MIRACLE AMAZING WONDER HERBS चमत्कारी जड़ी बूटियाँ :: AYUR VED (1) आयुर्वेद
MIRACLE AMAZING WONDER HERBS


चमत्कारी जड़ी बूटियाँ
AYUR VED (1) आयुर्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
वृक्षारोपण के फायदे :: पुराणों व धर्मग्रंथों में उल्लेखित जानकारी है इस प्रकार है :-
कूपस्तडागमुद्यानं मण्डपं च प्रपा तथा।
जलदानमन्नदानमश्वत्थारोपणं तथा॥
पुत्रश्चेति च संतानं सप्त वेदविदो विदुः।
कुआँ, तालाब, बगीचा, आराम-भवन और प्याऊ का निर्माण, जल और अन्न दान, पीपल वृक्ष का लगाना एवं पुत्र प्राप्ति; ये सात प्रकार की संतान कहलाती हैं।[स्कन्दपुराण]
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त्रिशूल, डमरू युक्त रुद्राक्ष |
दशकूपसमा वापी दशवापीसमो हृदः।
दशहदसमः पुत्रो दशपुत्र मो द्रुमः॥
दस कूप निर्माण करवाने का पुण्य एक वापी के बनवाने से प्राप्त होता है तथा दस बावलियाँ बनवाने का पुण्य एक तालाब के बनवाने से और एक पुत्र का जन्म दस तालाबों के तुल्य तथा एक वृक्ष दस पुत्रों के तुल्य है।[मत्स्यपुराण 153.12]
जीवन में लगाए गए वृक्ष अगले जन्म में संतान के रूप में प्राप्त होते हैं।[विष्णु धर्मसूत्र 19.4]
जो व्यक्ति पीपल अथवा नीम अथवा बरगद का एक, चिंचिड़ी (इमली) के 10, कपित्थ अथवा बिल्व अथवा ऑंवले के तीन और आम के पाँच पेड़ लगाता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।[भविष्य पुराण]
पौधारोपण करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है ।
शास्त्रों के अनुसार पीपल का पेड़ लगाने से संतान लाभ होता है।
पाकड़ का वृक्ष लगाने से उत्तम ज्ञान प्राप्त होता है।
बिल्वपत्र का वृक्ष लगाने से व्यक्ति दीर्घायु होता है।
वट वृक्ष लगाने से मोक्ष मिलता है।
आम वृक्ष लगाने से कामना सिद्ध होती है।
कदम्ब का वृक्षारोपण करने से विपुल लक्ष्मी की प्राप्त होती है।
प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति-आयुर्वेद के अनुसार पृथ्वी पर ऐसी कोई भी वनस्पति नहीं है, जो औषधि गुण युक्त न हो।
रोग मुक्त जीवन हेतु स्तुति :: वेद मंत्रों में देव शब्द के प्रयोग द्वारा देवताओं की सामूहिक स्तुति की गई है। रोग मुक्त शतायु जीवन की कामना के साथ उपयुक्त मंत्र अथर्ववेद एवं यजुर्वेद में है। दोनों ही वेदों में तत्संबंधी मंत्र ‘पश्येम शरदः शतम्’ से आरंभ होते हैं।
हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्।
मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते॥[च.सू.1/40]
A number of chapters are available in Agni Puran, which describes a number of herbs-preparations, which have miraculous-wonderful curative effects, in addition to increasing life span. All these, all freely available in the market at extremely low prices. These are tried and trusted for ages, still one may subject them to clinical tests. No one should ever try to obtain patents, anywhere in the world, since these medicines are in use in Ayurvedic system of medicine and cure, ever since.LONGEVITY 100-1,000 YEARS मृत्युन्जय-योग ::
सौ साल तक आयु :: (1). निम्ब के तैल की मधु सहित नस्य लेने से मनुष्य सौ साल जीता है और उसके बाल हमेशां काले बने रहते हैं। (2). कमल गन्ध का चूर्ण भांगरे के रस की भावना देकर मधु और घृत की साथ लेने पर सौ वर्ष की आयु प्रदान करता है। (3). असगन्ध, त्रिफला, चीनी, तैल, घृत में सेवन करने वाला सौ साल तक जिन्दा रह सकता है। (4). गदहपूर्ना का चूर्ण एक पल मधु, घृत और दुग्ध के साथ खाने वाला शतायु होता है। (5). अशोक की छाल का एक पल चूर्ण मधु और घृत के साथ दुग्धपान करने से रोग नाश होता है। (6). बहेड़े के चूर्ण को एक तोला मात्रा में शहद, घी और दूध के साथ पीने वाला शतायु होता है। (7). पिप्पली युक्त त्रिफला, मधु और घृत के साथ पीने वाला शतायु होता है। (8). खाँड युक्त दूध पीने से जातक पीने वाला शतायु होता है। Drinking of milk with raw sugar enhances longevity up to 100 years. (9). शर्करा, सैन्धव और सौंठ के साथ अथवा पीपल, मधु, एवं गुड़ के साथ प्रति दिन दो हर्रे का सेवन करें। इसके साथ-साथ नियमित जीवन शैली, व्यायाम, योग, पैदल घुमा अनिवार्य है।
दो सौ वर्ष की आयु :: (1). कड़वी तुम्बी के एक तोले भर तैल का नस्य दो सौ वषों की आयु प्रदान करता है। (2). सौंठ का चित्रक व विडंग के साथ प्रयोग भी लम्बी आयु दायक है।
तीन सौ वर्ष की आयु :: (1). लौह भस्म व शतावरी को भृंगराज रस में भावना देकर मधु व घी के साथ लेने से तीन सौ वर्ष की आयु प्राप्त होती है। (2). त्रिफला, पीपल और सौंठ का प्रयोग तीन सौ वर्ष की आयु प्रदान करता है। (3). त्रिफला, पीपल और सौंठ का चित्रक के साथ प्रयोग भी तीन सौ वर्ष की आयु प्रदान करता है। (4). मधु (honey), त्रिफला, घृत (clarified butter), गिलोय, का मिश्रण नियमित रूप से प्रयोग करने पर 300 वर्ष की आयु और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। Cures all diseases and extends life span up to 300 years, provided its added with celibacy-chastity. (5). हरीतकी चूर्ण भृंगराज रस की भावना देकर एक तोले की मात्रा में घृत और मधु के साथ सेवन करने वाला रोग मुक्त होकर तीन सौ साल की उम्र तक जीता है। (6). हर्रे, चित्रक, सौंठ, गिलोय और मुसली का चूर्ण गुड़ के साथ खाने पर सभी रोगों का नाश होता है और 300 वर्ष की आयु प्राप्त होती है।
पाँच सौ साल की आयु :: (1) ताम्र भस्म, गिलोय, शुद्ध गन्धक को समान भाग घी कुँवार के रस में घोंट कर दो-दो रत्ती की गोलियां बनायें। इनका सेवन घृत के साथ करने से पाँच सौ साल की आयु प्राप्त होती है। (2). गेठी, लोह चूर्ण, शतावरी को समान भाग से भृंगराज रस तथा घी के साथ लेने से पाँच सौ वर्ष की आयु प्राप्त होती है (3). पलाश-तैल का मधु के साथ, 1 तोले, दूध के साथ प्रति दिन 6 मास तक सेवन करने से आयु 5 सौ वर्ष हो जाती है। (4). बिल्व-तैल का नस्य एक मास तक लेने से आयु को 500 साल तक बढ़ाता है। This combination extends age up to 500 years. (5). त्रिफला 4 तोले (12 gm), 2 तोले या 1 तोला। This combination too extends age up to 500 years.
तीन सौ वर्ष की आयु :: (1). लौह भस्म व शतावरी को भृंगराज रस में भावना देकर मधु व घी के साथ लेने से तीन सौ वर्ष की आयु प्राप्त होती है। (2). त्रिफला, पीपल और सौंठ का प्रयोग तीन सौ वर्ष की आयु प्रदान करता है। (3). त्रिफला, पीपल और सौंठ का चित्रक के साथ प्रयोग भी तीन सौ वर्ष की आयु प्रदान करता है। (4). मधु (honey), त्रिफला, घृत (clarified butter), गिलोय, का मिश्रण नियमित रूप से प्रयोग करने पर 300 वर्ष की आयु और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। Cures all diseases and extends life span up to 300 years, provided its added with celibacy-chastity. (5). हरीतकी चूर्ण भृंगराज रस की भावना देकर एक तोले की मात्रा में घृत और मधु के साथ सेवन करने वाला रोग मुक्त होकर तीन सौ साल की उम्र तक जीता है। (6). हर्रे, चित्रक, सौंठ, गिलोय और मुसली का चूर्ण गुड़ के साथ खाने पर सभी रोगों का नाश होता है और 300 वर्ष की आयु प्राप्त होती है।
पाँच सौ साल की आयु :: (1) ताम्र भस्म, गिलोय, शुद्ध गन्धक को समान भाग घी कुँवार के रस में घोंट कर दो-दो रत्ती की गोलियां बनायें। इनका सेवन घृत के साथ करने से पाँच सौ साल की आयु प्राप्त होती है। (2). गेठी, लोह चूर्ण, शतावरी को समान भाग से भृंगराज रस तथा घी के साथ लेने से पाँच सौ वर्ष की आयु प्राप्त होती है (3). पलाश-तैल का मधु के साथ, 1 तोले, दूध के साथ प्रति दिन 6 मास तक सेवन करने से आयु 5 सौ वर्ष हो जाती है। (4). बिल्व-तैल का नस्य एक मास तक लेने से आयु को 500 साल तक बढ़ाता है। This combination extends age up to 500 years. (5). त्रिफला 4 तोले (12 gm), 2 तोले या 1 तोला। This combination too extends age up to 500 years.
एक सहस्त्र वर्ष की आयु :: (1). पथे के एक पल चूर्ण को मधु घृत और दूध के साथ सेवन करते हुए दुग्धान्न का भोजन करने वाला निरोग रहकर एक सहस्त्र वर्ष की आयु का उपभोग करता है। (2). काँगनी के पत्तों का रस या त्रिफला दूध के साथ लेने से 1 हजार वर्ष की आयु प्राप्त होती है। (3). शतावरी का त्रिफला, पीपल और सौंठ का प्रयोग सहस्त्र वर्ष की आयु व अत्यधिक बल प्रदान करता है।
हजारों वर्ष की आयु :: 4 तोले शतावरी-चूर्ण (powdered Asparagus racemose), घृत व मधु के साथ लेने से हजारों वर्ष की आयु प्राप्त होती है।
PROTECTION FROM AGEING & DEATH अपमृत्यु और वृद्धावास्था :: (1). भिलावा और तिल का सेवन रोग, अपमृत्यु और वृद्धावास्था को दूर करता है। (2). 4 तोले मधु+घी+सोंठ की 4 तोले की मात्रा का प्रति दिन प्रातः काल उपयोग करने से व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है। Anyone who consumes around 40 grams of honey + ghee + Sounth (dried powdered ginger), every day in the morning wins death. (3). मधु (honey, Mel despumatus) के साथ उच्चटा (भुईं आँवला) को एक तोले की मात्रा में खाकर दुग्धपान करने वाला मनुष्य मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है। Death is conquered by the use of this combination, regularly. (4). मेउड़ की जड़ का चूर्ण या पत्र स्वरस रोग एवं मृत्यु का नाश करता है। (5). नीम (Azadirachta indica-Margosa) के पंचांग-चूर्ण को ख़ैर के क्वाथ (काढ़ा) की भावना देकर भृंगराज (Eclipta alba) के रस साथ एक तोला भर सेवन करने मनुष्य रोग को जीत कर अमर हो सकता है। (6). रुदन्तिका चूर्ण घृत और मधु के साथ सेवन करने से या केवल दुग्धाहार से मनुष्य मृत्यु को जीत लेता है।
झुर्रियों व बाल सफ़ेद पर रोक :: ब्राह्मी चूर्ण के साथ दूध का सेवन करने चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़तीं और बाल सफ़ेद नहीं होते व आयु वृद्धि होती है। Use of Brahmi (Bacopa monnieri) powder with milk protect against wrinkle formation and greying of hair, in addition of boosting of age.
LONG LIFE :: त्रिफला, पीपल, सौंठ का लोह, भृंगराज, खरेटी, निम्ब-पञ्चांग, ख़ैर, निर्गुण्डी, कटेरी, अडूसा और पुनर्नवा के साथ या इनके रस की भावना देकर या इनके संयोग से बटी या चूर्ण बनाकर उसका घृत, मधु, गुड़ और जलादि के साथ सेवन करने से लम्बी उम्र की प्राप्ति होती है।
"ॐ ह्रूं स:", मन्त्र से अभिमंत्रित योगराज मृत संजीवनी के समान होता है, यह रोग व मृत्यु पर विजय प्रदान करता है।
स्त्री संभोग :: उड़द, पीपल, अगहनी का चावल, जौ और गेंहू-इन सबका चूर्ण सामान मात्रा में लेकर घृत में पूरी बना लें। इसका भोजन करके शर्करा युक्त दुग्ध का सेवन करें।
PREGNANCY FAILURE ::
हजारों वर्ष की आयु :: 4 तोले शतावरी-चूर्ण (powdered Asparagus racemose), घृत व मधु के साथ लेने से हजारों वर्ष की आयु प्राप्त होती है।
PROTECTION FROM AGEING & DEATH अपमृत्यु और वृद्धावास्था :: (1). भिलावा और तिल का सेवन रोग, अपमृत्यु और वृद्धावास्था को दूर करता है। (2). 4 तोले मधु+घी+सोंठ की 4 तोले की मात्रा का प्रति दिन प्रातः काल उपयोग करने से व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है। Anyone who consumes around 40 grams of honey + ghee + Sounth (dried powdered ginger), every day in the morning wins death. (3). मधु (honey, Mel despumatus) के साथ उच्चटा (भुईं आँवला) को एक तोले की मात्रा में खाकर दुग्धपान करने वाला मनुष्य मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है। Death is conquered by the use of this combination, regularly. (4). मेउड़ की जड़ का चूर्ण या पत्र स्वरस रोग एवं मृत्यु का नाश करता है। (5). नीम (Azadirachta indica-Margosa) के पंचांग-चूर्ण को ख़ैर के क्वाथ (काढ़ा) की भावना देकर भृंगराज (Eclipta alba) के रस साथ एक तोला भर सेवन करने मनुष्य रोग को जीत कर अमर हो सकता है। (6). रुदन्तिका चूर्ण घृत और मधु के साथ सेवन करने से या केवल दुग्धाहार से मनुष्य मृत्यु को जीत लेता है।
झुर्रियों व बाल सफ़ेद पर रोक :: ब्राह्मी चूर्ण के साथ दूध का सेवन करने चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़तीं और बाल सफ़ेद नहीं होते व आयु वृद्धि होती है। Use of Brahmi (Bacopa monnieri) powder with milk protect against wrinkle formation and greying of hair, in addition of boosting of age.
LONG LIFE :: त्रिफला, पीपल, सौंठ का लोह, भृंगराज, खरेटी, निम्ब-पञ्चांग, ख़ैर, निर्गुण्डी, कटेरी, अडूसा और पुनर्नवा के साथ या इनके रस की भावना देकर या इनके संयोग से बटी या चूर्ण बनाकर उसका घृत, मधु, गुड़ और जलादि के साथ सेवन करने से लम्बी उम्र की प्राप्ति होती है।
"ॐ ह्रूं स:", मन्त्र से अभिमंत्रित योगराज मृत संजीवनी के समान होता है, यह रोग व मृत्यु पर विजय प्रदान करता है।
स्त्री संभोग :: उड़द, पीपल, अगहनी का चावल, जौ और गेंहू-इन सबका चूर्ण सामान मात्रा में लेकर घृत में पूरी बना लें। इसका भोजन करके शर्करा युक्त दुग्ध का सेवन करें।
PREGNANCY FAILURE ::
सा यदि गर्भं न दधीत सिंहृा स्वेतपुष्प्या उपोष्य पुष्पेण मूल पुत्थाप्या चतुर्थेSहनि स्नातायां निशायामुदपेषं पिष्ट्वा दक्षिणस्यां नासिकायामसिञ्चति।
यदि स्त्री गर्भ धारण नहीं कर पा रही हो तो उसका पति पुष्य नक्षत्र में शुभ दिन देखकर उपवास करे और श्वेत पुष्पवाली कण्टकारिका-भटकटैया या कटेरी अथवा शिफ़ा की जड़ उखाड़ लाये और उसको जल के साथ पीसकर उसका रस स्त्री के दाहिने नथुने से सुँघाये तथा कुछ बूँदें नाक में छोड़े। इस प्रक्रिया के दौरान उसे निम्न मन्त्र का उच्चारण भी करते रहना चाहिये :- ॐ इयमोषधी त्रायमाणा सहमाना सरस्वती।
अस्य अहं बृहत्या: पुत्र: पितुरिव नाम जग्रभम्॥
In case his wife is unable to conceive the husband should uproot either Kantkarika-Bhatkaeya or Kateri or Shipha bearing white flowers and let her smell the paste of its roots prepared in water and drop a few drops in her nostrils as well. He should recite the Mantr quoted above, while performing this. स्त्री प्रिय :: आँवले के स्वरस से भावित, आँवले के चूर्ण को मधु, घृत तथा शर्करा के साथ चाट कर दुग्ध पान करें।
"ॐ ह्रूं स: एवं ॐ जूं स:" मृतुन्जय मन्त्र हैं। यदि विधि-विधान के साथ इनका निरन्तर जप किया जाये तो अपेक्षित परिणाम मिलते हैं।
वात ज्वर :: बिल्वादि पंचमूल-बेल, सोनापाठा, गम्भार, पाटन, एवं अरणी का काढ़ा प्रयोग करें।
पाचन :: पिप्पली मूल, गिलोय और सोंठ का क्वाथ प्रयोग करें।
ज्वर :: आँवला, अभया (बड़े हरै), पीपल और चित्रक-यह आमल क्यादि क्वाथ सब प्रकार के ज्वर का नाश करता है।
खाँसी, ज्वर, अपाचन, पार्श्व शूल और कास (खाँसी) :: दश मूल-बिल्वमूल, अरणी, सोनापाठा, गम्भारी, पाटल, शालपर्णी, गोखुरू, पृष्टपर्णी, बृहती, (बड़ी कटेर) का क्वाथ व कुश के मूल का क्वाथ-प्रयोग करें। Cough associated with fever, indigestion, extreme one side stomach pain.
वात और पित्त ज्वर :: गिलोय, पित्त पापड़ा, नगर मोथा, चिरायता, सौंठ-यह पञ्च भद्र क्वाथ, वात और पित्त ज्वर में देना चाहिये।
विरेचक व सम्पूर्ण ज्वर :: निशोथ, विशाला (इंद्र वारुणी), कुटकी, त्रिफला, अमलतास का क्वाथ यवक्षार मिला कर पिलायें।
COUGH CURE-कास रोग (खाँसी) :: (1). देवदारु, खरेठी, अडूसा, त्रिफला, व्योष (सौंठ, काली मिर्च, पीपल), पद्द्काष्ठ, वाय विडंग और मिश्री सभी सामान भाग में, (2). अडूसे का रस, मधु और ताम्र भस्म सामान मात्र में लें। A combination of these in equal quantity cures, 5 different kinds of cough.
HEART TROUBLE-ह्रदय रोग, गृहणी, हिक्का, श्र्वाष, पार्श्व रोग व कास रोग :: दशमूल, कचूर, रास्ना, पीपल, बिल्व, पोकर मूल, काकड़ा सिंगी, भुई आँवला, भार्गी, गिलोय और पान इनसे विधि वत सिद्ध किया हुआ क्वाथ या यवागू का पान करें। Heart trouble, hiccups, pain in one side of stomach, cough, breathing.
हिक्का-हिचकी :: मुलहठी (चूर्ण), के साथ पीपल, गुड के साथ नागर और तीनों नमक (सैंधा नमक, विड नमक, काला नमक)।
अरुचि रोग :: कारवी अजाजी (काला जीरा, सफ़ेद जीरा), काली मिर्च, मुन्नका, वृक्षाम्ल (इमली), अनारदाना, काला नमक और गुड़, इन्हें समान भाग में मिला कर चूर्ण को शहद के साथ निर्मित कारव्यादी बटी का सेवन करें।
अरुचि, कास रोग (खाँसी), श्र्वाष, प्रति श्याय (जुकाम) और कफ विकार :: अदरक के रस के साथ मधु इनका का नाश करते हैं। Lose of taste, cough, difficulty in breathing, sneezing.
VOMITING AND THIRST-प्यास और वमन-उल्टी :: वट-वटा ङ्कुर, काकड़ा सींगी, शिलाजीत, लोध, अनारदाना और मुलहटी के चूर्ण में सामान भाग में मिश्री मिला कर मधु के साथ अवलेह (चटनी) बनायें तथा चावल के पानी के साथ लें। Thirst, vomiting.
कफ युक्त रक्त, प्यास, खाँसी एवं ज्वर :: गिलोय, अडूसा, लोध और पीपल को शहद के साथ प्रयोग करें। Fever, cough, thirst and sputum with blood.
SNAKE POISONING & COUGH CURE :: सर्प विष व कास: शिरीष पुष्प के स्वर रस में भावित सफेद मिर्च लाभ प्रद हैं।
CURE FROM PAIN वेदना-दर्द-पीड़ा :: मसूर सभी प्रकार की वेदना को नष्ट करता है।
पित्त दोष :: चौंराई-चौलाई का साग।
PROTECTION FROM POISONING-विष नाशक :: मेउड़, शारिवा, सेरू और अङ्कोल।
मूर्छा, मदात्यय रोग :: सौंठ, गिलोय, छोटी कटेरी, पोकर मूल, पीपला मूल और पीपल का क्वाथ।
उन्माद :: हींग, काला नमक एवं व्योष (सौंठ, मिर्च, पीपल), ये सब दो दो पल लेकर 4 सेर घृत और घृत से 4 गुनी मात्रा में गौ मूत्र में सिद्ध करने पर प्रयोग करें।
उन्माद और अपस्मार रोग का नाश व मेधा वर्धक :: शंख पुष्पी, वच और मीठा कूट से सिद्ध ब्राह्मी रस को मिला कर इनकी गुटिका बना लें।
LEPROSY कुष्ठ नाशक :: (1). हर्रे, भिलावा, तेल, गुड़ और पिंड खजूर। (2). वाकुचि को तिलों के साथ एक वर्ष तक खाया जाये तो, वह साल भर में कुष्ठ रोग दूर कर देती है। (3). परवल की पत्ती, त्रिफला, नीम की छाल, गिलोय, पृश्र्निपर्णी, अडूसे के पत्ते के साथ तथा करज्ज-इनको सिद्ध करने वाला घृत। यह वज्रक कहलाता है। (4). हर्रे के साथ पंचगव्य या घृत का प्रयोग। इस उपाय से कुष्ठ, अस्सी प्रकार के वात रोग, चालीस प्रकार के पित्त रोग और बीस प्रकार के क़फ़ रोग, खाँसी, पीनस (बिगड़ा जुकाम) ठीक हो जाते हैं। (5). वाचुकी के पञ्चांग के चूर्ण को खैर (कत्था) के क्वाथ के साथ 6 माह तक प्रयोग करने से कुष्ठ पर काबू हो जाता है।
अर्श रोग :: (1). नीम की छाल, परवल, कंटकारी-पंचांग, गिलोय और अडूसा-इन सबको दस दस पल लेकर कूट लें। 16 सेर पानी में क्वाथ बनाकर उसमें सेर भर घृत और 20 तोले त्रिफला चूर्ण का कल्क बनाकर डाल दें और चतुर्थांश शेष रहने तक पकाएं। (2). त्रिकुट युक्त घृत को तिगुने पलाश भस्म-युक्त जल में सिद्ध करके पीना है। (3). पाठा, चित्रक, हल्दी, त्रिफला और व्योष (सौंठ, मिर्च, पीपल) इनका चूर्ण तक्र के साथ पीने से अथवा (4). गुड़ के साथ हरीतकी खाने से अर्श रोग दूर होता है।
उपदंश की शान्ति :: त्रिफला के क्वाथ या भ्रंग राज के रस से व्र णों को धोयें। परवल की पत्ती के चूर्ण के साथ अनार की छाल या गज पीपर या त्रिफला का चूर्ण उस पर छोड़ें।
PROTECTION FROM VOMITING वमन :: त्रिफला, लोह्चूर्ण, मुलहटी, आर्कव, (कुकुरमांगरा), नील कमल, कालि मिर्च और सैन्धव नमक सहित पकाये हुए तैल के मर्दन से वमन की शान्ति होती है ।
वमन कारक :: मुलहठी, बच, पिप्पली-बीज, कुरैया की छाल का कल्क और नीम का क्वाथ घौंट देने वमन कारक होता है।
PREVENTION FROM GREYING HAIR-बाल पकने-सफ़ेद होने से रोकना :: दूध, मार्कव-रस, मुलहटी और नील कमल, इनकी दो सेर मात्रा को पका कर एक पाव तैल में बदल कर नस्य का प्रयोग करें।
ज्वर, कुष्ठ, फोड़ा, फुँसी, चकत्ते :: नीम की छाल, परवल की पत्ती, गिलोय, खैर की छाल, अडूसा या चिरायता, पाठा, त्रिफला और लाल चन्दन। Fever, leprosy, boils, spots.
