KAL SARP DOSH काल सर्प दोष शान्ति

KAL SARP DOSH 
काल सर्प दोष शान्ति
(BASICS OF ASTROLOGY)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।   
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
भगवान् श्री कृष्ण और बलराम जी के कुल पुरोहित गुरु गर्गाचार्य ने एकान्त में भगवान् श्री कृष्ण की जन्म कुण्डली बनाई और कहा की उन्हें काल सर्प योग-दोष लगा है। माता यशोदा ने उनसे पूछा कि उसका क्या उपाय है तो उन्होंने कहा की मोर मुकुट पहनाओ। प्रभु नाग कालिया को नाथा, उनके सर पर नृत्य किया और गोकुल वासियों को आनन्दित किया। 
जो भी व्यक्ति प्रातः काल में भक्ति भाव से इस प्रसंग को स्मरण करेगा वो कालसर्प दोष से  रहेगा।
"हरि ओम नमो भगवते वासुदेवाय", 
"ओम नमः शिवाय", 
मन्त्र का नियमित जप 108 बार करें। काम, क्रोध, वाणी पर अंकुश रखें। कुत्सित चेष्टाएँ न करें। परिश्रम-प्रयास करें और फल प्रभु पर छोड़ दें। विवाद से बचें। पत्नी को प्रसन्न रखें। सब कुछ सही हो जायेगा। 
काल सर्प दोष :: 
भंग-आंशिक कालसर्प योग ::
Kal Sarp Yog is formed when all seven planets come between Rahu and Ketu. A complete Kal Sarp Yog is formed when exactly half the natal chart is unoccupied by planets. Exclusion of even one single planet outside the Rahu-Ketu Axis does not signify Kal Sarp Yog. Partial Kal Sarp Yog is formed when inauspicious planets like Mars and Saturn are positioned on the opposite side of Rahu and Ketu. The effects of this Yog are not as adverse as the complete Kal Sarp Yog.
कृष्णIt is of two types;- ascending and descending. If all the seven planets are eaten away by Rahu's mouth, then it is ascending Kaal Sarp Yog. If all planets are situated in back of Rahu then descending Kaal Sarp Yog is formed. If any planet is located outside the axis of Rahu and Ketu then partial Kaal Sarp Yog is formed.
दुष्प्रभाव :: सामान्यता कालसर्प योग जातक के जीवन में संघर्ष लेकर आता है। इस योग के कुंडली में स्थित होने से जातक जीवन भर अनेक प्रकार की कठिनाइयों से जूझता रहता है और उसे सफलता जीवन के अन्तिम काल में ही प्राप्त हो पाती है। उसे जीवन भर, घर-बहार, काम-काज, स्वास्थ्य, परिवार, विवाह, कामयाबी, नौकरी-व्यवसाय आदि की परेशानियों से जूझना पड़ता है। यह जरूरी नहीं कि जिनकी कुण्डली में कालसर्प योग हैं उन्हें इस योग का अशुभ फल जन्मकाल से ही मिलने लगे। अगर कुण्डली में शुभ योग हैं तो उनका भी फल मिलता रहेगा। परंतु कालसर्प योग का फल भी भोगना होगा। विशेष स्थिति और समय में यह अपना प्रभाव दिखायेगा और विपरीत स्थितियों का सामना करना होगा।
EFFECTIVE PERIOD प्रभाव काल :: इसका प्रभाव तब दृष्टिगोचर होता है जब राहु की दशा (major period), अन्तर्दशा (sub-period), प्रत्यान्तर दशा (Pratyantar Dasha) चलती है। इस समय राहु अपना अशुभ प्रभाव (negative impact) देना शुरू करता है. गोचर (transition) में जब राहु केतु के मध्य सभी गह आ जाते हैं तो उस समय कालसर्प योग का फल मिलता है। गोचर में राहु के अशुभ स्थिति में होने पर भी कालसर्प योग पीड़ा देता है। 
Very often, this Yog is also considered as Kal Sarp Yog due to its negative implications on people's life. Kal Sarp Yog may bring various problems in an individual's life like; losses in business, child problems, family problems, fear of death etc. The time frame for Kal Sarp Yog is until 47 years; however it varies from individual to individual.
PAINFUL-ILL EFFECTS पीड़ादायक कालसर्प :: यह प्रत्येक स्थिति में कष्टदायी है। यह योग अधिक कष्टकारी हो जाता है, यदि कुण्डली में सूर्य और राहु (conjunction of Rahu and Sun) अथवा चन्द्रमा और राहु की युति (conjunction of Rahu and Moon) हो या फिर राहु गुरू के साथ मिलकर चाण्डाल योग (Chandal Yog) बनाता है, तब राहु की दशा महादशा के दौरान कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है। जिनकी कुण्डली में राहु और मंगल (combination of Rahu and Mars) मिलकर अंगारक योग (Angarak Yog) बनाते हैं उन्हें भी कालसर्प की विशेष पीड़ा भोगनी पड़ती है। कालसर्प के साथ नंदी योग (Nandi Yog) अथवा जड़त्व योग (Jadatv Yog) होने पर भी कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है।
There are twelve different types of Kal Sarp Yog. Depending on the positioning of Rahu and Ketu, the effects range from lack of self-confidence, financial problems, legal litigation, accidents, imprisonment, tensions, fear, insecurity, constant fear from death, delayed marriage, chronic health problems,  loss of ancestral property, debts, problem in business or job front etc.  This Yog is considered to be more malefic than any other malefic Yog or Dosh. 
