CANCER कैंसर

CANCER कैंसर
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ॐ नमों भगवते सुदर्शन वासुदेवाय, धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय, सकला भय विनाशाय, सर्व रोग निवारणाय, त्रिलोक पठाय,  त्रिलोक लोकनिथाये,  ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा,  ॐ श्री श्री ॐ  औषधा चक्र नारायण स्वाहा
वेद मंत्रों में देव शब्द के प्रयोग द्वारा देवताओं की सामूहिक स्तुति की गई है। रोग मुक्त शतायु जीवन की कामना के साथ उपयुक्त मंत्र अथर्ववेद एवं यजुर्वेद में है। दोनों ही वेदों में तत्संबंधी मंत्र ‘पश्येम शरदः शतम्’ से आरंभ होते हैं।
A gird (criss-cross Lines) found around the termination of the line of Head, below Mercury over Mental Mount of Mars or the juncture of Luna with it, it may foretell Cancer.
कैंसर का सफल इलाज़ :: ऑस्ट्रेलिया से घर लौटा तो पाया कि नौयडा ने प्रदूषण में विश्व-रिकॉर्ड कायम किया है। वहाँ की वायु अत्यधिक स्वच्छ और जल की गुणवत्ता श्रेष्ठतम है। यहाँ पर नलों में आने वाला पानी भी मटियाले रंग का और कभी-कभी तो बदबूदार भी होता है।
20 मई, 2019 को लगभग 11.20 पर पेशाब में खून आ गया।
डॉक्टर ने अनेक टेस्ट कराये, जिनमें खून, पेशाब की जाँच, अल्ट्रा साउंड भी शामिल थे। प्रोस्ट्रेट बढ़ा हुआ पाया गया। PSA 354 था। प्रोस्ट्रेट की जाँच के परिणाम को देखकर Biopsy और PSMA कराया गया, जिसमें फैंफड़े और प्रोस्ट्रेट कैंसर की पुष्टि हुई। PSMA टेस्ट में गैलियम 6 का प्रयोग किया गया।
यह कैंसर की चौथी अवस्था थी। टेस्टिस के ऑपरेशन के लिये मैंने इंकार कर दिया और रेडिएशन थेरपी को भी इनकार किया। 
डॉक्टर ने :-
(1). Injection Pamorelin 3.75 mg.
(2). Tablet Abiraterone Acetate 250 mg, orally, after food, doses 4-0-0 (30 days).
(3). Tablet Wysolone 5 mg orally, after food, doses 1-0-0 (30 days).
लेने को कहा। हर 6 महीने में PSMA टेस्ट होता है और 6 महीने में ही Injection Pamorelin 3.75 mg लगता है।
इनके साथ-साथ आयरन, मल्टी-विटामिन और विटामिन D लेने को भी कहा गया।
Abiraterone Acetate 250 mg का साइड इफ़ेक्ट भी है। इसने दायें घुटने में दर्द पैदा कर दिया।
कैंसर प्रोस्ट्रेट, फैंफड़े, लिम्फ नोड में पाया गया। फैफड़ों में कैल्साइट फार्मेशन भी था।
अब मैं पूरी तरह स्वस्थ हूँ, मगर दवाई जारी रखनी है।
मैंने इनके साथ-साथ गिलोय, काशीफल के बीज़ (Zinc), पपीता और उसके बीज़ (immunity), भाँग (कैंसर की देशी दवा), हरी मिर्च (विटामिन K), नारियल का पानी और उसकी गिरी तथा खाने-सोडे का इस्तेमाल भी किया। कभी कभी रात को दूध में हल्दी मिलाकर भी पी लेता हूँ। लोग तो अनानास लेने की भी  करते हैं। 
तुलसी और अदरक का सेवन मैं हमेशां करता हूँ।
सर्दियों में गज्ज़क, तिल, मूँगफली और च्यवनप्राश का नियमित इस्तेमाल भी करता हूँ। 
प्रातः कालीन भ्रमण (एक घण्टा) और योग (45 मिनट) मेरी आदत है।
इसके इलाज में शुद्ध अचार-विचार भी  ज़रूरी है।
नित्य प्रति ईश्वर आराधना और पूजा-पाठ के साथ-साथ मृत्युञ्जय मन्त्र का दैनिक जाप भी सहायक है।
CANCER IS CURABLE. ONE SHOULD NOT BE AFRAID OF IT.
CANCER IS CURABLE. ONE SHOULD NOT BE AFRAID OF IT.
ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले चिकत्सा जाँच करानी आवश्यक थी। सुबह से पानी काफी कम पीया था। पेशाब में लाली दिखाई दी तो जाँच दुबारा हुई। परिणाम सामान्य बताया गया। वहाँ पर पिंडलियों में दर्द का अहसास हुआ जो कि कुछ दूर चलने से ही ठीक हो जाता था। एक बार साँस लेने में भी दिक्क्त हुई। 2018 के अक्टूबर-नवम्बर में शरीर पर दाने और फफोले (Follicles) हो गये। दवाई लगाने से ये कुछ शान्त हो गए। लगभग दो साल के ऑस्ट्रेलिया प्रवास में मल का रंग कालापन लिये रहा, मगर भारत आने पर यह सुनहरे रंग का हो गया। भारत आने पर नीम की लाल-कोमल पत्तियाँ खाने से Follicles (कोकून, पुटिका, शरीर में स्थित रसस्त्रावी कूप, कूप, कोश, पुटक) काबू में आ गया। 
GANG PRODUCING
FAKE CANCER
MEDICINES
रात में कभी कभी नींद; दिल के तेजी से धड़कने से भी खुली। रात को पेशाब के लिए 2-3 बार उठना पड़ता था। पेशाब में जलन का भी अहसास होता था। मई में ही एक दिन BP 110-220 हो गया। 20 मई, 2019 को लगभग 11.20 पर पेशाब में खून आ गया। इस दौरान हाथ में दूसरी अँगुली (वृहस्पति) के नाखूनों पर सफ़ेद निशान दिखाई दिये। वृहस्पति की अँगुली ने नीचे गाँठ पर दबाब डालने पर दर्द का अनुभव भी हुआ। 

इलाज के लिये कैलाश अस्पताल गए तो डॉक्टर ने अनेक टेस्ट कराये, जिनमें खून, पेशाब की जाँच, अल्ट्रा साउंड भी शामिल थे। प्रोस्ट्रेट बढ़ा हुआ पाया गया। PSA 354 था। प्रोस्ट्रेट की जाँच के परिणाम को देखकर Biopsy और PSMA कराया गया, जिसमें फैंफड़े और प्रोस्ट्रेट कैंसर की पुष्टि हुई। PSMA टेस्ट में गैलियम 6 का प्रयोग किया गया। 
GANG PRODUCING
FAKE CANCER
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कैलाश होस्पिटल NDMC के पैनल पर नहीं है, मगर उसके लिफाफों आदि पर उसे 
NDMC के पैनल पर दिखाया गया है। NDMC की वैब साइट पर भी यह पैनल पर था; मगर फिर भी 8,500 रूपये से ऊपर का भुगतान 
NDMC ने रोक रखा है। 
2018 अक्टूबर-नवम्बर में दिल्ली में प्रदूषण खतरे से कहीं ऊपर था। जनवरी में यहाँ पहुँचे तो भी हालात जस के तस थे। घर में हर स्थान पर धूल की काली परत साफ़ दिखाई। जहाँ हाथ लगाओ वहीँ से हाथों में जलन शुरू। लगभग दो महीने तक यह भोगा। अभी तक भयंकर गर्मी पड़ रही है। दिल्ली का तापमान 48 डिग्री सेन्टीग्रेड तक पहुँच गया। आधा जुलाई चला  गया, मगर बारिश का कहीं अता-पता नहीं है। 
ये सब कुछ ऐसे व्यक्ति को हुआ है, जो बीड़ी, सिगरेट, शराब, माँस-मीट, अण्डा-मछली से कोसों दूर है। नियमित 5-7 किमी घूमना और 25-30 मिनट योगासन भी शामिल हैं। घर में हवा का खुला प्रवाह, धुँआ न होने देना, धूपबत्ती-अगरबत्ती को पूजा के तुरन्त घर से बाहर रखना जीवन शैली की सामान्य प्रक्रिया है। 
परन्तु नौयडा का पानी बर्दाश्त की सीमा से भी कई गुना प्रदूषित है। हवा का प्रदूषण तो दिल्ली से भी कहीं ज्यादा है। 
एक ही स्थान पर कैंसर के इलाज की समुचित व्यवस्था दिल्ली या नौयडा में कहीं पर भी नहीं है। डॉक्टर अपने व्यवहार से कसाई और अस्पताल बूचड़ खाने जैसे नजर आते हैं। कहीं भी मानवता, दया-धर्म दिखाई नहीं देती। मरीज ग्राहक और इलाज (उल्टा-सीधा) उसकी जेब पर निर्भर करता है। डॉक्टर की योग्यता निःसंदेह शक पैदा करती है। बार बार मँहगे-मँहगे टेस्ट, अपनी बारी का इन्तजार, किसी भी अच्छे-भले आदमी को बीमार करने को काफी हैं। 
NDMC-New Delhi, India का चरक पालिका अस्पताल, स्वास्थ्य विभाग, समाज कल्याण विभाग निहायत की काहिल, कामचोर, निकम्मे और असंवेदनशील लोगों से भरे पड़े हैं। न तो दवाई देते हैं और न ही बाज़ार से खरीदने की अनुमति। स्वास्थ्य कार्ड बना हुआ है और पूरी नौकरी के दौरान समाज कल्याण में निरन्तर अपना हिस्सा जमा कराया था। चरक पालिका अस्पताल और समाज कल्याण विभाग के कर्मचारी यह नहीं समझ पाते कि भविष्य में उन्हें भी यही सब कुछ झेलना पड़ेगा। 
धर्म शिला में मात्र एक इंजेकशन लगवाने में सुबह 9 बजे पहुँचने के बावजूद शाम के 4.30 बजना परेशानी की खासी वजह है। एक इंजेक्शन की कीमत 17,000 रूपये और दवाई के 120 गोली के डिब्बे की कीमत 44,000 रूपये है। एक साथ 9 गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। इन गोलियों के अतिरिक्त घातक प्रभाव भी सम्भव हैं। इंजेक्शन दिमाँग में सैक्स होर्मोन्स को नियन्त्रिक करके वीर्य बनने से रोकता है। साथ-साथ एक गोली ऐसे को मनुष्य में हिजङापन पैदा करती है। ऐसा प्रतीत होता है कि कैंसर के ईलाज में यह अनुचित है। ईलाज का उद्देश्य कैंसर कोशिकाओं को नियन्त्रिक करना, फैलने से रोकना और उन्हें नष्ट करना है न कि नपुंसकता उत्पन्न करना।  
कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाला कोशिकाओं का अनियंत्रित विभाजन है। यह शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्सों में फैलता है। सबसे पहले शरीर के किसी एक हिस्से में होने वाले कैंसर को प्राइमरी-मूल ट्यूमर कहते हैं;  जिसके बाद शरीर के दूसरे हिस्सों में होने वाला ट्यूमर मैटास्टेटिक या सेकेंडरी कैंसर कहलाता है। 
मैटास्टेटिक (ठोस ट्यूमर) कैंसर की कोशिकाएं भी प्राइमरी कैंसर के जैसी ही होती हैं, जो कि शरीर के अन्य हिस्सों में फैल चुका होता है। 
कैंसर की 4 मुख्य अवस्थाएं ::
पहली और दूसरी अवस्था में कैंसर का ट्यूमर छोटा होता है और आस-पास के टिश्यूज-ऊतकों की गहराई में नहीं फैलता। 
तीसरी अवस्था में कैंसर विकसित हो चुका होता है। ट्यूमर बड़ा हो चुका होता है और इसके अन्य अंगों में फैलने की संभावना बढ़ जाती है। 
चौथी अवस्था विकसित या मैटास्टेटिक कैंसर है। इसमें कैंसर अपने शुरुआती हिस्से से अन्य अंगों में फैल जाता है।  
कैंसर फैलाव :: यह तीन तरह से शरीर में फैलता है।  (1). डायरेक्ट एक्सटेंशन या इंवेजन, जिसमें प्राइमरी ट्यूमर आस-पास के अंगों और टिश्यूज में फैलता है जैसे प्रोस्टेट कैंसर ब्लैडर तक पहुँच जाता है।(2). लिम्फेटिक सिस्टम में कैंसर की कोशिकाएं प्राइमरी ट्यूमर से टूट कर शरीर के दूसरे अंगों तक चली जाती हैं। लिम्फेटिक सिस्टम टिश्यूज और अंगों का ऐसा समूह है, जो संक्रमण और बीमारियों से लड़ने के लिए कोशिकाएं बनाकर इनका संग्रह करता है। (3). कैंसर खून से भी फैलता है। इसे हीमेटोजिनस स्प्रैड कहा जाता है।इसमें कैंसर की कोशिकाएं प्राइमरी ट्यूमर से टूट कर खून में आ जाती हैं और खून के साथ शरीर के दूसरे हिस्सों तक पहुँच जाती हैं। 
कैंसर के आम लक्षण :: वजन में कमी, बुखार, भूख में कमी, हड्डियों में दर्द, खाँसी या मुँह से खून आना। 
कैंसर के आम प्रकार :: भारत में सबसे ज्यादा मुँह, स्तन, सर्वाइकल, फेफड़ों और प्रोस्टेट का कैंसर देखने को मिलता है। जिनमें 60 फीसदी मामले मुँह, स्तन एवं गर्भाशय कैंसर के होते हैं। यद्यपि इनका निदान सरल है, लेकिन इलाज सिर्फ शुरुआती अवस्था में ही संभव है।
भारत में मुँह के कैंसर के कारण सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, जिसका मुख्य कारण धूम्रपान, गुटका खाना और तम्बाकू हैं।
कैन्सर, रोगों का एक वर्ग है जिसमें काशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि के साथ ही शरीर के दूसरे अंगों में भी फैलने और विनाश करने की क्षमता होती है। अधिकतर (90-95 प्रतिशत) कैन्सर का कारण वातावरण होता है। शेष (5-10 प्रतिशत) आनुवंशिकी से निर्धारित होते हैं। ज्यादातार कैन्सर को प्रारम्भिक अवस्था में ही उसके चिन्ह एवं लक्षण या स्क्रीनिंग द्वारा पहचाना जा सकता है। चिकित्सीय परीक्षण जैसे रक्त जाँच, एक्स-रे, सी.टी. स्कैन, एण्डोस्कोपी तथा बायोप्सी प्रमुख हैं। कुछ कैन्सर की रोकथाम उसको उत्पन्न करने वाले जोखिम कारकों जैसे, तम्बाकू चबाना, मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, मदिरापान, यौन सम्बन्धित रोगों आदि से बचाव करके किया जा सकता है।
A group of diseases involving abnormal cell growth with the potential to invade or spread to other parts of the body, is known as cancer. Majority (90-95%) of cancers are due to environmental factors. Remaining (5-10%) is due to inherited factors. Most of the cancers can be recognised at early stage due to the appearance of signs and symptoms or through screening. Investigations include blood tests, CT scans, PSMA whole body scan, endoscopy and biopsy. Some cancers can be prevented by avoiding risk factors as tobacco chewing, obesity, physical inactivity, alcohol intake and sexually transmitted diseases etc.
प्रजनन के लिये माँ के 23 और पिता के भी 23 क्रोमोज़ोम्स क्रिया करके शिशु की उत्पत्ति करते हैं। प्रत्येक क्रोमोसोम पर लाखों जींस होते हैं। इनमें कैंसर के जींस मुखर और दबे-ढँके हुए भी हो सकते हैं। अगर माता-पिता दोनों के जींस में कैंसर का जीन मौजद है तो कैंसर की पूरी-पूरी संभावना हो सकती है। 
अर्बुद (ट्यूमर) कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि है जिससे एक परावर्तित (ट्रांसफॉर्मड) कोशिकाओं का समूह बन जाता है। जिसे गांठ (लम्प) कहा जाता है। इसके बनने के प्रमुख कारण होते हैं :- कोशिका विभाजन को नियंत्रित करने वाली प्रक्रिया का समापन तथा उसके अन्दर उपस्थित जीन्स (आनुवंशिकता की इकाई) में किन्हीं लक्षणों के प्रति जीन्स का उत्परिवर्तन (जैनेटिक म्यूटेशन)।
कैंसर को अर्बुद अथवा कर्क रोग के नाम से भी जाना जाता है। इसके इलाज़ के लिये कचनार की छाल सेहुंड की दूध में भावना देकर रोगी को खिलायें।
भावना देना :: किसी द्रव्य के रस में उसी द्रव्य के चूर्ण को गीला करके सुखाना। जितनी भावना देना होता है, उतनी ही बार चूर्ण को उसी द्रव्य के रस में गीला करके सुखाते हैं।
अर्बुद के प्रकार :: सुयम अर्बुद (बिनाइन) जो अधिकतर परिसम्पुटित (इनकेप्स्लेटेड) होते हैं व एक ही स्थान तक सीमित रहते हैं। दूसरे अर्बुद, दुर्दम अर्बुद (मैलिगनेन्ट) कहलाते हैं जिनमें कोशिकायें परिसम्पुटित न होने के कारण रक्त परिवहन के साथ-साथ शरीर के दूसरे भागों में जाकर स्थापित हो जाती हैं (इस प्रक्रिया को स्थलान्तरण या मेटास्टैसिस कहा जाता है)। दुर्दम कोशिकायें (कैन्सरस सेल्स) अपनी सतह पर लगे हुए पदार्थों के कारण विशेष गुणों से युक्त होती हैं साथ ही इनमें एक विशेष घटक (रिसेप्टर) भी होता है जो किसी भी औषधि या हार्मोन के साथ संयुक्त होकर कोशिका की कार्यिकी को बदल देता है। इस कारणवश इन कोशिकाओं में स्वतःस्रावी कारक (ऑटोक्राइन फैक्टर्स) पैदा हो जाते हैं जो उनको विशेष प्रतिजनीय गुण (एण्टीजीनिक प्रॉपर्टी) से युक्त कर देते हैं। हमारे शरीर के प्रतिरोध क्षमता तंत्र (इम्यून सिस्टम) द्वारा इस प्रतिरोधी उद्दीपों के संदर्भ में दुर्दम कोशिकाओं के प्रतिजनों के लिये प्रतिकाय (एण्टी बॉडीज) तो बनाये जाते हैं परन्तु वे इनकी प्रक्रिया को नजर अन्दाज (भेदकर) करते हुए खूब वृद्धि करने में सक्षम होती हैं, जो उनकी सतह पर पाये जाने वाले प्रतिजनों में निरन्तर/सतत परिवर्तनों के होते रहने के कारण हुआ करता है। इस प्रकार दुर्दम कोशिकायें शरीर की प्रतिरोध क्षमता वाली कोशिकाओं को भ्रमित करके उन्हें अपना कार्य नहीं करने देती हैं। मनुष्य के शरीर की सभी कोशिकायें अपनी प्रकृति के आधार पर सदैव अपनी-अपनी प्रकार की एक जैसी ही दिखती हैं तथा उनमें अभ्रंशीय (डीजेनेरेटिव) व प्रतिक्रमणीय (रीग्रेसिव) परिवर्तन बहुत कम दिखाई देते हैं। इसके साथ-साथ इन कोशिकाओं में विक्षेपण/स्थलान्तरण (मेटास्टैसिस) की प्रवृत्ति भी नहीं दिखाई देती हैं।
कैंसर शरीर के किसी भाग के ऊतक में उत्पन्न हो सकता है। ऊतकों की प्रकृति के आधार पर इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है :-
(1). उपकलार्बुद (कार्सिनोमा) :- इस प्रकार के दुर्दम अर्बुद उपकला की कोशिकाओं में बनते हैं।
(2). ग्रन्थिलार्बुद (एडीनो कार्सिनोमा) :- ये अधिकतर दुर्दम होते हैं तथा ग्रन्थिल ऊताकों में उपस्थित कोशिकाओं में बनते हैं।
(3). लसिकार्बुद (लिम्फोमा) :- शरीर में लसीकाम ऊतक से बने हुए कैन्सर जैसे - हॉजकिन्स डिजीज।
(4). लसिका सार्कोमा (लिम्फो सार्कोमा) :- अधिकांश दुर्दम अर्बुद जो लसिकाम ऊतक में बनते हैं जैसे- लिम्फोसर्कोमा ऑफ इन्टस्टाइन।
(5). सार्काबुद (सार्कोमा) :- संयोजी ऊतक (कनेक्टिव टिश्यू) जैसे :- पेशियों, हड्डियों आदि में बनने वाले अधिकांश दुर्दम अर्बुद जो मूत्राशय, वृक्कों, यकृत, प्लीहा, फेफड़ों आदि को प्रभावित कर सकते हैं।
