना चाहिये और अकेलेपन, शराब और मानसिक तनाव से बचना चाहिये।
आत्महत्या प्रवत्ति (1) :: नुकीली आकृति की हथेली। जीवन रेखा कटी-फटी, भाग्य रेखा कटी-फ़टी और बिखराव लिए हुए। केवल चन्द्र पर्वत ही उभरा हुआ हो। मस्तिष्क रेखा मंगल क्षेत्र पर जाकर स्वास्थ्य रेखा में मिल जाये। वृहस्पति का एपेक्ष सही स्थान पर न हो, और वृहस्पति ठीक तरह से उभरा हुआ न हो। मध्यमा के पहले पर्व पर तीन-चार खड़ी रेखाएँ हों। 
आत्महत्या प्रवत्ति (2) :: (2.1). कनिष्ठिका के तीसरे पर्व पर जाली होने से किसी कलंक से बचने के लिए ऐसा करे। (2.2). शुक्र पर्वत से कोई रेखा चलकर जीवन रेखा हुए भाग्य रेखा को काटती हुई चन्द्र पर्वत पर एक नक्षत्र-तारे में समाप्त हो रही हो। (2.3). मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के समानांतर चलकर चन्द्र पर्वत पर रूप जाये।(2.4). जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखाएँ शनि पर्वत को पार करके भी जुडी हुई रहें। (2.5). भाग्य रेखा के अन्त में शनि पर नक्षत्र-तारा हो और चन्द्र पर जाली हो। (2.6). निम्न मंगल पर गुणक चिन्ह होने से भी जातक आत्महत्या कर सकता है। (2.7). मंगल क्षेत्र के आस-पास भाग्य रेखा कटी-फटी और अस्पष्ट हो। (2.8). मध्य मंगल पर जाली के साथ-साथ धन (+) चिन्ह हो। 
आत्मशक्ति :: अंतर्दृष्टि रेखा के साथ यदि तर्जनी के ठीक नीचे वर्तुल-चक्राकार हो तो जातक आत्म शक्ति सम्पन्न होता है।
आर्थिक अस्थिरता :: भाग्यरेखा में यव हो। उच्च और निम्न मङ्गल के बीच का क्षेत्र दबा हुआ हो। सूर्य रेखा कटी-फटी, टुकड़ों में हो या उसे अन्य रेखाएँ काट रही हों। स्वास्थ्य रेखा पर यव हो। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर पहुँचने से पहले ही टूट गई हो। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा से फिर शुरू होकर शनि पर पहुँचे। 
आर्थिक कठिनाई :: भाग्य रेखा कटी हुई हो। बुध पर्वत पर गुणक चिन्ह हो। स्वास्थ्य रेखा के अन्त में यव हो। शुक्र पर्वत से कोई रेखा आकर सूर्य रेखा को काटे। भाग्य रेखा और सूर्य रेखाओं में से नीचे की ओर रेखाएँ जा रही हो (ऊपर मोती, नीचे पतली)। 
आय-आमदनी :: सूर्य रेखा का उदय जीवन रेखा से हो और वह बगैर किसी बाधा के सूर्य पर्वत पर पहुँचे और नक्षत्र-तारे में खत्म हो। सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा से निकले तो जातक मस्तिष्क का प्रयोग करके धन अर्जित करे। भाग्य रेखा की शाखा वृहस्पति पर पहुँचे। भाग्य रेखा का झुकाव वृहस्पति की ओर हो। मध्यमा के पहले पर्व पर वृत हो तो धन बरसता है। अनामिका के नीचे कोई आड़ी काली रेखा हो। स्त्री के हाथ में अनामिका के नीचे आड़ी काली रेखा बहुत शुभ होती है। 
आदर्श पति :: (1). वृहस्पति पर तर्जनी अँगुली का गठन सुन्दर हो। (2). वृहस्पति का एपेक्ष केंद्र में हो। (3). शुक्र और चन्द्र पर्वत केंद्र में हों। (4). मस्तिष्क रेखा बारीक-महीन हो।(5). ह्रदय रेखा की एक शाखा तर्जनी की ओर और दूसरी तर्जनी और मध्यमा के बीच जाये। 
आदर्श पत्नी :: (1). अँगुलियाँ सीधी, लचीलापन लिये हुए और नुकीली हों। (2). सभी पर्वत सामान्य और अपने केन्द्र स्थल में हों। (3). शुक्र, चन्द्र और मंगल उभरे हुए न हों। (4). ह्रदय रेखा शाखान्वित हो और वृहस्पति पर द्विजिव्ही हो। (5). मस्तिष्क रेखा सीधी हो और अँगूठा हल्का सा पीछे की ओर मुड़े। (6). कनिष्ठा और तर्जनी नुकीली हों। (7). मध्यमा अँगुली का आकार शिल्पी किस्म का तथा अनामिका शंकुआकृति हो। (8). मत्स्य, त्रिशूल, शंख चिन्ह यदि महिला के हाथ में हों तो शुभ होंगें। 
आदर्श वादिता :: (1). अँगुलियाँ हथेली से लम्बी हों। (2). नाख़ून बादाम के समान उभरे हुए हों। (3). वृहस्पति सामान्य रूप से उभरा हुआ हो। (4). तर्जनी का पहला पर्व पुष्ट हो।(5). अँगुलियों के सिरे नुकीले हों। 
आदर्श व्यवहार :: अँगुलियाँ लम्बी हों और तर्जनी का पहला पर्व लम्बा हो। नाख़ून गोल और बादाम की शक्ल लिये हुए हों। तर्जनी नुकीली और वृहस्पति उभरा हुआ हो। हाथ में कोई रेखा अस्पष्ट न हो। 
आदर्श हाथ :: हाथ देखने में सुन्दर, सुडौल, त्वचा मुलायम, रंग गुलाबी, अँगुलियाँ सुन्दर हों।
आध्यात्मिकता :: लम्बी और नुकीली अँगुलियाँ, मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर हल्की से जाती हुई। चन्द्र पर्वत उभरा हुआ। अन्तर्ज्ञान-अंतर्दृष्टि रेखा उपस्थित हो। अँगूठे का अगला भाग नुकीला हो। चतुष्कोण में किसी रेखा पर गुणक चिन्ह की उपस्थिति। 
आमवात-गठिया :: जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा एक जगह मिली हुई हों।नाखूनों पर खड़ी हुई रेखाएँ, नाखूनों का किनारों पर स्वतः टूटना, शनि पर्वत पर जाली, जीवन रेखा पर शनि पर्वत तक कई यवों की उपस्थिति। 
आयु-जीवन रेखा :: वृहस्पति के नीचे से प्रारम्भ होकर आयु-जीवन रेखा अगर शुक्र को पूरा घेर ले तो 105 वर्ष की आयु बताती है। ह्रदय रेखा से आयु का अनुमान उसकी पूरी लम्बाई को 105 साल मानकर करते हैं। एक अँगुली के नीचे का हिस्सा 21 वर्ष और उनके बीच का ज्यादा खुलापन 7 साल को बताता है। अगर बीच में खाली स्थान नहीं है तो आयु को उतना ही कम गिनें। अगर जीवन रेखा को मंगल रेखा समर्थन कर रही है तो उस काल में स्वास्थ्य सही रहेगा। अगर जीवन रेखा के साथ-साथ भाग्य रेखा बहुत करीब चले तो वह जीवन रेखा का काम करती है। 
