AYUR VED (10) आयुर्वेद :: SNAKE BITE CURE सर्प विष उपचार

SNAKE BITE CURE 
सर्प विष उपचार
 AYUR VED (10) आयुर्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com
 "ॐ गं गणपतये नमः" 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। 
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
ॐ नमों भगवते सुदर्शन वासुदेवाय, धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय, सकला भय विनाशाय, सर्व रोग निवारणाय, त्रिलोक पठाय,  त्रिलोक लोकनिथाये,  ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा,  ॐ श्री श्री ॐ  औषधा चक्र नारायण स्वाहा
वेद मंत्रों में देव शब्द के प्रयोग द्वारा देवताओं की सामूहिक स्तुति की गई है। रोग मुक्त शतायु जीवन की कामना के साथ उपयुक्त मंत्र अथर्ववेद एवं यजुर्वेद में है। दोनों ही वेदों में तत्संबंधी मंत्र ‘पश्येम शरदः शतम्’ से आरंभ होते हैं। 
विष के प्रभाव के निवारण हेतु, प्रतिकार और नष्ट करने हेतु जो उपाय किए जाते हैं, उन्हें विष चकित्सा कहते हैं। विष शब्द का शाब्दिक अर्थ जहर, हलाहल हैं। इस शब्द की व्युत्पति ‘‘विष + क’’ के संयोग से हुई हैं। अष्टांगहृदय में विष के तीन प्रकार कहे गये हैं।
वेदों में 18 प्रकार के सर्पों का उल्लेख है, जिनमें कुछ विषैले तथा कुछ असहनीय विष वाले होते हैं।
Image result for golden coloured snakes(1). फल-फूल आदि कन्दों में पाया जाने वाला विष स्थावर।
(2). सर्प, बिच्छू, मकड़ी आदि की दाढ़ों में रहने वाला विष जंगम विष होता है। ये दोनों विष अकृत्रिम होते हैं।
(3). इसका तीसरा भेद चर कहलाता है। जो विष विभिन्न औषधियों से बनाया जाता हैं, वह कृत्रिम होता हैं। वह अपने तीक्षण गुणों के कारण ओज को नष्ट करता है और वात-पित्त प्रधान होने से जीवन को भी नष्ट करता है। विष का प्रभाव होते ही, तुरन्त वमन अर्थात् उल्टी करानी चाहिए और रोगी के ऊपर शीतल जल डालना चाहिए। इसके साथ ही गाय का घी, शहद में मिलाकर चाटना चाहिये। मुलहठी का काढ़ा (क्वाथ) और शहद भी फायदा करते हैं। 
सभी प्रकार के विष के प्रभाव को कम करने के लिए गाय के घी के समान लाभकारी कोई औषधि नहीं हैं। घी वायु की प्रबलता को नष्ट करता है, क्योंकि घी विष के प्रभाव को शान्त करता है। अर्थववेद में सोम पान को विष नाशक का सर्वोत्तम उपाय कहा है। सोमपान करने वाले प्राणी पर विष का प्रभाव नहीं होता है।
मन्त्र चकित्सा :: मन्त्रोच्चारण,  झाड़ फूँक द्वारा भी विष को कम किया जाता है।  बाण लगने से, फल से, सींग आदि लगने से जो विष शरीर में प्रवेश कर चुका होता है, उसे भी निम्न मन्त्र के द्वारा ठीक किया जा सकता है :- 
यावती द्यावापृथिवी वरिम्णा यावत्सप्त सिन्धवो वितश्ठिरे। वाचं विशस्य दूशर्णी तामितो निरवादिशम्॥
विषनाशक औषधियाँ :: अलाबू (लौकी, लम्बा कद्दू या मीठी तुम्बी), अवध्नती, इन्द्राणी, ऋतजात, (मधुला, वच, कुलिंजन), कान्दाविष (कन्द विष), तौदी, दर्भ (कुश), बभ्रु (सहस्रपर्णी, शंखपुष्पी), मधुक, मधू, मधूला, धृताची (बड़ी इलायची), विशदूशणी, आदि। [अथर्ववेद]