अनुकूल प्रभाव :: राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं और शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं। जैसे शनि की साढ़े साती व्यक्ति से परिश्रम करवाता है एवं उसके अंदर की कमियों को दूर करने की प्रेरणा देता है इसी प्रकार कालसर्प व्यक्ति को जुझारू, संघर्षशील और साहसी बनाता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करता है और निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं। राहु जिनकी कुण्डली में अनुकूल फल देने वाला होता है, उन्हें कालसर्प योग में महान उपलब्धियां हासिल होती हैं। यह योग व्यक्ति को अपने क्षेत्र में सर्वक्षेष्ठ बनता है। इस योग से भयाक्रात होने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं, जो यह प्रमाणित करते हैं कि इस योग ने व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाईयों पर पहुँचाया है। कालसर्प योग से ग्रसित होने के बावजूद बुलंदियों पर पहुंचने वाले कई जाने माने नाम हैं, जैसे धीरू भाई अम्बानी, सचिन तेंदुलकर, ऋषिकेश मुखर्जी, पं. जवाहरलाल नेहरू, लता मंगेशकर आदि।   
कालसर्प योग में स्वराशि एवं उच्च राशि में स्थित गुरू, उच्च राशि का राहु, गजकेशरी योग, चतुर्थ केन्द्र विशेष लाभ प्रदान करने वाले होते हैं। अगर सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो कालसर्प योग वाले व्यक्ति असाधारण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी होते हैं। यह योग मनुष्य को महान हस्तियों के समान ऊँचाईयों पर ले जाता है। अत: जातक निराशा और असफलता का भय मन से निकालकर सतत कोशिश करता रहे तो कामयाबी जरूर मिलेगी। इस योग में केवल वही लोग पीछे रह जाते हैं जो निराश और अकर्मण्य होते हैं। परिश्रमी और लगनशील व्यक्तियों के लिए कलसर्प योग राजयोग देने वाला होता है।
One who is pious, hard working, honest should not bother about it and continue his endeavours to achieve his goal. temporary failures should not dishearten him. In fact this configuration makes one struggling and brave. It helps one over come his weaknesses. Those who utilize their potential never look back. This Yog is sufficient to make one best in his field. He can attain unscaled heights. In some of its configurations it awards Raj Yog-power and might.
(1). अनंत कालसर्प दोष :: जब कुंडली के पहले घर में राहू, सातवें घर केतु और बाकि के सात गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो वह अनंत कालसर्प दोष कहलाता है। अनंत कालसर्प दोष जातक की शादीशुदा जिन्दगी पर बहुत बुरा असर डालता है। समय के साथ जातक और उसके जीवन साथी के बीच तनाव बढता जाता है। उसकी अपने जीवन साथी के साथ संबंधों में मधुरता नहीं होती। जातक के नाजायज़ सम्बन्ध बाहर हो सकते है। तलाक भी सम्भव है। वह जीवन भर संघर्ष करता है और समुचित फल प्राप्त नहीं कर पाता। संधि व्यापार में सफलता नहीं मिलती और भागिदार धोखा करते हैं। 
Rahu in Lagn, Ketu in seventh house ::
 The person is prone to be target of conspiracies hatched by people supposedly close to him. He is a lose in partnership deals-business. The person is likely to lose out in matters of courts. He may develop illicit relations with other women. Married life would be marred by differences between husband and wife. Divorce is not ruled out.
(2). कुलीक कालसर्प दोष :: जब कुंडली के दूसरे घर में राहू और आठवें घर में केतु और बाकी के सातों गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो यह कुलीक कालसर्प दोष कहलाता है। जिस जातक की कुडली में कुलीक कालसर्प दोष होता है, वह जातक खाने और शराब पीने की गलत आदतों को अपना लेता है। तम्बाकू, सिगरेट आदि का भी सेवन करता है, जातक को यह आदतें बचपन से ही लग जाती हैं। इस कारण जातक का पढाई से ध्यान हट कर अन्य गलत कार्यों में लग जाता है। ऐसे जातकों को मुँह और गले के रोग अधिक होते हैं। इन जातकों का वाणी पर नियंत्रण नहीं होता इसलिए समाज में बदनामी भी होती है। कुलीक कालसर्प से ग्रस्त जातकों की शराब पीकर वाहन चलाने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है। 
Rahu in second house, Ketu in eighth ::
 This combination is not good for the person’s health. Expenses would be more than the income and the financial situation would remain fairly mediocre. He has to struggle a lot in life to achieve something. He may acquire bad habits from the bad company in his early childhood. He may be habitual narcotics-drugs user. He may be involved in fatal accidents due to drunken driving. He does not concentrate over education-learning.
(3). वासुकी कालसर्प दोष :: 
जब कुंडली में राहू तीसरे घर में, केतु नौवें घर में और बाकी के सभी गृह इन दोनों के मध्य में स्थित हो  तो वासुकी काल सर्प दोष का निर्माण होता है। जिन जातकों की कुंडली में वासुकी कालसर्प दोष होता है उन्हें जीवन के सभी क्षेत्र में बुरी किस्मत की मार खानी पड़ती है। कड़ी मेहनत और इमानदारी के बावजूद असफलता हाथ आती है। जातक के छोटे भाई और बहनों पर बुरा असर पड़ता है। जातक को लम्बी यात्राओं से कष्ट उठाना पड़ता है और धर्म कर्म के कामों में विश्वास नहीं रहता। वासुकी कालसर्प दोष के कारण जातक की कमाई भी बहुत कम हो सकती है इस कारण से जातक गरीबी और लाचारी का जीवन व्यतीत करता है। 
Rahu in third house, Ketu in ninth :: The person would have trouble dealing with his brothers and friends. Long journeys would create problems. He remains unsuccessful in spite of hard labour. He does not believe in religion. His earnings are low and is compelled to live the life of poverty. The person having this combination in his chart should take precautions in deals, by paying extra attention towards legal documentation.
