HOME REMEDIES OF AILMENTS (1) दादी माँ के घरेलू नुख्से :: AYUR VED (4) आयुर्वेद

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दादी माँ के घरेलू नुख्से
 AYUR VED (4) आयुर्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
कोरोना और निमोनियाँ :: पीपल के पत्तों को steamer में डालकर भाप से कोरोना भी ठीक और सांस की तकलीफ भी ठीक होगी और निमोनियाँ में भी लाभ होगा। 
पत्ते तोड़ते वक्त पेड़ से हाथ जोड़कर माफी माँग कर लें कि स्वास्थ्य लाभ के लिये पत्ते ले रहे हैं, क्योंकि पीपल के पेड़ में देवताओं का वास होता है, उनसे पत्तों को तोड़ने की क्षमा मांगकर ही लें।
बलग़म-खाँसी, नजला-जुकाम :: (1). सपिसवाँ (100 ग्राम), मुलहटी (100 ग्राम), बीदाना (100 ग्राम), खतनी (100 ग्राम), उन्नाव (100 ग्राम), सौंठ (50 ग्राम), काली मिर्च (25 ग्राम), दालचीनी (25 ग्राम), सौंफ (25 ग्राम). 
विधि :- (1.1). इसे एक लीटर पानी में तब तक उबालें जब तक कि यह तिहाई न रह जाये। इसे छानकर सुबह, दोपहर, शाम एक एक चम्मच पीयें। शेष बचे भाग को फेंकें नहीं। उसे थोड़ा-थोड़ा चाय में उबाल कर पीयें। 
(1.2). उपरोक्त जड़ी-बूटियों को कूट-छान कर शहद मिलकर रख लें और सुबह-शाम दूध  लें। इसे सीधे ही पानी के साथ भी ले सकते हैं। 
यह कोरोना में भी उपयोगी है।  
(2). काला बाँसा :: इस पौधे का उपयोग श्वांस रोगों और सर्दी-जुकाम के उपचार में होता है। यह शरीर में अन्य तरह के कीटाणुओं को भी मारता है। इसे कफ निवारक भी माना जाता है।
रक्त स्राव रोकना :: महिलाओं को माहवारी के दौरान होने वाले अत्यधिक रक्तश्राव, खूनी पेचिस, खूनी बवासीर (पाइल्स), आँतों के फट जाना, चोट लगने पर खून निकलना, नकसीर आदि को रक्त स्राव कहा जाता है।
लिवर कैंसर के मरीज जिनके लिवर में छेद हो जाने से पेट में पानी भर जाता है, मल के साथ या उल्टी के साथ खून आता है।
या किसी भी कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोकने के लिए कहरवा पिष्टी का उपयोग किया जाता है। इसे तृणकांतमणि पिष्टी भी कहते हैं।
कहरवा एक रासायनिक खनिज है, जो समुद्र से प्राप्त होती है।
 गुलाब जल के साथ शोधित करके पिष्टी का निर्माण किया जाता है।
सेवन विधि :- अलग-अलग रोगों में इसे अलग-अलग दवाओं के साथ दिया जाता है, फिर भी आपातकाल में यदि किसी मरीज को खून रोकने के लिए इस दवा को देना हो तो उसकी विधि बहुत आसान है।
20 ग्राम कहरवा पिष्टी में 200 ग्राम ग्लूकोज पाउडर मिला कर मरीज को दिन में 4 बार एक एक चम्मच पाउडर चूसने को दें।
माना जाता है कि इसकी पहली खुराक से ही खून आना बंद हो जाता है। 
काला बांसा
AVOCADO FOR ANTI AGEING :: Avocado (एवोकैडो-नाश्पाती के आकार का एक उष्ण कटिबन्धीय फल), broccoli (ब्रॉकोली हरी फूलगोभी) and cucumber have anti-ageing effect.
BENEFITS OF POPPY SEEDS  खसखस के गुण :: यह एक सूक्ष्म आकार का बीज होता है। इसे लोग पॉपी सीड भी कहते हैं। यह प्यास बुझाता है और ज्वर, सूजन और पेट की जलन से राहत दिलाता है और यह एक दर्द-निवारक भी है। लम्बे समय से ही प्राचीन सभ्यताओं  में  इसका उपयोग औषधीय लाभों के लिए किया जाता रहा है। यह पौष्टिक और और स्वाद से भरपूर है। इसका इस्तेमाल सब्जी की ग्रेवी बनाने और सर्दी के दिनों में स्वादिष्ट हलवा बनाने के लिए किया जाता है। 
(1). इसको दर्द निवारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें पाया जाने वाला ओपियम एल्कलॉइड्स सभी प्रकार के दर्द को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खास तौर से इसका प्रयोग मांसपेशियों के दर्द में किया जाता है। खसखस का तेल भी बाजार में उपलब्ध होता है, जिसका प्रयोग दर्द वाले स्थान पर किया जाता है।
(2).  श्वसन सम्बंधी विकार-खसखस के बीज में शान्ति दायक गुण होने के कारण यह साँस की बीमारियों के इलाज में बहुत कारगर होता है। यह खाँसी को कम करने में मदद करता है और अस्थमा जैसी समस्याओं के खिलाफ लम्बे समय तक राहत प्रदान करता है। 
(3). नींद न आने की समस्या का समाधान है, यह। सोने से पहले खसखस का गर्म दूध पीना  बेहद फायदेमंद हो सकता है। यह अनिद्रा की समस्या को दूर करता है।
(4). यह फाइबर को बहुत अच्छा स्रोत हैं। इसमें इसके वजन से लगभग 20-30 प्रतिशत आहार फाइबर शामिल होता हैं। फाइबर स्वस्थ मल त्याग में और कब्ज की दिक्कत दूर करने में बहुत लाभकारी होती है। लगभग 200 ग्राम खसखस दैनिक फाइबर की जरूरत को पूरा कर सकता हैं। यह बेहतर पाचन में भी मदद करता है और शरीर को उर्जा देने के लिए भी बहुत लाभदायक होता है।
(5). गुर्दे की पथरी में इलाज के तौर पर भी खसखस को सेवन किया जाता है। इसमें पाया जाने वाला ओक्सलेट्स, शरीर में मौजूद अतिरिक्त कैल्शियम का अवशोषण कर गुर्दे में पथरी बनने से रोकता है।
(6). सूखी खसखस को प्राकृतिक शान्ति प्रदान करने वाली औषधि माना जाता है क्योंकि इसमें थोड़ी सी मात्रा में ओपियम एल्कलॉइड्स नामक रसायन होता है। यह रसायन तंत्रिका की अति संवेदन शीलता, खाँसी और अनिद्रा को कम करते हुए तंत्रिका तंत्र पर एक न्यूनतम  प्रभाव उत्पन्न करता है। मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ त्वचा पर होने वाली झुर्रियों को भी कम करने में भी यह मदद करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं, जो मनुष्य को जवान बनाए रखने में मदद करते हैं।
(7). खसखस त्वचा को नमी प्रदान करने में भी सहायक होता है। यह त्‍वचा की जलन व खुजली को कम करने के साथ ही एक्जिमा जैसी समस्याओं से लड़ने में मदद करता है। सेहत के साथ सुंदरता का कांबिनेशन बनाता है यह।
(8). ओमेगा-6 फैटी एसिड, प्रोटीन, फाइबर से भरपूर होने के साथ ही इसमें फाइटोकेमिकल्स, विटामिन बी, थायमिन, कैल्शियम और मैंगनीज भी पाया जाता है, जो पोषण के लिहाज से बहुत फायदेमंद है। इसलिए खसखस को एक उच्च पोषण वाला आहार माना जाता है।
(9). आयुर्वेद में इसको त्‍वचा के लिए अच्‍छा माना जाता है। यह एक मॉइस्‍चराइजर की तरह काम करता है और त्वचा  की जलन और खुजली को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा इसमें मौजूद लिनोलिक नामक एसिड एक्जिमा के उपचार में भी मददगार होता है। त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए खसखस का इस्तेमाल दूध में पीसकर फेसपैक के रूप में किया जाता है। यह त्वचा को नमी प्रदान करने के साथ ही प्राकृतिक चमक लाता है, और चेहरा दमक जाता है।
(10). अधि‍क प्यास लगना, बुखार, सूजन या पेट में होने वाली जलन से राहत पाने के लिए खसखस का प्रयोग किया जाता है। यह पेट में बढ़ने वाली गर्मी को भी शान्त करने में सहायक है।
(11). खसखस में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, फ्री रेडिकल के हमलों से अंगों और ऊतकों की रक्षा करते है। इसलिए इन सब खतरों से बचने के लिए हमें अपने आहार में खसखस को शामिल करना चाहिए।
हरड़ HARITKI हरीतकी C
haracterises  ::
Vrany :: Improve skin complexion, Ushn :: Hot-warm, Kshr :: Promotes bowel movement, Medha :: Improves intelligence, Pramo :: Delusion-lack of memory and intelligence, Doshaaghn :: Natural detoxifying, Shothanut: Relieves inflammation, Deepan :: Improves digestion, Mad :: Delirium, Srotovibandh :: Obstruction to body channels, constipation, Chakshushy :: Improves vision, Rasayan :: Anti ageing-rejuvenating, Ayushy :: Improves life expectancy, Brahmani :: Nourishing, Anulomani :: Normalise bowel movements, Chardi :: Vomiting, Atisar :: Diarrhoea, dysentery, Shwasahar :: Cures Asthma, Tamak :: Cures Asthma, Wheezing-breathing difficulty, Arochak :: Anorexia, Kasahar :: Relieves cold and cough, Kaphaprasek :: Increased salivation due to Kaph-cough dosh, Pramehahar :: Useful in diabetes and urinary tract disorders, Arshahar :: Useful in piles-Haemorrhoids, Kushthahar: Useful in skin diseases, Shothahar :: Relieves inflammation, Udarahar :: Useful in ascites, Krimihari :: Useful in worm infestation-infection, Gulm :: Abdominal tumour, bloating, Anah :: Bloating, Udavart :: Bloating of abdomen, Pandu: Anaemia, initial stages of liver diseases, Shirorog :: Diseases pertaining to head, headache, Pleeha :: Splenomegaly, Nav Udar :: Early stages of ascites, Vaesvary :: Hoarseness of voice, Kamal :: Jaundice, Shvayathu :: Oedema, inflammation, Klaiby :: Impotency, Angavasad :: Body ache, Pralepa-Hrudayoraso :: Stiffness of chest, heaviness of chest.
APPLICATIONS-USES :: (1).  Haritki has laxative, rejuvenate, purgative, astringent and dry properties.
(2). The paste of its fruit is effective in reducing swelling, hastening the healing process and cleansing the wounds and ulcers.
(3). The paste gives relief to the eyelids, in case of conjunctivitis.
(4). Gargling with Haritki decoction, helps in stomatitis, oral ulcers and sore throat.
(5). It serves as a good astringent for loose gums, bleeding and ulceration in gums.
(6). The herb is used in preparing Triphala which is extremely useful in almost all diseases pertaining to stomach and eyes in addition to hair wash, brush teeth in pyorrhoea and treat bleeding gums.
(7). Regular consumption of Haritki powder, fried in ghee, promotes longevity and boosts energy.
(8). It responds well to gastrointestinal ailments, tumours, ascites, piles, enlargement of liver-spleen, worms and colitis.
(9). Powdered Haritki, mixed with jaggery, works well in gout.
(10). Its powder, when mixed with honey and ghee, is an effective remedy for anaemia.
(11). Haritki is combined with Shunthi (सौंठ) powder and given with hot water to lighten asthma and hiccups.
(12). Its decoction, when taken along with honey, is of great help in hepatitis and obesity.
(13). The herb improves memory and is salutary in dysuria and urinary stones.
(14). Haritki helps in improving appetite and helps in digestion.
(15). Nervine :: Helps in nervous weakness and nervous irritability and promotes the receiving power of the five senses.
(16). Since, it is anti-inflammatory and astringent, it is helpful in urethral discharges like spermatorhea and vaginal discharges like leucorrhea. 
Chewing :: Improves digestion, clears and cleanses bowels.
Steamed-boiled :: Absorbent, useful in malabsorption syndrome.
Fried :: Cures Tridosh.
Consumed after food :: Eliminate all the toxic effects due to food poisoning.
Consumed along with salt :: Balances Kaph-Cough.
Consumed sugar :: Balances Pitt and if taken with ghee, it balances Vat disorders.
IMPACT ON TRIDOSH :: Due to its unique combination of pungent, sweet, bitter, sour and astringent tastes, it balances Pitt, Kaph-Cough, Vat-Vayu.
SEASONAL IMPACT ::  
Sharat-Autumn :: Consume it with sugar, Hemant-early winter: Consume it with Shunti (सौंठ) ginger), 
Shishir-winter :: Consume it with Pippali (Long pepper, Piper longum), 
Vasant-Spring :: Consume it with Madhu (शहद, honey), 
Greeshm-summer :: Consume it with Gud jaggery).
SIDE EFFECTS :: Avoid when these symptoms-contra indications occur :- Tiredness, depleted immunity and strength, feeling of dryness and are emaciation, lean body, fasted for long, increased Pitta (burning sensation), pregnant woman, after blood letting treatment, during and soon after menstruation, severe thirst, hunger and have got exposed to Sun for long,  indigestion, emaciated due to increased sexual activity and alcohol, dry mouth, people with neck stiffness, dry throat, early stages of fever.
Haritki is best avoided in infants, up to the age of 5 years. It should be given under medical supervision in children.
Single herb usage of Haritki is contra indicated in lactating mother. It may decrease breast milk production.
APHRODITE (SEXUAL WEAKNESS कमजोरी) :: (1). These Ayurvedic herbs-medicines help in regaining the strength of nerves and may be helpful in treating paralytic stroke as well. Weak muscles may also be strengthened-cured with their help.
(1.1). Keera is a natural Aphrodite found in the Himalyan terrains of Himachal Pradesh.
(1.2). Kesar too functions like this, though with low potency. Pomegranates are extremely good for health, vitality, vigour and as an Aphrodite, if taken regularly. 
(1.3). Saphad Musli (सफेद मूसली), Shtawari (शतावरी), Bada Goghru (बड़ा गोखरू), Jaiphal (जायफल), Kaunch कौंच, Akarkara (अकरकरा), Lajwanti (लाजवन्ती), Smudr Soukh (समुद्र सौख) and Ashw Gandha (अश्व गंधा)  Salv Panja (सल्व पन्जा), Bahman Saphed (बहमन सफेद), Tal Makhana (ताल मखाना) are some of the herbs, which have been used in India for their Aphroditic action, since ages. These herbs should be powdered in equal proportion and used with warm full cream milk regularly for treating all sorts of defects pertaining to impotency. 