ज्वर और विस्फोटक रोग :: परवल की पत्ती, गिलोय, चिरायता, अडूसा, मजीठ एवं पित्त पापड़ा-इनके क्वाथ में खदिर मिलाकर लिया जाये।
ज्वर, विद्रधि तथा शोथ :: दश मूल, गिलोय, हर्रे, गधह पूर्णा, सहजना एवं सौंठ ।
व्रण शोधक :: महुआ और नीम की पत्ती का लेप।
बाह्य शोधन :: त्रिफला (हेड़, बहेड़ा, आंवला), खैर (कत्था), दारू हल्दी, बरगद की छाल , बरियार, कुशा, नीम के पत्ते तथा मूली के पत्ते का क्वाथ।
Destruction of worms in wound, घाव के क्रमि नष्ट करना :: करंज, नीम, और मेउड़ का रस।
व्रण रोपण :: धय का फूल, सफ़ेद चन्दन, खरेठी, मजीठ, मुलहठी, कमल, देवदारु तथा मेद घाव को भरने वाले हैं।
नाड़ी व्रण, दुष्ट व्रण, शूल और भगन्दर :: गुग्गुल, त्रिफला, पीपल, सौंठ, मिर्च, पीपर इन सबको समान भाग में पीस कर घृत में मिला कर प्रयोग करें।
कफ और वात रोग :: गौ मूत्र में भिगोकर शुद्ध की हुई हरीतकी (छोटी हर्र) को रेडी के तेल में भून कर सैंधा नमक के साथ प्रात प्रति दिन प्रयोग करें। ऐसी हरितकी कफ व वात से होने वाले रोगों को नष्ट करती है।
कफ प्रधान व वात प्रधान प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए :: सौंठ, मिर्च, पीपल और त्रिफला का क्वाथ यवक्षार और लवण मिलाकर पीने से विरेचन का काम करता है और कफ वृधि को रोकता है।
आम वात नाशक :: पीपल, पीपला मूल, वच, चित्रक व सौंठ का क्वाथ या पेय बनाकर पीयें।
वात एवं संधि, अस्थि एवं मज्जा गत, आमवात :: रास्ना, गिलोय, रेंडकी की छाल, देवदारु और सौंठ का क्वाथ में पीना चाहिये अथवा सौंठ के जल के साथ दशमूल का क्वाथ पीना चाहिये।
आम वात, कटिशूल और पांडु रोग :: सौंठ,एवं गोखरू का क्वाथ प्रतिदिन प्रात: सेवन करना है। शाखा एवं पत्र सहित प्रसारिणी (छुई मुई) का तैल भी इस रोग में लाभप्रद है।
वात रक्त रोग :: गिलोय का स्वरस, कल्क, चूर्ण या क्वाथ का दीर्घ काल तक प्रयोग करना चाहिए।
वात रक्त नाशक :: वर्धमान पिप्पली या गुड़ के साथ हर्रे का सेवन करना चाहिए।
वात रक्त-दाह युक्त रोग :: पटोल्पत्र, त्रिफला, राई, कुटकी, और गिलोय का पाक तैयार करें।
वात जनित पीड़ा :: गुग्गुल को ठन्डे-गरम जल से, त्रिफला को सम शीतोष्ण जल से अथवा खरेठी, पुनर्नवा, एरंड मूल, दोनों कटेरी, गोखरू, का क्वाथ, हींग तथा लवण के साथ। एक तोला पीपला मूल,सैन्धव, सौवर्चल, विड्, सामुद्र एवं औद्भिद-पाँचों नमक, पिप्पली, चित्ता, सौंठ, त्रिफला, निशोथ, वच, यवक्षार, सर्जक्षार, शीतला, दंती, स्वर्ण क्षीरी (सत्य नाशी) और काकड़ा सिंगी-इनकी बेर के बराबर गुटिका बनायें और कांजी के साथ सेवन करें-शोथ तथा उससे हुए में भी इसका सेवन करें। उदर वृद्धि में निशोथ का प्रयोग न करें।
गलगंड और गलगंड माल :: फूल प्रियंगु, कमल, सँभालू, वायविडंग, चित्रक, सैंधव लवण, रास्ना, दुग्ध, देवदारु और वच से सिद्ध चौगुना कटु द्रव्य युक्त तैल मर्दन करने से (या जल के साथ ही पीसकर लेप करने से)।
क्षय रोग-TUBERCULOSIS :: (1). कचूर, नागकेसर, कुमुद का पकाया हुआ क्वाथ तथा क्षीर विदारी, पीपल और अडूसा का कल्क दूध के साथ पका कर लेने से लाभ होता है। (2). शतावरी, विदारीकंद, बड़ी हर्रे, तीनों खरेटी, असगन्ध, गदहपूर्णा और गोखरू का चरण शहद और घी के साथ चाटना चाहिये।
गुल्म रोग, उदर रोग, शूल और कास रोग :: वचा, विडलवण, अभया (बड़ी हर्रे), सौंठ, हींग, कूठ, चित्रक और अजवाइन, इनके क्रमश: दो, तीन, छ:, चार, एक, सात, पाँच और चार भाग ग्रहण करके चूर्ण बनायें।
गुल्म और पलीहा :: पाठा, दन्ती मूल, त्रिकटु (सौंठ, मिर्च, पीपल) त्रिफला और चित्ता का चूर्ण गौमूत्र के पीस कर गुटिका बनालें।
वात-पित्त :: अडूसा, नीम और परवल के साथ।
PROTECTION FROM WORMS कृमि नाशक :: (1). वाय विडंग का चूर्ण शहद के साथ, (2). विडंग, सैंधा नमक, यव क्षार एवं गौमूत्र के साथ हर्रे भी लेने पर।
रक्तातिसार :: शल्लकी (शाल विशेष), बेर, जामुन, प्रियाल, आम्र और अर्जुन इन वृक्षौं की छाल का चूर्ण बना कर मधु में मिला कर दूध के साथ लेना है।
DYSENTERY DIARRHOEA अतिसार :: कच्चे बेल का सूखा गूदा, आम की छाल, धाय का फूल, पाठा, सौंठ और मोच रस (कदली स्वरस); इन सबका समान भाग लेकर चूर्ण बना लें गुड मिश्रित तक्र के साथ पीयें।
गुद भ्रंश रोग :: चान्गेरी, बेर, दही का पानी, सौंठ और यवक्षार-इनका घृत सही क्वाथ पीने से।
प्रदर रोग :: मजीठ, धाय के फूल, लोध, नील कमल-इनको दूध के साथ स्त्रियों को लेना चाहिये।
प्रदर रोग नाशक :: पीली कट सरैया, मुलहठी और चन्दन।
PROTECTION OF FETUS गर्भ स्थिर करना :: श्वेत कमल और नील कमल की जड़ तथा मुलहठी, शर्करा और तिल-इनका चूर्ण गर्भपात की आशंका होने पर गर्भ को स्थिर करने में सहायक है।
शिरो रोग का नाश :: देव दारू, अभ्रक, कूठ, खस और सौंठ-इनको कांजी में पीस कर तैल मिला कर, लैप करने से शिरोरोग का नाश होता है।
कर्ण शूल शमन :: सैन्धव-लवण को तैल में सिद्ध करके छान लें-हल्का गरम तैल कान में डालने से फायदा होगा।
कर्णशूल हारी :: लहसुन, अदरक, सहजन और केला-इनमें से प्रत्येक का रस कर्णशूल हारी है।
तिमिर रोग नाशक :: बरियार, शतावरी, रास्ना, गिलोय, कटसरैया और त्रिफला-इनको सिद्ध करके घृत का पान या इनके सहित घृत का उपयोग।
आँखों (चक्षुश्य), ह्रदय, विरेचक और कफ रोग नाशक :: त्रिफला, त्रिकुट एवं सेंधव नमक-इनसे सिद्ध किये हुए घृत का पान-आँखों, ह्रदय, विरेचक और कफ रोग नाश के लिए हितकर है।
दिनौंधी, रतौंधी :: गाय के गोबर के रस के साथ नील कमल के पराग की गुटिका का अञ्जन।
विरेचक :: (1). खूब चिकना तथा रेड़ी-जैसे तैल से स्निग्ध किया गया या पकाया गया हुआ यव का पानी विरेचक होता है। इसका अनुचित प्रयोग मंदाग्नि, उदार में भारीपन और अरुचि को उत्पन्न करता है। (2). निशोथ एवं गुड़ के साथ त्रिफला का क्वाथ।
GENERAL PROTECTION FROM ALL DISEASES सर्व रोग नाशक व विरेचक :: (1). हर्रे, सैन्धव लवण और पीपल-इनके समान भाग का चूर्ण गर्म जल के साथ लें। यह नाराच-संज्ञक चूर्ण सर्व रोग नाशक है। (2). कलौंजी।
36 VITAL HERBS :: These herbs are divine in effect and may boost-prolong, limitless life span, if used under controlled conditions and specifications. Celibacy-chastity is an essential requirement. These herbs are said to have been used by Brahma Ji, Rudr and Indr.
ब्रह्मा, रूद्र और इंद्र द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली अमरीकरण प्रदायक औषधियाँ :: हरीतकी (हर्रे), अक्षधात्री (आंवला), मरीच (गोल मिर्च), पिप्पली-छोटी, शिफा (जटा माँसी), वह्नि (भिलावा), शुण्ठी (सौंठ), पीपल-बड़ी, गुडुची (गिलोय), वच, निम्ब, वासक (अडूसा), शतमूली (शतावरी), सैंधव (सेंधा नमक), सिंधुवार, कंटकारी (कटेरी), गोक्षुर (गोखरू), बिल्व (बेल), पुनर्नवा (गदह पूर्णा), बला (बरियारा), रेंड, मुण्डी, रुचक (बिजौरा, नींबू), भ्रंग (दालचीनी), क्षार (खारा नमक या यव क्षार), पर्पट (पित्त पापड़ा), धन्याक (धनिया), यवानी (अजवाइन), जीरक (जीरा), शत पुष्पी (सौंफ), विडंग (वाय विडंग), खदिर (खैर), कृत माल (अमलतास), हल्दी, वचा, सिद्धार्थ (सफ़ेद सरसों)।
VITAL COMPOSITIONS अत्याधिक उपयोगी औषधी समूह ::
"ॐ ह्रूं स: एवं ॐ जूं स:" मृतुन्जय मन्त्र हैं। यदि विधि-विधान के साथ इनका निरन्तर जप किया जाये तो अपेक्षित परिणाम मिलते हैं।
वात ज्वर :: बिल्वादि पंचमूल-बेल, सोनापाठा, गम्भार, पाटन, एवं अरणी का काढ़ा प्रयोग करें।
पाचन :: पिप्पली मूल, गिलोय और सोंठ का क्वाथ प्रयोग करें।
ज्वर :: आँवला, अभया (बड़े हरै), पीपल और चित्रक-यह आमल क्यादि क्वाथ सब प्रकार के ज्वर का नाश करता है।
खाँसी, ज्वर, अपाचन, पार्श्व शूल और कास (खाँसी) :: दश मूल-बिल्वमूल, अरणी, सोनापाठा, गम्भारी, पाटल, शालपर्णी, गोखुरू, पृष्टपर्णी, बृहती, (बड़ी कटेर) का क्वाथ व कुश के मूल का क्वाथ-प्रयोग करें। Cough associated with fever, indigestion, extreme one side stomach pain.
वात और पित्त ज्वर :: गिलोय, पित्त पापड़ा, नगर मोथा, चिरायता, सौंठ-यह पञ्च भद्र क्वाथ, वात और पित्त ज्वर में देना चाहिये।
विरेचक व सम्पूर्ण ज्वर :: निशोथ, विशाला (इंद्र वारुणी), कुटकी, त्रिफला, अमलतास का क्वाथ यवक्षार मिला कर पिलायें।
COUGH CURE-कास रोग (खाँसी) :: (1). देवदारु, खरेठी, अडूसा, त्रिफला, व्योष (सौंठ, काली मिर्च, पीपल), पद्द्काष्ठ, वाय विडंग और मिश्री सभी सामान भाग में, (2). अडूसे का रस, मधु और ताम्र भस्म सामान मात्र में लें। A combination of these in equal quantity cures, 5 different kinds of cough.
HEART TROUBLE-ह्रदय रोग, गृहणी, हिक्का, श्र्वाष, पार्श्व रोग व कास रोग :: दशमूल, कचूर, रास्ना, पीपल, बिल्व, पोकर मूल, काकड़ा सिंगी, भुई आँवला, भार्गी, गिलोय और पान इनसे विधि वत सिद्ध किया हुआ क्वाथ या यवागू का पान करें। Heart trouble, hiccups, pain in one side of stomach, cough, breathing.
हिक्का-हिचकी :: मुलहठी (चूर्ण), के साथ पीपल, गुड के साथ नागर और तीनों नमक (सैंधा नमक, विड नमक, काला नमक)।
अरुचि रोग :: कारवी अजाजी (काला जीरा, सफ़ेद जीरा), काली मिर्च, मुन्नका, वृक्षाम्ल (इमली), अनारदाना, काला नमक और गुड़, इन्हें समान भाग में मिला कर चूर्ण को शहद के साथ निर्मित कारव्यादी बटी का सेवन करें।
अरुचि, कास रोग (खाँसी), श्र्वाष, प्रति श्याय (जुकाम) और कफ विकार :: अदरक के रस के साथ मधु इनका का नाश करते हैं। Lose of taste, cough, difficulty in breathing, sneezing.
VOMITING AND THIRST-प्यास और वमन-उल्टी :: वट-वटा ङ्कुर, काकड़ा सींगी, शिलाजीत, लोध, अनारदाना और मुलहटी के चूर्ण में सामान भाग में मिश्री मिला कर मधु के साथ अवलेह (चटनी) बनायें तथा चावल के पानी के साथ लें। Thirst, vomiting.
कफ युक्त रक्त, प्यास, खाँसी एवं ज्वर :: गिलोय, अडूसा, लोध और पीपल को शहद के साथ प्रयोग करें। Fever, cough, thirst and sputum with blood.
SNAKE POISONING & COUGH CURE :: सर्प विष व कास: शिरीष पुष्प के स्वर रस में भावित सफेद मिर्च लाभ प्रद हैं।
CURE FROM PAIN वेदना-दर्द-पीड़ा :: मसूर सभी प्रकार की वेदना को नष्ट करता है।
पित्त दोष :: चौंराई-चौलाई का साग।
PROTECTION FROM POISONING-विष नाशक :: मेउड़, शारिवा, सेरू और अङ्कोल।
मूर्छा, मदात्यय रोग :: सौंठ, गिलोय, छोटी कटेरी, पोकर मूल, पीपला मूल और पीपल का क्वाथ।
उन्माद :: हींग, काला नमक एवं व्योष (सौंठ, मिर्च, पीपल), ये सब दो दो पल लेकर 4 सेर घृत और घृत से 4 गुनी मात्रा में गौ मूत्र में सिद्ध करने पर प्रयोग करें।
उन्माद और अपस्मार रोग का नाश व मेधा वर्धक :: शंख पुष्पी, वच और मीठा कूट से सिद्ध ब्राह्मी रस को मिला कर इनकी गुटिका बना लें।
LEPROSY कुष्ठ नाशक :: (1). हर्रे, भिलावा, तेल, गुड़ और पिंड खजूर। (2). वाकुचि को तिलों के साथ एक वर्ष तक खाया जाये तो, वह साल भर में कुष्ठ रोग दूर कर देती है। (3). परवल की पत्ती, त्रिफला, नीम की छाल, गिलोय, पृश्र्निपर्णी, अडूसे के पत्ते के साथ तथा करज्ज-इनको सिद्ध करने वाला घृत। यह वज्रक कहलाता है। (4). हर्रे के साथ पंचगव्य या घृत का प्रयोग। इस उपाय से कुष्ठ, अस्सी प्रकार के वात रोग, चालीस प्रकार के पित्त रोग और बीस प्रकार के क़फ़ रोग, खाँसी, पीनस (बिगड़ा जुकाम) ठीक हो जाते हैं। (5). वाचुकी के पञ्चांग के चूर्ण को खैर (कत्था) के क्वाथ के साथ 6 माह तक प्रयोग करने से कुष्ठ पर काबू हो जाता है।
अर्श रोग :: (1). नीम की छाल, परवल, कंटकारी-पंचांग, गिलोय और अडूसा-इन सबको दस दस पल लेकर कूट लें। 16 सेर पानी में क्वाथ बनाकर उसमें सेर भर घृत और 20 तोले त्रिफला चूर्ण का कल्क बनाकर डाल दें और चतुर्थांश शेष रहने तक पकाएं। (2). त्रिकुट युक्त घृत को तिगुने पलाश भस्म-युक्त जल में सिद्ध करके पीना है। (3). पाठा, चित्रक, हल्दी, त्रिफला और व्योष (सौंठ, मिर्च, पीपल) इनका चूर्ण तक्र के साथ पीने से अथवा (4). गुड़ के साथ हरीतकी खाने से अर्श रोग दूर होता है।
उपदंश की शान्ति :: त्रिफला के क्वाथ या भ्रंग राज के रस से व्र णों को धोयें। परवल की पत्ती के चूर्ण के साथ अनार की छाल या गज पीपर या त्रिफला का चूर्ण उस पर छोड़ें।
PROTECTION FROM VOMITING वमन :: त्रिफला, लोह्चूर्ण, मुलहटी, आर्कव, (कुकुरमांगरा), नील कमल, कालि मिर्च और सैन्धव नमक सहित पकाये हुए तैल के मर्दन से वमन की शान्ति होती है ।
वमन कारक :: मुलहठी, बच, पिप्पली-बीज, कुरैया की छाल का कल्क और नीम का क्वाथ घौंट देने वमन कारक होता है।
PREVENTION FROM GREYING HAIR-बाल पकने-सफ़ेद होने से रोकना :: दूध, मार्कव-रस, मुलहटी और नील कमल, इनकी दो सेर मात्रा को पका कर एक पाव तैल में बदल कर नस्य का प्रयोग करें।
ज्वर, कुष्ठ, फोड़ा, फुँसी, चकत्ते :: नीम की छाल, परवल की पत्ती, गिलोय, खैर की छाल, अडूसा या चिरायता, पाठा, त्रिफला और लाल चन्दन। Fever, leprosy, boils, spots.
ज्वर और विस्फोटक रोग :: परवल की पत्ती, गिलोय, चिरायता, अडूसा, मजीठ एवं पित्त पापड़ा-इनके क्वाथ में खदिर मिलाकर लिया जाये।
ज्वर, विद्रधि तथा शोथ :: दश मूल, गिलोय, हर्रे, गधह पूर्णा, सहजना एवं सौंठ ।
व्रण शोधक :: महुआ और नीम की पत्ती का लेप।
बाह्य शोधन :: त्रिफला (हेड़, बहेड़ा, आंवला), खैर (कत्था), दारू हल्दी, बरगद की छाल , बरियार, कुशा, नीम के पत्ते तथा मूली के पत्ते का क्वाथ।
Destruction of worms in wound, घाव के क्रमि नष्ट करना :: करंज, नीम, और मेउड़ का रस।
व्रण रोपण :: धय का फूल, सफ़ेद चन्दन, खरेठी, मजीठ, मुलहठी, कमल, देवदारु तथा मेद घाव को भरने वाले हैं।
नाड़ी व्रण, दुष्ट व्रण, शूल और भगन्दर :: गुग्गुल, त्रिफला, पीपल, सौंठ, मिर्च, पीपर इन सबको समान भाग में पीस कर घृत में मिला कर प्रयोग करें।
कफ और वात रोग :: गौ मूत्र में भिगोकर शुद्ध की हुई हरीतकी (छोटी हर्र) को रेडी के तेल में भून कर सैंधा नमक के साथ प्रात प्रति दिन प्रयोग करें। ऐसी हरितकी कफ व वात से होने वाले रोगों को नष्ट करती है।
कफ प्रधान व वात प्रधान प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए :: सौंठ, मिर्च, पीपल और त्रिफला का क्वाथ यवक्षार और लवण मिलाकर पीने से विरेचन का काम करता है और कफ वृधि को रोकता है।
आम वात नाशक :: पीपल, पीपला मूल, वच, चित्रक व सौंठ का क्वाथ या पेय बनाकर पीयें।
वात एवं संधि, अस्थि एवं मज्जा गत, आमवात :: रास्ना, गिलोय, रेंडकी की छाल, देवदारु और सौंठ का क्वाथ में पीना चाहिये अथवा सौंठ के जल के साथ दशमूल का क्वाथ पीना चाहिये।
आम वात, कटिशूल और पांडु रोग :: सौंठ,एवं गोखरू का क्वाथ प्रतिदिन प्रात: सेवन करना है। शाखा एवं पत्र सहित प्रसारिणी (छुई मुई) का तैल भी इस रोग में लाभप्रद है।
वात रक्त रोग :: गिलोय का स्वरस, कल्क, चूर्ण या क्वाथ का दीर्घ काल तक प्रयोग करना चाहिए।
वात रक्त नाशक :: वर्धमान पिप्पली या गुड़ के साथ हर्रे का सेवन करना चाहिए।
वात रक्त-दाह युक्त रोग :: पटोल्पत्र, त्रिफला, राई, कुटकी, और गिलोय का पाक तैयार करें।
वात जनित पीड़ा :: गुग्गुल को ठन्डे-गरम जल से, त्रिफला को सम शीतोष्ण जल से अथवा खरेठी, पुनर्नवा, एरंड मूल, दोनों कटेरी, गोखरू, का क्वाथ, हींग तथा लवण के साथ। एक तोला पीपला मूल,सैन्धव, सौवर्चल, विड्, सामुद्र एवं औद्भिद-पाँचों नमक, पिप्पली, चित्ता, सौंठ, त्रिफला, निशोथ, वच, यवक्षार, सर्जक्षार, शीतला, दंती, स्वर्ण क्षीरी (सत्य नाशी) और काकड़ा सिंगी-इनकी बेर के बराबर गुटिका बनायें और कांजी के साथ सेवन करें-शोथ तथा उससे हुए में भी इसका सेवन करें। उदर वृद्धि में निशोथ का प्रयोग न करें।
गलगंड और गलगंड माल :: फूल प्रियंगु, कमल, सँभालू, वायविडंग, चित्रक, सैंधव लवण, रास्ना, दुग्ध, देवदारु और वच से सिद्ध चौगुना कटु द्रव्य युक्त तैल मर्दन करने से (या जल के साथ ही पीसकर लेप करने से)।
क्षय रोग-TUBERCULOSIS :: (1). कचूर, नागकेसर, कुमुद का पकाया हुआ क्वाथ तथा क्षीर विदारी, पीपल और अडूसा का कल्क दूध के साथ पका कर लेने से लाभ होता है। (2). शतावरी, विदारीकंद, बड़ी हर्रे, तीनों खरेटी, असगन्ध, गदहपूर्णा और गोखरू का चरण शहद और घी के साथ चाटना चाहिये।
गुल्म रोग, उदर रोग, शूल और कास रोग :: वचा, विडलवण, अभया (बड़ी हर्रे), सौंठ, हींग, कूठ, चित्रक और अजवाइन, इनके क्रमश: दो, तीन, छ:, चार, एक, सात, पाँच और चार भाग ग्रहण करके चूर्ण बनायें।
गुल्म और पलीहा :: पाठा, दन्ती मूल, त्रिकटु (सौंठ, मिर्च, पीपल) त्रिफला और चित्ता का चूर्ण गौमूत्र के पीस कर गुटिका बनालें।
वात-पित्त :: अडूसा, नीम और परवल के साथ।
PROTECTION FROM WORMS कृमि नाशक :: (1). वाय विडंग का चूर्ण शहद के साथ, (2). विडंग, सैंधा नमक, यव क्षार एवं गौमूत्र के साथ हर्रे भी लेने पर।
रक्तातिसार :: शल्लकी (शाल विशेष), बेर, जामुन, प्रियाल, आम्र और अर्जुन इन वृक्षौं की छाल का चूर्ण बना कर मधु में मिला कर दूध के साथ लेना है।
DYSENTERY DIARRHOEA अतिसार :: कच्चे बेल का सूखा गूदा, आम की छाल, धाय का फूल, पाठा, सौंठ और मोच रस (कदली स्वरस); इन सबका समान भाग लेकर चूर्ण बना लें गुड मिश्रित तक्र के साथ पीयें।
गुद भ्रंश रोग :: चान्गेरी, बेर, दही का पानी, सौंठ और यवक्षार-इनका घृत सही क्वाथ पीने से।
प्रदर रोग :: मजीठ, धाय के फूल, लोध, नील कमल-इनको दूध के साथ स्त्रियों को लेना चाहिये।
प्रदर रोग नाशक :: पीली कट सरैया, मुलहठी और चन्दन।
PROTECTION OF FETUS गर्भ स्थिर करना :: श्वेत कमल और नील कमल की जड़ तथा मुलहठी, शर्करा और तिल-इनका चूर्ण गर्भपात की आशंका होने पर गर्भ को स्थिर करने में सहायक है।
शिरो रोग का नाश :: देव दारू, अभ्रक, कूठ, खस और सौंठ-इनको कांजी में पीस कर तैल मिला कर, लैप करने से शिरोरोग का नाश होता है।
कर्ण शूल शमन :: सैन्धव-लवण को तैल में सिद्ध करके छान लें-हल्का गरम तैल कान में डालने से फायदा होगा।
कर्णशूल हारी :: लहसुन, अदरक, सहजन और केला-इनमें से प्रत्येक का रस कर्णशूल हारी है।
तिमिर रोग नाशक :: बरियार, शतावरी, रास्ना, गिलोय, कटसरैया और त्रिफला-इनको सिद्ध करके घृत का पान या इनके सहित घृत का उपयोग।
आँखों (चक्षुश्य), ह्रदय, विरेचक और कफ रोग नाशक :: त्रिफला, त्रिकुट एवं सेंधव नमक-इनसे सिद्ध किये हुए घृत का पान-आँखों, ह्रदय, विरेचक और कफ रोग नाश के लिए हितकर है।
दिनौंधी, रतौंधी :: गाय के गोबर के रस के साथ नील कमल के पराग की गुटिका का अञ्जन।
विरेचक :: (1). खूब चिकना तथा रेड़ी-जैसे तैल से स्निग्ध किया गया या पकाया गया हुआ यव का पानी विरेचक होता है। इसका अनुचित प्रयोग मंदाग्नि, उदार में भारीपन और अरुचि को उत्पन्न करता है। (2). निशोथ एवं गुड़ के साथ त्रिफला का क्वाथ।
GENERAL PROTECTION FROM ALL DISEASES सर्व रोग नाशक व विरेचक :: (1). हर्रे, सैन्धव लवण और पीपल-इनके समान भाग का चूर्ण गर्म जल के साथ लें। यह नाराच-संज्ञक चूर्ण सर्व रोग नाशक है। (2). कलौंजी।
36 VITAL HERBS :: These herbs are divine in effect and may boost-prolong, limitless life span, if used under controlled conditions and specifications. Celibacy-chastity is an essential requirement. These herbs are said to have been used by Brahma Ji, Rudr and Indr.