(4). शंखफल कालसर्प दोष :: 
कुंडली में राहू चौथे घर में, केतु दसवें घर में और बाकी सभी गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो शंखफल कालसर्प दोष का निर्माण होता है। जिन जातकों की कुंडली में शंख फल कालसर्प दोष होता है वे जातक बचपन से ही गलत कार्यों में पड़कर बिगड़ जाते हैं, जैसे पिता की जेब से पैसे चुराना, विद्यालय से भाग जाना, गलत संगत में रहना और चोरी चकारी और जुआ आदि खेलना आदि। यदि माता पिता द्वारा समय रहते उपाय किये जायें तो बच्चों को बिगड़ने से बचाया जा सकता है। शंख फल कालसर्प से ग्रसित जातक की माता को जीवन भर बहुत परेशानियाँ झेलनी पड़ती हैं। ये परेशानियाँ मानसिक और शारीरिक दोनों हो सकती है। जातक को विवाह का सुख भी अधिक नहीं मिलता, पति या पत्नी से हमेशा दूरियां और अनबन बनी रहती है। 
Rahu in fourth house, Ketu in tenth :: The person with this combination would never be satisfied with his financial situation and would always strive for more. The person is prone to troubles relating to immovable property e.g., land, houses and modes of conveyance e.g., cars. He is spoiled in the childhood and learn bad habits. However if the parents are alert he an be protected. His mother suffers a lot. He is not benefited with the married life.
(5). पदम् कालसर्प दोष :: कुंडली में जब राहू पांचवे घर में, केतु ग्यारहवें घर में और बाकि के सभी गृह इन दोनों के मध्य स्थित होते हैं, तो पदम् कालसर्प दोष बनता है। पढाई में किसी कारण से बाधा उत्पन्न होती है, यदि शिक्षा पूरी न हो तो नौकरी मिलने में परेशनिया उत्पन्न होती हैं। विवाह के उपरान्त बच्चों के जन्म में कठनाई और बच्चों का बीमार रहना जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पदम् कालसर्प के बुरे प्रभाव से प्रेम में धोखा मिल सकता है। इस दोष का विद्यार्थियों के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है। 
Rahu in fifth house, Ketu in eleventh :: One would have trouble with children. He will face hurdles in acquiring education. Deception in love affairs is predicted. Difficulty in child bearing-birth. Children may face immunity problems. He should never try his luck in lottery, share markets and anything where speculation is involved.
(6). महापदम कालसर्प दोष :: राहू छठे घर में, केतु बारहवें घर में और बाकि के सभी गृह इन दोनों के मध्य स्थित हों। जातक के जीवन में नौकरी, पेशा, बीमारी, खर्चा, जेल यात्रा जैसी गंभीर समस्याऐं उत्पन्न हो सकती हैं। जातक जीवन भर नौकरी पेशा बदलता रहता है, क्योंकि उसके सम्बन्ध अपने सहकर्मियों से हमेशा ख़राब रहते हैं। हमेशा किसी न किसी सरकारी और अदालती कायवाही में फँसकर जेल यात्रा तक करनी पढ़ सकती है। आये दिन अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ेंगे। 
Rahu in sixth house, Ketu in twelfth :: One would not do well in relationships and would have a very pessimistic view of life. He would face all sorts of problems like trouble in service, illness-disease, imprisonment, tension with colleagues, court cases etc.
(7). तक्षक कालसर्प दोष :: कुंडली के सातवे घर में राहू, पहले घर में केतु और बाकि गृह इन दोनों के मध्य आते हैं। इसका बुरा प्रभाव सेहत पर पड़ता है। शरीर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोध शक्ति बहुत कम होती है। दूसरा बुरा प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। या तो जातक के विवाह में विलम्ब होता है और यदि हो भी जाये तो विवाह के कुछ सालों के पश्चात् पति पत्नी में इतनी दूरियाँ आ जाती हैं कि एक घर में रहने के पश्चात् वे दोनों अजनबियों जैसा जीवन व्यतीत करते हैं। जातक को अपने व्यवसाय में सहकर्मियों द्वारा धोखा मिलता है और को भारी आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है। 
Rahu in seventh house, Ketu in first :: There is a need for the person to be extra careful in matter relating to health, married life and business partnerships.
(8). कर्कोटक कालसर्प दोष :: राहू आठवें घर में, केतु दुसरे घर में और बाकि सभी गृह इन दोनों के मध्य स्थित हों तो जातक हमेशा सभी के साथ कटु वाणी का प्रयोग करता है, जिस वजह से उसके सम्बन्ध अपने परिवार से बिगड़ जाते है और वह उनसे दूर हो जाता है।उसे पुश्तैनी जायजाद से भी हाथ धोना पड़ता है। खाने पीने की गलत आदतों की वजह से सेहत खराब रहती है और ज़हर खाने की वजह से मौत भी हो सकती है। पारिवारिक सुख न होने की वजह से कई बार विवाह न होने, विवाह में देरी जैसे फल भी मिलते हैं। वह विवाह का पूर्ण आनंद नहीं प्राप्त करता। 
नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करने का भी दंड भुगतना पड़ता है। पैतृक संपत्ति से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता। व्यापार में भी समय-समय पर क्षति होती रहती है। कोई भी काम अच्छे से चल नहीं पाता। कठिन परिश्रम के बावजूद भी उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता। मित्रों से धोखा मिलता है तथा शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता। चिड़चिड़ा स्वभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया पैसा भी डूब जाता है। ऐसे जातक को शत्रु षडयंत्र व अकाल मृत्यु का बराबर भय बना रहता है। 
दोष निवारण के कुछ सरल उपाय ::
(8.2). काल सर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुँह देखकर एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दे दें अथवा पीपल की जड़ में रख दें।  
(8.3). सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलायें और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।  
(8.4). अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करें। 
(8.5). किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें। 
Rahu in eighth house, Ketu in second :: He has no control over his tongue, which always spoil his relations. The person does not benefit from any paternal property. There would be a lot of trust issues between the person and his friends. This combination is not good for health and Rahu being in eighth house is usually not considered good as it indicates a sudden and violent death. He may consume poison, as well. He will face hurdles in his marriage.