इन्हें दूध या पानी अथवा अवलेह बनाकर लिया जा सकता है। ये मर्दानगी सम्बन्धी सभी बीमारियों का इलाज करती हैं तथा paralysis (पक्षाघात, लकवा) में भी फायदे मंद हो सकती हैं। 
लकवे से बचने के आयुवेर्दिक उपाय :: बीर बहूटी लाल रंग का कीड़ा है जो बरसात में निकलता है। उसको धूप में सुखाकर सरसों के तेल में मिलाकर पीस लें और धीरे-धीरे मालिश करें। विशेष लाभ के लिए निगुण्डी की जड़ भी पीसकर मिला लें। इससे पक्षाघात में आराम मिलेगा। 
कुछ दिनों तो रोज छुहारों को दूध में भिगोकर रोगी को देते रहने से लकवा ठीक होने लगता है।
सौंठ और उड़द को पानी में मिलाकर हल्की आँच में गरम करके रोगी को नित्य पिलाने से लकवा ठीक हो जाता है।
नाशपाती, सेब और अँगूर का रस बराबर मात्रा में एक ग्लास में मिला कर सेवन करें। 
1 चम्मच काली मिर्च को पीसकर उसे 3 चम्मच देशी घी में मिलाकर लेप बना लें और लकवाग्रसित अँगों पर इसकी मालिश करें। एैसा करने से लकवा ग्रस्त अँगों का रोग दूर हो जाएगा।
करेले की सब्जी या करेले का रस को नित्य खाने अथवा पीने से लकवा से प्रभावित अंगों में सुधार होने लगता है। यह उपाय रोज करना है।
प्याज खाते रहने से और प्याज का रस का सेवन करते रहने से लकवा रोगी ठीक हो जाता है।
6 कली लहसुन को पीसकर उसे 1 चम्मच मक्खन में मिला लें और रोज इसका सेवन करें। लकवा ठीक हो जाएगा।
तुलसी के पत्तों एवम दही और सेंधा नमक को पूरी तरह से मिलाकर उसका लेप करने से लकावा ठीक हो जाता है। ये उपाय लम्बे समय तक करना होगा।
गरम पानी में तुलसी के पत्तों को उबालें और उसका भाप लकवा ग्रस्ति अँगों को देते रहने से लकवा ठीक होने लगता है।
आधा लीटर सरसों के तेल में 50 ग्राम लहसुन डालकर लोहे की कड़ाही में पका लें। जब पानी जल जाए उसे ठँडा होने दें फिर इस तेल को छानकर किसी डिब्बे में डाल लें। और इस तेल से लकवा वाले अँगों पर मालिश करें।
धतूरे के बीजों को सरसों के तेल में मंदी आंच में पका लें और  इसे छानकर लकवा से ग्रसित अंग पर मालिश करें।
लकवा से ग्रसित हिस्से पर बादाम, सरसों के तेल, निर्गुण्डी के तेल  की मालिश करें।
मक्खन और लहसुन भी लकवा की बीमारी में राहत देते हैं। मक्खन के साथ लहसुन की चार कलियों को पीसकर सेवन करें।
दाल चीनी और एक चम्मच  सोंठ को मिलाकर उबाल लें और नियमित इसका सेवन करें। 
परवल, करेला, गेहूँ की रोटी, लहसुन, बाजरे की रोटी, तरोई, फली आदि का नियमित सेवन करें।
आम, चीकू, पपीता और अँजीर आदि फलों का सेवन करें ।
सुबह और शाम दूध का सेवन करें।
तली हुई चीजें, बेसन, चना, दही, चावल, छाछ और साग का सेवन ना करें।
त्रिफला का सेवन करने से भी लकवा ठीक हो सकता है।
(1.4). मक्खन-मलाई  मिश्री मिलाकर खाने से कमजोरी दूर होती है।
(1.5). सफेद मूसली का चूर्ण और मिश्री सुबह और रात को सोने से पहले गुनगुने दूध के साथ एक-एक चम्मच लेने से कमजोरी दूर होती है।
(1.6). सावन में गुड खावै, सो मौहर बराबर पावै। Consume small quantity of Jaggery (Gud ,गुड़), during rainy season for good health.
(1.7). Guggul is also an aphrodisiac and its regular intake improves sexual ability as well as it increases healthy sperm production. It promotes youthfulness with longevity.
(2). स्वस्थ, बलवान और शक्तिशाली शरीर :: शारीरिक परिश्रम करने वाले व्यक्ति को उचित आहार, व्यायाम, पर्याप्त नींद के साथ-साथ निम्न का सेवन भी करना चाहिए। 
(2.1). तिल ::
 तिल की तासीर-प्रकृति बेहद गर्म है। लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में काले तिल और ढाक के बीजों को पीसकर और इनको छानकर इसमें 200 ग्राम शक्कर मिलाकर इस मिश्रण को रोजाना 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पानी के साथ लेने से शरीर में मजबूती आती है।
लगभग 20 ग्राम की मात्रा में काले तिल और इतनी ही मात्रा में गोखरू को मिलाकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बकरी के दूध में खीर की तरह बनाकर खाने से शरीर में भरपूर ताकत का विकास होता है। इसका सेवन लगातार 15 या 20 दिनों तक करने से शरीर की कमजोरी खत्म हो जाती है।इनका दोनों का ही प्रयोग केवल ठँड बढ़ने पर ही करना चाहिए। समुचित व्यायाम करें अन्यथा वजन बढ़ने लगेगा। अधिक प्रयोग से बेमौसम पसीना आता है जिससे नाक बन्द हो जाती है, साँस लेने में तकलीफ होती है। जोर लगाकर सिनकने से खून आना शुरू हो जाता है। इनके प्रयोग के समय नीबू का रस का प्रयोग अवश्य करें। सर्दी के मौसम में गज्जक, तिलपट्टी, तिलकुट आदि उपलब्ध होते हैं। इनका प्रयोग भी सीमित मात्रा में करना चाहिए।
(2.2). छुहारा :: लगभग 10 ग्राम छुहारे लेकर पीस लें। रोजाना कम से कम 2 ग्राम की मात्रा में इस छुहारे के चूर्ण को 250 मिलीलीटर हल्के गर्म दूध के साथ सोते समय लेने से शरीर मजबूत होता है। इसका सेवन केवल सर्दियों के दिनों में करना चाहिए। 4 या 5 छुहारों की गुठलियों को निकालकर इसमें लगभग लगभग आधा ग्राम गुग्गल इनके अन्दर भर दें और इन छुआरों को दूध में पकायें। सुबह और शाम को रोजाना एक छुहारा दूध के साथ खाने से वात की बीमारी दूर हो जाती है और शरीर शक्तिशाली बनता है। लगभग 500 मिलीलीटर की मात्रा में दूध लेकर उसमें 2 छुआरे डाल दें। फिर दूध को आधा रह जाने तक गर्म करें। अब इस दूध में 2 चम्मच मिश्री या खांड़ लेकर मिलाकर पीयें और छुहारों को खा जायें। इसके खाने से शरीर में मांस बढ़ता है, शरीर की ताकत बढ़ती है और मनुष्य का वीर्य बल भी बढ़ता है। छुआरा खून बढ़ाता है, और शरीर के विभिन्न भागों में ताकत पहुँचाता है। इसका प्रयोग केवल सर्दी के दिनों में ही करना चाहिए। इसका सेवन करने के 2 घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए। एक बार में 4 से ज्यादा छुहारों का सेवन नहीं करना चाहिए। किसी मिट्टी या कांच के बर्तन में पानी लेकर इसमें 2 छुहारे शाम को भिगोकर रख दें। सुबह उठकर इन छुहारों की गुठली को निकालकर इन्हें लगभग 500 मिलीलीटर दूध में गर्म करें और 250 मिलीलीटर दूध रह जाने तक गर्म करें। बचे हुए दूध को पीने से शरीर की कमजोरी खत्म हो जाती है और शरीर को भरपूर ताकत मिलती है। जो बच्चे बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं, उनको छुहारे का दूध पिलाने से वह बिस्तर पर पेशाब करना बन्द कर देते हैं। खजूर भी लगभग यही कार्य करते हैं और ऊर्जा के साथ शक्ति-स्फूर्ति-तंदरुस्ती प्रदान करते हैं। 
(2.3). बेर :: बेर खाली पेट खाना ज्यादा लाभप्रद है। लगभग 15 ग्राम की मात्रा में बेर के छिलकों को छाया में सुखाकर, पीपल, काली मिर्च, सौंठ और त्रिफला के साथ पीसकर इनका चूर्ण बना लें और इसमें लगभग 75 ग्राम की मात्रा में गुग्गल को पीसकर मिला लें। इस मिश्रण को 10 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय पानी के साथ लेने से शरीर को ताकत मिलती है और शरीर से सभी रोग दूर रहते हैं।
(2.4). हरड़ :: लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में हरड़ का छिलका और पिसा हुआ आँवला को लेकर इसमें 200 ग्राम की मात्रा में खाँड़ मिलाकर इस चूर्ण को सुबह के समय लगभग 10 ग्राम की मात्रा में 250 मिलीलीटर हल्के गर्म दूध के साथ लेने से शरीर में मजबूती आती है। भोजन के दौरान सुबह-शाम आधा चम्मच की मात्रा में हरड़ का चूर्ण लेते रहने से बुद्धि और शारीरिक बल में वृद्धि होती है।
(2.5). तालमखाना :: लगभग 25-25 ग्राम की मात्रा में तालमखाना, असगंध, बीजबन्द, गंगेरन, बरियार, कौंच के बीजों की गिरी, काली मूसली, सफेद मूसली और गोखरू को पीसकर तथा छानकर इस चूर्ण को लगभग 100 ग्राम देसी घी में भूनकर इसमें लगभग 100 ग्राम खांड़ या शक्कर को मिलाकर रख लें। इस तैयार मिश्रण में से एक चम्मच चूर्ण रोजाना सुबह के समय दूध के साथ लेने से शरीर में ताकत आती है। इस मिश्रण का प्रयोग सर्दी के दिनों में करना चाहिए।
(2.6). जायफल :: लगभग आधा ग्राम पिसा हुआ जायफल और लगभग इतनी ही बंगभस्म को शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम लेने से शरीर शक्तिशाली बनता है। जायफल, मिश्री और पीपल के चूर्ण को एक साथ मिलाकर इसमें नाग भस्म मिलाकर सेवन करने से शरीर में ताकत पैदा होती है।
(2.7). चिलगोजा :: कमजोरी आने पर चिलगोजा की मिंगी और मुनक्का को लगभग 24 घँटे तक पानी में भिगोकर रख दें। इसके बाद इसमें शक्कर मिलाकर खाने से शरीर की कमजोरी के दूर होने के साथ ही साथ शरीर में ताकत आ जाती है। चिलगोजा खाने से व्यक्ति के शरीर में चुस्ती और फुर्ती के साथ ही साथ अधिक ताकत भी आती है।
(2.8). नागरबेल :: नागरबेल के पत्तों का शर्बत बनाकर पीने से शरीर को मजबूती मिलती है और ताकत में वृद्धि होती है।
(2.9). बादाम :: बादाम का सेवन बहुत ठण्ड पड़ने पर अधिक लाभप्रद है। मगर इसकी मात्रा 2-3 तक ही सिमित रखें। रात को भिगोकर रखें और सुबह नहा-धोकर लगातार चबाचबाकर खायें। यह बुद्धि और बल दोनों बढ़ता है। ज्यादा खाने पर गर्मी भी कर देता है। नाक से खून आना, गले में खराश, खाँसी तो आम बात हैं। शरीर की शक्ति को बढ़ाने के लिए बादाम की गिरी और भुने हुए चनों को छीलकर रोजाना खाना चाहिए। लगभग 4 बादाम की गिरियों को पीसकर इसमें 1-1 ग्राम की मात्रा में शहद और मिश्री को मिलाकर चाटने से मनुष्य के शरीर में ताकत बढ़ जाती है। लगभग 7 बादाम की गिरी, 7 दाने कालीमिर्च, लगभग 3 ग्राम की मात्रा में सौंफ (गर्मियों के मौसम में सौंफ के स्थान पर सूखा हुआ साबुत धनिया) और 2 छोटी इलायची को लेकर शाम को सोते समय कांच या चीनी के बर्तन में भिगोकर रख दें। सुबह उठकर व्यायाम करने के बाद बादाम और इलायची के छिलके उतार लें और कालीमिर्च और सौंफ के साथ इनको पीस लें। इसके बाद इसको 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर कपड़े से छान लें। इसके बाद इसमें 2 चम्मच शहद या मिश्री मिलाकर धीरे-धीरे पीने से याददाश्त मजबूत होती है और आंखों की रोशनी तेज होने के साथ ही साथ शरीर की शक्ति बढ़ती है।बादाम की गिरियों से निकाला गया दूध बच्चों के लिए बहुत लाभकारी होता है। 2 बादाम की गिरियों को शाम को पानी में भिगोकर रख दें। इसके बाद सुबह इनका छिलका उतार कर बारीक पीस लें।अब इन पीसे हुए बादामों में मक्खन को मिलाकर खाने से तुतलाना और हकलाना दूर हो जाता है। इसके अलावा कमजोर शरीर भी मजबूत बनता है। इसका सेवन कुछ महीने तक करना चाहिए। शाम को सोते समय लगभग 2-3 बादाम की गिरियों को पानी में भिगोकर रख दें और सुबह इनका छिलका उतारकर बारीक पीस लें। अब इन पीसे हुए बादामों को कढ़ाई में घी डालकर हल्की आग पर भूने। इसमें लाल होने से पहले ही लगभग 150 ग्राम की मात्रा में दूध डालें। इस दूध को हल्का गर्म करके पीने से शरीर शक्तिशाली बनता है। इसके अलावा शरीर का वीर्य बल भी बढ़ता है। इसका सेवन रोजाना सुबह करना चाहिए।
(3). KAUNCH-MUCUNA (कौंच) :: Mucuna pruriens has been recognized as an aphrodisiac in Ayurved, has been shown to increase testosterone levels, helps deposition of protein in the muscles and increase muscle mass and strength. The extract is also known to enhance mental alertness and improve coordination.
GENERAL APPLICATIONS : Dyspepsia, Arthritis-Joint Pains, Rheumatoid, Arthritis, Gout, Stroke, Osteoarthritis, Osteoporosis, Cervical Spondylosis, Ankylosing, Sacroiliitis Disease, Back Pain, Slipped Disc, Sciatica, Frozen Shoulder, Constipation, Weak Digestion, Peptic ulcer, Ulcerative Colitis, Hepatitis, Hepatitis B, Hepatitis C, Cirrhosis of Liver, Irritable bowel syndrome, Crohn's Disease, Piles Disease, Skin-Acne Problems, Acne Problems, Psoriasis, Hair Fall, Dandruff, Leucoderma, Urticaria, Eczema, Lichen Planus Pigmentosis, Keloid, Auto Immune Disorders, Cancer, Thyroid, Diabetes, Weight Loss, Fibromyalgia, Low immunity, Anti Ageing Treatment, Anaemia, Dark Circles & Wrinkles, Cardiac System, Hypertension,Pulmonary-Hypertension, Angina, Heart failure, High cholesterol, Nervine System, Parkinson Disease, Facial Paralysis, Paralysis, Trigeminal Neuralgia, Tennis Elbow, Mental,Disorders, Stress, Anxiety, Insomnia, Migraine, Low Memory, Depression, Obsessive Compulsive, Respiratory System, Asthma, Allergy, ENT (eyes, nose, throat) Disorders, Sinusitis, Tinnitus, Weak eye sight, Tonsillitis, Kidney Problems, Renal Stones, Kidney Failure, Kid's Health.
As an aphrodisiac (3.1). It bound up testosterone, (3.2). increases blood circulation to the genitals, (3.3). eliminate stress and anxiety-provides relaxation and sound sleep, (3.4). strengthen and tone the sexual glands, (3.5). support the healthy production of the sex hormones, (3.6). increase stamina and sex drive and (3.7). act as a restorative nutrient for the nervous system. It boosts general health, checks infertility improves sperm count, increases sexual strength, rejuvenation, erectile dysfunction, premature ejaculation, nightfall, penis enlargement-elongation, improves libido, corrects male hormone disorder, impotence along with helping in prostate enlargement. Its equally beneficial for the women suffering from sexual disorders.
(4). GUGGUL :: The active ingredient in the Guggul extract is the steroid called guggulsterones, that is believed to lower cholesterol synthesis in liver. It helps to get rid of the unwanted fat.
Guggul herb is an ushan viry herb with hot potency and Ayurvedic medicine uses it for the treatment of many diseases. Guggul is popularly known as the natural fat killer. Guggul extract is used for lowering cholesterol levels and lipids.It is a good appetiser and also grants relief from hyper acidity and belching.
Guggul improves digestive disorders and prevents indigestion and constipation. Guggul is also a very useful anti inflammatory and pain relieving herb. It is used for treating rheumatoid arthritis, osteoarthritis, sciatica, paralysis, hemiplegia, lymphadenopathy. Guggul herb, due to its antibiotic effects is widely used for treating infectious diseases. It is also used for treating upper respiratory tract infection. It fights asthma. Gargles with Guggul dissolved in water can treat tonsillitis, mouth ulcers, upper respiratory tract infection, throat irritation, pharyngitis and stomatitis. Guggul is also very useful herb for treating various heart problems. It is a very good blood purifier and is thus used to treat various skin diseases including leprosy and eczema. Guggul herb treats hypertension as it helps in lowering blood pressure to normal levels.
It is also an aphrodisiac and its regular intake improves sexual ability as well as it increases healthy sperm production.
