JUDICIARY :: FRACTURED PILLAR OF INDIAN DEMOCRACY
JUDICIARY-FRACTURED PILLAR OF INDIAN DEMOCRACY
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
सकृज्जल्पन्ति राजान: सकृज्जल्पन्तिपण्डिता:।राजा का बोलना (आदेश), विद्वान व्यक्ति का वचन और कन्या का विवाह एक बार ही होना चाहिये।[चाणक्य नीति 4.11]
The emperor-king, the philosopher (Pandit, scholar, learned, enlightened) and the daughter's marriage should be solemnised only once.
The emperor should not order any thing which has to be changed, modified, altered later, since what he says become law-precedent which is quoted time and again. It looses relevance-significance, if the kings words are ambiguous-double meaning. Our constitution is interpreted in different ways by different lawyers and even the judges.
Words of scholars, Pandits (Gurus, philosophers) are taken in high esteem and followed by the masses. What had been taught by Guru Vrahaspati was regarded by Guru Shukrachary as well.
Once the marriage of a girl is fixed by the father, he should stick to his words, promise. One should be extremely careful in selecting groom for his daughter.
The scriptures do not permit marriage of a girl twice or more. However, there are exceptions regarding the widow.
In all these three cases failure to keep the words bring trouble, unlike today's world-western culture (There is nothing like culture, ethics, morality else where except India.). Even the Supreme Court's order-judgements, verdict are subjected to revision, scrutiny, since either they are not clear or can be interpreted differently. Two separate benches passes different orders on identical matters. Some of the orders are majority orders and are subject to scrutiny at one or the other stage. The government first makes a law and then repeal it, under pressure from the masses or a section of the society. Common civil code is absent in India in the name of religious freedom, which leads to differentiation, discrimination among the citizens and is against the basic spirit of constitution. Two separate set of laws govern separate communities in the matter pertaining to reservations, which is a bad omen, leading to conflict and disaster sooner or later. Where is the equality advocated by constitution?!
There should be no scope for these three, to seek second opinion, thought, definition, review, arbitration or ambiguity. It should be Crystal clear and beyond doubt-speculation.
60 हज़ार मुकदमे उच्चतम न्यायालय में पेश होने की इंतजार में हैं तो केजरीवाल, सिसोदिया की सुनवाई उनसे पहले क्यों की जाती है?!
HIPOCRACY IN THE SYSTEM ::
(1). If a leader wants, he can contest elections from two seats simultaneously! But you cannot vote at two places.
(2). If you are in jail, you cannot vote but a leader can contest elections while being in jail.
(3). If you have ever gone to jail, now you will not get any government job for the rest of your life, but no matter how many times a leader has gone to jail in a case of murder or rape, he can still become the Prime Minister or President,
(4). To get a simple job in a bank, you must be a graduate but, even if a leader is illiterate, he can become the Finance Minister of India.
(5). To get a job of a simple soldier in the army, you have to show that you can run 10 kilometres with a degree, but even if a leader is illiterate and crippled, he can still become the Chief of Army, Navy and Air Force, i.e. Defence Minister.
And a leader whose entire family has never gone to school, can become the Education Minister of the country.
And a leader who has thousands of cases pending against him, can become the Chief of Police Department, i.e. Home Minister.
There should be only one law for both leaders and people.
A government employee is not entitled to pension even after 30 to 35 years of satisfactory service? Where is the justice in giving pension to MLA/MP for only 5 years?
SYSTEM NEED IMMEDIATE OVERHAUL-CHANGE.
पादोऽधर्मस्य कर्तारं पादः साक्षिणमृच्छति।
पादः सभासदः सर्वान्पादो राजानमृच्छति॥
अधर्म का चौथा भाग अधर्म करने वाले को, चौथा भाग साक्षी को, चौथा भाग सभासदों को और चौथा भाग राजा को प्राप्त होता है।[मनु स्मृति 8.18]
Each of the doer of the crime-sin, the witness in favour of the doer, the judges-council members-jury who pass judgement in favour of the guilty and the king get one fourth of the guilt.
In this manner the king in whose empire injustice prevails is sure to achieve hells.
न्यायाधीशों की सुविधाएँ :: हाईकोर्ट के जजों को टैक्स के पैसों से कितनी सुविधायें मिलती हैं; देखिये :-
जज को लगभग 8 घरेलू नौकर मिलते हैं, घर के सभी काम करने के लिए, वो घर जो कम से कम चार बड़े कमरों वाला मकान होता है, जो साहब को फ्री में रहने को दिया जाता है।
जिसके हर कमरे में और जज साहब चाहें तो टॉयलेट में भी AC लगे हुये होते हैं, जिनका बिल कभी साहब को नहीं चुकाना होता।
ये AC हर साल बदले जाते हैं, फ्री में, उसी तरह जैसे साहब का मोबाइल (जो हमेशा मार्केट में उपलब्ध सबसे मंहगा फोन होता है) और लैपटॉप भी हर साल बदला जाता है।
और ये पुराने AC, लैपटॉप या मोबाइल साहब को जमा नहीं करना पड़ता, वो उनके बच्चों या रिश्तेदारों के काम आते हैं।
साहब को सुरक्षा के नाम पर (तीन शिफ्टों के मिलाकर) 12 पुलिस वाले मिले होते हैं जिनमें एक समय में तीन हर समय घर की सुरक्षा करते हैं और एक दरोगा रैंक का व्यक्ति बॉडी गार्ड रुप में साथ चलता है। मैडम को अलग से कहीं शॉपिंग करने जाना हो तो वह भी (दूसरी) सरकारी गाड़ी से, सरकारी ड्राइवर व सरकारी सुरक्षा गार्ड के साथ जा सकती हैं।
रिटायर होने के बाद भी साहब को एक प्रोटोकॉल ऑफिसर मिलता है जो विभिन्न काम निपटाता है, जैसे कि किसी बीमारी की हालत में साहब किसी हॉस्पीटल पहुँचें तो वह प्रोटोकॉल ऑफिसर पहले से हॉस्पीटल पहुँचकर सब इन्तजाम देखता है कि साहब को प्राइवेट हॉस्पीटल में भी एक रुपया भी न देना पड़े।
देश भर में कहीं भी जाने पर फ्री हवाई यात्रा और फ्री ट्रेन यात्रा (प्रथम श्रेणी AC) पत्नी व परिवार सहित, जहां जायें वहां फ्री A grade रहने की व्यवस्था!
कहीं प्राइवेट आने जाने के लिए इनोवा जैसी गाड़ी और ऐसी ही न जाने कितनी सुविधायें साहब को फ्री में दी जाती हैं और इसके बाद भी गर्मियों में एक महीने की और सर्दियों में करीब 12 दिनों की छुट्टी कम से कम मिलें, ये साहब का अधिकार है।
लेकिन खबरदार. साहब के संविधान की जानकारी पर कभी कोई सवाल न उठायें, न उनके फैसले पर कोई बुराई करें, बावजूद इसके कि हाईकोर्ट के जज का फैसला सुप्रीम कोर्ट में बदल सकता है और सुप्रीम कोर्ट की सिंगल जज वाली बैंच का फैसला तीन या पाँच जज वाली बैंच बदल सकती है। पता नहीं इन सबके पास संविधान की एक ही प्रति होती है या अलग अलग.. ??
और सबसे बड़ी बात यह कि अगले जज चुनने का अधिकार ये साहब लोग अपने पास ही रखते हैं, जिससे अपने बच्चों, रिश्तेदारों और मित्रों के बच्चों को खुद 'जज' चुन सकें। वैसे भी, इतनी ताकतवर और ऐशो-आराम से पूर्ण कुर्सी पर बैठने का अधिकार तो अपने ही बच्चों व रिश्तेदारों को ही तो देना चाहिए। इसीलिये देश में हर समय कार्य कर रहे हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों में से 65-70% पुराने जजों के बच्चे या नजदीकी रिश्तेदार ही होते हैं।
खैर, यह भारत है। यहाँ नेता जनता की भलाई के नाम पर जनता को ही लूटते रहते हैं और साहब जनता को न्याय दिलाने के नाम पर ऐशोआराम की ज़िन्दगी व्यतीत करने में लगे रहते हैं। बाकी रही जनता तो वो नेताओं की 'जनता की भलाई' के लिए किये गये कामों और साहब से मिले 'न्याय' के सपने देखते देखते अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करती रहती है।
तीन-तीन पीढ़ी न्याय की इन्तज़ार में गुजर जाती हैं।[29.07.2023]
UNFIAR COLLEGIUM :: 6 of 27 apex court judges had their fathers as SC or HC judges.[25.11.2022]
अन्याय :: उच्चतम न्यायालय ने नवजोत सिंह सिद्धू को 34 साल पहले एक 65 वर्षीय बुजुर्ग की हत्या के लिये महज़ एक साल कारावास और 1,000 रूपये का जुर्माना किया। कोई और होता तो पूरी जिन्दगी या तो जेल में एड़ियाँ रगड़ता या फाँसी चढ़ा दिया जाता।
धर्म निरपेक्ष भारत में उच्चतम न्यायालय का मुल्ला, मौलवियों को वेतन सम्बन्धी आदेश :: मस्जिदों के इमामों को वेतन सेक्युलर देश की सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिया जाता है। 23 मई 1,993 को सुप्रीम कोर्ट ने 743 वक्फों की पेटिशन पर केन्द्र सरकार को आदेश दिया कि तमाम मस्जिदों के स्थाई और अस्थायी इमामों को 1 दिसम्बर, 1,993 से उनकी योग्यता अनुसार वेतन दिया जाये।
योग्यता :- उनकी शरीयत की, कुरान की, हदीस की जानकारी के आधार पर तय होती है जिसमें सबसे काबिल इमाम (1). आलिम होता है, उससे नीचे इमाम (2). हाफिज उससे नीचे इमाम (3) नाजराह और (4). मुअजिन।
मुअजिन :- जिसकी ड्यूटी सुबह सुबह और दिन में पांँच बार लाउडस्पीकर पर चिल्ला कर सबको नमाज के लिए बुलाना होता है।
ये तनख्वाह क्यों दी जानी चाहिए इसके लिए इमामों का तर्क था कि वे एक धार्मिक कार्य कर रहे हैं और समाज के एक बड़े वर्ग का नमाज अदा करवाते हैं।
कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने दलील दी कि चूँकि ऐसा कोई इस्लामी कानून और परम्परा नहीं है इसलिए इनको तनख्वाह नहीं दी जा सकती।
केंद्र और कुछ राज्यों के वक्फ बोर्डों ने दलील दी कि चूंँकि इनके और हमारे बीच कोई मालिक और कर्मचारी वाला सम्बन्ध नहीं है इसलिए हम इन्हें तनख्वाह नहीं दे सकते।
पँजाब के वक्फ बोर्ड जिसके अन्तर्गत हिमाचल और हरियाणा की मस्जिदें भी आती हैं की दलील थी कि हम तो पहले से ही तनख्वाह दे रहे हैं और साथ में प्रतिमाह मेडिकल एलाऊन्स भी दे रहे हैं।
तमाम दलीलों और गवाहों के बयानों को मद्देनजर रखते हुए एक धर्मनिरपेक्ष और समानता की बात करने वाले देश की काबिल अदालत ने निर्णय दिया कि केन्द्र सरकार छह महीने के अन्दर गैरसरकारी मस्जिदों के इमामों की तनख्वाह के स्केल तय करे और यदि इसमें छह महीने से अधिक का समय लगता है तो यह भुगतान 1 दिसम्बर, 1,993 से देय होगा।
इस निर्णय को पढ़ने के बाद पता चला कि मस्जिदें सरकारी भी होती हैं।
बात यहीं खत्म नहीं हुई उत्तर प्रदेश कांँग्रेस कमेटी ने मार्च, 2,011 में राज्यपाल को ज्ञापन दिया कि उत्तर प्रदेश में सरकार ने अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यहांँ के इमामों को नये वेतनमान के अनुसार वेतन देना शुरू नहीं किया है वो अभी पुराने वेतन पर ही गुजारा कर रहे हैं।
साथ ही में उत्तर प्रदेश कांँग्रेस कमेटी ने राज्यपाल को ये भी बताया कि भारत में इस समय 28 लाख मस्जिदें हैं और हर इमाम को 18,000/- पगार दी जाती है मतलब 50,000 करोड़ जो आप हम देते हैं और उत्तर प्रदेश में 3.30 लाख मस्जिदें हैं। ये आंँकड़े मार्च 2011 के हैं।
ये तो सिर्फ इमाम की पगार है बाकी की पगार तो अलग है।
हज सब्सिडी के अलावा खरबों रुपये इन मदरसों पर खर्च हो रहे हैं।
2,011 में वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों और उनसे होने वाली आय पर ::जस्टिस शाश्वत कुमार कमेटी का आकलन था कि भारत में 30 राज्यों में 30 वक्फ बोर्डों के पास एक लाख चालीस हजार करोड़ की सम्पत्ति है, जिससे 12,000 करोड़ रुपये की प्रतिवर्ष आय हो सकती है जबकि कुप्रबन्धन के कारण इनकी अधिकतम आय 163 करोड़ ही है। यानि कि केन्द्रीय वक्फ बोर्ड के अतिरिक्त इन 30 वक्फ बोर्डों के कर्मचारियों की तनख्वाह भी सरकार ही वहन करती है।
सरकार को चाहिये कि इस आदेश को तुरन्त निरस्त कराये और किये गये भुगतान को वसूल करे मय ब्याज़।
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Indian constitution is heavily loaded in favour of the Muslims and the scheduled castes. It leads to exploitation of the middle class, basically the Swarn-Upper castes. The Muslims Mulla, Maulvis in Delhi and else where are given regular salaries, stipends and funds for the growth of Islam who spit venom against the Hindus everyday. But a Brahman priest is deprived off the basic facilities.