जिस स्थान पर मस्तिष्क रेखा भाग्य रेखा अथवा सूर्य रेखा से मिलती है वह आयु का 35वाँ  वर्ष और जिस स्थान पर सूर्य रेखा या मस्तिष्क रेखा हृदय रेखा से मिलती हैं, वह स्थान आयु का 50वाँ वर्ष की आयु बताता है। 
एक मणिबन्ध :- आयु 25 वर्ष, दो मणिबन्ध :- आयु 50 वर्ष, तीन मणिबन्ध :- पूर्णायु। 
यदि कनिष्ठिका सूर्य रेखा-अनामिका के दूसरे पर्व को पार करती है तो आयु 70 वर्ष से ज्यादा होगी।   
आयु कर्म च चित्तं च विद्या निधनमेव च। पञ्चैतान्यपि सृज्यन्ते गर्भस्थरस्यैव देहिन:
आयु-आयुष्य, नियत कर्म-जीवन वृत्ति, चलाचल संपत्ति-वित्त मर्यादा, विद्याध्ययन और मृत्यु, ये पाँच देही-जीव के गर्भ में ही निश्चित हो जाते हैं। 
जीवन रेखा जीवन दायिनी शक्ति को दर्शाती है। इसके अभाव में आयु समाप्त नहीं होती। दृढ़-मजबूत अँगूठा जीवन को कायम रखता है। आयु का सही अनुमान दोनों हाथों में हृदय रेखा, अँगुलियों के बीच की झिरी और अन्य लक्षण देखकर ही करना चाहिये। 
For detailed study please refer to :: LIFE LINE जीवन रेखा :: A TREATISE ON PALMISTRY (4) हस्तरेखा शास्त्र bhartiyshiksha.blogspot.com
आयु-जीवन रेखा पर गुणक :- दुर्घटना, यव :- भयंकर तकलीफ, खराब स्वास्थ्य, कलंक, आर्थिक हानि और बीमारी, लाल बिन्दु :- असाध्य रोग, वर्ग बचाव, अन्त में काला धब्बा :-चोट से मृत्यु, आरम्भ में चिमटा-द्विशाखा :- न्यायप्रियता, उच्च आदर्श, स्वस्थ मस्तिष्क, और अन्त में द्विशाखा :: मधुमेह, जन्म स्थल से दूर मृत्यु। 
आलसी :: मस्तिष्क रेखा वक्रीय हो, शुक्र, सूर्य और चन्द्र पर्वत सामान्य से अधिक उठे हुए हों, हाथ मोटा मगर मुलायम हो, अँगूठा कमजोर संकल्प शक्ति प्रकट करे, अँगुलियाँ करतल की अपेक्षा छोटी हों। 
आलोचक :: बुध पर्वत उठा हुआ हो, नाख़ून छोटे हों, मंगल मैदान में गुणक चिन्ह की उपस्थिति, अँगुलियों का दूसरा पर्व सामान्य से अधिक लम्बा हो, अँगुलियाँ गठान लिये हों
आलोचनात्मक बुद्धि :: अँगूठा मजबूत, लम्बा और गठान लिये हुए हो, हाथ बड़ा हो, अँगुलियाँ गठान लिये हों, अँगुलियों का दूसरा पर्व सामान्य से अधिक लम्बा हो। 
आविष्कारक :: लम्बी गठान युक्त अँगुलियाँ, अँगुलियों का दूसरा पर्व सामान्य से अधिक लम्बा हो, हाथ बड़ा और उसमें शनि पर्वत उभरा हुआ हो, अँगुलियों के पौरुए शिल्पी किस्म के हों, हाथ में बुध के नीचे रोग विशेष चिन्ह (Medical Stigmata Lines) हो।
MEDICAL STIGMATA :: कलंक, लांछन, धब्बा, चिह्न, कुक्षि, किसी रोग का विशेष चिह्न, योनि-छत्र।
आँख खराब होना :: ह्रदय रेखा और सूर्य रेखा जहाँ मिलती हों, वहाँ सूर्य रेखा के दोनों ओर काले बिन्दु हों-जिनके प्रभाव से जातक अँधा भी हो सकता है, जीवन रेखा पर वृत्त चिन्ह अथवा सफेद बिन्दु हो, बहुत ज्यादा उभरे हुए सूर्य पर्वत पर वृत्त चिन्ह उपस्थित हो। 
आँखों का रोग :: सूर्य पर्वत के नीचे मस्तिष्क रेखा पर वृत्त अंधे होने की संभावना को व्यक्त करता है। मस्तिष्क रेखा के अन्त में तारे-नक्षत्र की उपस्थिति आँखों की खराबी की सूचक है। यदि मस्तिष्क रेखा शनि और सूर्य पर्वत के बीच खत्म हो रही हो तो भी आँखों की खराबी की ओर इंगित करती है। ह्रदय रेखा में मध्यमा और अनामिका के बीच यव हो तो आँखों का रोग हो सकता है। मस्तिष्क रेखा पर सूर्य पर्वत के नीचे यव होने की स्थिति में जातक को आधे सर में दर्द-आधा सीसी (Sun Stroke) हो सकता है। 
आँत विकार :: स्वास्थ्य रेखा टूटी हुई हो। प्रमुख रेखाएँ जीवन, मस्तिष्क और हृदय रेखा) पीलापन लिये हुए हों। नाखूनों पर लाल धब्बे हों। मध्यमा और तर्जनी के बीच में से कोई लाल रंग लिए हुए रेखा वृहस्पति पर्वत तक पहुँचे। मस्तिष्क रेखा यव में समाप्त हो रही हो। 
आंतरिक पीड़ा :: चन्द्र पर्वत बहुत ज्यादा उभरा हुआ हो। स्वास्थ्य रेखा में यव हो। जीवन रेखा सीढ़ी नुमा हो। 
आंतरिक शक्ति :: प्रतिभा-अंतर्ज्ञान रेखा, उपस्थित हो, वृहस्पति मुद्रिका मौजूद हो और तर्जनी के पहले पर्व पर यव हो। तर्जनी और अनामिका की लम्बाई बराबर हो। यदि अनामिका लम्बी हुई तो शक्ति का प्रवाह बाह्य मुखी होगा और जातक को नेतागिरी की भूख-शौक होगा। 
आसक्ति :: हाथ का रंग लालिमा लिये हुए हो, शुक्र पर्वत सुदृढ़, उभरा हुआ और  मज़बूत हो, जीवन रेखा पूरी गोलाई लिये हुए हो और उसके साथ मंगल रेखा भी हो। 
इत्र-फुलेल का व्यापार :: कोई दो पर्वत एक दूसरे के बहुत करीब हों। 
ईमानदारी :: अनामिका के दूसरे पर्व से तीसरे पर्व के आखिर तक दो खड़ी रेखाएँ हों। करतल का मध्य भाग काफी चौड़ा और चौकोर हो। हथेली में बड़ा त्रिभुज हो। 
इश्कबाज :: शुक्र पर्वत बहुत ज्यादा उभरा हुआ हो। मस्तिष्क रेखा जंजीरनुमा हो। विवाह रेखा द्विज्विहित हो। शुक्र मुद्रिका दोहरी और कटी-टूटी हुई हो। ह्रदय रेखा में यव हो। अँगूठा सामान्य हो।  
ईर्षालु :: लम्बी ह्रदय रेखा गुरु पर्वत के केन्द्र तक पहुँचे। चन्द्र पर्वत उभरा हुआ हो। शुक्र मुद्रिका छोटी हो। मस्तिष्क रेखा शनि के ठीक नीचे मुड़ जाये, कब्ज की शिकायत भी हो। अनामिका के तीसरे पर्व पर गुणक चिन्ह हो या सूर्य पर्वत मुद्रिका सहित उभरा हुआ हो। 