Guggul herb is also beneficial for women's health because it gives relief from menstrual problems like painful menses, cramps and other related conditions.
It promotes youthfulness with longevity.
WARNING :: Ayur Ved restricts everyone from taking Guggul in raw form. Guggul gum extract should always be used with milk, water or in herbal medicine preparations.
SESAME SEED  तिल :: 
(1). न्यूट्रिएंट्स-पोषक तत्व: इसमें कैल्शशियम, आयरन, ऑक्जेलिक एसिड, अमीनो एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी, सी तथा ई की प्रचुर मात्रा होती है। 
(2). शारीरिक-मानसिक दुर्बलता: ठंड में समान मात्रा में मिले तिल गुड़ के लड्डू दूध के साथ खाने से मानसिक दुर्बलता, तनाव, सांस फूलना दूर होगा, जल्दी बुढ़ापा नहीं आयेगा और शक्ति मिलेगी। 
(3). बाल झड़ना:  तिल के तेल में आँवला पकाकर, छानकर सिर में  मालिश करने से बाल घने काले और चमकदार हो जायेंगे और बालों का गिरना भी कम हो जायेगा।
(4). बबासीर: सर्दियों में दो चम्मच काले तिल को चबाकर पानी पिने से लाभ मिलता है। 
(5). बिस्तर में पेशाब: भुने काले तिल और गुड़ के लड्डू, बच्चे को सोने से पहले खिलाइये।
मूत्र सम्बन्धी विकार :  बार-बार पेशाब का आना या खुलकर पेशाब का न आये तो  5 ग्राम तिल तथा 5 ग्राम गौखरू का काढा बनाकर पिने से आराम मिलेगा।
(6). एंटी एजिंग :  एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर तिल का तेल सर्दियों में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करने से वाइरस, एजिंग और बैक्टीरिया से शरीर की रक्षा करता है। 
(7). डायबिटीज:  इसके एंटी डायबेटिक गुण दवा का असर करते हैं।
(8). पेट दर्द:  20 ग्राम तिल चबाकर उपर से गर्म पानी पिलाने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
(9). कब्ज:   50 ग्राम भुने हुए तिल कूट कर चीनी के साथ खाइये।
(10). दांत और मसुड़े:  सर्दियों में सुबह के वक्त चबा-चबा कर काले तिल खाने से लाभ मिलता है। 
(11). आर्थराइटिस: तिल, सोंठ, मेथी, अश्वगंधा सभी बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाकर रोज सुबह सेवन करें। आर्थराइटिस की समस्या ठीक हो जाती है।
(12). सर्दी: तिल के बने गज्जक, रेवड़ी, तिलकुट  कम मात्रा में खाने से ठण्ड, कफ व सूजन से बचाव होता है।  अदरक वाली चाय में दो ग्राम कुटे हुए तिल मिलाकर, खूब उबालकर पीने से  खांसी ठीक हो जाती है।
SESAME OIL तिल का तेल :: तिल का तेल सर्दियों में सेहत के लिए वरदान है। तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। यह एक औषधि का काम करता है।  शरीर में बीमारियों से  लड़ने की क्षमता विकसित करता है। इसमें बादाम की अपेक्षा छः गुना कैल्शियम है।काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो कि रक्त अल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है। इसमें उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।
तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहिता में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।तिल में विटामिन ए और सी छोड़ कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है। इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं, जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते। ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है।
तिल बीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है। यह कब्ज भी नहीं होने देता। तिल बीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व, जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं। तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।
सर्दियों में तिलपट्टी, गज्ज़क, गज्जक रोल आदि प्रचुर मात्रा में बाज़ार में उपलब्ध होते हैं, जो कि सर्दी से बचाव करते हैं। अधिक मात्रा में लेने से वज़न बढ़ना, नकसीर जैसे समस्याएँ हो सकती है। 
गौंद (Gum, Glue, gelatinous sweet) :: इसका प्रयोग प्रसूताओं के लिए होता है। ये नारी के प्रजनन अंगों को शक्ति पदान करने  का काम करता है। गोंद को घी में भूनते हैं तो ये फूल कर बड़ा हो जाता है फिर उसका चूरा करके मेवों के साथ मिला कर लड्डू बनाए जाते हैं। यह भी इसे खाने का एक तरीका है, यह अक्सर प्रसूताओं के लिए बनाया जाता है। बबूल के गोंद में गैलेक्टोज, एरेबिक एसिड, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण उपस्थित होते हैं।आयुर्वेद के अनुसार यह  मुँह के छालों, गले के सूखने में, मूत्र के अवरोध में, अतिसार और मधुमेह में उपयोगी है।
गौंद पंजीरी :: This preparation chiefly contains flour, jaggery-sugar, ghee, dry fruits, melon seeds, Sounth-dried ginger, dakhini mirch and azwain. This is an essential preparation to be served to the lactating mothers to avoid pain -rheumatic pain in their knee joints at a later stage-old age.
BEAT ROOT  चुकन्दर :: (1). इसमें सोडियम पोटेशियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन, आयरन और विटामिन पाए जाते है। इसमें एंटीआक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो  जवान बनाएं रखने में मदद करते हैं। यह थकान दूरकर आलस मिटाता है। 
(2). सफेद चुकंदर त्वचा के लिए फायदेमंद है। इसको पानी में उबाल कर छानकर इस्तेमाल करने से यह फोड़े, जलन, मुहांसे, खसरा, बुखार,  त्वचा को साफ करने आदि में मदद करता है। 
(3). चुकंदर में नाइट्रेट होता है जो रक्त के दबाव को संयत करता है। यह एनीमिया में उपयोगी है और आयरन की प्रचुरता के कारण  रक्त बढ़ाकर लाल रक्त कोशिकाओं को सक्रिय करता है,  प्रतिरोधक क्षमता और घाव भरने की क्षमता बढ़ता है और दिल की बिमारियों में लाभप्रद है। 
(4). चुकंदर का नियमित सेवन करेंगे, तो कब्ज की शिकायत नहीं होगीबवासीर के रोगियों के लिए भी यह काफी फायदेमंद होता है। रात में सोने से पहले एक गिलास या आधा गिलास जूस दवा का काम करता है।
(5). खाने के साथ चुकंदर सलाद की तरह इस्तेमाल करें। इससे शरीर में ताकत बढ़ेगी और थकान भी दूर होगी।
(6). उच्च रक्त चाप हो गया हो तो इसको खाकर पानी पियेंगे तो तुरन्त लाभ मिलेगा। चुकंदर और सेब का मिक्स जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है।  इससे  ज्यादा सेवन ना करें। 
मुनक्का :: (1). यह गर्म प्रकृति का सुखा मेवा है। यह प्यास के साथ-साथ गर्मी और पित्त को शान्त करता है। यह पेट और फेफड़ों के रोगों में भी बहुत लाभकारी है। 
(2). मुनक्के  रात में धो-भिगोकर रखें और सुबह बीज निकालकर खूब चबा-चबा कर खाएं। यह खून साफ करने के साथ-साथ नकसीर को भी रोकेगा।
(3). मुनक्के का बीज निकाल कर तवे पर भून लें तथा उसमें काली मिर्च का चूर्ण मिला कर चबाने से खाँसी में लाभ होगा।
(4). बच्चा यदि बिस्तर में पेशाब करता  हो तो, उसे  बीज निकालकर मुनक्के में  काली मिर्च डालकर रात को सोने से पहले खिला दें।
(5). पुराने-मियादी बुखार से भूख लगनी बंद होने पर मुनक्के भून कर, सेंधा नमक व कालीमिर्च मिलाकर खाने से भूख खुलती है।
(6). कब्ज़ होने पर मुनक्कों को दूध में उबाल लें और रात में सोते समय  बीज निकाल के  खायें और  ऊपर से गर्म दूध पी लें।
(7). ये कमजोरी मिटाकर  शरीर को पुष्ट करते हैं।
(8). लौह तत्व (iron) की मात्रा अधिक होने के कारण यह (Haemoglobin)  खून के लाल कण को बढ़ाता है।
(9). इन्हें पानी में  भिगोकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं। 
पीपल-पिप्पली :: (1). यह छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है, जिनमें से छोटी ज्यादा गुणकारी होती है। 
(2). यह पाचक अग्नि बढ़ाने वाली, वृष्य, पाक होने पर मधुर रसयुक्त, रसायन, तनिक उष्ण, कटु रसयुक्त, स्निग्ध, वात तथा कफ नाशक, लघु पाकी और रेचक (मल निकालने वाली) है तथा श्वास रोग, कास (खांसी), उदर रोग, ज्वर, कुष्ठ, प्रमेह, गुल्म, बवासीर, प्लीहा, शूल और आमवात नाशक है।
(3). कच्ची अवस्था में यह कफकारी, स्निग्ध, शीतल, मधुर, भारी और पित्तशामक होती है, लेकिन सूखी पीपर पित्त को कुपित करती है। शहद के साथ लेने पर यह मेद, कफ, श्वास, कास और ज्वर का नाश करने वाली होती है। ग़ुड के साथ लेने पर यह जीर्ण ज्वर (-पुराना बुखार) और अग्निमांद्य में लाभ करती है तथा खांसी, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, हृदय रोग, पाण्डु रोग और कृमि को दूर करने वाली होती है। पीपल के चूर्ण की मात्रा से गुड़ की मात्रा दोगुनी रखनी चाहिए।
सौंठ :: अदरक  को सुखाकर सौंठ बनाया जाता है। तेज धूप में सुखाई गई अदरक से बनी सौंठ अधिक गुणकारी है।  इसमें अदरक के सारे गुण मौजूद होते हैं। यह उपयोगी एक  वातनाशक औषधि है। सौंठ में उदर वातहर (वायुनाशक) गुण होने से, यह विरेचन औषधियों के साथ मिलाई जाती है। यह शरीर में समत्व स्थापित कर जीवनी शक्ति और रोग प्रतिरोधक सामर्थ्य को बढ़ाती है।
(1). भोजन से पहले अदरक को चिप्स की तरह बारीक कतर लें, या कद्दूकस कर लें।  इन के ऊपर पर पिसा हुआ काला नमक बुरक कर खूब चबा-चबाकर खाने के बाद भोजन करें। इससे अपच दूर होती है, पेट हलका रहता है और भूख खुलती है।
(2). सौंठ और उड़द उबालकर, इसका पानी पीने से लकवा ठीक हो जाता है।
(3). सौंठ मिलाकर उबाला हुआ पानी पीने से, पुराना जुकाम खत्म होता है। 
(4). सौंठ, पीपल और काली मिर्च को बराबर की मात्रा में लेकर पीसने से त्रिकुटा बनता है।  इसकी 1 चुटकी शहद के साथ चाटने से जुकाम में आराम आता है।
(5). सौंठ, सज्जीखार और हींग का चूर्ण गर्म पानी के साथ सेवन करने से सारे तरह के दर्द नष्ट हो जाते हैं।
(6). सौंठ और जायफल को पीसकर पानी में अच्छी तरह मिलाकर छोटे बच्चों को पिलाने से, दस्त में आराम मिलता है। 
(7). सौंठ, जीरा और सेंधा नमक के चूर्ण को  ताजा दही के मट्ठे में मिलाकर, भोजन के बाद सेवन करने से पुराने अतिसार (दस्त) का मल बंधता है। आम (कच्ची ऑव) कम होती है और भोजन का पाचन होता है। 
(8). सौंठ को पानी या दूध में घिसकर नाक से सूँघने से और लेप करने से आधे सिर के दर्द में लाभ होता है।
(9). सौंठ को गुड़ के साथ मिलाकर खाने से, शरीर की सूजन खत्म हो जाती है।
(10). सौंठ को गुड़ हल्दी के साथ मिलाकर दूध के साथ खाने से शारीरिक-चोट के दर्द से आराम मिलता है। 
(11). सौंठ, काली मिर्च और हल्दी के चूर्ण को मिला कर  गर्म पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से श्वासनली की सूजन और दर्द में लाभ मिलता है। ब्रोंकाइटिस के अतिरिक्त-अलावा  यह खांसी, जोड़ों में दर्द, कमर दर्द और हिपशूल में लाभकारी होता है। इसे आवश्यकतानुसार एक हफ्ते तक लेना चाहिए। पूर्ण रूप से लाभ न होने पर इसे 4-5 बार ले सकते हैं।
(12). सौंठ और कायफल के मिश्रित योग से बनाए गये काढे़ का सेवन करने से वायु प्रणाली की सूजन में लाभ मिलता है।
(13). सौंठ, हरड़, बहेड़ा, आंवला और सरसों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करें। इससे रोजाना सुबह-शाम कुल्ला करने से मसूढ़ों की सूजन, पीव, खून और दाँतों का हिलना बन्द हो जाता है।
(14). सौंठ को गर्म पानी में पीसकर बनाये लेप को रोजाना दाँतों को मलने से दांतों में दर्द नहीं होता और मसूढे़ मजबूत होते हैं।
(15). सौंठ, मिर्च, पीपल, नागकेशर का चूर्ण घी के साथ माहवारी समाप्त होने के बाद, यदि स्त्री सेवन करे तो गर्भ ठहर जाता है।
(16). महारास्नादि में सौंठ का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीने और रोजाना रात को 2 चम्मच एरण्ड के तेल को दूध में मिलाकर सोने से पहले सेवन करने से अँगुलियों की कम्पन की शिकायत दूर हो जाती है।
(17). यदि दिल कमजोर हो, धड़कन तेज या बहुत कम हो जाती हो, दिल बैठने लगता हो तो 1 चम्मच  सौंठ को एक कप पानी में उबालकर उसका काढ़ा बना लें। यह काढ़ा रोज इस्तेमाल करने से लाभ होता है।
(18). 10 ग्राम सौंठऔर 10 ग्राम अजवायन को 200 मिलीलीटर सरसों के तेल में डालकर आग पर गर्म करें। सौंठऔर अजवायन भुनकर जब लाल हो जाए तो तेल को आग से उतार लें। यह तेल सुबह-शाम दोनों घुटनों पर मलने से रोगी के घुटनों का दर्द दूर हो जाता है। 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम काली मिर्च, 5 ग्राम बायविडंग और 5 ग्राम सेंधा नमक को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को एक छोटी बोतल में भर लें, फिर इस चूर्ण में आधा चम्मच शहद मिलाकर चाटने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है।
(19). 6 ग्राम पिसी हुई सौंठ में 1 ग्राम नमक मिलाकर गर्म पानी से फंकी लेने से पित्त की पथरी में फायदा होता है।
(20). सौंठ, गुग्गुल तथा गुड़ को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर, काढ़ा बनाकर सोते समय पीने से मासिक-धर्म सम्बन्धी परेशानी दूर हो जाती हैं।
(21). 50 ग्राम सौंठ, 25 ग्राम गुड़ और 5 ग्राम बायविडंग को कुचलकर 2 कप पानी में उबालें। जब एक कप बचा रह जाए तो उसे पी लेना चाहिए। इससे मासिक-धर्म नियमित रूप से आने लगता है।
(22). गुड़ के साथ 10 ग्राम  सौंठ खाने से पीलिया का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
(23). आम का रस पेट में गैस न करे, इसलिए उसमें सौंठ और घी डाला जाता है।
(24). बुढ़ापे में पाचन क्रिया कमजोर पड़ने लगती है। वात और कफ का प्रकोप बढ़ने लगता है। हाथों, पैरोँ तथा शरीर के समस्त जोड़ो में दर्द रहने लगता है। सौंठ मिला हुआ दूध पीने से बुढ़ापे के रोगों से राहत मिलती है।
चेतावनी: गर्म प्रकृति वाले लोगो के लिए सौंठ अनुकूल नहीं है। 
हींग :: दाल-सब्जी में हींग दर्द निवारक और पित्तवर्द्धक है। छाती और पेटदर्द में हींग का सेवन लाभकारी है। छोटे बच्चे के पेट में दर्द होने पर, हींग को एक चम्मच पानी में घोलकर पकाने और उसे नाभि के इर्द-गिर्द लगाने से राहत मिलेगी।
हरड़ :: इस को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली, पीलिया, शोध, मूत्राघात, दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें। गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा।
बहेड़ा :: बहेड़ा  वात और कफ को शाँत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है।यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी, प्यास, वात, खाँसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, माँस, केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है। बहेडा न मिले तो छोटी हरड़ का प्रयोग करते है। 
आँवला :: आँवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आँवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आँवले में ताजे आँवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।
औषधी के रूप में त्रिफला :: रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।
अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है।
इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।
शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
एक चम्मच बारीक त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है।
त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूँट भर मुँह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुँह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।
त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनों को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।
विधि :- 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।
सेवन-विधि :- बड़े व्यक्ति 10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं। सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है। 
मात्रा :- 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें।
सावधानी :- दूध व त्रिफलारसायन कल्प के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।
घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाक  जहर होता है।
त्रिफला चूर्ण के सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध काफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।
त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।
त्रिफला से कायाकल्प :: निम्बू, लहसुन, भिलावा, अदरक आदि भी शरीर स्वस्थ रखने में सहायक हैं। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है।
एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।
तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।
चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।
पाँच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।
छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धावस्था से पुन: यौवन लौट आता है।
नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म  से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।
ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।
त्रिफला :: 1 मात्रा हरड़ +2 मात्रा बहेड़ा +3 मात्रा आँवला।  
बड़ी हरड़, तासू दुगुन बहेड़ा और चतुर्गुण मेरे मीता, आँवला परम पुनीता। कूट छान या विधि खाय, ताके रोग सर्व कट जाय।
मात्रा :: 2 से 4 ग्राम चूर्ण सुबह, दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी-गर्म दूध के साथ लें।
प्रयोग विधि :: सुबह हाथ-मुंह धोने व कुल्ला करने के बाद खाली पेट, ताजे पानी के साथ इसका सेवन करना चाहिये तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ नहीं लेना चाहिये। 
(1). सुबह त्रिफला गुड के साथ लेने से यह शरीर को पोषण देता है और विटामिन, लौह तत्व, कैल्शियम व अन्य माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की कमी को पूरा करता है। 
(2). रात में गुनगुने पानी या गर्म दूध के साथ लेने से यह पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि) का निवारण करने के कारण  रेचक कहलाता है।  
(3). विभिन्न ऋतुओं में इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि मिलाकर लेना चाहिये।
ग्रीष्म ऋतु  (14 मई से 13  जुलाई) ::  1/4  भाग गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करें। 
वर्षा ऋतु (14 जुलाई से 13  सितम्बर) ::   1/4 भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
शरद ऋतु (14 सितम्बर से 13  नवम्बर) ::   1/4 भाग देशी खाँड मिलाकर सेवन करें। 
हेमन्त ऋतु (14  नवम्बर से 13  जनवरी) ::  1/4 भाग सौंठ का चूर्ण  मिलाकर सेवन करें। 
शिशिर ऋतु (14 जनवरी से 13  मार्च) ::  1/4 भाग छोटी पीपल चूर्ण मिलाकर सेवन करें। 
वसन्त ऋतु (14 मार्च से 13 ) ::   शहद मिलाकर सेवन करें।  त्रिफला का नियमित सेवन शरीर का कायाकल्प कर सकता है। इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी, दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा, तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी,  चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सोंदर्य निखरेगा, पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा, छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवाशक्ति सा परिपूर्ण लगेगा।
(4). नेत्र-प्रक्षलन :- एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से अच्छी तरह छानकर, उस पानी से आंखें धोने से यह  आंखों के लिए हितकर साबित होता है।  आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा दूर हो जाती हैं।
(5). कुल्ला करना :- त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद  करें।  इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
(6). त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।
(7). त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक-एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती और घाव जल्दी भर जाता है।
(8). गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
(9). मूत्र सम्बंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। 
(10). रात को गुनगुने पानी-गर्म दूध के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
(11). इसका नियमित सेवन रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।
सावधानी :: दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
हरड, बहेडा, आँवला चौथी नीम, गिलोय, 
पंचम जीरा डालकर सुमिरन काया होय। 
Consumption of a powder made from Haid, Baheda, Amla, Neem leaves, Jeera and Giloy helps in keeping fit in all seasons.