(6). हरितार्बुद/तीव्रश्वेत रक्तता (ल्यूकीमिया) :- अस्थिमज्जा व रक्त में उत्पन्न लसिकाभ (लिम्फ्वाइड) या रक्तोत्पादक (हीमैप्वाइटिक) ऊतक में पाया जाने वाला दुर्दम अर्बुद।
(7). हिमैन्जियोसार्कोमा :- रक्त वाहिनियों का दुर्दम अर्बुद जो अन्तः कला (इन्डोथीलियम) एवं तन्तुप्रस (फाइब्रोब्लास्ट) ऊतक का बना होता है।
(8). एमीलोब्लास्टोमा :- जबड़े विशेषकर निचले जबड़े का अर्बुद जो दुर्दम भी हो सकता है तथा इसमें इनेमेल की विशिष्ट होती है।
(9). यकृतार्बुद (हिपैटोमा) :- यकृत में पाया जाने वाला एक दुर्दम अर्बुद।
(10). हीमैन्जियोब्लास्टोमा (रक्त वाहिका प्रस अर्बुद) :- मस्तिष्क का एक कोशिका- रक्त वाहिका अर्बुद जो अधिकतर अनुमस्तिष्क में होता है।
प्रारम्भिक लक्षण :: शरीर में उत्पन्न कोई परिवर्तन-असामान्यता जो छः सप्ताह से ज्यादा अवधि की हो गई हो तथा इस दौरान उसमें गिरावट की स्थिति नहीं दिखाई पड़ती हो तो उसकी तुरंत जाँच करवाना आवश्यक है। इसकी जाँच व उपचार जितना ही जल्दी आरम्भ हो जाये, परिणाम उतने ही अच्छे होने की संभावना है। 
(1). कोई गांठ या उभार जो शरीर में अचानक ही दिखाई पड़ने लगे।
(2). घाव-जख्म, विशेषकर ऐसा जिसके किनारे उठे हों तथा बाहर की ओर उल्टे हों, जिससे जख्म का रूप गोभी के फल जैसा दिखता हो।
(3). बिना किसी विकृति के शरीर से रक्तस्राव या तरल पदार्थ का निकलना।
(4). त्वचा में कोई भी परिवर्तन का दिखाई देना।
(5). खाँसी आना तथा गले की आवाज का कर्कश होना। 
(6). मल के स्वरूप व प्रकृति में परिवर्तन जैसे गोल-गोल पिण्डों के रूप में या उसका रंग सामान्य से लाल कालापन लिये होना।
(7). बिना कारण या विकृति के अचानक वजन का कम होने लगना (लगभग 7-8 प्रतिशत तक एक माह में)।
(8). अकारण या बिना किसी विकृति के सिर में दर्द होना।
इसका एक बड़ा कारण जीवनशैली है। इसको सुचारु रखकर इस रोग से बहुत हद तक छुटकारा मिल सकता है। कैंसर 200 से भी ज़्यादा प्रकार का हो सकता है। 
(1). फेफड़ों का कैन्सर :- धूम्रपान (किसी भी रूप में) इसका प्रमुख कारक हो सकता है। यह आवश्यक नहीं आप स्वयं धूम्रपान नहीं करते परन्तु फिर भी दूसरों के धूम्रपान से निकले धुएँ को सांस में ले जाने के कारण (पैसिव स्मोकर्स) आपको अधिक खतरा हो सकता है। अतः तम्बाकू के धुएँ से बचाव द्वारा इसके खतरे को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। इस दिशा में मीडिया द्वारा ‘‘तम्बाकू से कैन्सर हो सकता है जो जानलेवा है’’ जैसे विज्ञापनों का निरन्तर दिखाया जाना हो सकता है। जनचेतना को विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सके ऐसा विश्वास किया जा सकता है। इसके प्रमुख लक्षण खांसी, बलगम (रक्त की धारियों में रंजित), आवाज में कर्कशता (हार्शनेस) वजन का गिरना, सीने में दर्द आदि हो सकते हैं। यहाँ यह नितान्त आवश्यक है कि निदानकर्ता को तपेदिक व कैन्सर में विभेद का अच्छा ज्ञान हो क्योंकि ये लक्षण तपेदिक में भी दिखाई देते हैं तथा उसका उपचार यदि जल्दबाजी में शुरू हो गया हो तो दिक्कत आ सकती है। अतः उसके निदान हेतु एक्सरे, सी.टी. स्कैन व जीवोति परीक्षण (बायोप्सी) का प्रयोग होता है।
(2). मुँह का कैन्सर :- भारत वर्ष में इसके रोगियों की संख्या अधिकतम देखी गई है, इनमें से 70% को तब ज्ञात होता है जब वे स्टेज थ्री व स्टेज फोर तक पहुँच जाते हैं। मुँह का कैन्सर जीवन शैली से सम्बद्ध होता है तथा इसका प्रमुख कारण तम्बाकू का सेवन है। इसके अतिरिक्त नियमित व अत्यधिक मद्यपान भी इसका कारक हो सकता है। कभी-कभी दाँतों की धार अधिक पैनी हो जाती है जिससे मुँह में घाव आदि हो जाने से भी यह रोग हो सकता है। इसके प्रमुख लक्षण मुँह में घाव/जख्म का होना (जो 3 सप्ताह से ऊपर का हो गया हो) मुँह में लाल या श्वेत रंग दाग/धब्बा/पैच दिखना, मुँह खोलने में तकलीफ होना तथा गर्दन में दर्द आदि होते हैं।
(3). पौरुष ग्रन्थि (प्रोस्टेट ग्लैंड) कैन्सर :- अधिकतर यह 60 वर्ष के ऊपर के पुरुषों में होता है पर कभी-कभी 50 वर्ष व बहुत कम 40-50 वर्ष के पुरुषों में भी देखा गया है। इसके रोगियों में तेजी से पेशाब लगना, पेशाब तुरन्त ही करने की आवश्यकता (ऐसा न करने पर निकल जाने का भय हो सकता या निकल भी सकती है), पेशाब के साथ दर्द का अनुभव, पेशाब की धार का धीमा रहना तथा बूँद-बूँद बहुत समय तक होते रहना (टपकना) जिससे मूत्राशय पूरी तरह खाली नहीं हो पाता (कम्प्लीट वॉयडिंग) आदि प्रमुख लक्षण देखे जाते हैं। निदान हेतु पी.एस.ए. टेस्ट (प्रोस्टेट सिक्रिटिंग एन्टीजेन टेस्ट) के साथ एम.आर.आई. (मैग्नेटिक रेजोनेन्स इमेजिंग) व जीवोति परीक्षण (बायोप्सी) का प्रयोग प्रचलित है।
(4). स्तन कैन्सर :- टाटा मेमोरियल सेन्टर, मुंबई के आंकड़ों के अनुसार शहरीय भारत में 22 में से 1 महिला को उसके जीवन में स्तन कैन्सर हो सकता है। इसका शिकार सबसे अधिक 43-46 वर्ष की महिलायें होती देखी गई हैं परन्तु, विशेषज्ञों ने 20-30 वर्ष की महिलाओं में भी इसे होते देखा है। इसके लिये आवश्यक है स्वतः स्तन परीक्षण (वी.एस.ई./ब्रेस्ट सेल्फ इग्जामिनेशन) जो महिलाओं को 20 वर्ष की आयु के पश्चात नियमित रूप से करना चाहिये जिससे उनमें होने वाले परिवर्तनों जैसे लाली, गांठ, तरल पदार्थ निकलना आदि को ध्यान से देखना चाहिये। स्वतः परीक्षण के बाद 40 वर्ष की आयु तक नियमित समय पर किसी स्त्री-रोग विशेषज्ञ (गाइनोकोलॉजिस्ट) से परीक्षण करवाना चाहिये। निदान के लिये अल्ट्रासाउन्ड (स्तन व गांठ विशेषकर), एक्स-रे परीक्षण (मैमोग्राफी) के साथ-साथ एम.आर.आई. कराना चाहिये तथा आवश्यक हो तो एफ.एन.ए.सी. विधि द्वारा विकृति विज्ञानी जाँच के साथ मिलाकर सारी चीजों के संदर्भ में देखना चाहिये। यहाँ यह भी आवश्यक बताया जाता है कि जाँच करने की आवश्यकता है कि इस गांठ की कोशिकायें इस्ट्रोजन के प्रति संवेदी तो नहीं हैं (क्योंकि इससे हार्मोन चिकित्सा कारगर हो सकती है)। अतः कुछ नये टेस्ट जैसे इस्ट्रोजन रिसेप्टर ऐसे, प्रोजेस्ट्रॉन रिसेप्टर ऐसे, एच.ई.आर. 2 (ह्यूमन इपीडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर 2, जो कैन्सर की कोशिकाओं की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है) भी निदान व पुष्टि हेतु उपयोग में लाये जा रहे हैं।
(5). गर्भाशय-ग्रीवा (सर्विक्स) का कैन्सर (सर्वाइकल कैन्सर) :- यह कैन्सर धीरे-धीरे बढ़ने वाला होता है जो कई वर्षों (15-20) में विकसित होता गया है। इस कैन्सर का कारक ह्यूमन पैपीलोमा वायरस (एच.पी.वी.) जो संक्रमण द्वारा संसर्ग के दौरान या फिर अन्य कारकों जैसे पति-पत्नी दोनों ही द्वारा अपने जननांगों को ठीक से स्वच्छ न रखना। इसका सबसे अधिक संक्रमण अक्सर 15 वर्ष या कम आयु में प्रथम लैंगिक संसर्ग, एक से अधिक लोगों से संसर्ग (जो गर्भाशय ग्रीवा को क्षति पहुँचाकर उसे संक्रमण हेतु अधिक सुग्राह/गृहणशील/ससेप्टिबिल बना देता है। इसके अतिरिक्त एच.आई.वी. संक्रमण, हर्पीज सिम्पलेक्स, क्लेमाइडिया व गोनोरिया भी इसके कारक हो सकते हैं। इसका निदान लिक्विड बेस्ड पैप टेस्ट (उचित होगा यदि एच.आई.वी. के टेस्ट के साथ किया जाय) द्वारा किया जाता है जिसे जीवोति परीक्षण (बायोप्सी) द्वारा सुनिश्चित भी कर लेना आवश्यक है। प्रारम्भिक अवस्था में इस कैन्सर के रोगी में कोई स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते, परन्तु बाद की अवस्था में संसर्ग के दौरान पीड़ा होना, रक्तस्राव, अनावश्यक तरल स्राव योनि मार्ग से होना तथा लम्बे समय से चला आ रहा-जीर्ण (क्रॉनिक) कमर दर्द आदि लक्षण देखे जा सकते हैं।
(6). अण्डाशयी कैन्सर (ओवरियन कैन्सर) :- महिलाओं में अण्डाशयों की स्थिति बहुत अन्दर होने के कारण उनका भौतिक परीक्षण सरलता से नहीं किया जा सकता अतः इस कैन्सर का पता काफी अग्रिम (एडवान्स्ड) अवस्था में ही चल पाता है। दसियों वर्षों के अनुसंधानों के बाद आज भी यह जानकारी भलीभाँति उपलब्ध नहीं हो सकी है कि अण्डाशयी कैन्सर क्यों होते हैं? इसके प्रमुख लक्षण पेट फूलना, बार-बार पेशाब लगना उदरशूल, रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव, भूख का न लगना, मूत्राशय से रक्त स्राव तथा पेट में गैस भर जाना आदि देखे गये हैं। श्रोणीय भाग का परीक्षण, ट्रान्सवजाइनल सोनोग्राफी तथा सी ए-125 के लिये रक्त परीक्षण द्वारा इसका निदान किया जा सकता है (विशेषकर उन महिलाओं में जिनके परिवार में इसका पूर्व इतिहास रहा हो)।
