GENETICS आनुवंशिकी-प्रजनन :: SEX EDUCATION काम-शिक्षा

GENETICS

आनुवंशिकी-प्रजनन
SEX EDUCATION काम-शिक्षा
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM  
By :: Pt. Santosh Bhardwaj  
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः संभवन्ति याः। 
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता॥ 
हे कुंती नन्दन! सम्पूर्ण योनियों में प्राणियों के जितने शरीर पैदा होते हैं, उन सबकी मूल प्रकृति तो माता है और मैं बीज स्थापन करने वाला पिता हूँ। [श्रीमद्भगवद्गीता 14.4]
The God called Arjun Kunti Nandan-the son of Kunti! The way Kunti was his mother, the nature is the mother of all organisms and the Almighty is the father of all species, since HE is the one WHO sows the seeds of all life forms.
ब्रह्मा रचित सृष्टि में, देवी-देवता, यक्ष, राक्षस, दानव, गन्दर्भ, अप्सरा, भूत-प्रेत, पिशाच, पितर, ब्रह्म राक्षस, बालग्रह, स्थावर-जङ्गम, जलचर, नभचर, थलचर, जरायुज, अण्डज,उद्भिज्ज,स्वेदज, मनुष्य सहित पृथ्वी सहित ब्रह्माण्ड में 84,00,000 प्रजातियाँ जन्म लेती हैं। कोई भी एक प्राणी-प्रजाति दूसरे प्राणी से पूरी तरह समान नहीं है। ये सब प्रकृति से उत्पन्न होते हैं, जिसमें बीज-गर्भ की स्थापना स्वयं परमात्मा करते हैं। प्रकृति परमात्मा का ही एक अंग है। प्रकृति शरीर है, तो परमात्मा आत्मा हैं। प्रकृति माता है और परमात्मा पिता। 
All species-life forms in the 14 abodes are created by the Almighty. The nature is an inseparable component of the Almighty. All universes constitutes the nature. 84,00,000 life forms are there and none of the two organisms in any of the species resemble with another one. The Almighty has created the nature and sows the seeds in it, to grow numerous life forms. Body of the various life forms constitute the nature, while the soul-spirit constitutes the God. The nature is the mother and the God is the father. It should be endeavour of the human being to assimilate in the God from whom he has evolved.
असपिंडा च या मातुरसगोत्रा च या पितु:।  
सा प्रशस्ता द्विजातिनां दारकर्मणि मैथुने॥[मनुस्मृति 3.5]
जो कन्या माता के कुल की छः पीढ़ियों में न हो और पिता के गोत्र की न हो, उस कन्या से विवाह करना उचित है। 
The girl should not belong to 6 generations from the mother-maternal Gotr-side for fortunate good-auspicious marriage.
हिनक्रियं निष्पुरुषम् निश्छन्दों रोम शार्शसम्। 
क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्वित्रिकुष्ठीकुलानिच॥[मनुस्मृति 3.7]
जो कुल सत्क्रिया से हीन्, सत्पुरुषों से रहित, वेदाध्ययन से विमुख, शरीर पर बड़े बड़े लोम अथवा बवासीर, क्षय रोग, दमा, खांसी, आमाशय, मिरगी, श्वेतकुष्ठ और गलित कुष्ठ युक्त कुलों की कन्या या वर के साथ विवाह न होना चाहिए; क्योंकि ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करने वाले के कुल में प्रविष्ट हो जाते हैं। 
One should not marriage with either groom or the bride if their family has communicable diseases, which can be transmuted from one generation to the next. In addition to this if the girl has hair all over her body, she too deserved to be discarded. Samudr Shastr is very helpful in this regard.
One must not forget that the progeny has begun from the 8 saints described earlier whether they are Brahmn, Kshatriy, Vaeshy or Shudr. These are just names and nothing makes one inferior or superior to the other one. How ever in due course of time certain characters became dominant-prominent in these castes and the one with the dwarf-masked characters do not show off. The dominant character always shows off if it happen to be present in both the parents.
शास्त्रों में आनुवंशिकता और गुण सूत्र संयोजन का पूर्ण ज्ञान उपस्थित है, जबकि आधुनिक ज्ञान उसके आगे नगण्य, बौना है।
अमावास्यामष्टमीं च पौर्णमासीं चतुर्दशीम्। 
ब्रह्मचारी भवेन्नित्यमप्यृतौ स्नातको द्विजः॥[मनुस्मृति 4.128]
स्नातक ब्राह्मण अमावस्या, अष्टमी, पूर्णिमा और चतुर्दशी तिथि को ब्रह्मचारी रहे। ऋतुमती स्त्री के साथ समागम न करे। 
The graduate Brahmn should not indulge in sex on moonless night, eight, fourth day and full moon night. He should observe celibacy on these dates. He should not have sex with a woman having periods-menstrual cycle.