We see a lot of gaps in legislation. There is a lot of ambiguity in making laws. There is no clarity in the laws. We do not know what purpose the laws are being made for, which is creating a lot of litigation, inconvenience to the public and government and loss to the government. We see a lot of gaps in legislation. There is a lot of ambiguity in making laws. We do not know what purpose the laws are being made for, which is creating a lot of litigation, inconvenience to the public and government and loss to the government.[CJI N.V.Raman]. [17.08.2021]
We see a lot of gaps in legislation. There is a lot of ambiguity in making laws. There is no clarity in the laws. We do not know what purpose the laws are being made for, which is creating a lot of litigation, inconvenience to the public and government and loss to the government. We see a lot of gaps in legislation. There is a lot of ambiguity in making laws. We do not know what purpose the laws are being made for, which is creating a lot of litigation, inconvenience to the public and government and loss to the government.[CJI N.V.Raman]. [17.08.2021]
At least half of the legislature constitute of criminals & unqualified people. No expertise, no experience, no vision and still they are ministers, MPs, MLAs. They make the laws in such a way that they are never troubled by them. They come out scot free out of legal procedures. It takes 10-30 years for a case to be decided and by then they are dead.
BJP attained majority in Karnatak & Maharashtr and still remained out of power due to drawbacks in constitution. It should be mandatory for anyone to have won as a member of the house before being sworn as a Prime-Chief Minister. If a pre-pole alliance partner moves out and the winner falls short of majority, the house should be dissolved at once and re-election should be ordered with only two fold election i.e., for and against (पक्ष और विपक्ष). [29.11.2019]
CROSSING INDIA'S BORDER ILLEGALLY :: यदि कोई व्यक्ति दक्षिण कोरिया की सीमा अवैध रूप से पार करते हैं तो उसे 12 वर्ष के लिये सश्रम कारागार में डाला जाता है। ईरान” की सीमा में अवैध प्रवेश करने पर अनिश्चितकाल तक हिरासत में ले लिया जाता है।अफ़गानिस्तान की सीमा अवैध रूप से पार करने पर देखते ही गोली मार दी जाती है। चीनी सीमा अवैध रूप से पार करने पर अपहरण कर लिया जाता है फिर कभी भी कहीं भी न दिखलाई देने को। क्यूबा की सीमा अवैध रूप से पार करने पर राजनीतिक षडयंत्र के जुर्म में जेल में डाल दिया जाता है। ब्रिटिश बॉर्डर अवैध रूप से पार करने पर गिरफ्तार कर लिया जाता है, सजा दी जाती है और सजा पूरी होने पर निर्वासित कर दिया जाता है। पाकिस्तानी, लंकाई और बांग्ला देशी घुसपैठियों को भारत में मिलता है :: राशन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, मतदाता पहचान कार्ड, क्रेडिट कार्ड, सरकारी रियायती किराए पर आवास, ऋण एक घर खरीदने के लिए, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल, नई दिल्ली में एक लाबीस्ट, एक टेलीविजन और विशेषज्ञ मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह के साथ धर्मनिरपेक्षता की डफली बजाने का अधिकार। इसके साथ आतंकवाद, बम फोड़ने की छूट। If one crosses the The North Korean border illegally, he gets 12 years hard labor in an isolated prison. If one crosses the Afghan" border illegally, he get shot. If he crosses the Saudi Arabian border illegally, he get imprisoned-jailed. If he cross the Chinese border illegally, he get kidnapped and may be never heard of again. If he crosses the Cuban border illegally, he is thrown into a political prison to rot. If he cross the British border illegally, he get arrested, prosecuted, sent to jail-prison and be deported after serving the sentence. |
जजों की दूषित मानसिकता या राजनैतिक पक्षपात :: तीन तलाक के मुद्दे की सुनवाई के लिए 5 जज़ों की टीम बैठी थी। सुनवाई के पहले ही दिन कोर्ट ने कहा था कि अगर तीन तलाक का मामला इस्लाम का हुआ तो, उसमें दखल नही देंगे।
अगर शीर्ष न्यायालय धर्म के मामले में दखल नहीं देना चाहता, तो जलीकट्टू, दही हाँड़ी, गौ हत्या, राम मंदिर जैसे मसलों को सुनने की जरूरत क्या, क्यों किसलिये थी ?!
हिंदुत्व एक जीवन शैली तो है ही सनातन, दैवी आस्था, विश्वास, निष्ठा, भक्ति, प्रेम, मानव धर्म, वर्णाश्रम धर्म, आदि संस्कृति, सभ्यता, मूल्यों का रखवाला और प्रतीक भी है। सही मायनों में तो केवल यही एक मात्र धर्म है, बाकि सब मज़हब, पंथ आदि आदि हैं, जिनका न तो कोई इतिहास है और न उम्र। कोई 200, कोई 1,500 और कोई महज 2,000 वर्ष पहले अस्तित्व में आया। हर भाषा में संस्कृत के शब्द, हर क्षेत्र में मन्दिरों के भग्नावेश और देवी देवताओं की मूर्तियाँ, हर देश में प्राचीनतम स्मृति चिन्ह और भारतीय संस्कृति के अवशेष पाये जाते हैं। यह इसी तरह है जैसे नदी से कोई नहर निकली, उससे नाले निकले और फिर कुछ दूरी तक जाकर सूख गये। जैसे गँगा जल घर में जाकर गटर का पानी हो गया।
वेद, पुराण, उपनिषद, इतिहास केवल श्रवण ही नहीं लिखित रूप में भी करोड़ों वर्ष से पीढ़ी दर-पीढ़ी संचित किये जाते रहे हैं। उन्हें प्रमाण न मानने की भूल मूर्ख, अनपढ़, अज्ञानी ही कर सकता है।
महाकाल से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच सम्बन्ध महज इत्तेफ़ाक़ नहीं है, अपितु वैज्ञानिक सूझ-बूझ तकनीक का परिचायक है। उज्जैन से सोमनाथ 777 किमी, उज्जैन से ओंकारेश्वर 111 किमी, उज्जैन से भीमाशंकर 666 किमी, उज्जैन से काशी विश्वनाथ 999 किमी, उज्जैन से मल्लिकार्जुन 999 किमी, उज्जैन से केदारनाथ 888 किमी, उज्जैन से त्रयंबकेश्वर 555 किमी, उज्जैन से बैजनाथ 999 किमी, उज्जैन से रामेश्वरम 1,999 किमी और उज्जैन से घृष्णेश्वर 555 किमी है। उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं।
कैलाश को वैज्ञानिक भी शक्तियों का केंद्र मानने को विवश हैं, मगर एक न्यायाधीश-न्यायविद को इससे क्या लेना देना?! अयोध्या में आधे किलोमीटर की गहराई में किसी किले के अवशेष उपस्थित हैं, मगर वो भी जजों के लिये प्रमाण नहीं हैं, क्योंकि उनकी नियुक्ति ऐसे लोगों ने की थी जो कि हिन्दु धर्म के विरोध की मानसिकता से ग्रस्त थे, ग्रस्त हैं और आगे भी रहेंगे। राम लला के गर्भगृह में हजारों साल पुराने संचितअवशेष निकले, मगर उनसे इन जजों को क्या लेना-देना?!
केदारनाथ, कालेश्वर-मुक्तेश्वर, श्रीकालाहाती, काँचीपुरम, तिरुवनईकवल-जम्बुकेश्वर, तिरुवन्नामलाई, चिदंबरम और रामेश्वरमशिवलिंगों का एक ही रेखा में (79° E 41’54” Longitude) पर होना महज इत्तेफाक नहीं हो सकता। ध्यान से देखने पर पता पड़ता है कि कैलाश (31.0675° N, 81.3119° E), पशुपति नाथ (27.7106° N, 85.3486° E) और भगवान् शिव की माँ पार्वती के लिये बनाई गई श्री लंका (7.8731° N, 80.7718° E) भी इस देशान्तर के इर्द गिर्द ही स्थित हैं।
पूरी दुनियाँ में ऐसे असँख्य स्थल हैं, जो एक ही देशांतर पर स्थित हैं और जहाँ पर किसी न किसी अति प्राचीन-दुर्लभ सभ्यता (5,000 वर्ष से अधिक), मन्दिर के भग्नावेश मौजूद हैं।
पुराणों में ऐसे अन्यानेक राजाओं का वर्णन है, जिन्होंने पूरी दुनिया पर एक छत्र राज्य किया। जावा, मलाया, सुमात्रा, फ़िजी, मारीशस, इंडोनेशिया, वियतनाम, रूस सहित पूरी दुनियाँ में अन्यानेक ऐसे देश हैं, जहाँ अति प्राचीन हिन्दु देवी देवताओं के मन्दिरों के भग्नावेश हैं और इनमें इंग्लैंड और अमरीका भी शामिल है। अरब देशों में तो ऐसे बेशुमार मन्दिर थे और अभी भी हैं, जिन्हें आतंकवादियों, मुसलमानों ने नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। भगवान् सहित के 2,500 साल पुराने विक्रमादित्य द्वारा स्थापित मन्दिर में तो आज तक पूजा अर्चना होती है।
भारत में या कहीं और शरिया लागू करने का मतलब है, अन्य धर्माम्बलियों का कत्लेआम-सफ़ाया! क्या कोई समझदार व्यक्ति यह चाहेगा?!