उच्चाभिलाषा :: (1). शुक्र या मंगल पर्वत से कोई रेखा निकलकर गुरु पर्वत तक जाये जहाँ नक्षत्र मौजूद हो। (2). जीवन रेखा में से कोई उर्ध्व रेखा गुरु पर्वत की ओर जाये। (3). गुरु पर्वत उच्च हो। (4). मस्तिष्क रेखा गुरु पर्वत से प्रारम्भ होकरजीवन रेखा को थोड़ा सा छू कर आगे बढ़े। (5). मस्तिष्क रेखा बारीक और लम्बी हो। ऊपरी मंगल से एक रेखा सूर्य पर्वत की ओर जाये।  
उच्च पद :: भाग्य रेखा से कोई रेखा निकलकर अनामिका अँगुली के ऊपर सूर्य पर्वत तक जाये तो व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ उच्च पद प्राप्त करता है। 
उत्सुकता :: अँगुलियों में झिरी हों। नाख़ून छोटे और चिन्ता रेखाओं की उपस्थिति हो। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से ज्यादा दूर न हो। सूर्य, बुध और चन्द्र पर्वत उभरे हुए हों। 
उत्तम प्रकृति :: यदि शुक्र पर्वत पर शैल आकृति हो तो जातक का स्वभाव अच्छा होगा। 
उत्तराधिकार :: मणिबन्ध रेखाओं पर त्रिभुज आकृत्ति हो तो व्यक्ति को विरासत में धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। मणिबन्ध से निकलकर कोई रेखा शुक्र पर्वत पर पहुँचे तो जातक को सन्तति और सम्पत्ति का सुख मिलता है। दोहरी मस्तिष्क रेखा हो, बड़े त्रिभुज में गुणक चिन्ह हो, पहले मणिबन्ध पर नक्षत्र-तारे का चिन्ह हो अथवा पहले मणिबन्ध पर कोई  तिरछी रेखा या त्रिभुज-चिमटे की आकृत्ति हो तो जातक का दादा धनी होता है।
उदर रोग :: मस्तिष्क रेखा चौड़ी-फैली हुई हो तो उदर रोग हो सकता है। मोटी मस्तिष्क रेखा अन्त में थोड़ी से झुकी हुई हो अथवा सीढ़ी नुमा स्वास्थ्य रेखा टुकड़ों में बँटी हुई हो, यह उदर रोग का लक्षण हो सकता है। 
उदार :: चतुष्कोण चौड़ा होगा और ह्रदय रेखा लम्बी होगी। गुरु और शुक्र पर्वत विकसित होंगे। जीवन रेखा के नजदीक शुक्र पर्वत से कोई भाग्य रेखा निकलती हो। नाख़ून लम्बे होंगे। ह्रदय रेखा गुरु-वृहस्पति पर्वत को छू रही हो। 
उदासीनता :: रेखाएँ गहराई लिये हुए हों। जीवन रेखा का अन्त झब्बेदार रेखाओं में होता हो और उस स्थान पर गुणक चिन्ह उपस्थित हों। स्वास्थ्य रेखा अन्त में द्विभाजित हो रही हो। उसकी एक शाखा जीवन रेखा की ओर और दूसरी उसके नीचे हो। जीवन रेखा से अनेक बारीक रेखाएँ नीचे की ओर जा रही हों। 
उद्यमी :: हाथ मोटा और कठोर हो, अँगुलियों और अँगूठे के तीसरे पर्व के पीछे हाथ पर बाल हों, नाख़ून छोटे हों, मंगल और वृहस्पति पर्वत उभरे हुए हों, मस्तिष्क रेखा अनामिका के आगे तक जाये, मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा के बीच कुछ दूरी हो। 
उन्नति-अपने परिश्रम से :: हृदय रेखा पर कोई त्रिभुज हो, मस्तिष्क रेखा से सूर्य रेखा निकलकर सूर्य पर्वत पर जाये। शुरू में भाग्य रेखा न हो और बाद में भाग्य रेखा मध्य चंद्र पर्वत से प्रारम्भ हो रही हो। 
उन्नति कारक रेखाएँ :: जीवन रेखा से उदय होकर अन्य पर्वतों पर जाने वाली रेखाएँ उन्नति कारक होती हैं। यदि इन रेखाओं को प्रभाव रेखाएँ या मंगल अथवा शुक्र से उदय होने वाली रेखाएँ काटें तो समुचित फल प्राप्त नहीं होता। वृहस्पति की ओर जाने वाली रेखाएँ उन्नति के साथ-साथ प्रभाव और सत्ता दिलाती हैं। शनि की ओर बढ़ने वाली रेखाओं से धन-सम्पत्ति का सृजन होता है। सूर्य पर पहुँचने वाली रेखाएँ प्रसिद्धि और सफलता दिलाती हैं। 
उभयलिंगी :: ह्रदय रेखा में तर्जनी और मध्यमा के बीच एक बड़े चिमटे का निर्माण हो रहा हो। निम्न मंगल से जीवन रेखा को छूने और काटनी वाली रेखाएँ भी यही प्रकट करती हैं।
उम्र-आयु :: आयु का निर्धारण जीवन रेखा से नहीं, अपितु हृदय रेखा से करना चाहिये। मस्तिष्क रेखा को भी जाँचना-परखना आवश्यक है। हाथ पर पाये जाने वाले अन्य चिन्हों को कभी भी नजरन्दाज नहीं करना चाहिये। 
एकाग्रता :: मस्तिष्क रेखा वृहस्पति के नीचे तक जाये, वृहस्पति विकसित हो।
एपेक्ष :: किसी भी पर्वत की छोटी-सर्वोच्च स्थान अपेक्ष कहलाता है। यह सामान्य, दबा हुआ, बहुत ज्यादा दबा हुआ, उभरा हुआ, बहुत ज्यादा उभरा हुआ, अँगुली के पास, अँगुली से दूर, बाँयीं और अथवा दाँई खिसका हुआ हो सकता है। 
एपेक्ष सूर्य पर्वत :: यदि अनामिका के ठीक नीचे केंद्र में न होकर यदि ऊपर की ओर हो तो पर्वत के गुणों के प्रभाव का अनुचित इस्तेमाल अर्थात दुरूपयोग होता है। 
एपेक्ष बुध पर्वत :: यदि कनिष्ठिका की जड़ में हो तो व्यक्ति हँसी-मज़ाक का शौकीन होता है। भोजन के बाद अच्छा भाषण दे लेता है। चुटकुलों और हास्य रस का शौकीन भी होता है।
एपेक्ष शनि पर्वत :: मध्यमा की जड़ में हो तो जातक के ऊपर शनि के गुणों का बढ़ा हुआ असर दिखाई देता है। वह एकान्त प्रेमी, शर्मिला, समाज के नियमादि से समान्यतया अनभिज्ञ और सभ्यता का ख्याल न रखने वाला होता है। 
एपेक्ष वृहस्पति :: ऊपर होने से जातक घमण्डी, अहम भाव रखने वाला, प्यार मोहब्बत का दिखावा करने वाला होता है। उसके काम और व्यवहार में सत्य का अंश कम ही रहता है। 
एपेक्ष हथेली पर :: 
तर्जनी और मध्यमा के बीच :- प्रसिद्धि। 
तर्जनी और अनामिका के बीच :- गम्भीरता। 
अनामिका और कनिष्ठा के बीच :- हास्य की प्रवृत्ति। 
बुध पर्वत पर :- अच्छी स्मरण शक्ति। 
ऊपरी चंद्र पर :- अंतर्दृष्टि। 
निम्न चंद्र पर :- अन्तर्प्रेरणा। 
जीवन रेखा के नज़दीक :- मानवीयता। 
जीवन रेखा के अन्त में अँगूठे की ओर :- संगीत प्रशंसक। 
शुक्र पर्वत पर :- संगीत में रूचि। 