मैथीदाना, अजवाईन, काली जीरी का मिश्रण-18 असाध्य रोगों का इलाज़ :: पाँच भाग मैथीदाना, दो भाग अजवाईन, एक भाग काली जीरी; इन तीनों को साफ-सुथरा करके हल्का-हल्का सेंक कर तीनों को अच्छी तरह मिला कर चूर्ण बना लें। रात्रि में सोते समय एक चम्मच पावडर एक गिलास पूरा कुन-कुने गरम पानी के साथ लें। लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है। यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति ले सकते हैं। चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में जमा पडी गन्दगी (कचरा) मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी। पूरा फायदा तो दो-तीन महीने में महसूस होगा, जब वज़न कम हो जायेगा और रक़्त का संचार बढ़ जायेगा। त्वचा की झुर्रियाॅ स्वतः दूर हो जायेंगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्ति पूर्ण  व सुंदर बन जायेगा।
(1). गठिया दूर होगा और गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा, (2). हड्डियाँ मजबूत होंगी, (3). आँखों रौशनी बढ़ेगी, (4). बालों का विकास होगा, (5). पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति, (6). शरीर में खून दौड़ने लगेगा, (7). कफ से मुक्ति, (8). हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी, (9). थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तरह दौड़ते नज़र आयेंगे, (10). स्मरण शक्ति बढ़ेगी, (11). शादी के बाद स्त्री का बेडौल शरीर सुंदर बनेगा, (12). कान का बहरा पन दूर होगा, (13). भूत काल में इस्तेमाल की गईं अंग्रेजी दवाइयों के कुप्रभाव से मुक्ति मिलेगी, (14). खून साफ होगा, (15). शरीर की धमनियाँ और शिराएँ साफ हो जायेंगी, (16). दाँत मजबूत बनेंगे, इनेमल जींवत रहेगा, (17). नपुसंकता दूर होगी, (18). डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज की जो दवा लेते है, वह चालू रखें। इस चूर्ण का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा। जिंदगी निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और आयुष्ययवर्धक बनेगी। जीवन जीने योग्य बनेगा। 
त्रिकटु या त्रिकुटा चूर्ण :: सौंठ (सुन्ठी-सूखी अदरख), काली मिर्च और छोटी पीपल। इन तीनों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर कूट पीसकर अथवा मिक्सी में डालकर महीन चूर्ण बना लें।  
यह चूर्ण अपच, गैस बनना, पेट की आँव, कोलायटिस, बवासीर, खाँसी, कफ का बनना, सायनोसाइटिस, दमा, प्रमेह तथा बहुत सी बीमारियों में लाभ पहुँचाता है। 
इसे सेन्धा नमक के साथ मिलाकर खाने से वमन, जी मिचलाना, भूख का न लगना आदि में लाभकारी है। 
अर्जुन की छाल के साथ बनाया गया इसका काढा हृदय रोगों में लाभ पहुँचाता है
खाँसी, कफ, वायु, शूल नाशक व अग्नि दीपक में लाभ हेतु मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायँकाल शहद से।
त्रिकटु  1/2 चम्मच नित्य गुनगुने पानी से प्रयोग जोड़ों के दर्द में राहत देता है।
त्रिकटु, हल्दी, त्रिफला, वायविडंग और मंडूर को बराबर की मात्रा में मिलाकर, इसे घी और शहद के साथ लेने से पीलिया ठीक होता है। 
सायनस में अगर कफ जम जाता हो तो त्रिकटु और रीठा पानी में मिला कर नाक में डालने से सारा जमा हुआ कफ बाहर निकल आता है। 
त्रिकुटा करंज और सैंधा नमक घी और शहद के साथ बच्चों को देने से सुखा रोग में लाभ होता है। 
त्रिकुटा, जवाक्षार और सेंधा नमक छाछ के साथ लेने से जलोदर ठीक होता है। 
टॉन्सिल्स में सुजन के लिए त्रिकुटा और अविपत्तिकर चूर्ण को सामान मात्रा में ले कर, इसका एक चम्मच गुनगुने पानी से लें।
HEALTH BENEFITS OF ALSI-FLAX SEEDS अलसी के गुण :: Linseed-flex-Alsi has vital uses in day to day meals. A single table spoon of ground flax seeds contain 2 grams of poly-unsaturated fatty acids, 2 grams of fibre and 37 calories. (1). These seeds of Alsi-flex seed are an excellent source of omega-3 fatty acids (omega-3 fatty acid alpha-Linolenic acid or ALA-an essential fat, which the human body can't make on its own) and omega-6 (linoleic acid or LA). (2). They are a great source of  dietary fibre, lignans, vitamins (vitamins B-1, B-2, C, E, and carotene) and minerals (iron, zinc and trace amounts of potassium, magnesium, phosphorus, calcium & manganese (required for proper nutrient absorption, enzyme function, bone development and wound healing). (3). They are great antioxidants (significantly higher in poly phenol antioxidants than many fruits or vegetables). (4). They possess a high-quality protein, full of a phyto nutrient called lignin. (5). They are ingestible as whole seeds, oil, powder or capsules.
(1). CANCER :: The high level of omega 3 fatty acid and Lignans present in flax combats prostate cancer, colon cancer and breast cancer. Three types of Lignans found in flax seed are-secoisolariciresinol, matairesinol and pinoresinol that has capacity to affect the hormonal workings and control hormone related cancers and hormone dependent tumours. 
Brown, Ground, and Golden Flax seed.
(2). HORMONAL BALANCE IN WOMEN :: It helps in maintaining hormone levels in women of all ages and reduction of hot flashes caused by menopause.
(3). BONES :: It prevents bone erosion-loss, increases bone density and decrease the risk of osteoporosis. It helps in arthritis, and joint pain.
(4). CARDIO VASCULAR DISEASES :: It helps in the reduction of the risk involving cardiovascular disease because it is rich in antioxidants and good for reducing bad LDL cholesterol levels and increasing good cholesterol (thus protecting against heart disease). 
(4.1). HEART :: Diets rich in omega-3 fatty acids decrease risk of heart attack, stroke and abnormal heart rhythms-palpitation.
(5). KIDNEYS :: Cleansing action is proper maintained and risk of kidney failure is reduced substantially.
(6). DIABETES :: Lowering of blood sugar helps in substantiating insulin levels in the body.
(7). WEIGHT REDUCTION :: It maintains the weight to normal to normal levels.
(8). RHEUMATISM :: It helps in relieving the symptoms of rheumatoid arthritis.
(9). MICROBES :: It helps in checking the growth of bacteria, fungus, virus in addition to protozoans in the body.
(10). PREGNANCY :: It helps in child's brain development, especially in uterus and during infancy. So, it's especially important for pregnant women and breastfeeding mothers.
(11). SKIN DISORDERS :: Helpful in the treatment of skin disorders like eczema, psoriasis, sun sensitivities and dandruff. It strengths skin, hair and fingernails as well.
how to eat flax seeds.
(12). DIGESTION :: Improves digestion and colon health, being a natural lubricant and a rich source of fibre, it lowers the risk of  constipation and diarrhoea and offers relief from them as well.
(13). IMMUNITY :: The alpha-Linolenic acid and lignans decrease inflammation and promote healthy functioning of the immune system.
One of its unique characteristics is the oil in the Flax seed is presence of over 40 percent oil. Like other vegetable oils, flax oil is a mixture of fatty acids, but flax is the best source of omega-3 s, fatty acids called alpha-Linolenic acid or ALA. It's also a great source of omega-6 s and the only seed that has both types. Alsi-flex seed oils turn rancid quickly, so one should avoid its exposure to light, heat and air.
It is better to grind the flax seeds rather than eating them whole, because the lignans are better absorbed by the body if it is consumed in the ground form. Make it a point to take plenty of water with the flax seed powder. Flax seeds can be stored in the refrigerator, preferably in a dark (light and air-tight) container. it may be spoiled in six weeks time. It should be grinded freshly and consumed shortly thereafter. It can be used by mixing in wheat floor for making rotis-bread, phulke-chapatis, paranthas, puris etc. Flax seed oil can be dribbled on the chapatis after cooking, in place of ghee. It may be sprinkled in powder form over salads. It may be added in cereal or cooked oatmeal, as well. Its powder can be added in the dosa batter while making dosas.
KALONGI कलौंजी (BLACK SEEDS) :: Kalonji bushes are found throughout India. The height of the plant is approximately half a meter. It possesses blue flowers.Its seeds are triangular in shape, black in colour having pungent smell and oil. Kalonji-Nigella sativa has a pungent bitter taste and smell. It is used primarily in confectionery and liquors. The variety of bread-naan is as a rule topped with Kalonji seeds.
Its said that it can cure every disease,  except death. 
Kalonji removes the obstruction of any part of the body, expels the gases and strengthens the stomach.
It is Emmenagogue, Lactogogue and Diuretic.
It is an Anti-Helminthic, if taken with vinegar.
It is useful in chronic cold. Inhalation of its smell is useful in common cold.
The oil of Kalonji is effective in Alopecia.
Half teaspoonful, if boiled in water and taken, is helpful in Asthma and diffuses the toxic effects of Bee and Wasps.
Continuous use of Kalonji is effective in mad dog bites.
Fumigation of Kalonji is useful in Respiratory Diseases.
It is useful in Paralysis, Facial Palsy, Migraine, Amnesia and Palpitation.
It is also an Expectorant and Antipyretic.
It normalises the secretions of stomach and pancreas.
This phenomenon is very much effective and significant in the treatment of Diabetes Mellitus.
It expels the Kidney and Urinary Bladder stones, if taken with the syrup of honey.
It is effective in Jaundice if taken with milk.
Its powder if taken with water is effective in treating Haemorrhoids.
If Kalonji seeds are boiled in vinegar and this solution is applied on Gums and Teeth, it removes the Inflammation of the gums and relieves the pain also.
It is also reported that its fine powder is effective if applied in early stages of Cataract.
Kalonji is also used in Skin disorders.
The oil of the seeds is also effective in Earache.
If it is taken with Qust Sheering after breakfast and dinner, it is effective in chronic Dysentery and Asthma.
Qust Sheering is a good medicine for sexual debility, but if it is taken with Kalonji seeds and Habburrashad, it becomes more fortified.
Modern trials have proved that Kalonji seeds alone or in combination with other drugs are highly effective in Diabetes Mellitus, Vitiligo and other Skin ailments.