ताबुव और तस्तुव नामक ओषधियों में सर्प विष नाशक गुण पाए जाते है। वही समान गुण कटु तुम्बी (कड़वी लौकी) और तिक्त कोशातकि (कड़वी तोरई) में पाए जाते हैं। दर्भ (कुश या कुशा) शोचि (अग्नि) तरूणक (रोहिष तृण, सुगंधतृण या कृत्तृण), अव्श्रवार या अश्ववाल (कास नामक तृण), परूषवार (मंजू या मुंज), श्वेत औषधि (सफेद अर्क या आक को ही श्वेत औषधि कहते हैं) आक की जड़ , आक के फूल,आक का दूध (अरंधुष और पैदव औषधि को भी सफेद आक के नाम से जाना जाता है) पैद्व अर्थात् सफेद आक की जड़ फूल और रस को सर्वविषनाशन कहा हैं। इन्द्र औषधि (ऐन्द्री, इन्द्रवारूणी), कुमारिका औषधि, भी सर्पविषनाशक होती हैं। वंध्या कार्कोटकी (बांझ ककोडा, बांझ खेखसा), को कुमारिका और कन्या नाम से भी जाना जाता है। अपराजिता औषधि (कोयल, विष्णुकान्ता इसके अन्य नाम हैं) यह सर्पविष के साथ-साथ बिच्छू विष को भी नष्ट करता है। तौदी, धृताची, कन्या औषधियों को भी सर्पविषनाशक कहा है ये तीनों नाम बड़ी इलायची के समझे जाते हैं। मधुला, मधू, मधूजाता, मधुश्चुत् इन्हें सर्प, बिच्छू एवं मच्छर मारने की दवा कहा है। मधु, मधूलिका आदि को यष्टीमधु (मुलहठी) नाम से पुकारा जाता हैं। बाण के विष को उतारने के लिए मुलहठी का उपयोग होता है। वरणावती (वरना या वरूणा) विषनाशक होने के साथ-साथ यह विविध रोगों, ज्वर, राजयक्ष्मा आदि को दूर करने में भी सक्षम है। करम्भ (दही मिले हुए सत्तू को करम्भ कहते हैं) दही के सेवन से विषनाशक का वर्णन मिलता है। वच या वचा औषधि, अपजीका (दीमक) जो वल्मीक (वमी या बांबी) बनाती हैं। अजशृ्रंगी (मेषशृ्रंगी), अलाबू (लम्बा कद्दू), वृष (वासा) शीपाल (शैवाल) शोचि (कुशा), सदंपुष्पा सदंपुष्पी (सदापुष्प) सैर्य (अष्ववाल, कास) आदि विभिन्न प्रकार की औषधियाँ विष निवारण हेतु उपयोगी हैं। इनके यथाविधि प्रयोग से रोगी को बचाया जा सकता है। [अथर्ववेद]
कटुतुम्बी कड़वी, विषनाशक, ठण्डी और हृदय को शक्ति देने वाली है। इसको वमनकारक अर्थात् उल्टी कराने में लाभकारी माना है। कटुतुम्बी की बारीक जड़ को गोमूत्र में पीसकर वटी या गोली बनाकर छाया में सुखाकर, उसको गोमूत्र आदि के साथ घिसकर एक हाथ भर लेप करने से साँप का विष नष्ट हो जाता है। सपेरे कटुतुम्बी की बीन अपने पास रखते हैं इसका कारण यह है कि कटुतुम्बी सर्प विष नाषक है और इसके अन्दर से निकलने वाली ध्वनि सर्प को अपने वश में कर लेती हैं।[भावप्रकाश निधण्टु]
Image result for REAL MERMAIDS FOUND IN KARACHI BEACHसर्प-दंश के तीन प्रकार :- (1). साँप के ऊपर यदि किसी मनुष्य का पाँव गलती से पड़ने पर, उसकी हड्डी या माँस दब कर कुचल जायें और साँप क्रोधित होकर काट ले तथा उसके दाँत अलग-अलग लगे हुए दिखाई दें, दाँतों के गढ़ जाने से रक्त में विष मिल जाये तो इन्द्रियाँ काम करना बंद देती हैं और यह अवस्था जान लेने वाली होती है।
(2). त्वचा में लाल-काली-पीली लकीर सी दिखाई दें और थोड़ा-सा रक्त भी निकले तो यह अल्प विष होता है।
(3) कुछ-कुछ दाँत भी गड़े हुए मालूम हों, थोड़ा रक्त भी निकला हो, परन्तु साँप को जहर छोड़ने का मौका न मिला हो, यानि डरा हुआ हो, या किसी को काट चुका हो या रोगी हो, इत्यादि-इत्यादि तो इस अवस्था में विष जान लेवा नहीं होता।
तात्कालिक उपाय :- साँप के काटते ही फौरन एक ऊपर बहुत मजबूत बन्द लगा देना चाहिये। अगर संभव हो तो जहर को दबाकर या सुँतकर निकाल देना चाहिये। तुरन्त अस्पताल में ले जाना चाहिये। अगर कोई सुयोग्य चिकित्सक समीप न मिले तो निम्न उपाय करें :-