चिकित्सा-इलाज :: 
(1). शल्य चिकित्सा :- इस विधि द्वारा कैन्सर से प्रभावित भाग को काटकर शरीर से अलग करके निकाल दिया जाता है। इसका प्रयोग स्तन, बृहदांत्र, मलाशय, फेफड़ों, आमाशय तथा गर्भाशय आदि के कैन्सर हेतु किया जाता है। अर्बुद निकालने के साथ-साथ प्रभावित अंग का संधान/क्षति-पूर्ति भी की जाती है। कभी-कभी अर्बुद के साथ-साथ स्वस्थ ऊतक को भी निकाला जा सकता है जैसे स्तन अपनयनी शल्य (मैस्टेकटॉमी)।
कोलासबर ऑफ़ ह्यूमन पार्ट्स नामक कम्पनी के अनुसार मानव अंगो के कानूनन प्रत्यारोपण के अंतर्गत अन्डकोशों के प्रत्यारोपण का खर्च 40 हज़ार डॉलर है। एक अण्डकोष की कीमत 20 हज़ार डॉलर है।
(2). विकिरण चिकित्सा :- इस विधि में कैन्सर को जलाने के लिये एक्स-रे या अन्य रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे कोबाल्ट60 रेडियम आदि की विकिरणों का उपयोग किया जाता है। इस विधि का प्रयोग सामान्यतः मूत्राशय, गर्भाशय-ग्रीवा, त्वचा, ग्रीवा व सिर आदि के कैन्सर की चिकित्सा हेतु किया जाता है परन्तु यह न समझा जाय कि अन्य प्रकार के कैन्सर का इलाज में इसका उपयोग नहीं होता। विकिरण के प्रभाव से प्रभावित ऊतक के साथ-साथ सामान्य ऊतक की कोशिकाएँ भी मर जाती हैं। अतः इसके प्रयोगकर्ताओं को विशेषज्ञ, अनुभवी तथा अत्यधिक सतर्क होना अति आवश्यक है। आधुनिक संयंत्र जैसे सुपरवोल्टेज एक्स-रे, कोबाल्ट बम, लीनियर एक्सीलिरेटर तथा साइक्लोट्रॉन आदि कारगर सिद्ध हुए हैं जिनका उपयोग सिर, ग्रीवा, स्तन, ग्रसनी, फेफड़ों, गर्भाशय ग्रीवा, फेफड़ों तथा पौरुष ग्रन्थि के कैन्सर की चिकित्सा हेतु किया जाता है।
(3). औषधियों द्वारा :- इसे रासायनिक साधन चिकित्सा (कीमोथिरेपी) भी कहा जाता है। लगभग 50 से ऊपर औषधियों का प्रयोग तीव्रश्वेत रक्तता (ल्यूकीमिया), लसीकार्बुद, वृषण कैन्सर आदि की चिकित्सा हेतु किया जा रहा है। इन औषधियों का निर्माण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है कि वे कैन्सर कोशिकाओं को तो अधिक परन्तु सामान्य कोशिकाओं को कम से कम प्रभावित करें। ये सारी औषधियाँ अत्यधिक विषैली होती हैं तथा इनके अनेक प्रकार के अनुषंगी प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) जैसे उल्टी आना, बालों का गिर जाना, संक्रमण के प्रति अधिक सुग्राह्यता। आजकल कई औषधियों को मिलाकर प्रयोग किया जाता है जिससे अनुषंगी प्रभावों को कम किया जा सके। कैन्सर चिकित्सा में औषधियों के संदर्भ में अत्याधुनिक अनुसंधान निम्नलिखित दिशा में किये जा रहे हैं-
(3.1). बायो रेसपॉन्स मॉडीफायर थिरेपी :- ये वे पदार्थ हैं जो शरीर के प्रतिरोधी क्षमता तंत्र को उत्तेजित करके कैन्सर कोशिकाओं को नष्ट करने की दिशा में कार्य करते हैं। इनका निर्माण प्रयोगशालाओं में जैवप्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी), आण्विक जीव विज्ञान (मॉलिक्यूलर बायोलॉजी) की विधियों द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ ;- इन्टरफेरॉन, इन्टरल्यूकीन-2 तथा मोनो क्लोनल प्रतिकाय (मोनोक्लोलन एण्टी बॉडीज)। जी.एम.-सी.डी.एफ. प्रोटीन बनाई गई है जो श्वेत कणिकाओं (डब्ल्यू.बी.सी.) की संख्या में वृद्धि करती हैं तथा उन रोगियों के लिये लाभदायक हैं जिन्हें श्वेत कणिकाओं को नष्ट करने वाली औषधियाँ दी जाती है।
(3.2). डिफरेन्शियेटिंग एजेन्ट्स :- ये एक नई श्रेणी की औषधियाँ बनाई जाती हैं जो कैन्सर वाली कोशिकाओं को सामान्य कोशिकाओं में परिवर्तित कर देती हैं। रीटिनॉयड्स नामक इस प्रकार की औषधि का प्रयोग तीव्रश्वेत रक्तता, गर्भाशय ग्रीवा, त्वचा आदि के कैन्सर के उपचार हेतु किया जा रहा है।
(3.3). रोगक्षमता विज्ञान (इम्यूनोलॉजी) :- शोध द्वारा पता लगाया गया है कि अनेक कैन्सर कोशिकाओं में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ा देते हैं जिससे कैन्सर से बचाव संभव हो सकता है।
(3.4). पोषण :- विटामिन ए व सी की भारी मात्रा प्रयोगशाला में जन्तुओं में कैंसर को रोकती हुई (अध्ययनों के दौरान) देखी गयी है। कुछ भोज्य पदार्थ जैसे- गोभी, बंधा, पालक, गाजर, फल, आटे की ब्रेड, अनाज, सी-फूड कैन्सर को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। कम वसा का सेवन भी कैन्सर को रोकता देखा गया है। (इससे अधिक औषधियों पर चर्चा लेखक के चिकित्साशास्त्री न होने के कारण अधिकार क्षेत्र के बाहर है)।
कैन्सर से बचाव ::  यद्यपि यह बहुत सी कठिन बात है कि कैन्सर की रोकथाम के बारे में कुछ कहा जा सके फिर भी कई प्रयास इस दिशा में किये जा रहे हैं। मोटे तौर पर निम्नलिखित निर्देश इसके खतरे से बचाव में संभवतः सहायक सिद्ध हो सकते हैं, ऐसा अनेक वैज्ञानिकों का मत है।
(1). नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम, जिस रूप में आप कर सकें, अवश्य करें।
(2). वसायुक्त भोजन जैसे मक्खन, डेरी उत्पादन कम मात्रा में ही लें।
(3). अपने को यथासंभव पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावायलेट रेंज) से बचा कर रखें।
(4). धूम्रपान संभव हो तो न करें, यदि करते हों तो कृपया ऐसे स्थान पर करें जिससे दूसरों की सांस में उसका धुआँ न जाये।
(5). मद्यपान में यथासम्भव कटौती करें, यदि मद्यपान न करें तो बेहतर होगा।
(6). स्त्रियाँ 50 वर्ष की उम्र के पश्चात गर्भाशय-ग्रीवा का नियमित परीक्षण किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से 3-5 वर्ष में अवश्य करायें।
(7). स्वतः स्तन परीक्षण नियमित रूप से करें तथा गाँठ, स्राव आदि की स्थिति देखते ही स्त्रीरोग विशेषज्ञ से सलाह लें।
(8). स्वस्थ भोज्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियाँ आदि प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें।
(9). स्त्रियाँ सर्वाइकल, स्तन तथा अंडाशयी कैन्सर से बचाव हेतु कम से कम दो वर्ष तक स्तनपान अवश्य करायें, क्योंकि अध्ययनों से पता चलता है कि जो महिलाएँ अपने बच्चों को दो वर्षों तक स्तनपान कराती हैं उनमें स्तन कैन्सर की संभावना 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। साथ ही 30 वर्ष की उम्र के पूर्व बच्चे पैदा कर लेने पर भी स्तन कैन्सर का खतरा कम हो सकता है।
(10). अधिक पानी पी या करें जिससे मूत्राशय के कैन्सर की संभावना कम हो जाती है। कम से कम 2 लीटर पानी रोज पीना आवश्यक है।
(11). मोटापे को न आने दें तो ज्यादा बेहतर होगा अतः अपने भोजन, क्रियाकलापों, व्यायाम आदि द्वारा यह प्रयास करें कि आपका बेसल मेटाबोलिक इन्डेक्स (बी.एम.आई.) 18.5-252 किलोग्राम/मीटर के बीच रहे।
(12). ऐसा भी अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि सेलफोन का कम समय तक ही प्रयोग किया करें जिससे सिर के कैन्सर से बचा जा सके या फिर उसे स्पीकर मोड पर अथवा ईयरफोन पर रखकर सिर से थोड़ी दूर रखें।
CHEMOTHERAPY-HORMONAL THERAPY ::
FIRST MONTH-CYCLE ONE:- (1). Injection Pamorelin 3.75 mg day one.
(2). Tablet Calutide 50 mg, orally, after food, doses 1-0-0 (Stop after 30 days).
(3). Capsule Razo D, orally, prior to breakfast, doses 1-0-0 (7 days).
(4). Tablet Wysolone 5 mg orally, after food, doses 1-0-0 (30 days).
(5). Tablet Abiraterone Acetate 250 mg, orally, after food, doses 4-0-0 (30 days).
(6). Capsule Becosule, orally, after food, doses, 0-1-0 (30 days).
(7). Capsule Dexorange doses orally, after food doses 0-1-0 (30 days).
(8). Syrup Duphalac orally, at bed time, doses 0-0-20 ml (SOS for constipation).