ब्रह्मा, रूद्र और इंद्र द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली अमरीकरण प्रदायक औषधियाँ :: हरीतकी (हर्रे), अक्षधात्री (आंवला), मरीच (गोल मिर्च), पिप्पली-छोटी, शिफा (जटा माँसी), वह्नि (भिलावा), शुण्ठी (सौंठ), पीपल-बड़ी, गुडुची (गिलोय), वच, निम्ब, वासक (अडूसा), शतमूली (शतावरी), सैंधव (सेंधा नमक), सिंधुवार, कंटकारी (कटेरी), गोक्षुर (गोखरू), बिल्व (बेल), पुनर्नवा (गदह पूर्णा), बला (बरियारा), रेंड, मुण्डी, रुचक (बिजौरा, नींबू), भ्रंग (दालचीनी), क्षार (खारा नमक या यव क्षार), पर्पट (पित्त पापड़ा), धन्याक (धनिया), यवानी (अजवाइन), जीरक (जीरा), शत पुष्पी (सौंफ), विडंग (वाय विडंग), खदिर (खैर), कृत माल (अमलतास), हल्दी, वचा, सिद्धार्थ (सफ़ेद सरसों)।
VITAL COMPOSITIONS अत्याधिक उपयोगी औषधी समूह ::
अनुक्रम
|
औषधियों की नामावली
|
उपयोगी
|
प्रथम चतुष्क
विशेष संकेत
|
1
भृंग राज
ऋत्विज 16
|
2
सहदेवी
वह्नि 3 गुण
|
3 मयूर शिखा
नाग 8 |
4
पुत्र जीवक पक्ष 2 नेत्र
| धूप-उद्वर्तन |
द्वितीय चतुष्क
विशेष संकेत
|
5
अध: पुष्पा
मुनि 7 शैल
|
6
रुदंतिका
मनु 14 इंद्र
|
7
कुमारी
शिव 11
|
8
रूद्र जटा
वसु 8
| अनुलेप |
तृतीय चतुष्क
विशेष संकेत
|
9
विष्णु क्रांता
दिशा 10
|
10
श्वेतार्क
शर 5
|
11
लज्जालुका वेद 4 युग़
|
12
मोह्लता
ग्रह 9
| अञ्जन |
चतुर्थ चतुष्क
विशेष संकेत
|
13
कृष्ण धत्तूर
ऋतु 6
|
14
गोरक्षक कर्कटी सूर्य 12 |
15
मेष श्रंगी
चंद्रमा 1
|
16
स्नुही
तिथि 15
| स्नान |
मुराSहिकृतिनिर्गुण्डीवचा: कुष्ठं च सर्षपा:।
बिल्वपत्रमयो धूपः कुमारायुः प्रदोषकृत्॥
मुरा, साँप की कैंचुली, निर्गुन्डी, वचा, कुष्ठ, सरसों तथा बिल्व इनकी धूप बालक की आयु को पुष्ट करनेवाला होती है। गाय का घी, पीली सरसों, सेंधा नमक, निम्ब पत्र तथा साँप की कैंचुली आदि द्रव्यों की धूप सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश करके वातावरण को शुद्ध करते हैं। ये सभी वस्तुएँ कृमि नाशक (जीवाणु) तथा भूत-प्रेतादि के अपवर्क तथा पवित्र करने वाले द्रव्य हैं।
धूप व उबटन :: भृंगराज (भँगरैया), सहदेवी (सह्देइया), मयूर शिखा (मोर की शिखा), पुत्र जीवक की छाल-इनके चूर्ण से धूप बनायें अथवा पानी के साथ पीस कर उत्तम उबटन बनायें और अपने अंगों में लगायें।
अञ्जन :: अपराजिता (विष्णु क्रांता), श्वेतार्क, लाजवंतीलता (लज्जालुका) और मोहलत से अञ्जन तैयार कर आँखों में लगायें।
स्नान :: कृष्ण धत्तूर (काला धतूरा), गोरक्षक कर्कटी (गोरख ककड़ी), मेष श्रंगी (मेढ़ा सिंगी) और स्नुही (सेंहुड) से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये।
उबटन या अनुलेपन :: अध: पुष्पा, रुदंतिका (रूद्र दंती), कुमारी और रूद्रजटा को पीस कर अनुलेपन या उबटन बनायें।
सम्मोहन-HYPNOSIS :: (1). ऋत्विक् (भँगरैया), वेद (लाजवंती), ऋतु (काला धतुरा) तथा नेत्र (पुत्र जीवक) इन औषधियों से तैयार किया गया चन्दन का तिलक, सब लोगों को मोहित करने वाला होता है।
(2). तिथि (सेंहुड), दिक् (अपराजिता), युग (लाजवंती) और बाण (श्वेतार्क); इन औषधियों के द्वारा बने गई गुटिका (गोली) लोगों को वश में करने वाली होती है। भक्ष्य-भोज्य, पेय पदार्थ में एक गोली मिला दें।
(3). ग्रह (मोह्लता), अब्धि (अध: पुष्पा), सूर्य (गोरक्षक कर्कटी) तथा त्रिदश (काला धतुरा); इन औषधियों द्वारा बनाई बटी सब को वश में करने वाली होती है (SEDATIVE)।
उबटन या अनुलेपन :: अध: पुष्पा, रुदंतिका (रूद्र दंती), कुमारी और रूद्रजटा को पीस कर अनुलेपन या उबटन बनायें।
सम्मोहन-HYPNOSIS :: (1). ऋत्विक् (भँगरैया), वेद (लाजवंती), ऋतु (काला धतुरा) तथा नेत्र (पुत्र जीवक) इन औषधियों से तैयार किया गया चन्दन का तिलक, सब लोगों को मोहित करने वाला होता है।
(2). तिथि (सेंहुड), दिक् (अपराजिता), युग (लाजवंती) और बाण (श्वेतार्क); इन औषधियों के द्वारा बने गई गुटिका (गोली) लोगों को वश में करने वाली होती है। भक्ष्य-भोज्य, पेय पदार्थ में एक गोली मिला दें।
(3). ग्रह (मोह्लता), अब्धि (अध: पुष्पा), सूर्य (गोरक्षक कर्कटी) तथा त्रिदश (काला धतुरा); इन औषधियों द्वारा बनाई बटी सब को वश में करने वाली होती है (SEDATIVE)।
स्त्री वश में करना-SUBJECTION OF WOMAN :: (1). सूर्य (गोरख ककड़ी), त्रिदश (काला धतुरा), पक्ष (पत्र जीवक) और पर्वत (अध: पुष्पा); इन औषधियों का अपने शरीर पर लेपन करने स्त्री वश में हो जाती है।
(2). चंद्रमा (मेढ़ा सिंगी), इंद्र (रुदंतिका), नाग (मोरशिखा), रूद्र (घी कुंआर); इन औषधियोँ को योनि में लेप करने से स्रियाँ वश में होतीं हैं।
सुख पूर्वक प्रसव-COMFORTABLE-EASY DELIVERY :: त्रिदश (काला धतुरा), अक्शि (पुत्र जीवक), शिव (घृत कुमारी) और सर्प (मयूर शिखा) से उपलक्षित दवाओं का लेप करने से स्त्री सुख पूर्वक प्रसव कर सकती है।
जुए में विजय-VICTORY IN GAMBLING :: सात (अध: पुष्पा), दिशा (अपराजिता), मुनि (अध: पुष्पा), तथा रंध्र (मोहलता) का लेपन वस्त्र में करने से जुए में विजय प्राप्त होती है।
पुत्रोत्पत्ति-BIRTH OF SON :: काला धतुरा, नेत्र (पुत्र जीवक), अब्धि (अध: पुष्पा) तथा मनु (रुदंतिका) से उपलक्षित औषधियो का लिंग पर लेप करके रति करने पर जो गर्भाधान होता है, उससे पुत्र की उत्पत्ति होती है।
अस्त्र शस्त्रों का स्तम्भन-NEUTRALISING/PROTECTION FROM ASTR-SHASTR :: ऋतविक (भंगरैया), ग्रह (मोह्लता), नेत्र (पुत्र जीवक) तथा पर्वत (अध: पुष्पा); इन औषधियो को मुँह में धारण करने से अस्त्र शस्त्रों का स्तम्भन हो जाता है, वे आघात नहीं कर पाते।
दुर्भगा से सुभगा :: तीन (सहदेइया), सोलह (भंगरैया), दिशा (अपराजिता) तथा बाण (श्वेतार्क); इन औषधियों का लेप करने से दुर्भगा स्त्री सुभगाबन जाती है।
सर्प क्रीडा :: त्रिदश (काला धतुरा), अक्षि (पुत्र जीवक), दिशा (विष्णु क्रांता ) और नेत्र (सह्देइया); इन दवाओं का अपने शरीर पर लेप करने से मनुष्य सर्पों के साथ क्रीडा कर सकता है।
TREATMENT OF SNAKE BITE साँप के काटे का इलाज :: विष के पहले वेग में रोमांच, दूसरे वेग में पसीना, तीसरे में शरीर का काँपना, चौथे में श्रवण शक्ति का अवरुद्ध होना, पाँचवें में हिचकी आना, छटे में ग्रीवा लटकना, सातवें में प्राण निकलना।
अवस्था 1 :: आँखों के आगे अँधेरा छा जाये और शारीर में बार-बार जलन होने लगे, तो यह जानना चाहिये कि, विष त्वचा में है। आक की जड़, अपा मार्ग, तगर और प्रियंगु-को जल में घोंट कर पिलाने से विष शांत हो सकता है।
अवस्था 2 :: त्वचा से रक्त में विष पहुँचने पर दाह और मूर्च्छा आने लगती है व शीतल पदार्थ अच्छा लगता है। उशीर (खस), चन्दन, नीलोत्पल, सिंदुवार की जड़, धतूरे की जड़, कूट, तगर, हींग और मिर्च को पीसकर देना चाहिये। अगर इससे बाधा शांत न हो तो भटकैया, इन्द्रायण की जड़ और सर्पगंधा को घी में पीसकर देना चाहिए। इससे भी शांत न हो तो, सिंदुवार और हींग का नस्य देना चाहिये और पिलाना चाहिये। इसी का अंजन और लैप भी करना चाहिये, इससे रक्त में विष बाधा शांत हो जाती है।
अवस्था 3 :: रक्त से पित्त में विष पहुँचने पर पुरुष उठ-उठ कर गिरने लगता है, शरीर पीला पड़ जाता है, सभी दिशाएँ पीली दिखती हैं। शरीर में दाह और प्रबल मूर्च्छा आती है। इस अवस्था में पीपल, शहद, महुआ, घी, तुम्बे की जड़, इन्द्रायण की जड़ को गो मूत्र में पीसकर नास्य, लेपन तथा अंजन करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था 4 :: पित्त से विष के कफ़ में प्रवेश करने पर शरीर जकड जाता है, श्वास भली भांति नहीं आती, कंठ में घर-घर शब्द होने लगता है, मँह से लार गिरने लगती है; पीपल, मिर्च, सौंठ, श्लेष्मातक (बहुबार वृक्ष), लोध, एवं, मधुसार को सामान भाग में पीसकर गौमूत्र में लेपन और अंजन और पिलाना भी चाहिए। ऐसा करने विष का वेग शान्त हो जाता है।
अवस्था 5 :: कफ से वात में विष प्रवेश करने पर पेट फूल जाता है, कोई भी पदार्थ दिखाई नहीं पड़ता, द्रष्टि भंग हो जाती है; ऐसा होने पर :- शोणा (सोनागाछा) की जड़, प्रियाल, गज पीपल, भ्रंगी, वचा, पीपल, देवदारु, महुआ, मधुसार, सिंदुवार और हींग-इन सब को पीस कर गोली बना कर रोगी को खिलाएं एवं अंजन और लेपन करें। यह सभी विषों का हरण करती है।
अवस्था 6 :: वात से मज्जा में विष पहुँच जाने पर द्रष्टि नष्ट हो जाती है, सभी अंग बेसुध हो शिथिल हो जाते हैं। ऐसा लक्षण होने पर घी, शहद, शर्करा युक्त, खस और चन्दन को घोंट कर पिलाना चाहिये और नस्य भी देना चाहिए। ऐसा करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था 7 :: मज्जा से मर्म स्थानों पर विष पहुँचने पर सभी इन्द्रियां निश्चेष्ट हो जाती हैं और मरीज धरती पर गिर पड़ता है। काटने से रक्त नहीं निकलता, केश उखड़ने पर कष्ट नहीं होता-रोगी को म्रत्यु आधीन ही समझना चाहिये। जिसके पास सिद्ध मन्त्र और औषधि होगी वही इलाज कर पायेगा : (7.1). मोर का पित्त, मार्जार का पित्त और गन्ध नाड़ी की जड़, (7.2). कुंकुम, तगर, कूट, कास मर्द की छाल तथा (7.3). उत्पल, कुमुद और कमल-इन तीनों के केसर-सभी का समान भाग लेकर उसे गोमूत्र में पीस कर नस्य दें, अञ्जन लगायें। यह मृत संजीवनी औषधि है।
HERBAL TREATMENT FOR INFANTS-CHILDREN
शिशु चिकित्सा-बालोषधि ::
अतिसार तथा माता के दूध दोषों में :: अडूसा, मुलहठी या कचूर, दोनों प्रकार की हल्दी और इन्द्रयब।
खाँसी, वमन और ज्वर :: पीपल और अतीस के साथ काकड़ा श्रंगी का अथवा केवल अतीस का चूर्ण मधु के साथ चटायें।
(2). चंद्रमा (मेढ़ा सिंगी), इंद्र (रुदंतिका), नाग (मोरशिखा), रूद्र (घी कुंआर); इन औषधियोँ को योनि में लेप करने से स्रियाँ वश में होतीं हैं।
सुख पूर्वक प्रसव-COMFORTABLE-EASY DELIVERY :: त्रिदश (काला धतुरा), अक्शि (पुत्र जीवक), शिव (घृत कुमारी) और सर्प (मयूर शिखा) से उपलक्षित दवाओं का लेप करने से स्त्री सुख पूर्वक प्रसव कर सकती है।
जुए में विजय-VICTORY IN GAMBLING :: सात (अध: पुष्पा), दिशा (अपराजिता), मुनि (अध: पुष्पा), तथा रंध्र (मोहलता) का लेपन वस्त्र में करने से जुए में विजय प्राप्त होती है।
पुत्रोत्पत्ति-BIRTH OF SON :: काला धतुरा, नेत्र (पुत्र जीवक), अब्धि (अध: पुष्पा) तथा मनु (रुदंतिका) से उपलक्षित औषधियो का लिंग पर लेप करके रति करने पर जो गर्भाधान होता है, उससे पुत्र की उत्पत्ति होती है।
अस्त्र शस्त्रों का स्तम्भन-NEUTRALISING/PROTECTION FROM ASTR-SHASTR :: ऋतविक (भंगरैया), ग्रह (मोह्लता), नेत्र (पुत्र जीवक) तथा पर्वत (अध: पुष्पा); इन औषधियो को मुँह में धारण करने से अस्त्र शस्त्रों का स्तम्भन हो जाता है, वे आघात नहीं कर पाते।
दुर्भगा से सुभगा :: तीन (सहदेइया), सोलह (भंगरैया), दिशा (अपराजिता) तथा बाण (श्वेतार्क); इन औषधियों का लेप करने से दुर्भगा स्त्री सुभगाबन जाती है।
सर्प क्रीडा :: त्रिदश (काला धतुरा), अक्षि (पुत्र जीवक), दिशा (विष्णु क्रांता ) और नेत्र (सह्देइया); इन दवाओं का अपने शरीर पर लेप करने से मनुष्य सर्पों के साथ क्रीडा कर सकता है।
TREATMENT OF SNAKE BITE साँप के काटे का इलाज :: विष के पहले वेग में रोमांच, दूसरे वेग में पसीना, तीसरे में शरीर का काँपना, चौथे में श्रवण शक्ति का अवरुद्ध होना, पाँचवें में हिचकी आना, छटे में ग्रीवा लटकना, सातवें में प्राण निकलना।
अवस्था 1 :: आँखों के आगे अँधेरा छा जाये और शारीर में बार-बार जलन होने लगे, तो यह जानना चाहिये कि, विष त्वचा में है। आक की जड़, अपा मार्ग, तगर और प्रियंगु-को जल में घोंट कर पिलाने से विष शांत हो सकता है।
अवस्था 2 :: त्वचा से रक्त में विष पहुँचने पर दाह और मूर्च्छा आने लगती है व शीतल पदार्थ अच्छा लगता है। उशीर (खस), चन्दन, नीलोत्पल, सिंदुवार की जड़, धतूरे की जड़, कूट, तगर, हींग और मिर्च को पीसकर देना चाहिये। अगर इससे बाधा शांत न हो तो भटकैया, इन्द्रायण की जड़ और सर्पगंधा को घी में पीसकर देना चाहिए। इससे भी शांत न हो तो, सिंदुवार और हींग का नस्य देना चाहिये और पिलाना चाहिये। इसी का अंजन और लैप भी करना चाहिये, इससे रक्त में विष बाधा शांत हो जाती है।
अवस्था 3 :: रक्त से पित्त में विष पहुँचने पर पुरुष उठ-उठ कर गिरने लगता है, शरीर पीला पड़ जाता है, सभी दिशाएँ पीली दिखती हैं। शरीर में दाह और प्रबल मूर्च्छा आती है। इस अवस्था में पीपल, शहद, महुआ, घी, तुम्बे की जड़, इन्द्रायण की जड़ को गो मूत्र में पीसकर नास्य, लेपन तथा अंजन करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था 4 :: पित्त से विष के कफ़ में प्रवेश करने पर शरीर जकड जाता है, श्वास भली भांति नहीं आती, कंठ में घर-घर शब्द होने लगता है, मँह से लार गिरने लगती है; पीपल, मिर्च, सौंठ, श्लेष्मातक (बहुबार वृक्ष), लोध, एवं, मधुसार को सामान भाग में पीसकर गौमूत्र में लेपन और अंजन और पिलाना भी चाहिए। ऐसा करने विष का वेग शान्त हो जाता है।
अवस्था 5 :: कफ से वात में विष प्रवेश करने पर पेट फूल जाता है, कोई भी पदार्थ दिखाई नहीं पड़ता, द्रष्टि भंग हो जाती है; ऐसा होने पर :- शोणा (सोनागाछा) की जड़, प्रियाल, गज पीपल, भ्रंगी, वचा, पीपल, देवदारु, महुआ, मधुसार, सिंदुवार और हींग-इन सब को पीस कर गोली बना कर रोगी को खिलाएं एवं अंजन और लेपन करें। यह सभी विषों का हरण करती है।
अवस्था 6 :: वात से मज्जा में विष पहुँच जाने पर द्रष्टि नष्ट हो जाती है, सभी अंग बेसुध हो शिथिल हो जाते हैं। ऐसा लक्षण होने पर घी, शहद, शर्करा युक्त, खस और चन्दन को घोंट कर पिलाना चाहिये और नस्य भी देना चाहिए। ऐसा करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था 7 :: मज्जा से मर्म स्थानों पर विष पहुँचने पर सभी इन्द्रियां निश्चेष्ट हो जाती हैं और मरीज धरती पर गिर पड़ता है। काटने से रक्त नहीं निकलता, केश उखड़ने पर कष्ट नहीं होता-रोगी को म्रत्यु आधीन ही समझना चाहिये। जिसके पास सिद्ध मन्त्र और औषधि होगी वही इलाज कर पायेगा : (7.1). मोर का पित्त, मार्जार का पित्त और गन्ध नाड़ी की जड़, (7.2). कुंकुम, तगर, कूट, कास मर्द की छाल तथा (7.3). उत्पल, कुमुद और कमल-इन तीनों के केसर-सभी का समान भाग लेकर उसे गोमूत्र में पीस कर नस्य दें, अञ्जन लगायें। यह मृत संजीवनी औषधि है।
HERBAL TREATMENT FOR INFANTS-CHILDREN
शिशु चिकित्सा-बालोषधि ::
अतिसार तथा माता के दूध दोषों में :: अडूसा, मुलहठी या कचूर, दोनों प्रकार की हल्दी और इन्द्रयब।
खाँसी, वमन और ज्वर :: पीपल और अतीस के साथ काकड़ा श्रंगी का अथवा केवल अतीस का चूर्ण मधु के साथ चटायें।
वाक शक्ति, रूप संपत्ति, आयु, बुद्धि और कांति :: दुग्ध, घृत अथवा तैल के साथ वच का सेवन अथवा मुलहठी और शंख पुष्पि के साथ दुग्धपान।
बुद्धि वर्धक :: वच, कलिहारी, अडूसा, सौंठ, पीपल, हल्दी, कूट, मुलहठी और सैंधव का चूर्ण प्रात: काल चटायें ।
कृमि रोगों का नाश :: देव दारू, सहजन, त्रिफला और नागर मोथा का क्वाथ अथवा पीपल और मुनक्का का कल्क।
बुद्धि वर्धक :: वच, कलिहारी, अडूसा, सौंठ, पीपल, हल्दी, कूट, मुलहठी और सैंधव का चूर्ण प्रात: काल चटायें ।
कृमि रोगों का नाश :: देव दारू, सहजन, त्रिफला और नागर मोथा का क्वाथ अथवा पीपल और मुनक्का का कल्क।
नेत्र रोग :: शुद्ध रांगे को त्रिफला, भ्रंग राज तथा अदरख के रस या मधु घृत में अथवा भेड़ या गौमूत्र में अंजन।
नाक से बहने वाला रक्त :: दूर्वा रस का नस्य।
कर्ण शूल नाशक व ओष्ठ रोग :: (1). लहसुन, अदरख और सहजन का रस कान में डालना। (2). केवल अदरख का रस कान में डालना होगा।
दन्त पीड़ा :: जायफल, त्रिफला, व्योष (सौंठ, मिर्च, पीपल), गौमूत्र, हल्दी, गौ दुग्ध तथा बड़ी हर्रे के कल्क से सिद्ध किये हुए तिल के तैल से कुल्ला करना।
जिव्हा रोग नाशक :: काँजी, नारियल का पानी, गौमूत्र, सुपारी तथा सौंठ के क्वाथ को कवल मुख में रखना होता है।
गल गंड रोग व गंड माला :: कलिहारी के कल्क (-पिसे हुए) में निगुण्डी के रस के साथ सिद्ध किया हुआ तैल का नस्य नाक में डालना।
सभी चर्म रोग :: आक, काटा, करंज, थूहर, अमलतास और चमेली के पत्तों के साथ गौमूत्र का उबटन लगाना है।
प्रमेह रोग :: (1) त्रिफला, दारुहल्दी, बड़ी इन्द्रायण और नागर मोथा-इनका क्वाथ या (2) आंवले का रस, हल्दी, कल्क और मधु के साथ पीना चाहिये।
प्लीहा रोग :: पिप्पली का प्रयोग करें।
वात रक्त :: अडूसे की जड़, गिलोय और अलमतास के क्वाथ में शुद्ध अरण्ड का तेल मिलकर पीयें।
पेट रोग :: थूहर के दूध में अनेक बार भावना दी हुई पिप्पली उपयोगी है।
अरुचि रोग :: चित्रक, त्रिकुट, विडंग के क्लक से सिद्ध दूध का सेवन हितकारी है।
ग्रहणी, अर्श, पाण्डु, गुल्म और कृमि रोगों का इलाज :: (1). पीपला मूल, वच, हर्रे, पीपल और विडंग को घी में मिलाकर सेवन करें या (2). तक्र का एक मास तक सेवन करें।
कामला सहित पाण्डु रोग :: त्रिफला, गिलोय, अडूसा, कुटकी, चिरायता। इनका क्वाथ शहद के साथ पीने से रोग दूर होता है।
रक्त-पित्त रोग :: (1). अडूसे का रस मिश्री और शहद मिलाकर लाइन से या (2). शतावरी, दाख, खरेटी और सौंठ का सिद्ध किया हुआ दूध पीने से लाभ होगा।
विदृधि की गाँठ को पकाना :: हरे, सहजन, करञ्ज, आक, दालचीनी, पुनरर्वा, सौंठ और सैंधव को गौ मूत्र के मिलाकर लेप करें।
भगन्दर :: निशोथ, जीवन्ती, दन्तीमूल, मजिष्ठा, दोनों हल्दी, रसांजन और नीम के पत्ते का लेप करना चाहिये।
नाक से बहने वाला रक्त :: दूर्वा रस का नस्य।
कर्ण शूल नाशक व ओष्ठ रोग :: (1). लहसुन, अदरख और सहजन का रस कान में डालना। (2). केवल अदरख का रस कान में डालना होगा।
दन्त पीड़ा :: जायफल, त्रिफला, व्योष (सौंठ, मिर्च, पीपल), गौमूत्र, हल्दी, गौ दुग्ध तथा बड़ी हर्रे के कल्क से सिद्ध किये हुए तिल के तैल से कुल्ला करना।
जिव्हा रोग नाशक :: काँजी, नारियल का पानी, गौमूत्र, सुपारी तथा सौंठ के क्वाथ को कवल मुख में रखना होता है।
गल गंड रोग व गंड माला :: कलिहारी के कल्क (-पिसे हुए) में निगुण्डी के रस के साथ सिद्ध किया हुआ तैल का नस्य नाक में डालना।
सभी चर्म रोग :: आक, काटा, करंज, थूहर, अमलतास और चमेली के पत्तों के साथ गौमूत्र का उबटन लगाना है।