(9). शंखनाद कालसर्प दोष :: राहू कुंडली के नौवें घर में, केतु तीसरे घर में और बाकि गृह इन दोनों के मध्य स्थित हैं। इसका किस्मत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बने बनाये काम बिना किसी कारण के बिगड़ जाते हैं। उसको जीवन चर्या के लिए अधिक महनत करनी पड़ती है। बचपन में उसके पिता पर इस दोष का बुरा असर पड़ता है और लोग कहते है की इस बच्चे के आने के बाद घर में समस्याएँ आ गयी हैं। यह एक तरह के पितृ दोष का निर्माण भी करता है, जिसके प्रभाव से नाकामयाबी और आर्थिक संकट जैसी परेशानियों से जूझना पड़ता है। 
व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में पदोन्नति तथा पढ़ाई-लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है। ऐसे लोग अपनों का भी हिस्सा छिनना चाहते हैं। ऐसा जातक अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है। इसके साथ ही उसका अपने अत्यधिक आत्मविश्वास के कारण यह सारी समस्या उसे झेलनी पड़ती है। अधिक सोच के कारण शारीरिक व्याधियाँ भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। इतना ही नहीं इन सब कारणों के वजह से सरकारी महकमों व मुकदमें बाजी में भी उसका धन खर्च होता है। उसे पिता का सुख तो बहुत कम मिलता ही है, वह ननिहाल व बहनोइयों से भी छला जाता है। उसके मित्र भी धोखाबाजी करने से बाज नहीं आते। उसका वैवाहिक जीवन आपसी वैमनस्यता की भेंट चढ़ जाता है। उसे हर बात के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। समाज में ऐसे जातकों को यथेष्ट मान-सम्मान भी नहीं मिलता। उपरोक्त परेशानियों से बचने के लिए उसे अपने को अपनाना पड़ेगा, अपनो से प्यार करना होगा, धर्म की राह पर चलना होगा एवं मुंह में राम बगल में छूरी की भावना का त्याग करना होगा, तो जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ कुछ कम होंगी और अगर तब भी कठिनाईयां पीछा नहीं छोड़ती हैं तो निम्नलिखित उपाय बड़े लाभप्रद सिध्द होते हैं। 
दोष निवारण के उपाय :: (9.1). इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए संबंधित जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए और उसे लगातार 86 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काला वस्त्र धारण करें श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें, राहु के बीज मंत्र की तीन माला जप करें। जप के उपरांत एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी, तिलकूट आदि मीठे पदार्थों का उपयोग करें । उपयोग के पहले इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें तथा रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रखकर छोड़ दें। 
(9.2). महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक किसी विद्वान् ब्राह्मण से करवाए। 
(9.3). चाँदी या अष्टधतु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धरण करें। किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चाँदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें। 
(9.4). सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें। 
(5). हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ायें।
Rahu in ninth house, Ketu in third :: This combination indicates problems from higher authorities, government of the day and local administration in the field of business and commerce. His luck does not favour him. He lacks success. His father start facing problems after his birth. he suffers from Pitr Dosh side by side, simultaneously.
(10). घटक कालसर्प दोष :: कुंडली में जब राहू दसवें घर में और केतु चौथे घर में और बाकि सभी गृह इन दोनों के बीच स्थित हों तो घटक कालसर्प दोष का निर्माण होता है। जातक हमेशा व्यवसाय और नौकरी की परेशानियों से जूझता रहता है, यदि वह नौकरी करता है तो उसके सम्बन्ध उच्चाधिकारियों से ठीक नहीं बनते, तरक्की नहीं होती और कई कई वर्षों तक एक ही पद पर कार्यरत रहना पड़ता है। ऐसे जातक को व्यवसाय के क्षेत्र में अप्रत्याशित समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है। परन्तु व्यवसाय व धन की कोई कमी नहीं होती है। नौकरी पेशा वाले जातकों को सस्पेंड, डिस्चार्ज या डिमोशन के खतरों से रूबरू होना पड़ता है। ऐसे लोग यदि साझेदारी के काम में हों, तो उसमें भी मनमुटाव व घाटा उसे क्लेश पहुंचाते रहते हैं। सरकारी पदाधिकारी भी उससे खुश नहीं रहते और मित्र भी समय-समय पर धोखा देते रहते हैं। यदि यह जातक रिश्वतखोरी व दो नम्बर के काम से बाहर आ जाएं तो जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती हैं। ऐसे लोगों को सामाजिक प्रतिष्ठा जरूर मिलती है और साथ ही राजनैतिक क्षेत्र में भी बहुत सफलता प्राप्त करता है। किसी भी नौकरी पेशे, रोज़गार से सन्तुष्टि नहीं होती। इसका माता पिता की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है और किसी कारण से जातक को उनसे पृथक होकर रहना पड़ता है। 
इस योग में उत्पन्न जातक यदि माँ की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होती है। इस दोष से ग्रसित जातक हमेशा जीवन पर्यन्त सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है उसके पास कितना ही सुख आ जाये उसका जी नहीं भरता है। उसे पिता का भी विछोह झेलना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता। उक्त परेशानियों से बचने के लिए ऐसे कुण्डली वाले लोगों को निम्नलिखित उपाय कर लाभ प्राप्त करना चाहिए।
दोष निवारण सरल उपाय :: (10.1). नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें तथा हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर चढ़ाएं एवं बूंदी के लड्डू का भोग लगायें । 
(10.2). एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें तथा गणेश जी को नित्य दूर्वादल चढ़ायें। 
(10.3). शनिवार का व्रत रखें, श्री शनिदेव का तैलाभिषेक व पूजन करें और लहसुनियां, सुवर्ण, लोहा, तिल, सप्तधन्य, तेल, काला वस्त्र, छिलके समेत सूखा नारियल, कंबल आदि का समय-समय पर दान करें। 
(10.4). सोमवार के दिन व्रत रखें, भगवान शिव के मंदिर में चांदी के नाग की पूजा कर अपने पितरों का स्मरण करें और उस नाग को बहते जल में श्रध्दापूर्वक विसर्जित कर दें। 
(10.5). कम से कम सवा महीने तक अन्न के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
Rahu in tenth house, Ketu in fourth :: Rahu being in tenth house indicates problem in employment and higher authorities whom the person would report to during his job. His parents health is affected by this possession and he may to separate from them.