ताँबे  के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से लाभ: अकसर लोग पेट को ठीक रखने के लिए रात में पानी ताँबे के लोटे में रखकर सुबह उठते ही पीने की सलाह देते हैं।
(1). सोना चाँदी और ताँबा बैक्‍टीरिया नाशक हैं। पेट सम्बन्धी विकार यथा एसिडिटी, कब्‍ज, गैस आदि दूर करने के लिए ताँबे के बर्तन का रखा हुआ पानी विशेष रूप से गुणकारी है।इससे पेट की सूजन में राहत मिलती है और पाचन सम्बन्धी समस्याएं भी दूर होती हैं। ताँबा आम जल जनित रोग यथा डायरिया, दस्‍त और पीलिया को रोकने में भी मददगार माना जाता है। 
(2). थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के प्रमुख लक्षणों में तेजी से वजन घटना या बढ़ना, अधिक थकान महसूस होना आदि हैं।विशेषज्ञों के अनुसार, ताँबे के बर्तन में रखें हुए पानी को पीने से शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन नियंत्रित होकर; इस ग्रंथि की कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित करता है।
(3). ताँबे में मस्तिष्‍क को उत्तेजित करने वाले और  ऐंठन विरोधी गुण होते हैं। इन गुणों की मौजूदगी मस्तिष्‍क के काम को तेजी और अधिक कुशलता के साथ करने में मदद करते है।
(4). ताँबे में एंटी-इफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो कि दर्द से राहत और दर्द की वजह से जोड़ों में सूजन का कारण बने- गठिया और रह्युमेटिक पेन  में मददगार है।  
(5). ताँबा शरीर के मेलेनिन के उत्‍पादन का मुख्‍य घटक है। इसके अलावा ताँबा नई कोशिकाओं के उत्‍पादन में मदद करता है जो कि त्‍वचा की सबसे ऊपरी परतों की भरपाई करने में मदद करती है। नियमित रूप से इसका सेवन  करने से त्‍वचा स्‍वस्‍थ और चमकदार रहती है।इससे झुर्रियों की समस्या का निराकरण भी होता है। 
(6). ज्‍यादातर भारतीय महिलाओं में खून की कमी या एनीमिया की समस्‍या पाई जाती है। ताँबा शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित कर रक्त वाहिकाओं में इसके प्रवाह को नियंत्रित करता है; जिससे खून की कमी या विकार दूर हो जाते हैं।
(7). ताँबे के बर्तन में रखा पानी पीने से शरीर की अतिरिक्त वसा कम हो जाती है।
(8). ताँबा कैंसर जैसी बीमारियों में प्रतिरोध उत्पन्न करता है। 
(9). ताँबाअपने एंटी बैक्‍टीरियल, एंटी वायरल और एंटी इफ्लेमेटरी गुणों के कारण घावों को जल्‍दी भरने में मदद करता है। 
(10). ताँबे  के बर्तन में रखे हुए पानी को पीने से पूरे शरीर में रक्त का संचार बेहतरीन रहता है। ब्लड कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में करता है और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं। 
ALUM फिटकरी :: अमृत तुल्य फिटकरी 23 रोगों में चमत्कारिक लाभ प्रदान करती है। इसका प्रयोग खासतौर पानी को साफ करने के लिए किया जाता है। फिटकरी लाल व सफेद दो प्रकार की होती है। अधिकतर सफेद फिटकरी का प्रयोग ही किया जाता है।  माताएँ इसका प्रयोग छोटे बच्च्चों की नज़र उतारने के लिए करतीं हैं। 
(1). शरीर से ज्यादा पसीना आने की समस्या हो तो वो नहाते समय पानी में फिटकरी को घोलकर नहाने से पसीना आना कम हो जाता है। फिटकरी के पानी से योनि को सुबह-शाम नियमित धोना चाहिए। संगे जराहत और फिटकरी लेकर दोनों पीस लें और इस आधा ग्राम चूर्ण की फंकी ताजे पानी के साथ या गाय के दूध के साथ सुबह, दोपहर और शाम दिन में तीन बार लें। कुछ ही दिनों के प्रयोग से अवश्य लाभ होगा।
(2). चोट या खरोंच लगकर घाव हो गया हो और उससे खून बह रहा हो घाव को फिटकरी के पानी से धोएं तथा घाव पर फिटकरी का चूर्ण बनाकर बुरकने से खून बहना बंद हो जाता है। Its antiseptic and anti-fungal in nature.
(3). फिटकरी और काली मिर्च पीसकर दांतों की जड़ों में मलने से दांतों की पीड़ा में लाभ होते है।
(4). दाढ़ी बनाने के बाद चेहरे पर फिटकरी लगाने से चेहरा मुलायम हो जाता है और कटने-छीलने के घाव के पकने का डर नहीं रहता।
(5). आधा ग्राम पिसी हुई फिटकरी को शहद में मिलाकर चाटने से दमा और खांसी में बहुत लाभ मिलता है।
(6). भुनी हुई फिटकरी 1-1 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेने से खून की उल्टी बन्द हो जाती है।
(7). दाँत दर्द से बचने के लिए फिटकरी और काली मिर्च को पीसकर दांतों की जड़ों में मलने से दाँतों का दर्द ठीक हो जाता है।
(8). फुलाई हुई फिटकरी एक तोला (50 gm) और मिश्री दो तोला दोनों को महीन पीसकर रख लें। एक-एक माशा (4 gm) नित्य सवेरे खाने से दमा के रोग में लाभ होता है।
(9). प्रतिदिन दोनों समय फिटकरी को गर्म पानी में घोलकर कुल्ला करने से दांतों के कीड़े तथा मुँह की बदबू दूर हो जाती है।
(10). डेढ़ ग्राम फिटकरी पाउडर को फाँककर ऊपर से दूध पीने से चोट लगने से होने वाला दर्द दूर हो होता हैं।
(11). टांसिल की समस्या होने पर गर्म पानी में चुटकी भर फिटकरी और नमक डालकर गरारे करने से टांसिल की समस्या में जल्दी ही आराम मिल जाता है।
(12). दस्त और पेचिश की परेशानी से बचने के लिए थोड़ी फिटकरी को बारीक पीसकर भून लें और अब इस भुनी हुई फिटकरी को गुलाब जल के साथ मिलाकर पीने से खूनी दस्त आना बंद हो जाता है।
(13). एक लीटर पानी में 10 ग्राम फिटकरी का चूर्ण घोल लें। इस घोल से प्रतिदिन सिर धोने से जुएं मर जाती हैं।
(14). दस ग्राम फिटकरी के चूर्ण में पाँच ग्राम सेंधा नमक मिलाकर मंजन बना लें। इस मंजन के प्रतिदिन प्रयोग से दांतो के दर्द में आराम मिलता है ।
(15). भुनी हुई फिटकरी एक तोला, भुना हुआ तूतिया (नीला थोथा, Copper Sulphate) छह माशा, कत्छा एक तोला, इन सबको कूट पीसकर मंजन बनाकर लगाने से दाँतों की पीड़ा दूर होती है और दाँत मजबूत तथा सुदृढ़ होते हैं।
(16). कान में फुँसी हो अथवा मवाद आता हो तो एक प्याले में थोड़ी-सी फिटकरी पीसकर पानी डालकर घोलें और पिचकारी द्वारा कान धोएं।
(17). शहद में फिटकरी मिलाकर आँखों में डालने से आँखों की लाली समाप्त हो जाती है।
(18). खुजली वाली जगह को फिटकरी वाले पानी से धोएं और बाद में उस जगह पर थोड़ा-सा कड़वा तेल लगा लें। उस पर थोड़ा-सा कपूर भी डाल लें।
(19). एक लीटर पानी में बीस ग्राम फिटकरी को घोल के दिन में दो या तीन बार सफ़ेद पानी की शिकायत होने पर गुप्तांग को घोने से एवं एक ग्राम फिटकरी को एक पके केले में चीर भर के सात दिन खाने से आराम होता है।
(20). गर्भपात :: पिसी हुई फिटकरी चौथाई चम्मच एक कप कच्चे दूध में डालकर लस्सी बनाकर पिलाने से गर्भपात रुक जाता है। गर्भपात के समय दर्द, रक्तस्राव हो रहा हो तो हर दो-दो घंटे से एक-एक खुराक दें।
(21). बांझपन :: मासिक-धर्म ठीक होने पर भी यदि सन्तान न होती हो तो रूई के फाये में फिटकरी लपेटकर पानी में भिगोकर रात को सोते समय योनि में रखें। सुबह निकालने पर रूई में दूध की खुर्चन सी जमा होगी। फोया तब तक रखें, जब तक खुर्चन आती रहे। जब खुर्चन आना बंद हो जाए तो समझना चाहिए कि बांझपन रोग समाप्त हो गया है।
(22). योनि संकोचन :: बाँझपन की तरह योनि में रूई का फाया रखें तथा फिटकरी पानी में घोलकर योनि को दिन में तीन बार धोएं। इससे योनि सिकुड़कर सख्त हो जाएगी और योनि का ढीलापन समाप्त हो जाएगा। फिटकरी 30 ग्राम और 10 ग्राम माजूफल को लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण को मलमल के कपड़े में डालकर पोटली बनाकर सोने से पहले रात को योनि में रखने से योनि का ढीलापन दूर होकर सिकुड़ जाती है। 2 ग्राम फिटकरी को 80 मिलीलीटर पानी में घोलकर योनि को धोने से योनि की आकृति कम यानी योनि सिकुड़ने लगती है।
(23). कान में चींटी चली जाने पर :: कान में चींटी चली जाने पर कान में सुरसरी हो तो फिटकरी को पानी में घोलकर पीने से लाभ मिलता है।
मसूर की दाल देशी घी मे छौंककर खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
मसूर की दाल ::  इसको देशी घी में छौंककर खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। इससे कब्ज तथा गले की सूजन दूर होती है। मसूर के दाल के साथ मठ्ठा पिने से खुनी बबासीर ठीक होती है।
BENEFITS OF HONEY शहद के चिकित्सीय गुण ::
(1). CHILDREN-INFANTS TREATMENT बाल रोग चिकित्सा ::  
(1.1). चौकिया सुहागा का फूला शहद में मिलाकर दाँत और मसूढ़ों की जड़ में मलने से बच्चों के दाँत निकलते वक्त दर्द नहीं होता और दाँत आसानी से निकल आते है तथा अतिसार (दस्त) व ज्वर (बुखार) भी ठीक हो जाता है।
(1.2). सोनागेरू को शहद में मिलाकर बच्चों को चटाने से भी उल्टी और हिचकी दूर हो जाती है।
शीतल जल (ताजे पानी में) शहद मिलाकर रोजाना सुबह पीने से बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ पेट ठीक हो जाता है। 
(1.3). धाय के फूल, बेलगिरी, धनिया, लोध, इन्द्रजौ और सुगन्धवाला को बारीक पीसकर शहद में मिलाकर चटनी की तरह चाटने से बच्चों का ज्वारातिसार (बुखार और दस्त) वात-विकार (गैस की बीमारी) समाप्त हो जाती हैं।
(1.4). पीपल वृक्ष की छाल (पीपल के पेड़ की खाल) और कोंपल (मुलायम पत्तों) को पीसकर शहद में मिलाकर लगाने से मुख पाक (मुँह के छाले) दूर हो जाते हैं।
(1.5). 10 मिलीलीटर रस अडूसा, 10 ग्राम शहद और डेढ़ ग्राम जवाक्षर को एक साथ मिलाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को दिन में 3-4 बार चटाने से बच्चों की कठिन से कठिन खाँसी दूर हो जाती है।
(1.6). शहद में छोटी पीपल का बारीक चूर्ण मिलाकर चटाने से बच्चों की खाँसी, ज्वर, तिल्ली, अफारा (गैस) तथा हिचकी समाप्त होती है।
(1.7). एक से डेढ़ ग्राम काकड़सिंगी का चूर्ण शहद के साथ चटाने से बच्चों का अतिसार (दस्त) रोग ठीक हो जाता है।
(1.8). सफेद कमल के केसर को पीसकर उसमें मिश्री और शहद को मिलाकर चावलों के पानी के साथ पिलाने से बच्चों को प्रवाहिका रोग समाप्त हो जाता है।
(1.9). धान की खीलें, मुलेठी, खाँड और शहद को एक साथ मिलाकर चावलों के पानी के साथ बच्चों को पिलाने से बच्चों का प्रवाहिका रोग ठीक हो जाता है।
(1.10). कुटकी के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है।
(1.11). कटेरी के फूलों के केसर को पीसकर, उसे शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों की पाँचों तरह की खाँसी दूर हो जाती है।
(1.12). कुटकी को बारीक पीसकर और छानकर शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों की बहुत पुरानी वमन (उल्टी) और हिचकी ठीक हो जाती है।
(1.13). प्रियंगु, रसौत और नागरमोथा- इनकों बारीक पीसकर, शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों की बढ़ी हुई प्यास, वमन (उल्टी) और दस्त इन रोगों से आराम हो जाता है।
(1.14). लज्जालू, धाय के फूल, लोध और सरिवा का काढ़ा बनाकर ठण्डा होने पर इसमें शहद मिलाकर पिलाने से बच्चों को पतले दस्त में भी आराम आ जाता है।
(1.15). शहद को 1 से 3 ग्राम तेजपत्ता के चूर्ण के साथ चटाने से बच्चों के सभी रोगों (बालाक्षेप, बालाग्रह) में लाभ होता है।
(1.16). रोजाना सुबह ठंडे पानी में शहद मिलाकर शर्बत की तरह पिलाने से बच्चे का बढ़ा हुआ पेट कम हो जाता है।
(1.17). बराबर मात्रा में बेल के फल का मज्जा, धातकी पुष्प, सुगंधवाला प्रकन्द, लोध्र छाल और गज पिप्पली का चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 से 3 बार लेने से बच्चों का बालातिसार और रक्तातिसार ठीक हो जाता है। 
(1.18). 3 से 6 ग्राम इन्द्रयव को नागरमोथा के साथ काढ़ा बनाकर और उसमें शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन कराने से बच्चों का रक्तातिसार (खूनी दस्त) दूर हो जाता है।
(1.19). रात में सोने से पहले शहद चटाने से बच्चा सोते समय-बिस्तर में पेशाब नहीं करता। 
(1.2). शुद्ध शहद को माँ के दूध में मिलाकर बच्चे को 20-25 दिन तक रोजाना पिलाने से सूखा रोग दूर हो जाता है। 
(2.1). एक चम्मच शुद्ध शहद शीतल पानी में मिलाकर पीने से पेट के दर्द में आराम मिलता है।
(2.2). एक चुटकी सौंठ को थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से पेट दर्द में लाभ होता है। 
(2.3). तुलसी की 2 पत्तियाँ पीस कर आधी चम्मच शहद के साथ सेवन करने से पेट के दर्द में फायदा होता है। (2.4). रात्रि में सोते समय एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पेट साफ़ हो जाता है।
(2.5). शहद का प्रयोग करने से खाना खाने के बाद होने वाले पेट दर्द समाप्त होते है।
(3). एक गिलास पानी में एक चम्मच नींबू का रस तथा आधा चम्मच शहद मिलाकर पीने से अजीर्ण ठीक हो जाता है। शहद में दो काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर चाटने, अजवायन तथा सौंठ को पीसकर शहद के साथ चाटने अथवा खाली शहद को गुनगुने पानी के साथ लेने से आराम मिलता है। 
(4). शहद में सौंफ, धनिया तथा जीरा का चूर्ण बनाकर दिन में कई बार चाटने से दस्त में लाभ मिलता है। अनार दाना चूर्ण शहद के साथ चाटने से दस्त बंद हो जाते हैं।
(5.1). एक चुटकी अजवायन का चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ दिन में तीन बार लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। 
(5.2). दो चम्मच शहद को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर दिन में दो बार सुबह और शाम पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