कुरान में लिखे होनें से तीन तलाक को मानते हैं, मगर बाल्मीकि रामायण में वर्णित भगवान् राम को नकारते हैं?! अयोध्या है, रामेश्वरम भी, लंका भी है और यूरोप में बर्लिन भी है। पूरे यूरोप की उत्पत्ति का वर्णन भी मौजूद है प्रमाणों के साथ। आज भी समुद्र में तैरते हुए ऐसे पत्थर मिलते हैं, जिन पर राम लिखा है। यूरोप में तो पूरा पहाड़ ही मौजूद है, जिसके पत्थर पानी में तैरते हैं। कैसी दूषित मानसिकता है!!
गाय का माँस खाना या ना खाना किसी मर्जी पर छोङ देना चाहिये लेकिन सूअर का माँस वो नही खायेगें, क्योंकि यह उनके धर्म के खिलाफ है!
शनि शिंगनापुर मंदिर में महिलाओं काे प्रवेश ना देना महिलाओं पर अत्याचार है, जबकि, हाजी अली दरगाह में महिलाओं को प्रवेश देना या ना देना उनके धर्म का आंतरिक मामला है!
पर्दा प्रथा एक सामाजिक बुराई है, लेकिन बुर्का धर्म का हिस्सा है!
जल्लीकट्टू में जानवरों पर अत्याचार होता है, लेकिन बकरीद की कुर्बानी इस्लाम की शान है!
दही हांडी एक खतरनाक खेल है, जबकि इमाम हुसैन की याद में तलवार बाजी पर हिन्दुओं को डराना-धमकाना, सड़क घेर कर यातायात बाधित कर नमाज़ (हिन्दु को नेस्तनाबूद करने की दिन में 5 बार कसम खाना) धर्म का मामला है!
शिवलिंग पर दूध चढाना दूध की बर्बादी है (इस दूध को एकत्रित कर उपयोग में लाना ही चाहिए), लेकिन मजारों पर चादर चढाने से मन्नतें पूरी होती है!
हम दो हमारे दो हमारा परिवार नियोजन है, लेकिन, उनका 15 से 115 बच्चे पैदा करना अल्लाह की नियामत है!
भारत तेरे टुकङे होगें, ये कहना अभिव्यक्ति की आजादी है और इस बात से देश को कोई खतरा नही है और वंदे मातरम कहने से इस्लाम खतरे में आ जाता है!
सैनिकों पर पत्थर फैंकने वाले, भटके हुऐ नौजवान हैं और अपने बचाव में, एक्शन लेने वाले सैनिक मानवाधिकारों के दुश्मन हैं!
एक दरगाह में ख़ुद कराये गये विस्फोट से हिन्दुों को आंतकवादी क़रार दे दिया गया और रोजाना जगह-जगह बम फोड़ने पर भी आंतकवादियों का कोई मज़हब ही नही है![30.07.2018]
प्रत्यहं देशदृष्टैश्च शास्त्रदृष्टैश्च हेतुभिः।
अष्टादशसु मार्गेषु निबद्धानि पृथक् पृथक्॥[मनु स्मृति 8.3]
ये कार्य अठारह भागों में हैं। इनका देशाचार (देश, जाति, कुलादि) तथा शास्त्र विचार प्राप्त हेतुओं से पृथक-पृथक नित्य विचार करे।
Various state functions (jobs, duties) should be divided into 18 categories-divisions and assigned to workers depending over their origin-country, caste-family (traditional-family jobs), clan, skills, expertise, interest, ability etc. in accordance with the scriptures.
In India professionals perform various jobs from one generation to another and attains high levels of expertise, skills and ability. They used to perform these jobs with great care. However, onset of British empire in India distorted all this due to colonial interests and they imported machine made, cheap, inferior, low-poor quality goods; like the Chinese goods of today. Those Britishers who preferred to use Indian goods were heavily fined. Slowly and gradually the work force became weak, sluggish and adopted other menial jobs. Even the peasants were not spared their property, money, jewellery, holdings, land, houses were looted and they were made to abandon their homes and join low paid factory workers in British factories. Then suddenly the boggy of scheduled caste, tribals was raised through its agents in Indian politics. People like Gandhi & Ambedkar were encouraged-supported through divide and rule policy, which the congress preferred to continue in spite of advice by Gandhi to abandon (dis mental, discard) congress.
Muslim rulers converted Hindu working class en-mass. The converts still perform the duties traditionally, but quality, skill is lost completely. Think of a cobbler becoming a chief minister in India and spoiling the state.
तेषामाद्यं ऋणादानं निक्षेपोऽस्वामिविक्रयः।
संभूय च समुत्थानं दत्तस्यानपकर्म च॥[मनु स्मृति 8.4]
वेतनस्यैव चादानं संविदश्च व्यतिक्रमः।
क्रयविक्रयानुशयो विवादः स्वामिपालयोः॥[मनु स्मृति 8.5]
सीमाविवादधर्मश्च पारुष्ये दण्डवाचिके।
स्तेयं च साहसं चैव स्त्रीसङ्ग्रहणमेव च॥[मनु स्मृति 8.6]
स्त्रीपुंधर्मो विभागश्च द्यूतमाह्वय एव च।
पदान्यष्टादशैतानि व्यवहारस्थिताविह॥[मनु स्मृति 8.7]
उनमें पहला (1). ऋण लेना, (2). किसी के पास थाती (घर, सम्पत्ति, जमीन-जायदाद) गिरवी रखना, (3). मालिक से पूछे बगैर किसी चीज को बेचना, (4). दी हुई वस्तु को फिर से ले लेना, (5). वेतन ने देना, (6). दी हुई वस्तु से इन्कार करना, (7). की हुई व्यवस्था से इन्कार करना, (8). खरीद-फरोख्त, बिक्री, में किसी बात का अन्तर पड़ जाना, (9). स्वामी और पशु-पालकों में विवाद, (10). सीमा की तकरार, (11). गाली-गलौज करना या फिर मार-पीट करना, (12). चोरी करना, (13). जबरदस्ती किसी की चीज छीन ले लेना, (14). पराये पुरुष के साथ स्त्री का सम्बन्ध-सम्पर्क, (15). पति-पत्नी के परस्पर धर्म की व्यस्वस्था, (16). पैतृक आदि धन का विभाजन, (17). जुआ और (18). पशु-पक्षियों को लड़ाना। व्यवहार के ये ही 18 स्थान हैं।
Out of the 18 titles, the first is the non-payment of debts, followed by, (2) deposit and pledge, taking loans against something like property, jewellery etc. (3) selling of something without the permission of the master, without ownership, (4). to take back the goods given to some one i.e., resumption of gifts, (5). Non-payment of wages, (6). refusal to handover sold good, (7). non compliance of agreement-settlement, (8). discrepancy-rescission of sale and purchase, (9). disputes between the owner of cattle and his servants, (10). disputes pertaining-regarding boundaries, (11). use of foul-abusive language, quarrel or physical assault, (12). theft, (13). robbery and violence, snatching someone's goods (property, wealth, women folk) by force, (14). adultery, making relations with other males, (15). duties of husband and wife, (16). division of property-inheritance among the heirs, (17). gambling and betting (including investment in stock & shares under going wide fluctuations); (18). arranging animal, birds fights. These are 18 concerns pertaining to mutual behaviour of citizens which need state intervention in case of dispute.
एषु स्थानेषु भूयिष्ठं विवादं चरतां नृणाम्।
धर्मं शाश्वतमाश्रित्य कुर्यात्कार्यविनिर्णयम्॥[मनु स्मृति 8.8]
इन 18 विषयों में विवाद करने वाले मनुष्यों के धर्म का निर्णय, परम्परागत धर्म का आश्रय लेकर करना चाहिये।
Disputes pertaining to these matters be decided on traditional lines.
Normally the king was not supposed to hear these trivial matters. He constituted the apex authority. The cases were heard at the village Panchayat, Nagar, capital level and only then the king used to come into picture.
पंचायत PANCHAYATY-VILLAGE COUNCIL :: ग्राम सभा, जो कि स्थनीय समस्याओं, विवादों को सुलझाती है। इसमें 5 सदस्य होते हैं, जिनमें से प्रमुख को सरपंच कहा जाता है; It constitutes the village level authority constituting of 5 members elected by the villagers from all castes-classes. The decision used to be taken by the Surpanch-the senior most panch, only after consulting the other 4 members of the Panchayat. It may be called village council or assembly. Panch stands for 5 as well.
यदा स्वयं न कुर्यात् तु नृपतिः कार्यदर्शनम्।
तदा नियुञ्ज्याद्विद्वांसं ब्राह्मणं कार्यदर्शने॥[मनु स्मृति 8.9]
यदि स्वयं राजा काम न कर सके, तो उस काम को करने के लिये किसी विद्वान, नीति निपुण ब्राह्मण को नियुक्त करे।
If the king find it difficult to spare time for hearing of such matters, disputes, cases he should depute-appoint some learned, qualified, distinguished Brahmn as the judge to decide the dispute.
The Brahmn should enjoy reputation of being truthful, neutral-impartial. He should have learnt Nyay Shastr & Dharm Shastr from some distinguished Guru-teacher.
Nyay Shastr is that branch of learning which handles judiciary.
सोऽस्य कार्याणि सम्पश्येत्सभ्यैरेव त्रिभिर्वृतः।
सभामेव प्रविश्याग्र्यामासीनः स्थित एव वा॥[मनु स्मृति 8.10]
वह ब्राह्मण, कार्य देखने में चतुर तीन अन्य ब्राह्मणों के साथ राजयसभा में बैठकर या खड़े होकरराजा के कार्यों को भली-भाँति देखे।
That experienced senior Brahmn, should supervise the work either by sitting or standing in the office done-looked after by the three deputies, who are Brahmns learned, experienced-mature, skilful, intelligent, clever, prudent.
The three deputies should have thorough knowledge-specialisation in special branches of justice, work, endeavours for which they have been chosen.
The king (Head of state) permits division of labour, decentralisation of power, autonomy. The head of the department can independent decisions, without the prior approval of the king. The king keeps a close watch over the working-functioning of all heads of departments and their working. Unless-until found guilty of misconduct, prejudice-bias, accepting dols-gifts (bribes), he is allowed to function-continue. Achary Chanky has made provision of fines, punishment & even imprisonment in case of officials found guilty of misconduct.
यस्मिन्देशे निषीदन्ति विप्रा वेदविदस्त्रयः।
राज्ञश्चाधिकृतो विद्वान् ब्रह्मणस्तां सभां विदुः॥[मनु स्मृति 8.11]
जिस सभा में वेद जानने वाले तीन ब्राह्मण बैठते हैं और राजा का प्रतिनिधि विद्वान ब्राह्मण बैठता है, उस सभा को ब्रह्मसभा, चतुर्मुख ब्रह्मा की सभा के तुल्य कहते हैं।
The council which has three Brahmns who have learnt Veds and is headed by a representative of the king, who too is a learned-enlightened Brahmn, is called Brahm Sabha equivalent to the council of the four headed Brahma Ji.