प्रमेह रोग :: (1) त्रिफला, दारुहल्दी, बड़ी इन्द्रायण और नागर मोथा-इनका क्वाथ या (2) आंवले का रस, हल्दी, कल्क और मधु के साथ पीना चाहिये।
प्लीहा रोग :: पिप्पली का प्रयोग करें।
वात रक्त :: अडूसे की जड़, गिलोय और अलमतास के क्वाथ में शुद्ध अरण्ड का तेल मिलकर पीयें।
पेट रोग :: थूहर के दूध में अनेक बार भावना दी हुई पिप्पली उपयोगी है।
अरुचि रोग :: चित्रक, त्रिकुट, विडंग के क्लक से सिद्ध दूध का सेवन हितकारी है।
ग्रहणी, अर्श, पाण्डु, गुल्म और कृमि रोगों का इलाज :: (1). पीपला मूल, वच, हर्रे, पीपल और विडंग को घी में मिलाकर सेवन करें या (2). तक्र का एक मास तक सेवन करें।
कामला सहित पाण्डु रोग :: त्रिफला, गिलोय, अडूसा, कुटकी, चिरायता। इनका क्वाथ शहद के साथ पीने से रोग दूर होता है।
रक्त-पित्त रोग :: (1). अडूसे का रस मिश्री और शहद मिलाकर लाइन से या (2). शतावरी, दाख, खरेटी और सौंठ का सिद्ध किया हुआ दूध पीने से लाभ होगा।
विदृधि की गाँठ को पकाना :: हरे, सहजन, करञ्ज, आक, दालचीनी, पुनरर्वा, सौंठ और सैंधव को गौ मूत्र के मिलाकर लेप करें।
भगन्दर :: निशोथ, जीवन्ती, दन्तीमूल, मजिष्ठा, दोनों हल्दी, रसांजन और नीम के पत्ते का लेप करना चाहिये।
नासूर शोधन :: अमलतास, हरिद्रा, लाक्षा और अडूसा के चूर्ण को गौ घृत और शहद के साथ बत्ती बनाकर नासूर में देवें।
घाव :: (1). पीपली, मुलहटी, हल्दी, लोध, पद्मकाष्ठ, कमल, लाल चन्दन एवं मिर्च को गौ दुग्ध में सिद्ध किया हुआ तैल इस्तेमाल करें। (2). श्री ताड़ कपास की पत्तियों की भस्म, त्रिफला, गोलमिर्च, खरेटी और हल्दी का गोल बनाकर घाव का स्वेदन करे और इन औषधियों के तेल को घाव पर लगायें।
व्रण :: (1). दूध के साथ कुम्भी सार-गुग्गल का सार, आग पर जलाकर वर्ण पर लेप करें। (2). गुग्गल सार को दूध में मिलकर आग से जले हुए व्रण पर लेप करें। (3). जलकुम्भी को जलाकर दूध में मिलाकर लगाने से सभी प्रकार के व्रण टेक हो जाते हैं। (4). नारियल के जड़ की मिट्टी में घृत मिलाकर सेक करने से व्रण का नाश होता है।
अतिसार :: सौंठ, अजमोद, सैंधा नमक, इमली की छाल, इन सबके समान भाग हर्रे को तक्र या समान भाग जल के साथ पीना चाहिये।
आम सहित अतिसार-रक्तातिसार :: इंद्रयव, अतीस, सौंठ, बेलगिरी नागरमोथा का क्वाथ।
उदरशूल :: (1). ठंडे थूअर में सैंधा नमक भरकर आग में जला लें और यथोचित मात्रा को गर्म जल के साथ ग्रहण करें। (2). सैंधा नमक, हींग, पीपल, हर्रे का प्रयोग गर्म जल के साथ।
प्यास :: (1). वरकी वरोह, कमल और धान की खील के चूर्ण को शहद में भिगोकर, कपड़े की पोटली में रखकर चूसें। (2). कुटकी, पीपल, मीठा कूट एवं धान का लावा मधु के साथ मिलाकर पोटली में रखकर मुँह में रखें और चूसें।
मुख पाक-रोग :: पाठा, दारू हल्दी, चमेली के पत्र, मुनक्का की जड़ और त्रिफला का क्वाथ बनाकर उसमें शहद मुँह में रखें।
PROTECTION FROM THROAT TROUBLE कण्ठरोग :: पीपल, अतीस, कुटकी, इन्द्रयव, देवदारु, पाठा और नगर मोथा; इनका गौ मूत्र में बना क्वाथ मधु के साथ लेने पर सभी कण्ठ रोगों का नाश करता है।
मूत्र कृच्छ् :: हर्रे, गोखरू, जवासा, अमलतास एवं पाषाण-भेद; इनके क्वाथ में शहद मिलाकर पीने से कष्ट दूर होता है।
अश्मरी रोग :: बाँस का छिलका, वरुण की छाल का क्वाथ शर्करा के साथ उपयोग करें।
श्लीपद रोग :: शाखोटक (सिंहोर) की छाल का क्वाथमधु और दुग्ध के साथ पान करें।
पाद रोग नाशक :: उड़द, मदर की पत्ती तथा दूध, तैल, मोम एवं सैंधव लवण का योग पाद रोग नाशक है।
मलबन्ध रोग :: (1). सौंठ, काला नमक और हींग या (2). सौंठ के रस के साथ सिद्ध किया गया घी अथवा (3). इनका क्वाथ पीने से मलबन्ध दोष और तत्सम्बन्धी रोग नष्ट होते हैं।
गुल्मरोगी :: (1). सर्जक्षार, चित्रक, हींग और अजमोद के रस के साथ या (2). विडंग और चित्रक के रस के साथ तक्र पान करें।
विसर्परोग :: (1). आँवला, परवल और मूँग के क्वाथ का घी के साथ सेवन करें। (2). सौंठ, देवदारु और पुननर्वा या बन्सलोचन का दूधयुक्त क्वाथ प्रयोग करें।
वमन कारक-उलटी कराना :: वच और मैनफल के क्वाथ का जल।
झुर्रियों से मुक्ति :: भृंगराज के रस में भावित त्रिफला सौ पल, बायविडंग और लोहचूर दस भाग एवं शतावरी, गिलोय और चिचक पच्चीस पल ग्रहण करके उसका चूर्ण बना कर घी, मधु और तेल के साथ चाटना चाहिये। इससे झुर्रियाँ नहीं होती और बाल नहीं पकते।
मधु और शर्करा के साथ त्रिफला का सेवन सर्व रोग नाशक है।
त्रिफला और पीपल का मिश्री, मधु और घी के साथ भक्षण पूर्वोक्त सभी फल-लाभ देता है।
जपा-पुष्प को थोड़ा मसलकर जल में मिला लें उस जल को थोड़ी सी मात्रा में तेल में मिला देने पर तेल घृताकार हो जाता है। बिल्ली की गर्भ की झिल्ली की धूप से चित्र दिखलाई नहीं देता। फिर शहद की धूप देने से पूर्ववत दिखाई देने लगता है। पाकड़ की जड़, कपूर, जोंक और मेंढक का तेल पीसकर दोनों पैरों में लगाकर मनुष्य जलते हुए अंगारों पर चल सकता है।
चमत्कारिक-सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी :: गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शत्रुनाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदान कर्ता), जीवक (ऐश्वर्य दायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण), आंधीझाड़ा (भस्मक रोग, भूख-प्यास नाशक), श्वेत अपराजिता (दरिद्रानाशक), हत्था जोड़ी (वशीकरण), सोमवल्ली (मृत्य नाशक), शिलाजीत (नपुंसकता नाशक), अश्वगंधा (वीर्य वर्धक) आदि। बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियाँ हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण हैं।
घाव :: (1). पीपली, मुलहटी, हल्दी, लोध, पद्मकाष्ठ, कमल, लाल चन्दन एवं मिर्च को गौ दुग्ध में सिद्ध किया हुआ तैल इस्तेमाल करें। (2). श्री ताड़ कपास की पत्तियों की भस्म, त्रिफला, गोलमिर्च, खरेटी और हल्दी का गोल बनाकर घाव का स्वेदन करे और इन औषधियों के तेल को घाव पर लगायें।
व्रण :: (1). दूध के साथ कुम्भी सार-गुग्गल का सार, आग पर जलाकर वर्ण पर लेप करें। (2). गुग्गल सार को दूध में मिलकर आग से जले हुए व्रण पर लेप करें। (3). जलकुम्भी को जलाकर दूध में मिलाकर लगाने से सभी प्रकार के व्रण टेक हो जाते हैं। (4). नारियल के जड़ की मिट्टी में घृत मिलाकर सेक करने से व्रण का नाश होता है।
अतिसार :: सौंठ, अजमोद, सैंधा नमक, इमली की छाल, इन सबके समान भाग हर्रे को तक्र या समान भाग जल के साथ पीना चाहिये।
आम सहित अतिसार-रक्तातिसार :: इंद्रयव, अतीस, सौंठ, बेलगिरी नागरमोथा का क्वाथ।
उदरशूल :: (1). ठंडे थूअर में सैंधा नमक भरकर आग में जला लें और यथोचित मात्रा को गर्म जल के साथ ग्रहण करें। (2). सैंधा नमक, हींग, पीपल, हर्रे का प्रयोग गर्म जल के साथ।
प्यास :: (1). वरकी वरोह, कमल और धान की खील के चूर्ण को शहद में भिगोकर, कपड़े की पोटली में रखकर चूसें। (2). कुटकी, पीपल, मीठा कूट एवं धान का लावा मधु के साथ मिलाकर पोटली में रखकर मुँह में रखें और चूसें।
मुख पाक-रोग :: पाठा, दारू हल्दी, चमेली के पत्र, मुनक्का की जड़ और त्रिफला का क्वाथ बनाकर उसमें शहद मुँह में रखें।
PROTECTION FROM THROAT TROUBLE कण्ठरोग :: पीपल, अतीस, कुटकी, इन्द्रयव, देवदारु, पाठा और नगर मोथा; इनका गौ मूत्र में बना क्वाथ मधु के साथ लेने पर सभी कण्ठ रोगों का नाश करता है।
मूत्र कृच्छ् :: हर्रे, गोखरू, जवासा, अमलतास एवं पाषाण-भेद; इनके क्वाथ में शहद मिलाकर पीने से कष्ट दूर होता है।
अश्मरी रोग :: बाँस का छिलका, वरुण की छाल का क्वाथ शर्करा के साथ उपयोग करें।
श्लीपद रोग :: शाखोटक (सिंहोर) की छाल का क्वाथमधु और दुग्ध के साथ पान करें।
पाद रोग नाशक :: उड़द, मदर की पत्ती तथा दूध, तैल, मोम एवं सैंधव लवण का योग पाद रोग नाशक है।
मलबन्ध रोग :: (1). सौंठ, काला नमक और हींग या (2). सौंठ के रस के साथ सिद्ध किया गया घी अथवा (3). इनका क्वाथ पीने से मलबन्ध दोष और तत्सम्बन्धी रोग नष्ट होते हैं।
गुल्मरोगी :: (1). सर्जक्षार, चित्रक, हींग और अजमोद के रस के साथ या (2). विडंग और चित्रक के रस के साथ तक्र पान करें।
विसर्परोग :: (1). आँवला, परवल और मूँग के क्वाथ का घी के साथ सेवन करें। (2). सौंठ, देवदारु और पुननर्वा या बन्सलोचन का दूधयुक्त क्वाथ प्रयोग करें।
वमन कारक-उलटी कराना :: वच और मैनफल के क्वाथ का जल।
झुर्रियों से मुक्ति :: भृंगराज के रस में भावित त्रिफला सौ पल, बायविडंग और लोहचूर दस भाग एवं शतावरी, गिलोय और चिचक पच्चीस पल ग्रहण करके उसका चूर्ण बना कर घी, मधु और तेल के साथ चाटना चाहिये। इससे झुर्रियाँ नहीं होती और बाल नहीं पकते।
मधु और शर्करा के साथ त्रिफला का सेवन सर्व रोग नाशक है।
त्रिफला और पीपल का मिश्री, मधु और घी के साथ भक्षण पूर्वोक्त सभी फल-लाभ देता है।
जपा-पुष्प को थोड़ा मसलकर जल में मिला लें उस जल को थोड़ी सी मात्रा में तेल में मिला देने पर तेल घृताकार हो जाता है। बिल्ली की गर्भ की झिल्ली की धूप से चित्र दिखलाई नहीं देता। फिर शहद की धूप देने से पूर्ववत दिखाई देने लगता है। पाकड़ की जड़, कपूर, जोंक और मेंढक का तेल पीसकर दोनों पैरों में लगाकर मनुष्य जलते हुए अंगारों पर चल सकता है।
चमत्कारिक-सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी :: गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शत्रुनाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदान कर्ता), जीवक (ऐश्वर्य दायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण), आंधीझाड़ा (भस्मक रोग, भूख-प्यास नाशक), श्वेत अपराजिता (दरिद्रानाशक), हत्था जोड़ी (वशीकरण), सोमवल्ली (मृत्य नाशक), शिलाजीत (नपुंसकता नाशक), अश्वगंधा (वीर्य वर्धक) आदि। बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियाँ हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण हैं।
इयं सोमकला नाम वल्ली परमदुर्लभा।
अनया बद्ध सूतेन्द्रो लक्षवेधी प्रजायते॥
जिसके पन्द्रह पत्ते होते हैं, जिसकी आकृति सर्प की तरह होती है, जहाँ से पत्ते निकलते हैं; वे गाँठें लाल होती हैं, ऐसी वह पूर्णिमा के दिन लाई हुई पँचांग (मूल, डंडी, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोमवल्ली पारद को बद्ध कर देती है। पूर्णिमा के दिन लाया हुआ पँचांग (मूल, छाल, पत्ते, फूल और फल) से युक्त सोमवृक्ष भी पारद को बाँधना, पारद की भस्म बनाना आदि कार्य कर देता है। परन्तु सोमवल्ली और सोमवृक्ष-इन दोनों में सोमवल्ली अधिक गुण वाली है। इस सोमवल्ली का कृष्णपक्ष में प्रतिदिन एक-एक पत्ता झड़ जाता है और शुक्लपक्ष में पुनः प्रतिदिन एक-एक पत्ता निकल आता है। इस तरह लता बढ़ती रहती है। पूर्णिमा के दिन इस इस लता का कन्द निकाला जाय तो वह बहुत श्रेष्ठ होता है। धतूरे के सहित इस कन्द में बँधा हुआ पारद देह को लोहे की तरह दृढ़ बना देता है और इससे बँधा हुआ पारद लक्षभेदी हो जाता है अर्थात एक गुणा बद्ध पारद लाख गुणा लोहे को सोना बना देता है। यह सोम नाम की लता अत्यन्त दुर्लभ है।[रसेन्द्र चूड़ामणि 6.6.9]
कूटज, Kutaj Bark :: Hydrocotyle asiatica, Indian Penny wort, Holarrhena antidysenterica, Wrightia antidysenterica. Kutaj is used in treating diarrhoea, irritable bowel syndrome etc. It is used in preparing very common Ayurvedic medicines like Kutaj Arisht, Kutaj Ghan Vati etc.
भुई अमला-भुम्यमलाकि Bhui Amla-Bhumyamalaki :: Phyllanthus Nerurie. It is helpful for indigestion, Jaundice, hyper acidity and for flatulence. It is also effective for chronic cough, asthma, fevers, toxic conditions and supports digestive system. It is a good rejuvenating and revitalising herb. It has excellent blood purification properties thus help to remove toxins from human system and removes cause of disease. is used It is used in general debility in elderly and debilitating patients. Paste of Bhumyamalaki made with buttermilk is recommended in jaundice.
Phyllanthus primarily contains lignans (e.g., phyllanthine and hypophyllanthine), alkaloids, and bioflavonoids (e.g., quercetin).
It is found to be effective in HIV cure as well.
It has been used for gonorrhoea, frequent menstruation diabetes, skin ulcers, sores, swelling and itchiness. It is a very effective liver remedy that is also used for clearing gall and bladder stones. Juice of whole plant is given for liver protection. The young shoots of the plant are administered in the form of an infusion for the treatment of chronic dysentery.
मंजिस्था :: Varny (improving the complexion), Jvarahara-febrifuge, Visaghna-detoxifier) and purisa sangra haniya (gives from to the faeces). Pitt Shaman-Pacifies the Pitt dosh. It is Rasayan-Rejuvenative.
The plant grows throughout India, in hilly districts up to 3500 meters height. It is a perennial, herbaceous climber. The stems are often long, rough and grooved, with woody base. The leaves often in whorls of four. They are 5-10 cm long, variable, cordate-ovate to cordate-lanceolate, rough above and smooth beneath. The flowers, 0.3-2.5 cm long, blackish or greenish black, in terminal panicled glabrous cymes. The fruits are globose, fleshy, smooth, purplish black when ripe and shining. The roots are 4-8 cm long, reddish, cylindrical, flexuous, with a thin red bark.
Manjistha is bitter, astringent and sweet in taste, pungent in the post digestive effect and has hot potency. It alleviates all the three dosh. It possesses dry and heavy (to digest attributes. It is a potent blood purifier and anti diarrhoeal.
USES :: The plant is used both, internally as well as externally. The roots of Manjistha are used for medicinal purpose. Externally, Manjistha is highly recommended in skin diseases associated with edema (सूजन, फुलाव, त्वचा शोथ, oedema, swelling, swell, protuberance, bloating, blotch, distension, heave) and oozing. The wound and ulcers dressed with Manjistha Ghrat heal promptly and get dried up and well cleansed. Especially the chronic non-healing and cozying wounds respond very will. The Manjistha ointment medicated with Sat Dhaut Ghrat, is the best panacea for erysipelas. The burns and scalds heal up magically without scar formation, when treated with Manjistha Ghrat. The chronic wounds are washed with the decoction of Manjistha and dressed with its Ras Kriya (solid extract). In fractures, the external splint of Manjistha, Madhuk skin and Amlaki leaves is beneficial. The root powder works well, with ghee, for the medicament of acne. Used externally as a paste by itself or with honey, it heals inflammation and gives the skin an even tone and smoothness. It is a powerful dye, imparting a reddish tinge to the skin and is used in dying the clothes also. Internally, Manjistha is valuable in a vast range of diseases. In Diarrhoea, Manjistha works well when combined with Lodhra (Symplicos racemosa) skin powder. Manjistha is benevolent in gastrointestinal ailments like loss of appetite, dyspepsia and worm infestations, as it is an appetiser, digestant, destroys aanv (आँव) and is a vermicide (a poisonous to worms). Manjistha Kvath-extract, is widely used as a blood purifier. It acts mainly on Ras and Rakt Srotasas (Srotas refer to the channels of circulation in the body. As per Ayurveda, the Dosh-Vat, Pitt and Kaph move from one part of the body to another through Srota), alleviates the Kaph and Pitt Dosh and eliminates toxins. This ameliorates the vitiation of Bhrajak Pitt (Pitt from the skin) and imparts better complexion to the skin. Manjistha was held in high esteem by ancient sages in the treatment of skin diseases. It is widely used, till today, in various skin disorders like erysipelas, eczema, acne, scabies and allergic manifestations. Manjistha helps in controlling the irritation of nerves and pacifies the mind, hence salutary in epilepsy, especially of pitta type. The decoction of Manjistha, Triphala, Daruharidr, Guduchi, Katuk, Nimb and Vac is used in gout with benefit.
The cold infusion of Manjistha improves the menstrual bleeding and relieves the pain in dysmenorrheal. It stimulates and cleanses the uterus, so useful in postnatal ailments. The decoction of Manjistha is useful in oligomenorrhea and amenorrhea. Manjistha is useful as an adjunct in treating hepatitis. It is an effective medicament for hoarseness of voice, due to vitiated Kaph Dosh and cough. It is also anti-diabetic and useful in treating urinary calculi. The plant is widely used as a rejuvenative in pigment disorders of the skin and in general debility.
Maha Manjistha Kvath is one of the popular preparations, used as a blood purifier and in treating various skin diseases. Its helpful in treating acne vulgaris.
अश्वगंधा WITHANIA RADIA-SOMNIFERA :: Its as an adaptogen, an aphrodisiac, an immune stimulant and a tonic. Its leaves, roots, whole plant are used to balances Kaph and Vat dosh. Its used as a general tonic, adaptogen, anti inflammatory, antiviral, hepato protection, antioxidant, anti tumour, anti stress effects, memory improvement, immuno modulator, lowers high blood pressure.
