RAJ YOG राज योग :: A TREATISE ON PALMISTRY (38) हस्तरेखा शास्त्र

RAJ YOG राज योग 
 A TREATISE ON PALMISTRY (38) हस्तरेखा शास्त्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।  
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
(1.1). जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ छोटा होगा। 
(1.2). जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखाएँ प्रारम्भ में एक दूसरे को छूऐंगी। 
(1.3). जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा में बाल बराबर दूरी होगी। 
(2). मस्तिष्क रेखा का उदय वृहस्पति से होगा। 
(3). वृहस्पति पर मुद्रिका-SOLOMAN'S RING उपस्थित हो।
(4). सूर्य रेखा और शनि रेखा-भाग्य रेखा स्पष्ट और समानांतर, बगैर कटे फ़टे आगे बढ़ेंगी। 
(4.1). सूर्य रेखा और शनि रेखा-भाग्य रेखा का उदय मणिबन्ध अथवा निम्न केतु से हो। इन पर किसी भी प्रकार का अशुभ चिन्ह :- द्वीप, जाली, पड़ी रेखाएँ आदि न हों। त्रिभुज की उपस्थिति लाभप्रद होगी। वर्ग रक्षा करेगा। तारा-नक्षत्र सुप्रभाव बढ़ायेगा। 
(5). दसों अँगुलियों पर चक्र उपस्थित होंगे। 
(6). जीवन रेखा से उच्चवर्ती शाखाएं प्रकट होंगी।
(6.1). जीवन रेखा से निकल कर आकांक्षा रेखा बृहस्पति पर पहुँचती हो। 
(7). मस्तिष्क रेखा सूर्य और बुध की संधि के नीचे तक पहुँचती हो। 
(8). मस्तिष्क रेखा का अंत में दो शाखाओं में बँटना और हृदय रेखा के अन्त में त्रिशूल का होना इसका प्रभाव बढ़ा देगा।  
(9). विशिष्ट भाग्य रेखा-SPECIAL LUCK LINE की उपस्थिति हो।
विकसित शुक्र, बृहस्पति, शनि और सूर्य पर्वत। शुक्र पर्वत का आकार बड़ा हो। 
बुध पर्वत अपर तीन खड़ी रेखाएँ जातक को आर्थिक नियमन प्रदान करें। 
अँगूठे का पहला पर्व बड़ा और बहुत काम मुड़ता हो।  
उठा हुआ निम्न मङ्गल जातक को बहादुर बनायेगा। दबा हुआ मङ्गल जातक को कमजोर डरपोक बनायेगा।
हृदय रेखा पर त्रिशूल जातक को जनप्रिय-लोकप्रिय बनायेगा। हृदय रेखा का सीधा होना और बृहस्पति पर रुकना उसे उच्च कोटि का साधक, योगी, सिद्ध पुरुष बनायेगा। 
दबा हुआ शनि जातक को क्रूर बनायेगा। 
उपयुक्त लक्षणों से युक्त जातक राजा, मंत्री, सेनापति, उच्च पदाधिकारी, श्रेष्ठ उद्यमी-व्यवसाई बनते हैं। 
किसी भी प्रकार का अशुभ चिन्ह फल में कमी लायेगा।
JUPITER WITH
SOLOMON'S RING
The joint of Life Line & the Line of Head would be either short or just touching at the beginning. 
These two line may be separated through a distance as thick as a hair. 
The Line of Head may rise from the Jupiter. Solomon's ring may be present over Jupiter. 
Both Sun Line & Luck Lines would be clearly marked without cuts & parallel to each other. 
All ten finger would have circle over them.
The Line of Head terminating just below the junction of Mercury and Sun would be an added advantage. 
The presence of a small fork at the termination of the Line of Head & a trident  at the termination of the Line of Heart would add to its effect- impact. 
Special Luck Line would be advantageous.
SPECIAL LUCK LINE
राजयोग की संभावना :: सामुद्रिक शास्त्र की रचना करने वाले महर्षि समुद्र के कथनानुसार जिस व्यक्ति के पैर के तलवे में अंकुश, कुंडल या चक्र का निशान दिखाई देता है वह एक अच्छा शासक बनकर राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है।
जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में सूर्य रेखा, मस्तक रेखा से मिलती हो और मस्तक रेखा से गहरी स्पष्ट होकर गुरु क्षेत्र में चतुष्कोण में बदल जाये तो ऐसा व्यक्ति उच्च पदासीन होता है। 
जिस स्त्री या पुरुष की नाभि गहरी हो, नाक या अग्र भाग यानी आगे का हिस्सा सीधा हो, सीना लाल रंग का हो, पैर के तलुये कोमल हों, वह व्यक्ति उच्च पदासीन होता है। 
LINE OF HEAD
WITH FORK
जिसके हाथ में सूर्य और गुरु पर्वत उच्च हों और शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिन्ह हो, चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से सम्बन्ध हो और भाग्य रेखा हथेली के मध्य से आरंभ होकर, एक शाखा गुरु पर्वत और दूसरी रेखा सूर्य पर्वत पर जाये तो निश्चय ही यह राज योग का लक्षण है। 
जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा में एक मिली मीटर की दूरी या मस्तिष्क रेखा का उदय बृहस्पति से हो तो भी यही फल होता है। 
जन्म कुंडली में दिखाई दने वाले पंचम महापुरुष योग से किसी व्यक्ति का राजयोग तब तक सिद्ध नहीं होता, जब तक राज योग की सगंति उस व्यक्ति के शारीरिक अंग लक्षणों, बनावट तथा हाथ की हथेली या पैर के तलवें में शंख, चक्र, गदा, खड्ग, अंकुश, धनुष, वाण आदि के चिन्ह्न (रेखाकृति) न हो।
राजयोग के लक्षण व चिह्न अत्यतं दुर्लभ हैं जो बहुत कम स्त्री-पुरुषों के शरीर में दिखाई देते हैं। इनका निरीक्षण कुशलतापर्वूक करना चाहिए। लोकतंत्र में यह आवश्यक नहीं है कि राजयोगोत्पन्न व्यक्ति शासक ही हो। वह उच्च अधिकारी बड़ा व्यापारी या बड़ा प्रसिद्ध व सम्मानित व्यक्ति हो सकता है।
हथेली या पांव के तलवों पर शंख, चक्र, गदा, खड्ग, अंकुश, धनुष, बाण आदि के चिह्न होना राजयोग की संभावना को स्पष्ट करता है।
जिस पुरुष के जन्मकाल में प्रबल राजयोग होता है, उसके हाथों या पैरों में राजचिह्न की रेखाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हें; पुरुषों के दायें हाथ या पैर में तथा स्त्री के बायें हाथ या पैर में यदि कोई एक भी राजचिह्न हो तो निश्चय ही सुख, सोभाग्य व संपत्तिदायक होता है।[जातक भरण-दुण्ढिराज] 
जिसके पाँव के तलवे में अकुंश, कुण्डली या चक्र का चिह्न हो वह बड़े राष्ट्र का शासक होता है तथा सर्वश्रेष्ठ शासक हातो है।[समुद्र]
जिसके हाथों या पैरों में हस्ती, छत्र, मत्स्य-मछली, तालाब, अंकुश या वीणा के चिह्न हों वह उत्तम पुरुष व मनुष्यों का स्वामी होता है।[जातक भरण]
शक्ति तोमर बाणैश्च करमध्ये च दृश्यते। 
रथचक्र ध्वजाकारौ स च शासनं लभेन्नरः॥
LINE OF HEAD
WITH TRIDENT
जिसके हाथ के बीच में (हथेली में) शक्ति, तोमर, बाण, रथ चक्र या ध्वजा दिखाई देती है, उसे शासन करने का अवसर अवश्य प्राप्त होता है और शासन से लाभ मिलता है।[सामुद्रिक शास्त्र]
जिसके हाथ या पैर में चक्र, धनुष, ध्वजा, कमल, व्यजन या आसन के निशान हों तो उसके घर पर रथ (वाहन) अश्व और पालकी होती है। भूमि-भवन आदि होते हैं तथा उसके घर हमेशा लक्ष्मी का वास रहता है।[जातक भरण]
जातक भरण ग्रंथ के रचनाकार आचार्य दुण्ढिराज का कहना था कि जिस व्यक्ति के जन्म के समय ही उसकी कुंडली में राजयोग की परिस्थितियाँ बनती हैं उसके हाथों और पैरों की रेखाएं बिल्कुल स्पष्ट होती हैं। पुरुषों के दाएं हाथ या पैर में और स्त्री के बाएं हाथ या पैर में यदि किसी भी प्रकार का कोई भी राजचिह्न दृष्टिगोचर है तो जीवन सुखमय और संपत्ति से भरपूर बीतेगा।
जन्मपत्री में उच्च अधिकारी बनने के योग यदि कुंडली में :: 
(1.1). स्‍थिर लग्न हो और लग्न में शुक्र स्थित हो। शुक्र की स्‍थिति जितनी अच्छी होगी, उसी के अनुसार उच्च पद प्राप्त होगा।
(1.2). कुंडली में चर लग्न हो और लग्नेश से केंद्र में बृहस्पति स्थित हो, तो बृहस्पति की स्थि‍ति के अनुसार ही उच्च पद प्राप्त होगा।
(1.3). कुंडली में द्विस्वभाव लग्न हो और लग्न के ‍त्रिकोण में मंगल हो।
उपरोक्त तीनों योगों में योग बनाने वाला ग्रह अस्त नहीं होना चाहिए और दूसरे यह जितना अधिक बलवान होगा, उतना ही अधिक शुभ फलदायी होगा।
(1.4). लग्नेश दशम भाव में तथा दशमेश लग्न में स्थित हो तथा बृहस्पति से दृष्ट हो।
(1.5). जिस राशि में नवमेश हो, उसका स्वामी जिस राशि में है, उस राशि का स्वामी यदि उच्च राशि में हो तथा लग्नेश लग्न से केंद्र में शुभ ग्रह से युत हो, तो यह योग भी जातक को उच्च पदाधिकारी बना देता है।
(1.6). नवमेश जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी यदि अपनी उच्च र‍ाशि में स्थित होकर लग्न से दूसरे भाव में हो तथा धनेश अपनी उच्च राशि में हो, तो इस योग वाला जातक भी उच्च पदाधिकारी होता है।
(1.7). दशम भाव में चंद्रमा स्‍थित हो तथा दशमेश अपनी उच्च राशि में हो एवं भाग्येश लग्न से द्वितीय भाव में हो।
(1.8). पंचम तथा एकादश भाव में (दोनों भावों में) सौम्य ग्रह स्थित हों तथा दूसरे व आठवें भाव में पाप ग्रह हों।
(1.9). सभी सातों ग्रह मेष, कर्क, तुला व मकर, इन राशियों में हों अथवा इनमें एक ही में, दो में, तीन में या चारों में हों।
(1.10). बृहस्पति द्वितीय भाव या नवम भाव का स्वामी हो तथा नवमेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी बृहस्पति से युत हो एवं दोनों द्वितीय भाव में स्थित हों। यह योग केवल मेष, कर्क, वृश्चिक व कुंभ लग्न वाली कुंडलियों पर ही लागू हो सकता है।
(1.11). लग्न से दशम भाव में सूर्य स्थित हो तथा दशमेश लग्न से तीसरे भाव में स्थि‍त हों।
(1.12). चंद्रमा व बृहस्पति दोनों लग्न से द्वितीय भाव में स्थित हों, द्वितीयेश लाभ भाव में हो तथा लग्नेश शुभ ग्रह से युत हों।
(1.13). कुंडली में नवमेश व दशमेश का परस्पर स्थान विनिमय हो (अर्थात नवमेश दशम भाव में तथा दशमेश नवम भाव में हो) तथा लग्नेश नवम या दशम भाव में हो तथा लग्नेश पर बृहस्पति की दृष्टि हो। 
(1.14). मकर लग्न कुंडली में लग्न से पंचम में चंद्रमा, सप्तम में सूर्य व बुध हों, अष्टम भाव में गुरु व शुक्र हों तथा एकादश भाव में शनि हो।