तपोबीजप्रभावैस्तु ते गच्छन्ति युगे युगे।
उत्कर्षं चापकर्षं च मनुष्येष्विह जन्मतः[मनुस्मृति 10.42]
वे (पूर्वोक्त सजातीय और अनुलोमज) युग-युग में तपस्या और बीज के प्रभाव से जन्म से ही मनुष्यों के बीच उच्चता और नीचता को प्राप्त होते हैं। 
The upper castes (Brahmn-Brahmn, Kshtriy-Kshtriy & Vaeshy-Vaeshy) & their descendents through next upper castes (Brahmn-Kshtriy & Brahmn-Vaeshy, Kshtriy-Vaeshy), six in number, reach superiority-nobility due to their ascetics, austerities and the impact of seed (impact of genes, chromosomes), described here in several Yugs (millions (billions of years).
It clearly shows that heredity and environment are equally important-responsible for the traits of a living being. However, mutations can not be denied as a result of divine intervention. Various demigods, nymphs, gandarbh, demons, Yaksh too interact with humans leading to transmutations and passages of genes from them into humans race.Tribe normally stand for family, ancestry,  lineage, hierarchy carrying the genes of forefathers.
पित्र्यं वा भजते शीलं मातुर्वोभयमेव वा।
न कथञ्चन  दुर्योनिः प्रकृतिं स्वां नियच्छति[मनुस्मृति 10.59]
पूर्वोक्त पुरुष पिता या माता के अथवा दोनों के शील स्वभाव के अनुसार ही होते हैं। किसी भी प्रकार यह दुष्टकुल में उत्पन्न पुरुष अपने असली रूप को छिपा नहीं सकते। 
Such people born in degraded-depraved families can not hide their traits since their behaviour is just like their parents.
Parental behaviour is acquired by the progeny and transmitted further to next generations. This shown the impact of both genetic and environmental characters.
कुले मुख्येऽपि जातस्य: यस्य स्याद्योनिसङ्करः।
संश्रयत्येव तच्छीलं नरोऽल्पमपि वा बहु[मनुस्मृति 10.60]
श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न होकर भी जो वर्णसंकर हो जाता है, वह अपने जन्म देने वाले के स्वभाव से वंचित नहीं रहता। थोड़ा या अधिक अपने पूर्वज का स्वभाव उसमें रहता है। 
शूद्रायां ब्राह्मणाज् जातः श्रेयसा चेत् प्रजायते।
अश्रेयान् श्रेयसीं जातिं गच्छत्या सप्तमाद् युगात्[मनुस्मृति 10.64]
ब्राह्मण से यदि शूद्रा (शूद्र जाति से उत्पन्न कन्या) से उत्पन्न कन्या, ब्याही जाये और आगे भी यही क्रम जारी रहे तो वह अपनी सातवीं पीढ़ी में नीच योनि से उद्धार पाकर ब्राह्मण हो जाती है। 
If a girl born out of a Shudra gets married with a Brahmn and the sequence continues for seven generations the progeny born out of such relations-marriage will be Brahmns.
This inverse relation explains the strengthening of dominant genes resulting in purity of race.
शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चेति शूद्रताम्।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात् तथैव च[मनुस्मृति 10.65]
जैसे शूद्र ब्राह्मणत्व को और ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न शूद्र भी क्षत्रियत्व और वैश्यत्व प्राप्त होते हैं। 
The manner-process in which Shudr become Brahmn and Brahmn becomes a Shudr works for the Kshtriy and Vaeshy as well leading to gaining the Kshatriy or Vaeshy title by a Shudr. 
This is purely scientific process resulting in purity of Varn-race.