(11). विषधर कालसर्प दोष :: राहू ग्यारहवे स्थान पर, केतु पाचवें स्थान पर और बाकी सभी गृह इन दोनों के बीच होने से आँख और हृदय रोग होते है, बड़े भाई बहनों से सम्बन्ध अच्छे नहीं चलते, याददाश्त कमज़ोर होती है, पढाई ठीक से नहीं होती, व्यवसाय में उचित लाभ नहीं मिलता, अधिक पैसा लगाकर भी कम मुनाफा मिलता है, आर्थिक परेशानियाँ बनी रहती हैं, प्रेम सम्बन्ध में धोखा मिलता है, विवाह के उपरान्त बच्चों के जन्म में समस्याएं आती हैं और बच्चों की सेहत भी खराब रहती है। 
Rahu in eleventh house, Ketu in fifth :: This combination indicates a lot of problems between the person and his elder siblings. One would also remain away from his native place throughout his life. He would be prone to problems like heart trouble, insomnia etc. His memory will be weak and he may not be successful in attaining higher education. His profits through business would be meagre. He may face continued financial troubles. His love affairs may not be fruitful. His children will not be able to maintain good health.
(12). शेषनाग कालसर्प दोष :: कुंडली के बारहवें घर में राहू, छठे घर में केतु और बाकी सभी गृह इन दोनों के मध्य फसे होते हैं। जातक हमेशा अज्ञात दुश्मनों से भयभीत रहता है। उसके गुप्त दुश्मन अधिक होते है जो उसे समय समय पर हानि-नुकसान पहुचाते रहते हैं। जातक हमेशा स्वास्थ्य समस्यायों से घिरा रहता है। इसलिए उसके इलाज पर अधिक खर्चा होता है।इस दोष के कारण जातक को जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है, बुरे-गलत कार्यों में भाग लेने से जेल यात्रा भी संभव है। 
Rahu occupies twelfth house and Ketu is in sixth house :: The person would be prone to problems from people, whom he does not know-unknown-recognized-mysterious enemies. He may suffer from illness. He may have to settle quite away from his place of birth. If he indulge in criminal-antisocial activities he may have to serve jail term as well.
सर्प दोष निवारण हेतु नाग साधना-पूजा :: नाग देवता की साधना श्रेष्ठ मानी गई है। यह जीवन में धन धान्य की बरसात करती है। हर प्रकार से सभी प्रकार के शत्रुओ से सुरक्षा देती है | इससे साधक ज्ञान का उदय कर अन्धकार पर विजय करते हुए सभी प्रकार के भय से मुक्ति पाता है | इसके साथ ही अगर कुंडली में किसी प्रकार का नाग दोष है तो उससे भी मुक्ति मिलती है। नाग धन तो देते हैं, जीवन में प्रेम की प्राप्ति भी इनकी कृपा से मिल जाती है। 
नाग पंचमी :: 
नाग पंचमी की विशेषता :: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता है। श्रावण मास में नाग पंचमी होने के कारण इस मास में धरती खोदने का कार्य नहीं किया जाता है। इसलिये इस दिन भूमि में हल चलाना, नींव खोदना शुभ नहीं माना जाता है। भूमि में नाग देवता का घर होता है। पौराणिक मान्यता भी है कि भूमि को शेषनाग अपने फनों में स्थिर किए हुए हैं इसलिए भूमि को खोदने से नागों को कष्ट होने की की संभावनाएं बनती है।
काल-सर्प योग की शान्ति :: नाग पंचमी के दिन जिन व्यक्तियों की कुण्डली में कालसर्प योग बन रहा हो उन्हें इस दोष की शान्ति के लिये इस दिन नाग देवता की पूजा अवश्य करनी चाहिए और सर्प सूक्त का पाठ किसी वेदपाठी ब्राह्मण से करवाऐं। 
सर्प सूक्त मन्त्र :: 
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सवर्दा॥1॥ 
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकी प्रमुखादय:। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥2॥ 
कद्रबेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्तिपरामा। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥3॥ 
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पा: सुप्रीता: मम सर्वदा॥4॥ 
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिन च रक्षता। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पा: सुप्रीता: मम सर्वदा॥5॥
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोतक प्रमुखादय:। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥6॥
प्रार्थव्याचैव सर्पेभ्य: ये साकेत वासित। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥7॥ 
सर्वग्रामेषु ये सर्पा वसंतिषु संच्छिता। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥8॥
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पाप्रचरन्ति च। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥9॥