The Veds have limitless knowledge for the benefit of the humans, demigods and the demons. Each and every subject has been dealt with thoroughly. In due course of time various segments-branches of these storehouse of knowledge, are either lost or are out of the reach of humans for the fear of being misused. Only edited-truncated versions are available at present.
धर्मो विद्धस्त्वधर्मेण सभां यत्रोपतिष्ठते।
शल्यं चास्य न कृन्तन्ति विद्धास्तत्र सभासदः॥[मनु स्मृति 8.12]
जहाँ सभा में धर्म (सत्य) अधर्म (असत्य) से विरुद्ध होकर आता है, यदि वहाँ सभासद अधर्म के शल्य को नहीं काटते हैं तो वे हो लोग अधर्म रूप काँटे के विद्ध (बेधा हुआ, घायल, बँधा हुआ, साथ लगा हुआ) होते हैं।
If the Dharm is confronted by the Adharm (Truth against false) and the council members-judges side with the guilty they become the pro-ponders of injustice.
Ever since the country-India, came under the rule of Muslims & Britishers colonial rule, there is no hope for justice. Subsequent governments in free India too are following the same tract. One do not expect justice, since its time consuming, treachery and in the hands of those who do not want justice at all!
The judges are grossly incompetent and unaware of ethics, morale, cultures. The constitution itself is based over the unwritten British constitution. It is completely ineffective in case of criminal who have joined politics and acquiring high offices. Like Ajit Pawar, Sharad Pawar, Sonia, Maya, Mamta, Mulayam, Akhilesh, Lalu, etc. etc.
सभां वा न प्रवेष्टव्यं वक्तव्यं वा समञ्जसम्।
अब्रुवन्विब्रुवन्वाऽपि नरो भवति किल्बिषी॥[मनु स्मृति 8.13]
इसलिये या तो सभा में न जाये, यदि जाये तो यतार्थ बोले। कुछ न बोलने, अधिक बोलने से मनुष्य पाप भागी होता है।
One should avoid entering the court-council, either as a jury, member, judge, attorney-lawyer or witness. If he reaches there, he should speak the truth. If he do not reveal the facts (remain silent like Man Mohan Singh) or speaks too much (like Lalu Prasad Yadav) that adds some thing from his side, he acquires sin for which he has to suffer sooner or later.
सभा :: यहाँ यह शब्द संसद और न्यायालय-दोनों के लिये आया है। सभासद सांसदों के लिये पायुक्त हुआ है।
यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च।
हन्यते प्रेक्षमाणानां हतास्तत्र सभासदः॥[मनु स्मृति 8.14]
जिस सभा में सभासदों के सामने ही अधर्म से धर्म और असत्य से सत्य मारा जाता है, वहाँ उस पाप से सभासद ही नष्ट हो जाते हैं।
The court (assembly, council, parliament) where the evil over rules the virtues-truth, honesty; there the members of the council-court are destroyed due the sin they have committed by permitting this.
The Muslims, British and the congress did gross injustice with the masses and routed out in due course of time. The list of the sins of congress is too long. It deprived the general categories of their due right by reserving posts for the ignorant, ineligible, unqualified and it did not stop here. It reserved posts in promotions as well, unconstitutionally. The undeserving people like Jats, Gujjars, Patels, Yadavs etc. are all demanding reservation in spite of being financially & socially sound. However, there should be no reservation at all. All posts, jobs should be filled purely on merit basis. The author suffered at least 7 times due to this bogus practice in service.
Modi though a good human being, reliable prime minister, trust worthy; yet he continued with reservations for the sake of votes. Till the people who gets jobs on the basis of reservations forget India's growth-progress.
Modi though a good human being, reliable prime minister, trust worthy; yet he continued with reservations for the sake of votes. Till the people who gets jobs on the basis of reservations forget India's growth-progress.
यस्य शूद्रस्तु कुरुते राज्ञो धर्मविवेचनम्।
तस्य सीदति तद्राष्ट्रं पङ्के गौरिव पश्यतः॥[मनु स्मृति 8.21]
जिस राजा के यहाँ शूद्र न्यायकर्ता होता है, उस राजा का देश पङ्क में धँसी हुई गौ की भाँति क्लेश पाता है।
The populace of the country, where the justice has been handed over-assigned to the Shudr; face tortures like the cow sunk in marsh (bog, quagmire, morass, दलदल, धसान, कच्छ भूमि, चहला, कीच-कादा).
Kanan and Bala Krashnan are two examples where the Shudrs outwitted the judiciary. Most of those Shudr, who were elevated to high office by virtue of clutches of reservation amassed wealth beyond proportions, may it be Maya or Khadge.
A new breed of Scheduled Caste leadership is emerging which calls the Hindu society Manu Wadi-Sacretarian, like Maya Vati, Chandra Shekhar, Jignesh, Kanhaeya Kumar, Patel etc.
One during service, found the Scheduled caste officer, who were promoted against law, committing atrocities over higher castes and even blocking their promotions. It was not all they exploited the general category teachers sexually at will.
India should not have either Muslims or Christina in judiciary. Such people can not under Inida culture, ethics, morality, piousness etc.etc.
आकारैरिङ्गितैर्गत्या चेष्टया भाषितेन च।
नेत्रवक्त्रविकारैश्च गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः॥[मनु स्मृति 8.26]
आकार, इंगित, गति, चेष्टा, भाषण, नेत्र और मुख के विकारों से मन के अन्तर्गत की बात को जानना चाहिये।
The judge-king should analyse the psyche of the accused-defender, through his aspect, postures-body movements of hands, neck; motion-speed (stress over body parts), speech, eyes (curiosity, gestures, eagerness, sensibility, stability, attentiveness, reactions), mouth (movement of tongue, teeth, cheeks) and the distractions observed over the face revealing the conscience-inner self.
The face is the index of mind.
Some people are congenital liars. Its extremely difficult to identify the truth through their gestures. As a matter of fact some people have adopted witness as their profession. The layers too are expert in speaking the lies and kill the truth these days.
ASPECT :: feature, facet, side, characteristic, particular, detail, point, ingredient, strand; the positioning of a building or other structure in a particular direction, outlook, view, exposure, direction, situation, position, location.
बालदायादिकं रिक्थं तावद्राजाऽनुपालयेत्।
यावत्स स्यात्समावृत्तो यावत्चातीतशैशवः॥[मनु स्मृति 8.27]
अनाथ बालक-नाबालिग, के साम्पत्तिक अंश और धन की रक्षा राजा तब तक करे, जब तक वह वेदाध्ययन की समाप्ति कर वयस्क होकर गुरुकुल से न लौट आये।
The king should take care of-protect the property, wealth, riches of the orphaned (adolescent whose parents have died); till he returns from the Gurukul-teachers abode, after acquiring education in scriptures, history, culture, Veds-comprehensive knowledge of the various faculties of learning.
वशाऽपुत्रासु चैवं स्याद्रक्षणं निष्कुलासु च।
पतिव्रतासु च स्त्रीषु विधवास्वातुरासु च॥[मनु स्मृति 8.28]
वन्ध्या, पुत्रहीन स्त्री के कुल में कोई न हो, पतिव्रता, विधवा और रोगिणी स्त्री, इनके धन की रक्षा भी उसी प्रकार करे।
The king should take care of the property-money of the widow, issue less woman, a woman without son in whose family every one has died, woman devoted to his husband, a diseased woman like that of the orphans.
This is the period when land mafia is willing-ready to take over-acquire the assets, wealth property of such people without hitch. Take the case of Azam Khan, a minister in Akhilesh and Mulayam Singh Yadav government, who took over the land of farmers forcibly and the chief ministers encourages him.
The government agencies are not far behind they take over the fertile-cultivable land of farmers for something and use it for something else & often the officials misappropriate such properties like Yamuna expressway and Yamuna development authority. Maya Vati and as chief minister & Anand her brother-a carpenter built assets worth 25,000 cores through acquiring properties of farmers.
जीवन्तीनां तु तासां ये तद्धरेयू स्वबान्धवाः।
ताञ्छिष्याचौरदण्डेन धार्मिकः पृथिवीपतिः॥[मनु स्मृति 8.29]
उन जीवित स्त्रियों का धन कोई अन्य या उनके बान्धव हरण करें उन्हें चोर के समान दण्ड दिया जाये।
The king should punish the person, whether a relative or anyone else, like a thief who misappropriate-snatch the property, wealth of a surviving widow, issue less woman without a guardian.
प्रणष्टस्वामिकं रिक्थं राजा त्र्यब्दं निधापयेत्।
अर्वाक् त्र्यब्दाद्धरेत्स्वामी परेण नृपतिर्हरेत्॥[मनु स्मृति 8.30]
जिस धन का स्वामी नष्ट हो गया हो, उस धन को तीन वर्ष तक अपने पास रखे। यदि तीन वर्ष के पहले उस धन-सम्पत्ति का वारिस आ जाये तो उसे दे दे। अधिकारी, वंशज, वारिस न मिलने पर तीन वर्ष के बाद राजा उस धन को राजकोष के लिये स्वयं ले ले।
The king-state should acquire the property, which is without owner or whose owner had died without any heir; after protecting it for three years, If the genuine heir claims the property, wealth within three years it should be handed over to him, after collecting sufficient proof, verification.
Even after 3 years if a genuine claimant is found; its the duty of the state to restore the property to him, after ascertaining his credentials.
ममेदमिति यो ब्रूयात्सोऽनुयोज्यो यथाविधि।
संवाद्य रूपसङ्ख्यादीन्स्वामी तद् द्रव्यमर्हति॥[मनु स्मृति 8.31]
जो कोई कहे कि धन मेरा है तो उससे धन के सम्बन्ध में भली-भाँति जाँच पड़ताल करे। यदि वह उस धन और सँख्या आदि सब बतावे तो वह उस धन का स्वामी है और उसको लेने का अधिकारी है।
The king should establish the authenticity of the claim by checking the facts and figures pertaining to the wealth and verify the identity of the claimant.
At present the police is doing this job to ascertain the authenticity of claims and put the facts & figures in the court, which decides the issues on merits. However, there is very little chance of justice.
When caught a politician says that he has full faith in the judiciary, since he knows the lawyers will be able to exonerate him by hook or crook.Otherwise the constitution which allows the criminals to sit in the parliament needs amendments.The tainted must be in the prison and not allowed to roam freely in the society.
प्रणष्टाधिगतं द्रव्यं तिष्ठेद्युक्तैरधिष्ठितम्।
यांस्तत्र चौरान्गृह्णीयात्तान् राजैभेन घातयेत्॥[मनु स्मृति 8.34]
किसी का नष्ट हुआ धन राजपुरुषों द्वारा प्राप्त हो तो, राजा उसे सुरक्षित रूप से रखवा दे और उस द्रव्य के साथ जो चोर पकड़े जायें तो, उन्हें हाथी से कुचलवा दे।
If the policemen catches a thief, he should be slained by the elephants by crushing him under their feet and the stolen property should be stored safely to be handed over to the rightful owner.
It appears to be a cruel practice, but to maintain law and order such strict punishments are essential. The decoits, rapists, terrorists, murderers deserve such punishment to keep the fear of death in the minds of anti socials, criminals. Exemplary punishment is essential to keep a normal citizen away from crime-sins.
