VASTU SHASTR वास्तु शास्त्र :: वास्तुकार

वास्तुकार
VASTU SHASTR वास्तु शास्त्र  
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
 By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नमः। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
VISHW KARMA देव शिल्पी विश्वकर्मा :: विश्वकर्मा भगवान् के अवतार हैं। वे और मय दानव वास्तु शास्त्र का प्रेणता और आचार्य हैं।
विश्वकर्मा जयंती दीपावली के दूसरे दिन मनायी जाती है। इस अवसर पर कुशल कारीगर अपने औजारों की पूजा करते हैं। औद्योगिक प्रतिष्ठान, कल-कारखानों, निर्माण स्थलों पर कारीगरों द्वारा उनकी पूजा की जाती है। इस अवसर पर कारीगर अपने औजारों और सैनिक अपने हथियारों की पूजा करते हैं। 
रावण की लंका, द्वारका पुरी, इन्द्रप्रथ के महलों, सुदामा के महल, आदि का निर्माण उन्हीं के द्वारा किया गया। 
VISHW KARMA ELLORA
उनके अनेक रूप हैं :- दो बाहु वाले, चार बाहु एवं दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले। 
विश्वकर्मा के पाँच पुत्र :- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। ये पाँचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चाँदी से जोड़ा जाता है। रामायण के उत्तर काँड के अनुसार रावण की खूबसूरत नगरी, सोने की लंका का निर्माण विश्वकर्मा ने भगवान् शिव और माँ पार्वती के लिये किया था।
कथा :: वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथ चालक-रथी, सूत अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था, परंतु विभिन्न जगहों पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं कमा पाता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहाँ जाते थे, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। तब उनके एक ब्राह्मण पड़ोसी ने उनको भगवान् विश्वकर्मा की शरण में जाने को कहा और बताया कि अमावस्या को व्रत कर भगवान् विश्वकर्मा का महात्म्य सुनो। सूत और उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान् विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से यह पूजा सभी श्रेणी के कारीगरों द्वारा की जाती है। 
VISHW KARMA STATUE
याचक पत्नी सहित पूजा स्थान में बैठे और भगवान् विष्णु का ध्यान करे। तत्पश्चात् हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर मंत्र पढ़े और चारों ओर अक्षत छिड़के। अपने हाथ में रक्षासूत्र बाँधे एवं पत्नी को भी बाँधे। पुष्प जलपात्र में छोड़े। इसके बाद हृदय में भगवान् विश्वकर्मा का ध्यान करें। दीप जलायें, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाए। उस पर जल डालें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश की तरफ अक्षत चढ़ाएं। चावल से भरा पात्र समर्पित कर भगवान् विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें।  पुष्प चढ़ाकर याचना करे कि हे भगवान् विश्वकर्मा! इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें।
आदि काल से ही विश्वकर्मा  मानव, देवगणों, राक्षसों द्वारा भी पूजित और वंदित हैं।
पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में होने वाली वस्तुएं भी उनके द्वारा ही बनाई  गईं हैं। कर्ण के कुण्डल, भगवान् विष्णु का सुदर्शन चक्र, भगवान् शंकर का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान् विश्वकर्मा ने ही किया है। विश्वकर्मा के पाँच स्वरुपों और अवतारों हैं :- विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्म और भृंगुवंशी विश्वकर्मा। 
विश्वकर्मा के सबसे बडे पुत्र मनु का विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना के साथ हुआ जिनसे अग्निगर्भ, सर्वतोमुख, ब्रम्ह आदि ऋषि उत्पन्न हुए। 
VISHW KARMA
HIMACHAL PRADESH
विश्वकर्मा देवताओं के बढ़ई (विष्णुपुराण) तथा शिल्पाकार, सृष्टिकर्ता देवायतनों का सृष्टा (स्कंदपुराण) और जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ हैं। उनके पुत्र नल-नील ने ही रामेश्वरम से श्री लङ्का के पुल का निर्माण किया। 
विश्वकर्मीय ग्रंथ में वास्तुविद्या, रथादि वाहन, गणित के क्लिष्ट सूत्रों का वृहद वर्णन है।
Vishw Karma is Ultimate reality. [Rig Ved] 
He is the divine smith Tvasta emerging from Vishwa Karma. [Yajur Ved-Purush Sukt] 
He is unborn-Aj. He is Praja Pati. [Yajur Ved] 
He is Pashu Pati. [Atharv Ved] 
He is Rudr Shiv, who is dwelling in all living forms.[Shwetashwatropanishad
He revealed the Sath Paty Ved i.e., Vastu Shastr or fourth Up Ved and presides over the sixty-four mechanical crafts. 