समुन्द्रतीरे ये सर्पाये सर्पाजलवासिन:। 
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥10॥
रसातंलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥11॥ 
सर्प दोष निवारण हेतु नाग साधना-पूजा :: नाग देवता की साधना श्रेष्ठ मानी गई है। यह जीवन में धन धान्य की बरसात करती है। हर प्रकार से सभी प्रकार के शत्रुओ से सुरक्षा देती है। इससे साधक ज्ञान का उदय कर अन्धकार पर विजय करते हुए सभी प्रकार के भय से मुक्ति पाता है। इसके साथ ही अगर कुंडली में किसी प्रकार का नाग दोष है तो उससे भी मुक्ति मिलती है। नाग धन तो देते हैं, जीवन में प्रेम की प्राप्ति भी इनकी कृपा से मिल जाती है। 
भगवान् शेष नाग :: 
नागराज कर्कोटक :: भय का नाश करते हैं। सुरक्षा प्रदान करते हैं। 
नागराज वासुकि नाग :: 
पदम नाग ::  जिनके जीवन में विवाह की बाधा है। शादी में बार बार रुकावट आ रही हो तो उनके लिए यह साधना सर्वश्रेष्ठ है | इस साधना को करने से विवाह संबधि समस्या दूर होती है और संतान की प्राप्ति का वरदान भी पद्म नाग देते हैं | इसके साथ साथ अद्भुत सम्मोहन की प्राप्ति भी कराते हैं। 
धृतराष्ट्र नाग :: जीवन में प्रेम-शुख शांति की प्राप्ति होती है। 
शंखपाल नाग :: संपूर्ण पृथ्वी के अधिपति हैं। यात्रा, साधना, आध्यात्मिकता के मार्ग की रुकावटें दूर करते हैं।साधक अपने सूक्ष्म स्वरूप से जुड़ जाता है। 
कंबल नाग :: नाग देवता का यह स्वरूप नाग अधिपति के नाम से जाना जाता है और व्याधि, बीमारी, रोगों से मुक्ति दिलाता है। 
तक्षक नाग :: शत्रु का नाश करके भय से मुक्ति दिलाता है।
कालिया नाग ::  हर प्रकार की तंत्र-अभिचार बाधा से मुक्ति प्रदान करता है। 
साधक को बुरी शक्तियों और ग्रह बाधा से मुक्ति, काल सर्प दोष का निवारण नाग साधना-पूजा से संभव है। धन लाभ, भौतिक लाभ-ऐश्वर्य और आध्यात्मिक लाभ, मन के विकारों पर विजय, दूरदर्शिता, ज्ञान चक्षु विकसित होकर खुलना आदि इसके अन्य फायदे हैं। अन्यानेक सिद्धियाँ यथा दूरदर्शन सिद्धि, दूर श्रवण सिद्धि, भूगर्भ सिद्धि, कायाकल्प, मनोवांछित रूप परिवर्तन, गंध त्रिमात्र, लोकाधिलोक गमन आदि नाग साधना से प्राप्त की जा सकती हैं। इसके लिए कठोर साधना अति आवश्यक है।
नाग पूजन एवं बलि विधान :: कुंडली के दोष निवारण के लिए सोने, चाँदी, ताँबे और लोहे के बने एक-एक जोड़े नाग खरीद लें।
आटा गूँथ कर उसका सात मुख का नाग बना लें।  उस नाग को थोड़े गरम घी में भिगोकर उस पर सफ़ेद तिल लगा दें जो पूरे नाग पर लगे हों। उसके फन पर या उस पर 7 कौड़ी रख दें। उसे कुशा के आसन पर रखें या एक केले का पता लेकर उस पर थोड़ी कुशा बिछा कर उस पर रख दें जो वेदी के उपर रहेगा।  इसके साथ ही जमीन पर रेत बिछा कर एक पूजन वेदी का निर्माण करें और उसमें नव ग्रह मण्डल और नाग पीठ का निर्माण करें। 
नाग पीठ के मध्य में एक अष्ट दल कमल बनाए और उसमें धातु के और आटे के बने नागों को स्थापित करें। नव ग्रह यंत्र का निर्माण भी आटे और हल्दी की मदद से ही करें। 
उसी पीठ में स्वस्तिक बनाकर श्री गणेश जी की स्थापना करें। इनके साथ-साथ ॐ, शिव, षोडश मातृका, पित्र देव, वास्तु देव आदि का स्थापन करना है। सबसे पहले कलश आदि स्थापित कर गुरु पूजन करें। तत्पश्चात  गणेश, ओंकार, शिव ,षोडश मातृका और नव ग्रह, पितृ देव और वास्तु देवता का पूजन यथा योग्य सामर्थ्य अनुसार करें और फिर प्रधान देव पूजन करें।
नाग साधना-पूजा की विधि :: स्वयं न कर पाने की स्थिति में कुशल ब्राह्मण-पण्डित का सहयोग लें और उन्हें पूजा अर्चना के बाद वस्त्र, भोजन दक्षिणा देकर संतुष्ट कर विदा करें। नाग देवता का ध्यान करें और इन मन्त्रों का उच्चारण सस्वर या मौन रहकर करें ::
अनंन्तपद्म पत्राथं फणाननेकतो ज्वलम्। 
दिव्याम्बर-धरं देवं, रत्न कुण्डल-मण्डितम्॥ 
नानारत्न परिक्षिप्तं मकुट द्दुतिरंजितम। 
फणा मणिसहस्रोद्दै रसंख्यै पन्नगोतमे॥ 
नाना कन्या सहस्रेण समंतात परिवारितम्। 
दिव्याभरण दिप्तागं दिव्यचंदन-चर्चितम्॥ 
कालाग्निमिव दुर्धषर्म तेजसादित्य सन्निभम। 
ब्रह्मण्डाधार भूतं त्वां, यमुनातीर-वासितम॥ 
भजेSहं दोष शन्त्यैत्र, पूजये कार्यसाधकम। 
आगच्छ काल सर्पख्या दोष आदि निवारय॥ 
आसनम :: 
नवकुलाधिपं शेषं, शुभ्र कच्छ्प वाहनम। 
नानारत्नसमायुकतम आसनं प्रति गृह्राताम॥ 
पाद्यं :: 
अन्न्त प्रिय शेषं च जगदाधार-विग्रह। 
पाद्द्म ग्रहाणमक्तयात्वं काद्रवेय नमोस्तुते॥ 
अर्घ्यम :: 
काश्यपेयं महाघोरं, मुनिभिवरदिन्तं प्रभो। 
अर्घ्यं गृहाणसर्वज्ञ भक्तय मां फ़लंदयाक॥ 
आचमनीयम् :: 
सहस्र फ़णरुपेण वसुधाधारक प्रभो। 