ममायमिति यो ब्रूयान्निधिं सत्येन मानवः।
तस्याददीत षड्भागं राजा द्वादशमेव वा॥[मनु स्मृति 8.35]
जो मनुष्य सच्चे प्रमाण के साथ कहे की यह मेरा धन है, तो राजा उस धन का छटा या बारहवाँ भाग लेकर शेष उसे दे दे।
The king should hand over-restore the money-valuables recovered from the thieves to the rightful owner after ascertaining the antecedents and sufficient proof and charge either 1/6 or 1/12 of the value of it.
Its state duty to safeguard the citizens but its essential on the part of the citizens to be vigilant and careful. To maintain law and order the state needs revenue which comes through these measures.
During the period of Veer Vikrmadity the citizens did not lock their homes. The women could move from one part of the country to another without fear, even during night.
During the last 15 years the country has passed through such a phase under Man Mohan-the so called Mr. CLEAN?!, when the state machinery was deeply involved in loot, frauds, scandals, scams and the crimes are coming out in the open, now. Foreigners from Italy looted the wealth of India like the Britishers. The present government is either lenient or allowing wilfully, the culprits to escape. Vijay Mallya, Lalit Modi, Neerav Modi, Lalu, Subrato Roy, Nirav Modi etc. etc.
If the offspring of central minister (Arun Jaitly & Shushma Swaraj) represent the fugitives-culprits in the court one can understand that something is fishy.
The government should ensure continuance in service of Chief Justice Deepak Mishra either for 5 years or till any of these four is in service :: Chelameswar, Ranjan Gogoi, M.B.Lokur and Kurian Joseph.[27.07.2018]
The constitution in India is full of errors, had it not been so, Janta Dal's Kumar Swami Dev Gouda could never form a government discarding the largest single party in Karnatak. This is a horrible error-omission, which needs amendment, immediate rectification. In case a single party do not get majority, the house should go to re-poll having two parties only, which got maximum seats-votes discarding all other contestants. In case of tie i.e., both the parties get equal number of seats the governments should be formed by the party which is in power at the centre, irrespective of who got largest number of valid votes for the sake of stability. This Dev Gouda's father led to dislodging BJP government earlier. If this example is a mile stone, the Congress can install people like Obessi as prime Minister in India. The events have turned full circle. This Janata Dal was formed to eliminate Congress after emergency. The imprudent first created an environment which compelled the erstwhile Jan Sangh to quite over the issue of dual membership & then kept on splitting under Lalu, Nitish and Sharad Yadav. Now, this Janta Party is forming governments with the collaboration of Congress. No morality, no virtues, opposition for the sake of opposition, not for the development of nation or to eradicate corruption. Incidentally, 92% Muslims, 86% Christians and only 58% Hindus voted in this election in Karnatak. Phoolpur, Gorakhpur too had this pattern. [25.05.2018]
महबूबा मुफ़्ती निहायत ही नामाकूल-नासमझ है, जिस नाव में सवार है, उसी में छेद करने पर तुली हुई है। उस जैसी औरतोँ, अब्दुल्ला, हुर्रियत-अलगाववादियों के लिए पाकिस्तान में कोई जगह नहीं है। उनके बहम की दवा तो हकीम लुकमान ने भी नहीं बनाई थी। इनको तो यह भी पता नहीं कि इनके दादे-परदादे हिन्दु थे। फौजियों पर फैंके पत्थर इनके शीश महलों की नीवें ही हिला देंगे। जम्मू और कश्मीर से धारा 370 और इसके अनुच्छेद 35(A) से केवल इन्हें ही फायदा है। धारा 370 और अनुच्छेद 35(A) हटने से जम्मू-कश्मीर में रोजगार बढ़ेगा, खुशहाली आयेगी।
धारा 370 :: जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता, राष्ट्रध्वज अलग, विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष, भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं, भारत के उच्चतम न्यायलय के आदेश जम्मू -कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं, भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यंत सीमित क्षेत्र में कानून बनाने की ताकत।
जम्मू कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी। धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI लागू नहीं है, RTE लागू नहीं है, CAG लागू नहीं होता, भारत का कोई भी कानून लागू नहीं होता।
कश्मीर में महिलाओ पर शरियत कानून लागू है। कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं।
कश्मीर में चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते हैं।
कश्मीर में अल्पसंख्यकों , हिन्दू-सिख को 16 % आरक्षण नहीं मिलता।
धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते।
धारा 370 की वजह से ही पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है, जिसके लिए पाकिस्तानियों को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है। कश्मीर में तिरंगा नहीं फहरा सकते। [09.05.2018]
संविधान बचाओ SAVE THE CONSTITUTION :: कांग्रेस द्वारा राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध लाये गये महाभियोग के प्रस्ताव को जैसे ही राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने खारिज किया, वैसे ही उनके अध्यक्ष राहुल गांधी ने 'संविधान बचाओ' का नारा लगाया है और उनके अन्य नेता भारत की जनता को यह बताने में लग गये है कि बीजेपी द्वारा मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग प्रस्ताव रद्द करने से संविधान को खतरा पैदा हो गया है। यह संविधान ऐसा ही जिसमें दोष ही दोष और छेद ही छेद हैं।
कांग्रेसियों द्वारा संविधान व सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लेकर जो छटपटाहट दिख रही है, उसका सिर्फ एक कारण है और वह यह कि पिछले 5 दशकों में यह पहली बार हुए है, जब सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश कांग्रेस के प्रभाव से बाहर है। यह पहली बार हुआ है कि कांग्रेस के वकीलों और बेंच को फिक्स करने वाले वकीलों की ब्लैकमेलिंग व भृष्ट तरीके, सुप्रीम कोर्ट में नही चल पा रहे है।
कांग्रेस ने जब 1973 में जब जस्टिस ऐ.ऐन.राय को उनसे तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों जे.एम.शेलत, के.एस.हेगड़े और ऐ.ऐन.ग्रोवर को नजरअंदाज करके मुख्य न्यायाधीश बनाया था, तब लोकसभा में बड़ी बेशर्मी से यह बयान दिया था कि, "यह हमारी सरकार का दायित्व है कि हम उसी को मुख्य न्यायाधीश बनाये जो हमारी सरकार की फिलॉसफी और द्रष्टिकोण के करीब है"।
जस्टिस राय ने कांग्रेस द्वारा उन पर किये गये इस उपकार का बदला आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को 1,976 के ऐतिहासिक केस एडीएम, जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ल मुकदमे में सही ठहरा कर किया था। इस केस में बहुमत से मौलिक अधिकारों को निलंबित करने के पक्ष में फैसला मुख्य न्यायाधीश ए.एन.राय, जस्टिस एच.आर.खन्ना, एम.एच.बेग, वाई.वी.चंद्रचूड़ और पी.एन.भगवती ने दिया था। जस्टिस खन्ना ही एक मात्र न्यायाधीश ने जिन्होंने इसको गलत ठहराया था। इसका दण्ड भी जल्दी ही उन्हें मिल गया; जब जस्टिस खन्ना की वरिष्ठता को किनारे करते हुये उनसे कनिष्ठ एम.एच.बेग को मुख्य न्यायाधीश, इंद्रा गांधी की कांग्रेस की सरकार ने बनाया था।
जस्टिस बेग जब सेवा निवृत हुए तब उनको कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड का निदेशक बना दिया गया और फिर जब 1980 में इंद्रा गांधी की कांग्रेसी सरकार वापस आयी तो जस्टिस बेग को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया और वे 1988 तक उस पद पर बने रहे। यही नही राजीव गांधी ने 1988 में बेग को उनकी सेवा के लिये पद्मविभूषण से पुरस्कृत भी किया था।
न्यायाधीश बहरुल इस्लाम कांग्रेसी थे जिन्हें 1962 में कांग्रेस ने राज्यसभा का सदस्य बनाया था। 1967 में वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गये तब 1968 में फिर राज्यसभा भेजे गये। 1972 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और इंद्रा गांधी ने उनको गोहाटी हाईकोर्ट का न्यायाधीश बना दिया! ये वहाँ अपनी सेवानिवृति, मॉर्च 1980 तक न्यायाधीश रहे। जब इंद्रा गांधी फिर से 1980 में प्रधानमंत्री बनी तो उन्होंने सेवानिवृति प्राप्ति के 9 महीने बीत जाने के बाद भी, जस्टिस बहरुल इस्लाम को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया! जस्टिस इस्लाम ने कांग्रेसियों के खिलाफ मुकदमों में कानून और न्याय की ऐसी तैसी करके, उन्हें बचाने में महारत हासिल थी। जस्टिस इस्लाम ने अपनी सेवानिवृति के डेढ़ महीने पहले ही इस्तीफा दिया और असम के बारपेटा से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के चुनाव में खड़े हो गये थे। लेकिन असम की अशांति के चलते वहां जब चुनाव नही हो पाया तो कांग्रेस ने उनको तीसरी बार राज्यसभा का सदस्य बनाया था।
कांग्रेस की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को उनके हितों की रक्षा करने पर पुरस्कृत करने की परंपरा रही है और उसका अनुपालन राजीव गांधी में भी किया है। 1984 में हुये सिक्खों के नरसंहार की जांच के लिये जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को राजीव गांधी ने नियुक्त किया था और उन्हें अपनी जांच में सिवाय पुलिस की लापरवाही के अलावा किसी भी कांग्रेसी का हाथ नही दिख था। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें बाद में पुरस्कृत कर नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। 1998 में कांग्रेस ने जस्टिस मिश्रा को राज्यसभा का सदस्य भी बनाया। यही नही 2004 में जब सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई तो जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को नेशनल कमीशन फ़ॉर रिलीजियस एंड लिंगविस्टिक मिनोरटीएस का अध्यक्ष बनाया और फिर नेशनल कमीशन फ़ॉर शेड्यूल कास्ट एंड शेड्यूल ट्राइब का अध्यक्ष बनाया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस खरे को गोधरा कांड में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणियां करने पर उन्हें पद्मविभूषण से पुरस्कृत किया था। कांग्रेस का न्यायाधीशों को महाभियोग से बचाने में भी योगदान रहा है। जब जस्टिस रामास्वामी पर भृष्टाचार के आरोप लगे थे और महाभियोग की कार्यवाही चली थी तब कपिल सिब्बल, जो आज मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव सामने लाये है, उन्होंने जस्टिस रामास्वामी के पक्ष के वकील थे और जस्टिस रामास्वामी का बचाव किया था। सिर्फ यही नही, प्रशांत भूषण ने भी इस महाभियोग चलाने के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करते हुऐ कहा था कि 'चंद कालीनों और सूटकेसों के खरीदने पर जस्टिस रामास्वामी पर महाभियोग चलाना बचकानी हरकत है'। जब जस्टिस रामास्वामी पर 14 आरोपो में 11 सही पाये गये तब कांग्रेस ने वोटिंग से अपने आपको अलग करके, रामास्वामी को सज़ा होने से बचाया था।
कांग्रेस का पूरा इतिहास सुप्रीम कोर्ट में अपने लोगो को न्यायाधीश बनाने वा अपने हितों की रक्षा के उपलक्ष में उनको पुरस्कृत करने का रहा है। आज जो कांग्रेस व कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ऐसे वकीलों का जो आक्रोश व हताशा है, वह इसी कारण से है कि आज भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा बैठे है जिन्होंने कांग्रेस के 10 जनपथ से सोनिया गांधी के इशारों को समझना बन्द कर दिया है। आज उनके अंदर यह डर भी बैठ गया है कि उनके पुराने पापों पर सुप्रीम कोर्ट के आगामी निर्णय कही उनको भारत की राजनीति से विलुप्त न कर दे। आज उनको सुप्रीम कोर्ट से विश्वास उठ गया है क्योंकि जस्टिस दीपक मिश्रा उनसे न ब्लैकमेल हो रहे है और न उनके प्रकोप से डर रहे है।
This is how the judiciary had been functioning under Congress regime. How could the common man get justice?![27.04.2018]
DECISION OF J & K HIGH COURT :: जम्मू कश्मीर में 63 साल का इतिहास बदला। J & k हाई कोर्ट की डिवीज़न बेंच का फैसला। अब तिरंगा ही लहराएगा जम्मू कश्मीर का अलग-अलगाववादी झंडा नहीं चलेगा।