पहले महीने की दवाई का प्रभाव :: सिर में जहाँ-तहाँ दस-से बारह सैकेंड तक दर्द होता और वो भी ठीक होता चला गया। नाक से दो बार खून आया, गर्दन में बाँई ओर एक गाँठ महसूस हुई और वो भी 2-3 दिन में घुल गई। दो बार ऐसा हुआ कि दिमाँग अचानक खाली हो गया और क्या करना है, कुछ भी याद नहीं रहा। दूसरे महीने में अचानक एक दिन दोनों हाथों की सबसे छोटी और उससे अगली अँगुली-अनामिका बीच में सूज गईं; दर्द भी हुआ, मगर 2-3 दिन  में वह भी ठीक हो गया। भारी काम करना थोड़ा भरी पड़ गया क्योकि उससे कमर में दर्द हो गया जो कि लगभग 10 दिनों तक रहा। यह दो बार हुआ। 
SECOND MONTH :-
(1). Injection Pamorelin 3.75 mg.
(2). Tablet Abiraterone Acetate 250 mg, orally, after food, doses 4-0-0 (30 days).
(3). Tablet Wysolone 5 mg orally, after food, doses 1-0-0 (30 days).
THIRD MONTH :- Same as above.
The Hormone therapy is generating impotency. Initially there was mild pain in the head soon after taking medicines for 4-5 days. A small over the neck and appeared and dissolved within 2-3 days. The doctor had said that since the cancer had spreaded to lungs, there was no possibility for prostrate operation which involved cutting-removing of testicles. The PSA has come down from 354 to 21.
My son took me to Apollo hospital, Delhi, on August 16, 2019, where the doctor asked me to know from the doctor at Dharm Shila to say whether the cancer in lung is extension of prostrate cancer or some thing else. He is against radiation in my case. 
On 24 August, I felt extreme pain in the right shoulder bone and the right hip bone. I opted for infra red radiation lamp at my home and the pain was reduced considerably. i used an ointment as well.
I feel that castration-cutting of testicles is wrong. Use of injections for suppressing hormones too is unwise and not essential.The doctors are acting just like a car-motor mechanic.There is no suitable allopathic medicine which can attack the cancerous cells straight, so far.
My son travelled from Sydney to see the progress of the treatment availed by me. We went to Dharm Shila at the appointed time on August, 29. The doctor appeared tired. When my son asked him about the treatment, suddenly he became rude and said that he had no time to answer my son's questions. The doctor called KMP seems to have super superfluous knowledge. The doctors at Charak and NDMC head quarters straight way, rejected cutting of testes. The doctor KS at Dharm Shila straight way said it was not essential. The doctor at Apollo said that removal of testicles was not needed. He opined that radiation would be counter productive. But all of them agreed with the line of treatment and the medicines.
Dharm Shila cancer Hospital and its doctors are praiseworthy.

DHARM SHIELA
CANCER HOSPITAL
VASUNDRA
DELHI

Dr.
K.M.Parthasarthy

Dr.
K.M.Parthasarthy

The doctor stressed over cutting the testicles forgetting that the cancer has reached the lungs. He stressed that the people do not want the testicles to be cut, attaching it their pride.
FORTH MONTH :: 
BP :: 70-110, (80-120)
SUGAR :: 97.3, (70-140)
PSA :: 0.08, (0-4)
PULSE :: 68-74, (72)
Oxygen level :: Normal.
Injection Pamorelin :: 11.25 mg. This is for 3 months duration-i.e., no injection for next 3 months.
Tablet Wysolone :: 5 mg orally, after food, doses 1-0-0 (30 days).
Tablet Abiraterone Acetate :: 250 mg, orally, after food, doses 4-0-0 (30 days).
Capsule Becosule :: orally, after food, doses, 0-1-0 (30 days).
Capsule Dexorange :: doses orally, after food doses 0-1-0 (30 days).
Extreme pain was experienced last week, over the right hip and the back bone.
Having subjected me to numerous tests, the doctor-KMP did not care to see the reports even once. He did not care to furnish the summery even after subjecting to wait for 2-3 hours. He is stressing over hormone tests and Radiation Therapy, which I do not want to undergo, due to the opinion of other doctors, including one from Apollo-Delhi.
आयुर्वेद के चिकित्सक ने इस महीने कचनार गुग्गल बटी के साथ Himplasia दिया है।
Himalay Himplasia Tablet (हिमालया हिमप्लेसिया टैबलेट) का प्रयोग निम्नलिखित बीमारियों, स्थितियों और लक्षणों के उपचार, नियंत्रण, रोकथाम और सुधार के लिए किया जाता है :- जनन मूत्रीय पथ के विकार, यौन इच्छा को बढ़ाना, मूत्राधिक्य, यौन समस्याएँ, यूरोलिथिएसिस, कैंसर, गुर्दे की पथरीयाँ, उच्च रक्त चाप, गले में ख़राश, दस्त, पेचिश, बृहदांत्रशोथ, जठर-संबंधी समस्याएँ, दमा, खांसी, प्रदर, कुष्ठ रोग, प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार, मधुमेह, लिपिड के उच्च स्तर, यकृत संबंधी विषाक्तता, सूजन, दर्द, माँस पेशी की ऐंठन। 
FIFTH MONTH :: 
B.P. :: 70-140, (80-120).
PULSE :: 72, (72).
TESTOSTERONE, TOTAL SERUM :: < 7.00, (86-788).
SUGAR :: 91, (70-140).
Next injection :: Pamorelin 11.25, after 3 months in January.
Tablet Wysolone :: 5 mg orally, after food, doses 1-0-0 (30 days).
Tablet Abiraterone Acetate :: 250 mg, orally, after food, doses 4-0-0 (30 days).
Capsule Becosule :: orally, after food, doses, 0-1-0 (30 days).
Capsule Dexorange :: doses orally, after food doses 0-1-0 (30 days).
Follow up with CBC, RFT, S.PSA, PSMA in December.
MEN OVER 40 MAY SUFFER FROM PROSTATE CANCER :- This is basically a problem associated with Enlarged Prostate. Diet is the most important 
Everyone has a pair of kidneys. The job of the kidney is to remove waste. Everyday the blood passes through the kidney several times to be filtered. As the blood is filtered, urine is formed and stored in a temporary storage tank called the urinary bladder.
If there were to be no urinary bladder, as a man walks on the road, urine will be dropping.
The urinary bladder functions as a overhead storage tank. It is connected to the tip of the penis through a thin pipe called the urethra. Just below the bladder and surrounding the urethra is a little organ called the prostate gland.
The prostate gland is the size of a walnut and weighs about 20 gm. Its job is to make the seminal fluid which is stored in the seminal vesicle. During sexual intercourse, seminal fluid comes down the urethra and mixes with the sperms produced in the testicles to form the semen. So, semen technically is not sperm. It is a mixture of sperm & seminal fluid. The seminal fluid lubricates the sperm.
After age 40, for reasons that may be hormonal, the prostate gland begins to enlarge. From 20 grams it may grow to almost 100 grams. As it enlarges, it squeezes the urethra and the man begins to notice changes in the way he urinates.
During this stage one is not able to pass urine normally. There is etching-pain while urinating. Irregular urine. The flow is irregular. The urine may come out drop by drop (not in this case)
There are 2 valves that must open to urinate :- the internal and external sphincters. Both open but because of obstructions in the urethra, one has to wait longer for the flow to start.
There is the feeling-sensation immediately after urinating that there is still some more urine has to be passed.
As all these things happen, the bladder begins to work harder to compensate for the obstruction in the urethra. The frequency of urination goes up. Urgency sets in. Sometimes one has to practically run into the toilet. Nocturia (overproduction of urine only at night i.e., nocturnal polyuria), producing more urine than the bladder can hold throughout the night (low nocturnal bladder capacity), also becomes common. One wakes up more than 2 times at night to urinate. 
The capacity of urinary bladder is normally 600 ml; but in my case it was around 150 ml i.e., a possibility of shrinking.
Stored urine gets infected and there may be burning sensation when urinating.
Stored urine may form crystals. Crystals come together to form stone either in the bladder or in the kidney. Stones may block the urethra.
Chronic urinary retention sets in. The bladder stores more and more urine. The size of the bladder is 40-60 cl. A bottle of coke is 50 cl. As the bladder stores more urine it can enlarge up to 300 cl. An overfilled bladder may leak and this leads to wetting-urinary incontinence. Also the volume may put pressure on the kidney and may lead to kidney damage.
What may likely bring the man to hospital is acute urinary retention. One wakes up one day and he is not able to pass urine.
All this is associated with prostate enlargement, technically called benign prostate hyperplasia.
There are other diseases of the prostate like:
(1). Prostatitis-inflammation of the prostate &
(2). Prostate cancer-cancer of the prostate.
Every man may have prostate enlargement if he lives long enough.
Life style changes that can help one after 40 to maintain optimum prostate health.
Red meat everyday triples chances of prostate disease. Milk may also double the risk. Not taking fruits & vegetables daily quadruples the risk.
Tomatoes are very good for men. It has loads of lycopene. Lycopene is the most potent natural antioxidant.
Foods that are rich in zinc are also good for men. Pumpkin seeds are recommended for cure.
Zinc is about the most essential element for male sexuality and fertility.
Men need more zinc than women. Every time a man ejaculates he loses 15 mg of zinc. Zinc is also important for alcohol metabolism. the liver needs zinc to metabolise alcohol.One should stop consuming alcohol totally. Regular exercise, walking briskly, jogging or running,Yog are helpful.
Cycling is bad news for the prostate. 
SITTING :: When one sits, two-third of the weight rests on the pelvic bones. Men who sit longer are more prone to prostate symptoms. Do not sit for long hours. Walk around as often as possible.  Sit on comfortable chairs. We recommend a divided saddle chair if you must sit long hours.
Men should avoid tight underwear. It impacts circulation around the groin and heats it up a bit. While the physiological temperature is 37 degrees, the groin has an optimal temperature of about 33 degrees. Pant is a no-no for men. Wear boxers or nickers-shorts.  Wear breathable clothing.
Stop smoking completely as it affects blood vessels and impact circulation around the groin. It causes lung cancer as well. Environmental pollution & polluted water are mainly guilty for cancer. 
Regular sex is good for the prostate. The women who do not cooperate with their husband for sex are also responsible for this trouble some disease.
Pieces of lemon in a glass of hot water can save one for the rest of his life.
Hot lemon juice can kill cancer cells.
Hot lemons can once again release an anti-cancer drug.
Hot lemon juice has an effect on cancerous tumours and has shown treatment for all types of cancer.
Treatment with this extract will only destroy the malignant cells and will not affect healthy cells.
The acids and mono-carboxylic acid in lemon juice can regulate hypertension and protect narrow arteries, adjust blood circulation and reduce blood clotting.