यह एक शक्तिवर्धक रसायन और श्रेष्ठ प्रचलित औषधि, टॉनिक है। इसे संजीवनी बूटी कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा। यह शरीर की बिगड़ी हुई-ख़राब अवस्था (प्रकृति) को सुधार कर सुसंगठित कर शरीर का बहुमुखी विकास करता है। इसका शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है और बुद्धि का विकास भी करती है। अश्वगंधा में एंटी एजिड, एंटी ट्यूमर, एंटी स्ट्रेस तथा एंटीआक्सीडेंट के गुण भी पाये जाते हैं।
घोडे जैसी महक वाला अश्वगंधा इसको खाने वाला घोड़े की तरह ताकतवर हो जाता है। इसकी जड़, पत्तियाँ, बीज, छाल और फल अलग अलग बीमारियों के इलाज में प्रयोग किया जाता है। यह हर उम्र के बच्चे जवान बूढ़े नर नारी का टोनिक है; जिससे शक्ति, चुस्ती, सफूर्ति तथा त्वचा पर कान्ति (चमक) आ जाती है। अश्वगंधा का सेवन सूखे शरीर का दुबलापन ख़त्म करके शरीर के माँस की पूर्ति करता है।
यह चर्म रोग, खाज खुजली गठिया, धातु, मूत्र, फेफड़ों की सूजन, पक्षाघात, अलसर, पेट के कीड़ों, तथा पेट के रोगों के लिए यह बहुत उपयोगी है, खांसी, साँस का फूलना अनिद्रा, मूर्छा, चक्कर, सिरदर्द, हृदय रोग, शोध, शूल, रक्त कोलेस्ट्रॉल कम करने में
स्त्रियों को गर्भधारण में और दूध बढ़ाने में मदद करता है, श्वेत प्रदर, कमर दर्द एवं शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती हैं।
(1). अश्वगंधा की जड़ के चूर्ण का सेवन 1 से 3 महीने तक करने से शरीर मे ओज, स्फूर्ति, बल, शक्ति तथा चेतना आती है। अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण सेवन तीन माह तक लगातार सेवन करने से कमजोर (बच्चा, बड़ा, बुजुर्ग, स्त्री, पुरुष) सभी की कमजोरी दूर होती है, चुस्ती स्फूर्ति आती है चेहरे, त्वचा पर कान्ति (चमक) आती है शरीर की कमियों को पूरा करते हुए धातुओं को पुष्ट करके मांशपेशियों को सुसंठित करके शरीर को गठीला बनाता है। लेकिन इससे मोटापा नहीं आता।
वीर्य रोगों को दूर कर के शुक्राणुओं की वृद्धि करता है, कामोत्तेजना को बढ़ाता है और एक शक्तिवर्धक रसायन है। इसकी जड़ का चूर्ण दूध या घी के साथ लेने से निद्रा लाता है तथा शुक्राणुओं की वृद्धि करता है।
पाचन शक्ति को सुधारता है। अश्वगंधा और विधारा चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर सुबह शाम एक चम्मच दूध के साथ लेने से वीर्य में वृद्धि होती है और संभोग क्षमता बढ़ती है।
समान मात्रा में अश्वगंधा, विधारा, सौंठ और मिश्री को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। सुबह और शाम इस एक एक चम्मच चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से शरीर में शक्ति, ऊर्जा वीर्य बल बढ़ता है। या सुबह-शाम एक-एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण को घी और मिश्री मिले हुए दूध के साथ लेने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आ जाती है।
सुखा और क्षय रोगों मे लाभकारी है। अश्वगंधा का चूर्ण 15 दिन तक दूध या पानी से लेने पर बच्चो का शरीर पुष्ट होता है। अश्वगंधा कमजोर, सूखा रोग पीड़ित बच्चों व रोगों के बाद की कमजोरी में, शारीरिक और मानसिक थकान बुढ़ापे की कमजोरी, मांसपेशियों की कमजोरी व थकान आदि में अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण देसी गाय का घी और पाक निर्धारित मात्रा में सेवन कराते हैं । मूल चूर्ण को दूध के अनुपात के साथ देते हैं।
शक्ति दायक और हर तरह का बदन दर्द को दूर करता है।
रूकी पेशाब भी खुल कर आती है।
इसके पत्तों को पीस कर त्वचा रोग, जोड़ों की सूजन, घावों को भरने तथा अस्थि क्षय के लिए किया जाता है।
गैस की बीमारी, एसिडिटी, जोडों का दर्द, ल्यूकोरिया तथा उच्च रक्तचाप में सहायक और कैंसर से लड़ने की क्षमता आ जाती है। अश्वगंधा एक आश्चर्यजनक औषधि है, कैंसर की दवाओं के साथ अश्वगंधा का सेवन करने से केवल कैंसर ग्रस्त कोशिकाएँ ही नष्ट होती है, जबकि स्वस्थ (जीवन रक्षक) कोशिकाओं को कोई क्षति नही पहुँचती।
अश्वगंधा मनुष्य को लम्बी उम्र तक जवान रखता है और त्वचा पर लगाने से झुर्रियाँ मिटती है।
समय से पहले बुढ़ापा नहीं आने देती और इसके तने की सब्जी बनाकर खिलाने से बच्चों का सूखा रोग बिलकुल ठीक हो जाता है।
यदि कोई वृद्ध व्यक्ति शरद ऋतु में इसका एक माह तक सेवन करता है तो उसकी माँस मज्जा की वृद्धि और विकास हो कर के वह युवा जैसा हल्का व् चुस्त महसूस करने लगता है।
मोटापा दूर करने के लिए अश्वगंधा, मूसली, काली मूसली की समान मात्रा लेकर कूट छानकर रख लें, इसका सुबह 1 चम्मच की मात्रा दूध के साथ लेना चाहिए।
डायबिटीज के लिए अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।
इसके नियमित सेवन से हिमोग्लोबिन में वृद्धि होती है।
कैंसर रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता बढाती है।
अश्वगंधा और बहेड़ा को पीसकर चूर्ण बना लें और थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर इसका एक चम्मच (Tea Spoon) गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इससे दिल की धड़कन नियमित और मजबूत होती है। दिल और दिमाग की कमजोरी को ठीक करने के लिए एक एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण सुबह-शाम एक कप गर्म दूध से लें।
अश्वगंधा का चूर्ण को शहद एवं घी के साथ लेने से श्वांस रोगों में फायदा होता है और दर्द निवारक होने के कारण बदन दर्द में लाभ मिलता है।
अश्वगंधा के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से शरीर बलवान होता है। उच्च रक्त चाप-हाई ब्लड प्रेशर के लिए 10 ग्राम गिलोय चूर्ण, 20 ग्राम सूरजमुखी बीज का चूर्ण, 30 ग्राम अश्वगंधा जड़ का चूर्ण और 40 ग्राम मिश्री लेकर इन सब को एक साथ मिळाले और शीशे के जार में भर कर रख ले और एक-एक टी स्पून दिन में 2-3 बार पानी के साथ सेवन करें हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होगा।
एक गिलास पानी में अश्वगंधा के ताजा पत्ते उबाल कर छानकर चाय की तरह तीन-चार दिन तक पीयें, इससे कफ और खांसी ठीक होती है।
अश्वगंधा की जड़ से तैयार तेल से जोड़ों पर मालिश करने से गठिया जकडन को कम करता है तथा अश्वगंधा के पत्तों को पिस कर लेप करने से थायराइड ग्रंथियों के बढ़ने की समस्या दूर होती है।
अश्वगंधा पंचांग यानि जड़, पत्ती, तना, फल और फूल को कूट छानकर एक-डेढ़ चम्मच (टेबल स्पून) सुबह शाम सेवन करने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है। आधा चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण को सुबह-शाम गर्म दूध तथा पानी के साथ लेने से गठिया रोगों को शिकस्त मिलती है तथा समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और घी में थोडा शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर होता है।
अश्वगंधा का चूर्ण में बराबर का घी मिलाकर या एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण में आधा चम्मच सोंठ चूर्ण और इच्छानुसार चीनी मिला कर सुबह-शाम नियमित सेवन से गठिया में आराम आता है।
अश्वगंधा और मेथी की समान मात्रा और इच्छानुसार गुड़ मिलाकर रसगुल्ले के समान गोलियां बना लें। और सुबह-शाम एक एक गोली दूध के साथ खाने से वात रोग खत्म हो जाते हैं।
अश्वगंधा और विधारा चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर सुबह शाम एक चम्मच दूध के साथ लेने से स्नायुतंत्र ठीक होकर क्रोध नष्ट हो जाता है, बार-बार आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं और जोड़ो का दर्द खत्म हो जाता है।
एक चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण के साथ एक चुटकी गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी रोगों में लाभ मिलता हैं।
गिलोय की छाल और अश्वगंधा को मिलाकर शाम को गर्म पानी से सेवन करने से जीर्णवात ज्वर ठीक हो जाता है।
जीवाणु नाशक औषधियों के साथ अश्वगंधा चूर्ण को क्षय रोग (टी. बी.) के लिए देसी गाय के घी या मिश्री के साथ देते हैं।
एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण के क्वाथ (काढ़ा ) में चार चम्मच घी मिलाकर पाक बनाकर तीन माह तक सेवन करने से गर्भवती महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता दूर होती हैं।
अश्वगंधा, शतावरी और नागौरी तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनायें, फिर देशी घी में मिलाकर इस चूर्ण को मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी एक चम्मच चूर्ण को मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों का आकार बढ़ता है।
मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और चीनी मिला कर रख ले इस चूर्ण की दो चम्मच सुबह खाली पेट पानी से सेवन करे। मासिक-धर्म शुरू होते ही इसका सेवन बंद कर दे। इससे मासिक धर्म सम्बन्धी सभी रोग समाप्त होंगे।
अश्वगंधा चूर्ण का लगातार एक वर्ष तक सेवन करने से शरीर के सारे दोष बाहर निकल जाते हैं पुरे शरीर की सम्पूर्ण शुद्धी होकर कमजोरी दूर होती है।
दूध में अश्वगंधा को अच्छी तरह पका कर छानकर उसमें देशी घी मिलकर माहवारी समाप्त होने के बाद महिला को एक दिन के लिए सुबह और शाम पिलाने से गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं और बाँझपन दूर हो जाता है।
अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध या ताजे पानी के साथ 1 चम्मच महीने भर तक नियमित सेवन करने से स्त्री निश्चित तोर पर गर्भधारण करती है।अथवा अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से भी स्त्री गर्भधारण करती है।
गर्भपात का बार-बार होने पर अश्वगंधा और सफेद कटेरी की जड़ का दो-दो चम्मच रस गर्भवती महिला 5 - 6 माह तक सेवन करने से गर्भपात नहीं होता।
गर्भधारण न कर पाने पर अश्वगंधा के काढे़ में दूध और घी मिलाकर स्त्री को एक सप्ताह तक पिलाए या अश्वगंधा का एक चम्मच चूर्ण मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग सप्ताह पहले से सेवन करना चाहिए।
समान मात्रा में अश्वगंधा और नागौरी को लेकर चूर्ण बना ले। मासिक-धर्म समाप्ति के बाद स्नान शुद्धी होने के उपरांत दो चम्मच इस चूर्ण का सेवन करें तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी।
यह औषधि काया कल्प योग की एक प्रमुख औषधि मानी जाती है एक वर्ष तक नियमित सेवन काया कल्प हो जाता है।
रक्त शोधन के लिए अश्वगंधा और चोप चीनी का बारीक चूर्ण समान मात्रा में मिला कर हर रोज सुबह-शाम शहद के साथ चाटें।
साधारणत: सामान्य आदमी अश्वगंधा जड़ का आधा चम्मच चूर्ण सुबह खाली पेट पानी से ले ऊपर से एक कप गर्म दूध या चाय लें सकते है। नाश्ता 15-20 मिनट बाद ही करें। किसी भी जडी -बूटी को सवेरे खाली पेट सेवन करने से अधिक लाभ होता है।
कोई भी और्वेदिक औषधि तीन माह तक नियमित सेवन के बाद 10-15 दिन का अंतराल देकर दोबारा फिर से शुरू कर सकते है।
भले ही कोई बीमारी न हो तो भी अश्वगंधा का तीन माह तक नियमित सेवन किया जा सकता है। इससे शारीरिक क्षमता बढ़ने के साथ साथ सभी उक्त बिमारियों से निजात मिल जाती है।
सामान्य चेतावनी :- गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
कूटज, Kutaj Bark :: Hydrocotyle asiatica, Indian Penny wort, Holarrhena antidysenterica, Wrightia antidysenterica. Kutaj is used in treating diarrhoea, irritable bowel syndrome etc. It is used in preparing very common Ayurvedic medicines like Kutaj Arisht, Kutaj Ghan Vati etc.
भुई अमला-भुम्यमलाकि Bhui Amla-Bhumyamalaki :: Phyllanthus Nerurie. It is helpful for indigestion, Jaundice, hyper acidity and for flatulence. It is also effective for chronic cough, asthma, fevers, toxic conditions and supports digestive system. It is a good rejuvenating and revitalising herb. It has excellent blood purification properties thus help to remove toxins from human system and removes cause of disease. is used It is used in general debility in elderly and debilitating patients. Paste of Bhumyamalaki made with buttermilk is recommended in jaundice.
Phyllanthus primarily contains lignans (e.g., phyllanthine and hypophyllanthine), alkaloids, and bioflavonoids (e.g., quercetin).
It is found to be effective in HIV cure as well.
It has been used for gonorrhoea, frequent menstruation diabetes, skin ulcers, sores, swelling and itchiness. It is a very effective liver remedy that is also used for clearing gall and bladder stones. Juice of whole plant is given for liver protection. The young shoots of the plant are administered in the form of an infusion for the treatment of chronic dysentery.
मंजिस्था :: Varny (improving the complexion), Jvarahara-febrifuge, Visaghna-detoxifier) and purisa sangra haniya (gives from to the faeces). Pitt Shaman-Pacifies the Pitt dosh. It is Rasayan-Rejuvenative.
The plant grows throughout India, in hilly districts up to 3500 meters height. It is a perennial, herbaceous climber. The stems are often long, rough and grooved, with woody base. The leaves often in whorls of four. They are 5-10 cm long, variable, cordate-ovate to cordate-lanceolate, rough above and smooth beneath. The flowers, 0.3-2.5 cm long, blackish or greenish black, in terminal panicled glabrous cymes. The fruits are globose, fleshy, smooth, purplish black when ripe and shining. The roots are 4-8 cm long, reddish, cylindrical, flexuous, with a thin red bark.
Manjistha is bitter, astringent and sweet in taste, pungent in the post digestive effect and has hot potency. It alleviates all the three dosh. It possesses dry and heavy (to digest attributes. It is a potent blood purifier and anti diarrhoeal.
USES :: The plant is used both, internally as well as externally. The roots of Manjistha are used for medicinal purpose. Externally, Manjistha is highly recommended in skin diseases associated with edema (सूजन, फुलाव, त्वचा शोथ, oedema, swelling, swell, protuberance, bloating, blotch, distension, heave) and oozing. The wound and ulcers dressed with Manjistha Ghrat heal promptly and get dried up and well cleansed. Especially the chronic non-healing and cozying wounds respond very will. The Manjistha ointment medicated with Sat Dhaut Ghrat, is the best panacea for erysipelas. The burns and scalds heal up magically without scar formation, when treated with Manjistha Ghrat. The chronic wounds are washed with the decoction of Manjistha and dressed with its Ras Kriya (solid extract). In fractures, the external splint of Manjistha, Madhuk skin and Amlaki leaves is beneficial. The root powder works well, with ghee, for the medicament of acne. Used externally as a paste by itself or with honey, it heals inflammation and gives the skin an even tone and smoothness. It is a powerful dye, imparting a reddish tinge to the skin and is used in dying the clothes also. Internally, Manjistha is valuable in a vast range of diseases. In Diarrhoea, Manjistha works well when combined with Lodhra (Symplicos racemosa) skin powder. Manjistha is benevolent in gastrointestinal ailments like loss of appetite, dyspepsia and worm infestations, as it is an appetiser, digestant, destroys aanv (आँव) and is a vermicide (a poisonous to worms). Manjistha Kvath-extract, is widely used as a blood purifier. It acts mainly on Ras and Rakt Srotasas (Srotas refer to the channels of circulation in the body. As per Ayurveda, the Dosh-Vat, Pitt and Kaph move from one part of the body to another through Srota), alleviates the Kaph and Pitt Dosh and eliminates toxins. This ameliorates the vitiation of Bhrajak Pitt (Pitt from the skin) and imparts better complexion to the skin. Manjistha was held in high esteem by ancient sages in the treatment of skin diseases. It is widely used, till today, in various skin disorders like erysipelas, eczema, acne, scabies and allergic manifestations. Manjistha helps in controlling the irritation of nerves and pacifies the mind, hence salutary in epilepsy, especially of pitta type. The decoction of Manjistha, Triphala, Daruharidr, Guduchi, Katuk, Nimb and Vac is used in gout with benefit.
The cold infusion of Manjistha improves the menstrual bleeding and relieves the pain in dysmenorrheal. It stimulates and cleanses the uterus, so useful in postnatal ailments. The decoction of Manjistha is useful in oligomenorrhea and amenorrhea. Manjistha is useful as an adjunct in treating hepatitis. It is an effective medicament for hoarseness of voice, due to vitiated Kaph Dosh and cough. It is also anti-diabetic and useful in treating urinary calculi. The plant is widely used as a rejuvenative in pigment disorders of the skin and in general debility.
Maha Manjistha Kvath is one of the popular preparations, used as a blood purifier and in treating various skin diseases. Its helpful in treating acne vulgaris.
अश्वगंधा WITHANIA RADIA-SOMNIFERA :: Its as an adaptogen, an aphrodisiac, an immune stimulant and a tonic. Its leaves, roots, whole plant are used to balances Kaph and Vat dosh. Its used as a general tonic, adaptogen, anti inflammatory, antiviral, hepato protection, antioxidant, anti tumour, anti stress effects, memory improvement, immuno modulator, lowers high blood pressure.
यह एक शक्तिवर्धक रसायन और श्रेष्ठ प्रचलित औषधि, टॉनिक है। इसे संजीवनी बूटी कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा। यह शरीर की बिगड़ी हुई-ख़राब अवस्था (प्रकृति) को सुधार कर सुसंगठित कर शरीर का बहुमुखी विकास करता है। इसका शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है और बुद्धि का विकास भी करती है। अश्वगंधा में एंटी एजिड, एंटी ट्यूमर, एंटी स्ट्रेस तथा एंटीआक्सीडेंट के गुण भी पाये जाते हैं।
घोडे जैसी महक वाला अश्वगंधा इसको खाने वाला घोड़े की तरह ताकतवर हो जाता है। इसकी जड़, पत्तियाँ, बीज, छाल और फल अलग अलग बीमारियों के इलाज में प्रयोग किया जाता है। यह हर उम्र के बच्चे जवान बूढ़े नर नारी का टोनिक है; जिससे शक्ति, चुस्ती, सफूर्ति तथा त्वचा पर कान्ति (चमक) आ जाती है। अश्वगंधा का सेवन सूखे शरीर का दुबलापन ख़त्म करके शरीर के माँस की पूर्ति करता है।
यह चर्म रोग, खाज खुजली गठिया, धातु, मूत्र, फेफड़ों की सूजन, पक्षाघात, अलसर, पेट के कीड़ों, तथा पेट के रोगों के लिए यह बहुत उपयोगी है, खांसी, साँस का फूलना अनिद्रा, मूर्छा, चक्कर, सिरदर्द, हृदय रोग, शोध, शूल, रक्त कोलेस्ट्रॉल कम करने में
स्त्रियों को गर्भधारण में और दूध बढ़ाने में मदद करता है, श्वेत प्रदर, कमर दर्द एवं शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती हैं।
(1). अश्वगंधा की जड़ के चूर्ण का सेवन 1 से 3 महीने तक करने से शरीर मे ओज, स्फूर्ति, बल, शक्ति तथा चेतना आती है। अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण सेवन तीन माह तक लगातार सेवन करने से कमजोर (बच्चा, बड़ा, बुजुर्ग, स्त्री, पुरुष) सभी की कमजोरी दूर होती है, चुस्ती स्फूर्ति आती है चेहरे, त्वचा पर कान्ति (चमक) आती है शरीर की कमियों को पूरा करते हुए धातुओं को पुष्ट करके मांशपेशियों को सुसंठित करके शरीर को गठीला बनाता है। लेकिन इससे मोटापा नहीं आता।
वीर्य रोगों को दूर कर के शुक्राणुओं की वृद्धि करता है, कामोत्तेजना को बढ़ाता है और एक शक्तिवर्धक रसायन है। इसकी जड़ का चूर्ण दूध या घी के साथ लेने से निद्रा लाता है तथा शुक्राणुओं की वृद्धि करता है।
पाचन शक्ति को सुधारता है। अश्वगंधा और विधारा चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर सुबह शाम एक चम्मच दूध के साथ लेने से वीर्य में वृद्धि होती है और संभोग क्षमता बढ़ती है।
समान मात्रा में अश्वगंधा, विधारा, सौंठ और मिश्री को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। सुबह और शाम इस एक एक चम्मच चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से शरीर में शक्ति, ऊर्जा वीर्य बल बढ़ता है। या सुबह-शाम एक-एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण को घी और मिश्री मिले हुए दूध के साथ लेने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आ जाती है।
सुखा और क्षय रोगों मे लाभकारी है। अश्वगंधा का चूर्ण 15 दिन तक दूध या पानी से लेने पर बच्चो का शरीर पुष्ट होता है। अश्वगंधा कमजोर, सूखा रोग पीड़ित बच्चों व रोगों के बाद की कमजोरी में, शारीरिक और मानसिक थकान बुढ़ापे की कमजोरी, मांसपेशियों की कमजोरी व थकान आदि में अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण देसी गाय का घी और पाक निर्धारित मात्रा में सेवन कराते हैं । मूल चूर्ण को दूध के अनुपात के साथ देते हैं।
शक्ति दायक और हर तरह का बदन दर्द को दूर करता है।
रूकी पेशाब भी खुल कर आती है।
इसके पत्तों को पीस कर त्वचा रोग, जोड़ों की सूजन, घावों को भरने तथा अस्थि क्षय के लिए किया जाता है।
गैस की बीमारी, एसिडिटी, जोडों का दर्द, ल्यूकोरिया तथा उच्च रक्तचाप में सहायक और कैंसर से लड़ने की क्षमता आ जाती है। अश्वगंधा एक आश्चर्यजनक औषधि है, कैंसर की दवाओं के साथ अश्वगंधा का सेवन करने से केवल कैंसर ग्रस्त कोशिकाएँ ही नष्ट होती है, जबकि स्वस्थ (जीवन रक्षक) कोशिकाओं को कोई क्षति नही पहुँचती।
अश्वगंधा मनुष्य को लम्बी उम्र तक जवान रखता है और त्वचा पर लगाने से झुर्रियाँ मिटती है।
समय से पहले बुढ़ापा नहीं आने देती और इसके तने की सब्जी बनाकर खिलाने से बच्चों का सूखा रोग बिलकुल ठीक हो जाता है।
यदि कोई वृद्ध व्यक्ति शरद ऋतु में इसका एक माह तक सेवन करता है तो उसकी माँस मज्जा की वृद्धि और विकास हो कर के वह युवा जैसा हल्का व् चुस्त महसूस करने लगता है।
मोटापा दूर करने के लिए अश्वगंधा, मूसली, काली मूसली की समान मात्रा लेकर कूट छानकर रख लें, इसका सुबह 1 चम्मच की मात्रा दूध के साथ लेना चाहिए।
डायबिटीज के लिए अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।
इसके नियमित सेवन से हिमोग्लोबिन में वृद्धि होती है।
कैंसर रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता बढाती है।
अश्वगंधा और बहेड़ा को पीसकर चूर्ण बना लें और थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर इसका एक चम्मच (Tea Spoon) गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इससे दिल की धड़कन नियमित और मजबूत होती है। दिल और दिमाग की कमजोरी को ठीक करने के लिए एक एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण सुबह-शाम एक कप गर्म दूध से लें।
अश्वगंधा का चूर्ण को शहद एवं घी के साथ लेने से श्वांस रोगों में फायदा होता है और दर्द निवारक होने के कारण बदन दर्द में लाभ मिलता है।
अश्वगंधा के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से शरीर बलवान होता है। उच्च रक्त चाप-हाई ब्लड प्रेशर के लिए 10 ग्राम गिलोय चूर्ण, 20 ग्राम सूरजमुखी बीज का चूर्ण, 30 ग्राम अश्वगंधा जड़ का चूर्ण और 40 ग्राम मिश्री लेकर इन सब को एक साथ मिळाले और शीशे के जार में भर कर रख ले और एक-एक टी स्पून दिन में 2-3 बार पानी के साथ सेवन करें हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होगा।
एक गिलास पानी में अश्वगंधा के ताजा पत्ते उबाल कर छानकर चाय की तरह तीन-चार दिन तक पीयें, इससे कफ और खांसी ठीक होती है।
अश्वगंधा की जड़ से तैयार तेल से जोड़ों पर मालिश करने से गठिया जकडन को कम करता है तथा अश्वगंधा के पत्तों को पिस कर लेप करने से थायराइड ग्रंथियों के बढ़ने की समस्या दूर होती है।
अश्वगंधा पंचांग यानि जड़, पत्ती, तना, फल और फूल को कूट छानकर एक-डेढ़ चम्मच (टेबल स्पून) सुबह शाम सेवन करने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है। आधा चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण को सुबह-शाम गर्म दूध तथा पानी के साथ लेने से गठिया रोगों को शिकस्त मिलती है तथा समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और घी में थोडा शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर होता है।
अश्वगंधा का चूर्ण में बराबर का घी मिलाकर या एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण में आधा चम्मच सोंठ चूर्ण और इच्छानुसार चीनी मिला कर सुबह-शाम नियमित सेवन से गठिया में आराम आता है।
अश्वगंधा और मेथी की समान मात्रा और इच्छानुसार गुड़ मिलाकर रसगुल्ले के समान गोलियां बना लें। और सुबह-शाम एक एक गोली दूध के साथ खाने से वात रोग खत्म हो जाते हैं।
अश्वगंधा और विधारा चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर सुबह शाम एक चम्मच दूध के साथ लेने से स्नायुतंत्र ठीक होकर क्रोध नष्ट हो जाता है, बार-बार आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं और जोड़ो का दर्द खत्म हो जाता है।
एक चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण के साथ एक चुटकी गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी रोगों में लाभ मिलता हैं।
गिलोय की छाल और अश्वगंधा को मिलाकर शाम को गर्म पानी से सेवन करने से जीर्णवात ज्वर ठीक हो जाता है।
जीवाणु नाशक औषधियों के साथ अश्वगंधा चूर्ण को क्षय रोग (टी. बी.) के लिए देसी गाय के घी या मिश्री के साथ देते हैं।
एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण के क्वाथ (काढ़ा ) में चार चम्मच घी मिलाकर पाक बनाकर तीन माह तक सेवन करने से गर्भवती महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता दूर होती हैं।
अश्वगंधा, शतावरी और नागौरी तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनायें, फिर देशी घी में मिलाकर इस चूर्ण को मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी एक चम्मच चूर्ण को मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों का आकार बढ़ता है।
मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और चीनी मिला कर रख ले इस चूर्ण की दो चम्मच सुबह खाली पेट पानी से सेवन करे। मासिक-धर्म शुरू होते ही इसका सेवन बंद कर दे। इससे मासिक धर्म सम्बन्धी सभी रोग समाप्त होंगे।
अश्वगंधा चूर्ण का लगातार एक वर्ष तक सेवन करने से शरीर के सारे दोष बाहर निकल जाते हैं पुरे शरीर की सम्पूर्ण शुद्धी होकर कमजोरी दूर होती है।
दूध में अश्वगंधा को अच्छी तरह पका कर छानकर उसमें देशी घी मिलकर माहवारी समाप्त होने के बाद महिला को एक दिन के लिए सुबह और शाम पिलाने से गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं और बाँझपन दूर हो जाता है।
अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध या ताजे पानी के साथ 1 चम्मच महीने भर तक नियमित सेवन करने से स्त्री निश्चित तोर पर गर्भधारण करती है।अथवा अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से भी स्त्री गर्भधारण करती है।
गर्भपात का बार-बार होने पर अश्वगंधा और सफेद कटेरी की जड़ का दो-दो चम्मच रस गर्भवती महिला 5 - 6 माह तक सेवन करने से गर्भपात नहीं होता।
गर्भधारण न कर पाने पर अश्वगंधा के काढे़ में दूध और घी मिलाकर स्त्री को एक सप्ताह तक पिलाए या अश्वगंधा का एक चम्मच चूर्ण मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग सप्ताह पहले से सेवन करना चाहिए।
समान मात्रा में अश्वगंधा और नागौरी को लेकर चूर्ण बना ले। मासिक-धर्म समाप्ति के बाद स्नान शुद्धी होने के उपरांत दो चम्मच इस चूर्ण का सेवन करें तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी।
यह औषधि काया कल्प योग की एक प्रमुख औषधि मानी जाती है एक वर्ष तक नियमित सेवन काया कल्प हो जाता है।
रक्त शोधन के लिए अश्वगंधा और चोप चीनी का बारीक चूर्ण समान मात्रा में मिला कर हर रोज सुबह-शाम शहद के साथ चाटें।
साधारणत: सामान्य आदमी अश्वगंधा जड़ का आधा चम्मच चूर्ण सुबह खाली पेट पानी से ले ऊपर से एक कप गर्म दूध या चाय लें सकते है। नाश्ता 15-20 मिनट बाद ही करें। किसी भी जडी -बूटी को सवेरे खाली पेट सेवन करने से अधिक लाभ होता है।
कोई भी और्वेदिक औषधि तीन माह तक नियमित सेवन के बाद 10-15 दिन का अंतराल देकर दोबारा फिर से शुरू कर सकते है।
भले ही कोई बीमारी न हो तो भी अश्वगंधा का तीन माह तक नियमित सेवन किया जा सकता है। इससे शारीरिक क्षमता बढ़ने के साथ साथ सभी उक्त बिमारियों से निजात मिल जाती है।
सामान्य चेतावनी :- गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
HIGHLY EFFECTIVE COMMON HERBS अत्यधिक प्रभावशाली जड़ी बूटियाँ :: अग्नि मंथ, Agni Manth :: Clerodendrum phlomidis Lin.