Vishw Karma evolved as five Praja Pati, from his five faces called :- Sadyojat, Vam Dev Ji, Aghora, Tat Puruṣh & Ishan or Manu, May, Twasta, Shilpy & Vishw Jan.
Basically, he is initial architect, engineer, designer who evolve Vastu Shastr. He is the presiding deity of all craftsmen and architects. He is the person who created divine weaponry and vehicles used by the demigods. 
VISHW KARMA MACHHLI PATTAM
He is called Dev Shilpy-divine crafts man like May Danav (मय दानव)-father in law of Ravan and the mighty ruler of Meerut,  as well.
He is Swambhu and evolved out of the ocean as a result of the churning of the ocean by the demigods and the demons. He is an incarnation of the God. 
Vishw Karma Jayanti is celebrated by all classes craftsmen, skilled workers etc. on Kanya Sankranti, two days after Deepawali. All instruments and tools belong to him. All equipment like plough were designed and passed on the humans by him. It was he who gave round shape to the Sun by putting him on his lath machine, when his daughter Sanjna who was married to Sun, could not bear the tremendous heat and energy evolved out of him. The fragments of it were used to make Sudarshan Chakr for Bhagwan Vishnu and Trishul for Bhagwan Shiv, lance (बरछा) for Bhagwan Kartikey-the commander of divine army.
The idols of deities Jagan Nath-Shri Krashn, Bal Bhadr and Subhdra were crafted by him for Jagan Nath Puri temple in Orissa. The golden palaces at Shri Lanka ware crafted by him for Bhagwan Shiv and Maa Parwati.  However, after performing Pooja for occupying house by Maa Parwati, Ravan asked it as offering-Dakshina to him which Bhagwan Shiv happily gave. Maya Sabha, a palace having varied forms of illusions was created by him at Indr Prasth-present Delhi. Dwarka was built overnight by Vishwkarma to carry out the desire of the Almighty as Shri Krashn, over the vast tract of land released by the ocean to oblige Bal Ram Ji-incarnation of Shesh Nag, as a dowry gift. When Bhagwan Shri Krashn left the earth, it submerged into sea again.