अनार्यायां समुत्पन्नो ब्राह्मणात् तु यदृच्छया।
ब्राह्मण्यामप्यनार्यात्तु श्रेयस्त्वं क्वेति चेद्भवेत्[मनुस्मृति 10.66]
जातो नार्यामनार्यायामार्यादार्यो भवेद् गुणैः।
जातोऽप्यनार्यादार्यायामनार्य इति निश्चयः[मनुस्मृति 10.67]
ब्राह्मण से अपनी इच्छा से क्वारी अनार्य कन्या में और अनार्य से ब्राह्मण कन्या से उत्पन्न पुत्रों में कौन श्रेष्ठ है; ऐसी शंका होने पर ब्राह्मण से अनार्य कन्या से उत्पन्न पुत्र श्रेष्ठ है, यह समझना चाहिये, क्योंकि वह पाकादि गुणों से युक्त होता है। अनार्य से ब्राह्मण कन्या में उत्पन्न पुत्र हीन-अप्रशस्त है, उसके प्रतिलोमज होने के कारण यही निश्चय समझना चाहिये। 
If the question arise about the superiority of a son born out of an Anary girl who willingly married to a Brahmn and the son produced by an Anary with a Brahmn girl, the set rule is that Anary being inferior to the Brahmn and he produces son in an inverse relation, therefore the son of a Brahmn will be superior having the traits-genes of a Brahmn. 
The Brahmn has the Virtues (qualities-traits) of all four Varn while the next has one less. The Anary-Mallechchh being a symbol of impurity, brutality, his genes are contaminated. This has been proved by the Muslim and British when they invaded India and inflicted tortures, brutalities, barbarianism over the civilised, peace loving Hindus.
बीजमेके प्रशंसन्ति क्षेत्रमन्ये मनीषिणः।
बीजक्षेत्रे तथैवान्ये तत्रैयं तु व्यवस्थितिः[मनुस्मृति 10.70]
कोई बीज की प्रशंसा करता है, कोई क्षेत्र की कोई दोनों की प्रशंसा करता है, इसलिए इस विषय में यह व्यवस्था है। 
This is the ruling-doctrine since some learned-specialist sages praise the seed-sperms, some praise the Kshetr (field-ovum)   & some praise both the sperm & ovum i.e., male & female.
अक्षेत्रे बीजमुत्सृष्टमन्तरैव विनश्यति।
अबीजकमपि क्षेत्रं केवलं स्थण्डिलं भवेत्[मनुस्मृति 10.71]
खराब खेत में (ऊसर-बंजर भूमि) में बोया हुआ बीज उगने से पहले ही नष्ट हो जाता है और जिस खेत में बीज ही न पड़े वह केवल संथडिल ही रहता है। 
Seed sown in barren filed do not germinate and rot before germination; while the field in which no seed is sown will not yield crops.
संथडिल :: भूमि-जमीन, यज्ञ के लिए साफ की हुई भूमि, सीमा-हद, मिट्टी का ढेर, एक ऋषि। शय्या, स्त्री, व्रत के कारण भूमि-जमीन पर सोना, भूमि-शयन। 
यस्माद् बीजप्रभावेण तिर्यग्जा ऋषयोऽभवन्।
पूजिताश्च प्रशस्ताश्च तस्माद् बीजं प्रशस्यते[मनुस्मृति 10.72]
जिस कारण से बीज के प्रभाव से तिर्यक जाति उत्पन्न होने पर भी ऋषि होकर पूजित हुए, इसलिए बीज ही प्रधान है। 
The root cause is seed, since its the seed due to which  person turn into to a sage even after taking birth in a cross breed-contaminated family, hybrid woman.
Bhagwan Ved Vyas born out of Saty Wati who took birth from a fish and nourished by a boats man, was the son of Rishi Parashar. He retained the qualities of his father. Ravan born out of Kekasi-a demoness,  was the son of Rishi Vishrava (grandson of Bhagwan Brahma Ji) who retained the qualities of his father and became a noted scholar, great astrologer and a great warrior along with being a author in diplomacy.
Thus the supremacy of genes received from father is established, concluded, ruled.
Kashyap was the son of Marichi who had evolved out of Brahma Ji's forehead as his first son & Kala the daughter of Kardam Rishi & sister of Kapil Muni an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu. All life forms evolved out of Kashyap through sexual means. From here the boarder line-demarcation, starts between the divine and material-physical creations. Still mutual sexual relations persisted-still continued. Kashyap carried the genetic structures of all the four Varns (humans) present in Brahma Ji and carried forward them to next races evolved out of his relations with different wives.
The cross breed-hybrid born in an excellent lineage-family has the traits of his father. He invariably-unknowingly acquire the vulgarity, cruelty indecency present in his parents in lesser of more quantity. 