PROSTRATE CANCER प्रोस्टेट-पुरःस्थ ग्रन्थि का आयुर्वेदिक इलाज :: PSA (Prostate-Specific Antigen) की मात्रा खून की जाँच से पता चल जाती है। यह  पदार्थ  प्रोस्टेट ग्रंथि में पाया जाता है। 
In the past, most doctors considered PSA levels of 4.0 ng/mL and lower as normal. Therefore, if a man had a PSA level above 4.0 ng/mL, doctors would often recommend a prostate biopsy to determine whether prostate cancer was present. My PSA has been detected as 354. Ultrasound also conformed it. It was detected when I went for seeking medicine-treatment for the presence of blood in the urine. Earlier irregular urination and itching (खुजली) in the pennies was noticed. Frequent urge was urination was also there. The doctor recommended several-numerous costly tests. He prescribed an antibiotic, to prevent infection, a medicine to stop bleeding & one tablet to be taken empty stomach to prevent gas formation. 
After consuming medicines for two days bleeding stopped for 20 hours and then it started again to stop again. Now, I went to urologist-Urosurgeon, who in turn prescribed multiple tests, really a terrifying experience and the torture for next two months, since he detected-suspected Prostrate Cancer. Blood samples, urine tests etc. etc.
जब प्रोस्टेट में बढ़त होती है तब खून में PSA की मात्रा बढ़ जाती है। शरीर में अगर PSA की मात्रा असामान्य पाई जाए तो प्रोस्टेट कैंसर का भी खतरा हो सकता है। 
प्रोस्टेट एक अखरोट के आकार की ग्रंथि है, जो ब्लैडर के निचले हिस्से में होता है और मूत्र मार्ग को चारों ओर से घेरती है। वह वीर्य में जाने वाले रस को बनाती है। 
यह ग्रंथि सिर्फ पुरुषों में पाई जाती है और जीवन भर बढ़ती रहती है; परंतु जब वह बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो मूत्रमार्ग पर दबाव डालने लगती है और पेशाब की धारा में रूकावट अवरोध पैदा करती है जिससे पेशाव अनियमित, रुक-रुक आने, पेशाब में खून आने जैसी शिकायतें उत्पन्न करती है। 
प्रोस्टेट के बढ़ने से कभी कैंसर नहीं होता, ऐसा कुछ चिकित्सकों का मानना है। 
यह समस्या 40-50 की उम्र से ही शुरू हो जाता है।  
इसको पुरुषों का दूसरा दिल भी कहा जा सकता है। शरीर में पौरुष ग्रंथि कई आवश्यक क्रियाओं को अंजाम देती है, जैसे मूत्र को नियंत्रित करना, वीर्य उत्पादन आदि।
प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने के लक्षण :- पेशाब करने की आवृति में वृद्धि, पेशाब करने जाने पर धार के चालू होने में अनावश्यक विलम्ब होना, बहुत जोर से पेशाब का अहसास होना लेकिन पेशाब करने जानें पर बूँद-बूँद करके निकलना या पेशाब का रुक-रुक के आना। मूत्र विसर्जन के पश्चात् मूत्राशय में कुछ मूत्र शेष रह जाना, जिससे रोगाणुओं की उत्पति हो सकती है। पेशाब करने में परेशानी का अनुभव करना। अंडकोष में लगातार दर्द का अनुभव करते रहना। मूत्र पर नियंत्रण नहीं रख पाना। रात्रि में बार-बार पेशाब की तलब लगना। पेशाब करते समय जलन का अनुभव करना।
DOMESTIC TREATMENT FOR PROSTRATE GLAND बुजुर्गों में प्रोस्टेट ग्रन्थि बढने पर सरल घरेलू उपचार :: (1). दिन में 3-4 लिटर पानी पीने की आदत डालें। लेकिन शाम को 6 बजे बाद जरुरत मुताबिक ही पानी पीयें ताकि रात को बार बार पेशाब के लिये न उठना पडे।
(2).  अलसी को मिक्सर में चलाकर पावडर बनालें। यह पावडर 15 ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में दो बार पीयें। बहुत लाभदायक उपचार है।
(3). काशीफल  में जिन्क पाया जाता है जो इस रोग में लाभदायक है। कद्दू के बीज की गिरी निकालकर तवे पर सेक लें। इसे मिक्सर में पीसकर पावडर बना लें। यह चूर्ण 20 से 30 ग्राम की मात्रा में नित्य पानी के साथ लेने से प्रोस्टेट सिकुडकर मूत्र खुलासा होने लगता है।
(4). चर्बीयुक्त, वसायुक्त पदार्थों का सेवन बंद कर दें। माँस खाने से भी परहेज करें।
(5). हर साल प्रोस्टेट की जाँच कराते रहें ताकि प्रोस्टेट केंसर को प्रारंभिक हालत में ही पकड़ा जा सके। 
(6). चाय और काफ़ी में केफ़िन तत्व पाया जात है। केफ़िन मूत्राषय की ग्रीवा को कठोर करता है और प्रोस्टेट रोगी की तकलीफ़ बढा देता है। इसलिये केफ़िन तत्व वाली चीजें इस्तेमाल न करें।
(7). सोयाबीन में फ़ायटोएस्टोजीन्स होते हैं जो शरीर में टेस्टोस्टरोन का लेविल कम करते हैं। रोज 30 ग्राम सोयाबीन के बीज गलाकर खाना लाभदायक उपचार है।
(8). विटामिन सी का प्रयोग रक्त नलियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिये जरूरी है। 500 एम जी की 2  गोली प्रतिदिन लेना हितकर माना गया है। 
(9). दों टमाटर  प्रतिदिन या हफ्ते  मे 3-4 बार  खाने से  प्रोस्टेट केन्सर  का खतरा  50% तक कम हो जाता है।  इसमे पाये जाने वाले लायकोपिन और  एंटीआक्सीडेंट्स  केन्सर की रोक थाम कर सकते हैं। 
(10). नियमित अंतराल पर सेक्स करने से प्रोस्टेट ग्रन्थि का स्वास्थ्य ठीक रहता है। अत:अधिक संयम गैर जरूरी माना गया है। सेक्स की अति और अधिक संयम दोनों ही ठीक नहीं हैं। महीने में केवल एक बार सम्भोग करें। 
(11).  जिन्क एवं विटामिन डी 3 प्रोस्टेट बढने की बीमारी में उत्तम परिणाम प्रस्तुत करते हैं। 30 एम जी जिन्क प्रतिदिन लेने से अच्छे परिणाम आते हैं। विटामिन डी 3 याने केल्सीफ़ेर्रोल 600 एम जी प्रतिदिन लेना चाहिये।
(12).  आधुनिक चिकित्सक इस रोग में बहुधा टेम्सुलोसीन और फ़ेनास्टरीड दवा का प्रयोग करते हैं। 
(13). विशिष्ट परामर्श-हर्बल औषधि  प्रोस्टेट ग्रंथि  बढ़ने में सर्वाधिक  कारगर  साबित हुई हैं। यहाँ तक कि लंबे समय से केथेटर नली लगी हुई मरीज को भी केथेटर मुक्त होकर स्वाभाविक तौर पर   खुलकर  पेशाब  आने लगता है।
Walnut contains Vitamin B 6 & Vitamin E. It has high levels of a special form of vitamin E called gamma-tocopherol (17, 18), which might prevents Cancer.
Laetrile (amygdalin or vitamin B 17), present in green chilies, is promoted as an alternative cancer treatment. Enough reliable evidence is not available in its support.
उपचार-दादी माँ के नुख्से :: (1). 1/2 चम्मच भाँग दूध के साथ सुबह और शाम। (2). शीशम के दो पत्ते चवायें रोज़। (3). नारियल के टुकड़ों को पानी में उबालें और इस पानी को ठंडा करके पीयें। (4). काशीफल की एक चम्मच गिरी  का सेवन नियमित रूप से करें। (5). घरेलू देशी गाय का मूत्र, हल्दी, बादाम का चूरा नियमित सेवन करें। (6). गर्म पानी में नींबू का रस और पके हुए टमाटर भी इस में सहायक हैं। गिलोय, ग्वारपाठा, अलसी, सोयाबीन का नियमित प्रयोग भी किया जा सकता है। अलसी के बीज पीसकर एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ फाँक सकते हैं। इसको आटे (एक पाव में एक चम्मच) में गूँध कर इसकी रोटियॉँ खाई जाती हैं। (7). रसोई में पाया जाने वाला खाना सोडा सुबह पानी में मिलाकर पीने से कैंसर कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं*।  इनके अलावा (8). दूधी और गेहूँ के ज्वारे भी उपयोगी पाये गए हैं। (9). पपीता। (10). पीपल की नई पत्तियाँ-कोंपल जो लाल रंग लिये हुए होती हैं, शुक्राणुओं को पैदा होने से रोकती हैं। इन्हें भी रोज दो पत्ती के हिसाब से लिया जा सकता है। (11). अखरोट में विटामिन B 17 होता है, जिसकी कमी से ही कैंसर होता है। अतः तेज गर्मी में आधा और ठंड के मौसम में दो अखरोट रोज खाये जा सकते हैं। 
चिकित्सक ने कहा कि  भस्मों के अलावा उपरोक्त चीजें बगैर किसी परेशानी के ली जा सकती हैं। 
अतः मैं आटे में 1/2 चम्मच सोयाबीन और अलसी का चूर्ण प्रयोग कर रहा हूँ। सुबह गिलोय, शीशम के पत्ते, पपीते का एक पत्ता, दो पत्ते तुलसी के चबा लेता हूँ। नींबू पानी में शहद मिलाकर लेता हूँ। उसके बाद लगभग नौ बजे काशीफल के बीज की लगभग 20 चबा लेता हूँ। शाम को पूजा-पाठ से पहले ईज प्रोस्टी का एक कैप्सूल और चन्द्रप्रभा बटी की एक गोली के साथ आधा चम्मच भाँग की पत्ती का चूर्ण ले रहा हूँ। 
पीता और कैंसर का उपचार :: पपीते के पत्तों को उपयोग डेंगू के मच्छर से बुखार में सफलता पूर्वक किया जा रहा है। इससे लाल रक्त कोशिकाएँ तेजी से बढ़ती हैं। 
वैज्ञानिक शोधों से पता लगा है कि पपीता के सभी भागों जैसे फल, तना, बीज, पत्तिया, जड़ सभी के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसके वृद्धि को रोकने की क्षमता पाई जाती है। विशेषकर पपीता की पत्तियों के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसकी वृद्धि को रोकने का गुण अत्याधिक पाया जाता है।
University of Florida और International doctors and researchers from US and Japan में हुए शोधों से पता चला है की पपीता के पत्तों में कैंसर कोशिका को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। 
पपीते की पत्तियाँ लगभग 10 प्रकार के कैंसर को खत्म कर सकती हैं,  जिनमे मुख्य हैं :-छाती-स्तन कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, लिवर कैंसर, पैंक्रियाज, सर्विक्स, 
(1). पपीता कैंसर रोधी अणु Th 1 cytokines के उत्पादन को ब़ढाता है जो कि प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता है और इससे  कैंसर कोशिका को खत्म किया जाता है।
(2). पपीता की पत्तियों में pa pain नामक एक प्रोटीन को तोड़ने (proteolytic) वाला एंजाइम पाया जाता है जो कैंसर कोशिका पर मौजूद प्रोटीन के आवरण को तोड़ देता है, जिससे कैंसर कोशिका शरीर में बचा रहना मुश्किल हो जाता है। 
Pa pain रक्त-खून में जाकर macrophages को उतेजित करता है जो immune system को उतेजित करके कैंसर कोशिका को नष्ट करना शुरू करती है, chemotherapy-radiotherapy और पपीता की पत्तियों के द्वारा ट्रीटमेंट में ये फर्क है कि chemotherapy में immune  system को दबाया जाता है, जबकि पपीता immune system को उतेजित करता है, chemotherapy और radiotherapy में नार्मल कोशिका भी प्रभावित होती है पपीता सोर्फ़ कैंसर कोशिका को नष्ट करता है।
A tablet priced at Rs. 2 can be tried for prostrate cancer. It is ltraconazole, an anti fungal medicine.