एपोप्लेक्सी :: शुक्र पर्वत उच्च स्तर का हो, जिस पर बहुत सी रेखाएँ हों, मंगल का मैदान खोखला सा हो, हृदय रेखा पर लाल रंग का धब्बा हो, हृदय रेखा में से दो समानान्तर रेखाएं निम्न चंद्र पर्वत पर आयें।  
अन्त समय :: लम्बी और सीधी मस्तिष्क रेखा के अन्त में यव का होना अशुभ है, जिसके परिणाम स्वरूप जातक को जीवन के अंतिम पड़ाव में परेशानियों का सामना करना पड़  सकता है। यदि अँगूठा सुदृढ़ हो तो ऐसी स्थिति से निपटा जा सकता है। लम्बी बीमारी के बाद अँगूठे का अन्दर की ओर लटकना, अन्तिम समय का लक्षण है। चन्द्र पर्वत और शनि पर्वत पर नक्षत्र-तारा मृत्यु का द्योतक है।  
अन्तर समस्या :: जीवन रेखा की ओर से आने वाली कोई रेखा (प्रभाव रेखा) भाग्य रेखा को काटे या चंद्र पर्वत की तरफ से कोई रेखा भाग्य रेखा को काटे तो प्रभावी उम्र में समस्या हो सकती है। सूर्य या भाग्य रेखा को काटने वाली कोई भी रेखा जातक के लिए परेशानी का कारण बन सकती है।  
अन्तर्दृष्टि :: मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा के मध्य रहस्य गुणक चिन्ह हो। चतुष्कोण में दो रहस्य गुणक भी हो सकते हैं एक गुरु पर्वत और दूसरा शनि पर्वत के नीचे। अन्तर्ज्ञान-अन्तर्दृष्टि रेखा उपस्थित हो। वृहस्पति पर गुरु मुद्रिका उपस्थित हो। शनि पर त्रिभुज हों। कनिष्ठिका तीख-नुकीली हो। तीन स्पष्ट मणिबन्ध मौजूद हों। Please refer to :: LINE OF INTUITION अंतर्ज्ञान रेखा :: A TREATISE ON PALMISTRY (17) हस्तरेखा शास्त्bhartiyshiksha.blogspot.com  
अंध विश्वास :: चंद्र पर्वत पर खड़ी रेखाओं का पाया जाना, चतुष्कोण में किसी स्वतंत्र काटे का निशान, इसकी पुष्टि करता है। 
***अन्धापन :: सूर्य पर्वत के नीचे, हृदय रेखा पर वृत उपस्थित हो, स्वास्थ्य रेखा के पास बड़े त्रिभुज में नक्षत्र-तारा हो, मस्तिष्क रेखा पर गुणक चिन्ह हो, मस्तिष्क रेखा पर अनामिका के नीचे वृत मौजूद हो, मस्तिष्क रेखा पर काला बिंदु हो। बुध और सूर्य पर्वत के नीचे ह्रदय रेखा पर तिल-गहरा काला निशान हो। ऊपरी मङ्गल पर वृत होने से आँख में घाव हो। 
सूर्य पर्वत पर एक दूसरे को काटने वाली रेखाएं नज़र के कमजोर होने तथा मोतिया बाँध की ओर इशारा करती हैं। 
पेट की शल्य चिकित्सा :: भाग्य रेखा में उच्च मङ्गल से आकर कोई रेखा मिल जाये तो ऐसा सम्भव है। मङ्गल से शुरू हुई रेखा जहाँ जीवन रेखा को काटेगी, उसी उम्र में शल्य चिकित्सा होगी। 
कठोर व्यक्ति :: ह्रदय रेखा केवल शनि पर्वत के नीचे तक पहुँचे। अँगुलियाँ छोटी हों और उनमें एक-दो गठान भी हों। पर्वत सम हों, कोई भी उठा हुआ न हो। मस्तिष्क रेखा हथेली तक-शनि पर्वत के नीचे तक सीधी जाकर, फिर चंद्र पर्वत की ओर मुड़ जाये। ह्रदय रेखा सीधी आर-पार जाये तो जातक कठोर ह्रदय और बेदर्द होगा। निम्न मंगल या शनि का उठा हुआ होना, इसकी पुष्टि करेगा। 
कनिष्ठा  अँगुली :: यह अवचेतन मन को नियंत्रित करती है। यह उत्तेजनाओं का शमन, ज्ञान का सृजन और उपयोग में सहायक है। कनिष्ठिका का पर्वत बुध है जिसका सामना शुक्र करता है। यह काम तत्व को प्रदर्शित करती है। अनामिका इसको दबाये रखती है। अनामिका के लम्बी होने पर जातक खता-पीता है, मस्त रहता है, जुआ खेलता है, परनतु कनिष्ठिका इसको बलपुयर्वक दबाये रखती है। 
कनिष्ठा अधिक लम्बी :- अत्यधिक चालक-धूर्त, 
लम्बी अँगुली :- विश्लेषक प्रवृति, 
छोटी कनिष्ठा अँगुली :- व्यक्ति का जल्दबाज होना और अनिष्ट को जाहिर करती है, व्यक्ति स्थिति का जायज़ा सरसरी तौर पर करता है। 
नुकीली कनिष्ठा अँगुली :- बुद्धि के प्रयोग को दर्शाती है। 
सामान्य लम्बाई :- योग्यता-कार्य कुशलता।   
छोटी :- व्यवहार कुशलता का अभाव-नासमझी। 
चौकोर :- दूरदर्शिता, विलक्षणता। 
टेढ़ी :- अयोग्यता। 
मुड़ी हुई :- बेईमान। 
सुन्दर गठन :- बहुमुखी प्रतिभा। 
अनामिका के बराबर :- राजनैतिक प्रभाव।  
अनामिका की ओर झुकाव :-  व्यापार-व्यवसाय में समझदारी। 
अनामिका से दूर :- काम करने में स्वतंत्रता।
कनिष्ठिका पहला पर्व ::
लम्बा :- वक्तृत्व कला, सम्प्रेषण (बिना सम्प्रेषण के अधिगम और शिक्षण नहीं हो सकता। संप्रेषण दो शब्दों से मिलकर बना हुआ हैं। सम + प्रेषण अर्थात समान रूप से भेजा गया), उत्सुक। 
खड़ी रेखा :- भाषणकर्ता (दार्शनिक हाथ में)। 
आड़ी रेखा :- बातूनी, झूँठा और बेईमान। 
चिमटा :- व्यापार , उद्योग में असफलता।
नक्षत्र-तारा :- व्यापार में अकुशल, अच्छा भाषणकर्त्ता। 
तीनों पर्वों पर एक खड़ी रेखा :- विज्ञानं में रूचि, ईमानदार और विश्वास योग। 
त्रिभुज :- अध्यात्म में अभिरुचि। 
वर्ग :- व्यापार कुशल। 
जाली :- चोर। 
गुणक :- अन्तर्ज्ञान (निकृष्ट हाथ में होने पर चोरी करे।
गुणक (निकृष्ट हाथ में) :- चोरी करे। 
कनिष्ठिका दूसरा पर्व ::
लम्बा :- चतुराई, अन्तर्दृष्टि का व्यावहारिक पहलू। 
अस्पष्ट खड़ी-टेढ़ी रेखाएँ :- अनैतिक, धोखेबाज।
रेखा दूसरे से तीसरे पर्व पर चढ़ी हो :-  बुद्धिमान, भाषण कला।
आड़ी रेखा :- भावुकता। 
गुणक चिन्ह :- सुखमय जीवन और एकाग्रता का अभाव। 
नक्षत्र :- अपयश। 
कई कड़ी रेखाएँ :- मनोविज्ञान में रूचि। 
त्रिभुज :- मनोविज्ञान का छात्र। 
जाली :- दूसरे के मामले में रूचि न ले, दखल न दे, सजा की प्राप्ति। 
वर्ग :- बुध के स्वाभाविक गुणों में कमी।  
कनिष्ठिका तीसरा पर्व ::
लम्बा :- अच्छी निगरानी और चालाक खरीददार। 