(6). सौंठ, काली मिर्च, पीपल, सेंधा नमक इन सब चीजों को मिलाकर बनाये चूर्ण में से आधी चुटकी लेकर एक चम्मच शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम को इसका इस्तेमाल करने से भूख खुलती है। एक दो कालीमिर्च तथा दो लौंग को पीसकर शहद के साथ चाटने भी लाभ होता है।
(7). धनिया तथा जीरा का चूर्ण बना शहद के साथ मिलाकर धीरे-धीरे चाटने से अम्लपित्त नष्ट होता है।
(8). सौंफ, धनियां तथा अजवायन इन तीनों को बराबर मात्रा में पीस कर आधा चम्मच चूर्ण को शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम को सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
(9). रात्रि में सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण या एरण्ड का तेल एक गिलास दूध के साथ पीने से कब्ज दूर हो जाती है।
(10.1). त्रिफला का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से पीलिया का रोग नष्ट हो जाता है। गिलोय का रस 12 ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार, नीम के पत्तों का रस आधा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम, कलमी शोरा तथा जवाखार मिलाकर पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पेशाब साफ आने लगता है और पीलिया में आराम मिलता है
(10.2). शुरू में दो दिन तक एक चम्मच मधु की खुराक दो बार दें फिर चार दिन आधे चम्मच के साथ मधु और आँवले का चूर्ण मिलाकर तीन बारसेवन करें। अगले चार दिन आधा चम्मच मधु और लौह चूर्ण मिलाकर तीन बार लें। प्रति दिन तीन बार एक-एक चम्मच शहद एक गिलास पानी में मिलाकर पीने से पीलिया में लाभ होता है।
(11.1). सिर पर शुद्ध शहद का लेप करने से सिर का दर्द खत्म हो जाता है। आधा चम्मच शहद और एक चम्मच देशी घी मिलाकर सिर पर लगाना चाहिए। घी तथा शहद के सूखने के बाद दोबारा लेप करना चाहिए। यदि पित्त के कारण सिर में दर्द हो तो दोनों कनपटियों पर शहद लगायें। साथ ही थोड़ा शहद भी चाटना चाहिए। सर्दी, गर्मी या पाचन क्रिया की खराबी के कारण सिर में दर्द हो तो नींबू के रस में शहद को मिलाकर माथे पर लेप करना चाहिए। कागज के टुकड़ों पर शहद और चूना मिलाकर माथे के प्रभावित भाग पर रख देने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। भोजन के साथ शहद लेने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
(11.2). इस रोग में सूर्य उगने के साथ दर्द का बढ़ना और ढलने के साथ सिर दर्द का कम होना होता है, तो जिस ओर सिर में दर्द हो रहा हो उसके दूसरी ओर के नाक के नथुने में एक बूँद शहद डालने से सिर के दर्द आधा सीसी (माइग्रेन) में आराम मिलता है।
(11.3).रोजाना भोजन के समय दो चम्मच शहद लेते रहने से आधे सिर में दर्द व उससे होने वाली उल्टी आदि बंद हो जाती हैं।
(12.1). काजल में शहद मिलाकर बराबर लगाते रहने से  रतौंधी समाप्त हो जाती है। शहद को आँखों में काजल की तरह लगाने से रतौंधी रोग दूर होता है और रोशनी भी बढ़ती है। शहद के साथ निबौंली (नीम का फल) का गूदा मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगना चाहिए। 
(12.2). एक ग्राम गुरुच का रस तथा आधा चम्मच शहद को मिला कर  में नियम से आँखों रोज सलाई से लगाने से आँखों  की खुजली, दर्द, मोतिया बिंद जैसे रोग ठीक हो जाते हैं। 
(12.3). चार ग्राम गिलोय का रस लेकर उसमें दो ग्राम शहद मिलाकर लोशन बना कर आँखों  में लगाने से आँखों  के सभी रोगों में लाभ होता है। रोज सुबह ताजे पानी से आँखों को छप्पा (पानी की छींटे) मारकर धोना चाहिए। इसके बाद दो बूंदे नीम का रस तथा चार बूंदे शहद मिलाकर आँखों  में लगाना चाहिए। कड़वे तेल से बना हुआ काजल शुद्ध शहद के साथ मिलाकर आँखों  में लगाना चाहिए। लगभग 7 से 14 मिली लीटर बकुल रस को शहद के साथ लेना चाहिए। इससे आँखों के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। लगभग 7 से 14 मिली लीटर धान्यक रस को 5 से 10 ग्राम शहद के साथ लेना चाहिए। लगभग 2 से 6 ग्राम त्रिफला चूर्ण 12 से 24 ग्राम शहद से दिन में 3 बार लेना चाहिए।
(12.4). आँख आने पर 1 ग्राम पिसे हुए नमक को शहद में मिलाकर आँखों में सुबह और शाम लगाऐं।सोनामक्खी को पीसकर और शहद में मिलाकर आँखों में सुबह और साएँ  लगाए। चन्द्रोदय वर्ति (बत्ती) को पीसकर शहद के साथ आँखों में लगाने से आँखों  के रोग दूर होते हैं।
आँख के फूले मे अपमार्ग की जड़ को शहद में घिसकर लगाने से आँखों  के फूले समाप्त हो जाते हैं।
(12.5). आँखों में किसी चीज के गिर जाने से अगर दर्द हो रहा हो तो शहद या एरण्ड तेल (कस्टर आयल) की 1 से 2 बूंद आँखों मे डालने से आंख में गिरी हुई चीज बाहर आ जायेगी और आँखों की चुभन दूर हो जायेगी।
(12.6). असली और साफ शहद को आग पर गर्म करने के लिये रख दे और इसमे समुद्र झाग पीसकर मिला दे फिर आग पर से उतार लें। इसकी बत्ती बनाकर आँखों  के नासूर में रखने से आँखों का नासूर पूरी तरह भर कर ठीक हो जाता है।
(12.7). 10 मिलीलीटर शल्लकी स्वरस (रस) और 1 ग्राम शहद को मिलाकर दिन में 2 बार प्रयोग करना चाहिए।
1 ग्राम समुद्रफेन, 5 मिलीलीटर औरत का दूध और शहद का अंजन (काजल) को आंखों में रोजाना 2 बार प्रयोग करने से नखटन्ड में आराम मिलता है। 
(12.8). मोतिया बिंद शुरू होते ही निर्मली को शहद में घिसकर लगाने से मोतिया बिंद दूर हो जाता है। 9 भाग छोटी मक्खी का शहद, 1 भाग अदरक का रस, 1 भाग नींबू का रस और 1 भाग सफेद प्याज का रस इन सबको मिलाकर और छानकर एक बूंद सुबह और शाम आँखों में डालते रहें इससे मोतिया बिंद दूर हो जाता है। इसमें 12 भाग गुलाब जल डालकर रोजाना इसी प्रकार डालने से आँखों की रोशनी बढ़ती है और चश्मा हट जाता है।स्वस्थ आँखों में असली शहद की एक सलाई हफ्ते मे 1 से 2 बार डालने से आँखों की रोशनी कभी कम नही होगी, बल्कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ तेज होती चली जायेगी। साथ ही खाने के लिए चार बादाम रात को पानी में भिगो कर रख लें और सुबह उठते ही चार काली मिर्च के साथ पीसकर मिश्री के साथ चाटे या वैसे ही चबा जाऐं और ऊपर से दूध पी लें।
(13.1). तवे पर सुहागे को फुलाकर शहद के साथ छालों पर लगाने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं। 
(13.2). छोटी इलायची को पीसकर बारीक चूर्ण बना कर शहद में मिलाकर छालों पर लगाने से फायदा होगा।(13.3).  फिटकरी को पानी में घोलके एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर कुल्ला करना  लाभप्रद है। यह कुल्ला भोजन करने से पहले सुबह, दोपहर तथा शाम को करना चाहिए।
त्रिफला का चूर्ण शहद के साथ ले ने पर पेट की गर्मी शान्त करता है। 
(13.4). केवल आंवले का चूर्ण शहद के साथ लेने से भी पेट की गर्मी शान्त होती है और मुँह के छाले ठीक होने लगते हैं।
(14.1). फूली हुई फिटकरी पीसकर शहद के साथ मिलाकर सेवन करें। इसमें पानी मिलाकर कुल्ला किया जा सकता है।मुलहठी का चूर्ण शहद के साथ चाटना चाहिए। कुलंजन मुँह में रखकर चूसने से भी आवाज खुल जाती है। 3 से 9 ग्राम बहेड़ा के चूर्ण को शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने से स्वर भंग (गला बैठना) और गले के दूसरे रोग भी ठीक हो जाते हैं। 1 कप गर्म पानी में 1 चम्मच शहद डालकर गरारे करने से आवाज खुल जाती है।
(14.2). 4 से 6 ग्राम शहद को कालक का चूर्ण 1 से 3 ग्राम मिलाकर दिन में 2 बार लेने से कौआ गिरना थीेक हो जाता है।
(14.3). 5 से 10 मिलीलीटर भट्कटैया के फलों के रस को शहद के साथ सेवन करने से गल कोष प्रदाह (गले की जलन) में आराम आता है।
(14.4). दालचीनी को पीसकर उसमें शहद मिलाकर दिन में दो बार चाटने से तुण्डिका शोथ (टांसिल) का रोग ठीक हो जाता है।
(15). छाती पर शहद की मालिश करके गुनगुने पानी से धो लें। इससे थूक के साथ बलगम का आना बन्द हो जाता है। रात्रि को सोने से पहले अजवायन का तेल छाती पर मलें। पिसी हुई हल्दी, अजवायन और सौंठ को मिलाकर एक चुटकी लेकर शहद में मिलाकर सेवन करें।
(16). मसूढ़ों तथा दांतों पर शुद्ध शहद की मालिश करके गुनगुने पानी से कुल्ला करना चाहिए। नींबू का रस, नीम का तेल तथा शहद मिलाकर मसूढ़ों की मालिश करके कुल्ला कर लें। लहसुन, करेला, अदरक का रस निकालकर शहद में मिलाकर मसूढ़ों पर रोज लगाना चाहिए। तीन-चार दिन तक लगातार मालिश करने से पायरिया तथा मसूढ़ों के अन्य रोग खत्म हो जाते हैं।
(17). लाल इलायची भून कर चूर्ण बना कर इसमें शहद मिलाकर सेवन करने से खाँसी दूर हो जाती है। मुनक्का, खजूर, काली मिर्च, बहेड़ा तथा पिप्पली-सभी को समान मात्रा में लेकर कूट लें और उसमें से दो चुटकी चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर सेवन करने से खाँसी दूर हो जाती है। 3 ग्राम सितोप्लादि के चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार चाटकर खाने से खाँसी  दूर हो जाती है। 5 ग्राम शहद में लहसुन के रस की 2-3 बूंदे मिलाकर बच्चे को चटाने से खाँसी दूर हो जाती है। एक नींबू पानी में उबालकर काँच के गिलास में निचोड़ लें। इसमें 28 मिलीलीटर ग्लिसरीन और 84 मिलीलीटर शहद मिलाकर हिलायें। एक-एक चम्मच चार बार पीने से खाँसी बन्द हो जाएगी। शहद खाँसी  में आराम देता है। 12 ग्राम शहद को दिन में तीन बार चाटने से कफ निकल जाता है और खाँसी  ठीक हो जाती है। थोड़ी सी फिटकरी को तवे पर भून कर एक चुटकी फिटकरी को शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से करने से खाँसी दूर हो जाती है। कब्ज को दूर करने के लिये एरण्ड का तेल पीकर पीकर शहद में लौंग के तेल की एक बूँद तथा अदरक के रस की दस बूदें मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम को लेने से काली खाँसी ठीक हो जायेगी। 5 ग्राम शहद दिन में चार बार चाटने से बलगम निकलता है और खाँसी दूर हो जाती है। शहद और अडूसा के पत्तों का रस एक-एक चम्मच तथा अदरक का रस आधा चम्मच मिलाकर पीने से खाँसी नष्ट हो जाती है।
(18). शहद में कुठार रस 4 बूँद मिलाकर दिन में 3-4 बार देना चाहिए। इससे दमा का रोग नष्ट हो जाता है।सोमलता, कूट, बहेड़ा, मुलेठी, अडूसा के पत्ते, अर्जुन की छाल तथा काकड़ासिंगी सबका एक समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ सेवन करें। प्यास लगने पर गर्म पानी पीयें। इससे दमा का रोग नष्ट हो जाता है।
(19). सांभर सींग को पानी में घिसकर शहद के साथ मिलाकर पसलियों पर लेप करने से पसलियों का दर्द ठीक हो जायेगा। 
(20).  एक कप दूध में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह के समय पीने से ताकत और मोटापा बढ़ता हैं।
(21). शहद और अदरक का रस एक-एक चम्मच मिलाकर सुबह-शाम दिन में दो बार पीने से जुकाम खत्म हो जाता है और भूख बढ़ जाती है। 2 चम्मच शहद, 200 मिलीलीटर गुनगुना दूध और आधे चम्मच मीठे सोडे को एक साथ मिलाकर सुबह और शाम पीने से जुकाम, फ्लू ठीक हो जाता है। इसको पीने से बहुत पसीना आता है पर पसीना आने पर रोगी को हवा नहीं लगने देना चाहिए। 20 ग्राम शहद, आधा ग्राम सेंधानमक और आधा ग्राम हल्दी को 80 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल कर रख लें। कुछ देर बाद जब पानी हल्का सा गर्म रह जाये तो इस पानी को सोते समय पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
((22) . बिच्छू के डंक मारे हुए स्थान पर शहद लगाने से बिच्छू के डंक का दर्द कम हो जाता है।
(23.1). नियमित सुबह 20 ग्राम शहद ठंडे पानी में मिलाकर सेवन करने से जलन, खुजली और फुन्सियों जैसी चर्म रोग जड़मूल से समाप्त हो जाती है। शरीर के जले हुए अंगो पर शहद लगाने से जलन दूर होती है। जख्म होने पर शहद को तब तक लगाते रहे जब तक कि जख्म ठीक ना हो जायें। जख्म ठीक होने के बाद सफेद निशान बन जाते हैं। उन पर शहद लगाकर पट्टी बाँधते रहने से निशान मिट जाते हैं।
(23.2). सेंधा नमक तथा शहद लपेटकर बत्ती बनाकर रखने से नासूर-पुराना घाव  में पीव का बनना बंद हो जाता है। 
(23.3). नाखूनों के जख्म में हरीतकी पानी में पीसकर शहद में मिलाकर नाखून पर लेप करने से नाखून का दर्द व जख्म शीघ्र ठीक हो जाता है।
(24.1). स्त्री-संग सम्भोग से एक घण्टा पहले पुरुष की नाभि में शहद में भिगोया हुआ रूई का फोहा रखने से पुरुष का जल्दी स्खलन-शीघ्रपतन नही होता अर्थात पुरुष का लिंग शिथिल नहीं होता।
(24.2). शहद और दूध मिलाकर पीने से धातु (-वीर्य) की कमी और नपुंसकता दूर होती है तथा शरीर बलवान होता है।
(24.3). शहद 10 ग्राम, 5 ग्राम घी और 3 ग्राम आंवलासार गन्धक को लेकर इसमें थोड़ी सी शक्कर मिलाकर सेवन करने से शरीर को मजबूती मिलती है।
(25). गुड़ को शहद में मिलाकर सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है। उल्टी होने पर शहद को चाटने से उल्टी होना बंद हो जाती है। शहद में लौंग का चूर्ण मिलाकर चाटने से गर्भावस्था में उल्टी आने से छुटकारा मिलता है।
(26).  बकरी के दूध में आठवां हिस्सा शहद मिलाकर पीने से  रक्त विकार दूर हो जाता है अर्थात खून साफ हो जाता है। इसका प्रयोग करते समय नमक और मिर्च का त्याग कर देना आवश्यक है।
(27).  ताजा मक्खन के साथ शहद का सेवन करने से क्षय रोग में लाभ होता है। शहद में करेले का चूर्ण डालकर चाटना चाहिए।
(28). दो चम्मच शहद और नींबू का रस एक चम्मच मिलाकर सुबह-शाम दिन में दो से तीन बार सेवन करने से हाई बल्डप्रेशर में लाभ होता है।
(29.1). कान में शहद डालने से कान की पीव और कान का दर्द नष्ट हो जाता है। 