(1.15). मंगल जिस राशि में स्थित हो, उससे दूसरे, पांचवें या नौवें स्थान में बुध तथा शुक्र हों तथा शनि तुला राशि का दशम में हो। यह योग केवल मकर लग्न कुंडली पर ही लागू हो सकता है।
(1.16). मिथुन लग्न कुंडली में दशम भाव में गुरु व शुक्र स्‍थित हों।
(1.17). मकर लग्न कुंडली में पंचम भाव में चंद्रमा हो, लग्न में बुध व शुक्र तथा नवम भाव में बृहस्पति हो। 
(1.18). धनु लग्न कुंडली में बृहस्पति बारहवें भाव में तथा शनि लाभ भाव में हो।
(1.19). कुंडली में लग्नेश तथा चंद्र (-चंद्रमा जिस राशि में हो, उसका स्वामी) दोनों केंद्र में अपने मित्र की राशि में युत हों तथा लग्न बलवान हो।
(1.20). कुंभ लग्न की कुंडली में तीसरे भाव में उच्च राशि का सूर्य बैठा हो।
(1.21). तुला लग्न कुंडली में अष्टम भाव में बृहस्पति, नवम भाव में शनि तथा ग्यारहवें भाव में मंगल तथा बुध हो।
(1.22). धनु लग्न कुंडली में सूर्य व बृहस्पति दोनों ही दशम भाव में स्थित हों।
(1.23). कुंडली में मंगल अपनी उच्च राशि या स्वराशि का होकर दशम भाव में बैठा हो तथा उस पर लग्नेश की दृष्टि भी हो। 
(1.24). मंगल, सूर्य, बुध, बृहस्पति, शनि, दशम भाव तथा दशमेश- इन सबकी स्थि‍‍ति जितनी अच्छी होगी, उतना अधिक उच्चस्थान-पद प्राप्त होगा। 
राजपुरुष के अंग लक्षण :: 
(2.1). जिस पुरुष का सिर गोल, चौड़ा मस्तक, कान तक फैले नीलकमल के समान नेत्र तथा घुटनों तक लंबे हाथ हों तो वह समस्त भूमंडल का राजा होता है। 
(2.2). जिस पुरुष की लम्बी नाक-नासिका, चौड़ी व मजबूत छाती-सीना, गहरी नाभि और कोमल तथा रक्तवर्ण चरण हो वह बड़ा प्रतापी राजा होता है।
(2.3). राजा का वर्ण-रंग स्निग्ध व तेजस्वी होता है। जीभ, दांत, त्वचा, नाखून व बालों में चमक होती है।
(2.4). शत्रुजित राज पुरुष का स्वर शंख, मृदंग, हाथी, रथ की गति, भेरी, सांड, बादलों की गर्जना के समान इनमें से किसी एक के समान होता है।
(3.1). जिस व्यक्ति की हथेली के मध्य भाग में घोड़ा, घड़ा, पेड़ या स्तम्भ का चिह्न हो, वह राजसुख करता है। ऐसे लोग किसी नगरसेठ के समान धनी होते हैं।
(2). जिस व्यक्ति का ललाट (माथा) चौड़ा और विशाल हो, नेत्र सुन्दर, मस्तक गोल और भुजाएं लंबी होती हैं, वह व्यक्ति भी राजसुख प्राप्त करता है।
(3.3). जिस व्यक्ति के हाथ में धनुष, चक्र, माला, कमल, ध्वजा, रथ, आसन अथवा चतुष्कोण हो, उसे महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
(3.4). यदि अंगूठे में यव का चिह्न हो, साथ ही मछली, छाता, अंकुश, वीणा, सरोवर या हाथी समान चिह्न हो तो वह व्यक्ति यश्स्वी और अपार धन का स्वामी होता है।
(3.5). जिस व्यक्ति के हाथ में तलवार, पहाड़ या हल का चिह्न हो, उसके पास धन की कमी नहीं होती है।
(3.6). जिन लोगों के हाथ की सूर्य रेखा, मस्तक रेखा से मिली हुई हो और मस्तक रेखा स्पष्ट सीधी होकर गुरु की ओर झुकने से चतुष्कोण का निर्माण होता हो, वह मंत्री समान सुख प्राप्त करता है।
(3.7). जिसके हाथ में गुरु, सूर्य पर्वत उच्च हों, शनि और बुध रेखा पुष्ट एवं स्पष्ट और सीधी हो, वह शासन में उच्च पद प्राप्त कर सकता है।
(3.8). यदि व्यक्ति के हाथ में शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिह्न हो, चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से संबंध हो या भाग्य रेखा हथेली के मध्य से प्रारंभ हो और उसकी एक शाखा गुरु पर्वत पर और एक सूर्य पर्वत पर जाए तो व्यक्ति राज्याधिकारी होता है।
(3.9). जिन लोगों के हाथ में गुरु और मंगल पर्वत उच्च हो, मस्तिष्क रेखा द्विजिव्ही यानी दो शाखाओं वाली हो या बुध की उंगली नुकीली हो और लम्बी हो,साथ ही नाखून चमकदार हो तो व्यक्ति राजदूत होता है।
(3.10). जिस व्यक्ति के बाएं हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) एवं कनिष्ठिका उंगली (लिटिल फिंगर) की अपेक्षा दाहिने हाथ की तर्जनी एवं कनिष्ठि का मोटी और बड़ी हो, मंगल पर्वत अधिक ऊँचा हो और सूर्य रेखा प्रबल हो तो व्यक्ति कलेक्टर या कमीश्नर बन सकता है।
(4). यदि 2, 3, 5, 6, 8, 9 तथा 11, 12 में से किसी स्थान में बृहस्पति की स्थिति हो और शुक्र 8वें स्थान में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति में जन्म लेने वाला जातक चाहे साधारण परिवार में ही क्यों न जन्मा हो, वह राज्याधिकारी ही बनता है। 
(5).  वृहज्जातक के अनुसार बारह प्रकार के राजयोग :: 
(5.1). तीन ग्रह उच्च के होने पर जातक स्वकुलानुसार राजा होता है। यदि उच्चवर्ती तीन पापग्रह हों तो जातक क्रूर बुद्धि का राजा होता है और शुभ ग्रह होने पर सद्बुद्धि युक्त। उच्चवर्ती पाप-ग्रहों से राजा की समानता करने वाला होता है, किन्तु राजा नहीं होता।
(5.2). मंगल, शनि, सूर्य और गुरू चारों अपनी-अपनी उच्च राशियों में हों और कोई एक ग्रह लग्न में उच्चराशि का हो तो चार प्रकार का राजयोग होता है। चन्द्रमा कर्क लग्न में हो और मंगल, सूर्य तथा शनि और गुरू में से कोई भी दो ग्रह उच्च हों तो, भी राजयोग होता है। जैसे :- मेष लग्न में सूर्य, कर्क में गुरू, तुला का शनि और मकर राशि में मंगल भी प्रबल राजयोग कारक हैं। कर्क लग्न से दूसरा, तुला से तीसरा, मकर से चौथा जो तीन ग्रह उच्च के हों जैसे मेष में सूर्य, कर्क में गुरू, तुला में शनि तो भी राजयोग माना जाता है।
(5.3). शनि कुंभ में, सूर्य मेष में, बुध मिथुन में, सिंह का गुरू और वृश्चिक का मंगल तथा शनि सूर्य और चन्द्रमा में से एक ग्रह लग्न में हो तो भी 5 प्रकार का राजयोग माना जाता है। सूर्य बुध कन्या में हो, तुला का शनि, वृष का चंद्रमा और तुला में शुक्र, मेष में मंगल तथा कर्क में बृहस्पति भी राज योग प्रद ही माने जाते हैं। मंगल उच्च का सूर्य और चन्द्र धनु में और लग्न में मंगल के साथ यदि मकर का शनि भी हो तो मनुष्य निश्चित ही राजा होता है। शनि चन्द्रमा के साथ सप्तम में हो और बृहस्पति धनु का हो तथा सूर्य मेष राशि का हो और लग्न में हो तो भी मनुष्य राजा होता है। वृष का चन्द्रमा लग्न में हो और सिंह का सूर्य तथा वृश्चिक का बृहस्पति और कुंभ का शनि हो तो मनुष्य निश्चय ही राजा होता है। मकर का शनि, तीसरा चन्द्रमा, छठा मंगल, नवम् बुध, बारहवाँ बृहस्पति हो तो मनुष्य अनेक सुंदर गुणों से युक्त राजा होता है।
(5.4). धनु का बृहस्पति चंद्रमा युक्त क्र अपने-अपने उच्च में लग्न गत हों तो जातक गुणावान राजा होता है। और मंगल मकर का और बुध शुक्र अपने-अपने उच्च में लग्न गत हों तो जातक गुणावान राजा होता है।
(5.5). मंगल शनि पंचम गुरू और शुक्र चतुर्थ तथा कन्या लग्न में बुध हों तो जातक गुणावान राजा होता है।
(5.6). मीन का चंद्रमा लग्न में हो, कुंभ का शनि, मकर का मंगल, सिंह का सूर्य जिसके जन्म कुण्डली में हों वह जातक भूमि का पालन करने वाला गुणी राजा होता है।
(5.7). मेष का मंगल लग्न में, कर्क का बृहस्पति हो तो जातक शक्तिशाली राजा होता है। कर्क का गुरू लग्न में हो और मेष का मंगल हो तो जातक गुणवान राजा होता है।
(5.8). कर्क लग्न में बृहस्पति और ग्याहरवें स्थान में वृष का चंद्रमा शुक्र, बुध और मेष का सूर्य दशम स्थान में होने से जातक पराक्रमी राजा होता है।
(5.9). मकर लग्न में शनि, मेष लग्न में मंगल, कर्क का चन्द्र, सिंह का सूर्य, मिथुन का बुध और तुला का शुक्र होने से जातक यशस्वी व भूमिपति होता है।
(5.10). कन्या का बुध लग्न में और दशम शुक्र सप्तम् बृहस्पति तथा चन्द्र ो भी जातक राजा होता है। हो और शनि मंगल पंचम हों तो भी जातक राजा होता है। जितने भी राजयोग हैं इनके अन्तर्गत जन्म पाने पर मनुष्य चाहे जिस जाति स्वभाव और वर्ण का क्यों न हो वे राजा ही होता है। फिर राजवंश में जन्म प्राप्त करने वाले जातक तो चक्रवर्ती राजा तक हो सकते हैं। किन्तु अब कुछ इस प्रकार के योगों का वर्णन किया जा रहा है जिनमें केवल राजा का पुत्र ही राजा होता है तथा अन्य जातियों के लोग राजा तुल्य होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि राजा का पुत्र राजा ही हो उसके लिये निम्नलिखित में से किसी एक का होना नितांत आवश्यक है कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि राजवंश में जन्म पाने वाला जातक भी सामान्य व्यक्ति होता है और सामान्य वंश और स्थिति में जन्म पाने वाला महान हो जाता है उसका यही कारण है।
(5.11). यदि त्रिकोण में 3-4 ग्रह बलवान हों तो राजवंशीय राजा होते हैं। जब 5-6-7 भाव में ग्रह उच्च अथवा मूल त्रिकोण में हों तो अन्य वंशीय जातक भी राजा होते हैं। मेष के सूर्य चंद्र लग्नस्थ हों और मंगल मकर का तथा शनि कुंभ का बृहस्पति धनु का हो तो राजवंशीय राजा होता है। यदि शुक्र 2, 7 राशि का चतुर्थ भाव में और नवम स्थान में चंद्रमा हो और सभी ग्रह 3,1,11 भाव में ही हों तो ऐसा जातक राजवंशीय राजा होता है। बलवान बुध लग्न में और बलवान शुक्र तथा बृहस्पति नवम स्थान में हो और शेष ग्रह 4, 2, 3, 6, 10, 11 भाव में ही हों तो ऐसा राजपुत्र धर्मात्मा और धनी-मानी राजा होता है। यदि वृष का चंद्रमा लग्न में हो और मिथुन का बृहस्पति, तुला का शनि और मीन राशि में अन्य रवि, मंगल, बुध तथा शुक्र ग्रह हों तो राजपुत्र अत्यंत धनी होता है। दशम चन्द्रमा, ग्याहरवां शनि, लग्न का गुरू, दूसरा बुध और मंगल, से राजपुत्र राजा ही होेता है। किंतु यदि मंगल शनि लग्न में चतुर्थ चंद्रमा और सप्तम बृहस्पति, नवम, शुक्र, दशम सूर्य, ग्यारहवें बुध हो तो भी यही फल होता है। चतुर्थ में सूर्य और शुक्र होने से राजपुत्र राजा ही होेता है। किंतु यदि मंगल शनि लग्न में चतुर्थ चंद्रमा और सप्तम बृहस्पति, नवम, शुक्र, दशम सूर्य, ग्यारहवें बुध हो तो भी यही फल होता है। एक बात सबसे अधिक ध्यान देने की यह है कि राजयोग का निर्माण करने वाले समस्त ग्रहों में से जो ग्रह दशम तथा लग्न में स्थित हों तो, उनकी अन्तर्दशा में राज्य लाभ होगा जब दोनों स्थानों में ग्रह हों तो उनसे भी अधिक शक्तिशाली राज्य लाभ होगा, उसके अन्तर्दशा में जो लग्न दशम में हों अनेक ग्रह हों तो उनमें जो सर्वाेत्तम बली हो उसके प्रभाव के द्वारा ही राज्य का लाभ हो सकेगा। बलवान ग्रह द्वारा प्राप्त हुआ राज्य भी छिद्र दशा द्वारा समाप्त हो जाता है। यह जन्म कालिक शत्रु या नीच राशिगत ग्रह की अन्तर्दशा छिद्र दशा कहलाती है। जो राज्य को समाप्त करती है अथवा बाधायें उपस्थित करती है।