खड़ी अस्पष्ट टेढ़ी रेखाएँ :- चोरी की प्रवृत्ति। 
नक्षत्र  :- बुद्धिमान, भाषण कला। 
त्रिभुज :- पद प्रतिष्ठिता। 
वर्ग :- अनिश्चित और अप्रत्याशित व्यवहार। 
वृत्त-गोला :- ईमानदारी का चोला ओढ़े हुए बेईमान व्यक्ति। 
जाली :- बेईमानी। 
धब्बा :- बेईमानी। 
कपटी :: शनि पर्वत बिगड़ा हुआ और अस्त व्यस्त रेखाओं से युक्त हो।
कब्ज :: मस्तिष्क रेखा अस्पष्ट, जीवन रेखा में यव, स्वास्थ्य रेखा लहरदार। 
कमजोरी :: विवाह रेखा के नीचे 4-5 खड़ी रेखाएँ हों तो पत्नी या पति बीमार रहे। जीवन रेखा जंजीरदार हो। दोहरी भाग्य रेखा में से एक पतली और लहरदार हो तो स्वयं किसी रोग के कारण कमजोरी हो। 
कमीनापन :: ह्रदय रेखा मुड़कर मस्तिष्क रेखा के पास से गुजरे। अँगुलियाँ पास-पास हों और अन्दर की ओर झुकी हों।  चतुष्कोण बीच में संकरा हो। 
कर्मठता :: एक चपटी कठोर हथेली पर मुख्य रेखाएँ गहरी हों। नरम हथेली पर मस्तिष्क रेखा गहरी हो। चौकोर सिरे वाली अँगुलियाँ हों। मनोहर पर्वत और मुख्य रेखायें गहरी हों।
करोड़पति :: अँगूठा सुदृढ़ हो, भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से या मध्य मंगल से निकलकर बृहस्पति पर्वत की ओर जाये। लम्बी अँगुलियाँ गाँठदार हों।  
कलाकार-कुशल :: भाग्य रेखा सूर्य रेखा की तरफ मुड़ जाये। चंद्र पर्वत अच्छा हो। हाथ फैलाकर अँगुलियाँ खोलने पर तर्जनी और मध्यमा में काफ़ी दूरी हो। सूर्य रेखा का उद्गम जीवन रेखा से हो।  
कलाकार-सामान्य :: मस्तिष्क रेखा में से कोई रेखा निकलकर सूर्य पर्वत पर जाये। भाग्य रेखा सूर्य पर्वत की ओर मुड़ जाये। तर्जनी अँगुली नुकीली हो। अनामिका सीधी, सुन्दर और लम्बी हो, अनामिका का पहला पर्व लम्बा हो, चंद्र पर्वत अच्छा हो। 
कलाकार-संगीतज्ञ :: कलात्मक हाथ में सूर्य रेखा अच्छी हो, मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत पर हल्का सा घुमाव लिये हो, शुक्र और बुध पर्वत अच्छे हों, चौकोर हाथ में अँगुलियाँ नुकीली हों। 
कलंक :: एक प्रभाव रेखा जिसके अंत में यव हो, सूर्य रेखा को काटे। जातक लोक निंदा का पात्र बनेगा। उसको अय्यश के साथ सामाजिक कलंक भी लगेगा। चोरी, दुर्व्यसन, व्यभिचार, कुकर्मों से यदि बदनामी हो अन्य कारणों (रेखाओं या पर्वतों के प्रभाव) हो सकता है।
कल्पना :: चंद्र पर्वत मनोहर-सुन्दर हो, कोमल हाथ में अँगूठा कमजोर हो, मस्तिष्क रेखा छोटी हो, मंगल और गुरु पर्वत दबे हुए हों। 
कल्पना-क्रियात्मक :: अँगुलियाँ नुकीली, अँगुलियों और हथेली दोनों की लम्बाई बराबर हो, मस्तिष्क रेखा चंद्र की ओर थोड़ी झुकी हुई हो, अँगुलियों की दूसरी गठन बड़ी हो, शुक्र और चंद्र विकसित-सुन्दर हों। 
कल्पना-रचनात्मक :: अँगुलियों के सिरे नुकीले हों, अँगुलियों के पहले पोर लम्बे हों, शुक्र और चंद्र विकसित-सुन्दर हों, गुरु और सूर्य दबे हुए हों, बड़ा त्रिभुज पूर्ण और सुन्दर हो, नाख़ून बादाम की आकृति लिये हुए चमकीलेऔर सुन्दर हों। 
कल्पना-चित्रकार :: चंद्र मण्डल उठा हुआ हो, मस्तिष्क रेखा लम्बी और गोलाई लिये हो, अँगुलियाँ नुकीली और बिना गठान के हों, सूर्य की अंगुली-अनामिका का प्रथम गठान चौड़ा और गोल होकर थोड़ा चपटा हो जाये। 
कवि :: (1). ह्रदय रेखा में चौड़ी, लम्बी, जंजीर नुमा शाखाएँ, (2). मस्तिष्क रेखा गोलाई लेकर उच्च चन्द्र पर रुके, (3). हाथ नरम हो, (4). अँगूठे का प्रथम पर्व पतला और लम्बा हो, (5). सूर्य और चन्द्र पर्वत उभरे हुए हों, (6). शुक्र पर्वत सुविकसित और सुन्दर हो, (7). अँगूठा लम्बा और सुदृढ़ हो, मस्तिष्क रेखा लम्बी हो और शुक्र मुद्रिका मौजूद हो।
कातिल-हत्यारा :: (1).अँगूठा मुगदर के समान, छोटा और मोटा  हो, शुक्र पर्वत ज्यादा गोलाई लिए हुए हो, नाख़ून छोटे और लालिमा लिए हुए हों, मस्तिष्क रेखा पर शनि पर्वत के नीचे वर्ण रेखा हो। 
(2). चारों अँगुलियों पर चक्र हों और तर्जनी अँगुली छोटी हो। 
(3). मस्तिष्क रेखा गाँठदार हो, यदि यह पीले रंग की होगी तो वह कत्ल कर चूका होगा और लाल रंग की है तो हत्या करेगा। (4). त्रिभुज में बड़ा गुणक चिन्ह हो, (5). हाथ कठोर हो, (6). अँगुलियाँ चम्मच के आकार की हों, (7). मस्तिष्क रेखा चौड़ी और छोटी हो और ह्रदय रेखा भी छोटी हो, (8). मंगल पर्वत काफी उठा हुआ हो और उस पर तारे का चिन्ह हो, (9). मध्यमा के तीसरे पर्व पर नक्षत्र-तारे का चिन्ह हो। 
कहानी लेखक :: गुरु और चन्द्र पर्वत सुविकसित हों, अँगुलियाँ सुगठित हों, कनिष्ठा का पहला पर्व लम्बा हो, अँगुलियों  शंकुआकार हों, हथेली कलाई की तरफ झुकी हो। 
कान की खराबी :: शनि पर्वत के नीचे मस्तिष्क रेखा में यव हो। 
कामान्ध :: (1). रेखा सूर्य पर्वत के नीचे दो भागों में बँट जाये, जिसकी एक शाखा ह्रदय रेखा के उद्गम को स्पर्श करे और दूसरी चन्द्र पर्वत को।  
(2). के हाथ में विवाह रेखा जंजीर नुमा हो तो उसका ध्यान किसी एक पुरुष की ओर न रहकर अपने विलास, आनन्द हेतु सोचकर व्यक्ति का चुनाव करती है। यही कामोद्वेग है। वह निष्ठुर, निर्दयी और क्रूर होती है। 
(3). मस्तिष्क रेखा की एक शाखा हृदय रेखा को काटकर बुध पर्वत को छूए तो व्यक्ति कामान्ध होता है और किसी की सलाह को नहीं मानता। 
(4). तर्जनी और मध्यमा के बीच में से एक रेखा बुध पर्वत को पार करके कनिष्ठिका के नीचे तक जाये। 