(1). तम्बाकू के पत्ते जल में पीस कर पिलाने से दस्त और कै-उलटी  होने से सर्प विष रोगी को आराम हो जाता है।
(2). सत्यानाशी के बीज और काली मिर्च पानी में पीसकर पिलाने से, सब जहर दस्त के रास्ते निकल जाता है और रोगी बच जाता है।
(3). इन्द्रायण के बीज एक तोला, मिर्च स्याह 9 नग 5 तोले पानी में पिलाने से, यह सब जहर दस्त के रास्ते निकाल देता है।
(4). रीठे को पानी में मलकर तब तक पिलाना चाहिये, जब तक कि वमन होता रहे। यह सब जहर निकाल देता है। यह दवा त्रिपाक का काम देती है।
(5). आक के दूध में तर करके सुखाई हुई आरने, उपले की राख एक तोला, नौसादर 3 माशा, स्याह फिल-फिल (कालीमिर्च) 3 नग, सब को पीस कर हुलास किसी नलकी के द्वारा नाक में फूँकने से, रोगी को छींकें आती हैं और मूर्छित रोगी होश में आ जाता है।
(6). जंगलों में राम चना की बेल होती है, इसके पत्तों को मुँह में चबाकर अर्क चूसने से सर्पविष बिल्कुल नष्ट हो जाता है। इसी बेल को खाकर नेवला, साँप के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
(7). जल के साथ विष्णकुकाँता और तोरई की जड़ को पीस हुलास सुँघाने से सर्प काटा रोगी आरोग्य हो जाता है।
(8). दही, शहद, पीपल, अदरक, गोला, मिर्च, कूट और सेंधा नमक; ये वस्तुयें समान भाग में मिलाकर सेवन करने से तक्षक या बामकी से काटा हुआ मनुष्य भी यमालय से भी लौट आता है।
(9). कुटकी और तालमूली को जल के साथ कूटकर पिलाने से सर्प-विष नष्ट हो जाता है।
(10). गौ-मूत्र में सोमराजी के बीजों को पीसकर पिलाने से विष दूर हो जाता है। इस औषधि के सेवन से स्थावर, जंगम दोनों विषों का नाश हो जाता है। यह औषधि विष संजीवन है।
(11). अपराजिता बूटी की जड़ घी में मिलाकर सेवन करने से चर्मगत सर्प विष, दूध के साथ सेवन करने से रक्त गत विष, कुडे के चूर्ण सहित उसका सेवन करने से माँस गत विष, हल्दी के साथ सेवन करने से अस्थि गत विष, और चाँडाली की जड़ के साथ सेवन करने से, शुक्रगत विष, काकली के साथ सेवन करने से मेदाँग गत विष, पीपल के चूर्ण के साथ खाने से मब्जा गत विष दूर होता है। शरीर विष संयुक्त होने पर अपराजिता की जड़ प्रयोग करना मुनासिब है। सर्प-दंशित रोगी के सिर पर जल डालने से भी विशेष आराम होता है। सर्प-दंषित रोगी को सोने नहीं देना चाहिए।
जल चिकित्सा :: का भी महत्व हैं। नदी के जल में नहाने, तैरने आदि से भी सर्प विष बहने से कम हो जाता है। उल्लेख हैं कि नदी के जल में विष कम करने का गुण होता हैं। योग की कुंजल क्रिया भी लाभप्रद होती है। साँप से काटे व्यक्ति को अधिक से अधिक 2-5 लीटर तक पानी पिलायें और खड़े करके होकर मुँह में अंगुली डालकर उससे उल्टी करायें। पेट का सारा पानी बाहर आने पर विष का प्रभाव कम हो जाता है, क्योंकि जल में सर्पविष को कम करने की शक्ति होती है। अत: जल में रहने वाले सर्प इसीलिए अधिक विष वाले नहीं होते।
HERBAL CURE-TREATMENT FOR SNAKE BITE  सर्प विष उपचार :: शिरीष पुष्प  के स्वर रस में भावित सफेद मिर्च लाभ प्रद हैं। 