सीताफल के बीज :- सीताफल के बीज में कॉपर, मैग्नीशियम, मैंगनीज, आयरन, ट्रिप्टोफैन, फ़ॉस्फोरस, फाइटोस्टेरोल, प्रोटीन और आवश्यक फैटी एसिड आदि पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इसके अलावा सीताफल के बीज को जिंक का भी स्त्रोत माना जाता है और इसमें बीटा-सिस्टेरॉल की भी मौजूदगी होती है जो कि टेस्टोस्टेरॉन को डिहाइडड्रोटेस्टेरॉन में परिवर्तित होने से रोकता है। प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने की संभावना को ख़त्म करने के लिए सीताफल के बीजों को छिलका उतारकर, कच्चा, भूनकर या फिर दूसरे बीजों के साथ मिश्रित करके भी ले सकते हैं। इन बीजों को सलाद, सूप, पोहा आदि में भी डालकर खा सकते हैं। 
सोयाबीन :- सोयाबीन का दूध नियमित रूप से पीना चाहिए। इसको एक पाव आटे में एक चम्मच मात्रा में गूँथकर रोटियाँ बनाकर भी खाया जा सकता है। अलसी और सोयाबीन दोनों को आटे में मिलाया जा सकता है, जिससे टेटोस्टरोन के स्तर में कमी आ सकती है। 
पानी काफी मात्रा में पीना चाहिए। पानी में नींबू के रस का प्रयोग उपयुक्त है। तले हुए भोजन का कम प्रयोग, मिर्च, मसालों का नियंत्रित प्रयोग करना चाहिए। टमाटर आदि खट्टे खाद्य पदार्थों का प्रयोग उपयोगी हो सकता है। ग्वार-पाठा एलोयवेरा भी उपयोगी हो सकता है। बड़ी दूधी भी उपयोगी है।
भाँग का प्रयोग 1-2 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम ठंडे दूध में मिलाकर प्रयोग करके देखें। 
तली हुई, बाजार में मिलने वाली देशी घी, सरसों, मूँगफली या गोले के तेल के अलावा बनी किसी खाद्य सामग्री का उपयोग न करें। रिफाइंड तेल का प्रयोग कदापि न करें। जंक फ़ूड-अस्वास्थ्यकर खाद्य भोजन से बचें। माँस-मीट, अण्डा-मछली का सेवन, बीड़ी-सिगरेट, पान -तम्बाकू का प्रयोग पूर्णतया वर्जित है।
So far, no clinical study is available to prove that all these things destroy cancer.I am experimenting over myself prior to recommending these things to others.
 गाँठ :: अक्सर शरीर के किसी भी भाग में गाँठे बन जाती हैं, जिन्हें सामान्य भाषा में गठान या रसौली कहा जाता है। किसी भी गाँठ की शुरुआत एक बेहद ही छोटे से दाने से होती है। जैसे-जैसे ये गाँठें बड़ी  होती जाती हैं वैसे वैसे किसी बड़ी बीमारी की आशंका हो जाती है। 
ये गाँठे टी.वी. से लेकर कैंसर की बीमारी की शुरुआत के चिन्ह होती हैं। अगर किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग में कोई गाँठ हो गई हैं, जिसके कारण उस गाँठ से आंतरिक या बाह्य रक्तस्राव हो रहा हो, तो यह कैंसर के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं। अतः किसी भी प्रकार की गाँठ को नजर अंदाज नहीं करना चाहिये। 
उपचार :-
(1). कचनार (Bauhinia purpurea) की छाल और गोरखमुंडी :- कचनार की ताजी छाल 25-30 ग्राम (सुखी छाल 15 ग्राम ) को मोटा मोटा कूट लें। 1 गिलास पानी में उबालें। जब 2 मिनट उबल जाए तब इसमें 1 चम्मच गोरखमुंडी (मोटी कुटी या पीसी हुई) डालें। इसे 1 मिनट तक उबलने दें और फिर छान लें। हल्का गरम रह जाए तब पी ले। ध्यान दे यह कड़वा है परंतु चमत्कारी है। गाँठ कैसी ही हो, प्रोस्टेट बढ़ा हुआ हो, जाँघ के पास की गाँठ-गिल्टी हो, काँख की गाँठ हो गले के बाहर की गाँठ हो, गर्भाशय की गाँठ हो, स्त्री पुरुष के स्तनों में गाँठ हो या टॉन्सिल हो, गले में थायराइड ग्लैण्ड बढ़ गई हो (Goitre) या LIPOMA (फैट की गाँठ) हो लाभ जरूर करती है। कभी भी असफल नहीं होती। अधिक लाभ के लिए दिन मे 2 बार लें। लंबे समय तक लेने से ही लाभ होगा। 
गाँठ को घोलने में कचनार पेड़ की छाल बहुत अच्छा काम करती है। कचनार गुग्गुल इसी का उपाय है। 
(2). आकडे का दूध (Figures Milk) :- आकड़े के दूध में मिट्टी भिगोकर लेप करने से लाभ होगा। निर्गुण्डी के 20 से 50 मिली काढ़े में 1 से 5 मिली अरण्डी का तेल डालकर पीने से लाभ होता है।
(3). निर्गुण्डी (Nirgundi) :- गेहूँ के आटे में पापड़खार तथा पानी डालकर पुल्टिस बनाकर लगाने से न पकने वाली गाँठ पककर फूट जाती है तथा दर्द कम हो जाता है।
गण्डमाला की गाँठें (Goitre) :- गले में दूषित हुआ वात, कफ और मेद गले के पीछे की नसों में रहकर क्रम से धीरे-धीरे अपने-अपने लक्षणों से युक्त ऐसी गाँठें उत्पन्न करते हैं, जिन्हें गण्डमाला कहा जाता है। मेद और कफ से बगल, कन्धे, गर्दन, गले एवं जाँघों के मूल में छोटे-छोटे बेर जैसी अथवा बड़े बेर जैसी बहुत-सी गाँठें जो बहुत दिनों में धीरे-धीरे पकती हैं उन गाँठों की हारमाला को गंडमाला कहते हैं और ऐसी गाँठें कंठ पर होने से कंठमाला कही जाती हैं
क्रौंच के बीज को घिस कर दो तीन बार लेप करने तथा गोरखमुण्डी के पत्तों का आठ-आठ तोला रस रोज पीने से गण्डमाला (कंठमाला) में लाभ होता है ईलाज के दौरान कफवर्धक पदार्थ न खायें।
काँखफोड़ा (बगल मे होने वाला फोड़ा) :- कुचले को पानी में बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करके उसका लेप करने से या अरण्डी का तेल लगाने से या गुड़, गुग्गल और राई का चूर्ण समान मात्रा में लेकर, पीसकर, थोड़ा पानी मिलाकर, गर्म करके लगाने से काँखफोड़े में लाभ होता है। 
अच्युताय हरिओम गौझरण अर्क व अच्युताय हरिओम तुलसी अर्क सभी प्रकार की गाँठ खत्म करते हैं।
अरंडी के बीज और हरड़े समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे नयी गाँठ पर बाँधने से वह बैठ जायेगी और अगर लम्बे समय बानी हुई पुरानी गाँठ होगी तो पक जायेगी।
Prostate cancer occurs in the prostate-a small walnut shaped gland in men that produces the seminal fluid which nourishes and transports sperm.
Its one of the most common types of cancer in men. Usually it grows slowly and is initially confined to the prostate gland, where it may not cause serious harm. Some types of prostate cancer grow slowly and may need minimal or even no treatment, other types are aggressive and can spread quickly.
When detected early & is still confined to the prostate gland, has a better chance of successful treatment.
CAUSES :: Having higher levels of androgen might contribute to prostate cancer. Exposure to radiation or cancer-causing chemicals can cause DNA mutations in many organs, but these factors have not been proven to be important causes of mutations in prostate cells.
Petrol, diesel, polluted air, explosion of nuclear bombs, food grains & vegetables produced by using sewer waste, use of excessive insecticides, pesticides, chemicals for farming. Chemicals used in ripening of fruit, additives-preservatives in food, exposure to radiation including Ultra Violet rays, may also cause it. Colours and dyes added in food too are carcinogen. 
The fish present in Yamuna river or other polluted rivers eat the dead remains of humans suffering from cancer & thrown in such rivers. these fish too contain the carcinogens. Tobacco is yet another source of cancer. Smoking too results in cancer.
In my case the biggest culprits are polluted water supplied by the New Okhla Industrial Development Authority which has been supplying highly polluted water. Environmental pollution is the second culprit.Though, I always consume water from the RO yet there is every possibility of being affected by the pollutants in Noida water.
SYMPTOMS  :: It may cause no signs or symptoms in its early stages.
In more advanced stage it may cause signs and symptoms like :-
Urinating trouble, low speed-force in the stream of urine, blood in urine semen, discomfort in the pelvic area, bone pain, erectile dysfunction. Its treatments can disrupt normal urinary, bowel and sexual functioning. 
In my case it was observed that urination was irregular, a few drops had to be ejected again after urinating, slight burning sensation-etching while urination, erectile dysfunction for the last 4-5 years. On may 20, 2019 blood was in in urine at about 11.20 AM.