गृहाणाचमनं दिव्यं पावनं च सुशीतलम्॥ 
पन्चामृतं स्नानम् :: 
पन्चामृतं गृहाणेदं पावनं स्वभिषेचनम्।
बलभद्रावतारेश! क्षेयं कुरु मम प्रभो॥ 
वस्त्रम् :: 
कौशेय युग्मदेवेश प्रीत्या तव मयार्पितम। 
पन्नगाधीशनागेन्द्र तक्ष्रर्यशत्रो नमोस्तुते॥ 
यज्ञोपवीतम :: 
सुवर्ण निर्मितं सूत्रं पीतं कण्ठोपाहारकम्। 
अनेकरत्नसंयुक्तं सर्पराज नमोस्तुते॥ 
अथ अंग पूजा-इस प्रकार अंग पूजा सम्पन्न हुई। 
चन्दन से अंग पूजा :: 
सहस्रफ़णाधारिणे नमः पादौ पूजयामि। 
अनंद्दाये नमः गुल्फ़ौ पूजयामि। 
विषदन्ताय नमः जंधौ पूजयामि। मन्दगतये नमः जानू पूजयामि। 
कृष्णाय नमः कटिं पूजयामि। पित्रे नमः नाभिं पूजयामि। 
श्र्वेताये नमः उदरं पूजयामि। उरगाये नमः स्त्नो पूजयामि। 
कलिकाये नमः भुजौ पूजयामि। जम्बूकण्ठाय नमः कण्ठं पूजयामि। 
दिजिह्वाये नमः मुखं पूजयामि। मणिभूषणाये नमः ललाटं पूजयामि। 
शेषाये नमः सिरं पूजयामि। अनन्ताये नमः सर्वांगान पूजयामि। 
गन्धं :: 
कस्तूरी कर्पूर केसराढयं गोरोचनं चागररक्तचन्दनं। 
श्री चन्द्राढयं शुभ दिव्यं गन्धं गृहाण नागाप्रिये मयार्तितम्॥ 
अक्षतान् :: 
काश्मीर पंकलितप्राश्च शलेमानक्षतान शुभान्। 
पातालाधिपते तुभ्यं अक्षतान् त्वं गृहाण प्रभो॥ 
पुष्पं :: 
केतकी पाटलजातिचम्पकै बकुलादिभिः। 
मोगरैः शतपत्रश्च पूजितो वरदो भव॥ 
धूप दीप :: 
सौ भाग्यं धूपं दीपं च दर्शयामि। 
नैवेद्दम् :: 
नैवेद्दा गृहातां देव क्षीराज्य दधि मिश्रितम्। 
नाना पक्वान्न संयुक्तं पयसं शर्करा युतम्॥ 
फ़ल्, ताम्बूल, दक्षिणाम, पुष्पांजलि नमस्कारं :: 
अनन्त संसार धरप्रियतां कालिन्दजवासक पन्नगाधिपते। 
न्मोसिस्म देवं कृपणं हि मत्वा रक्षस्व मां शंकर भूषणेश॥ 
एक आचमनी जल चढाते हुए अगर कोई कमी रह गई हो तो, उसकी पूर्णता के लिये प्रार्थना करें :- 
अनयापूजन कर्मणा कृतेन अनन्तः प्रियताम्। 
राहु केतु सहित अनन्ताद्दावहित देवाः प्रियतम् नमः॥ 
साधक यहाँ तक पूजन कर साधना कर सकते हैं। 
जो व्यक्ति कुंडली के दोष या कालसर्प दोष-निवारण-शांति के लिए विधान कर रहे हैं; वे आगे के कर्म-अनुष्ठान पूरे करें। पूजन के पश्चात निम्न नव नाग गायत्री से 1008 आहुति किसी पात्र में अग्नि जला कर अजय आहुतियाँ देने के बाद दें। 
मन्त्र :: 
ॐ नवकुलनागाये विदमहे, विषदन्ताय धीमहि तन्नोः सर्पः प्रचोदयात्॥ 
अथ नाग बलि विधान-इस प्रकार नाग बलि विधान संपन्न हुआ। 
उसके पश्चात नाग बली कर्म करना चाहिये। एक पीपल के पत्ते पर उड़द, चावल, दही रखकर एक रुई कि बत्ती बना कर रखें और उसका पूजन कर नाग बली अर्पण करें। 
प्रधान बली :: इस मन्त्र से बली अर्पण करें। 
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो येकेन पृथ्वीमन। 
ये अन्तरिक्षे ये दिवोतेभ्यः सर्पेभ्यो नमः॥ 
अनन्त वासुकि शेषं पदमं कम्बलमेव च। धृतराष्ट्रं शंखपालं कालियं तक्षकं तथा, पिंगल च महानाम मासि मासि प्रकीर्तितम॥ 
अब नैऋत्य दिशा में सभी भूत दिक्पालों को बलि अर्पण करें। 
मन्त्र ::
सर्वदिग्भुतेभ्यो नमः गंध पुष्पं समर्पयामि। सर्व दिग्भुत बलि द्रव्यये नमः गन्ध पुष्मं समर्पयामि। हस्ते जलमादाये सर्व दिग्भुते भ्यो नमः इदं बलि नवेद्यामि। 
नमस्कार :: 
सर्व दिग्भुते भ्यो नमः नमस्कार समर्पयामि। 
अनया पूजन पूर्वक कर्मणा कृतेन सर्व दिग्भुतेभ्यो नमः॥ 
मन्त्र पुष्पाजलि ::
ॐ यज्ञेन यज्ञमय देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। 
ते.ह् नाक महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥ 
प्रदक्षिणा ::
यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञात कृतानि च। 
तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे-पदे॥ 
इति श्री नाग बलि विधानं संपूर्णं-इस भाँति नाग बलि का विधान पूर्ण हुआ। 
विश निर्मली करणं :: तदोपरांत  निम्न मंत्र पढ़ते हुए हाथ में जल लेकर सभी नागों (सोने, चाँदी, ताँबे और लोहे के बने हुए धातु के जोड़ों पर छिडकें और इस मंत्र का 11 से  21 बार जप करें। 
विश निर्मली मंत्र :: 
सर्पापसर्प भद्र्म ते गच्छ सर्प महा विष। 
जनमेजयस्य यज्ञान्ते, आस्तीक वचनं स्मर॥ 
आस्तीक्स्य वच: श्रुत्वा, यः सर्पो ना निवर्तते। 
शतधाभिद्द्ते मूर्ध्नि, शिशं वृक्ष फ़लम् यथा॥ 
अथ सर्प वध प्रयशिचत कर्म :: अगर मन, ह्रदय में ऐसा विचार हो कि मेरे द्वारा सर्प वध हुआ है। कुंडली में सर्प दोष या नाग दोष जिसे लोग काल सर्प योग भी कहते हैं, तभी लगता है जब पूर्व जन्म में स्व अथवा  पूर्वजों से सर्प वध हुआ हो। उसकी शांति यह कर्म करने से हो जाती है। 
संकल्प :: 
देशकालौ संकीर्त्या सभार्यस्य ममेह जन्मनि जन्मान्तरे वा ज्ञानाद अज्ञानदा जात सर्पवधोत्थ दोष परिहाराथर्म सर्पं संस्कारकर्म करिष्ये। 