काम वासना-कामी :: (1.1). अँगूठे का पहला पोर लचीला हो और अँगूठा सुदृढ़ हो।(1.2). मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत पर पहुँचे। (1.3). एक शुक्र मुद्रिका-वलय स्पष्ट हो और अन्य 2-3 खण्डित-टुकड़ों में हों। (1.4). मस्तिष्क रेखा छोटी हो और ह्रदय रेखा उसके करीब-नीचे आ जाये। (1.5). ह्रदय रेखा गोलाई लिये हुए हो और शुक्र पर्वत पर पहुँचे। 
(2.1). जीवन रेखा पर दो गुणक चिन्ह हों। (2.2). शुक्र पर्वत बहुत उठा हुआ हो और उस पर तारा भी हो। अगर यह लक्षण स्त्री के हाथ में हो तो वह पुरुषों को बहकाकर पथभ्रष्ट कर देती है। (2.3). जीवन रेखा पूरी गोलाई लिए हुए हो और उसकी कोई सहायक रेखा भी हो। (2.4). जीवन रेखा की कोई शाखा मंगल रेखा के बराबर चले। (2.5). शुक्र पर्वत उठा हुआ हो और उस पर जाली भी हो। (2.6). भाग्य रेखा के प्रारम्भ में दो समानान्तर रेखाएँ जीवन रेखा को काटते हुए शुक्र पर्वत के निचले भाग में पहुँचें। 
कारागार :: (1). शुक्र पर्वत के नीचे की तरफ कोई वर्ग हो तो कारावास की संभावना  रहती है।  
(2). ऊपरी मंगल (निषेध) और शुक्र पर भी वर्ग हो तो भी कारावास सम्भव है। 
(3). किसी अँगुली पर चार पर्व हों तो कारावास सम्भव है, किन्तु अगर चौथा पर्व खण्डित हो तो जेल नहीं होगी। 
(4). मंगल मैदान (यूरेनस)-उच्च मंगल से कोई रेखा शनि पर्वत को जाये तो भी ऐसा संभव है। 
कारीगर :: लम्बी ह्रदय रेखा में उसकी उपशाखा ऊपर की ओर जाये तो प्रशासकीय काम करे तथा नीचे की तरफ जाये तो जातक अपने व्यापार-व्यवसाय में कुशल होता है। 
कायर :: यदि सीधी मस्तिष्क रेखा नीचे की ओर (चन्द्र की तरफ) मुड़कर वापस उद्गम की ओर चले तो जातक अशक्त और कायर होगा। 
कार्याधिक्य :: मस्तिष्क रेखा टेढ़ी रेखाओं के टुकड़ों में विभाजित होकर बनी हो। 
कुकर्मी :: छोटी मस्तिष्क रेखा (शनि तक ही सीमित) के नजदीक ह्रदय रेखा का होना, शुक्र पर्वत ज्यादा उभरा हुआ, कमजोर-छोटी हृदय रेखा-शनि तक ही सीमित और पर्वतों के नजदीक। 
कुख्यात हत्यारा :: अँगूठा गोल-मुगदर की आकृति का हो, मध्यमा अँगुली के मध्य पर्व पर एक तारे-नक्षत्र की उपस्थिति, उच्च और निम्न मङ्गल के बीच गुणक चिन्ह मौजूद हो। 
कुलक्षणा स्त्री :: अँगूठे में वर्तुलाकृति (whorls) हों और उसका मध्य भाग मोटा हो, पैर के अँगूठे के पास वाली तर्जनी अन्य तीन छोटी हो, तो स्त्री कामाचारिणी हो सकती है, पैर की अनामिका अन्य अँगुलियों से से छोटी तो भी यही फल होता है, ऐसी स्त्री रूपवती और पति को धोखा देकर परित्याग करने वाली होती है। (सामान्यतया यह फल बताना नहीं चाहिये)कुशाग्र बुद्धि :: मस्तिष्क रेखा महीन-बारीक, लाल और लम्बी हो, स्वास्थ्य रेखा (यह अंतर्दृष्टि -अंतर्ज्ञान रेखा का काम करती है) छोटी और सुन्दर हो, अँगूठा बड़ा, कम लचीला हो, तर्जनी और कनिष्ठा नोकदार, जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा में बहुत कम अन्तर या शुरू में एक दूसरे को छुएँ, स्वास्थ्य रेखा बुध से आरम्भ हो। 
केतु प्रभाव रेखाएँ :: यह काल रूपी सर्प की पूँछ है। (1). बुध क्षेत्र में उपस्थित होने पर यह रेखा जातक को इतिहास, ज्योतिष आदि का ज्ञान प्रदान करती है। (2). कनिष्ठा के तीनों पर्वों को पार करती हुई यह रेखा जातक को व्यापार, उद्योग में तरक्की देती है। (3). अर्ध चन्द्र के रूप में केतु का यह चिन्ह जातक को सौभाग्यशाली बनाती है। (4). जीवन रेखा के अन्त में मच्छ रेखा या अर्द्ध चंद्राकार रेखा के रूप में यह रेखा जातक को अपने जन्म स्थान से दूर सफलता प्रदान करती है। मस्तिष्क रेखा के अन्त में अव्यवस्थित चतुष्कोण या अधिक कोण विपतीत परिणाम देता है। व्यापार में सफल नहीं होने देता। जातक को परिश्रम का पूरा फल प्राप्त नहीं होता। 
कैंसर :: ऊपरी चंद्र जहाँ स्वास्थ्य रेखा भाग्य रेखा को काट रही हो, वहाँ 5-6 निम्नगामी रेखायें हों। मस्तिष्क रेखा के अन्त में त्वचा धुँधली हो-बारीक-महीन रेखाएँ मिट जायें। 
कैंसर-गाँठ :: स्वास्थ्य रेखा पर यवों का समूह हो। मस्तिष्क रेखा सीधी चलकर ऊपर मुड़ जाये। 
कोण (><) :: इसका होना अशुभ है। हुमायूँ की तीसरी अँगुली-अनामिका पर यह चिन्ह मौजूद था; जिसके परिणाम स्वरूप उसे वनवास और अलगाव मिला। नेपोलियन की तीसरी अँगुली पर भी यह चिन्ह था। 
कोण-बड़ा :: मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा मिलकर भी यह चिन्ह बनाती हैं। ज्यादा बड़ा कोण व्यक्ति को असावधान-असुरक्षित बनाता है। यदि यह मध्य मंगल-शनि के नीचे से शुरू हो (जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ शनि के नीचे तक होगा) तो जातक को नीच प्रकृति-प्रवृत्ति का बनाता है। बृहस्पति के नीचे-स्वस्थान से प्रारम्भ होने पर यह जातक को शुद्ध विचारों वाला-सुह्रदय बनाता है। 
समकोण की आकृत्ति होने पर मनुष्य की बुद्धि सही काम करती है। और वह दीर्घायु होता है।  
कोण-छोटा :: थोड़ा छोटा कोण होने पर जातक जनता को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। भाषण देने में प्रवीण होता है। यह लक्षण अभिनय करने वालों के लिए लाभप्रद है। कोण छोटा होने पर जातक निराशा में डूबा रहता है। सूर्य रेखा के द्वारा न्यूनकोण बनाने पर जातक का व्यक्तित्व निखरता है। इसके थोड़ा बड़ा होने पर स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