GENE पित्रैक, वंशाणु :: A unit of heredity character which is transferred from a parent to the offspring which is held responsible for determining some characteristic of the offspring. It forms a distinct sequence of nucleotide forming part of a chromosome, the order of which determines the order of monomers in a polypeptide or nucleic acid molecule. A segment of DNA that is involved in producing a polypeptide chain; can include regions preceding and following the coding of DNA as well as introns between the exons.
Father's genes are not transferred to the daughter. 
The male has both XY chromosomes, while the woman has only XX. 
Y chromosome comes from the father only, while X can come from both father & mother. The mother does not have Y chromosome. The daughter has XX chromosomes contributed one each by both the father & the mother.
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(1). XX CHROMOSOME :: Both mother and the father have contributed X chromosome resulting in the birth of a daughter. These two chromosomes leads to crossover. Lack of Y chromosome shows the absence of heredity material.
(2). XY CHROMOSOME  :: Crossover is not possible, since genetic material comes from Y chromosome. 95% Y chromosome remain intact.
Its sufficient to trace origin of Y chromosome to establish one's caste. If one comes from the hierarchy of Kashyap, the major characteristics will remain same. As and when major genes comes from both mother and father they will show their impact over the body built, intelligence, character etc. over one's personality. Marriages in the same clan may lead to acquisition of heredity diseases and several other deformities. this is the reason why the members of the same clan, hierarchy are not advised to marry.
पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता। स्त्री में XX गुणसूत्र होते है और पुरुष में XY गुणसूत्र होते है। पुत्र का गुणसूत्र XY होता है, जिसमें Y गुणसूत्र पिता से ही आता है, क्योंकि माता में Y गुणसूत्र नहीं होता। पुत्री में XX गुणसूत्र होता है जो कि माता व पिता दोनों से आते हैं।
(1). XX गुणसूत्र :: XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गाँठ जैसी रचना बना लेता है, जिसे आर-पार पुल बनाना कहा जाता है।
(2). XY गुणसूत्र :: पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है। दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारण पूर्ण आर-पार पुल बनना नही होता केवल 5% तक ही होता है और 95% Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों ही रहता है, क्योंकि Y गुणसूत्र पुत्र में केवल पिता से ही आया है।
Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है। यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है, तो उस व्यक्ति में विधमान Y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल है। क्योंकि Y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता। इसलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है। अतः एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई बहिन हुए, क्योंकि उनका पूर्वज एक ही है।
Millions of women are found engaged in sex with animals like horse, dog, pig etc. The men are seen having sex with goats, bitches etc. One finds both male and females engaged in consuming sperms and eggs of in raw form. This results in the birth of deformed babies. Scriptures have cited this type of sex resulting in new species.
Image result for images of hybrid babiesEntire living world originated from the wives of Kashyap. Kashyap produced the populations, organisms through sexual intercourse. The whole process is based over infinite number of permutations & combinations. The basic material behind the creation of a species is the chromosome which has millions of genes over it. Humans have 23 pairs of chromosomes. However humans with 44 to 50 chromosomes are found. One not mix sperms of one species over the ovum of other species since it can produce entirely new species-variety of organism, animal, plants. It has been found that woman give birth to chimpanzees, pups, cubs etc. One can see animals of entirely different race breeding with other race-species leading to formation of unknown unheard races.
It has been observed that the cats, bitches mate numerous male counter parts produce cubs-puppies with various colours over their skin. A woman who involves in intercourse with various males simultaneously, may give birth to young ones who's DNA does not match with any of the mates, yielding a children with entirely different characters, symptoms, nature.
Mutation, both forward & backward may yield terrifying results, like human with birds head, lions head, lion with human head, mermaids, horse with human head etc.
Scriptures have specifically mentioned such cases. Gau Karn had the ears like a cow, since the cow had swallowed human sperms. Saty Wati-the mother of Bhagwan Ved Vyas, was born out of a fish who had swallowed kings sperms discharged over a leaf and allowed to float in river. Makar Dhwaj-the mighty son of Hanuman Ji Maha Raj, born out of a fish is another example. In this the fish had swallowed the sweat only, not the sperms. Hanuman Ji Maha Raj was born out of the sperms of Bhagwan Shiv implanted into the womb of Maa Anjali, who was a Vanar (a race of two legged just like humans with tail), by Pawan Dev-deity of air. There are numerous examples of humans born out of their relations with demigods.