(5.12). यदि बृहस्पति, शुक्र और बुध की राशियां 4, 12, 6, 2, 3, 6 लग्न में हों और सातवां शनि तथा दशम सूर्य हो तो भी मनुष्य धन रहित होकर भी भाग्यवान होता है और अच्छे साधन उसके लिये सदा उपलब्ध होते हैं। यदि केन्द्रगत ग्रह पाप राशि में हों और सौम्य राशियों में पापग्रह होें तो ऐसा मनुष्य चोरों का राजा होता है। इस प्रकार से विभिन्न राजयोगों के होने पर मनुष्य सुख और ऐश्वर्य का भोग करता है।
 (6.1). जिस व्यक्ति के पैर की तर्जनी उंगली में तिल का चिन्ह हो, वह पुरूष राज्य-वाहन का अधिकारी होता है।
(6.2). जिसके हाथ की उँगलियों के प्रथम पर्व ऊपर की ओर अधिक झुके हों, वह जनप्रिय तथा नेतृत्व करने वाला होता है।
(6.3). जिसके हाथ में चक्र, दण्ड एवं छत्रयुक्त रेखायें हों वह व्यक्ति निसंदेह राजा अथवा राजतुल्य होता है।
(6.4). जिसके मस्तिष्क-माथे पर सीधी रेखायें और तिलादि का चिन्ह हो, वह राजा के समान ही सुख को प्राप्त करता है और उसमें बैद्धिक कुशलता भी पर्याप्त मात्रा में होती है।
मनुष्यों में श्रेष्ठ :: जातक भरण ग्रंथ के अनसुार ऐसा व्यक्ति जिसके हाथों या पैरों में हस्ती, छत्र, मछली, तालाब, अंकुश या वीणा जैसे दिखने वाले निशान हो तो वह व्यक्ति उत्तम पुरुष और सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ होता है।
शासन का अवसर :: जिस व्यक्ति की हथेली के बीचो-बीच शक्ति, तोमर, बाण, रथ, चक्र या ध्वजा का निशान दिखता है उसे शासन करने का एक बड़ा अवसर मिलता है जिसका वह लाभ भी उठाता है।
लक्ष्मी का वास :: ऐसा व्यक्ति जिसके पैर में पहिए या चक्र के अलावा कमल, आसन का निशान होता है उसे भूमि-भवन जैसी सुख सुविधाएं आजीवन प्राप्त होती हैं। उसके घर में लक्ष्मी का सदा वास रहता है।
पैर या हथेली पर तिल :: जिस व्यक्ति की हथेली के बीचो-बीच तिल होता है वह बेहद धनवान और सामाजिक रूप में आदरणीय बनता है। इसके अलावा जिन लोगों के पैरों के तलवे पर तिल या वाहन जैसा दिखने वाला निशान होता है वह एक बेहतरीन शासक कहलाता है।
भाग्य रेखा :: मध्यमा अगुंली के ठीक नीचे मणिबधं तक भाग्य रेखा स्पष्ट और अखंडित हो तो ऐसे व्यक्ति को हर प्रकार का सांसारिक सुख, सुविधा और यश की प्राप्ति होती है। यह लक्षण सूर्य रेखा के सहयोग से फलता है। 
अंगों द्वारा भविष्य का ज्ञान :: सामुद्रिक शात्र के अनुसार जिस व्यक्ति की छाती चौड़ी, नाक लंबी होती है और नाभि गहरी होती है उसकी किस्मत उसे एक बड़ा शासक बनाती है।
पंच महापुरुष योग :: सामुद्रिक शास्त्र में पांच तरह के योग बताए गए हैं, जो इंसान की किस्मत का निर्धारण करते हैं। इन योगों में जन्म लेने वाला व्यक्ति किसी ना किसी प्रदेश का शासक जरूर बनता है, साथ ही ये योग व्यक्तित्व को भी भली प्रकार जाहिर करते हैं।
मालव्य योग :: कुंडली के केंद्र भावों में स्तिथ शुक्र मूल त्रिकोण-त्रिभुज अथवा स्वगृही (वृष या तुला राशि में हो) या उच्च (मीन राशि) का हो तो मालव्य योग बनता है। इस योग से व्यक्ति सुन्दर, गुणी, तेजस्वी, धैर्यवान, धनी तथा सुख-सुविधाएँ प्राप्त करता है।
शुक्रकृत मालव्य नामक महापुरुष योग में जन्मा जातक पतले होठों वाला, सम शरीर, अंग संधियों में पुष्टता व लालिमा, पतली कमर, चंद्रमा जैसी क्रांति, लंबी नासिका, हाथी के समान प्रभावशाली वाणी, आखों में चमक, एक समान व सफेद दांत, घुटनों तक लंबे हाथ व 70 वर्ष का आयुर्दाय होता है।
जिसका मुख मंडल तेरह अंगुल लंबा, दस अंगुल चौड़ा, एक कान के छेद से दूसरे कान के छेद के बीच की दूरी 20 अंगुल होती है, ऐसे मालव्य यागे वाला पुरुष मालवा या सिंध प्रदेश पर शासन करता है। [श्रीदेव कीर्तिराज]
रूचक योग :: मंगल केंद्र भाव में होकर अपने मूल त्रिकोण (पहला, पाँचवाँ और नवाँभाव), स्वग्रही (मेष या वृश्चिक भाव में हो तो) अथवा उच्च राशि (मकर राशि) का हो तो रूचक योग बनता है। रूचक योग होने पर व्यक्ति बलवान, साहसी, तेजस्वी, उच्च स्तरीय वाहन रखने वाला होता है। इस योग में जन्मा व्यक्ति विशेष पद प्राप्त करता है।
मंगल से बनने वाले रूचक योग में जन्मा मनुष्य दीर्घ-लंबे शरीर वाला, निर्मल कांति व रूधिर की अधिकता से बहुत बलवान, साहसिक कर्मो से सफलता पाने वाला, सदुंर भृकुटीवाला, कालेबाल, युद्ध के लिये तत्पर, मंत्र वेत्ता तथा उच्च कीर्तियुक्त होता है, रक्तमिश्रित श्यामवर्ण, बहुत शूरवीर, शत्रुओं को नष्ट करने वाला, कम्बुकंठ (शंख समान ग्रीवा), प्रधान पुरुष होता है। क्रूर स्वभाव किंतु गुरु व ब्राह्मणों के प्रति विनम्र, पतली व सुंदर घुटने और जंघा वाला होता है।
रूचक परुुष की हथेली व पैरके तलवुों में ढाल, पाश, बैल, धनुष, चक्र, वीणा और वज्र रेखा का चिह्न हो तो विंध्याचल, सह्यपर्वत (नीलगिरी) या उज्जैन नगर व प्रदेशों का शासक होता है। उसके शरीर में शस्त्र से कटने या अग्नि से जले के निशान होते हैं। 70 वर्ष की आयु में देवस्थान में निधन होता है।
शशक योग :: यदि कुंडली में शनि की खुद की राशि मकर या कुम्भ में हो या उच्च राशि (तुला राशि) का हो या मूल त्रिकोण में हो तो शश योग बनता है। यह योग सप्तम भाव या दशम भाव में हो तो व्यक्ति अपार धन-सम्पति का स्वामी होता है। व्यवसाय और नौकरी के क्षेत्र में ख्याति और उच्च पद को प्राप्त करता है।जिनके जन्मकाल में शनिकृत शशक योग आता है, ऐसे व्यक्ति साहसी, वन, पर्वत जैसे रोमांचक स्थानों पर विचरण करने वाले होते हैं। इनका कद मध्यम होता है और देह कोमल। ये लोग किसी भी काम को कर पाने में सक्षम होते हैं और साथ ही इनके भीतर मातृ भक्ति भी कूट-कूटकर भरी होती है। इनकी बुद्धिमता का कोई सानी नहीं होता।
जिनके जन्मकाल में शनिकृत शशक योग पड़ता है, वह दाँत और मुखवाला, कोपयुक्त, शठ, बहादुर, निर्जन स्थान में घूमने वाला, वन, पर्वत व नदी के तट पर रहने वाला, पतली कमर, मध्यम कद वाला और विख्यात होता है। सेनानायक, सब कार्यों में निपुण, कुछ बडे़ दाँत वाला, धातु वादी, चंचल स्वभाव, गहरी आंखें, स्त्रियों के प्रति आसक्त, पराये धन का लाभेी, मातृभक्त, छिद्रान्वषेी, गुप्त सकंतें को समझने वाला, बहुत बुद्धिमान् और उत्तम जंघावाला होता है।
यदि शशक योग वाले पुरुष के हाथ या पैर में शैय्या, शंख, बाण, चक्र, मृदंग, माला, वीणा, खड़ग जैसी रेखाएं हो तो वह 70 वर्षों तक राज्य करता है। ऐसा मुनियों ने कहा है।
हंस योग :: बृहस्पति कृत हंस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कद में ऊंचा होता है और उसकी नाक भी काफी लंबी होती है। इनकी आवाज काफी मधुर होती है। ये लोग शारीरिक संबंधों को अपना जीवन समझते हैं और कभी एक व्यक्ति से संतुष्ट नहीं होते।
जो गुरुकृत हसं योग में उत्पन्न होता है उसका मुख रक्त वर्ण, ऊंची नाक, सुंदर पैर, स्वच्छ इंद्रियां, गौर वर्ण, भरे हुए गाल, लाल नाखून, हंस के समान वाणीवाला, और कफ की अधिकता वाला हातो है जलाशयों में रमण करने वाला, अति कामुक, स्त्री संभोग से कभी तृप्त न होने वाला, मधु के समान नेत्र और गोल सिर वाला होता है। हंस योग में उत्पन्न महापुरुष के हाथ पैरों में यदि शखां, कमल, अकुंश, रस्सी, मछली, चक्र, धनुष, माला, बाजूबंद या कमल का चिन्ह हो तो वह मथुरा, कंधार, गंगा-यमुना के दोआब प्रदेश पर शासन करता है।
बृहस्पति केंद्र भाव में होकर मूल त्रिकोण स्वगृही (धनु या मीन राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कर्क राशि) का हो तब हंस योग होता है। यह योग व्यक्ति को सुन्दर, हंसमुख, मिलनसार, विनम्र और धन-सम्पति वाला बनाता है। व्यक्ति पुण्य कर्मों में रूचि रखने वाला, दयालु, शास्त्र का ज्ञान रखने वाला होता है।
भद्रयोग :: बुध केंद्र में मूल त्रिकोण-त्रिभुज स्वगृही (मिथुन या कन्या राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कन्या) का हो तो भद्र योग बनता है। इस योग से व्यक्ति उच्च व्यवसायी होता है। व्यक्ति अपने प्रबंधन, कौशल, बुद्धि-विवेक का उपयोग करते हुए धन कमाता है। यह योग सप्तम भाव में होता है तो व्यक्ति देश का जाना माना उधोगपति बन जाता है।
भद्रयोग वाला मनुष्य निकट संबंधियों और अपने परिवार के लोगों को हमेशा प्रसन्न रखता है, वह स्वतंत्र मानसिकता वाला होता है।
भद्र राज योग के साथ-साथ जिस व्यक्ति के हाथ-पैरों में शंख, तलवार, हाथी गदा, पुष्प, बाण, झंडा, चक्र, कमल का निशान हो तो ऐसा व्यक्ति 80 वर्ष की आयु तक जीवित रहता है।