कौशल :: लम्बी अँगुलियाँ, दूसरी गठान अच्छी, जीवन रेखा के अन्त में छोटा सा त्रिभुज, स्वास्थ्य रेखा अच्छी और स्पष्ट, ह्रदय रेखा अच्छी, मध्यमा अच्छी और चिकनी, अँगूठा सतर्क-ना ज्यादा लचीला और न ही कड़ा, मंगल का मैदान अच्छा। 
कृष्ण पक्ष का जन्म ::  जीवन आरम्भ और अन्त में अन्य रेखाओं से जुड़ी हुई हो, जीवन रेखा हथेली में कुछ दूरी तक ही हो या छोटी हो, मणिबन्ध के पास जीवन रेखा की समाप्ति के स्थान पर सुन्दर रेखाएं मौजूद हों, बाएं हाथ की अपेक्षा दाहिने हाथ की रेखाएं ज्यादा स्पष्ट हों, यदि जीवन रेखा गोलाई लिए हुए हो तो अन्त में (लगभग आधी गोलाई के बाद), सीधी हो गई हो।  
क्रोध :: मस्तिष्क रेखा का रंग काला हो, अस्पष्ट रेखा शनि पर रुके, नाखूनों का रंग पीला हो, मस्तिष्क रेखा की कोई शाखा थोड़ी दूर तक जाये या मस्तिष्क रेखा थोड़ी ऊँचाई से निकले, शुक्र का दायरा छोटा हो अर्थात जीवन रेखा की गोलाई कम हो। 
खतरा :: (1). अस्पष्ट रेखाएँ, मस्तिष्क रेखा में से एक शाखा निकलकर रेखा में आरम्भ में मिल जाये तो जीवन को खतरा हो सकता है। (2). कोई भी मुख्य रेखा (जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा) जब अपने स्वाभाविक रस्ते-पथ से भटक जाये या पीछे मुड़ जाये तो भारी कष्ट जो कि उस रेखा से सम्बन्धित हो, हो सकता है। 
खदान से लाभ :: सूर्य रेखा की कोई शाखा शनि पर्वत पर जाये तो जमीन-खदान से लाभ प्राप्त हो सकता अथवा गढ़ा हुआ धन प्राप्त हो सकता है। मध्यमा के तीनों पौरों-पर्वों पर यदि खड़ी हुई रेखाएँ हो तो भी यही फल होगा। 
खाज-खुजली :: नाख़ून उभरे हुए हों, हाथ की त्वचा बेढंगी और मुलायम हो, गुणक चिन्ह लिये गराड़ियाँ हों। 
खुशहाली :: बृहस्पति पर गुणक चिन्ह हो, मणिबन्ध से बगैर कटे भाग्य रेखा सीधी शनि पर्वत पर जाये।
गर्मी-सुजाक :: सुजाक एक संक्रामक यौन संचारित बीमारी है। सुजाक नीसेरिया गानोरिआ नामक जीवाणु से होता है जो महिला तथा पुरुषों में प्रजनन मार्ग के गर्म तथा गीले क्षेत्र में आसानी और बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके जीवाणु मुँह, गला, आँख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं। उपदंश की तरह यह भी एक संक्रामक रोग है। अतः उन्ही स्त्री-पुरुषों को होता है, जो इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति से यौन संपर्क करते हैं। सुजाक रोग में चूँकि लिंगेन्द्रिय के अंदर घाव हो जाता है और इससे पस निकलता है। इसे पूयमेह, औपसर्गिक पूयमेह, गोनोरिया (gonorrhoea) और परमा भी कहते हैं। 
(1). शुक्र मुद्रिका की तीन रेखाएँ अर्द्ध चंद्राकार टुकड़ों में छितराई हुई मौजूद हों।
(2). जीवन रेखा दोनों हाथों में दो स्थानों  पर टूटी हुई हो। 
(3). शुक्र मुद्रिका पर एक नक्षत्र चिन्ह हो, जिसकी एक शाखा बृहस्पति पर पहुँचे। 
(4). महिला के हाथ में विवाह रेखा पर ऊपर-अँगुली की ओर कोणात्मक या चंद्राकार उभार हो।  और  (5). शुक्र पर्वत पर जाली हो।
गरीबी :: (1). यदि हाथ की अँगुलियों को जोड़कर रखने पर उनके बीच काफ़ी स्थान दिखाई दे तो इसे गरीबी का लक्षण समझना चाहिए। (2). मणिबन्ध टूटे हुए और अस्पष्ट हो। (3). तर्जनी से अनामिका तक तीनों अँगुलियों का न्यूनतम स्थान यदि एक रेखा में हो, कनिष्ठिका नीचे दबी हुई हो, तो भी यही फल होता है।(4). अनामिका के नीचे चन्द्र चिन्ह हो। (5). शुक्र पर्वत पर गुणक या तारा हो।(6). बड़े त्रिभुज में गुणक चिन्ह हो। (7). जीवन रेखा के अन्त में जाली हो।(8). भाग्य रेखा जंजीर नुमा हो या शनि पर्वत के अन्दर तक चली गई हो।(9). मस्तिष्क रेखा की कोई शाखा बृहस्पति तक गुणक चिन्ह तक पहुँचे।(10). शुक्र पर्वत से कोई रेखा निषिद्ध मङ्गल तक जाये।
गठान :: नाख़ून के नीचे पहली गठान तत्व ज्ञान की होती है और किसी उद्देश्य निहित विवाद को स्पष्ट करती है। यह मनुष्य को व्यवस्थित रूप से जीने में सहायता प्रदान करती है। दूसरी गठान स्वार्थ के मामले में नियमबद्ध रास्ते को अपनाने में सहायक है और भौतिक सम्पदा से सम्बन्धित है। तीसरी गठान घरेलू वातावरण को सही रखने में सहायक है। अँगूठे की पहली गाँठ दार्शनिक गाँठ भी कही जाती है। तर्जनी की गाँठ सभी धर्मों का आदर करने की प्रवृति को प्रदर्शित करती है और किसी प्रश्न के कारण को भी ढूँढ़ने की प्रवृति को दर्शाती है।
गले की खराबी :: पतला और लम्बा नख जो आसानी से टूटे। मस्तिष्क रेखा और स्वास्थ्य रेखा का संयोग जहाँ हो वहाँ यव हो। गोलाकार और झुका हुआ नख।
गहरी मित्रता :: चन्द्र पर्वत से प्रारम्भ होकर कोई भाग्य रेखा के साथ-साथ चले। यह रेखा साथी-सारथी रेखा  कही जाती है। 
गायक :: शुक्र पर्वत विकसित हो, जिस पर रेखाओं से बनी हुई एक भंवर नुमा रचना हो।  अँगुलियाँ कोमल और चौकोर, हथेली चौड़ी हो। बड़े हाथ वाला आदमी छोटे वाद्य बजाता है। 
गीतकार-नाट्य लेखक :: अँगुलियाँ नुकीली और हथेली की तुलना में छोटी हों। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से दूर और द्विशाख्य-द्विजिव्ही हो। 
गुप्त विद्या, तंत्र-मंत्र :: मस्तिष्क रेखा द्विशाख्य-द्विजिव्ही हो। प्रजापति क्षेत्र पर मस्तिष्क अथवा हृदय रेखा पर त्रिभुज हो। चतुष्कोण में रहस्य गुणक चिन्ह हो और हाथ में अन्तर्दृष्टि रेखा हो। भाग्य रेखा दो यव लिए हुए हो। सूर्य रेखा की कोई शाखा शनि पर्वत पर जाये। मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा और स्वास्थ्य रेखा मिलकर एक त्रिभुज का निर्माण करें। तर्जनी के दूसरे पर्व पर 5-6 खड़ी रेखाएँ हो तो जातक तंत्र-मंत्र का ज्ञाता होता है। 