(29.2). शहद और नीम की गोंद को बराबर मात्रा में एक साथ मिलाकर कान में 2-2 बूँद डालने से कान का मवाद बहना बंद हो जाता है। कान को अच्छी तरह से साफ करके उसमे रसौत, शहद और औरत के दूध को एक साथ मिलाकर 2-3 बूंदे रोजाना 3 बार कान में डालने से कान में से मवाद का बहना बंद हो जाता है।
(29.3). शहद की 3-4 बूंदे कान में डालने से कान का दर्द पूरी तरह से ठीक हो जाता है। लगभग 3 ग्राम शहद, 6 मिलीलीटर अदरक का रस, 3 मिलीलीटर तिल का तेल और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सेंधा नमक को एक साथ मिलाकर इसकी थोड़ी सी बूँदें कान में डालकर उसके ऊपर से रूई लगा देने से कान से कम सुनाई देना, कान का दर्द, कान में अजीब-अजीब सी आवाजें सुनाई देना आदि रोग दूर हो जाते हैं।
5 मिलीलीटर सूरजमुखी के फूलों का रस, 5 ग्राम शहद, 5 मिलीलीटर तिल का तेल और 3 ग्राम नमक को मिलाकर कान में बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
(29.4). रूई की एक बत्ती बनाकर शहद और तेल में भिगो लें और कान में धीरे-धीरे से घुमायें। ऐसा करने से कान में जितने भी छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़े, कनखजूरा सदृश जीव-जन्तु घुसे होंगे वो बत्ती के साथ चिपककर बाहर आ जायेंगे।
(29.5). शहद में समुद्र फेन को घिसकर कान में डालने से बहरापन  ठीक हो जाता है।
(30).  शुद्ध शहद 20 ग्राम, सैंधा नमक आधा ग्राम, हल्दी आधा ग्राम को पीसकर 80 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी में डालकर रात को पीने से मलेरिया का बुखार और जुकाम ठीक हो जाता है।
(31). फेफड़ों के रोगों में शहद लाभदायक रहता है। श्वास में और फेफड़ों के रोगों में शहद अधिक प्रयोग करते हैं।
(32.1). एक चम्मच शहद में, लहसुन का रस 20 बूंद मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम चाटने से पायरिया, मसूढ़ों की सूजन, दर्द, मुंह की दुर्गन्ध दाँतों का दर्द आदि खत्म होती है। 
(32.2). मसूढ़ों में सूजन व खून निकलने के कारण दाँत हिलने लगते हैं। शहद अथवा सरसों के तेल से कुल्ला करने से मसूढ़ों का रोग नष्ट हो जाता है।
(32.3). बच्चों के दाँत निकलते समय मसूढ़ों पर शहद मलने से दाँत निकलते समय दर्द में आराम रहता है।
(33). शहद में पीपल का 1 चुटकी चूर्ण मिलाकर चाटने से इन्फ्लुएन्जा में आराम मिलता है। 2 चम्मच शहद, 200 मिली लीटर गर्म दूध, आधा चम्मच मीठा सोड़ा मिलाकर सुबह और शाम को पिलाने से इन्फ्लुएन्जा पसीना आकर ठीक हो जाता है।
(34). निमोनिया में रोगी के शरीर की पाचन-क्रिया प्रभावित होती है इसलिए सीने तथा पसलियों पर शुद्ध शहद की मालिश करें और थोड़ा सा शहद गुनगुने पानी में डालकर रोगी को पिलाने से निमोनिया में लाभ होता है।
(35). जीभ के रोग में शहद को घोलकर मुँह में भरकर रखने से जीभ के रोग में लाभ होता है।
(36). एक कप गर्म पानी में दो चम्मच शहद घोलकर नित्य दो-तीन बार  सेवन करने से हृदय की घबराहट और दुर्बलता दूर होती है। 
(37).लाख के पानी में शहद मिलाकर पीने से खून की उल्टी होना रुक जाती है।
(38). नीलाथोथा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को भुन पीसकर 10 ग्राम शहद में मिला कर, इस मिश्रण को रूई से छालों पर लगायें तथा लार बाहर निकलने दें। मुँह की गंदगी लार के रूप में मुँह से बाहर निकाल कर छालों को ठीक करती है।
(39). गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर में रक्त की कमी आ जाती है। गर्भावस्था के समय रक्त बढ़ाने वाली चीजों का अधिक सेवन करना चाहिए। महिलाओं को दो चम्मच शहद प्रतिदिन सेवन करने से रक्त की कमी नहीं होती है। इससे शारीरिक शक्ति बढ़ती है और बच्चा मोटा और ताजा होता है। गर्भवती महिला को गर्भधारण के शुरू से ही या अंतिम तीन महीनों में दूध और शहद पिलाने से बच्चा स्वस्थ और मोटा ताजा होता है।
(40). शहद में अँगुली डूबोकर दिन में 3 बार चाटने से हिचकी से आराम मिलता है। शहद और काला नमक में नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से हिचकी से आराम मिलता है। प्याज के रस में शहद मिलाकर चाटने से हिचकी बंद हो जाती है।
(41). पुराने से पुराने घाव में हरीतकी को पानी में पीसकर शहद के साथ मिलाकर लेप करने से घाव शीघ्र ही ठीक हो जाता है अथवा खाली शहद लगाने से भी घाव जल्द भरते हैं।
(42). लगभग 20 से 25 दिन तक रोजाना लगभग 150 ग्राम शहद शुद्ध पानी में मिलाकर रोगी को देने से शरीर का पक्षाघात-लकवा-फालिस फेसियल, पैरालिसिस ठीक हो जाता है।
(42). लगभग 28 मिलीलीटर पानी को उबालें और इस पानी के ठँडा होने पर उसमें दो चम्मच शहद डालकर पीड़ित व्यक्ति को पिलाने से कैल्शियम की मात्रा शरीर में उचित रूप में आ जाती है जो कि लकवे से पीड़ित भाग को ठीक करने में मददगार होती है।
(43). शहद में एक चुटकी अफीम मिलाकर और उसमें घिसकर चाटने से पेचिश के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
(44). शहद और सेंधा नमक को मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से भगन्दर रोग में आराम मिलता है।
(45). मोच के स्थान पर शहद और चूना मिलाकर हल्की मालिश करने से आराम होता है।
(46). स्त्री को गुनगुने गर्म पानी के टब में बैठायें तथा शहद में भिगोये हुए कपडे़ को पेट के नीचे भाग में रखने से सर्दी का असर दूर हो जाता है और प्रसव हो जाता है।
(47). शहद को मुँह में भरकर कुछ देर तक रखकर कुल्ला करने से तेज प्यास शाँत हो जाती है। पानी में शहद या चीनी मिलाकर पीने से गले की जलन व प्यास मिट जाती है। 20 ग्राम शहद को मुँह में 10 मिनट तक रखकर कुल्ला करने से अधिक तेज प्यास भी शाँत हो जाती है।
(48). 20 ग्राम शहद में 40 मिली लीटर पानी डालकर उबालकर रखे हुए पानी को पीने से जलोदर की बीमारी में लाभ होता है। शहद और पीपल का चूर्ण छाछ में मिलाकर पीने से लाभ होगा।
(49). शहद के साथ कबूतर की बीट मिलाकर खाने से रजो दर्शन (माहवारी) होता है और बाँझपन दूर हो जाता है।
(50). केसर 6 ग्राम, शहद 25 ग्राम रोगी को सुबह-शाम खिलाने से शीत पित्त में लाभ मिलता है। एक चम्मच शहद और एक चम्मच त्रिफला मिलाकर सुबह-शाम खाने से भी लाभ होता है।
(51). 120 ग्राम से लेकर 240 ग्राम शहद को 100 से 200 मिलीलीटर गुनगुने पानी में मिलाकर दिन में 3 बार खुराक के रूप में सेवन करने से मोटापा दूर हो जाता है।
(52.1). चूना और शहद को अच्छी तरह से मिलाकर गिल्टी पर लगाने से रोग में आराम मिलता है।
(52.2). काली मिर्च का पाउडर, शहद और हल्दी मिक्स करके गले पर गिल्टियों के स्थान पर लगाये गिल्टियाँ जल्द ठीक होती है।
(52.3). 10 ग्राम सिरस के बीजों के चूर्ण को कपड़े में छानकर उसमें 20 ग्राम शहद मिलाकर किसी कांच के बर्तन में डालकर 15 दिन के लिये धूप में रख दें। 15 दिन के बाद चूर्ण को रोजाना सुबह 5 से 10 ग्राम तक खायें और ऊपर से मिश्री मिला हुआ दूध पी लें। इससे कण्ठमाला (गले की गाँठों) में आराम आता है।
(52.4). वरना की जड़ के काढ़े में समान मात्रा में घी और शहद मिलाकर पीने से कण्ठ शालूक (गले में गाँठ) में आराम आता है। 
(52.5). एक ग्राम से 4 ग्राम चोप चीनी का चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से कण्ठमाला रोग (गले की गाँठें) समाप्त हो जाती है।
(52.6). शहद में हरड़ का चूर्ण मिलाकर खाने से गले की गांठे ठीक हो जाती है। 100 ग्राम सिरस के बीज को पीसकर 300 ग्राम शहद में मिला लें, फिर इसे चीनी के बर्तन में 40 दिन तक रखा रहने दें। 40 दिन के बाद दस ग्राम दवा को पानी के साथ खाने से कण्ठमाला (गले की गाँठें) की जो गिल्टियां (गाँठें) निकल चुकी हों वह बैठ जायेंगी और दूसरी गिल्टियां (गाँठें) नही निकलेगी।
(53.1). शहद के साथ लगभग 1-2 ग्राम पोस्ता पीसकर इसको शहद में घोलकर रोजाना सोने से पहले रोगी को देने से अच्छी नींद आती है। इससे रोगी को आराम से नींद आ जाती है और नींद में चलना बन्द हो जाता है। 
(53.2). एक-एक चम्मच नींबू का रस और शहद को मिलाकर रात को सोने से पहले दो चम्मच पीने से नींद आ जाती है। जब नींद खुले तब दो चम्मच पुन: लेने पर नींद आ जाती है और यदि केवल पानी के गिलास में शहद की दो चम्मच डालकर पीने से नींद आ जाती है अर्थात अनिद्रा दूर हो जाती है। शहद या शर्करा के शर्बत में पोस्तादाना को पीसकर इसको घोलकर सेवन करने से नींद अच्छी आती है।
(54). शहद या गुड़ के साथ गूलर के पके हुए फल को खाने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।
(55.1). शहद के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम सुहागे की खील (लावा) को चटाने से आक्षेप (कंपकंपाना) और मिर्गी में बहुत आराम आता है।
(55.2). शहद के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग जटामांसी का चूर्ण सुबह और शाम रोगी को देने से आक्षेप के दौरे ठीक हो जाते हैं।
(55.2). शहद या दूध के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम घोड़ बच (बच) को रोजाना रोगी को देते रहने से हिस्टीरिया रोग खत्म हो जाता है। इसको अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए अन्यथा उल्टी और सिर दर्द हो सकता है।
(55.2). लगभग 10 ग्राम शहद या केले के फल के रस के साथ ऊंटकटेरा की जड़ का सेवन करने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।
(56.1). शहद के साथ लगभग तीन ग्राम कलौंजी का सुबह के समय सेवन करने से भूलने की बीमारी दूर हो जाती है तथा याददास्त बढ़ती है।
(56.2). लगभग 30 ग्राम शहद के साथ 20 ग्राम घी मिलाकर भोजन के बाद रोजाना लेने से याददास्त बढ़ती है।
(56.3).शहद के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चांदी की भस्म सुबह और शाम को लेने से बुद्धि का विकास होता है।
(57). शहद और पीपल का पीसा हुआ चूर्ण छाछ के साथ पीने से छाती के दर्द में लाभ मिलता है।
(58.1). 6 ग्राम से 10 ग्राम तक गर्म पानी में शहद मिलाकर 45 से 60 दिन तक लगातार पीने से हर प्रकार के चमड़ी के रोग, लाल चकते (निशान), खाज-खुजली ठीक हो जाते हैं और कोढ़ के रोग में भी आराम हो जाता है।
(58.2). शुद्ध आमलासार गन्धक को शहद में मिलाकर खाने से खुजली पूरी तरह से ठीक हो जाती है। खाज-खुजली के रोगी को गन्धक को रोगी के रोग के लक्षण के मुताबिक लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक दे सकते है।
(58.3). शहद के साथ मजीठ को पीसकर लगाने से हर प्रकार के दाद और चमड़ी के रोग ठीक हो जाते हैं।
(59.1). शहद का प्रयोग लगभग एक सप्ताह तक करने से उच्च रक्त चाप कम हो जाता है
(59.2). प्रतिदिन 5-7 ग्राम मधु पानी में मिलाकर पीने से हृदय की निर्बलता नष्ट होती है।
(59.3). शहद हृदय को शक्ति देने के लिए विश्व की समस्त औषधियों से सर्वोत्तम हैं इससे हृदय इतना शक्तिशाली हो जाता है जैसे घोड़ा हरे जौ खाकर शक्ति प्राप्त करता है। शहद के प्रयोग से हृदय के पुट्टों की सूजन दूर हो जाती है। 
(59.4). जहाँ यह रोग-ग्रस्त हृदय को शक्ति देता है वहाँ यह स्वस्थ हृदय को पुष्ट और शक्तिशाली बनाता है, हृदय बेवक़्त बन्द होने से बचाता है।
(59.5). जब रक्त में ग्लाइकोजन के अभाव से रोगी को बेहोश होने का डर हो तो शहद खिलाकर रोगी को बेहोश होने से बचाया जा सकता है। शहद मिनटों में रोगी में शक्ति व उत्तेजना पैदा करता हैं।
(59.6). सर्दी या कमजोरी के कारण जब हृदय की धड़कन अधिक हो जाये, दम घुटने लगे तो, दो चम्मच शहद सेवन करने से नवीन शक्ति मिलती है। 
(59.7). शहद की एक चम्मच पानी में डालकर पीने से हृदय की दुर्बलता, दिल बैठना आदि कोई कष्ट हो तो दूर होता है। 
(59.8). एक चम्मच शहद प्रतिदिन लेने से हृदय सबल व मजबूत बनता है।
(60). हड़ताल की राख (भस्म) में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शहद को मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खाने से हाथ व पैरों की अकड़न दूर हो जाती है।
(61). शहद चाटने से चेचक में लाभ होता है।
(62.1). लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1 ग्राम घोड़ बच के साथ शहद सुबह और शाम को रोजाना खाने से क्रोध शान्त हो जाता है।
(62.2). शहद के साथ 7 मिलीलीटर से 10.50 मिलीलीटर गुरुच का रस मिलाकर सुबह-शाम को खाने से पित्त द्वारा उत्पन्न क्रोध शान्त हो जाता है।
(62.3). शहद के साथ गुल्म कुठार की लगभग 1 या 2 गोलियां सुबह और शाम को देने से चिड़चिड़ा स्वभाव और मन की उदासी दूर हो जाती है।
(64). सिन्दूर की थोड़ी मात्रा शहद में मिलाकर साफ कपड़ें पर लगाकर कपड़े को पसलियों के दर्द वाले जगह पर चिपका दें और पसली की सिकाई करें तो रोग में जल्द आराम मिलता है।
(65.1). शहद के साथ 5 ग्राम भैंस के खुर की भस्म को चाटने से मिरगी के कारण आने वाले दौरे दूर हो जाते हैं।
(65.2). 10 ग्राम शहद के साथ 10 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों को मिलाकर रोजाना खिलाने से मिरगी के दौरे दूर हो जाते हैं।
(65.3). लगभग 0.58 ग्राम शहद के साथ 0.40 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों का रस और लगभग 0.15 ग्राम कूट के चूर्ण को मिलाकर पीने से पागलपन या उन्माद रोग दूर हो जाता है।
(65.4). शहद के साथ 10 मिलीलीटर ब्राह्मी का रस और 2 ग्राम कूठ के चूर्ण को मिलाकर खाने से बुद्धि का विकास होता है और उन्माद या पागलपन ठीक हो जाता है।
(65.5). शहद के साथ 10 मिलीलीटर ब्राह्मी के पत्तों के रस और 3 ग्राम कुलिंजन के चूर्ण को मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से उन्माद ठीक हो जाता है।