बुध कृत भद्रयोग में उत्पन्न जातक शेर के समान मुँह वाला, हाथी जैसी चाल वाला, भारी तोंद व छाती वाला, लंबी गाले व संदुर भुजाओं वाला, शरीर की लबांई, दोनों हाथों को फैलाकर चौड़ाई के बराबर होती है।  वह शेर के समान साहसी और मुखवाला होता है। ऐसे व्यक्तियों की छाती काफी चौड़ी और भुजाएँ बहुत लंबी होती हैं। इनका देह कामुक होता है और बाल बहुत मुलायम होते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से बेहद गंभीर माने जा सकते हैं।कामुक, शरीर पर मुलायम रोम (बाल) वाला, भरे गालो वाला विद्वान, कमल पुष्प के समान हाथ, परैों वाला, पज्ञ्रावान, सतगुणी-शास्त्र के अनुसार चलने वाला, केसर के समान सुगंधित शरीर वाला, गंभीर वाणी वाला होता है। भ्रद योग वाला पुरुष सब कामों में स्वतंत्र, समर्थ, स्वजनों को प्रसन्न करने में समर्थ होता है। इसके वैभव का लाभ मंत्री लोग उठाते हैं।
जन्म कुंडली में दिखाई दने वाले पंचम महापुरुष योग से किसी व्यक्ति का राजयोग तब तक सिद्ध नहीं होता, जब तक कि राजयागे के लक्षण उसके शारीरिक अंगों और उसकी बनावट पर ना दिखाई देते हों।
सिंघासन योग ::  अगर सभी ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें  और बारहवें घर में बैठ जाए तो कुंडली में सिंघासन योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति शासन अधिकारी बनता है और नाम प्राप्त करता है।
गजकेशरी योग :: गुरू और चन्द्रमा दोनों शुभ ग्रह हैं। कुण्डली में गुरू और चन्द्रमा एक साथ बैठे होते हैं तब गजकेशरी योग बनता है। इस योग का अर्थ है हाथी पर बैठा शेर। इस योग को राजयोग की श्रेणी में रखा गया है। जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है वह प्रतिष्ठित, धनवान, बुद्धिमान और दीर्घायु होता है। धर्म-कर्म में उसकी रूचि होती है। ऐसे व्यक्ति जिस क्षेत्र में होते हैं उनमें निरंतर प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं।
यह योग उन स्थितियों में भी बनता है जब गुरू और चन्द्रमा एक दूसरे से चौथे, सातवें या दसवें घर में होता हैं। चन्द्रमा और गुरू के बीच संबंध नहीं भी हो और केवल गुरू चौथे, सातवें या दसवें घर में शुभ स्थिति में बैठा हो तब भी गजकेशरी योग बनता है।[बृहत्पाराशरहोराशास्त्र]
इस योग से प्रभावित व्यक्ति पढ़ने-लिखने में बहुत ही होशियार होते हैं। यह दयावान और विवेशील होते हैं। आम तौर पर इस योग वाले व्यक्ति उच्च पद पर कार्यरत होते हैं। अपने सद्गुणों के कारण मृत्यु के पश्चात भी इनकी ख्याति बनी रहती है। नरेन्द्र मोदी और अमिताभ बच्चन की कुण्डली में भी यह योग मौजूद है।
पैर में तिल राज्य प्रदाता :: जिसके हाथ में तिल का चिह्न हो वह बड़ा धनवान होता है। किंतु पांव के तलवे में यदि तिल और वाहन का चिह्न हो, तो वह राजा-शासक होता है।
RAJ YOG (LEADERSHIP TRAITS) ::  Excellent Line of Head with branches to the base of fingers, circular Line Life, upward branches of the Life Line moving to the mounts, presence of Special Luck Line, more than one Lines of Fate, presence of Sun Line, pink coloured palm, beautiful hand, straight and beautiful fingers, broad and heavy hand, developed mounts, presence of circles on tips of all the ten fingers.
(1). Presence of a wide gap, between the Line of Life and the Line of Head, rising high on the mount of Jupiter :: Egoistic, foolhardy, recklessness and conceit, inability to fore see danger. A short line shows lack of intelligence.
(2.1). Line of Head rising on Jupiter, slightly away from Life line, reaches mental mars or Luna :: Strong desires, high grasping power, talent-intelligence, capacity to control and diplomacy, finds opportunities in an hour of crises. But, hasty in decision, impetuous in action. Exaggerated Jupiter gives abnormal over confidence. Badly formed crosses in quadrangle, shows lack of enthusiasm.
(2.2). Line of Head rising on Jupiter, touching Life Line, passing through Rahu, ending beyond Mental Mars or Luna :: Strong desires, high grasping power and intelligence, capability to reason out, talented, managerial and administrative capabilities. Good for lawyers and judges. Subject is blessed with high degree of control and diplomacy. He does not misuse power.
(2.3). Line of Head Joined with Life Line at the commencement :: The possessor is sensitive with nervous temperament. He is cautious and can see through cause and effect, being intelligent, full of etiquette, social behaviour and good manners. He has many friends. He is capable of utilising opportunities. He possesses good physical & mental health and is blessed with logic, reasoning & prudence. Such people are found to rise in life astronomically.
(3.1). Independent origin of Line of Head and Line of Life, with narrow gap :: Subject has splendid energy, promptness and self confidence from the early childhood, can reach high positions.
RAJ YOG  राज योग :: One who is born with these makings on the Palm is expected to rise to the highest level of power:
Excellent Line of Head :: A straight line of Head rising from Jupiter free from defects, terminating below the junction of Mercury and Sun finger, a small fork or trident at the termination of Line of Head, increases its strength multi fold. Small branches of the Line of Head in upward direction  towards the Line of Heart (without cutting or resting over it) or moving straight to the base of fingers, through the mounts, increases its strength further-many fold. Such lines are found on the hands of Scientists, Inventors, Discoverers, the people who can see future and thinkers-people born with two Lines of Head. They make progress for family and the nation.
The junction/joint of Life Line and the Line of Head should be small. It should not deviate from its path, suddenly. Branches to fingers, circular Life Line, more than one Fate Line, presence of Sun Line, developed mountains, pink coloured palm, fingers straight and beautiful, broad and heavy hand, presence of special Luck Line awards the possessor with power-might.
(1). Mounts of Jupiter, Saturn, Sun and Mercury are well developed (non exaggerated).
(2). Luck Line and Sun Line are deeply carved from the Rascette to the Mounts of Saturn and Sun respectively.
(3). Line of Head originates over Jupiter and reaches the Juncture of Mount of Luna and the Mount of Mental Mars and terminates just below the juncture of the Mounts of Sun and the Mercury.
(4). Line of Head runs independently without joining the Life Line with a gap of one to two Millie Meters or is just joined at the beginning.
(5). Line of Head having three forks at the termination resting over Mount of Mental Mars (Prajapati), Luna and the Mercury. Such people generally do discoveries-research-innovations.
(6). All the ten fingers (including thumbs) have circle on the third phalanges.
(7). Physical Mount of Mars is well built and placed.
(8). Heart line reaches the Mount of Jupiter without breaks.
(9). Line of Heart has three forks at the termination, directed to the Mounts of Saturn, Jupiter and slightly deviated towards the Physical Mars. Such people head sects, are orators, public figures, admired by the people of all walks of life-faith.
(10). Jupiter ring is well marked, without cuts-breaks.
(11). Small up ward lines originating from the Life Line pointing to the Mount of Saturn.
(12). During present times, kings are not there, but one would become an administrator-supervisor-manager-faculty head acquiring senior position in the organisation, where he is working-employed. One with nicely carves Line of Mercury, reaching the Mount of Mercury, will be able to create-head a business empire.
MAHI मही :: 
मही कनिष्ठिकामूले करमातलगामिनी। 
रेखाSन्यरेख्यामध्ये व्यवधानं विना स्थिता॥ 
तिर्यग्गता स्फुटा तद्वान् सर्वशास्त्रार्थविद्भवेत्। 
महीपतित्वदानाच्च महीत्युक्ता मनीषिभिः॥ 
यह रेखा बुध के नीचे हथेली की ओर से धर्म स्थान-उच्च मंगल-उच्च चन्द्र पर पहुँचती है और जातक को शास्त्रों के ज्ञान सहित राजयोग प्रदान करती है। यह योग तभी समझना चाहिए जब हथेली पर अन्य लक्षण और पर्वतों की स्थिति सहायक हो। 
इस रेखा को विवाह रेखा कभी नहीं समझना चाहिये, क्योंकि वह हृदय रेखा तक ही पहुँच पाती है और जातक के जीवन साथी से मृत्यु या अन्य कारणों से अलग होना दर्शाती है। यह रेखा विवाह रेखा से मोटी, गहरी और स्पष्ट बनी हुई होगी। 
Mahi is found at the base of the little finger, rising to the Mental-Upper Mars-Upper Luna (Dharm Sthan) from the percussion below Mercury. If thick, shinning, clear, oblique-slanting in position; it grants kingship and the meaning-understanding of the Shastr. It should not be confused with the Line of Marriage which stops just above the Line of Heart, indicating death of spouse. However, supporting lines and proper formation of mounts is a must.