प्रारंभिक काल में धरती एक द्वीप वाली थी। ब्रह्मा ने अनेकानेक दैविक सृष्टियाँ कीं मगर सन्तुष्ट नहीं हुए।उन्होंने मानवी सृष्टि के हेतु मनु और शतरूपा की रचना अपने शरीर को द्विभाजित करके की। उनसे ही मैथुनी सृष्टि की रचना हुई और मरीची के पुत्र ऋषि कश्यप ने इस कार्य को पूरा किया। इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता कला कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी।
(1). अदिति से 12 आदित्यों का जन्म हुआ :- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। ये सभी देवता कहलाए और इनका स्थान हिमालय के उत्तर में था। (2). दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक 2 पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा हुईं। ये सभी दैत्य कहलाए और इनका स्थान हिमालय के ‍दक्षिण में था। इनके अलावा 49 मरुद गण-मारुत भी उत्पन्न हुए जो कि नि:संतान रहे। हिरण्य कश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। (3). दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई। ये सभी दानव कहलाए। (4). काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। (5). अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। (6). सुरसा से यातुधान-राक्षस उत्पन्न हुए। (7). इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। (8). मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं। (9). क्रोधवशा ने सांप, बिच्छू आदि विषैले जंतु पैदा किए। (10). ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। (11). सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। (12). सुरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। (13). तिमि ने जलचर जंतुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया। (14). विनीता के गर्भ से गरूड़ जी भगवान् विष्णु के वाहन और वरुण-भगवान् सूर्य के सारथि पैदा हुए। (15). कद्रू की कोख से बहुत से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे :- अनंत (भगवान् शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। (16). पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। और (17). यामिनी के गर्भ से शलभों-पतंगों का जन्म हुआ।
ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की 2 पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। पुलोमा से पौलोम और कालका से कालकेय नाम के 60 हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ, जो कि कालांतर में निवात कवच के नाम से विख्यात हुए।
भगवान् विष्णु भगवान् शेष शय्या पर शयन करते हैं। भगवान् शेष के 1,000 फन हैं और वे पृथ्वी को अपने शीश पर धारण किये हुए हैं। मणि धारी, इच्‍छा धारी, उड़ने वाले, एक फनी से लेकर दस फनी तक के सर्प पाये जाते हैं। माना जाता है कि 100 वर्ष से अधिक को आयु प्राप्त करने पर सर्प इच्छाधारी हो जाता है और वह अपनी इच्छा से मानव, पशु या अन्य किसी भी जीव के समान रूप धारण करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है उसमें उड़ने की शक्ति भी आ जाती है। नीलमणि धारी नाग सर्वोत्तम होते हैं। वर्तमान काल में प्राय: 2 से 7 फन वाले सर्प दृष्टिगोचर होते हैं। पाण्डवों की माता कुन्ती एक नाग कन्या थीं और उन्हें चिरकुमारी भी कहा जाता है। नागराज कालिया की पत्नियों को स्त्रीरूप में ही दर्शाया जाता है।
सृष्टि दो प्रकार की है :- दैवीय और भौतिक। ब्रह्मा जी से उत्पन्न समस्त प्राणी दैवीय सृष्टि के अंग हैं। कश्यप जी से उत्पन्न सृष्टि भौतिक है। देवताओं और मानव स्त्री से मनुष्य उत्पन्न होते हैं यथा :: कर्ण, युधिष्टर, भीम अर्जुन, नकुल, सहदेव। अप्सराओं और मनुष्य के संसर्ग से भी मनुष्य ही पैदा होते हैं, जैसे मेनकाऔर विश्वामित्र से शकुंतला पैदा हुई। राक्षस दैवी सृष्टि के अंग हैं। मानव और राक्षसी के संयोग से राक्षस रावण पैदा हुआ। अर्जुन मनुष्य थे और नाग (serpent) कन्या उलूपी से उत्पन्न उनका पुत्र इरावन भी मनुष्य ही हुआ।

DESIRED PROGENY इच्छानुसार सन्तानोत्पत्ति :: 
शमीमश्वत्थ आरूढ़स्तत्र पुंसवन कृतम्।
तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत् स्त्रीष्वाभरामसी
शमी (छौकड़) वक्ष पर जो पीपल उगता है, वह पुत्र उत्पन्न करने का साधन है। यह पुत्र-प्राप्ति का उत्तम साधन है। वह हम स्त्रियों को देते हैं।[अथर्ववेद 6.11.1]
Shami is a kind of tree. When Peepal tree grow over it, it acquires the power to generate fertility in the couple to produce a son. Hence, its given to the married women. 