भारतीय संविधान सभा :: इसमें 389 सदस्य थे। 9 दिसम्बर, 1946 को पहली बैठक हुई और 26 नवम्बर को 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन में संविधान तैयार हुआ। इसके अध्यक्ष:- डा. राजेन्द्र प्रसाद, उपाध्यक्ष:- एच. मुखर्जी,
संवैधानिक सलाहकार :- बी.एन.राव थे। इसमें कुल 13 समितियाँ थीं।
(1). संघ शक्त समिति :- सदस्य नेहरू आदि,
(2). संविधान समिति :- नेहरू आदि,
(3). राज्यों के लिए समिति :- नेहरू आदि,
(4). राज्यों,रियासतों से परामर्श समिति :- सदस्य पटेल आदि,
(5). मौलिक अधिकार एवं अल्पसंख्यक समिति :- पटेल आदि,
( 6). प्रांतीय संविधान समिति :- पटेल आदि,
( 7). मौलिक अधिकार उपसमिति :- जे.वी.कृपलानी,
( 8). झण्डा समिति :- जे.वी.कृपलानी,
(9). प्रक्रिया नियम समिति :- राजेन्द्र प्रसाद आदि,
(10). सर्वोच्च न्यायालय संबंधित समिति :- राजेन्द्र प्रसाद आदि,
(11). प्रारूप सविधिक समिति :- अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर,
(12). संविधान समीक्षा आयोग :- एम.एन.वैकटाचलैया,
(13). प्रारूप समिति सदस्य निम्ह थे :-
(13.1). मोहम्मद सादिला,
(13.2). अल्लादी कृष्णस्वामी,
(13.3). एन.गोपाल स्वामी अय्यर,
(13.4). एन.माधवाचार्य,
(13.5). कन्हैयालाल माणिक्य लाल मुंशी
(13.6). टी.टी.कृष्णमाचारी,
(13.7). भीमराव राम अंबेडकर आदि।
अगर संविधान को अंबेडकर ने बनाया, तो फिर क्या बाकी 388 सदस्यों ने झक मारी!? गाँधी की जिद से ही उसे संविधान समिति में रखा गया। सरदार पटेल ने भी उसे केवल गाँघी के कारण ही बर्दाश्त किया। गाँधी की जिद से ही नेहरू प्रधानमंत्री बना। नेहरू ने डा. राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति के पद से हटाने की पूरी कोशिक की मगर उसकी एक नहीं चली। डा. राजेंद्र प्रसाद का सम्मान उससे कहीं ज्यादा था। संविधान में जो मूलभूत कमियाँ हैं, उनके जिम्मेवार, नेहरू, गाँधी और यही अम्बेडकर हैं।
भारतीय संविधान की निम्न मूलभूत कमियाँ जो जाहिर करती हैं कि इसके प्रभावशाली सदस्य अदूरदर्शी, अविवेकी और दुराग्रही थे।
(1). कोई नेता चाहे तो दो सीट से एक साथ चुनाव लड़ सकता है, लेकिन एक सामान्य व्यक्ति दो जगहों पर वोट नहीं डाल सकता।
(2). कोई व्यक्ति जेल मे बंद हो तो वोट नहीं डाल सकता जबकि नेता जेल में रहते हुए चुनाव लड सकता है।
(3). अगर कोई बेकसूर भी जेल चला गया तो उसे जिंदगी भर कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, लेकिन एक अपराधी नेता चाहे जितनी बार भी हत्या या बलात्कार के मामले में जेल गया हो, फिर भी वो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जो चाहे बन सकता है।
(4). बैंक में मामूली नौकरी पाने के लिये ग्रेजुएट होना जरूरी है, लेकिन नेता अंगूठा छाप भी हो तो भी भारत का वित्त मंत्री बन सकता है।
(5). सेना में एक मामूली सिपाही की नौकरी पाने के लिये दसवीं पास होना जरूरी तो है ही 10 किलोमीटेर दौड़ और शारीरिक मापदण्डों को भी पूरा करना होगा मगर, नेता यदि अनपढ़-गंवार और लूला-लंगड़ा, अँधा-काना, गूँगा-बहरा हो तो भी वह देश का सर्वोच्च सेनापति-राष्ट्रपति, रक्षा मंत्री बन सकता है और जिसके पूरे खानदान में आज तक कोई स्कूल नहीं गया, वो नेता देश का शिक्षामंत्री बन सकता है।
(6). जिस नेता पर अनगिनित मुकदमें दायर हों वो नेता गृह मंत्री बन सकता है।
(7). 82 % अंक लाने वाला सामन्य श्रेणी का गरीब भारतीय प्रशासनिक सेवा, चिकित्सा, अभियांत्रिकी में प्रवेश नहीं पा सकता जबकि मात्र 28 % वाले को यह सब कुछ मिल जाता है।
(8). एक गरीब ब्राह्मण के बच्चे को फीस के 80,000 रूपये चुकाने ही होंगे, जबकि आरक्षित वर्ग के एक उच्चाधिकारी, मंत्री, उद्योगपति हो यह माफ़ है !
IMPEACHMENT OF HONOURABLE CHIEF JUSTICE :: Some opposition MPs are busy seeking signatures of other fellow opposition MPs to impeach the Chief Justice of India Mr. Deepak Mishra, who is a straight forward, result oriented, hard working person.
A high court or supreme court judge has the power to initiate action against the guilty Suo motto. It will be in the interest of the nation if he "acts suo motto against all legislators who have one or other case registered against him to ban their voting rights in parliament and else where, stop their perks, pay, pensions, facilities till they prove them innocent-non guilty, corrupt". It will be a great service to the nation and he will become a trend setter and remembered for log for his contribution to democracy. [30.03.2018]
सुप्रीम कोर्ट के 4 जज, अफ़ज़ल गुरु और अवार्ड वापसी की नुमाइंदगी
करने वाले वामपंथी पत्रकार शेखर गुप्ता के साथ नियम विरुद्ध मीडिया के सामने और कहने लगे कि :: (1). देश का लोकतंत्र खतरे में है-देश को बचाइए, देश खतरे में है, (2). चीफ जज हमारी बात नहीं मानता, (3). मुकदमों को वरिष्ठ न्यायाधीशों को नहीं दिया जा रहा। ये सभी जज कांग्रेस राज में जज बने थे। इनके सभी आरोप निराधार और बदनाम करने के लिए हैं। इससे पहले 20 वर्ष में राजीव गाँधी हत्या, बोफोर्स, बेस्ट बेकरी, सांसदों की अयोग्यता, सोहराबुद्दीन, जेठमलानी कालाधन, अडवाणी, आधार, कोयला घोटाला, 66 A, राहुल गाँधी 2012, BCCI, मल्या, बैड विड्थ जैसे अहल मामले कनिष्ठ जजों ने सुने थे। सर्वोच्च न्यायालय में अगर कनिष्ठ और वरिष्ठ है तो बाकि जगह क्या होगा?! CBI के जिस विशेष जज लोया की मृत्यु को लेकर बखेड़ा खड़ा किया गया, उसके पुत्र का कहना है कि उसकी मौत में संदेहजनक कुछ भी नहीं था। अब यह देश ही फैसला करेगा कि "क्या ऐसे जजों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है" ?!!
जोसफ कुरियन :: ये जज मानसिकता से एक ईसाई कट्टरपंथी है, प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को एक कार्यक्रम रखा था तो इसने ऐतराज़ जताया कि इसे तो रविवार को चर्च जाना है और देश के प्रधानमंत्री को ईसाई विरोधी साबित करने की कोशिश की। जज के लिए काम नहीं बल्कि ईसाइयत यानि मजहब पहले है। एक सरकारी कर्मचारी 24 घंटे का नौकर है और उसे कभी भी तलब किया जा सकता है और उसे प्रेस में जाने की इजाज़त तो कतई नहीं है।
चमलेश्वर :: ये वो जज है जो कांग्रेस के काफी करीबी माने जाते हैं और हाल ही में इन्होंने आधार का भी विरोध किया था। कांग्रेस आधार का विरोध करती है। आधार से भ्रष्टाचारियों की नींद उडी हुई है, चूँकि उससे उनका सब कुछ जुड़ने के बाद उनके फर्जीवाड़े झूल जायेंगे।
गोगोई :: ये असम से हैं और असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशब चंद्र गोगोई के पुत्र हैं। केशब चंद्र गोगोई कांग्रेस के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और ये जज साहेब कोंग्रेसी मुख्यमंत्री के पुत्र हैं।
दीपक मिश्रा :: इनके ऊपर पर निराधार आरोप लगाए गये हैं। उनका चरित्र स्वच्छ और छवि निर्मल है। इन्होने ही (1). मुम्बई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेनन को फांसी की सजा दी थी, (2). निर्भया के दोषियों को भी फांसी की सजा का ऐलान किया था, (3). सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के मुख्य न्यायाधीश थे, (4). राम जन्म भूमि केस में भी मुख्य न्यायाधीश हैं और (5). 1984 सिख दंगों की जांच दुबारा करवाये जाने का फैसला दिया है। [15.01.2017]
SUPREME COURT JUDGES SEEKING JUSTICE FROM MEDIA :: The judiciary is at cross roads with crossed swords. In India it takes 20-100 years to seek justice and still the judgement is against the plaintiff. The Supreme Court judges brought their grievances in the open as if the media will deliver justice to them. One of the communist party leaders was seen meeting the complaining judge giving it a political colour. The congress party was not far behind. Its true that the chief justice was assigning them cases according to his choice, but corollary to this is that they too desire their say in specific cases which raises eye brows!! There may be a chance that the 4 judges became scapegoat of political clout, followed by 2 later. There is no doubt that the judgements are not fair and free from flaws. Judge's fancy and caprice prevails. One is sure that the system of appointing the judges is not fair and free from flaws.[14.01.2017]
Chidambaram is an MP and yet he pleads the cases of criminals-builders in the Supreme Court. How is it that a man, who is drawing salary from the government exchequer is collecting millions as well as fees?!. If a government servant is not supposed to take up any other job, how is it that he and others of his clan-are practicing side by side?! Is the Supreme Court not aware of this basic feature of Indian constitution.[25.02.2017]
Courts take cognisance over petty matter of their own. But, now Maya Vati is openly inviting Muslims and the back ward classes to vote in her favour, in spite of the order-judgement of the Supreme Court. The election commission too is maintaining studied silence. Who will bring the matter to their notice and when will they act ?! Do not they see TV/read news papers?![19.02.2017]
One of the biggest lacuna-weakness of Indian constitution is that any one can became Chief Minister or even Prime Minister without being elected as a member of either Vidhan Sabha-State Assembly or Lok Sabha-Parliament. Man Mohan Singh headed the team of looters for 10 years. Now, Sashi Kala a woman of dubious integrity is craving for the the post of Chief Minister of Tamil Nadu. There may be a chance when a criminal occupies the post of Prime Minister without being elected to parliament by either by abducting or black mailing the members of parliament most of whom have numerous criminal cases against them.[14.02.2017]
The government is responsible to keep the Judiciary free. 1993 judgement pertaining to appointment of judges is not free from biases & strings. There is no mention of the collegium either in the original Constitution of India or in successive amendments. This is a pure case of high handedness. The supreme Court should act in this direction by asking the government to initiate steps to have law officials-judges through free & fair examinations on the lines of IAS. The collegium system has its own limits. Only those judges should be promoted to the apex court, who have passed the ladders from sessions courts to Supreme Court through promotions. There should be no reservation at all and no out of turn promotions. One with doubtful-unfair conduct should be removed. Under the present circumstances the objections-fears of the BJP government may not be unfounded. Collegium system has always openings through back door, appointing inefficient, corrupt, imprudent people denying fair justice.[28.11.2016]
Modi has asked the Judiciary to propose setting up of All India Judicial Services. The confrontation between the Supreme Court and the Government over the appointment of Judges persists. Intentions of BJP government are clear :: It wants to appoint pro BJP faces in the Judiciary. The Supreme Court set aside the election of Mani Pur Congress MLA, Mairembam for falsely declaring in his 2012 nomination papers that he had an MBA degree. It said that voters had the fundamental right to know the educational background of the contestants.[02.11.2016]
Rachna Lakhan Pal a senior judge in Tees Hazari court, Delhi was caught red handed while accepting bribe money of Rs. 4,00,ooo. Rs. 94,00,000 in cash were also sized from her. Its not the first ever instance of deep rooted corruption in judiciary. Bala Subramanian, a retired Supreme Court Judge faced corruption charges. He favoured his daughter in his judgements. Its a normal practice to pay for seeking dated or favours from the judges of all hue, by the lawyers.[30.09.2016]