अहि फीन, Ahiphene :: Papaver somniferum.
अयपन, Ayapan :: Eupatorium triplinerve.
अहि फीन, Ahiphene :: Papaver somniferum.
अयपन, Ayapan :: Eupatorium triplinerve.
अजमोदा, Ajamoda :: Apium graveolens.
अकर करा, अकलकरा, अकल्लक, Akalkara, Akallaka :: Pellitory, Anacyclus, Akarakaraba-Anacyclus pyrethrum. अंकोला, धेरा, अकोला, अंकोता, ताम्रफल, Ankola, Dhera, Akola, Ankota, Tamraphala :: Sage-leaved, Alangium. अर्क, Ark :: Calotropis procera.
अकर करा, अकलकरा, अकल्लक, Akalkara, Akallaka :: Pellitory, Anacyclus, Akarakaraba-Anacyclus pyrethrum. अंकोला, धेरा, अकोला, अंकोता, ताम्रफल, Ankola, Dhera, Akola, Ankota, Tamraphala :: Sage-leaved, Alangium. अर्क, Ark :: Calotropis procera.
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Ginger added with the powder of bark of Agaru and taken with honey relieves cough.
Paste of Agaru bark when applied on affected area relieves bone joint disorder- gout, Rheumatoid arthritis, osteoarthritis.
Paste of Aguru leaves is used in Skin disorders like scabies and leprosy.
अरंड-एरंडी Erand :: Ricinus communis.
अडूसा, अरुसा, अमसा, Adussa, Arusa, Amsa :: Vasa, Vajidanta :: Malabar Nut, Adhatoda vasica.
अतीस, अरुणा, घुन प्रिय,विस्, Atis, Aruna, Ghunapriya, Visa :: Atis Root Aconitum heterophyllum.
अनानास, बहुनेत्र, Ananas, Bahunetra :: Pineapple, Ananas .
अज्मुद, अजमोदा, डोरु,रंधुनि, Ajmud, Ajmoda, Doroo, Randhuni :: Celeryand Parsley.
अश्वगंधा, Ashw Gandha :: Withania somnifera-Ativisha-Aconitum heterophyllum. अनन्त मूल, Anant Mul :: Hibiscus rosa, Hibiscus Flower.
अपराजिता, Aparajita :: Clitorea ternatea.
अफ़ीम Afim :: Opium, Poppy copium seed Papaver somniferum linn.
अमलतास, Amaltas, Kritamala, Vyadhighata, Sampaka :: Indian Laburnum, Purging Cassia, Cassia fistula.
अमारा, अम्बाड़ा, अम्बाड़ी, Amara, Ambad, Ambar :: Ambaadii Spondias, Pinnata.
अर्जुन Arjun :: Terminalia Arjun.
अदरक, Adrak, Shati-Shunti :: Ginger, Zingiber officinale, Acacia intsia.
अध पुष्पा, व्रत पुष्पा, गंध पुष्पा, Adh Pushpa :: Anthocephalus,
अशोक की छाल, अशोक, कंकेली, अशोक सीता, Ashok Bark, Ashok, Kankeli, Ashok Sita :: Saraca indica, Ashok Tree, Sorrowless tree.
असगंध, अश्वगंधा, हयगंध, वाजीगंध, Asgandh, Ashwagandha, Hayagandha, Vajigandha :: Winter Cherry, Withania somnifera Dunal Pennel.
आम्र, Amr :: Mangifera indica.
आसन Aasan :: Terminalia alata B.
आंवला, अमला, अमलकी, अमृत फल, धात्री फल, Amla, Amalaki, Amritaphala, Dhatriphala :: Indian Gooseberry, Emblic Myrobalan, Emblica officinalis, Phyllanthus, Amla Emblica, Indian Gooseberry, Amlaki Fruit.
कचनार, Kach Nar :: Bauhinia variegata.
उलटकंबल, Ulatkambal, Pishach karpas :: Devil's Cotton, Abroma.
कवची, चरोली, Kavch, Charoli :: Cudpah nut, Clams Teesrya.
केबु, केमुक, केमबुक, Kebu, Kemuk, Kemua, Kemuka, Kembuka, Kebuka, Kembu :: Spiral Flag, Costus speciosus. केसर-ज़ाफ़रान, Kesar or Zafran :: Saffron Coloured.
कंघी, कंगली, काकहि, कण कंटिका, Kanghi, Kakahi, Kankatika, Risyaprokta :: Country Mallow, Indian Mallow, Abutilon.
काल मेघ, चरायता, किरियत, भूनीम्ब, Kal Megh, Kiriyat, Charayeta, Bhunimba :: Creat, Andrographis paniculata .
कान्तिकारी, Kantakari :: Sida cordifolia, Solanum xanthocarpum, Wild Eggplant.
काम पिल्लिका, Kam Pillaka :: Mallotus philippinensis.
काव्या, Cavya :: Pipper chaba Hunter.
कुचला, Kuchla :: Nux Vomica.
कुर्ची, Kurchi :: Conessi tree, conessi bark.
कुप्पी, Kuppi, कुप्पी खोखली Kuppi Khokhali :: Acalypha Indica, Indian Acalypha, Acalypha Paniculata, Indian Copperleaf.
कुलंजन, बराकुलंजन, मलयवच, सुगंध मूल, स्थूल ग्रंथि, Kulanjan, Barakulanjana, Malayavacha,Sugandhamoola, Sthulagranthih, Mahabharivacha, Rasna :: Greater Galangal, Alpinia.
कूटज, Kutaj Bark :: Hydrocotyle asiatica, Indian Pennywort, Holarrhena antidysenterica, Wrightia antidysenterica.
कोट्टु, Kottu :: Buck wheat or Buckwheat Kottu.
खरपात, Kharpat :: Garuga Pinnata.
खसखस, Khus-Khus :: Poppy Seeds, Opium, Poppy copium seeds.
खैर, गायत्री, Khair, Gayatri, Katha :: Cutch Tree, Black Catechu, Acacia.
गदापूर्ण, लालपुनर्नवा, Gadapurna, Lalpunarnava :: Punarnava, Kathilla, Sophanghni :: Hog Weed, Horse Purslene, Boerhaavia diffusa.
गम्भरी, Gambhari :: Gmelina arborea.
गँध प्रसारणी, Gandh Prasarani :: Paederia foetida.
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ग्वार पाठा, घी कुंवर, घी कुमारी, घृत कुमारी, कुमारी, Ghee Kumari, Gwar Patha, Ghee Kunwar, Ghrat Kumari, Kumari :: Aloes, Aloe Vera, Tourn, Aloe Barbadensis, Agathi leaves, Agasti.
गोक्षुर, Gokshur :: Tribulus terrestris, Land-Caltrops, Puncture Vine.
गुडूची, Guduchi :: Tinospora cordifolia.
गुग्गुल, गूगल, गुग्गुलु, महिसकस, कौसिक, Guggul, Gugal, Guggulu, Mahisaksa, Kausika :: Indian Bedelium, Gum-Gugul, Commiphora mukul. गुंची, रत्ती, Gunchi, Ratti :: Abrus Precatorius Crab Eyed Creeper.
गुह बबूल, Guh Baboool, Gukikar, Gandh Babool :: Acacia farnesiana Mimosa bush, Needle bush
गिलोय, Giloy, Guduchi :: Tinospora cordifolia, Heartleaf Moonseed.
घुनघुनिया, Ghunghunia :: Crotalaria verucosa linn.
चक्रफूल, Chakr Phool :: Star Anise.चंदन, संदल, Chandan, Sandal :: Santalum album linn, Sandal wood.
चंगेरी, Changeri :: Oxalis corniculata. चित्रक, Chitrak :: Plumbago zeylanica, Ceylon Leadwort.
चित्रा, चिरा, चित्त, चित्रक, अग्नि, वह्नि, Chitra, Chira, Chita, Chitraka, Agni, Vahni :: Lead Wort, Plumbago zeylanica.
चिड़चिड़ी, Chid Chidi :: Achyranthes Aspera Rough cheff.
चिरचिटा, लटजीरा, अपामार्ग, मयूर, प्रत्यक्पुष्पा, Chirchita, Latjira, Apamarg, Mayura, Pratyakpuspa :: Prickly chaff flower, Achyranthes.
चिरायता, Chirata :: Swerita Chirata, Swertia Chirayita.
छतिवन, सतवन, सतपर्णी, Chhativan, Satawana, Saptaparni, Saptahva, Saptacchada :: Dita, Alstonia.
छोटी इलायची, इलायची, Choti Elachi, Ilayechi, Sookshma Ela :: Lesser Cardamom, Elettaria cardamomum.
ढाक, टेसू किंसुक, रक्त पुष्प, Dhak, Tesu, Kimsuka, Raktapuspaka :: Bastard Peak, monosperma.
जम्बु, Jambu :: Syzygium cumini.
जटामांसी, Jatamansi :: Nardostachys jatamansi.
जति, Jati :: Jasminum grandiflorum.
जयपाल, Jayapala :: Croton tiglium.
जवास, यवस, यवस्का, यश, Javasa, Yavasa, Yavasaka, Yasa :: Persian Manna plant, Alhagi .
जायफ़ल, Jaiphal :: Nutmeg.
ज्योतिष्मती, Jyotishmati :: Celastrus paniculata.
झिंटी, कटसरैया, सैरयक, Jhinti, Katsreya, Sairayaka :: Yellow Barleria, Barleria prionitis.
तुलसी, Tulsi :: Holy Basil.
तिल, Til :: Sesame, seas mum, indium-sesame.
तेजपत्र, तमालपत्र, पत्र, वरंग, कोका, Tejpatra, Tamalapatra, Patra, Varanga, Coca :: Indian Cinnamon, Cinnamomum tamala.
दन्ती, Danti :: Baliospermum montanum Red Physic Nut, wild castor.
द्राक्ष, Draksh :: Vitis vinifera.
दाड़िम, Dadima :: Punica granatum.
दारु हरिद्रा, Daru Haridra :: Berberis aristata.
देवदारु, Dev Daru :: Cedrus deodara.
दीर्घवृन्त, Dirgh Vrant :: Indian Trumpet, Broken Bones Plant, Shyonak.
दालचीनी, दारुसित, Dalchini, Darusit:: Cinnamon Bark, Cinnamomum zeylanicum.
धनिया, धनिक, वितुन्नक, कुस्तुम्बुरु, Dhaniya, Dhanika, Dhanya, Vitunnaka, Kustumburu :: Coriander fruit, Coriandrum sativum.
धातकी, Dhatki :: Woodfordia fruticosa.
धतूरा, Dhatura :: Datura stramonium.
निर्गुण्डी, Nirgundi :: Vitex negundo, Cut-Leaf Chaste Tree, Withania somnifera.
नागर मोथा, मोथा, मुस्तक, वरीद, Nagarmoth, Motha, Mustaka, Varida :: Nut Grass, Cyperus rotundus
नीम, निम्ब, अरिस्ट, पिछु मर्द, Neem, Nimba, Arista, Pichhumarda :: Margosa Tree, Azadirachta indica.
PADMAK पद्मक (Prunus Cerasoides-Puddum, Rosaceae) ::
पद्मकं तुवरं तिक्तं शीतलं वातलं लघु॥
विसर्पदाहविस्फोटकुष्ठश्लेष्मास्रपित्तनुत्।
गर्भसंस्थापनं रुच्यं वमिव्रणतृषाप्रणुत्॥[भावप्रकाश, कर्पुरादिवर्ग 30-31]
Its used for the treatment of skin diseases, atonement of complexion and as uterine tonic.
Its used to treat vomiting, nausea and gastritis. The powder is given in dosage of 3-5 g.Its dried powder is given in dosage of 3-5 g to treat renal stones.
Its decoction is given in divided dose of 40-50 ml per day to treat bleeding per vagina, weakness of the uterus and to prepare the uterus for conceiving the foetus.
Its bark boiled in water is given to patients suffering from excessive sweating, burning sensation of the whole body and to treat fever.
Its astringent, bitter, light to digest, unctuous, oily, pungent taste conversion after digestion, coolant, reduces the increased cough, helps in conception by preparing the uterus.
FORMULATIONS ::
CHANDNADI TEL :: It treats burning sensation, dizziness, nasal bleeding.
MAHA BHRAGRAJ TEL :: Its is used to treat hair fall, headache, pain and stiffness of neck.
JATYADI TEL :: It is beneficial in the treatment of wounds, ulcers. This formulation is used for external purpose.
TRIPHALADI TEL :: It is used for external application to treat hair fall, sinusitis, neck pain.
STANYJANAN RASAYAN :: It is an Ayurvedic formulation in the form of confectionery to benefit lactating mothers for increasing the breast milk, immunity and body strength.
BAL TEL :: It is an oil to treat Vat diseases,vomiting, cough, cold, asthma, wound, emaciation etc. The oil is used both externally and internally.
GRAHNI MIHIR TEL :: Ayurvedic oil used in the treatment of diarrhea, fever, cough, etc. This oil is used both for external and internal administration.
परात्प्रिय, Parat Priy :: Saccharum spotaneum Linn Thatch grass. पाताल, Patal :: Stereospermum suaveolens, Trumpet Flower.
पाठा, पाढ़, अकनन्दी, अम्बस्थकी, ambasthaki Patha, Padh, Akanadi, Ambasthaki :: Velvet Leaf Tree, Cissampelos pareira.
प्रश्निपर्णी, Prashni Parni :: Uraria picta, Papilionaceae, Fabaceae Family.
पिप्पल, पीपरमूल, पिप्पली, मगधी, ग्रन्थिका, Pippal, Piparamula, Pippali, Magadhi, Granthika :: Long Pepper, Piper longum, Cayenne Pepper.
पीपल, Peepal : Ficus religiosa.
पुनरर्वा, Punarrva :: Boerhaavia diffusa, Horse-purslane, Hogweed.
पुष्पकरमूल, Pushkarmool :: Inula racemosa.
फेनिल, रिष्ट, रिष्टक, phenil, risht, rishtak :: Sapindus trifoliatus Linn. Phaenilum, South India Soapnut.
बबूल, Babul, Babura, Kikar, Bavari, Kinkirat :: Indian Gum Arabic, Acacia arabica, Acacia nilotica. बकुची, Bakuchi :: Psoralea corylifolia.
बकुल, Bakul :: Mimusops Elengi.
बचनाग, कलिहारी, Bach Nag, Kalihari :: Glariosa superba linn Malabar glory lily, Superb lily.
बाला, Bala :: Sida cordifolia, Country Mallow.
बांस, Bans :: Bambusa aurandinacea Retz. Bamboo.
बिभीतकि-बिभितकरि, Bibhitaki :: Terminalia bellirica Belleric Myrobalan,
बिल्व, बेल पत्थर, Bilv :: Aegle marmelos, Stone Apple.
बिस्वाल, अग्ल बेल, Biswal, Agl Bel :: Acacia Pennata Climbing Acacia, Saraca.बेल, श्रीफल, Bel, Shri Phal :: Bengal Quince, Bael fruit, Aegle marmelos.
बोला, Bola :: Commiphora myrrha.
ब्रह्म मंडुकी, Brahm Manduki :: Centella asiatica Indian Pennywort.
BRAHM SUVARCHLA :: Centella asiatica, Umbelliferae, मण्डूकपर्णी, सरस्वती, माण्डुकी, सुवर्चला, ब्राह्मी।
Its used to energies the brain, treat mental disorder, enhance memory, soth (oedema), Pandu (anaemia), Jat (fever) since ancient times in India. It is a prostate herb, rooting at the nodes.
ब्राह्मी, ब्रह्मा माण्डुकी, माण्डुकी, मंडूकपर्णी, सरस्वती, कपोतवनक, Brahmi, Brahma Manduki, Manduki, Manduk Parni, Saraswati, Kapot Vank :: Thyme leaved gratiola, Bacopa, Centella asiatica, Indian Pennywort, Gotu kola, Bacopa monnieri, Thyme-leaved Gratiola, Darduracchada, Centella asiatica.
बृहती, Brahati :: Solanum indicum, Poison Berry.
भल्लातक, Bhallataka :: Semecarpus anacardium.
भाँग, Bhang :: Cannabis sativa.
भ्रंगराज, Bhrang Raj :: Eclipta alba, Trailing Eclipta Plant.
भृङ्गी, अंगारवल्ली Bharangee, Angaravalli, Brahmanayastika :: Bharangee, Clerodendron serratum.भुई अमला-भुम्यमलाकि, Bhui Amla-Bhumyamalaki :: Phylanthus Nerurie Linn, Euphorbiaceae.
भूकुशमंडी, Bhukushmandi :: Pueraria Tuberosa.
भेटकी, बेतकी, Bhetki, Betki :: Bhetki.
भोजपत्र, भुर्ज पत्रः, मृदुच्छड़ भुर्जग्रंथि, Bhojapatra :: Bhurja Patrah, Mriducchada, Bhurjagranthi
Latin name: Himalayan Silver Birch, Betula utilis. मलकांगनी, ज्योतिष्मती, Malkangani, Jyotishmati :: Staff Tree, Celastrus paniculatus. मंजिस्था, Manjistha :: Indian madder, Rubia Cordifolia.
मुलहटी, जेठीमधु, यस्तीमधुका, Mulethi, Jethimadhu, Yastimadhuka :: Liquorice, Glycyrrhiza glabra.
मीठा विष, बचनाग, Meetha Visha, Bachhnaag, Vatsnabha, Amrita, Vajranaga :: Monks hood, Aconite, Aconitum.
यष्टिमधु, Yashtimadhu Root :: Glycyrrhiza glabra, Licorice Root.
रतनपुरुष, Ratan Purush :: Hybanthus Enneaspermus Spade Flower, Pink ladies slipper.
रत्ती, घुंगची, रक्तिका, ककन्ति, Ratti, Ghungchi, Raktika, Kakananti :: Jequirity, Abrus.
रीठा, शिकाकाई, Reetha, Shikakai :: Acacia concinna, soap nut.
वच, उग्र गंध, उग्र, सद गंध, Bach, Gora-Bach, Vacha, Ugragandha, Ugra, Sadgrantha :: Sweet Flag, Acorus.
वच-वसाका, Vach-Vasaka :: Adhatoda vasaka, Calamus Root.
वचनाग, Vach Nag :: Aconitum ferox Wall, Indian Aconite.
वंशलोचन, Vansh Lochan :: Manna.
विडंग, FALSE PEPPER (Embelia ribes, Embelia) :: मिर्गी के दौरे पड़ने पर विडंग का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटें। यह मिर्गी पराश्रयी रोगों, पराश्रयी संक्रमण, पेट फूलना, जीवाणु संक्रमण, निम्न रक्त शर्करा का स्तर, गर्भ निरोधक, मूत्राधिक्य, सूजन, कब्ज, दस्त, बुखार में भी लाभकारी है।
वज्रदंती, Vajradanti :: Barlenia Priontis. वरुण, Baruna, Barna, Varana :: Three Leaved Caper, Crataeva nurvala.
विधार, घाव पत्ता, समुद्र सोख, वृद्धदारु, Vidhara, Ghavapatta, Samudrasokha, Vridhadaru :: Elephant Creeper, Argyreia speciosa. शतावरी, सतावर, सतमूली, नारायणी, वरि, अभिरु, अतिरस, Shatavari, Satavar, Satmuli, Narayani, Vari, Abhiru, Atirasa :: Wild Asparagus, Asparagus racemosus.
शतवार, सूतमूली, Sootmooli :: Asparagus Shatwar or Halyan.
शलाकी, Shallaki :: Boswellia serrata, Indian Frankincense.
शालपर्णी, स्थिर, विदारि गंध, Shalaparni, Sarivan, Shalparni, Sthira, Vidarigandha :: Shal Leaved Bush, Desmodium gangetcium, Magnolia, Fabaceae Family.
शिरीष, शीतपुष्प, सुकप्रिय, Sirish, Siri, Shirsha, Sitapuspa, Sukapriya :: Siris Tree, Lebbeck Tree, Albizzia lebbeck.
सफ़ेद तिल, Safed til :: Sesamum indicum dc Gingily.
साल, मूसल साल, तुन, Saal, Muusal saal, Tun :: Shorea robusta gaertn Saul Tree.
सिस्टि-सल्बिया, Seesti-Salbia :: Sefakuss, Sage herb-Salvia officinalis.
सौंठ :: Sounth-Shunthi-zingiber-officinale.
सौंफ, Saunf :: Foeniculum vulgare, Fennel.
सलाई, लुबान, सल्लकी, Salai, Luban, Sallakie, :: Indian Olibanum, Boswellia serrata.
सुपारी, छाली, क्रमुक, घोंट, Supari; Chhali, Kramuka; Ghonta :: Areca Nut, Betel Nut, Areca catechu.
सेनाय, स्वर्णपत्री, Senaya, Svarnapatri :: Indian Senna, Tinnevelly senna.Cassia angustifolia.
हल्दी, हरिद्रा, Haldi, Haridra :: Turmeric, Curcuma longa. Curcuma aromatica salisb Round zeodary.
हल्दी जंगली, Jungli Haldi :: Curcuma longa Linn.
हरितकी, हरड़, हरै, Haritki :: Fruit Terminalia chebula, Chebulic Myrobalan, Belleric Myrobalan.
हिंगु, Hingu :: Ferula foetida.
क्षीरिणी, Kshirini, कराला Karala :: Indian Sarsaparilla.
काला धतूरा :: इसका पौधा काली तुलसी के साथ एक ही गमले में लगाकर घर के बरामदे में रखने से घर के समस्त वास्तुदोष समाप्त हो जाते हैं, माता लक्ष्मी की कृपा होती है, टोने-टोटकों, तांत्रिक प्रक्रियाओं से रक्षा होती है। शुभ नक्षत्र में काले धतूरे की जड़ को अभिमंत्रित करके धारण करने से भी लाभ मिलता है।
भल्लातक, Bhallataka :: Semecarpus anacardium.
भाँग, Bhang :: Cannabis sativa.
भ्रंगराज, Bhrang Raj :: Eclipta alba, Trailing Eclipta Plant.
भृङ्गी, अंगारवल्ली Bharangee, Angaravalli, Brahmanayastika :: Bharangee, Clerodendron serratum.भुई अमला-भुम्यमलाकि, Bhui Amla-Bhumyamalaki :: Phylanthus Nerurie Linn, Euphorbiaceae.
भूकुशमंडी, Bhukushmandi :: Pueraria Tuberosa.
भेटकी, बेतकी, Bhetki, Betki :: Bhetki.