पुत्रोत्पत्ति-BIRTH OF SON :: काला धतुरा, नेत्र (पुत्र जीवक), अब्धि (अध: पुष्पा) तथा मनु (रुदंतिका) से उपलक्षित औषधियो का लिंग पर लेप करके रति करने पर जो गर्भाधान होता है, उससे पुत्र की उत्पत्ति होती है। 
ऋतुः स्वाभाविक: स्त्रीणां रात्रयः षोडशस्मृताः। 
चतुर्भिरितरै: सा धर्म होभि: सद्विगर्हितै:॥[मनुस्मृति 3.46] 
रजोदर्शन से निंदित प्रथम 4 दिन के बाद 16 रात्रि पर्यन्त स्त्रियों का ऋतुकाल रहता है। 
After 4 days of menstruation, which are called impure,  the women can conceive in the next 16 days.
As a matter of tradition the women who are undergoing menstrual cycle are not allowed to enter the kitchen for cooking. They are not allowed to pray the deities and they should not go in front of the Tulsi-Basil plant, during this period.
During this period marriage should also be discarded.
तासामाद्याश्र्चतस्त्रस्तु निन्दितैकादशी च या। 
त्रयोदशी च शेषास्तु प्रशस्ता दश रात्रयः॥[मनुस्मृति 3.47] 
उन सोलह रात्रियों में प्रथम 4 रात, 11रहवीं और 13रहवीं रात स्त्री-समागम के लिये निन्दित है।
The period of 16 days during which mating-inter course is permissible, one should avoid first 4 nights and the 11th & 13th night, considered to be inauspicious.
युग्मासु पुत्रा जायन्ते स्त्रियोSयुग्मासु रात्रिषु। 
तस्माद्य ुग्मासु पुत्रार्थी संविशेदातवे स्त्रिम्॥[मनुस्मृति 3.48] 
सम रात्रि में (6, 8, 10, 12, 14, 16 रात को) स्त्री से सहवास करने से पुत्र उत्पन्न होता है।  विषम रात्रि में (5, 7, 9, 11, 13, 15 रात्रि में) गमन करने से कन्या जन्म लेती है। इसलिये पुत्रार्थी को सम रात्रि में ऋतुकाल में स्त्री के साथ शयन करना चाहिये। 
One who mates on the even nights (6, 8, 10, 12, 14, 16) after the menstrual cycle after passing 4 nights without inter course, is blessed with a son and those who wish to have a daughter should involves in mating on the odd nights ((5, 7, 9, 11, 13, 15).
पुमान्पुसोSधिके शुक्रे स्त्री भत्यधिके स्त्रिया:। 
समेSपुमान्पुंस्त्रियो या क्षीणेSल्पे च विपर्ययः॥[मनुस्मृति 3.49] 
पुरुष का वीर्य अधिक होने और स्त्री का रज अधिक होने से कन्या होती है। स्त्री पुरुष रज-वीर्य तुल्य होने से नपुंसक का जन्म होता है या यमल सन्तान होती है। दूषित या अल्प वीर्य होने से गर्भ धारण नहीं होता। 
Excess sperms and the ovum-egg leads to the birth of a girl. Presence of sperms and ovum-eggs in equitable quantity leads to the birth of an eunuch (impotent-hermaphrodite) or a boy and a girl. Small quantity or contamination of sperms obstruct child formation-conceiving by the woman.
Some techniques-methods are discussed at length in Purans, to have the desired progeny: son or daughter. One can control the characters present in them as well simultaneously. If child-pregnancy is not desired it can be skipped without much effort or use of birth control measures. Condoms, pills, jellies are not necessary and there is no side effect. 
The man-male has both X & Y chromosomes and the woman-female has only X-X chromosomes. Ignorant-illiterate-orthodox families blame the woman for not producing the son. As one can see the fault lies with the male who produces the sperm not the woman who produce the egg. Its the male who has to keep him fit and fine.
After the menses-periods the ovum-egg is produced in the ovary and it stays there for 4 to 5 days waiting for the sperm. It sperms are not available it will disintegrate and pass as blood out of the body of the female. The male should protect his sperms, keep them healthy and considerably large quantities say 5 to 10 million. This is called sperm count. healthy sperms produce health child.
The females body acts as earth-field which produce crops when seed is sown in it. Child has to be born by the woman in her bomb-uterus. It needs proper timing, season, temperature, proper nourishment, sleeping, exercise etc. Morality do count a lot for good progeny.