VACANCY OF JUDGES :: The Chief Justice of India has asked for 70,000 more judges to clear the backlog of 3,00,00,000 cases. The reality is just opposite of it. It can be proved that the time is wasted in courts in useless formalities and petitioners are compelled to hire lawyers for heavy fees, who extract money from the justice seekers till they come on the road and prefer to settle or withdraw the case. The lawyers prefer not to issue receipts for the money collected by them. They often ditch the petitioner in between after charging the full mount of fees from them. Even the income department do not raid them. They are the most sacred people in India. The system is equally responsible for the backlog. Tamil Nadu and Punjab has lowest pendency of cases. Citing vacancies is not a valid argument. The reality is that the judges are happy in giving date after date. They reach the court late and take leave soon. Which other profession allows the employees to take leave during summers except teachers and judges?! If you have calibre and capability, get the job done by them, within a fixed frame work of time. Why shed unnecessary crocodile tears?! Public do not find King Vikramadity or Raja Bhoj in you. Neither you are Akbar nor emperor Jahangir. It had been observed with pain that the judges of a bench of CAT started hearing around 11 A.M. and terminated the hearing in between of a matured case meant for final argument around 12 and left the court room and then different bench heard it and the case dragged for two more years. The judge should have well developed-inbuilt insight, intuition, logic ability to argue and see reason and thoughtfulness. He should be sensitive and just. He should be ready to deliver the judgement within 2-3 dates. He should not linger on the case indefinitely. He should not allow frivolous writs and repeated appeals by the government departments, used as a tool to harass the employees by the notorious motivated elements. It has been pointed out that more than 30% of the judges are practising on the strength of fake degrees. Who will rein them?![20.06.2016]The judge is happy to grant stay too quickly and the case is extended further for lingering up to 6-7 years. It takes 10-15 years for case to come to the level of judgement which show gross inefficiency, lack of dedication, wilful delay, corruption, lack of devotion and a behaviour similar to the government officials specially the ministerial staff.[22.06.2016]
Section 498 a :: Justice Deepak Mishra & Shiv Keerti Singh castigated-brandished-labelled the mother in law as the one who always demand dowry. It clearly indicate their bias and absence of rational thinking. There are millions of families in India and the world over which never dream of dowry and believe in their own pious-honest earnings. Such words are derogatory and insulting whether intentional or unintentional. The justice done by them can not be free from injustice.[15.05.2016]
ENCROACHMENTS :: The Supreme Court of India has delivered a land mark judgement on 14th April, 2016 stating that the State governments should raze encroachments over the pavements, foot paths, government land-public land. One can find encroachments by the shop keepers in Noida over the veranda, bi-lanes, open space in front of their shops. Encroachments over the foot paths, pavements and government land are very frequent and common in Noida-UP. The authority officials are hand in globe with the encroachers and threat those who complain against them. Murders on this account too are very common.[06.05.2016]
LAUDABLE ALLAHABAD-UP HIGH COURT VERDICTS :: The court did not hesitate when it said that the UP police is an organised band-group of criminals, twice. The court has asked the ministers, officers, employees of government organisations to send their children to government school for studies. This court has asked the UP government to implement the Hon. Supreme Court's order meant to revert back the SC/ST employees, who promoted due to their being reserved class.ENCROACHMENTS :: The Supreme Court of India has delivered a land mark judgement on 14th April, 2016 stating that the State governments should raze encroachments over the pavements, foot paths, government land-public land. One can find encroachments by the shop keepers in Noida over the veranda, bi-lanes, open space in front of their shops. Encroachments over the foot paths, pavements and government land are very frequent and common in Noida-UP. The authority officials are hand in globe with the encroachers and threat those who complain against them. Murders on this account too are very common.[06.05.2016]
THINK OVER IT: The same case is heard by different judges. They differ in their opinion-judgement of the case. Why do they differ?! Where is the fault, in the mind of the judge or the minds of those who framed the law? Isn't that the bias-attitude-opinion-circumstances over weighs the case?
When a noted lawyer, (former law minister) comes up in support of some one like Asa Ram or Jaya, a common person is left amazed, since it shows the mental make up of lawyers and the ethics. Indian Judiciary is well known for lack of ethics by pulling the cases for 20-25 years. The government machinery is not far behind. They keep on appealing till there is no chance of its further appeals. For instance a 5 paise ticket led to dragging of a case for more than 25 years and a government expenditure running in Lakhs of rupees.
Can you expect justice in the light of repeated adjournments and dragging of cases for years. The cases passes through a number of judges without conclusion. The lawyers keep on sucking blood of the victim protecting the oppressor-repressor. Should not the lawyers seeking adjournments be debarred? Should not the judges granting adjournments be removed from service? Should not the oppressor be sent to prison till the conclusion-disposal of the case, if he seek adjournments.
Handling of cricket gambling-scam and its chairman Shri Niwasan-shrni by the Hon. Supreme Court is laudable. A fair trial will reveal a lot of rotten lot. [29.11.2014]
OBSCENITY, VULGARITY, NUDITY & IMMORALITY
Section 292, 293 & 294 of IPC deal with obscenity, immorality, vulgarity, nudity without clearly defining these terms. Supreme Court has defined it, but that definition is quite confusing and in sufficient like other laws. The government should frame strict and clear laws to check the nonsense spread by the misguided and the crooked.[30.11.2014]
INJUSTICE अन्याय :: International Boxing Federation (AIBA) has committed a crime by punishing Indian Boxer Sunita Devi. She was never at fault. Her protest was correct by all means. Perhaps the officials have no virtue-values. The referee was definitely corrupt. One can not deny visible proof-footage which clearly shows that Sunita was definitely better than the opponent. The honour must be restored to her. She deserve whole hearted support & praise. What she did was correct and graceful. She has shown extra ordinary courage against the corrupt. Where is the question of impropriety? The Indians who assailed, definitely need to be reprimanded. She was made to weep, tears flew out of eyes due to the gross injustice done to the game and the player simultaneously. इसे कहते हैं मारो भी और रोने भी मत दो।
What is the legal remedy for her?!
They hired eminent lawyers to plead their cases in courts. Even a small child will say that they are guilty. It shows the moral turpitude of these lawyers who claim to be clean-untainted unsmeared. They have interest in politics as well . How can a citizen expect justice from these people when they are in power?!Refer to the cases of Maya Mulayam, Jay Lalita, Asa Ram...
COLLEGIUM SYSTEM OF APPOINTMENT OF JUDGES V's LAW COMMISSION :: Indian judiciary is often blamed to shelter corrupt judges. Even the Chief Justice of India have been accused of corruption. After 1998 the judges are selected by a panel headed by CJI. These judges are selected from amongest the practicing lawyers and some of them are those, who have appeared for dreaded criminals-offenders-anti nationals, playing all dirty tricks for protecting them. One after another governments at the centre were trying to turn judiciary into an obedient slave, giving verdicts at their dictates.
India is a country where justice is costly-time consuming-harassing and unfair. The cases keep on dragging in courts for decades, celebrating silver-golden-diamond jubilee. The root cause, is the rotten-borrowed legacy-impractical laws and procedural delays-corrupt judiciary-inefficiency. Still the present government is talking of appointing judges from amongest the practicing lawyers.
India has UPSC-CBSC which conducts most of the reputed services examinations. Why should one have a new commission?!
Let the country recruit fresh graduates having 4 year LLB degree after class 12 examination. These aspirants should be trained and placed in district courts and given promotion thereafter, on the basis of their efficiency-capability in disposing off cases quickly aided with reasonable screening. They should be treated as normal civilians as for as law and order are concerned. The IPS should also join this group at the entry level but with the added competency in physical standards and training. The whole process should be transparent. The child should be able to opt for the specialised courses at the level of class XI like Science, Commerce and Arts. Pass outs of class XII with Law and Legislature as the main subjects should be absorbed as constables, court clerks and should be admitted in the government run Law colleges imparting education in Law and Legislature. They should have the option of appearing in Law Commissions' main examination.[30.07.2014]
PROTECTION TO THE GUILTY WITHDRAWN FOR THE THIRD TIME :: The Honourable Supreme Court has struck down the single Directive which bars the investigating agencies from initiating a probe against the senior officers-bureaucrats above the rank of joint secretary, without the prior permission. The court struck down the shield for the third time. Section 6A in the Delhi Special Police Establishment Act was held invalid as it seriously violated the fundamental right of equality granted under Article 14 of the constitution. In fact corruption is mushrooming under the protection of this unlawful act. NDMC-New Delhi's corrupt officials are safe due to this, since the vigilance department is not willing to act against them ignoring the complaints forwarded to it by the CVC & the CBI.[07.05.2014]
ADJOURNMENT :: Its a curse for the Judiciary in India. The lawyers and the the judge keep on postponing the hearing without any logic, forcing the the client to cough up more and more money in addition to wastage of time. One do not expect justice under the present climate. The judiciary is busy hearing sense less cases at the cost of the tax payer & the exchequer. One may not be able to get justice in his life time.