(66.1). फुन्सियों पर असली शहद लगाने से त्वचा के रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं।
(66.2). काली मिट्टी में थोड़ा सा शहद डालकर शरीर में जहाँ पर फोड़े-फुँसियाँ हों वहाँ पर लगाने से लाभ होता है।
(66.3). आटे और शहद को मिलाकर लेप बना लें। फिर इसे किसी कपडे़ के टुकड़े पर लगाकर फुँसियाँ पर लगा लें इससे जल्द लाभ होगा।
(66.4). गिलास गर्म पानी में 3 चम्मच शहद को मिलाकर कुछ महीनों तक रोजाना पीने से फोड़े और फुँसियाँ दूर हो जाती है।
(66.5). शहद या नारियल के पानी के साथ 0.24 ग्राम से 0.48 ग्राम केसर को सुबह और शाम सेवन करने से फुँसियाँ, जहर या बहने वाला मवाद बाहर आकर ठीक हो जाता है।
(67). शहद, मोम, सेंधानमक, गुड़, गूगल, गेरू, घी, आक (मदार) का दूध और राल का लेप करने से बहुत दिनों की बिवाई-एड़ियाँ -पाँव फटना ठीक हो जाते हैं।
(68). शहद या मीठे तेल में नौसादर को मिलाकर लगाने से सफेद कोढ़ मिट जाता है।
(69). 10 ग्राम शहद, 5 ग्राम आंवला, 200 मिलीलीटर गन्ने का रस मिलाकर पीने से खून के रोग में लाभ होता है।
(70.1). 20 ग्राम शहद में 10 ग्राम सुहागा मिलाकर दिन में तीन बार मलने से होंठो का फटना दूर हो जाता है।
(70.2). डेढ़ ग्राम बड़ी इलायची के बीज को शहद में मिलाकर चैट लें और ऊपर से सनाय, अमलतास और बड़ी (70.3). हरड़ को मिलाकर 25 ग्राम चूर्ण का काढ़ा बनाकर 50 ग्राम पिला पीने से सूजकर मोटी हुई त्वचा पतली और मुलायम हो जाती है। 
(70.4). शुद्ध (असली) शहद में नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़तीं। 
(70.5). मजीठ को शहद में मिलाकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की झाइयाँ (चेहरे का कालापन) दूर हो जाती हैं।
(70.6). शहद को चेहरे पर लगाकर दो घंटे तक लगा रहने दें। फिर दो घंटे के बाद चेहरे को गर्म पानी से धो लें। इससे चेहरे पर चमक आ जाती है।
(71). दारू हल्दी, थूहर का दूध और आक का दूध इन सब को मिलाकर एक बत्ती बना लें। उसके बाद उस बत्ती को नाड़ी के घाव पर लगाने से नाड़ी के रोग में जल्द आराम मिलता है।
पंचकोल :: पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक (चीता) और सोंठ, इन पाँच द्रव्यों के योग को पंचकोल कहते हैं। पंचकोल उदर रोग, यकृत की खराबी व कमज़ोरी में उपयोगी है। आहार-विहार में अनियमितता, स्वादवश अपथ्य पदार्था का सेवन तथा पथ्य पदार्था का अति सेवन-इन तीनों कारणों से उदर रोग, यकृत की खराबी व कमज़ोरी और इन अंगों से सम्बन्धित व्याधियाँ व्यापक रूप से फैली हुई हैं।
पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः। 
पंचभिः कोलमात्रं यत्पंचकोल तदुच्यते॥ 
पंचकोलं रसे पाके कटुकं रुचिकृन्मतम्। 
तीक्ष्णोष्णं पाचनं श्रेठ दीपनं कफवातनुत्॥
गुल्म प्होलीदरानाह शूलनं पित्तकोपनम्।[भावप्रकाश निघुण्ट]
इन पाँचों द्रव्यों को 50-50 ग्राम मात्रा में अलग-अलग खूब कूट पीस कर महीन चूर्ण कर लें और बराबर-बराबर वज़न में लेकर मिला कर कपड़छन करलें। इसे शीशी में भर कर रख लें। इसकी आधा चम्मच मात्रा (लगभग 3 ग्राम) एक गिलास छाछ में घोल कर भोजन के साथ घूँट-घूँट करके पीना चाहिए या शहद में मिला कर चाट लेना चाहिए। व्याधि दूर होने तक सेवन करके बन्द कर दें। इसे दाल, साग में बुरक कर भी सेवन कर सकते हैं या एक चम्मच चूर्ण कुनकुने गरम पानी के साथ सुबह शाम भोजन के बाद ले सकते हैं।
इसको छिलके वाली मूँग की दाल के साथ सेवन किया जा सकता है। एक साफ सफेद कपड़े में लगभग 20 ग्राम चूर्ण रख कर छोटी सी पोटली बना कर धागे से बाँध दें। दाल के लिए पानी आग पर रखते समय ही यह पोटली पानी में डाल दें। अब जिस तरह से दाल बनाई जाती है, वैसे ही दाल पकाएँ। जब दाल पक जाए तब पोटली निकाल कर फेंक दें। 25 ग्राम शुद्ध घी व 10-12 दाने जीरे का छौंक तैयार करें और इस दाल को बघार दें। इस दाल को परिवार के सभी लोग खा सकते हैं यानी व्याधिग्रस्त ही नहीं स्वस्थ व्यक्ति भी इसे खा सकता है। रोग ग्रस्त 5-6 दिन तक प्रतिदिन इसका सेवन करें फिर सप्ताह में 2-3 बार करता रहे। इसे पंचकोल साधित मूँग की दाल कहते हैं। इस योग की प्रकृति उष्ण होती है, अतः अनुकूल मात्रा में, शुद्ध घी का बघार लगा कर, उतनी ही अवधि तक सेवन करना चाहिए जब तक उदर रोग, भूख की कमी, पेट का फूलना, अपच, गैस की शिकायत आदि शिकायतें दूर न हो जाएं। सप्ताह में 1-2 बार सेवन करने में कोई हानि नहीं।
पंचकोल चूर्ण उत्तम रुचिकारक, भूख बढ़ाने वाला और पाचन क्रिया सुधारने वाला गुणकारी योग है। इसके सेवन से पेट का अफारा, पलिहाव्रिधि, गुल्म, शूल, कफजन्य व्याधि और उदर रोग नष्ट होते हैं। यह श्वास, खांसी, ज्वर और अरुचि को भी दूर करता है। यह योग इसी नाम से बना बनाया बाज़ार में मिलता है।
पीपल-पिप्पली पीपलामूल Long pepper :: पीपल की जड़ को ही पीपलामूल (Piper Root) कहते हैं। यह पीपल की तुलना में गर्म, रूखी, पित्तकारक होती है और देखने में कृष्णवर्ण की होती है। शेष गुण पीपल के ही होते हैं।
चित्रक (चीता) :: यह पाक होने पर कटु, अग्निवर्धक, पाचन, हलका, रूखा, गर्म तथा ग्रहणी की शक्ति को बढ़ाने वाला है और संग्रहणी, कोढ़, सूजन, बवासीर, कृमि, खांसी, वात कफ और पित्त को नष्ट करने वाला है।
सौंठ-शुँठी Dry Ginger Root :: रुचि कारक, आम-वात नाशक, पाचक, चरपरी, हलकी, स्निग्ध, उष्ण, पाक होने पर मधुर, कफ वात तथा मलबन्ध को तोड़ने वाली है। वीर्यवद्र्धक, स्वर को उत्तम बनाने वाली, वमन, श्वास, शूल, खांसी, हृदय के रोग, श्पलीद, शोथ, आनाह, उदर रोग और वात के रोगों को नष्ट करने वाली है। यह ग्राही होती है।
पाचक चूर्ण-हाजमे की दवा :: सौंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नागर मौथा, विड नमक, वाय विडंग, छोटी इलायची, तेजपत्ता; इन सबको प्रत्येक 1-1 तोला और निशोथ की जड़ 44 तोला और मिश्री 66 तोला। इन सबको मिलाकर अच्छी तरह कूटकर छान लें। एक तोला 11.6638038 ग्राम के बराबर है।
गुड़ खाने के लाभ ::
(1). गुड़ खाने से नहीं होती गैस की समस्या l
2). खाना खाने के बाद अक्सर मीठा खाने से भोजन सहज पच जाता है।
3). पाचन क्रिया को सही रखना।
(4). गुड़ शरीर का रक्त साफ करता है और मेटाबॉल्जिम ठीक करता है। प्रतिदिन एक गिलास पानी या दूध के साथ गुड़ का सेवन पेट को ठंडक देता है। इससे गैस की समस्या नहीं होती। जिन लोगों को गैस की परेशानी है, वो रोज़ लंच या डिनर के पश्चात थोड़ा गुड़ ज़रुर खाएं।
(5). गुड़ आयरन का मुख्य स्रोत है। इसलिए यह एनीमिया के रोगियों के लिए बहुत लाभदायक है। विशेषतः महिलाओं के लिए इसका सेवन बहुत अधिक आवश्यक है।
(6). त्वचा के लिए, गुड़ ब्लड से खराब टॉक्सिन दूर करता है, जिससे त्वचा दमकती है और मुहाँसे की समस्या नहीं होती है।
(7). गुड़ के गुण धर्म गरम है, इसलिए इसका सेवन जुकाम और कफ से आराम दिलाता है। जुकाम के दौरान गुड़ को चाय या लड्डू में भी इसका प्रयोग कर सकते हैं।
(8). एनर्जी के लिए-बुहत अधिक थकान और कमजोरी अनुभव करने पर गुड़ का सेवन करने से एनर्जी लेवल बढ़ जाता है। गुड़ शीघ्र पच जाता है, इससे शुगर का स्तर भी नहीं बढ़ता। दिन भर काम करने के बाद जब भी आपको थकान हो, तुरंत गुड़ खाएं।
(9). गुड़ शरीर के टेंपरेचर को नियंत्रित रखता है। इसमें एंटी एलर्जिक तत्व हैं, इसलिए दमा के रोगियों के लिए इसका सेवन काफी लाभदायक होता है।
(10). रोज़ गुड़ के एक टुकड़े के साथ अदरक का सेवन करें, इससे जोड़ों के दर्द की दिक्कत नहीं होगी।
(11). गुड़ के साथ पके चावल खाने से बैठा हुआ गला व आवाज खुल जाती है।
(12). गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में अस्थमा की परेशानी नहीं होती है।
(13). जुकाम जम गया हो, तो गुड़ पिघलाकर उसकी पपड़ी बनाकर खिलाऐं।
(14). गुड़ और घी मिलाकर खाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
(15). भोजन के बाद गुड़ खा लेने से पेट में गैस नहीं बनती।
(16). पांच ग्राम सौंठ दस ग्राम गुड़ के साथ लेने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
(17). गुड़ का हलवा खाने से स्मरण शक्ति बढती है।
(18). पांच ग्राम गुड़ को इतने ही सरसों के तेल में मिलाकर खानेसे श्वास रोग से छुटकारा मिलता है।
CLARIFIED BUTTER देशी घी :: शुद्ध देशी घी गाय या भैंस के मक्खन को गर्म करके बनाया जाता है। इसको दूध से क्रीम निकालकर, गर्म करके भी बनाया जाता है। दूध की मलाई को जमाकर भी घी बनाया जाता है। क्रीम को सीधे गर्म करने की बजाय, उसे गर्म करके दही की जमाकर मक्खन निकलकर बना घी जायदा बेहतर होता है। काली या पीली गाय का घी अनेक बीमारियों में दवाई की तरह इस्तेमाल होता है। शिशुओं के लिये गाय का दूध ही इस्तेमाल करें। दूध को हमेशां गर्म करके ठंडा करें, फिर पीयें। पश्चिमी देशों में इसे चर्बी बढ़ाना वाला, खून को गाढ़ा करने वाला कहा जाता है। मगर उन्होंने भी इसकी उपयोगिता को स्वीकार कर आयुर्वेद और भारतीय परम्पराओं को सही करार दिया है।
(1). इसमें अधिक तापमान को सहन करने की क्षमता रखता है।
(2). यह भोजन के स्वाद को बढ़ाता है और कम मात्रा में भोजन करने से ही भूख शांत होने लगती है।
(3). यह आमाशय की जठराग्नि को बढ़ाता है और भोजन के अन्य अवयवों को पचाने मदद करता है।
(4). इसमें विटामिन ए, डी, इ, के एवं बी 12 प्रचुर मात्रा में होते हैं। इनमें से विटामिन A व D एंटीआक्सीडेंट हैं। घी स्वयं एक एंटीआक्सीडेंट है और शरीर की कोशिकाओं को क्षति से बचाता है और जोड़ों को मजबूती देता है।
(5). यह शरीर पाचक एन्जाइम्स को बढ़ाता है जो कि भोजन के पाचन एवं अवशोषण में मदद करते हैं। घी की चिकनाई-वसा प्रोबायोटिक है। इससे अपच, कब्जी, पेट के फुलाव आदि में स्वाभाविक रूप से कमी आती है।
(6). यह एलर्जी का प्रतिरोधक है।
(7). नियंत्रित मात्रा में घी का उपयोग करने से गठिया, जोड़ों की तकलीफ नहीं होती।
(8). सामान्य परिश्रम, व्यायाम, योग करते रहने से घी अनावश्यक चर्बी को शरीर में जमा नहीं होने देता।
(9). इसके अनवरत प्रयोग से चेहरे पर झुर्रियाँ नहीं पड़तीं और त्वचा चमकती-दमकती रहती है। बाल मजबूत एवं चमकदार रहते हैं।
(10). भोजन में घी की कमी होने से भोजन के बाद मीठा खाने की इच्छा बनी रहती है।
(11). इसके प्रयोग से भोजन की शर्करा, खून में धीरे धीरे पहुँचती है जो कि डायबिटीज एवं दिल की बीमारियों के मरीजों के लिए लाभकारी है। यही कारण है कि पुराने जमाने से ही खिचड़ी, दाल चावल एवं अन्य कई व्यंजनों में ऊपर से घी डालकर खाया जाता है। खून में ग्लूकोज धीरे-धीरे रिलीज होने से शरीर एवं दिमाग में शर्करा स्तर सतत् बना रहता है।
(12). घी में मौजूद वसा आसानी से दिमाग में पहुँचती है और सोचने समझने की शक्ति को विकसित करने में लाभदायक होते हैं। ब्रिटेन और अमेरिका में 2015 में हुई खोजों के अनुसार घी खाने से दिमाँगी ताकत बढ़ती है।
(13). घी, दूध, दही, मक्खन, पनीर अच्छी सेहत के लिये जरूरी हैं। मूँगफली, काजू, नारियल, बादाम, अंजीर, पिस्ता साथ में हो तो सोने में सुहागा। बर्फी, पेड़ा, रसगुल्ले, मिल्ककेक आदि मिठाइयाँ वार-त्यौहार और नियंत्रित मात्रा में ही खायें।
इसके आलावा सरसों, मूँगफली और गोले के तेल का ही सेवन करें।
BUTTER MILK छाछ :: छाछ में गुड़ मिलकर पीने से मूत्र कृच्छ (पेशाब की जलन) दूर होती है। इसमें अजवाइन मिलाकर पीने से, पेट के कीड़े मरते हैं। छाछ में काली मिर्च मिलाकर पीने से पीलिया में लाभ मिलता है। इससे कुल्ला करने पर मुँह के छाले ठीक होते हैं। छाछ में जायफल मिलाकर पीने से सर का दर्द ठीक होता है। ताज़ी छाछ में बेल पत्थर का गूदा मिलकर पीने से अतिसार (दस्त, पेचिश, खूनी दस्त) जैसी बीमारियाँ दुरुस्त हो जाती हैं। शहद के साथ सेवन करने से दस्तों में राहत मिलती है। छाछ में शक़्कर, कालीमिर्च मिलाकर पीने से पित्त से उत्पन्न पेट का दर्द सही हो जाता है। छाछ में हल्का नमक मिलाकर पीने से लू में आराम मिलता है। छाछ में गवार पाठे के बीज मिलाकर दाद पर लगाने से राहत मिलती है। सफ़ेद दाग के रोगी को छाछ दिन में दो बार पीनी चाहिये। यह मोटापा काम करती है। निम्न रक्तचाप सामान्य बनाती है और खाली पेट रहने पर होने वाला दर्द इससे ठीक होता है।
घी, शहद और सोना :- ये तीनों ही अमृत स्वरूप हैं। इनके योग में अद्भुत शक्ति है और इनका प्रभाव भी अमोध है। ये तीनों मिलकर बच्चे की आयु और मेधा को बढ़ाने वाली औषधि बन जाते हैं।
फिटकरी :: 100 ग्राम फिटकरी तवे पर रखिये। पिघल जाए तो उसे ठंडा कर लीजिए। उसे तवे से उतार कर कूट कर डिब्बी में डालकर रख लें। यह रामबाण दवाई है, जो फेंफड़े सीज हों, दमा हो या दिल कमजोर हो, बलगम हो तो मरीज़ को दी जा सकती है। दाँत में दर्द हो तो इससे कुल्ला करने आराम मिलेगा। जले-कटे के घाव को साफ़ करने में उपयोगी है। नहाने और सब्जियाँ  उपयोगी है। यह एकमात्र ऐसा सेनिटाइजर है, जिसका सेवन किया जा सकता है।
एक चुटकी फिटकरी का भुना हुआ पाउडर लें। एक चम्मच शहद लें, पाँच बूँद अदरक के रस की डालें और पीड़ित को चटा दें। एक खुराक  सुबह एक dose शाम। कुल दो दिन में चार ख़ुराक। फेफड़े की तमाम दिक्कतों में रामबाण दवाई है। इस दवाई ने डेथ बेड से रोगी को उठाया जब उनके फेफड़े न्यूमोनिया और बलगम से सीज हो गए थे और डाक्टर ने जवाब दे दिया था।
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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