One must not involve in sexual intercourse during the day. One must not expose himself or herself during the intercourse, in front of others. 8th, 11th, 13th, 14th full moon night and the dark-no moon night, as per Indian calendar should also be skipped. In fact most of the people indulge in sexual behavior as per sensuality not the need for progeny. 
If fertilisation-zygote formation takes place on the 4th, 6th, 8th, 10th, 12th, 14th & 16th  day from the stoppage of the menses, a son will be born and if it occurs on the 5th, 7th, 9th, 11th, 13th & 15th girl child is born. 
It depends over the breathing from the right or the left nostril as well. If the right nostril of the woman is working at the time of the intercourse, it will result into the production of a boy. If she is breathing from the left nostril the child will be a girl.
अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या  को सन्तानोत्पत्ति हेतु संभोग नहीं करना चाहिए। 
चन्द्रावती ऋषि के अनुसार लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायाँ-बायाँ श्वास क्रिया, पिंगला-इड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है। गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायाँ श्वास चले तो पुत्र होगा।
सुयोग्य और विद्वान पुत्र उत्पन्न करने के लिये दम्पत्ति को औक्ष अथवा आर्षभ के साथ पकायी हुई खिचड़ी कहानी चाहिये। [वृहदारण्यक उपनिषद् 6.4.18]
उक्षा, ऋषभ, सोम को भी उक्षा कहते हैं। ऋषभ एक प्रकार का कन्द है, जिसकी जड़ लहसुन से मिलती-जुलती है। सुश्रुत और भावप्रकाश में भी इसके नाम और गुणों का वर्णन है।  
माहवारी के बाद संतानोत्पत्ति के लिए उपयुक्त रात्रियाँ ::
मासिक स्राव के बाद  4, 6, 8, 10, 12, 14 और 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
(1).  चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
(2). पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
(3). छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
(4). सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
(5). आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
(6). नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
(7). दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
(8). ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
(9).बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
(10). तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
(11). चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
(12). पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
(13). सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
समागम से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एकदम से नहीं उठना चाहिए। 
LINEAGE गौत्र-वंश-कुल प्रणाली :: It connects one to the chain he belongs to since the inception of humanity. Initially all humans were produced by Mahrishi Kashyap. Brahma Ji evolved Manu & Shatrupa from his body and they became the ancestors of all humans, all over the world. Four major divisions-Varn, too belong to Brahm Rishis after whom the chain began. There was a lot of freedom to change one's caste and the Varn depending upon calibre, interest, aptitude. Even the Yawan (Christians) & Mallechh (Muslims) too have their Gotr, Vansh, inheritance. गौत्र व्यक्ति के पुरुष वंश में मूल प्राचीनतम व्यक्ति को दर्शाता है।
The Gotr is the system which defines the inheritance-lineage of a person. It describes the DNA & chromosomal structure of the bearer. It further associates a person with his most ancient root or ancestor in an unbroken male lineage.
ब्राह्मणों सहित सभी वर्ण यथा क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आठ ऋषियों (सप्तऋषि + अगस्त्य) से उत्पन्न हुई हैं। भारत में मौजूद 1,000 से अधिक मान्यता प्राप्त जातियॉं इन्हीं 4 वर्णों के संगम से उत्पन्न हुए हैं। इन जातियों को वर्णसंकर भी कहा जा सकता है। जमदग्नि-भगवान् परशुराम, अत्रि, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र-कौशिक, भरद्वाज और अगस्त्य आदि गौत्र हैं। जिस किसी को भी अपना गौत्र याद नहीं है, वह कश्यप लिख सकता है।
Main 4 Varn-castes namely Brahmn, Kshatriy, Vaeshy and the Shudr belongs to the Brahm Rishis. At present India has more than 1,000 recognized sub castes. The caste and sub castes are the result of various combinations for marriage among the chief 4 castes. These sub castes are the hybrids having mixed genetic characters-qualities. Jamdagni-Bhagwan Parshu Ram Ji, Atri, Gautom, Kashyap, Vashishth, Bhardwaj, and August are the chief pro-ponderers (प्रस्तुत-प्रतिपादित करने वाले, मालिक) of Gotr system in Hinduism. All Indians are the descendants of these 8 Rishis.