It is an evil, which is plaguing the judiciary in India. Billions of cases are pending in courts. Most of them are for minor petty offences. There are cases in which the accused can be discharged due to the change in law. There are the accused who are languishing in jails for a period which is many times higher than the one, for which they could be housed there, had they been proved guilty. Adjournments which have become routine and shows understanding between the judges and the counsels, should be banned completely. Adjournments should not be permissible under any circumstance. Issue of receipt for the payment made by the client to the lawyer should be made mandatory. The counsel who tries to prolong the case should be debarred. The counsel who cheat and refuse to plead the case sincerely, should be debarred for ever. The counsel who fail to appear before the court on the due date, should be warned and after three warnings he should be made in eligible for argument before the court. All cases must be heard and decided within a time bound period, extended to three months, at the most; including charge sheet, argument, hearing. Appointments the benches be made on the lines of IAS/IPS/IRS through UPSC for the whole country and the job should be made transferable after a tenure of three years all over the country. All promotions should be made strictly on the basis of seniority, only. Reservation of all types should be made inapplicable to this job.
MALIGNING THE JUDICIARY :: It smells of a tirade to defame-malign the judiciary.
Deep rooted well planned-well hatched conspiracy might be working, behind the sordid state of affairs.
Media gave undue coverage and media trial begun to earn trp's.
There is every possibility of the involvement of top level-top ranking business houses, bureaucrats and politicians. People of these three categories are involved in embezzlement of government assets in additions to con-mans.
A number of sensitive cases are pending in the Supreme Court pertaining to these categories of people. This is an indirect attempt, made to bring the judiciary under pressure to their toes.
FIR's can be registered within 72 hours of the crime. During recent past, a series of cases have erupted in which FIR's have been registered after a gap of 10 years of the crime.
If some had genuine guise against the judge, she should have knocked the doors of justice-police not the media: twitter as is the case here.
The women are well educated and law graduates. Either they have not understood the limits of law or they are in the making of their own laws to bent the law to their feet.
Why did the women waited for so long for the judges to retire, from active service? Had they other some designs-motives in their minds ?
Were the women blackmailing the concerned person during this period for favours? Having failed to do so they became vocal by tarnishing their image of the judges.
Judges too are human beings. They are not super humans.
They too were practicing lawyers before being appointed as judges.
Prejudice exits against such people who are enjoy public confidence.
At least 11 big business house were allotted coal blocks without scrutiny on the recommendation of PMO.
MURDER-RAPE-DACOITY BY JUVENILES :: The person who should have been in school, is in the remand home. Who is responsible for this: Society-Parents-Teachers-Religion-God or he himself? His Karm in the previous birth added with the deeds of the present birth will turn him into a dreaded criminal, a headache for the society and the law. Who would reform them and how would they be reformed? Its certain that they can not be reformed in juveniles-remand homes where they meet regular torture-neglect-suspicion. They are born and brought up in such places-families-environment which is conducive to criminalisation. JJ clusters-poverty-sex-violence-craze for high end goods, drive them to this life. Impact of films-internet-vulgarity too is dragging them to the path of criminalisation.
The government has proposed to prosecute the juveniles above 16 years, involved in heinous crimes, like the adult offenders. Parents of the victim, who was brutally raped and murdered in Delhi by a rang of 6, including a minor have approached the apex court in this regard.[Delhi: 0212.2013]
Juveniles above the age of 13 involved in heinous crimes are treated as adults in some states of US, Indiana, South Dakota, Vermont, UK etc. UN favours juvenile justice (-Beijing Rules), which allows punishment in proportion to circumstances and gravity of the offence.
They are below 18. They ran away from a juvenile home after arson and rioting. Now they are booked for looting 50 kg silver and Rs.10 Lakh after murdering a jeweller's wife, residing in Mayur Vihar in New Delhi.[19.11.2013]
Minor planned to kill step mother and stabbed her younger brother to death.[12.10.2013]
Three minors sodomised a 34 years old man and then killed him with bricks.[21.07.2013]
Two minors stole Rs.60 Lakh from a car.[07.05.2013]
14 year old boy rapes 6 years old girl in Seema Puri, Delhi [25.04.2013]
16 years old smashed a teen's head.[13.01.2013]
The girl gang raped by 6 young boys. One of them was a minor.[16.12.2012]
1541 juveniles were apprehended for various crimes last year, in Delhi. 100 were involved in murder and 74 were held for attempted murder. All figures quoted above are from Delhi only.
The law needs to be changed to treat them as grown ups for punishing them. If they are not dealt strictly they will turn up in to dreaded criminals.
Out of the 6 rapist of the Danish 51 year old woman, one is a juvenile. 2 of them are still absconding, but will be nabbed soon. Her phone and other goods have been recovered. [Delhi:18.04.2014]
CRIMINAL MINDS :: The home minister issued a circular to review the police-court cases pertaining to the Muslims. Next came the state of Maharashtra ready to repeal nearly 1.34 Lakh cases pending in the courts, for a long time. This amounts to appeasing the Muslims for political gains and weakening of India's law and order situation. From Hazi Mastan to Dawood Ibrahim, Bhatkal or Tunda one notices a sequence which is visibly closely nit with the political wisdom to act against them by sacrificing the countrymen. The government always blame the ISI when ever some act of violence takes place. UP government is not far behind it requests the courts to withdraw cases against the terrorists and honour those who are involved in massacre of innocent Hindus. There is not a single day when these people are not found involved in gory crimes like murder, extortion, kid napping, black mailing, dacoity, car lifting, looting, rape, theft and what not.
SLAVERY :: Unbelievable but true. Human trafficking appears to be a new word, but its very common. Its all happening right under the nose of the government with active participation, patronage and protection from the interested people. Innocent girls are brought to cities for house hold/domestic work, prostitution and sending abroad. Some of them are sold for marriage again and again. They are brutally tortured, if they refuse to do the desired. Guilty, if caught are bailed out with the connivance of policemen and judiciary. Dev Dasis and bonded labour are other form of slavery.
One would wonder if he is told about such parents, who sell off their daughters for prostitution. A number of villages are there in which the mothers rear the daughters for this illicit trade.
There are the people who supply maids for domestic work in the grab of placement agencies, who buy these girls and exploit them.
There are 29.6 million slaves globally. India leads the world, followed by China, Pakistan and Nigeria. India accounts for the 50% of world's modern slaves.[Delhi 18.10.2013]
[Delhi-06.11.2013] BSP MP-having 29 criminal cases including murder, along with his second wife-a doctor at RML hospital are arrested for the murder of their maid servant. The maid was mercilessly beaten-tortured by branding the private parts with a smouldering iron on a whim.
In India there are specific zones where the trade is carried out in full view of the police, judiciary, bureaucracy, political patronage and the connivance of criminals. Is it possible to sell a commodity if the buyers are not there?! Some regions of Punjab, Rajasthan, Andhr Pradesh and towns, where the boundaries of Rajasthan, Madhy Pradesh and Utter Pradesh meet, are the most common selling points for women. Red light areas of Delhi-G.B.Road, Bhindi Bazaar-Bombay, Sona Gachhi-Calcutta, some villages in Agra close to Taj Mahal are most notorious.
Girls from Nepal, Bangal, Jhar Khand, Tribals from Madhy Pradesh, Bangla Desh are easy pray due to the poverty. International gangs are active all over the country, immunely.
There is not even a single day when 10-15 children are not trafficked from Delhi and NCR.
Its not difficult to identify such people who push humans into slavery. Let them be subjected to Life Imprisonment-till death.
Three highly traumatised women were rescued from a house in Lambeth, South London held as slaves for 30 years. Those who were arrested for the crime were released on bail. Britishers still indulge in enslaving people. The duo indulged in slavery was of Indian origin. The slave owner is the head of an extremist Maoist sect and calls him self Jesus Christ. [22.11.2013]
It is estimated that as many as 4,000 people are enslaved in Britain. A tough bill has been published to tackle the modern day menace by imposing a sentence of 14 years of imprisonment. The best way to reduce the crime is to disrupt and imprison the organised criminals gangs.[16.12.2013]
Karnatak government is enacting laws which allows it to arrest the striking employees
without arrest warrants! This amounts to murder of democracy and slavery-the legacy-true character of British Raj.[03.12.2013]
An alcoholic from Sultan Pur in Buland Shahr, UP, India allegedly sold his wife for Rs. 2 Lakh to Sohan Pal, Mahender, Ajay, Daljeet and Rammu, who raped her after injecting sedatives at an isolated place for two days repeatedly. She was tortured and thrashed, asking her that she was their slave. The husband belonged to a well to do family, who sold his holdings for the sake of wine. He was given handsome dowry at the time of marriage, 6 years ago.[07.12.2103]
CONTRACTUAL APPOINTMENTS :: AAP's minority government headed by Arvind Kejriwal promised guest-contract teachers to regularise their appointments without giving it a thought and ignorant of the fact that a service selection board also exist for such appointments and there are pending court cases as well. He has assured them to do the needful, but forgets that NDMC, New Delhi too has a large number of such teachers facing the dilemma, in spite of Honourable Delhi High Court's latest orders. He is member of NDMC as well and is capable of implementing the orders, issued by the court, recently.
With the advent of BJP in power some decisions were made and implemented which adversely affected the working of schools and hospitals.
The government and private agencies are exploiting the policy to spoil the education and health services. The main sufferer is the employee, who is not regularised for years. The employer is saving the salary bills in addition to depriving the employee of benefits like security of service, provident fund and pension. One after another expulsion from service leads to the crossing the age of employment in government service. The person feels grossly insecure. Some of them remain unmarried for want of regular permanent job.
India is a country where mixed economy functions. Insecurity leads to resentment and dis satisfaction amongest the unemployed-under employed, added by the corruption at every level of bureaucracy-political set up-governance.
IMMUNE BUREAUCRACY :: The bureaucrats are provided shelter under section 19 and 6(a) so that they do no expose the designs of the illiterate-semi literate, corrupt, criminal minded politicians. If they are touched, they will expose the politicians. Permission is sought to prosecute the corrupt officials under section 197 Cr Pc, which is never granted, except in those cases where is government has an inclination to maligning the opposition.
SHARIAT COURTS :: Supreme Court has ruled that the Shariat courts are illegal. The court decided on a petition by a Delhi-based advocate who challenged parallel religious courts run by institutions like the Darul Qaza and Darul-Iftaa."No religion is allowed to curb anyone's fundamental rights," the court said, adding that the Shariat court can issue a fatwa only if approached willingly, and that too, will not be legally binding.
SHARIAT COURTS :: Supreme Court has ruled that the Shariat courts are illegal. The court decided on a petition by a Delhi-based advocate who challenged parallel religious courts run by institutions like the Darul Qaza and Darul-Iftaa."No religion is allowed to curb anyone's fundamental rights," the court said, adding that the Shariat court can issue a fatwa only if approached willingly, and that too, will not be legally binding.
QUALITIES OF A JUDGE ::
ABSENCE OF GREED
ABSENCE OF ANGER
Political System,
FARSIGHTEDNESS
FEARLESSNESS
FIRMNESS, DETERMINED दृढ़ निश्चयी
INHERITANCE-FROM NOBLE-RESPECTABLE FAMILYINSIGHT
INTUITION
IMPARTIAL-JUST
KNOWLEDGE OF PSYCHOLOGY, SCRIPTURES, RELIGION, TRADITIONS, RITUALS,
MORES
LOGIC, CAPABILITY TO ARGUE, REASON
QUITE, CALM, COMPOSED
MATURE
RATIONAL
REALISTIC
RELIABLE
PATIENCE
PROMPT, QUICK
PRUDENT
SEASONED
STUDIOUS, LEARNED
THOUGHTFUL, विचार शीलता Synthesis-analysis of the situation
TOLERANTRELATED CHAPTERS ::
MANU SMRATI (8) मनु स्मृति: :: अष्टमोSध्याय: santoshkipathshala.blogspot.com