भोजपत्र, भुर्ज पत्रः, मृदुच्छड़ भुर्जग्रंथि, Bhojapatra :: Bhurja Patrah, Mriducchada, Bhurjagranthi
Latin name: Himalayan Silver Birch, Betula utilis. मलकांगनी, ज्योतिष्मती, Malkangani, Jyotishmati :: Staff Tree, Celastrus paniculatus. मंजिस्था, Manjistha :: Indian madder, Rubia Cordifolia.
मुलहटी, जेठीमधु, यस्तीमधुका, Mulethi, Jethimadhu, Yastimadhuka :: Liquorice, Glycyrrhiza glabra.
मीठा विष, बचनाग, Meetha Visha, Bachhnaag, Vatsnabha, Amrita, Vajranaga :: Monks hood, Aconite, Aconitum.
यष्टिमधु, Yashtimadhu Root :: Glycyrrhiza glabra, Licorice Root.
रतनपुरुष, Ratan Purush :: Hybanthus Enneaspermus Spade Flower, Pink ladies slipper.
रत्ती, घुंगची, रक्तिका, ककन्ति, Ratti, Ghungchi, Raktika, Kakananti :: Jequirity, Abrus.
रीठा, शिकाकाई, Reetha, Shikakai :: Acacia concinna, soap nut.
वच, उग्र गंध, उग्र, सद गंध, Bach, Gora-Bach, Vacha, Ugragandha, Ugra, Sadgrantha :: Sweet Flag, Acorus.
वच-वसाका, Vach-Vasaka :: Adhatoda vasaka, Calamus Root.
वचनाग, Vach Nag :: Aconitum ferox Wall, Indian Aconite.
वंशलोचन, Vansh Lochan :: Manna.
विडंग, FALSE PEPPER (Embelia ribes, Embelia) :: मिर्गी के दौरे पड़ने पर विडंग का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटें। यह मिर्गी पराश्रयी रोगों, पराश्रयी संक्रमण, पेट फूलना, जीवाणु संक्रमण, निम्न रक्त शर्करा का स्तर, गर्भ निरोधक, मूत्राधिक्य, सूजन, कब्ज, दस्त, बुखार में भी लाभकारी है।
वज्रदंती, Vajradanti :: Barlenia Priontis. वरुण, Baruna, Barna, Varana :: Three Leaved Caper, Crataeva nurvala.
विधार, घाव पत्ता, समुद्र सोख, वृद्धदारु, Vidhara, Ghavapatta, Samudrasokha, Vridhadaru :: Elephant Creeper, Argyreia speciosa. शतावरी, सतावर, सतमूली, नारायणी, वरि, अभिरु, अतिरस, Shatavari, Satavar, Satmuli, Narayani, Vari, Abhiru, Atirasa :: Wild Asparagus, Asparagus racemosus.
शतवार, सूतमूली, Sootmooli :: Asparagus Shatwar or Halyan.
शलाकी, Shallaki :: Boswellia serrata, Indian Frankincense.
शालपर्णी, स्थिर, विदारि गंध, Shalaparni, Sarivan, Shalparni, Sthira, Vidarigandha :: Shal Leaved Bush, Desmodium gangetcium, Magnolia, Fabaceae Family.
शिरीष, शीतपुष्प, सुकप्रिय, Sirish, Siri, Shirsha, Sitapuspa, Sukapriya :: Siris Tree, Lebbeck Tree, Albizzia lebbeck.
सफ़ेद तिल, Safed til :: Sesamum indicum dc Gingily.
साल, मूसल साल, तुन, Saal, Muusal saal, Tun :: Shorea robusta gaertn Saul Tree.
सिस्टि-सल्बिया, Seesti-Salbia :: Sefakuss, Sage herb-Salvia officinalis.
सौंठ :: Sounth-Shunthi-zingiber-officinale.
सौंफ, Saunf :: Foeniculum vulgare, Fennel.
सलाई, लुबान, सल्लकी, Salai, Luban, Sallakie, :: Indian Olibanum, Boswellia serrata.
सुपारी, छाली, क्रमुक, घोंट, Supari; Chhali, Kramuka; Ghonta :: Areca Nut, Betel Nut, Areca catechu.
सेनाय, स्वर्णपत्री, Senaya, Svarnapatri :: Indian Senna, Tinnevelly senna.Cassia angustifolia.
हल्दी, हरिद्रा, Haldi, Haridra :: Turmeric, Curcuma longa. Curcuma aromatica salisb Round zeodary.
हल्दी जंगली, Jungli Haldi :: Curcuma longa Linn.
हरितकी, हरड़, हरै, Haritki :: Fruit Terminalia chebula, Chebulic Myrobalan, Belleric Myrobalan.
हिंगु, Hingu :: Ferula foetida.
क्षीरिणी, Kshirini, कराला Karala :: Indian Sarsaparilla.
काला धतूरा :: इसका पौधा काली तुलसी के साथ एक ही गमले में लगाकर घर के बरामदे में रखने से घर के समस्त वास्तुदोष समाप्त हो जाते हैं, माता लक्ष्मी की कृपा होती है, टोने-टोटकों, तांत्रिक प्रक्रियाओं से रक्षा होती है। शुभ नक्षत्र में काले धतूरे की जड़ को अभिमंत्रित करके धारण करने से भी लाभ मिलता है।
जामुन की लकड़ी :: अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकड़ा पानी की टंकी में रख दें तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती और पानी सड़ता नहीं। टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता।
जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक नहीं सड़ती। जामुन की इस खूबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है। नाव का निचला सतह जो हमेशा पानी में रहता है वह जामुन की लकड़ी होती है।
कुँए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे जमोट कहते है। आजकल लोग जामुन का उपयोग घर बनाने में भी करने लगे है।
जामुन के छाल का उपयोग श्वसन गलादर्द रक्त शुद्धि और अल्सर में किया जाता है। जामुन के पत्ते SUGAR की बीमारी में उपयोगी हैं।
दिल्ली के महरौली स्थित निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है। 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ पानी के सोते बंद नहीं हुए हैं। इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है, जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।
इस बावड़ी में भी जामुन की लकड़ी इस्तेमाल की गई थी जो 700 साल बाद भी नहीं गली है। बावड़ी की सफाई करते समय बारीक से बारीक बातों का भी खयाल रखा गया। यहाँ तक कि सफाई के लिए पानी निकालते समय इस बात का खास खयाल रखा गया कि इसकी एक भी मछली न मरे। इस बावड़ी में 10 किलो से अधिक वजनी मछलियाँ भी मौजूद हैं।
इन सोतों का पानी अब भी काफी मीठा और शुद्ध है। इन सोतों का पानी आज भी इतना शुद्ध है कि इसे सीधे पी सकते हैं। पेट के कई रोगों में यह पानी फायदा करता है, ऐसा मानना है।
पर्वतीय क्षेत्र में आटा पीसने की पनचक्की का उपयोग अत्यन्त प्राचीन है। पानी से चलने के कारण इसे "घट' या "घराट' कहते हैं।घराट की गूलों से सिंचाई का कार्य भी होता है। यह एक प्रदूषण से रहित परम्परागत प्रौद्यौगिकी है। इसे जल संसाधन का एक प्राचीन एवं समुन्नत उपयोग कहा जा सकता है। आजकल बिजली या डीजल से चलने वाली चक्कियों के कारण कई घराट बंद हो गए हैं और कुछ बंद होने के कगार पर हैं।
पनचक्कियाँ प्राय: हमेशा बहते रहने वाली नदियों के तट पर बनाई जाती हैं। गूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न हो जाता है। इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (फितौड़ा) रखकर उसके ऊपर चक्की के दो पाट रखे जाते हैं। निचला चक्का भारी एवं स्थिर होता है। पंखे के चक्र का बीच का ऊपर उठा नुकीला भाग (बी) ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची (क्वेलार) में फँसाया जाता है। पानी के वेग से ज्यों ही पंखेदार चक्र घूमने लगता है, चक्की का ऊपरी चक्का घूमने लगता है। परनाले में प्रायः जामुन की लकड़ी का भी इस्तेमाल होता है।
जामुन की लकड़ी एक अच्छी दातुन है।
जलसुंघा (ऐसे विशिष्ट प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जो भूमिगत जल के स्त्रोत का पता लगाते है) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं।
गिलोय अमृत :: इसका वानस्पतिक नाम ( Botanical name) टीनोस्पोरा कॉर्डीफोलिया (tinospora cordifolia) है।
इसके पत्ते पान के पत्ते जैसे दिखाई देते हैं और जिस पौधे पर यह चढ़ जाती है, उसे मरने नहीं देती।
इसके बहुत सारे लाभ आयुर्वेद में बताए गए हैं, जो न केवल आपको सेहतमंद रखते हैं, बल्कि आपकी सुंदरता को भी निखारते हैं ।
रोग प्रतिरोधी क्षमता :: गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर बीमारियों से दूर रखती है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं।
यह खून को साफ करती है और बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। लीवर और किडनी की कार्य क्षमता को बढ़ाती है।
बुखार :: अगर किसी को बार-बार बुखार आता है तो उसे गिलोय का सेवन करना चाहिए। गिलोय हर तरह के बुखार से लडऩे में मदद करती है। इसीलिए डेंगू के मरीजों को भी गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है। डेंगू के अलावा मलेरिया, स्वाइन फ्लू में आने वाले बुखार से भी गिलोय छुटकारा दिलाती है।
डायबिटीज :: गिलोय एक हाइपोग्लाइसेमिक एजेंट है यानी यह खून में शर्करा की मात्रा को कम करती है। इसलिए इसके सेवन से खून में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है, जिसका फायदा टाइप टू डायबिटीज के मरीजों को होता है।
पाचन शक्ति :: यह बेल पाचन तंत्र के सारे कामों को भली-भाँति संचालित करती है और भोजन के पचने की प्रक्रिया में मदद कती है। इससे व्यक्ति कब्ज और पेट की दूसरी गड़बडिय़ों से बचा रहता है।
तनाव :: प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तनाव या स्ट्रेस एक बड़ी समस्या बन चुका है। गिलोय एडप्टोजन की तरह काम करती है और मानसिक तनाव और चिंता (एंजायटी) के स्तर को कम करती है। इसकी मदद से न केवल याददाश्त बेहतर होती है बल्कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली भी दुरूस्त रहती है और एकाग्रता बढ़ती है।
आँखों की रोशनी :: गिलोय को पलकों के ऊपर लगाने पर आँखों की रोशनी बढ़ती है। इसके लिए आपको गिलोय पाउडर को पानी में गर्म करना होगा। जब पानी अच्छी तरह से ठंडा हो जाए तो इसे पलकों के ऊपर लगाएं।
अस्थमा :: मौसम के परिवर्तन पर खासकर सर्दियों में अस्थमा को मरीजों को काफी परेशानी होती है। ऐसे में अस्थमा के मरीजों को नियमित रूप से गिलोय की मोटी डंडी चबानी चाहिए या उसका जूस पीना चाहिए। इससे उन्हें काफी आराम मिलेगा।
गठिया :: गठिया यानी आर्थराइटिस में न केवल जोड़ों में दर्द होता है, बल्कि चलने-फिरने में भी परेशानी होती है। गिलोय में एंटी आर्थराइटिक गुण होते हैं, जिसकी वजह से यह जोड़ों के दर्द सहित इसके कई लक्षणों में फायदा पहुँचाती है।
एनीमिया :: भारतीय महिलाएं अक्सर एनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित रहती हैं। इससे उन्हें हर वक्त थकान और कमजोरी महसूस होती है। गिलोय के सेवन से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की सँख्या बढ़ जाती है और एनीमिया से छुटकारा मिलता है।
कान का मैल :: कान का जिद्दी मैल बाहर नहीं आ रहा है तो थोड़ी सी गिलोय को पानी में पीस कर उबाल लें। ठँडा करके छान के कुछ बूँदें कान में डालें। एक-दो दिन में सारा मैल अपने आप बाहर जाएगा।
पेट की चर्बी :: गिलोय शरीर के उपापचय (मेटाबॉलिजम) को ठीक करती है, सूजन कम करती है और पाचन शक्ति बढ़ाती है। ऐसा होने से पेट के आस-पास चर्बी जमा नहीं हो पाती और आपका वजन कम होता है।
खूबसूरती :: गिलोय न केवल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है, बल्कि यह त्वचा और बालों पर भी चमत्कारी रूप से असर करती है।
गिलोय में एंटी एजिंग गुण होते हैं, जिसकी मदद से चेहरे से काले धब्बे, मुंहासे, बारीक लकीरें और झाई-झुर्रियाँ दूर की जा सकती हैं। इसके सेवन से आप ऐसी निखरी और दमकती त्वचा पा सकते हैं।
घाव :: अगर आप इसे त्वचा पर लगाते हैं तो घाव बहुत जल्दी भरते हैं। त्वचा पर लगाने के लिए गिलोय की पत्तियों को पीस कर पेस्ट बनाएं। अब एक बरतन में थोड़ा सा नीम या अरंडी का तेल उबालें। गर्म तेल में पत्तियों का पेस्ट मिलाएं। ठंडा करके घाव पर लगाएं। इस पेस्ट को लगाने से त्वचा में कसावट भी आती है।
बालों की समस्या :: अगर आप बालों में ड्रेंडफ, बाल झडऩे या सिर की त्वचा की अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं तो गिलोय के सेवन से आपकी ये समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।
गिलोय का प्रयोग ::
गिलोय अर्क :: गिलोय की डंडियों को छील लें और इसमें पानी मिलाकर मिक्सी में अच्छी तरह पीस लें। छान कर सुबह-सुबह खाली पेट पीएं। अलग-अलग ब्रांड का गिलोय जूस भी बाजार में उपलब्ध है।
काढ़ा :: चार इंच लंबी गिलोय की डंडी को छोटा-छोटा काट लें। इन्हें कूट कर एक कप पानी में उबाल लें। पानी आधा होने पर इसे छान कर पीएं। अधिक फायदे के लिए आप इसमें लौंग, अदरक, तुलसी भी डाल सकते हैं।
चूर्ण :: वैसे गिलोय पाउडर बाजार में उपलब्ध है। इसे घर पर भी बना सकते हैं। इसके लिए गिलोय की डंडियों को धूप में अच्छी तरह से सुखा लें। सूख जाने पर मिक्सी में पीस कर पाउडर बनाकर रख लें।
गिलोय वटी :: बाजार में गिलोय की गोलियां यानी टेबलेट्स भी आती हैं। अगर आपके घर पर या आस-पास ताजा गिलोय उपलब्ध नहीं है तो आप इनका सेवन करें।
अरंडी यानी कैस्टर के तेल के साथ गिलोय मिलाकर लगाने से गाउट (जोड़ों का गठिया) की समस्या में आराम मिलता है।इसे अदरक के साथ मिला कर लेने से रूमेटाइड आर्थराइटिस की समस्या से लड़ा जा सकता है। चीनी के साथ इसे लेने से त्वचा और लिवर संबंधी बीमारियां दूर होती हैं। आर्थराइटिस से आराम के लिए इसे घी के साथ इस्तेमाल करें। कब्ज होने पर गिलोय में गुड़ मिलाकर खाएं।
दुष्परिणाम :: वैसे तो गिलोय को नियमित रूप से इस्तेमाल करने के कोई गंभीर दुष्परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं लेकिन क्योंकि यह खून में शर्करा की मात्रा कम करती है। इसलिए इस बात पर नजर रखें कि ब्लड शुगर जरूरत से ज्यादा कम न हो जाए।
गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को गिलोय के सेवन से बचना चाहिए। पाँच साल से छोटे बच्चों को गिलोय न दे।
वर्षाऋतु का काल में घर में बड़े गमले या आँगन में जहाँ भी उचित स्थान हो गिलोय की बेल अवश्य लगायें यह बहु उपयोगी वनस्पति ही नही बल्कि आयुर्वेद का अमृत और ईश्वरीय वरदान है।
PLANTATION OF SACRED TREES ::
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्, न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च, पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्॥
[स्कंद पुराण]
जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा, उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ेंगे।
अश्वत्थः :- पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
पिचुमन्दः :- नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
न्यग्रोधः :- वटवृक्ष(80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
चिञ्चिणी :- इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
कपित्थः :- कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
बिल्वः :- बेल(85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आमलकः :- आँवला (74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आम्रः :- आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
(उप्ति :- पौधा लगाना)
Anyone who grow these plant and nourish them into trees will not face hells. These trees absorb atmospheric carbon dioxide and purify the environment.
शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है :-
मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते॥
जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान् शिव का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते-पत्ते पर सभी देवताओं का वास है। ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है।
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (97) :: ऋषि :- आथर्वगण, भिषग; देवता :- ओषधय; छन्द :- अनुष्टुप्।
या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनै नु बभ्रूणामहं शतं धामानि सप्त च॥
पूर्व समय में, तीन युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग या वसन्त, वर्षा और शरद्) में, जो औषधियाँ प्राचीन देवों ने बनाई, वे सब पिङ्गल-वर्ण औषधियाँ एक सौ सात स्थानों में विद्यमान है, मैं ऐसा जानता हूँ।[ऋग्वेद 10.97.1]
The yellow coloured medicines-herbs grown by the demigods-deities during ancient times in the three Yug (Saty, Treta, Dwapar) or spring, rainy, winter seasons; are still present in one hundred seven places, this is what I know.
शतं वो अम्ब धामानि सहस्त्रमुत वो रुहः। अधा शतक्रत्वो यूयमिमं मे अगदं कृत॥
हे मातृ-रूप औषधियों! आपका जन्म असीम है और आपका प्ररोहण अपरिमित हैं। आप सौ कर्मोंवाली है। आप मुझे आरोग्यता प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.97.2]
ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अश्वाइव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्ण्वः॥
हे मातृ रूप औषधियो! आप फूल और फल वाली हों। आप रोगी के प्रति सन्तुष्ट होवें। आप अश्वों के समान रोगों के लिए जयशील हो और पुरुषों को रोग से मुक्त करने वाली हों।[ऋग्वेद 10.97.3]
Hey motherly medicines (herbs)! You should bear flowers & fruits and cure the patient. You should win over the ailments like the horses and cure the humans from diseases.
ओषधीरिति मातरस्तद्बो देवीरुप ब्रुवे। सनेयमश्वं गां वास आत्मानं तव पूरुष॥
हे दीप्तिशाली औषधियों! आप मातृ-रूप हैं। आपके सामने मैं स्वीकार करता हूँ। हे पुरुष चिकित्सक! गौ, अश्व, वस्त्र और अपने को मैं आपके निमित्त अर्पित करता हूँ।[ऋग्वेद 10.97.4]
Hey lustrous herbs-medicines! You are like mother. I accept this before you. Hey male physician! I offer cows, horses, cloths and myself to you.
अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्॥
हे औषधियों! आपका अश्वत्थ वृक्ष और पलाश वृक्ष पर निवास स्थान है। जिस समय आप लोग रोगी के ऊपर अनुग्रह करती हैं, उस समय आपको गायें देना उचित है, आप विशिष्ट कृतज्ञता की पात्र हैं।[ऋग्वेद 10.97.5]
Hey medicinal herbs! You reside over the Peeple-fig and butea tree. When you oblige the patent, granting cows to you is justified and you deserve special thanks.
यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव। विप्रः स उच्यते भिषग्रक्षोहामीवचातनः॥
जिस प्रकार राजागण युद्ध में एकत्रित हो जाते हैं, उसी प्रकार जिसके पास औषधियाँ हैं या जो उन्हें जानता है, उसी बुद्धिमान् भिषक् को चिकित्सक कहा जाता है। वह रोगों का विनाशकर्ता है।[ऋग्वेद 10.97.6]
The way the kings assemble in the war, similarly I know the people who own medicines. Such intelligent person is knows as Bhishak (Vaidya-doctor). He cures the ailments-diseases.
अश्वावतीं सोमावतीमूर्जयन्तीमुदोजसम्। आवित्सि सर्वा ओषधीरस्मा अरिष्टतातये॥
इसे निरोग करने के लिए मैं अश्ववती, सोमवती, ऊर्जयन्ती, उदोजस आदि औषधियों को जानता हूँ।[ऋग्वेद 10.97.7]
I am aware the herbs like Ashwvati, Somwati, Urjyanti, Udojas etc. which cures living beings.
उच्छुष्मा ओषधीनां गावो गोष्ठादिवेरते। धनं सनिष्यन्तीनामात्मानं तव पूरुष॥
हे रोगी! जिस प्रकार गोष्ठ से गायें बाहर होती हैं, उसी प्रकार ही औषधियों से उनका गुण बाहर होता है। ये औषधियाँ आपको स्वास्थ्य-धन देंगी।[ऋग्वेद 10.97.8]
Hey patient! The way cows come out of the shed, similarly the qualities-extract of the medicines is released. These herbal medicines will cure you granting good health.
इष्कृतिर्नाम वो माताथो यूयं स्थ निष्कृतीः। सीराः पतत्रिणीः स्थन यदामयति निष्कृथ॥
हे औषधियों! आपकी माता का नाम इष्कृति (नीरोग करने वाली) है। आप लोग भी रोगों को दूर करेनवाली है। जो कुछ शरीर को पीड़ा देता है, उसे आप लोग वेग से बाहर निकाल दें। आप रोगी को नीरोगी बनाती हैं।[ऋग्वेद 10.97.9]
Hey medicines! Your mother's name is Ishkrati (granting good health). You too remove ailments. You quickly remove the aches-pains from the body. You make a person free from diseases i.e., healthy.
अति विश्वाः परिष्ठाः स्तेनइव व्रजमक्रमुः। ओषधीः प्राचुच्यवुर्यत्किं च तन्वो ३ रपः॥
जिस प्रकार कोई चोर गोष्ठ को लांघकर जाता है, उसी प्रकार ही विश्व व्यापी और सर्वज्ञ औषधियाँ रोगों को लंघन करती हैं। शरीर में जो पीड़ा होती है, उसे औषधियाँ दूर करती हैं।[ऋग्वेद 10.97.10]
The way a thief crosses the boundary, herbs pervading the universe and all knowing; remove the ailment from the body.
यदिमा वाजयन्नहमोषधीर्हस्त आदधे। आत्मा यक्ष्मस्य नश्यति पुरा जीवगृभो यथा॥
जब भी मैं इन सब औषधियों को हाथ में ग्रहण करता हूँ और रोगी की दुर्बलता दूर करता हूँ, तभी रोग की आत्मा वैसे ही मर जाती है, जैसे मृत्यु से जीव मर जाता है।[ऋग्वेद 10.97.11]
Whenever I hold the medicine in hand, I remove the weakness killing the disease at once, like a living being-organism dies.
यस्यौषधीः प्रसर्पथाङ्गमङ्गं परुष्परुः। ततो यक्ष्मं वि बाधध्व उग्रो मध्यमशीरिव॥
हे औषधियों! जिस प्रकार बली और मध्यस्थ व्यक्ति सबको अधीन करते है, उसी प्रकार ही, हे औषधियों! आप लोग जिसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग और ग्रन्थि-ग्रन्थि उसके शारीरिक रोगों को समूल विनष्ट कर देती हैं।[ऋग्वेद 10.97.12]
Hey medicines! The way a mediator and mighty person control everyone, you destroy the ailments from all segments of the body.
साकं यक्ष्म प्र पत चाषेण किकिदीविना। साकं वातस्य ध्राज्या साकं नश्य निहाकया॥
नील कण्ठ और किकिदीवि (श्येन) पक्षी जैसे द्रुत वेग से उड़ जाते है अथवा जैसे वायु वेग से बहता है या जैसे गोधा (गोह) दौड़ती है, वैसे ही हे रोग! आप भी शीघ्र दूर होंगे।[ऋग्वेद 10.97.13]
Hey disease-ailment! You should run away either like the Neel Kanth (bird) and falcon or the air, Monitor lizard.
अन्या वो अन्यामवत्वन्यान्यस्या उपावत। ताः सर्वाः संविदाना इदं में प्रावता वचः॥
हे औषधियों! आप लोगों में एक औषधि दूसरी के पास जाए और दूसरी तीसरी के पास जाए। इस प्रकार संसार की सारी औषधियाँ एकमत होकर मेरी प्रार्थना की रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.97.14]
Hey herbal medicines! Let the medicines pass from one to another. In this manner all medicines should collectively protect me.
याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्वंहसः॥
फलवती और फलशून्या तथा पुष्पवती और पुष्पशून्यां औषधियाँ, बृहस्पति के द्वारा उत्पादित होकर, हमें पाप से बचावें।[ऋग्वेद 10.97.15]
Whether with flowers, fruits or without them should be produced by Brahaspati and protect us from diseases (outcome of sins).
मुञ्चन्तु मा शपथ्या ३ दथो वरुण्यादुत। अथो यमस्य पड्वीशात् सर्वस्माद्देवकिल्बिषात्॥
शपथ से उत्पन्न पाप से मुझे औषधियाँ बचावें। वरुण के पाश और यम की बेड़ी से भी बचावें। देवगणों के पाश से भी बचावें।[ऋग्वेद 10.97.16]
Let the medicines protect me from the outcome-sins of oath, Varun Dev's noose or Varun Dev's snare and Yam Raj's shackles.