MIGHT & POWER-राजयोग की संभावना :: 

*** सामुद्रिक शास्त्र की रचना करने वाले महर्षि समुद्र के कथनानुसार जिस व्यक्ति के पैर के तलवे में अंकुश, कुंडल या चक्र का निशान दिखाई देता है वह एक अच्छा शासक बनकर राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है।
***जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में सूर्य रेखा मस्तक रेखा से मिलती हो और मस्तक रेखा से गहरी स्पष्ट होकर गुरु क्षेत्र में चतुष्कोण में बदल जाये तो ऐसा व्यक्ति उच्च पदासीन होता है। 
***जिस स्त्री या पुरुष की नाभि गहरी हो, नाक या अग्र भाग यानी आगे का हिस्सा सीधा हो, सीना लाल रंग का हो, पैर के तलुये कोमल हों, वह व्यक्ति उच्च पदासीन होता है। 
***जिसके हाथ में सूर्य और गुरु पर्वत उच्च हों और शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिन्ह हो, चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से सम्बन्ध हो और भाग्य रेखा हथेली के मध्य से आरंभ होकर, एक शाखा गुरु पर्वत और दूसरी रेखा सूर्य पर्वत पर जाये तो निश्चय ही यह योग उस जातक के लिये होते है। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा में एक मिली मीटर की दूरी या मस्तिष्क रेखा का उदय वृहस्पति से हो तो भी यही फल होता है। 
***जन्म कुंडली में दिखाई दने वाले पंचम महापुरुष योग से किसी व्यक्ति का राजयोग तब तक सिद्ध नहीं होता, जब तक राज योग की सगंति उस व्यक्ति के शारीरिक अंग लक्षणों, बनावट तथा हाथ की हथेली या पैर के तलवें में शंख, चक्र, गदा, खड्ग, अंकुश, धनुष, वाण आदि के चिन्ह्न (रेखाकृति) न हो।
***राजयोग के लक्षण व चिह्न अत्यतं दुर्लभ हैं जो बहुत कम स्त्री-पुरुषों के शरीर में दिखाई देते हैं। इनका निरीक्षण कुशलतापर्वूक करना चाहिए। लाके तत्रं में यह आवश्यक नहीं है कि राजयोगोत्पन्न व्यक्ति शासक ही हो। वह उच्च अधिकारी बड़ा व्यापारी या बड़ा प्रसिद्ध व सम्मानित व्यक्ति हो सकता है।
हथेली या पांव के तलवों पर शंख, चक्र, गदा, खड्ग, अंकुश, धनुष, बाण आदि के चिह्न होना राजयोग की संभावना को स्पष्ट करता है।
***जिस पुरुष के जन्मकाल में प्रबल राजयोग होता है, उसके हाथों या पैरों में राजचिह्न की रेखाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हें; पुरुषों के दायें हाथ या पैर में तथा स्त्री के बायें हाथ या पैर में यदि कोई एक भी राजचिह्न हो तो निश्चय ही सुख, सोभाग्य व संपत्तिदायक होता है। [जातक भरण-दुण्ढिराज] 
जिसके पावं के तलवे में अकुंश, कुण्डली या चक्र का चिह्न हो वह बड़े राष्ट्र का शासक होता है तथा सर्वश्रेष्ठ शासक हातो है [समुद्र]
जिसके हाथों या पैरों में हस्ती, छत्र, मत्स्य-मछली, तालाब, अंकुश या वीणा के चिह्न हों वह उत्तम पुरुष व मनुष्यों का स्वामी होता है। [जातक भरण]
शक्ति तोमर बाणैश्च करमध्ये च दृश्यते। 
रथचक्र ध्वजाकारौ स च शासनं लभेन्नरः॥ 
जिसके हाथ के बीच में (हथेली में) शक्ति, तोमर, बाण, रथ चक्र या ध्वजा दिखाई देती है, उसे शासन करने का अवसर अवश्य प्राप्त होता है और शासन से लाभ मिलता है।[सामुद्रिक शास्त्र]
जिसके हाथ या पैर में चक्र, धनुष, ध्वजा, कमल, व्यजन या आसन के निशान हों तो उसके घर पर रथ (वाहन) अश्व और पालकी होती है। भूमि-भवन आदि होते हैं तथा उसके घर हमेशा लक्ष्मी का वास रहता है।[जातक भरण]
***जातक भरण ग्रंथ के रचनाकार आचार्य दुण्ढिराज का कहना था कि जिस व्यक्ति के जन्म के समय ही उसकी कुंडली में राजयोग की परिस्थितियां बनती हैं उसके हाथों और पैरों की रेखाएं बिल्कुल स्पष्ट होती हैं। पुरुषों के दाएं हाथ या पैर में और स्त्री के बाएं हाथ या पैर में यदि किसी भी प्रकार का कोई भी राजचिह्न दृष्टिगोचर है तो जीवन सुखमय और संपत्ति से भरपूर बीतेगा।

कुंडली में राजयोग (1) :: कुंडली में नौवें और दसवें स्थान का बड़ा महत्त्व होता है। जन्म कुंडली में नौवां स्थान भाग्य का और दसवां कर्म का स्थान होता है। कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही सबसे ज्यादा सुख और समृधि प्राप्त करता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है और अच्छा भाग्य, अच्छे कार्य व्यक्ति से करवाता है।अगर जन्म कुंडली के नौवें या दसवें घर में सही ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग का निर्माण होता है। राज योग एक ऐसा योग होता है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष राजा के समान सुख प्रदान करता है। इस योग को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है, वह उच्च स्तरीय राजनेता, मंत्री, किसी राजनीतिक दल के प्रमुखया कला और व्यवसाय में खूब मान-सम्मान प्राप्त करते हैं।राजयोग का आंकलन करने के लिए जन्म कुंडली में लग्न को आधार बनाया जाता है। कुंडली की लग्न में सही ग्रह मौजूद होते हैं तो राजयोग का निर्माण होता है।

जन्मपत्री में उच्च अधिकारी बनने के योग यदि कुंडली में :: 
(1.1). स्‍थिर लग्न हो और लग्न में शुक्र स्थित हो। शुक्र की स्‍थिति जितनी अच्छी होगी, उसी के अनुसार उच्च पद प्राप्त होगा।
(1.2). कुंडली में चर लग्न हो और लग्नेश से केंद्र में बृहस्पति स्थित हो, तो बृहस्पति की स्थि‍ति के अनुसार ही उच्च पद प्राप्त होगा।
(1.3). कुंडली में द्विस्वभाव लग्न हो और लग्न के ‍त्रिकोण में मंगल हो।
उपरोक्त तीनों योगों में योग बनाने वाला ग्रह अस्त नहीं होना चाहिए और दूसरे यह जितना अधिक बलवान होगा, उतना ही अधिक शुभ फलदायी होगा।
(1.4). लग्नेश दशम भाव में तथा दशमेश लग्न में स्थित हो तथा बृहस्पति से दृष्ट हो।
(1.5). जिस राशि में नवमेश हो, उसका स्वामी जिस राशि में है, उस राशि का स्वामी यदि उच्च राशि में हो तथा लग्नेश लग्न से केंद्र में शुभ ग्रह से युत हो, तो यह योग भी जातक को उच्च पदाधिकारी बना देता है।
(1.6). नवमेश जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी यदि अपनी उच्च र‍ाशि में स्थित होकर लग्न से दूसरे भाव में हो तथा धनेश अपनी उच्च राशि में हो, तो इस योग वाला जातक भी उच्च पदाधिकारी होता है।
(1.7). दशम भाव में चंद्रमा स्‍थित हो तथा दशमेश अपनी उच्च राशि में हो एवं भाग्येश लग्न से द्वितीय भाव में हो।
(1.8). पंचम तथा एकादश भाव में (-दोनों भावों में) सौम्य ग्रह स्थित हों तथा दूसरे व आठवें भाव में पाप ग्रह हों।
(1.9). सभी सातों ग्रह मेष, कर्क, तुला व मकर, इन राशियों में हों अथवा इनमें एक ही में, दो में, तीन में या चारों में हों।
(1.10). बृहस्पति द्वितीय भाव या नवम भाव का स्वामी हो तथा नवमेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी बृहस्पति से युत हो एवं दोनों द्वितीय भाव में स्थित हों। यह योग केवल मेष, कर्क, वृश्चिक व कुंभ लग्न वाली कुंडलियों पर ही लागू हो सकता है।
(1.11). लग्न से दशम भाव में सूर्य स्थित हो तथा दशमेश लग्न से तीसरे भाव में स्थि‍त हों।
(1.12). चंद्रमा व बृहस्पति दोनों लग्न से द्वितीय भाव में स्थित हों, द्वितीयेश लाभ भाव में हो तथा लग्नेश शुभ ग्रह से युत हों।
(1.13). कुंडली में नवमेश व दशमेश का परस्पर स्थान विनिमय हो (अर्थात नवमेश दशम भाव में तथा दशमेश नवम भाव में हो) तथा लग्नेश नवम या दशम भाव में हो तथा लग्नेश पर बृहस्पति की दृष्टि हो। 
(1.14). मकर लग्न कुंडली में लग्न से पंचम में चंद्रमा, सप्तम में सूर्य व बुध हों, अष्टम भाव में गुरु व शुक्र हों तथा एकादश भाव में शनि हो।
(1.15). मंगल जिस राशि में स्थित हो, उससे दूसरे, पांचवें या नौवें स्थान में बुध तथा शुक्र हों तथा शनि तुला राशि का दशम में हो। यह योग केवल मकर लग्न कुंडली पर ही लागू हो सकता है।
(1.16). मिथुन लग्न कुंडली में दशम भाव में गुरु व शुक्र स्‍थित हों।
(1.17). मकर लग्न कुंडली में पंचम भाव में चंद्रमा हो, लग्न में बुध व शुक्र तथा नवम भाव में बृहस्पति हो। 
(1.18). धनु लग्न कुंडली में बृहस्पति बारहवें भाव में तथा शनि लाभ भाव में हो।
(1.19). कुंडली में लग्नेश तथा चंद्र (-चंद्रमा जिस राशि में हो, उसका स्वामी) दोनों केंद्र में अपने मित्र की राशि में युत हों तथा लग्न बलवान हो।
(1.20). कुंभ लग्न की कुंडली में तीसरे भाव में उच्च राशि का सूर्य बैठा हो।
(1.21). तुला लग्न कुंडली में अष्टम भाव में बृहस्पति, नवम भाव में शनि तथा ग्यारहवें भाव में मंगल तथा बुध हो।
(1.22). धनु लग्न कुंडली में सूर्य व बृहस्पति दोनों ही दशम भाव में स्थित हों।
(1.23). कुंडली में मंगल अपनी उच्च राशि या स्वराशि का होकर दशम भाव में बैठा हो तथा उस पर लग्नेश की दृष्टि भी हो। 
(1.24). मंगल, सूर्य, बुध, बृहस्पति, शनि, दशम भाव तथा दशमेश- इन सबकी स्थि‍‍ति जितनी अच्छी होगी, उतना अधिक उच्चस्थान-पद प्राप्त होगा। 
राजपुरुष के अंग लक्षण :: 
(2.1). जिस पुरुष का सिर गोल, चौड़ा मस्तक, कान तक फैले नीलकमल के समान नेत्र तथा घुटनों तक लंबे हाथ हों तो वह समस्त भूमंडल का राजा होता है। 
(2.2). जिस पुरुष की लम्बी नाक-नासिका, चौड़ी व मजबूत छाती-सीना, गहरी नाभि और कोमल तथा रक्तवर्ण चरण हो वह बड़ा प्रतापी राजा होता है।
(2.3). राजा का वर्ण-रंग स्निग्ध व तेजस्वी होता है। जीभ, दांत, त्वचा, नाखून व बालों में चमक होती है।
(2.4). शत्रुजित राज पुरुष का स्वर शंख, मृदंग, हाथी, रथ की गति, भेरी, सांड, बादलों की गर्जना के समान इनमें से किसी एक के समान होता है।
(3.1). जिस व्यक्ति की हथेली के मध्य भाग में घोड़ा, घड़ा, पेड़ या स्तम्भ का चिह्न हो, वह राजसुख करता है। ऐसे लोग किसी नगरसेठ के समान धनी होते हैं।
(2). जिस व्यक्ति का ललाट (माथा) चौड़ा और विशाल हो, नेत्र सुन्दर, मस्तक गोल और भुजाएं लंबी होती हैं, वह व्यक्ति भी राजसुख प्राप्त करता है।
(3.3). जिस व्यक्ति के हाथ में धनुष, चक्र, माला, कमल, ध्वजा, रथ, आसन अथवा चतुष्कोण हो, उसे महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
(3.4). यदि अंगूठे में यव का चिह्न हो, साथ ही मछली, छाता, अंकुश, वीणा, सरोवर या हाथी समान चिह्न हो तो वह व्यक्ति यश्स्वी और अपार धन का स्वामी होता है।