साँप के काटे  का इलाज : विष के पहले वेग में रोमांच, दूसरे वेग में पसीना, तीसरे में शरीर का कांपना, चौथे मेंश्रवण शक्ति का अवरुद्ध होना, पांचवें में हिचकी आना, छटे  में ग्रीवा लटकना, सातवें में प्राण निकलना। 
अवस्था (1) :- आँखों के आगे अँधेरा छा  जाये और शारीर में बार-बार जलन होने लगे, तो यह जानना चाहिये कि, विष त्वचा में है।आक की जड़, अपा मार्ग, तगर और प्रियंगु-को जल में घोंट कर पिलाने से विष शांत हो सकता है।

अवस्था (2) :-  त्वचा से रक्त में विष पहुँचने पर दाह और मूर्च्छा आने लगती  है व शीतल पदार्थ अच्छा लगता है। उशीर (खस), चन्दन, नीलोत्पल, सिंदुवार की जड़, धतूरे की जड़, कूट, तगर, हींग और मिर्च को पीसकर देना चाहिये। अगर इससे बाधा शांत न हो तो भटकैया, इन्द्रायण की जड़ और सर्पगंधा को घी में पीसकर देना चाहिए। इससे भी शांत न हो तो, सिंदुवार और हींग का नस्य देना चाहिये और पिलाना चाहिये। इसी का अंजन और लैप भी करना चाहिये, इससे रक्त में विष बाधा शांत हो जाती है। 
अवस्था (3) :- रक्त से पित्त में विष पहुँचने पर पुरुष उठ-उठ कर गिरने लगता है, शरीर पीला पड़ जाता है, सभी दिशाएँ पीली दिखती हैं। शरीर में दाह और प्रबल मूर्च्छा आती है -इस अवस्था में -पीपल, शहद, महुआ, घी, तुम्बे की जड़, इन्द्रायण की जड़ को गो मूत्र में पीसकर नास्य, लेपन तथा अंजन करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था (4) :- पित्त से विष के कफ़ में प्रवेश करने पर शरीर जकड जाता है, श्वास भली भांति नहीं आती, कंठ में घर-घर शब्द होने लगता है, मुँह से लार गिरने लगती है-पीपल, मिर्च, सौंठ, श्लेष्मातक (बहुबार वृक्ष), लोध, एवं, मधुसार को सामान भाग में पीसकर गौमूत्र में लेपन और अंजन और पिलाना भी चाहिए। ऐसा करने विष का वेग शांत हो जाता है।
अवस्था  (5) :- कफ से वात में विष प्रवेश करने पर पेट फूल जाता है, कोई भी पदार्थ दिखाई नहीं पड़ता, द्रष्टि भंग हो जाती है-ऐसा होने पर : शोणा (सोनागाछा) की जड़, प्रियाल, गज पीपल, भ्रंगी ,वचा, पीपल, देवदारु, महुआ, मधुसार, सिंदुवार और हींग-इन सब को पीस कर गोली बना कर रोगी को खिलाएं एवं अंजन और लेपन करें। यह सभी विषों का हरण करती है ।  
अवस्था  (6) :- वात से मज्जा  में विष पहुँच जाने पर द्रष्टि नष्ट हो जाती है, सभी अंग बेसुध हो शिथिल हो जाते हैं। ऐसा लक्षण होने पर घी, शहद, शर्करा युक्त, खस और चन्दन को घोंट कर पिलाना चाहिये और नस्य भी देना चाहिए। ऐसा करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था  (7) :- मज्जा से मर्म स्थानों पर विष पहुँचने पर सभी इन्द्रियां निश्चेष्ट हो जाती हैं और मरीज धरती पर गिर पड़ता है। काटने से रक्त नहीं निकलता, केश उखड़ने पर कष्ट नहीं होता-रोगी को म्रत्यु आधीन ही समझना चाहिये। जिसके पास सिद्ध मन्त्र और औषधि होगी वही इलाज कर पायेगा : (7.1). मोर का पित्त, मार्जार का पित्त और गंध नाड़ी की जड़, (7.2). कुंकुम, तगर, कूट, कास मर्द की छाल तथा  (7.3). उत्पल, कुमुद और कमल-इन तीनों के केसर-सभी का समान भाग लेकर उसे गोमूत्र में पीस कर  नस्य दें, अंजन लगाएं। यह मृत संजीवनी औषधि है।
PROTECTION FROM DEATH :: Recitation of the following Mantr 5,00,000 times with procedure, empowers a devotee to cure a person on death bed. Conditions apply.