अवपतन्तीरवदन् दिव ओषधस्यपरि। यं जीमश्नवामहै न स रिष्याति पूरुषः॥
स्वर्ग से नीचे आते समय औषधियों ने कहा था कि हम जिस प्राणी पर अनुग्रह करती हैं, उसका कोई अनिष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.97.17]
While descending from the heavens Herbal medicines said that the one-living being obliged by us, can not be troubled by any one.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः। तासां त्वमस्युत्तमारं कामाय शं हृदे॥
जिन औषधियों का राजा सोम है और जो औषधियाँ असीम उपकार करती हैं, हे औषधि! उनमें आप श्रेष्ठ हैं, आप वासना को पूर्ण करके हृदय को सुखी करने में समर्थ है।[ऋग्वेद 10.97.18]
The medicines who's lord is Som, which grant unlimited beneficence, are the best. They are capable of satisfying sexual desires, granting pleasure.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्विष्ठिताः पृथिवीमनु। बृहस्पतिप्रसूता अस्यै सं दत्त वीर्यम्॥
जिन औषधियों का राजा सोम है और जो पृथ्वी के नाना स्थानों में अधिष्ठित हैं, वे ही बृहस्पति के द्वारा उत्पादित औषधियाँ इस रोगी को बल दें अथवा इस उपस्थित ओषधि को वीर्यवती करें।[ऋग्वेद 10.97.19]
Potential medicines present at various locations over the earth, headed by Som, produced by Brahaspati should grant strength to the patient.
मा वो रिषत्खनिता यस्मै चाहं खनामि वः। द्विपचतुष्पदस्माकं सर्वमस्त्वनातुरम्॥
हे औषधियों! मैं आपको खोदकर निकालने वाला हूँ। मुझे नष्ट न करें। जिसके लिए खोदता हूँ, वह भी नष्ट न हो। हमारी जो द्विपद और चतुष्पद आदि सम्पत्तियाँ हैं, वे (सदैव) नीरोग रहें।[ऋग्वेद 10.97.20]
Hey medicines I am going to dig you. Do not destroy me. One for whom I am going to dig should also be protected. Our two and four legged living beings should also remain free from ailments-diseases.
याश्चेदमुपशृण्वन्ति याश्च दूरं परागताः। सर्वाः संगत्य वीरुधोऽस्यै सं दत्त वीर्यम्॥
जो औषधियाँ मेरा यह स्तोत्र सुनती हैं और जो अत्यन्त दूरी पर हैं (इसीलिए स्तोत्र नहीं सुना है), वे सब इकट्ठी होकर इस औषधि को वीर्यवती करें।[ऋग्वेद 10.97.21]
The medicines which listen my Strotr or the ones which are distant should together make this medicine potential.
ओषधयः सं वदन्ते सोमेन सह राज्ञा। यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन् पारयामसि॥
औषधियाँ सोम राजा के साथ यह कथोप-कथन करती हैं। हे राजन्! जिसकी चिकित्सा स्तोता करते हैं, उसे ही हम बचाते हैं।[ऋग्वेद 10.97.22]
Herbal medicines enter into dialogue with Lord Som. Hey Lord! We are able to save one is treated by the Stota.
त्वमुत्तमास्योषधे तव वृक्षा उपस्तयः।
उपस्तिरस्तु सो ३ ऽ स्माकं यो अस्माँ अभिदासति॥
हे औषधि, आप श्रेष्ठ हैं। जितने वृक्ष हैं, सब आपसे हीन है। जो हमारा अनिष्ट-चिन्तन करता है, वह भी हमारे वशीभूत रहें।[ऋग्वेद 10.97.23]
Hey medicine, you are the best. The trees do not possess you. One who has ill will grudge against us should remain under our control.
या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनै नु बभ्रूणामहꣳ शतं धामानि सप्त च॥
जगत् के आरम्भकाल में जो ओषधियाँ देवों द्वारा वसन्त, वर्षा, शरद्, इन तीन ऋतुओं में प्रकट हुई हैं, पक्व होकर पीले रंग से युक्त उन सैकड़ों ओषधियों तथा ब्रीहि-यव-नीवारादि सात प्रकार के अन्नों के सामर्थ्य से हम भली-भाँति परिचित हैं।[यजुर्वेद 12.75]
अन्न के प्रकार ::
ब्रीहि :- चावल-paddy, गेहूँ-गोधूम, wheat.
यव :- जौ-barley.
नीवार :- जंगली चावल या धान, पसही या तिन्नी का चावल, मुन्यन्न, ओइरी धान।
We are well versed with the medicines which appeared during spring, rains and winters ripened turning yellow and seven categories of food grains like Breehi, Yav and Neevar.
शतं वो अम्ब धामानि सहस्त्रमुत वो रुहः। अधा शतक्रत्वो यूयमिमं मे अगदं कृत॥
हे माता के समान पोषणकारी गुणों से युक्त ओषधियों! आप सभी के सैकड़ों नाम हैं तथा हजारों अंकुर हैं। सैकड़ों कर्मों को पूर्ण करने वाली हे ओषधियों! आप सभी हमारे इस याजक को समस्त प्रकार के रोगों से मुक्त करो।[यजुर्वेद 12.76]Hey medicines possessing nourishing powers like mother! You have thousands of names and sprouts. Hey medicines performing hundreds of functions! Together you should make our Yajak free from diseases.
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ओषधीः प्रतिमोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्ण्वः॥
हे ओषधियों! आप तीव्रगामी अश्व के सदृश ही विविध प्रकार के रिपु के समान रोगों को तीव्रता से विनष्ट करने वाली हो। आप फूलों से युक्त एवं फलों को उत्पन्न करने वाले गुणों से युक्त हैं, अतः आप हमें प्रसन्नता प्रदान करनेवाली सिद्ध हों।[यजुर्वेद 12.77]
Hey medicines! You should destroy the diseases which are like enemies, quickly like fast moving horse. You possess the qualities of reproducing flowers and fruits, hence you should be capable of granting us pleasure.
ओषधीरिति मातरस्तद्वो देवीरुप ब्रुवे। सनेयमश्वं गां वास आत्मानं तव पूरुष॥
हे ओषधियों! आप मातृवत् पालन शक्ति से सम्पन्न दिव्य गुणों से युक्त हैं, आपके ऐसे गुणों की हम प्रशंसा करते हैं। उसे आप स्वीकारें। हे यज्ञ पुरुष! आपसे उपलब्ध गौ, अश्व, वस्त्र तथा रोग-रहित शरीर के सुखों का हम भली-भाँति उपभोग करें।[यजुर्वेद 12.78]
Hey medicines! You are motherly, possessing divine qualities appreciated by us. Accept our gratitude. Hey Yagy Purush! You should properly use the cows, horses, cloths and diseases-ailments free bodies.(24.05.2025)
अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत् किलासथ यत् सनवथ पूरुषम्॥
हे ओषधियों! आपका स्थान पीपल की लकड़ी द्वारा बनाया गया उपभृत तथा सुवपात्र में हैं। पलाश के पत्ते से बनी हुई जुहू में आपने अपना स्थान बनाया है। हे आहुति में प्रयोग की जाने वाली ओषधियों! आप पवन के समान होकर नभ का सेवन करें, तदुपरान्त प्राण-पर्जन्य वृष्टि के माध्यम से याजक को अन्नादि से युक्त करें।[यजुर्वेद 12.79]
उपभृत :: उपयुक्त, सक्षम; suitable, capable.
सुवपात्र :: well, deserving.
Hey medicines! Your place is in the pot-vessels made of Peepal wood. You have made the pot made of butea your home. Hey medicines used in sacrifices! Enjoy sky like Pawan Dev, thereafter grant food grains to the Yajak by showering rains.
यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव। विप्रः स उच्यते भिषग्रक्षोहामीवचातनः॥
हे ओषधियों! आप शत्रुवत् व्याधियों को नष्ट करने हेतु रोगी के निकट वैसे ही गमन करती हैं, जैसे शासक राक्षसों का संहार करने हेतु युद्धक्षेत्र में गमन करता है। वहाँ आपके माध्यम से वैद्य व्याधिरूपी राक्षस को पराजित करते हैं। ओषधि देकर रोगों का नाश करने वाले होने के कारण ही उन्हें चिकित्सक (वैद्य) कहा जाता है।[यजुर्वेद 12.80]
Hey medicines! You become close to the patient for removing diseases similar to the king who goes to the battle field for destroying demons. The doctor-Vaedy kills the ailments which are like demons. They are called physicians since they provide medicine to cure.
अश्वावतीꣳ सोमावतीमूर्जयन्तीमुदोजसम्। आऽवित्सि सर्वा ओषधीरस्मा अरिष्टतातये॥
इस याजक के पीड़ादायी व्याधियों के निवारण हेतु अश्व की भाँति बलशाली, सोमयाग के निमित्त उपयोगी, शक्ति-सामर्थ्य से सम्पन्न, वीर्य में वृद्धि करने वाली एवं तेजस्विता की पोषक, ऐसी सभी प्रकार की अरिष्ट विनाशक ओषधियों के अद्भुत गुणों से हम भली-भाँति परिचित हैं।[यजुर्वेद 12.81]
अरिष्ट :: जिन दवाओं में पंचामूल अर्थात् जड़, तना, पत्ता, फल, फूल का प्रयोग, जब काढ़ा बनाने के पश्चात संधान किया जाता है तो उन्हें अरिष्ट कहते हैं यथा दशमूलारिष्ट, अर्जुनारिष्ट, द्राक्षारिष्ट।
We are well versed with the medicines having amazing properties which are used to cure ailments, as strong as horse, useful for Som Yagy, boosts strength, increase sperm count-potency, grows shine, aura-radiance.
उच्छुष्मा ओषधीनां गावो गोष्ठादिवेरते। धनꣳ सनिष्यन्ती नामात्मानं तव पूरुष॥
हे यज्ञ पुरुष! आपके अग्नि रूपी देह के निमित्त हविष्यान्न के रूप में प्रयोग की जाने वाली ओषधियों से सामर्थ्य-शक्ति उत्पन्न होती हैं। जिस प्रकार गोष्ठ से गौयें अरण्य की तरफ गमन करती हैं, उसी प्रकार यज्ञ के धुएँ से ओषधियों की सामर्थ्य-शक्ति विस्तीर्ण वायुमण्डल में संव्याप्त हो जाती है अर्थात् फैल जाती हैं।[यजुर्वेद 12.82]
Hey Yagy Purush! The medicines used as sacrifices-offerings to evolve fire produce strength and calibre. The way cows move to forest from the cow shed, the smoke from the Yagy fire spread in the sky possessing the strength of the medicines.
इष्कृतिर्नाम वो माताऽथो यूयꣳ स्थ निष्कृतीः।
सीराः पतत्रिणी स्थन यदामयति निष्कृथ॥
हे ओषधियो! निष्कृति (सम्पूर्ण व्याधियों की नाशक अथवा सम्पूर्ण सस्यादि की उत्पादक पृथ्वी) नाम वाली आपकी माता है। जिस प्रकार अन्न भूख को शान्त करता है, उसी प्रकार आप मानवों में विद्यमान समस्त रोगों को निराकृत करें।[यजुर्वेद 12.83]
Hey medicines! Nishkrati-earth is your mother. The way hunger is satiated by the food, similarly you should cure all ailments of the humans.
अति विश्वाः परिष्ठा स्तेन इव व्रजमक्रमुः। ओषधीः प्राचुच्यवुर्यत्किं च तन्वो रपः॥
जैसे दस्यू गौओं के गोष्ठ पर आक्रमण करके उन्हें अपने वश में कर लेते हैं वैसे ही अपने गुणों से ओषधियाँ भी शरीर में व्याप्त व्याधियों के समूह पर आक्रमण करके उन्हें अपने वश में कर लेती हैं एवं देह के समस्त विकारों को अपनी सामर्थ्य शक्ति द्वारा मह करती हैं।[यजुर्वेद 12.84]
The way dacoits attack the cow shed and size the cows, similarly medicines attack multiple ailments in the body and cure them by virtue of their curative properties.
यदिमा वाजयन्नहमोषधीर्हस्त आदधे। आत्मा यक्ष्मस्य नश्यति पुरा जीवगृभो यथा॥
जिस प्रकार वध-गृह में जाने से पहले ही मारने के लिए ले जाया जा रहा प्राणी स्वयं को मृत समझ लेता है, उसी प्रकार जब हम विशिष्ट सामर्थ्य, शक्ति, गुणों से युक्त इन ओषधियों को भक्षण के लिए अपने हाथ में धारण करते हैं, तब राजयक्ष्मा (टी०बी०) जैसे भयंकर रोग अपने आपको नष्ट समझ लेते हैं।[यजुर्वेद 12.85]
The way a person taken to slaughter house consider himself as dead, similarly when medicines having specific curative powers are taken over the palm tuberculosis consider itself to be destroyed.
यस्यौषधीः प्रसर्पथांगमंगं परुष्यरुः। ततो यक्ष्मं वि बाधध्व उग्रो मध्यमशीरिव॥
हे ओषधियो! जब आप रोगी मनुष्य के अंग-अवयव में पूरी तरह से समा जाती हैं, तब जैसे शूरवीर पुरुष रिपु के हृदय स्थल को अपने बाणों से पीड़ित करके नष्ट कर देता है, वैसे ही आप यक्ष्मादि रोगों को पूर्णतया नष्ट कर देती हैं।[यजुर्वेद 12.86]
Hey medicines! When you are completely absorbed in the body of the patient, you destroy tuberculosis like the brave person who tear the heart of the enemy.
साकं यक्ष्म प्र पत चाषेण किकिदीविना। साकं वातस्य ध्राज्या साकं नश्य निहाकया॥
हे (यक्ष्मा) व्याधि! तुम पित्त, कफ तथा वायुविकार के साथ-साथ इस शरीर से दूर चली जाओ। हे यक्ष्मा! समस्त शरीर को पीड़ा देने वाली व्याधि के साथ अब तुम भी नष्ट हो जाओ।[यजुर्वेद 12.87]
Hey tuberculosis! Move away from the body along with Pitt, cough, Vayu Vikar (gastric trouble) and get destroyed.
अन्या वो अन्यामवत्वन्यान्यस्या उपावत। ताः सर्वाः संविदाना इदं मे प्रावता वचः॥
हे ओषधियो! आप आपस में एक-दूसरे की सामर्थ्य-शक्ति में वृद्धि करें। प्रयोग की गयी एक ओषधि दूसरी ओषधि की रक्षा के उद्देश्य से समीप आये अर्थात् पहली ओषधि के लाभ से अत्यधिक लाभ रोगी को प्रदान करे। सम्पूर्ण ओषधियाँ आपस में सहयोग की भावना का परिचय देती हुई हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार करें। ये ओषधियाँ इस यक्ष्मा रोग को अवश्य नष्ट कर देंगी, मेरा यह वचन असत्य न हो।[यजुर्वेद 12.88]
Hey medicine! Increase your potency mutually. Second medicine should increase its impact over the first, granting cure-recovery to the patient. All medicines should act mutually and accept our prayers. These medicines have to cure tuberculosis, my promise should be upheld.
याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वꣳ हसः॥
जो ओषधियाँ फल देने वाली हैं; जो फल नहीं देतीं; जो बिना फूलों वाली हैं और जो फूलों वाली हैं; बृहस्पति देव के द्वारा उत्पन्न या प्रेरित की गयी वे सब ओषधियाँ मुझे रोग रूपी पाप से अब शीघ्र ही मुक्त करें।[यजुर्वेद 12.89]
Let the medicines which grow fruits, without fruits, with flowers & without flowers evolved by Brahaspati Dev, should relieve me from the ailments-diseases appearing due to the sins.(25.05.2025)
मुञ्चन्तु मां शपथ्यादथो वरुण्यादुत। अथो यमस्य षड्वीशात्सर्वस्माद् देवकिल्बिषात्॥
हे ओषधियो! आप मिथ्या शपथ के कारण हुए पाप फल से उत्पन्न रोगों से और निन्दनीय कुकर्मों से उत्पन्न जल जनित रोगों से, यम के नियम तथा अनुशासन का उल्लंघन करने के कारण हुए कुकृत्यों से एवं दैवी अनुशासन के नियमों का पालन न करते हुए अपराध जनित कुकृत्यों जैसे सभी विकारों से हमें मुक्त करें।[यजुर्वेद 12.90]
Hey medicines! Relieve us from the diseases caused by false promise-oath, condemnable, wicked deeds leading to water born diseases, failure to follow the rules, discipline, dictates of Yam Raj and divine discipline.
अवपतन्तीरवदन्दिव ओषधयस्परि। यं जीवमश्नवामहै न स रिष्याति पूरुषः॥
द्युलोक से प्राणरूप में पृथ्वी पर आगमन करने वाली ओषधियाँ परस्पर कहती हैं कि जिस प्राणी ने हमारा भक्षण किया, उसके शरीर में हम व्याप्त हो जाती हैं; वह रोगों से मुक्त हो जाता है और समय से पहले मृत्यु के मुख में नहीं जाता।[यजुर्वेद 12.91
Medicines which descend over the earth from he heavens talk to each other saying that the living being who's body is pervaded by them is relieved from the ailments and do not die prior to his fixed time of death.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः। तासामसि त्वमुत्तमारं कामाय शꣳहृदे॥
यजमान ओषधियों से प्रार्थना करता हुआ कहता है; राजा सोम के द्वारा उत्पन्न की गयी अनेक ओषधियाँ जो सैकड़ों प्रकार के प्रभाववाली हैं, वे इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर व्याप्त हैं। मेरे द्वारा ग्रहण की गयी हे ओषधियों! तुम सभी ओषधियों में श्रेष्ठ हो। तुम मेरे मनोरथ को पूर्ण करने में समर्थ होओ और हृदय को शान्ति प्रदान करो।[यजुर्वेद 12.92]
The Yajman pray to the medicines and say that medicines evolved by king Som, which are in hundreds, pervade the earth. Hey medicines consumed by me! You are nest medicines. You should be capable to accomplishing my motive and grant peace of mind-heart to me.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्विष्ठिताः पृथिवीमनु। बृहस्पतिप्रसूता अस्यै संदत्त वीर्यम्॥
यजमान ओषधियों से प्रार्थना करता हुआ कहता है, राजा सोम के द्वारा उत्पन्न की गयी अनेक ओषधियाँ इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर व्याप्त हैं। हे ओषधियों! बृहस्पति की आज्ञा से आप सब अपने-अपने प्रभाव को मेरे द्वारा ग्रहण की गयी ओषधि में धारित करो।[यजुर्वेद 12.93]
Yajman worship medicines and say that medicines produced by king Som pervade the entire earth. Hey medicines! By virtue of Brahaspati Dev's orders show your impact in the medicine consumed by me.
याश्चेदमुपशृण्वन्ति याश्च दूरं परागताः। सर्वाः संगत्य वीरुधोऽस्यै संदत्त वीर्यम्॥
जो ओषधि हमारे समीप स्थित हैं, जो ओषधि हमसे दूर स्थित हैं तथा जो हमारे वचनों को सुनती हैं; ऐसी वृक्ष-लतादि विविध स्वरूपों में उगने वाली वे सारी ओषधियाँ मिलकर इस मनुष्य को ओजस्वी वीर्यवान् बनायें।[यजुर्वेद 12.94]
ओजस्वी :: रोचक, तीव्र, तीक्ष्ण, जीवित, सजीव, जीवंत, सीधा प्रसारण, शक्तिपूर्ण, उज्ज्वल, शक्तिपूर्ण, रंगीन, सक्रिय; live, lively, dignified, perfervid, strong, vehement, aurous, radiant, energetic, vigorous, live, lively.
The medicines-herbs in the form of trees, creepers close or far, which hear our conversation, together make this person healthy-energetic.
मा वो रिषत् खनिता यस्मै चाहं खनामि वः। द्विपाच्चतुष्पादस्माकꣳ सर्वमस्त्वनातुरम्॥
हे ओषधियो! रोगों की चिकित्सा के निमित्त आपके मूल भाग को ग्रहण करने की जरूरत है, अतः खुदाई करने वाला पुरुष खनन-दोष से हमेशा विमुक्त रहे तथा जिस रोगी की चिकित्सा के लिए आपका खनन किया जाता है, वह भी दोषों से मुक्त हो। हमारे स्त्री-पुत्रादि एवं गौ आदि पशु सभी रोग रहित हो जायँ।[यजुर्वेद 12.95]
दोष :: त्रुटि, खोट, दरार, नुक्स, धब्बा, निंदा, त्रुटि, कमी, अभाव, अवगुण, नुक्स; blame, defect, flaw.
Hey medicines! Its essential to obtain your root, therefore always keep the digger free from the sin of excavating you. The patient for whom your have been digged should also remain free form the blame of excavating you. Let our women, sons, cows and animals remain free from all ailments-diseases.
ओषधयः समवदन्त सोमेन सह राज्ञा। यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तꣳ राजन् पारयामसि॥
ओषधियाँ अपने स्वामी सोम से कहती हैं, हे राजन् सोम! चिकित्सा विशेषज्ञ जिस रोगी के रोग का निवारण करने के निमित्त हमारे मूल, फल, पत्र आदि को स्वीकार करते हैं, उसको हम रोग रहित करती हैं, अन्य को नहीं।[यजुर्वेद 12.96]
Medicines say to their king Som, hey king Som! We make only that person free from diseases for whom the specialist doctor select our root, fruits, leaves, none other then him.
नाशयित्री बलासस्यार्शस उपचितामसि। अथो शतस्य यक्ष्माणां पाकारोरसि नाशनी॥
हे ओषधे! आप शक्ति को क्षीण करने वाले कफ रोग, क्षय रोग, बवासीर, सूजन एवं फोड़ों तथा गण्डमाला आदि रोगों को निराकृत करने में समर्थ हैं। हे ओषधे! आप मुख के रोगों एवं मन्दाग्नि को भी नष्ट करने वाली हो।[यजुर्वेद 12.97]
Hey medicine! You are capable of curing the diseases leading to loss of resistance towards cough, tuberculosis, piles, swelling, boils, Goitre etc. Hey medicine! You relieve us from the diseases of mouth and slow digestion.
त्वां गन्धर्वा ऽअखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः।
त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत॥
हे ओषधे! गन्धर्वों जो कि ओषधि के गुणों को पहचानने वाले हैं, उन्होंने आपकी खोदाई की, देवराज इन्द्र तथा बृहस्पति देव ने आपको खोदा, तब ओषधि के स्वामी राजा सोम ने भी आपकी सामर्थ्य तथा उपयोगिता को जानकर तुम्हें खोदा और अपने यक्ष्मादि रोगों का निवारण किया और उनसे मुक्त हुए।[यजुर्वेद 12.98]
Hey medicines! Gandarbhs who care capable of identifying the characterises of medicines, Dev Raj Indr, Dev Guru Brahaspati etc. digged you and king of medicine Som too digged you by identifying-recognising your applicability-calibre and usefulness towards treatment of tuberculosis and other ailments & cured them.
सहस्व मे अरातीः सहस्व पृतेनायतः। सहस्व सर्व पाप्मानꣳ सहमानास्योषधे॥
हे ओषधे! आप शत्रुओं को तिरस्कृत करने वाली हैं, अतः हमारे अदानशील शत्रु सेना को तिरस्कृत करें। आप शरीर के रोगों को दूर करने में समर्थ हैं, अतः समस्त विकारों को दूर करें और हमें शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा से मुक्ति प्रदान करें।[यजुर्वेद 12.99]
तिरस्कृत :: तुच्छ समझने वाला, अपमानित, अनादृत, जिसकी अवज्ञा की गई हो; contemner, discard, ignore, scornful, insult, despise, contempt, scorn.
Hey medicines! You are capable of insulting the enemies, hence despise the enemy army which do not resort to donations. You are capable of eliminating all ailments of the body; hence relieve us from all defects and relieve us from physical & mental tension, pain-sorrow.
दीर्घायुस्त ऽओषधे खनिता यस्मै च त्वा खनाम्यहम्।
अथो त्वं दीर्घायुर्भूत्वा शतवल्शा विरोहतात्॥
हे ओषधे! जो आपका खनन करते हैं, वे दीर्घायु प्राप्त करें। जिस रोगी की चिकित्सा के निमित्त आपका खनन करते हैं, वह भी दीर्घायु प्राप्त करे एवं आप भी दीर्घजीवी होकर सैकड़ों अंकुरवाली होकर सर्वत्र विस्तृत हों और वृद्धि को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 12.100]
Hey medicine! Those who excavate you, should live long. The patient for whom you are digged, too also should live long. You too should long life, have hundreds of sprouts and spread everywhere and grow.
त्वमुत्तमास्योषधे तव वृक्षा ऽउपस्तयः।
उपस्तिरस्तु सोऽस्माकं योअस्माँ2 ऽअभिदासति॥
हे ओषधे! आप उत्तम गुणों से सम्पन्न हैं। निकटस्थ पेड़ सभी तरह से आपके निमित्त मंगलकारी हों। जो हमारे प्रति घृणा तथा विद्वेष-जैसी बुरी भावनाओं से ग्रस्त हैं, वे भी आपके सामर्थ्य से हमारे अनुगत हों अर्थात् हमारे उत्तम कर्मों में सहायता करें।[यजुर्वेद 12.101]
Hey medicine! You are blessed with excellent qualities. Nearest tree should be auspicious to you. Those who have hate, envy etc. towards us should also follow you by virtue of your impact i.e., they should help us in excellent endeavours.