INAUSPICIOUS BIRTH अशुभ जन्म काल
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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पूर्वजन्मों में मनुष्य जैसा कर्म करते हैं उसी के अनुरूप प्रारब्ध, सुख दु:ख बनता है। सुख दु:ख का निर्घारण ईश्वर कुण्डली में ग्रहों स्थिति के आधार पर करता है। जिस व्यक्ति का जन्म शुभ लग्न में होता है, उसे जीवन में अच्छे फल मिलते हैं और जिनका अशुभ समय में उसे कटु फल मिलते हैं।
अमावस्या में जन्म :: अमावस्या को दर्श के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि में जन्म माता पिता की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। जो व्यक्ति अमावस्या तिथि में जन्म लेते हैं उन्हें जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना होता है। इन्हें यश और मान सम्मान पाने के लिए काफी प्रयास करना होता है। अमावस्या तिथि में भी जिस व्यक्ति का जन्म पूर्ण चन्द्र रहित अमावस्या में होता है वह अधिक अशुभ माना जाता है। इस अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए घी का छाया पात्र दान करना चाहिए, रूद्राभिषेक और सूर्य एवं चन्द्र की शांति कराने से भी इस तिथि में जन्म के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।
संक्रान्ति में जन्म :: संक्रान्ति के समय भी संतान का जन्म अशुभ माना जाता है। इस समय जिस बालक का जन्म होता है उनके लिए शुभ स्थिति नहीं रहती है। संक्रान्ति के भी कई प्रकार होते हैं जैसे रविवार के संक्रान्ति को होरा कहते हैं, सोमवार को ध्वांक्षी, मंगलवार को महोदरी, बुधवार को मन्दा, गुरूवार को मन्दाकिनी, शुक्रवार को मिश्रा व शनिवार की संक्रान्ति राक्षसी कहलाती है। अलग अलग संक्रान्ति में जन्म का प्रभाव भी अलग होता है। जिस व्यक्ति का जन्म संक्रान्ति तिथि को हुआ है उन्हें ब्राह्मणों को गाय और स्वर्ण का दान देना चाहिए इससे अशुभ प्रभाव में कमी आती है। रूद्राभिषेक एवं छाया पात्र दान से संक्रान्ति काल में जन्म का अशुभ प्रभाव कम होता है।
भद्रा काल में जन्म :: भद्रा में जन्म लेने वाले व्यक्ति के जीवन में एक के बाद एक परेशानी और कठिनाईयाँ आती रहती हैं।जातक को सूर्य सूक्त, पुरूष सूक्त, रूद्राभिषेक करना चाहिए। पीपल वृक्ष की पूजा एवं शान्ति पाठ करने से भी इनकी स्थिति में सुधार होता है।
कृष्ण चतुर्दशी में जन्म :: कृष्ण चतुर्दशी तिथि को छ: भागों में बाँट कर उस काल में जन्म लेने वाले व्यक्ति के विषय में अलग अलग फलादेश निकलता है। प्रथम भाग में जन्म शुभ होता है, परंतु दूसरे भाग में जन्म लेने पर पिता के लिए अशुभ होता है, तृतीय भाग में जन्म होने पर माँ को अशुभता का परिणाम भुगतना होता है, चौथे भाग में जन्म होने पर मामा पर संकट आता है, पाँचवें भाग में जन्म लेने पर वंश के लिए अशुभ होता है एवं छठे भाग में जन्म धन एवं स्वयं के लिए अहितकारी होता है। इसका अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए माता पिता और जातक का अभिषेक करना चाहिए साथ ही ब्राह्मण भोजन एवं छाया पात्र दान देना चाहिए।
समान जन्म नक्षत्र :: यदि पिता और पुत्र, माता और पुत्रीअथवा दो भाई और दो बहनों का जन्म नक्षत्र एक होता है, तब दोनों में जिनकी कुण्डली में ग्रहों की स्थिति कमज़ोर रहती है, उन्हें जीवन में अत्यधिक कष्ट का सामना करना पड़ता है। नवग्रह पूजन, नक्षत्र देवता की पूजा, ब्राह्मणों को भोजन एवं दान देने से अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