गुर्दा खराब होना :: मस्तिष्क रेखा ऊपरी चन्द्र पर्वत पर जाये। उभरे हुए चन्द्र पर्वत पर गुणक चिन्ह हो। कनिष्ठिका अँगुली अन्दर की ओर-हथेली की तरफ झुके तो स्त्री जातक को यह तकलीफ हो। मंगल पर्वत के समीप मस्तिष्क रेखा पर सफेद चिन्ह-दाँत हो। 
गुणक चिन्ह  (X) :: 
मस्तिष्क रेखा पर गुरु पर्वत के नीचे :- धर्मान्धता के कारण-कष्ट, 
मस्तिष्क रेखा पर शनि पर्वत के नीचे :- पशु या विस्फोट के कारण कष्ट, 
मस्तिष्क रेखा पर सूर्य के नीचे :-  अचानक गिरने से सर में चोट, 
मस्तिष्क रेखा पर बुध के नीचे :- व्यापार में कठिनाई।
मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा के बीच में :: यह चिन्ह किसी रेखा को स्पर्श नहीं करता हो। जातक अंधविश्वासी, तंत्र-मंत्र, गुप्त विद्याओं आदि में रूचि रखता है।
बृहस्पति पर :- वैवाहिक जीवन सुखी। शनि पर :- खराब स्वास्थ्य, रोग। सूर्य पर :- आर्थिक नुकसान। बुद्ध पर :- अनुचित लाभ कमाना, अचानक पैसा आना।शुक्र पर :- तकलीफ दायक गुप्त प्रेम। शुक्र पर्वत के केंद्र में :- प्रेम प्राणघातक रहेगफा। त्रिभुज में :- काम-काज में परिवर्तन। बड़े त्रिभुज में :- झगड़ालू व्यक्ति, झगड़े में नुकसान। यात्रा रेखाओं पर :- पानी से भय-खतरा (बीत चुका हो)स्वास्थ्य रेखा पर :- बीमारी। भाग्य रेखा पर :- वर्तमान में परेशानी-ख़राब समय। ह्रदय रेखा पर :- प्रेम में बाधा। मस्तिष्क रेखा पर :- सिर में चोट। जीवन रेखा पर :- शारीरिक तकलीफ। ऊपरी कोण के पास :- मुकदमा। सूर्य रेखा के बायीं तरफ :- व्यापार बढ़ने की कष्ट का अभाव। सूर्य रेखा के दायीं तरफ :- धार्मिक प्रकृति। शनि पर्वत पर यदि भाग्य रेखा को छू ले :- दुर्घटना में मृत्यु।शनि पर्वत पर भाग्य रेखा के नजदीक स्वतंत्र :- फाँसी। तर्जनी और मध्यमा के बीच (दुष्प्राप्य) :- दूसरों के दुखों से द्रवीभूत।
गठिया-आमवात :: (1). हृदय रेखा पर शनि पर्वत के नीचे खड़ी रेखाएँ हों।(2). चंद्र पर्वत पर छोटे-छोटे यव हों या समानान्तर रेखाएँ हों। (3). गुरु पर्वत पर उसके एपेक्ष को तिरछी रेखाएँ काटें। (4). भाग्य रेखा तीन-चार स्थानों पर टूटी हुई हो। (5). आयु रेखा के अन्त में एक बड़ा चिमटा उसको दो फाड़ करके बना हो। (6). शुक्र पर्वत से एक रेखा चंद्र पर्वत तक आकर जाली में समाप्त हो जाये। (7). चंद्र पर्वत को कोई रेखा आधा-बीच में से काटे तो पुराना गठिया होगा। जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा एक जगह मिली हुई हों। नाखूनों पर खड़ी हुई रेखाएँ, नाखूनों का किनारों पर स्वतः टूटना, शनि पर्वत पर जाली,  जीवन रेखा पर शनि पर्वत तक कई यवों की उपस्थिति। 
गवन करने वाला :: (1). अँगुलियाँ लम्बी हों, कनिष्ठा टेढ़ी और मुड़ी हुई हो।(2). अनामिका थोड़ी लम्बी हो। (3). मस्तिष्क रेखा एक बड़े चिमटे की आकृति बनाये।(4).  हाथ मुलायम और पतला हो। 
पुष्प रेखा
नजला, जुकाम :: मत्स्याकार आकृति धारण करने पर यह पुष्प रेखा ठंड, नजले, जुकाम की बीमारी दर्शाती है। 
प्रतिनिधि :: मध्यमा अँगुली सामान्य से अधिक लम्बी हो, तर्जनी सीधी, चिकनी और अनामिका के बराबर हो, स्वास्थ्य रेखा अनुपस्थित हो। 
मस्तिष्क रेखा में यव ::  (1). मस्तिष्क रेखा में वृहस्पति के नीचे यव :- साँस की तकलीफ, (2). मस्तिष्क रेखा के बीच में यव :- सफलता के लिए कड़ी मेहनत, (3). मस्तिष्क रेखा के अंत में यव :- धर्म परिवर्तन का विचार, (4). मस्तिष्क रेखा की शाखा में ऊपरी चन्द्र पर यव :- आँतों की परेशानी-बीमारी। 
लेखाकार-मुनीम :: बुध पर्वत विकसित हो, भाग्य और सूर्य रेखाएँ अच्छी हों, अँगूठा सुदृढ़ हो और उसकी दूसरी गठान विकसित हो। 
लिपिक :: अँगूठे का पहला पोर थोड़ा-हल्का सा पीछे मुड़े (सतर्कता), भाग्य रेखा हो (सूर्य रेखा का होना अनिवार्य नहीं है) सूर्य का एपेक्ष बुध या शनि में से एक तरफ झुका हो तथा चंद्र केंद्र में न हो। वर्तमान काल में बड़े बड़े सरकारी अधिकारी भी लिपिक के समान ही कार्य करते हैं।   
सूर्य पर अस्पष्ट वृत्त :: सूर्य रेखा अथवा विद्या रेखा अशुद्ध हो-कटी-फटी हो, दोषयुक्त हो और उस पर अस्पष्ट वृत्त चिन्ह हो तो जातक को आँखों की समस्या हो सकती है। 
जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा-तीनों रेखाएं एक जगह मिलें तो बुढ़ापा खराब हो सकता है। 
ज्ञान विज्ञान रेखाएँ :: बुध पर्वत के नीचे, ह्रदय रेखा के ऊपर उपस्थित 3-4 रेखाएँ मनुष्य को उपचारात्मक-आरोग्यकर शक्ति प्रदान करती हैं। इससे अधिक होने पर यही रेखाएं मनुष्य को व्यापार, व्यवसाय, लेखन, खोज, अध्यापन में सहायक होती हैं। ऐसाे व्यक्ति दूसरों को शांत-सहज, सामान्य करने में सहायक होते हैं। 



Comments

Popular posts from this blog

ENGLISH CONVERSATION (7) अंग्रेजी हिन्दी वार्तालाप :: IDIOMS & PROVERBS मुहावरे लोकोक्तियाँ

PARALLEL LINE OF HEAD & LINE OF HEART समानान्तर हृदय और मस्तिष्क रेखा :: A TREATISE ON PALMISTRY (6.3) हस्तरेखा शास्त्र

EMANCIPATION ब्रह्म लोक, मोक्ष (Salvation, Bliss, Freedom from rebirth, मुक्ति, परमानन्द)