(3.5). जिस व्यक्ति के हाथ में तलवार, पहाड़ या हल का चिह्न हो, उसके पास धन की कमी नहीं होती है।
(3.6). जिन लोगों के हाथ की सूर्य रेखा, मस्तक रेखा से मिली हुई हो और मस्तक रेखा स्पष्ट सीधी होकर गुरु की ओर झुकने से चतुष्कोण का निर्माण होता हो, वह मंत्री समान सुख प्राप्त करता है।
(3.7). जिसके हाथ में गुरु, सूर्य पर्वत उच्च हों, शनि और बुध रेखा पुष्ट एवं स्पष्ट और सीधी हो, वह शासन में उच्च पद प्राप्त कर सकता है।
(3.8). यदि व्यक्ति के हाथ में शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिह्न हो, चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से संबंध हो या भाग्य रेखा हथेली के मध्य से प्रारंभ हो और उसकी एक शाखा गुरु पर्वत पर और एक सूर्य पर्वत पर जाए तो व्यक्ति राज्याधिकारी होता है।
(3.9). जिन लोगों के हाथ में गुरु और मंगल पर्वत उच्च हो, मस्तिष्क रेखा द्विजिव्ही यानी दो शाखाओं वाली हो या बुध की उंगली नुकीली हो और लम्बी हो,साथ ही नाखून चमकदार हो तो व्यक्ति राजदूत होता है।
(3.10). जिस व्यक्ति के बाएं हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) एवं कनिष्ठिका उंगली (लिटिल फिंगर) की अपेक्षा दाहिने हाथ की तर्जनी एवं कनिष्ठि का मोटी और बड़ी हो, मंगल पर्वत अधिक ऊँचा हो और सूर्य रेखा प्रबल हो तो व्यक्ति कलेक्टर या कमीश्नर बन सकता है।
(4). यदि 2, 3, 5, 6, 8, 9 तथा 11, 12 में से किसी स्थान में बृहस्पति की स्थिति हो और शुक्र 8वें स्थान में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति में जन्म लेने वाला जातक चाहे साधारण परिवार में ही क्यों न जन्मा हो, वह राज्याधिकारी ही बनता है। 
(5).  वृहज्जातक के अनुसार बारह प्रकार के राजयोग :: 
(5.1). तीन ग्रह उच्च के होने पर जातक स्वकुलानुसार राजा होता है। यदि उच्चवर्ती तीन पापग्रह हों तो जातक क्रूर बुद्धि का राजा होता है और शुभ ग्रह होने पर सद्बुद्धि युक्त। उच्चवर्ती पाप-ग्रहों से राजा की समानता करने वाला होता है, किन्तु राजा नहीं होता।
(5.2). मंगल, शनि, सूर्य और गुरू चारों अपनी-अपनी उच्च राशियों में हों और कोई एक ग्रह लग्न में उच्चराशि का हो तो चार प्रकार का राजयोग होता है। चन्द्रमा कर्क लग्न में हो और मंगल, सूर्य तथा शनि और गुरू में से कोई भी दो ग्रह उच्च हों तो, भी राजयोग होता है। जैसे- मेष लग्न में सूर्य, कर्क में गुरू, तुला का शनि और मकर राशि में मंगल भी प्रबल राजयोग कारक हैं। कर्क लग्न से दूसरा, तुला से तीसरा, मकर से चौथा जो तीन ग्रह उच्च के हों जैसे मेष में सूर्य, कर्क में गुरू, तुला में शनि तो भी राजयोग माना जाता है।
(5.3). शनि कुंभ में, सूर्य मेष में, बुध मिथुन में, सिंह का गुरू और वृश्चिक का मंगल तथा शनि सूर्य और चन्द्रमा में से एक ग्रह लग्न में हो तो भी 5 प्रकार का राजयोग माना जाता है। सूर्य बुध कन्या में हो, तुला का शनि, वृष का चंद्रमा और तुला में शुक्र, मेष में मंगल तथा कर्क में बृहस्पति भी राज योग प्रद ही माने जाते हैं। मंगल उच्च का सूर्य और चन्द्र धनु में और लग्न में मंगल के साथ यदि मकर का शनि भी हो तो मनुष्य निश्चित ही राजा होता है। शनि चन्द्रमा के साथ सप्तम में हो और बृहस्पति धनु का हो तथा सूर्य मेष राशि का हो और लग्न में हो तो भी मनुष्य राजा होता है। वृष का चन्द्रमा लग्न में हो और सिंह का सूर्य तथा वृश्चिक का बृहस्पति और कुंभ का शनि हो तो मनुष्य निश्चय ही राजा होता है। मकर का शनि, तीसरा चन्द्रमा, छठा मंगल, नवम् बुध, बारहवाँ बृहस्पति हो तो मनुष्य अनेक सुंदर गुणों से युक्त राजा होता है।
(5.4). धनु का बृहस्पति चंद्रमा युक्त क्र अपने-अपने उच्च में लग्न गत हों तो जातक गुणावान राजा होता है। और मंगल मकर का और बुध शुक्र अपने-अपने उच्च में लग्न गत हों तो जातक गुणावान राजा होता है।
(5.5). मंगल शनि पंचम गुरू और शुक्र चतुर्थ तथा कन्या लग्न में बुध हों तो जातक गुणावान राजा होता है।
(5.6). मीन का चंद्रमा लग्न में हो, कुंभ का शनि, मकर का मंगल, सिंह का सूर्य जिसके जन्म कुण्डली में हों वह जातक भूमि का पालन करने वाला गुणी राजा होता है।
(5.7). मेष का मंगल लग्न में, कर्क का बृहस्पति हो तो जातक शक्तिशाली राजा होता है। कर्क का गुरू लग्न में हो और मेष का मंगल हो तो जातक गुणवान राजा होता है।
(5.8). कर्क लग्न में बृहस्पति और ग्याहरवें स्थान में वृष का चंद्रमा शुक्र, बुध और मेष का सूर्य दशम स्थान में होने से जातक पराक्रमी राजा होता है।
(5.9). मकर लग्न में शनि, मेष लग्न में मंगल, कर्क का चन्द्र, सिंह का सूर्य, मिथुन का बुध और तुला का शुक्र होने से जातक यशस्वी व भूमिपति होता है।
(5.10). कन्या का बुध लग्न में और दशम शुक्र सप्तम् बृहस्पति तथा चन्द्र ो भी जातक राजा होता है। हो और शनि मंगल पंचम हों तो भी जातक राजा होता है। जितने भी राजयोग हैं इनके अन्तर्गत जन्म पाने पर मनुष्य चाहे जिस जाति स्वभाव और वर्ण का क्यों न हो वे राजा ही होता है। फिर राजवंश में जन्म प्राप्त करने वाले जातक तो चक्रवर्ती राजा तक हो सकते हैं। किन्तु अब कुछ इस प्रकार के योगों का वर्णन किया जा रहा है जिनमंे केवल राजा का पुत्र ही राजा होता है तथा अन्य जातियों के लोग राजा तुल्य होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि राजा का पुत्र राजा ही हो उसके लिये निम्नलिखित में से किसी एक का होना नितांत आवश्यक है कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि राजवंश में जन्म पाने वाला जातक भी सामान्य व्यक्ति होता है और सामान्य वंश और स्थिति में जन्म पाने वाला महान हो जाता है उसका यही कारण है।
(5.11). यदि त्रिकोण में 3-4 ग्रह बलवान हों तो राजवंशीय राजा होते हैं। जब 5-6-7 भाव में ग्रह उच्च अथवा मूल त्रिकोण में हों तो अन्य वंशीय जातक भी राजा होते हैं। मेष के सूर्य चंद्र लग्नस्थ हों और मंगल मकर का तथा शनि कुंभ का बृहस्पति धनु का हो तो राजवंशीय राजा होता है। यदि शुक्र 2, 7 राशि का चतुर्थ भाव में और नवम स्थान में चंद्रमा हो और सभी ग्रह 3,1,11 भाव में ही हों तो ऐसा जातक राजवंशीय राजा होता है। बलवान बुध लग्न में और बलवान शुक्र तथा बृहस्पति नवम स्थान में हो और शेष ग्रह 4, 2, 3, 6, 10, 11 भाव में ही हों तो ऐसा राजपुत्र धर्मात्मा और धनी-मानी राजा होता है। यदि वृष का चंद्रमा लग्न में हो और मिथुन का बृहस्पति, तुला का शनि और मीन राशि में अन्य रवि, मंगल, बुध तथा शुक्र ग्रह हों तो राजपुत्र अत्यंत धनी होता है। दशम चन्द्रमा, ग्याहरवां शनि, लग्न का गुरू, दूसरा बुध और मंगल, से राजपुत्र राजा ही होेता है। किंतु यदि मंगल शनि लग्न में चतुर्थ चंद्रमा और सप्तम बृहस्पति, नवम, शुक्र, दशम सूर्य, ग्यारहवें बुध हो तो भी यही फल होता है। चतुर्थ में सूर्य और शुक्र होने से राजपुत्र राजा ही होेता है। किंतु यदि मंगल शनि लग्न में चतुर्थ चंद्रमा और सप्तम बृहस्पति, नवम, शुक्र, दशम सूर्य, ग्यारहवें बुध हो तो भी यही फल होता है। एक बात सबसे अधिक ध्यान देने की यह है कि राजयोग का निर्माण करने वाले समस्त ग्रहों में से जो ग्रह दशम तथा लग्न में स्थित हों तो, उनकी अन्तर्दशा में राज्य लाभ होगा जब दोनों स्थानों में ग्रह हों तो उनसे भी अधिक शक्तिशाली राज्य लाभ होगा, उसके अन्तर्दशा में जो लग्न दशम में हों अनेक ग्रह हों तो उनमें जो सर्वाेत्तम बली हो उसके प्रभाव के द्वारा ही राज्य का लाभ हो सकेगा। बलवान ग्रह द्वारा प्राप्त हुआ राज्य भी छिद्र दशा द्वारा समाप्त हो जाता है। यह जन्म कालिक शत्रु या नीच राशिगत ग्रह की अन्तर्दशा छिद्र दशा कहलाती है। जो राज्य को समाप्त करती है अथवा बाधायें उपस्थित करती है।
(5.12). यदि बृहस्पति, शुक्र और बुध की राशियां 4, 12, 6, 2, 3, 6 लग्न में हों और सातवां शनि तथा दशम सूर्य हो तो भी मनुष्य धन रहित होकर भी भाग्यवान होता है और अच्छे साधन उसके लिये सदा उपलब्ध होते हैं। यदि केन्द्रगत ग्रह पाप राशि में हों और सौम्य राशियों में पापग्रह होें तो ऐसा मनुष्य चोरों का राजा होता है। इस प्रकार से विभिन्न राजयोगों के होने पर मनुष्य सुख और ऐश्वर्य का भोग करता है।
 (6.1). जिस व्यक्ति के पैर की तर्जनी उंगली में तिल का चिन्ह हो, वह पुरूष राज्य-वाहन का अधिकारी होता है।
(6.2). जिसके हाथ की उँगलियों के प्रथम पर्व ऊपर की ओर अधिक झुके हों, वह जनप्रिय तथा नेतृत्व करने वाला होता है।
(6.3). जिसके हाथ में चक्र, दण्ड एवं छत्रयुक्त रेखायें हों वह व्यक्ति निसंदेह राजा अथवा राजतुल्य होता है।
(6.4). जिसके मस्तिष्क-माथे पर सीधी रेखायें और तिलादि का चिन्ह हो, वह राजा के समान ही सुख को प्राप्त करता है और उसमें बैद्धिक कुशलता भी पर्याप्त मात्रा में होती है।
मनुष्यों में श्रेष्ठ :: जातक भरण ग्रंथ के अनसुार ऐसा व्यक्ति जिसके हाथों या पैरों में हस्ती, छत्र, मछली, तालाब, अंकुश या वीणा जैसे दिखने वाले निशान हो तो वह व्यक्ति उत्तम पुरुष और सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ होता है।
शासन का अवसर :: जिस व्यक्ति की हथेली के बीचो-बीच शक्ति, तोमर, बाण, रथ, चक्र या ध्वजा का निशान दिखता है उसे शासन करने का एक बड़ा अवसर मिलता है जिसका वह लाभ भी उठाता है।
लक्ष्मी का वास :: ऐसा व्यक्ति जिसके पैर में पहिए या चक्र के अलावा कमल, आसन का निशान होता है उसे भूमि-भवन जैसी सुख सुविधाएं आजीवन प्राप्त होती हैं। उसके घर में लक्ष्मी का सदा वास रहता है।
पैर या हथेली पर तिल :: जिस व्यक्ति की हथेली के बीचो-बीच तिल होता है वह बेहद धनवान और सामाजिक रूप में आदरणीय बनता है। इसके अलावा जिन लोगों के पैरों के तलवे पर तिल या वाहन जैसा दिखने वाला निशान होता है वह एक बेहतरीन शासक कहलाता है।
भाग्य रेखा :: मध्यमा अगुंली के ठीक नीचे मणिबधं तक भाग्य रेखा स्पष्ट और अखंडित हो तो ऐसे व्यक्ति को हर प्रकार का सांसारिक सुख, सुविधा और यश की प्राप्ति होती है। यह लक्षण सूर्य रेखा के सहयोग से फलता है। 
अंगों द्वारा भविष्य का ज्ञान :: सामुद्रिक शात्र के अनुसार जिस व्यक्ति की छाती चौड़ी, नाक लंबी होती है और नाभि गहरी होती है उसकी किस्मत उसे एक बड़ा शासक बनाती है।