 मृत्यु, रोग, शांति मन्त्र :: (1). ॐ ह्रूमं हं स,  (2). महामृतुन्ज्य मन्त्र :: ॐ जूं स:  वषट, 
(3). मृत संजीवनी मन्त्र ::  (3.1). ॐ हं स: हूं हूं स:। (3.2). ॐ  ह: सौ:। (3.3). ॐ हूं स:। ॐ जूं स:।
काल सर्प योग :: Protection from Snakes, Nag, Serpents. Recitation of these Mantr is useful.  
COBRA
Om Kurukulle Phat Swaha.  ॐ कुरुकुल्ले फट स्वाहा:
 Om Nagar Phat Swaha.  ॐ नगर  फट स्वाहा:
Om Narmdaye Nameh. Prater Narmdaye Namo Nishi,
Namo Astu Narmdaye Trahimam Vishsarpth.
ॐ  नर्मदायै नम:. प्रातर्नर्मदायै  नमो निशि। 
नमोअस्तु नर्मदे तुभं त्राहि मां विश्सर्पत:॥ 
Om Namo Bhagwate Neel Kanthay.
ॐ नमो भगवते नील कंठाय।
VIPER
Nearly 550 varieties of snakes are found in India, out of which 10 are venomous-poisonous. Cobra, viper, Krait are considered to be most dangerous-dreaded. Most of the people die due to heart attack, cardiac arrest after the bite caused by the fear. Snake releases the poison through its fangs, which causes restlessness and ultimate death in most of the cases. It takes 3 hours for the venom to reach the entire body. still death comes only when the poison reaches the brain. 
भारत में 550 किस्म के साँप है, जैसे कोबरा, वाईपर, क्रेट।  इनमें 10 जहरीले हैं। साँप के काटने का डर इतना है कि आदमी दिल का दौरा पड़ने से या ह्रदय की गति अवरुद्ध हो जाने से ही मर जाता है, न कि जहर से। 
पूरे शरीर में  जहर पहुँचने मे 3 घंटे लगते हैं। जिस जगह सांप ने काटा है, वहाँ किसी रस्सी या नाड़े से बंध लगा दें।
FIRST AID-प्राथमिक चिकित्सा :: बंध के ऊपर-नीचे घाव को  दबाकर जहरीला खून निकला जा सकता है।
KRAIT
घर मे कोई पुराना इंजेक्शन हो तो उसे ले लें और आगे जहां सुई, इंजेक्शन needle) लगी होती है, वहाँ से काटें। सुई  जिस पलास्टिक मे फिट होती ह, उस प्लास्टिक वाले हिस्से को काटें। जैसे ही आप सुई के पीछे  लगे प्लास्टिक वाले हिस्से को काटेंगे तो वो इंजेक्शन एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा। बिलकुल वैसा ही जैसा कि होली के दिनों में बच्चों की पिचकारी होती है। उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है, वो निशान ढूँढे। वह बिलकुल आसानी से मिल जाएगा, क्योंकि जहां साँप काटता है, वहाँ कुछ सूजन आ जाती है।
वह निशान जिस  पर हल्का खून लगा होता है, आपको आसानी से  मिल जायेगा। अब आप वो इंजेक्शन जिसका सुई वाला हिस्सा आपने काट दिया है, लें और उन दो निशानों में से पहले एक निशान पर रख कर, उससे खून को सिरिंज से चूसें-सोखें-रेचन करें। आप इंजेक्शन से जहरीला-नीला खून निकालते रहिये। साँप का जहर लगभग  0.5 मिलीग्राम के आस पास होता है। दो तीन बार खींचने से ही जहर बाहर निकल जायेगा। रोगी की स्थिति में कुछ परिवर्तन महसूस होने से, थोड़ी  देर में  चेतना आ जाएगी।
घबरायें नहीं तथा रोगी  को सोने न दें।
Homeopathic medicine :: NAJA-Potency 200. Quantity 5 ml. This is prepared from snake poison-venom. Its damn cheap. 2-3 drops of it are administered after 10 minutes of interval.
 
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