असुर शिल्पी-वास्तुकार मयासुर :: मय या मयासुर, महर्षि कश्यप और दुन (दिति) का पुत्र, नमुचि का भाई है। इसकी दो पत्नियाँ :- हेमा और रंभा थीं, जिनसे पाँच पुत्र तथा तीन कन्याएँ हुईं। रावण की पत्नी मंदोदरी की माँ हेमा एक अप्सरा थी और उसके पिता मयासुर एक असुर। मंदोदरी एक विदुषी थी, उसके बराबर शास्त्र-वेदों की ज्ञाता स्त्री उस वक्त कोई नहीं थी। 
विश्कर्मा की तरह वह भी एक महान वास्तुकार है। मयासुर एक खगोलविद भी था। सूर्य सिद्धांतम्  के साथ भी मयासुर का नाम जुड़ा है। उसे ज्योतिष तथा वास्तु शास्त्र का गहन ज्ञान है। मय विषयों का परम गुरु है। मत्स्य पुराण में अठारह वास्तु शिल्पियों-विदों के नाम दिए गए हैं, जिनमें विश्वकर्मा और मय दानव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मय ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदु सरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर शिल्प शास्त्र के अद्भुत ज्ञान का परिचय दिया और प्रसिद्धि हासिल की। मय दानव के पास एक विमान रथ था, जिसमें चार पहिए लगे थे। इस विमान का उपयोग उसने देव-दानवों के युद्ध में किया था।
मय ने सोने, चाँदी और लोहे के तीन उपग्रह, जिन्हें त्रिपुर कहा जाता है, का निर्माण किया था। त्रिपुर को बाद में स्वयं भगवान् शिव ने ध्वस्त कर दिया था। ताड़का सुर के लिए मय दानव ने आकाश में उपग्रह की तरह भ्रमण करने वाले, इस तीनों उपग्रहों का निर्माण किया था। तारकासुर ने ये तीनों राज्य अपने तीनों बेटों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली को सौंप दिए थे। भगवान् शिव ने एक ही बाण से त्रिपुरों का विनाश कर दिया तो मय राक्षस ने भगवान् शिव की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उसे वितल लोक प्रदान किया।  
जब भगवान् शिव ने त्रिपुरों को भस्म कर असुरों का नाश कर दिया, तब मयासुर ने अमृत कुंड बनाकर सभी को जीवित करने का प्रयास जिसको भगवान् श्री हरी विष्णु ने  विष्णु ने विफल कर दिया। ब्रह्म पुराण के अनुसार इंद्र द्वारा नमुचि का वध होने पर इसने इंद्र को पराजित करने के लिये तपस्या द्वारा अनेक माया विद्याएँ प्राप्त कर लीं। भय ग्रस्त देवराज इन्द्र ब्राह्मण के वेश में उसके पास गए और छल पूर्वक मैत्री के लिये उन्होंने अनुरोध किया तथा असली रूप प्रकट कर दिया। इस पर मय ने अभय दान देकर उन्हें माया विद्याओं की शिक्षा दी।
मय दानव, जो कि भगवान् शिव की कृपा से जलने से बच गया था, उन्हें प्रसन्न देख कर हर्षित मन से वहाँ आया। उसने विनीत भाव से हाथ जोड़ कर प्रेम पूर्वक हर तथा अन्यान्य देवों को भी प्रणाम किया। फिर वह भगवान् शिव के चरणों में लोट गया। तत्पश्चात् दानव श्रेष्ठ मय ने उठकर भगवान् शिव की ओर देखा। उस समय प्रेम के कारण उसका गला भर आया और वह भक्ति पूर्ण चित्त से उनकी स्तुति करने लगा। द्विज श्रेष्ठ! मय द्वारा किये गये स्तवन को सुनकर परमेश्वर शिव प्रसन्न हो गये और उससे बोले, दानव श्रेष्ठ मय! मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ, अत: तू वर माँग ले। इस समय जो कुछ भी तेरे मन की अभिलाषा होगी, उसे मैं अवश्य पूर्ण करूँगा। सनत्कुमार जी कहते हैं, मुने! शम्भु के इस मंगल मय वचन को सुनकर दानव श्रेष्ठ मय ने अंजलि बाँधकर विनम्र हो उन प्रभु के चरणों में नमस्कार करके कहा, देवाधिदेव महादेव! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं और मुझे वर पाने का अधिकारी समझते हैं तो अपनी शाश्वती भक्ति प्रदान कीजिये। परमेश्वर! मैं सदा आपके भक्तों से मित्रता रखूँ, दीनों पर सदा मेरा दया भाव बना रहे और अन्यान्य दुष्ट प्राणियों की मैं उपेक्षा करता रहूँ। महेश्वर! कभी भी मुझ में आसुर भाव का उदय न हो। नाथ! निरन्तर आपके श्री चरणों में तल्लीन रहकर निर्भय बना रहूँ। सनत्कुमारजी कहते हैं, व्यास जी! शंकर तो सबके स्वामी तथा भक्तवत्सल शुभ भजन में हैं। मय ने जब इस प्रकार उन परमेश्वर की प्रार्थना की, तब वे प्रसन्न होकर मय से बोले, दानव सत्तम! तू मेरा भक्त है, तुझ में कोई भी विकार नहीं है; अत: तू धन्य है। अब मैं तेरा जो भी कुछ अभीष्ट वर है, वह सारा का सारा तुझे प्रदान करता हूँ। अब तू मेरी आज्ञा से अपने परिवार सहित वितल लोक को चला जा। वह स्वर्ग से भी रमणीय है। तू वहाँ प्रसन्न चित्त से मेरा भजन करते हुए निर्भय होकर निवास कर। मेरी आज्ञा से कभी भी तुझ में आसुर भाव का प्राकट्य नहीं होगा। सनत्कुमार जी कहते हैं, मुने! मय ने महात्मा शंकर की उस आज्ञा को सिर झुका कर स्वीकार किया और उन्हें तथा अन्यान्य देवोंको भी प्रणाम करके वह वितल लोकको चला गया।[शिवपुराण]
मय वर्तमान मेरठ राजा-शासक था। उसकी पुत्री मन्दोदरी एक विदूषी कन्या थी। उसके विवाह की चिन्ता हुई तो वह ब्रह्मा जी के पास गया। उन्होंने कहा कि उसके योग्य वर रावण होगा। जब तक वे वापस आये पृथ्वी पर काफी वक़्त गुजर चुका था। मन्दोदरी की आयु रावण की तुलना में बहुत अधिक थी। विवाह के समय तक मन्दोदरी की आयु 1,25,000 से ज्यादा थी। अब भी मन्दोदरी विभीषण जी के साथ दानव राज बाहुबली के सुतल लोक में निवास करती है। दानव राज बाहुबली प्रह्लाद जी के पौत्र हैं।    
रावण के समय से महाभारत तक लगभग 10,00,000 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। 
खाण्डव प्रस्थ-वन को जलाते समय मयासुर महात्मा तक्षक के पुत्र के निवास में मौजूद था। अर्जुन ने उसे अभयदान दिया तो मयासुर के द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा की आज्ञा माँगने पर भगवान् श्री कृष्ण ने उससे कहा कि हे दैत्यश्रेष्ठ! तुम युधिष्ठिर की सभा हेतु ऐसे भवन का निर्माण करो जैसा कि इस पृथ्वी पर अभी तक न निर्मित हुआ हो। मयासुर ने भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा का पालन करके एक अद्वितीय नगर-इंद्रप्रस्थ और उस नगर में एक भवन का निर्माण कर दिया। इसके साथ ही उसने पाण्डवों को देवदत्त शंख, एक वज्र से भी कठोर रत्नजटित गदा तथा मणिमय पात्र भी भेंट किया।
मायासभा सम्राट युधिष्ठर का सभाभवन बना। इस सभा भवन के वैभव को देखकर दुर्योधन पाण्डवों से डाह करने लगा था। उसकी इस दुर्भावना और द्रोपदी द्रारा अपमानित होकर उसने शकुनि और कर्ण के साथ कुचक्र रचकर छल से युधिष्ठर को जुए में हराया और माया सभा को हासिल किया।[महाभारत आदिपर्व, 219.39, सभापर्व, 1.6]
दक्षिण अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता को मय से जोड़ा जा सकता है। वही माया सभ्यता एक विलक्षण सभ्यता थी जिसे अवशेष अमरीका में उपलब्ध हैं। अमेरिका में भगवान् शिव, गणेश जी महाराज, हनुमान जी, भगवान् नर सिंह की मूर्तियों के साथ देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी पाई गई हैं। इसके साथ वहाँ सूर्य पूजा का प्रमाण भी उपलब्ध है।
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