पंच महापुरुष योग :: सामुद्रिक शास्त्र में पांच तरह के योग बताए गए हैं, जो इंसान की किस्मत का निर्धारण करते हैं। इन योगों में जन्म लेने वाला व्यक्ति किसी ना किसी प्रदेश का शासक जरूर बनता है, साथ ही ये योग व्यक्तित्व को भी भली प्रकार जाहिर करते हैं।
मालव्य योग :: कुंडली के केंद्र भावों में स्तिथ शुक्र मूल त्रिकोण-त्रिभुज अथवा स्वगृही (वृष या तुला राशि में हो) या उच्च (मीन राशि) का हो तो मालव्य योग बनता है। इस योग से व्यक्ति सुन्दर, गुणी, तेजस्वी, धैर्यवान, धनी तथा सुख-सुविधाएँ प्राप्त करता है।
शुक्रकृत मालव्य नामक महापुरुष योग में जन्मा जातक पतले होठों वाला, सम शरीर, अंग संधियों में पुष्टता व लालिमा, पतली कमर, चंद्रमा जैसी क्रांति, लंबी नासिका, हाथी के समान प्रभावशाली वाणी, आखों में चमक, एक समान व सफेद दांत, घुटनों तक लंबे हाथ व 70 वर्ष का आयुर्दाय होता है।
जिसका मुख मंडल तेरह अंगुल लंबा, दस अंगुल चौड़ा, एक कान के छेद से दूसरे कान के छेद के बीच की दूरी 20 अंगुल होती है, ऐसे मालव्य यागे वाला पुरुष मालवा या सिंध प्रदेश पर शासन करता है। [श्रीदेव कीर्तिराज]
रूचक योग :: मंगल केंद्र भाव में होकर अपने मूल त्रिकोण (पहला, पाँचवाँ और नवाँभाव), स्वग्रही (मेष या वृश्चिक भाव में हो तो) अथवा उच्च राशि (मकर राशि) का हो तो रूचक योग बनता है। रूचक योग होने पर व्यक्ति बलवान, साहसी, तेजस्वी, उच्च स्तरीय वाहन रखने वाला होता है। इस योग में जन्मा व्यक्ति विशेष पद प्राप्त करता है।
मंगल से बनने वाले रूचक योग में जन्मा मनुष्य दीर्घ-लंबे शरीर वाला, निर्मल कांति व रूधिर की अधिकता से बहुत बलवान, साहसिक कर्मो से सफलता पाने वाला, सदुंर भृकुटीवाला, कालेबाल, युद्ध के लिये तत्पर, मंत्र वेत्ता तथा उच्च कीर्तियुक्त होता है, रक्तमिश्रित श्यामवर्ण, बहुत शूरवीर, शत्रुओं को नष्ट करने वाला, कम्बुकंठ (शंख समान ग्रीवा), प्रधान पुरुष होता है। क्रूर स्वभाव किंतु गुरु व ब्राह्मणों के प्रति विनम्र, पतली व सुंदर घुटने और जंघा वाला होता है।
रूचक परुुष की हथेली व पैरके तलवुों में ढाल, पाश, बैल, धनुष, चक्र, वीणा और वज्र रेखा का चिह्न हो तो विंध्याचल, सह्यपर्वत (नीलगिरी) या उज्जैन नगर व प्रदेशों का शासक होता है। उसके शरीर में शस्त्र से कटने या अग्नि से जले के निशान होते हैं। 70 वर्ष की आयु में देवस्थान में निधन होता है।
शशक योग :: यदि कुंडली में शनि की खुद की राशि मकर या कुम्भ में हो या उच्च राशि (तुला राशि) का हो या मूल त्रिकोण में हो तो शश योग बनता है। यह योग सप्तम भाव या दशम भाव में हो तो व्यक्ति अपार धन-सम्पति का स्वामी होता है। व्यवसाय और नौकरी के क्षेत्र में ख्याति और उच्च पद को प्राप्त करता है।जिनके जन्मकाल में शनिकृत शशक योग आता है, ऐसे व्यक्ति साहसी, वन, पर्वत जैसे रोमांचक स्थानों पर विचरण करने वाले होते हैं। इनका कद मध्यम होता है और देह कोमल। ये लोग किसी भी काम को कर पाने में सक्षम होते हैं और साथ ही इनके भीतर मातृ भक्ति भी कूट-कूटकर भरी होती है। इनकी बुद्धिमता का कोई सानी नहीं होता।
जिनके जन्मकाल में शनिकृत शशक योग पड़ता है, वह दाँत और मुखवाला, कोपयुक्त, शठ, बहादुर, निर्जन स्थान में घूमने वाला, वन, पर्वत व नदी के तट पर रहने वाला, पतली कमर, मध्यम कद वाला और विख्यात होता है। सेनानायक, सब कार्यों में निपुण, कुछ बडे़ दाँत वाला, धातु वादी, चंचल स्वभाव, गहरी आंखें, स्त्रियों के प्रति आसक्त, पराये धन का लाभेी, मातृभक्त, छिद्रान्वषेी, गुप्त सकंतें को समझने वाला, बहुत बुद्धिमान् और उत्तम जंघावाला होता है।
यदि शशक योग वाले पुरुष के हाथ या पैर में शैय्या, शंख, बाण, चक्र, मृदंग, माला, वीणा, खड़ग जैसी रेखाएं हो तो वह 70 वर्षों तक राज्य करता है। ऐसा मुनियों ने कहा है।
हंस योग :: बृहस्पति कृत हंस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कद में ऊंचा होता है और उसकी नाक भी काफी लंबी होती है। इनकी आवाज काफी मधुर होती है। ये लोग शारीरिक संबंधों को अपना जीवन समझते हैं और कभी एक व्यक्ति से संतुष्ट नहीं होते।
जो गुरुकृत हसं योग में उत्पन्न होता है उसका मुख रक्त वर्ण, ऊंची नाक, सुंदर पैर, स्वच्छ इंद्रियां, गौर वर्ण, भरे हुए गाल, लाल नाखून, हंस के समान वाणीवाला, और कफ की अधिकता वाला हातो है जलाशयों में रमण करने वाला, अति कामुक, स्त्री संभोग से कभी तृप्त न होने वाला, मधु के समान नेत्र और गोल सिर वाला होता है। हंस योग में उत्पन्न महापुरुष के हाथ पैरों में यदि शखां, कमल, अकुंश, रस्सी, मछली, चक्र, धनुष, माला, बाजूबंद या कमल का चिन्ह हो तो वह मथुरा, कंधार, गंगा-यमुना के दोआब प्रदेश पर शासन करता है।
बृहस्पति केंद्र भाव में होकर मूल त्रिकोण स्वगृही (धनु या मीन राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कर्क राशि) का हो तब हंस योग होता है। यह योग व्यक्ति को सुन्दर, हंसमुख, मिलनसार, विनम्र और धन-सम्पति वाला बनाता है। व्यक्ति पुण्य कर्मों में रूचि रखने वाला, दयालु, शास्त्र का ज्ञान रखने वाला होता है।
भद्रयोग :: बुध केंद्र में मूल त्रिकोण-त्रिभुज स्वगृही (मिथुन या कन्या राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कन्या) का हो तो भद्र योग बनता है। इस योग से व्यक्ति उच्च व्यवसायी होता है। व्यक्ति अपने प्रबंधन, कौशल, बुद्धि-विवेक का उपयोग करते हुए धन कमाता है। यह योग सप्तम भाव में होता है तो व्यक्ति देश का जाना माना उधोगपति बन जाता है।
भद्रयोग वाला मनुष्य निकट संबंधियों और अपने परिवार के लोगों को हमेशा प्रसन्न रखता है, वह स्वतंत्र मानसिकता वाला होता है।
भद्र राज योग के साथ-साथ जिस व्यक्ति के हाथ-पैरों में शंख, तलवार, हाथी गदा, पुष्प, बाण, झंडा, चक्र, कमल का निशान हो तो ऐसा व्यक्ति 80 वर्ष की आयु तक जीवित रहता है।
बुध कृत भद्रयोग में उत्पन्न जातक शेर के समान मुँह वाला, हाथी जैसी चाल वाला, भारी तोंद व छाती वाला, लंबी गाले व संदुर भुजाओं वाला, शरीर की लबांई, दोनों हाथों को फैलाकर चौड़ाई के बराबर होती है।  वह शेर के समान साहसी और मुखवाला होता है। ऐसे व्यक्तियों की छाती काफी चौड़ी और भुजाएँ बहुत लंबी होती हैं। इनका देह कामुक होता है और बाल बहुत मुलायम होते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से बेहद गंभीर माने जा सकते हैं।कामुक, शरीर पर मुलायम रोम (बाल) वाला, भरे गालो वाला विद्वान, कमल पुष्प के समान हाथ, परैों वाला, पज्ञ्रावान, सतगुणी-शास्त्र के अनुसार चलने वाला, केसर के समान सुगंधित शरीर वाला, गंभीर वाणी वाला होता है। भ्रद योग वाला पुरुष सब कामों में स्वतंत्र, समर्थ, स्वजनों को प्रसन्न करने में समर्थ होता है। इसके वैभव का लाभ मंत्री लोग उठाते हैं।
जन्म कुंडली में दिखाई दने वाले पंचम महापुरुष योग से किसी व्यक्ति का राजयोग तब तक सिद्ध नहीं होता, जब तक कि राजयागे के लक्षण उसके शारीरिक अंगों और उसकी बनावट पर ना दिखाई देते हों।
सिंघासन योग ::  अगर सभी ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें  और बारहवें घर में बैठ जाए तो कुंडली में सिंघासन योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति शासन अधिकारी बनता है और नाम प्राप्त करता है।
पैर में तिल राज्य प्रदाता :: जिसके हाथ में तिल का चिह्न हो वह बड़ा धनवान होता है। किंतु पांव के तलवे में यदि तिल और वाहन का चिह्न हो, तो वह राजा-शासक होता है। 
(7). VAJRA REKHA (Thunder volt) वज्र रेखा :- इस रेखा को हीरक रेखा भी कहते हैं। जिस जातक की जन्म कुण्डली में शुक्र उच्च का हो अथवा केन्द्र में हो या फिर योग कारक लग्न में बैठा हो तो उस जातक के अँगुष्ठ मूल में निश्चित रूप से यह रेखा पाई जायेगी। यह भाग्य और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री रेखा मानी गई है। 
यदि जातक के हाथ में रति रेखा विखण्डित हो और वज्र रेखा स्पष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत धनाढ्य होता है परन्तु उसे शराब-नशे की लत हो जाती है और वह गुप्त रोगों का शिकार हो जाता है। परन्तु यदि केसर रेखा भी उपस्थित हो तो वह निश्चित रूप से करोड़पति होगा। उसकी कुण्डली में राजयोग प्रबल होता है और 
उसे कोई न कोई बीमारी अवश्य रहती है। 
यदि वज्र रेखा स्पष्ट हो किन्तु केसर रेखा और फल रेखा विखण्डित हों तो भी जातक लाखों-करोड़ों में खेलता है; परन्तु उसका भाग्य उस जुआरी की तरह होता है जिसके आने और जाने का कोई पता नहीं चलता।  
This line would be found in the hand of the person who has auspicious-ascendant Venus or when Venus is placed at the center or  is Yog Karak-under active paraphrase, at the root of the thumb. This line grants good luck and grants wealth-comforts-luxury.
If the Rati-Passion Line is broken and the Vajr-Thunder Volt line is clear, the bearer would be wealthy-rich; but plagued by addiction of drugs and wine. He may acquire venereal diseases as well. Presence of Kesar-Saffron line would certainly make him a multimillionaire and he would be having fair chances of becoming an administrator-minister. But he will have either one or the other disease.
If the Vajr Rekha is clear and the Kesar line and the Fal Rekha-line of Reward are broken, he would be rich and have millions but he will not count income or expenses in millions.
Yog-Karaks are those planets which, confer fame, honour, dignity, financial prosperity, political success and reputation. The lords of the Kendrs and Trikons (if not also owning a Trikon or associated with a Trik-lord Lord of the 6th, the 8th, or the 12th house) associating with each other or the lords of the 9th and 10th interchanging signs or fully aspecting each other, give rise to Raj Yog.