PSA (Prostate-specific antigen) is a substance produced by the prostate gland. Elevated PSA levels may indicate prostate cancer, a noncancerous condition such as prostatitis or an enlarged prostate.
Most men have PSA levels under four (ng/mL) and this has traditionally been used as the cutoff for concern about the risk of prostate cancer. Men with prostate cancer often have PSA levels higher than four, although cancer is a possibility at any PSA level. 
Men who have a prostate gland that feels normal on examination and a PSA less than four have a 15% chance of having prostate cancer. Those with a PSA between four and 10 have a 25% chance of having prostate cancer and if the PSA is higher than 10, the risk increases and is greater than 50%.In my case its 354 and biopsy confirmed prostrate cancer.
Prostate ultrasound and biopsy both evaluate the abnormal results of a digital rectal exam or an elevated prostate-specific antigen (PSA) blood test.
Prostate ultrasound involves a probe about the size of a finger that is inserted a short distance into the rectum. This probe produces harmless high-frequency sound waves, inaudible to the human ear, that bounce off the surface of the prostate. The sound waves are recorded and transformed into video or photographic images of the prostate gland.
The probe can provide images at different angles to help the doctor estimate the size of prostate and detect any abnormal growth.
A prostate biopsy uses trans rectal ultrasound (through the rectum’s lining) imaging to guide several small needles through the rectum wall into areas of the prostate where abnormalities are detected. The needles remove a tiny amount of tissue. Usually six or more biopsies are taken to test various areas of the prostate.  In my case 12 samples were collected each measuring one centimetre. The tissue samples are then analysed in a laboratory. The results help doctors diagnose disorders and diseases in the prostate. If cancer is identified, the doctor is able to grade the cancer and determine its aggressiveness or likelihood of spreading.
PSMA is a scan-an imaging test to locate and determine the extent of prostate cancer. Its performed on newly diagnosed prostate cancer patients to determine if the disease has spread to pelvic lymph nodes.
Molecular imaging technologies are most commonly used to diagnose and guide the treatment of prostate cancer that include a bone scan, the prostate-specific membrane antigen (PSMA) study and positron emission tomography (PET) scanning and PET in conjunction with computer-aided tomography (CT).
जिस तरह दीमक अन्दर ही अन्दर लकड़ी को खा जाती है उसी प्रकार कैंसर भी व्यक्ति को अन्दर ही अन्दर खोखला कर देता है। 
शुष्क मेवे-फल खाना कम कर दें। जब ज्यादा सर्दी पड़े तो एक-दो खाये जा सकते हैं। मगर बादाम को भिगोकर ही खायें। अगर जी ज्यादा ही करे तो खीर में डालकर उबालें और खायें। खीर भी टंडी करके खायें। 
प्रोस्टेट ग्रन्थि का बढ़ना ENLARGEMENT OF PROSTRATE GLAND :: प्रोस्टेट एक छोटी सी ग्रंथि होती है जिसका आकार अ्खरोट के बराबर होता है। यह पुरुष के मूत्राषय के नीचे और मूत्रनली  के आस-पास होती है। 50 वर्ष की आयु के बाद बहुधा प्रोस्टेट ग्रन्थि का आकार बढने लगता है। इसमें पुरुष के सेक्स हार्मोन  प्रमुख भूमिका होती है। जैसे  ही प्रोस्टेट बढती है मूत्र नली पर दवाब बढता है और पेशाब में रुकावट की स्थिति बनने लगती है। पेशाब पतली धार में, थोडी-थौडी  मात्रा में लेकिन बार-बार आता है कभी-कभी पेशाब टपकता हुआ बूँद-बूंद जलन के साथ भी आता है। कभी-कभी पेशाब दो फ़ाड हो जाता है। रोगी मूत्र रोक नहीं पाता है। रात को बार-बार पेशाब के लिये उठना पडता जिससे नीद में व्यवधान पडता है। यह रोग 70 की आयु के बाद  उग्र हो जाता है और पेशाब पूरी तरह रुक जाने के बाद  डॉक्टर केथेटर  की नली लगाकर  यूरिन बेग में  मूत्र  करने  का इंतजाम  कर देते हैं। यह देखने मे आता है कि 60 के पार  50% पुरुषों मे  इस रोग के लक्षण प्रकट  होने लगते हैं, जबकि 70-80 की आयु  के लोगों में 90% पुरुषों  में यह रोग  प्रबल  रूप से  दिखाई देने लगता है।  
प्रोस्टेट वृद्धि  के लक्षण :: (1). पेशाब करने मे कठिनाई  महसूस होती है। (2). थोड़ी-थोड़ी  देर में पेशाब  की हाजत  मालूम होती है। रात को कई बार पेशाब के लिए उठना पड़ता है। (3). पेशाब की धार चालू होने मे विलंब होना। (4).  मूत्राशय पूरी तरह खाली नहीं  होता, मूत्र  की कुछ  मात्रा मूत्राशय में शेष  रह जाती है। इस शेष रहे मूत्र मे रोगाणु  पनपते हैं, जो किडनी में खराबी  पैदा करते हैं। (5).  ऐसा प्रतीत होता है कि पेशाब की जोरदार हाजत हो रही है, लेकिन बाथरूम  जाने पर पेशाब की कुछ  बूंदे ही निकलती हैं  या रुक-रुक कर पेशाब आता है। (6). पेशाब में जलन होती है। (7). पेशाब कर चुकने के बाद भी  पेशाब की बूंदें  टपकती रहती हैं, याने मूत्र  पर कंट्रोल नहीं रहता। (8). अंडकोष में दर्द उठता रहता  है। (9). संभोग में  दर्द के साथ  वीर्य  छूटता है। 
*Baking Soda-soda bicarb i.e., Sodium Bicarbonate (NaHCO3available in the kitchen is a good substitute for costly Cancer drugs. 
यदि कैंसर का मरीज बेकिंग सोडा पानी के साथ मिलाकर पी ले तो कुछ ही दिनों में इसका असर दिखने लगेगा। उन्होंने बताया कि कीमोथेरेपी और महंगी दवाओं से भी तेजी से बेकिंग सोडा ट्यूमर सेल्स को न सिर्फ बढ़ने से रोकता है, बल्कि उसे खत्म भी कर देता है।
मनुष्य के शरीर में हर सेकेंड लाखों सेल्स खत्म होते हैं और नए सेल्स उनकी जगह ले लेते हैं। लेकिन कई बार नए सेल्स के अंदर खून का संचार रुक जाता है और ऐसे ही सेल्स एक साथ इकट्ठा हो जाते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ते हैं। इस प्रक्रिया को ही ट्यूमर कहा जाता है। ब्रेस्ट और कोलोन कैंसर के ट्यूमर सेल्स पर बेकिंग सोडा के प्रभाव की जांच की तो पाया गया कि बेकिंग सोडा वाला पानी पीने के बाद ट्यूमर सेल्स का बढ़ना काफी हद तक रुक गया। 
ट्यूमर सेल्स में आक्सिजन पूरी तरह खत्म हो जाती है, तो उसे मेडिकल भाषा में हिपोक्सिया कहते हैं। हिपोक्सिया की वजह से तेजी से उस हिस्से का पीएच लेवल गिरने लगता है और ट्यूमर के ये सेल एसिड बनाने लगते हैं। इस एसिड की वजह से पूरे शरीर में भयंकर दर्द शुरू हो जाता है। अगर इन सेल्स का तुरंत इलाज न किया जाए तो ये कैंसर सेल्स में तब्दील हो जाते हैं। बेकिंग सोडा मिला पानी पीने से शरीर का पीएच स्तर यथावत  बना रहता है और अम्लीयता की समस्या न के बराबर हो जाती है। कई बार कीमोथेरेपी के बावजूद भी ऐसे कैंसर सेल्स शरीर में रह जाते हैं, जो बाद में दोबारा से शरीर में कैंसर सेल्स बनाने लगते हैं। इन्हें T सेल्स कहते हैं। इन टी सेल्स को नाकाम सिर्फ बेकिंग सोडा से ही किया जा सकता है।
जिन लोगों ने मात्र दो हफ्तों तक पानी में बेकिंग सोडा मिलाकर पिया उन लोगों के ट्यूमर सेल्स लगभग खत्म हो गये। 
कैंसर :: ऊपरी चंद्र जहाँ स्वास्थ्य रेखा भाग्य रेखा को काट रही हो, वहाँ 5-6 निम्नगामी रेखायें हों। मस्तिष्क रेखा के अन्त में त्वचा धुँधली हो-बारीक-महीन रेखाएँ मिट जायें। 
कैंसर-गाँठ :: स्वास्थ्य रेखा पर यवों का समूह हो। मस्तिष्क रेखा सीधी चलकर ऊपर मुड़ जाये। 
CANCER OF NERVES :: (1). Sun has criss-cross lines. (2). Heart Line is broken under the Saturn. (3). Sun is unusually raised. (4). Lines comes out of Mercury-Health Line spreading over Dragon head-Rahu Kshetr. 
कैंसर का मंत्रोपचार :: कैंसर के रोगी को निम्नोक्त सूर्य गायत्री मंत्र का प्रतिदिन कम से कम पाँच माला और अधिक से अधिक आठ माला जप निष्ठापूर्वक करना चाहिए। इसके अतिरिक्त दूध में तुलसी की पत्ती का रस मिलाकर पीना चाहिए।
जप की सँख्या सवा लाख पूरी होने पर कैंसर का गलाव प्रारंभ हो जाएगा। गायत्री का जप एक अभेद्य कवच का काम करता है।
क्क भास्कराय विद्यहे दिवाकर। धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात।
पूरी निष्ठा एवं श्रद्धा से गायत्री का जप किया जाए तो साधक स्वस्थ एवं रोगमुक्त रहेगा। मधुमेह रोग से मुक्ति पाने हेतु नौ दिन तक रुद्राक्ष की माला से निम्नोक्त मंत्र का 5 माला जप करें।
"क्क ह्रौ जूं सः"
यदि रोगी इस मन्त्रों का जप न कर पाए, तो किसी शुक्रवार को स्फटिक माला, श्री यंत्र युक्त नवरत्न लॉकेट, श्री दुर्गा कवच लॉकेट एवं सर्वविघ्ननाशक श्री महामृत्युंजय कवच लॉकेट धारण करे।
यह मन्त्र गायत्री और महामृत्युंजय मंत्रो को मिला के बनाया गया है इस के दूरगामी सुष्परिणाम हो सकते हैं। इससे मृत व्यक्ति को जीवन दिया जा सकता है। बिना गुरु के इसका प्रयोग कदापि न करे

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

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