पुरुष शुक्राणु तथा स्त्री अंडाणु उत्त्पन्न करती है। शुक्राणु के गर्भाशय में अंडाणु के साथ निषेचन क्रिया से भ्रूण उत्त्पन्न होता है और तत्पश्चात जीव-शिशु का विकास होता है। गुणसूत्र का अर्थ है वह सूत्र जैसी संरचना जो सन्तति में माता पिता के गुण पहुँचाने का कार्य करती है। मनुष्य में 23 जोड़े गुणसूत्र होते है। प्रत्येक जोड़े में एक गुणसूत्र माता से तथा एक गुणसूत्र पिता से आता है। इस प्रकार प्रत्येक कोशिका में कुल 46 गुणसूत्र होते है जिसमे 23 माता से व 23 पिता से आते है। मनुष्यों में 44 से लेकर 50 गुणसूत्रों को पाया गया है। गुणसूत्र संतान का लिंग निर्धारण करता है और तय करता है कि पुत्र होगा अथवा पुत्री। यदि इस एक जोड़े में गुणसूत्र XX हो तो सन्तति पुत्री होगी और यदि XY हो तो पुत्र होगा। माता में XX गुणसूत्र और पिता में XY दोनों ही होते हैं।
यदि दोनों में X समान है, जो कि माता से मिलता है और शेष रहा वो पिता से मिलता है। यदि पिता से प्राप्त गुणसूत्र X हो तो XX मिल कर जीव-शिशु का लिंग (sex) स्त्रीलिंग निर्धारित करेंगे और यदि पिता से प्राप्त Y हो तो XY मिलकर पुल्लिंग निर्धारित करेंगे। पुरुष-पिता से प्राप्त X पुत्री के लिए व Y पुत्र के लिए होता है । इस प्रकार पुत्र व पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले X अथवा Y गुणसूत्र पर निर्भर होता है, माता पर नहीं। अतः पुत्र या पुत्री का जन्म पिता से संचालित होता न कि माता से। स्त्रियों में Y गुणसूत्र न होने के कारण विवाह के पश्चात हिन्दू समाज में स्त्रियों को उसके पति के गौत्र से जोड़ दिया जाता है।
वैदिक-हिन्दू संस्कृति में एक ही गौत्र में विवाह वर्जित होने का प्रावधान पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। अलग अलग गौत्र से और माता की 6 पीढ़ी को छोड़ देने से पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाली वंशानुगत बीमारियों-अक्षमता का डर नहीं रहता। आनुवंशिकी के अनुसार यदि समान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो, उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों के साथ उत्पन्न होगी। ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता। ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव भी होता है। सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्तियों की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था।
Indian marriage system is thoroughly scientific based upon the transfer of basic traits, characters to the progeny including the physical, mental defects, diseases. Basically, one has to avoid the marriage in the same Gotr. One is suggested not move out of the caste, since it may produce impotent and adjustment problems. However, the scripture do not object to the girl from lower Varn-caste marrying in a upper caste-Varn. If the girl from higher caste goes to the lower caste, she faces adjustment problems along with infertility of progeny, like production mule by crossing a horse with donkey. However exceptions are always there and mutant gene can do wonders, some times. reverse mutations are also observed.
VAESHY बनिया जाति :: Garg Rishi-saint is the pro-ponder of Maha Raj Agr Sen, who had 18 sons. Today's prominent Vaeshy-business community dynasties belong to him. Other than Garg one finds 17 more cross lines, chains, hierarchies. Garg, Bindal, Bhandal, Dharan, Eran, Goyal, Goyan, Mittal, Kansal, Bansal, Mangal, Jindal, Kuchchhal, Madhukul, Nangal, Singhal, Tayal and Tingal.
महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रोँ मेँ सबसे बड़े पुत्र गर्ग थे। उनके पुत्रों के नाम :: गर्ग, बंसल, बिंदल, भंडल, धारण, एरान, गोयल, गोयन, जिंदल, कंसल, कुछल, मधुकुल, मंगल, मित्तल, नंगल, सिंघल, तायल और तिन्गल।
क्षत्रिय वंश की प्रमुख पाँच शाखाएं हैं :: सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, यदुवंशी, अग्निवंशी एवं नागवंशी। ये शाखाएं अपने उपसर्ग आधारित देवता से उत्पन्न हुए थे। अग्निवंशी क्षत्रियोँ के पूर्वज या प्रथम जनक अग्निदेव हैँ।
Hinduism provide vide chances of migration from one Varn-caste-sub caste to another.
HUMAN BABY BORN OUT OF A PIG IN MUMBAI-HUMAN LUST
 
 
 
 
 
 

 
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