(1) :: कुंडली में नौवें और दसवें स्थान का बड़ा महत्त्व होता है। जन्म कुंडली में नौवां स्थान भाग्य का और दसवां कर्म का स्थान होता है। कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही सबसे ज्यादा सुख और समृधि प्राप्त करता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है और अच्छा भाग्य, अच्छे कार्य व्यक्ति से करवाता है।अगर जन्म कुंडली के नौवें या दसवें घर में सही ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग का निर्माण होता है। राज योग एक ऐसा योग होता है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष राजा के समान सुख प्रदान करता है। इस योग को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है, वह उच्च स्तरीय राजनेता, मंत्री, किसी राजनीतिक दल के प्रमुखया कला और व्यवसाय में खूब मान-सम्मान प्राप्त करते हैं।राजयोग का आंकलन करने के लिए जन्म कुंडली में लग्न को आधार बनाया जाता है। कुंडली की लग्न में सही ग्रह मौजूद होते हैं तो राजयोग का निर्माण होता है।

कुण्डली में राजयोग का निर्माण ::
मेष लग्न :- मेष लग्न में मंगल और ब्रहस्पति अगर कुंडली के नौवें या दसवें भाव में विराजमान होते हैं तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
वृष लग्न :- वृष लग्न में शुक्र और शनि अगर नौवें या दसवें स्थान पर विराजमान होते हैं तो यह राजयोग का निर्माण कर देते हैं।इस लग्न में शनि राजयोग के लिए अहम कारक बताया जाता है।
मिथुन लग्न :- मिथुन लग्न में अगर बुध या शनि कुंडली के नौवें या दसवें घर में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले जातक का जीवन राजाओं जैसा बन जाता है।
कर्क लग्न :- कर्क लग्न में अगर चंद्रमा और ब्रहस्पति भाग्य या कर्म के स्थान पर मौजूद होते हैं तो यह केंद्र त्रिकोंण राज योग बना देते हैं। इस लग्न वालों के लिए ब्रहस्पति और चन्द्रमा बेहद शुभ ग्रह भी बताये जाते हैं।
सिंह लग्न :- सिंह लग्न के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य और मंगल दसमं या भाग्य स्थान में बैठ जाते हैं तो जातक के जीवन में राज योग कारक का निर्माण हो जाता है।
कन्या लग्न :- कन्या लग्न में बुध और शुक्र अगर भाग्य स्थान या दसमं भाव में एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
तुला लग्न :- तुला लग्न वालों का भी शुक्र या बुध अगर कुंडली के नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाता है तो इस ग्रहों का शुभ असर जातक को राजयोग के रूप में प्राप्त होने लगता है।
वृश्चिक लग्न :- वृश्चिक लग्न में सूर्य और मंगल, भाग्य स्थान या कर्म स्थान (नौवें या दसवें) भाव में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले का जीवन राजाओं जैसा हो जाता है। यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि अगर मंगल और चंद्रमा भी भाग्य या कर्म स्थान पर आ जायें तो यह शुभ रहता है।
धनु लग्न :- धनु लग्न के जातकों की कुंडली में राजयोग के कारक, ब्रहस्पति और सूर्य माने जाते हैं। यह दोनों ग्रह अगरनौवें या दसवें घर में एक साथ बैठ जायें तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
मकर लग्न :- मकर लग्न वाली की कुंडली में अगर शनि और बुध की युति, भाग्य या कर्म स्थान पर मौजूद होती है तो राजयोग बन जाता है।
कुंभ लग्न :- कुंभ लग्न वालों का अगर शुक्र और शनि नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
मीन लग्न :- मीन लग्न वालों का अगर ब्रहस्पति और मंगल जन्म कुंडली के नवें या दसमं स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाते हैं तो यह राज योग बना देते हैं।
राज योग (2) जन्मपत्री में उच्च अधिकारी बनने के योग :: यदि कुंडली में 
(1). स्‍थिर लग्न हो और लग्न में शुक्र स्थित हो। शुक्र की स्‍थिति जितनी अच्छी होगी, उसी के अनुसार उच्च पद प्राप्त होगा।
(2). कुंडली में चर लग्न हो और लग्नेश से केंद्र में बृहस्पति स्थित हो, तो बृहस्पति की स्थि‍ति के अनुसार ही उच्च पद प्राप्त होगा।
(3). कुंडली में द्विस्वभाव लग्न हो और लग्न के ‍त्रिकोण में मंगल हो।
उपरोक्त तीनों योगों में योग बनाने वाला ग्रह अस्त नहीं होना चाहिए और दूसरे यह जितना अधिक बलवान होगा, उतना ही अधिक शुभ फलदायी होगा।
(4). लग्नेश दशम भाव में तथा दशमेश लग्न में स्थित हो तथा बृहस्पति से दृष्ट हो।
(5). जिस राशि में नवमेश हो, उसका स्वामी जिस राशि में है, उस राशि का स्वामी यदि उच्च राशि में हो तथा लग्नेश लग्न से केंद्र में शुभ ग्रह से युत हो, तो यह योग भी जातक को उच्च पदाधिकारी बना देता है।
(6). नवमेश जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी यदि अपनी उच्च र‍ाशि में स्थित होकर लग्न से दूसरे भाव में हो तथा धनेश अपनी उच्च राशि में हो, तो इस योग वाला जातक भी उच्च पदाधिकारी होता है।
(7). दशम भाव में चंद्रमा स्‍थित हो तथा दशमेश अपनी उच्च राशि में हो एवं भाग्येश लग्न से द्वितीय भाव में हो।
(8). पंचम तथा एकादश भाव में (-दोनों भावों में) सौम्य ग्रह स्थित हों तथा दूसरे व आठवें भाव में पाप ग्रह हों।
(9). सभी सातों ग्रह मेष, कर्क, तुला व मकर, इन राशियों में हों अथवा इनमें एक ही में, दो में, तीन में या चारों में हों।
(10). बृहस्पति द्वितीय भाव या नवम भाव का स्वामी हो तथा नवमेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी बृहस्पति से युत हो एवं दोनों द्वितीय भाव में स्थित हों। यह योग केवल मेष, कर्क, वृश्चिक व कुंभ लग्न वाली कुंडलियों पर ही लागू हो सकता है।
(11). लग्न से दशम भाव में सूर्य स्थित हो तथा दशमेश लग्न से तीसरे भाव में स्थि‍त हों।
(12). चंद्रमा व बृहस्पति दोनों लग्न से द्वितीय भाव में स्थित हों, द्वितीयेश लाभ भाव में हो तथा लग्नेश शुभ ग्रह से युत हों।
(13). कुंडली में नवमेश व दशमेश का परस्पर स्थान विनिमय हो (अर्थात नवमेश दशम भाव में तथा दशमेश नवम भाव में हो) तथा लग्नेश नवम या दशम भाव में हो तथा लग्नेश पर बृहस्पति की दृष्टि हो। 
(14). मकर लग्न कुंडली में लग्न से पंचम में चंद्रमा, सप्तम में सूर्य व बुध हों, अष्टम भाव में गुरु व शुक्र हों तथा एकादश भाव में शनि हो।
(15). मंगल जिस राशि में स्थित हो, उससे दूसरे, पांचवें या नौवें स्थान में बुध तथा शुक्र हों तथा शनि तुला राशि का दशम में हो। यह योग केवल मकर लग्न कुंडली पर ही लागू हो सकता है।
(16). मिथुन लग्न कुंडली में दशम भाव में गुरु व शुक्र स्‍थित हों।
(17). मकर लग्न कुंडली में पंचम भाव में चंद्रमा हो, लग्न में बुध व शुक्र तथा नवम भाव में बृहस्पति हो। 
(18). धनु लग्न कुंडली में बृहस्पति बारहवें भाव में तथा शनि लाभ भाव में हो।
(19). कुंडली में लग्नेश तथा चंद्र (चंद्रमा जिस राशि में हो, उसका स्वामी) दोनों केंद्र में अपने मित्र की राशि में युत हों तथा लग्न बलवान हो।
(20). कुंभ लग्न की कुंडली में तीसरे भाव में उच्च राशि का सूर्य बैठा हो।
(21). तुला लग्न कुंडली में अष्टम भाव में बृहस्पति, नवम भाव में शनि तथा ग्यारहवें भाव में मंगल तथा बुध हो।
(22). धनु लग्न कुंडली में सूर्य व बृहस्पति दोनों ही दशम भाव में स्थित हों।
(23). कुंडली में मंगल अपनी उच्च राशि या स्वराशि का होकर दशम भाव में बैठा हो तथा उस पर लग्नेश की दृष्टि भी हो। 
(24). मंगल, सूर्य, बुध, बृहस्पति, शनि, दशम भाव तथा दशमेश :- इन सबकी स्थि‍‍ति जितनी अच्छी होगी, उतना अधिक उच्चस्थान-पद प्राप्त होगा।
अन्य योग :: 
राजयोग :- जिस स्त्री या पुरुष की नाभि गहरी हो नाक या अग्र भाग यानी आगे का हिस्सा सीधा हो सीना लाल रंग का हो पैर के तलुये कोमल हों ऐसा व्यक्ति राजयोग के योग से आगे बढता है और उच्च पदाशीन होता है। 
राजयोग धनवान योग :- जिसके हाथ में चक्र, फ़ूलों की माला, धनुष, रथ, आसन; इनमें से कोई भी चिन्ह मौजूद हो तो उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास किया करती है। 
उच्चपद योग :- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में सूर्य रेखा मस्तक रेखा से मिलती हो और मस्तक रेखा से गहरी स्पष्ट होकर गुरु क्षेत्र में चतुष्कोण में बदल जाये तो ऐसा व्यक्ति उच्चपदासीन होता है। 
राजपत्रित-उच्चाधिकारी योग  :- जिसके हाथ में सूर्य और गुरु पर्वत उच्च हों और शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिन्ह हो चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से सम्बन्ध हो और भाग्य रेखा हथेली के मध्य से आरंभ होकर एक शाखा गुरु पर्वत और दूसरी रेखा सूर्य पर्वत पर जाये तो निश्चय ही यह योग उस जातक के लिये होते है। 
विदेश यात्रा योग :- जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में जीवन रेखा से निकल कर एक शाखा भाग्य रेखा को पार करके चन्द्र क्षेत्र पर जाये तो वह विदेश यात्रा को सूचित करती है। 
भू स्वामी योग :- जिसके हाथ में एक खड़ी रेखा सूर्य क्षेत्र से चलकर चन्द्र रेखा को स्पर्श करे, मस्तक रेखा से एक शाखा चन्द्र रेखा से मिलकर डमरू का निशान बनाये तो वह व्यक्ति आदर्श नागरिक और भूस्वामी होने का अधिकारी है। 
पायलट योग :- जिसके हाथ में चन्द्र रेखा जीवन रेखा तक हो बुध और गुरु का पर्वत ऊँचा हो ह्रदय रेखा को किसी प्रकार का अवरोध नही हो तो वह व्यक्ति पायलट की श्रेणी में आता है। 
ड्राइवर योग :- जिसके हाथ की उंगलियों के नाखून लम्बे हों हथेली वर्गाकार हो चन्द्र पर्वत ऊँचा हो सूर्य रेखा ह्रदय रेखा को स्पर्श करे मस्तक रेखा मंगल पर मिले या त्रिकोण बनाये तो ऐसा व्यक्ति छोटी और बडी गाड़ियों का ड्राइवर होता है। 
वकील योग :- जिसके हाथ में शनि और गुरु रेखा पूर्ण चमकृत हो और विकसित हो या मणिबन्ध क्षेत्र में गुरु वलय तक रेखा पहुँचती हों तो ऐसा व्यक्ति कानून का जानकार जज वकील की हैसियत का होता है। 
सौभाग्यशाली योग :- जिस पुरुष एक दाहिने हाथ में सात ग्रहों के पर्वतों में से दो पर्वत बलवान हों और इनसे सम्बन्धित रेखा स्पष्ट हो तो व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है। 
जुआरी सट्टेबाज योग :- जिस व्यक्ति की अनामिका उंगली मध्यमा के बराबर की हो तो ऐसा व्यक्ति सट्टेबाज और जुआरी होता है। 
चोरी का योग :- जिस पुरुष या स्त्री के हाथ में बुध पर्वत विकसित हो और उस पर जाल बिछा हो तो उसके घर पर बार बार चोरियाँ हुआ करती हैं। 
पुलिस सेवा का योग :- जिसके हाथ में मंगल पर्वत से सूर्य पर्वत और शनि की उंगली से बीचों बीच कोई रेखा स्पर्श करे तो व्यक्ति सेना या पुलिस महकमें में नौकरी करता है। 
भाग्यहीन का योग :- जिस जातक के हाथ में हथेली के बीच उथली हुयी आयत का चिन्ह हो तो इस प्रकार का व्यक्ति हमेशा चिड़चिड़ा और लापरवाह होता है। 
फ़लित शास्त्री योग :- जिस व्यक्ति के गुरु पर्वत के नीचे मुद्रिका या शनि, शुक्र या फिर बुध पर्वत उन्नत हों वह ज्योतिषी होता है। 
नर्स सेविका योग :- जिस स्त्री की कलाई गोल हाथ पतले और लम्बे हों बुध पर्वत पर खडी रेखायें हों व शुक्र पर्वत उच्च का हो तो जातिका नर्स के काम में चतुर होती है। 
नाडी परखने वाला :- जिस व्यक्ति का चन्द्र पर्वत उच्च का हो वह व्यक्ति नाड़ी का जानकार होता है। 
दगाबाज या स्वार्थी योग :- जिसके नाखून छोटे हों हथेली सफ़ेद रंग की हो मस्तक रेखा ह्रदय रेखा में मिलती हो तो ऐसा व्यक्ति दगाबाज होता है, मोटा हाथ और बुध की उंगली किसी भी तरफ़ झुकी होने से भी यह योग मिलता है। 

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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