सूर्य और चन्द्र ग्रहण में जन्म :: सूर्य और चन्द्र ग्रहण काल को शास्त्रों में अशुभ माना गया है। इस काल में जिस व्यक्ति का जन्म होता है उसे शारीरिक और मानसिक कष्ट का सामना करना होता है। उसे अर्थिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। सूर्य ग्रहण में जन्म लेने वाले की असमय मृत्यु की संभावना भी रहती है। दोष के निवारण के लिए नक्षत्र स्वामी, सूर्य, चन्द्र और राहु की पूजा भी कल्याणकारी होती है।
सर्पशीर्ष में जन्म :: अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय व चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है जो कि अशुभ माना जाता है। इस लग्न में कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिये। इस योग में शिशु का जन्म होने पर रूद्राभिषेक कराना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन एवं दान-दक्षिणा देनी चाहिये जिससे दोष के प्रभाव में कमी आती है।
गण्डान्त योग में जन्म :: गण्डान्त योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है। इस समय संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए। तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है। संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है।
त्रिखल दोष में जन्म :: जब तीन पुत्री के बाद पुत्र का जन्म होता है अथवा तीन पुत्र के बाद पुत्री का जन्म होता है तब त्रिखल दोष लगता है। इस दोष में माता पक्ष और पिता पक्ष दोनों को अशुभ प्रभाव से बचने के लिए माता पिता को दोष शांति का उपाय करना चाहिए।
मूल में जन्म दोष :: इस नक्षत्र में जन्म लेने पर 1 वर्ष के अन्दर पिता की, 2 वर्ष के अन्दर माता की मृत्यु हो सकती है। 3 वर्ष के अन्दर धन की हानि होती है। इस नक्षत्र में जन्म लेने पर 1 वर्ष के अन्दर जातक की मृत्यु की संभावना भी रहती है। अपवाद स्वरूप मूल का चौथ चरण जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वयं के लिए शुभ होता है।
यदि किसी जातक का जन्म मूल नक्षत्र के पहले चरण में होता है तो ऐसा जातक पिता के लिए कष्टकारी होता है। यदि किसी जातक का जन्म मूल नक्षत्र के दूसरे चरण में में होता है तो ऐसा जातक माता के लिए कष्टकारी होता है। यदि किसी जातक का जन्म मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में होता है तो ऐसे जातक के जन्म के पश्चात से ही परिवार को धन हानि प्रारम्भ हो जाती है। मूल नक्षत्र के चौथे चरण में जातक के जन्म लेने पर यदि विधि विधान पूर्वक पूजन हवन आदि के माध्यम से शान्ति करा ली जाए तो सुखकर रहता है। शिशु के जन्म के एक वर्ष के भीतर जब भी मूल नक्षत्र पड़े, मूल शान्ति करा देनी चाहिए।
गण्डान्त योग :: मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गण्डान्त कहा जाता है। यदि शिशु का जन्म चन्द्र गण्डान्त में हो, तो यह या तो उसके स्वयं के लिए, या फिर उसके परिवार के सदस्यों के लिए प्रतिकूल होता है।
इस श्रेणी में छः नक्षत्र आते हैं और इन्हें गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है।
यह छः नक्षत्र ज्ञान कारक बुध तथा मोक्षकारक केतु के हैं। ज्ञान तथा मोक्ष का संगम आत्मा को मोक्ष की ओर ले जा सकता है, जो आत्मा के लिए सुखदायी, किन्तु मनुष्यों के लिए दुख का कारण बन जाता है। इसीलिए कहते हैं कि गंडांत में जन्मा बालक मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। परन्तु यदि बच जाए तो अत्यंत ज्ञानी निकलता है।
गण्ड मूल को गण्डान्त की संज्ञा प्रदान की गई है। गण्ड का अर्थ निकृष्ट से है एवं तिथि लग्न व नक्षत्र का कुछ भाग गण्डान्त कहलाता है। अतः तिथि, लग्न एवं नक्षत्र गण्डान्त माने जाते हैं। गण्डान्त में जन्मे जातक की आयु काम होती है अथवा उसका जीवन कष्टों के बीच झूलता रहता है। ज्योतिषाचार्यों का मत यह भी है कि यदि इस नक्षत्र में जन्मा जातक भाग्यवश जीवित रह भी जाये तो माता के लिए कष्ट प्रद रहता है। ऐसा जातक स्वयं बहुत धन सम्पत्ति व वैभव वाला होता है। अतः गण्ड मूल नक्षत्र में जन्मा जातक सदैव ही अशुभ अथवा अशुभ फलदायी होता है ऐसा आवश्यक नहीं है।
नक्षत्र गण्डान्त को ही विशेष प्रभावशाली माना जाता है।
तिथि गन्डान्त :- प्रतिपद, षष्ठी व एकादशी तिथि की प्रारम्भ की एक घड़ी अर्थात प्रारम्भिक 24 मिनट एवं पूर्णिमा, पंचमी व दशमी तिथि की अन्त की एक घड़ी, तिथि गन्डान्त कहलाता है।
लग्न गण्डान्त :- मीन लग्न के अन्त की आधी घड़ी, कर्क लग्न के अंत व सिंह लग्न के प्रारम्भ की आधी घड़ी, वृश्चिक लग्न के अन्त एवं धनु लग्न की आधी-आधी घड़ी, लग्न गण्डान्त कहलाती है।
नक्षत्र गण्डान्त :- खेती, ज्येष्ठा व अश्लेषा नक्षत्र की अन्त की दो दो घडि़याँ अर्थात 48 मिनट अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की दो दो घडि़याँ, नक्षत्र गण्डान्त कहलाती है।
सामान्यतः अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल व खेती ये छः नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं। इनमें चरण विशेष में जन्म होने पर भिन्न भिन्न फल प्राप्त होते है। इन नक्षत्र चरणों में यदि किसी जातक का जन्म हुआ हो तो, जन्म से 27वें दिन में जब पुनः वही नक्षत्र आ जाता है तब विधि विधान पूर्वक पूजन एवं हवनादि के माध्यम से इनकी शान्ति कराई जाती है।
उक्त समस्त गण्डमूल नक्षत्रों में से अश्लेषा, ज्येष्ठा एवं मूल ये तीन विशेष प्रभावशाली माने जाते हैं।
नक्षत्र घडि़याँ + योगफल ::
अश्लेषा-पहली पाँच घड़ी + 5 = सुख, भोग
अश्लेषा-6 घड़ी से 12 घड़ी तक + 12 = पिता को कष्ट
अश्लेषा-आगे दो घड़ी + 14 = माता को कष्ट
अश्लेषा-आगे तीन घड़ी + 17 = कामी
अश्लेषा-आगे 4 घड़ी + 21 = पितृ सम्मान
अश्लेषा-आगे 8 घड़ी + 29 = शक्तिमान
अश्लेषा-आगे 11 घड़ी + 40 = आत्मनाश
अश्लेषा-आगे 6 घड़ी + 46 = त्यागी
अश्लेषा-आगे 9 घड़ी + 55 = सुखी
अश्लेषा-आगे 5 घड़ी + 60 = धनी
यदि भभोग साठ घड़ी से ऊपर हो तो उसके उसी अनुपात में भाग कर लेने चाहिए।
यदि ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म हो तो प्रथम चरण बड़े भाई को अशुभ होता है दूसरे चरण में छोटे भाई का नाश होता है। तीसरे चरण में माता को कष्ट तथा चौथे चरण में पिता को कष्ट होता है।
अन्य दोष :: यमघण्ट योग, वैधृति या व्यतिपात योग एव दग्धादि योग को भी अशुभ माना है। इन योगों में शिशु का जन्म होने पर इसकी शांति अवश्य करानी चाहिए।
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