अब आटे से बनाये हुये नाग को हाथ में अक्षत लेकर प्रार्थना करें :- हे पूर्व काल में मरे हुए सर्प आप इस पिण्ड में आ जाएँ।इसके पश्चात अक्षत चढ़ाते हुए उसका पूजन करें। पूजन फूल, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से करें और नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि हे सर्प आप बलि ग्रहण करिये और ऐश्वर्य को बढाइये। 
फिर उसका सिंचन घी देकर करें। फिर विधि नामक अग्नि का ध्यान हवन कुण्ड में करें और संकल्प करें :- कि मैं अपना नाम व गोत्र बोलें और कहें :-  इस सर्प संस्कार होम रूप कर्म के विषय में देवता के परिग्रह के लिए अन्वाधान करता हूँ। 
अब "ॐ भूः स्वाहा अग्नेय इदं" बोल कर तीन आहुतियाँ दें और "ॐ भूभूर्व: स्वः स्वाहा" कह कर चौथी आहुति सर्प के मुख में दें फिर सुरवे में घी लेकर सर्प को सिंचन करें। गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल से पोषण करें और निम्न प्रार्थना को ध्यान पूर्वक पढ़ें-
जो अन्तरिक्ष पृथ्वी स्वर्ग में रहने वाले हैं, उन सर्पो को नमस्कार है। जो सूर्य की किरण जल, इसमें विराजमान है, उनको नमस्कार है। जो यातुधानों के वाण रूप है, जो वनस्पति और वृक्षों पर सोते हैं उनको नमस्कार है। 
हे महा भोगिन रक्षा करो रक्षा करो सम्पूर्ण उपद्रव और दुख से मेरी रक्षा करो। पुष्ट जिसका शरीर है, ऐसी पवित्र संतति को मुझे प्रदान करो। कृपा से युक्त आप दीनों पे दया करने वाले आप शरणागत मेरी रक्षा करो। जो ज्ञान व अज्ञान से मैंने या मेरे पित्रों ने सर्प का वध इस जन्म या अन्य जन्म में किया हो, उस पाप को नष्ट करो और मेरे अपराध को क्षमा करो। अब उस नाग को होम अग्नि में भस्म कर दें और स्नान कर लें। 
अब जो सोने ताँबे चाँदी के सांप बनाए थे, उन्हें  नजदीक किसी तालाब, जलाशय या नदी में विसर्जन करें और निम्न मंत्र 3 बार पढ़ कर विसर्जन कर दें। यह मंत्र अति पवित्र व गोपनीय है। 
नाग विसर्जन मंत्र :: 
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये दिवि येषां वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्रचि र्दशादक्षिणा दशप्रीतची र्दशोदीची र्दशोर्दुध्वाः तेब्भ्यो नमोSअस्तुतेनो वन्तुतेनो मृडायन्तुते यन्द्रिविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जम्भेध्मः॥ 
जहां दिवि बोला गया है, दूसरी बार जब पढ़ें तो अन्तरिक्ष और तीसरी बार पृथ्वी घोष करें। 
इसके साथ ही इस कर्म में सर्प सूक्त (उपरोक्त लिखित) का पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है।
काल सर्प दोष से ग्रसित व्यक्ति को रोज घर में पूजा के वक्त शाख ध्वनि करनी चाहिए। कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है।
सर्प से मुक्ति :: हरिद्वार में मनसा देवी है, उन तपस्वनी देवी के सुपुत्र आस्तिक मुनि ने सर्पों को परीक्षित राजा के बेटे जन्मेजेय के सर्प यज्ञ में जलने से बचाया था। सर्पों ने आस्तिक मुनि को वरदान दिया था कि महाराज जहाँ आपका नाम लिया जायेगा वहाँ हम उपद्रव नही फैलायेंगे, वहाँ हम अपना जहर नही फैलायेंगे। अगर कहीं साँप आ जाते हैं या साँप का डर हो तो "मुनि राजम अस्तिकम नमः" का जप करें वहाँ साँप नही आयेगा और यदि आया भी हो तो इस मन्त्र के उच्चारण से चला जायेगा। Please refer to :: MANSA DEVI TEMPLE, HARI DWAR मनसा देवी मंदिर, हरिद्वारsantoshkipathshala.blogspot.com
अन्य उपाय  ::
(1). प्रतिदिन प्रात: खाली पेट नीम के पाँच पत्ते चबाकर खाते रहें तो सर्प विष से हानि नहीं होती।
(2). घरों में बारहसिंगे का सींग लटका दें तो सर्प नहीं आयेगा।
(3). गन्धक अथवा हरमल की धूनी से सर्प भाग जाता है।
(4). मसूर की दाल के साथ नीम के पत्तें खाने वाले को सर्प नहीं काटता।
(5). साँप राई से बहुत ही डरता है, यदि उसके बिल में राई और जल मिश्रित नौसादर डाल दिया जावे तो वह त्तत्काल उस जगह को त्याग देता है।
(6). सफेद प्याज के पास सर्प नहीं रहता।
(7). कार्बोलिक एसिड की लकीर को सर्प उल्लंघन नहीं करता, यदि उस पर इसे डाल दिया जावे तो वह अपना प्राण त्याग देगा। साँप के ऊपर फिनाइल डालने से भी मर जाता है। 
सर्पाय सर्प-भद्रं ते, दूरं गच्छ महा-विषम्। 
जनमेजय-यज्ञान्ते, आस्तिक्यं वन्दनं स्मर॥ 
आस्तिक्य-वचनं स्मृत्वा, यः सर्पो न निवर्तते। 
भिद्यते सप्तधा मूर्घ्नि, शिंश-वृक्ष-फलं यथा॥ 
यो जरुत्कारुण यातो, जरुत्-कन्या महा-यशाः। 
तस्य सर्पश्च भद्रं ते, दूरं गच्छ महा-विषम्॥ 
दुहाई राजा जनमेजय, दुहाई आस्तीक मुनि की, दुहाई जरुत्कार की; इस प्रकार उच्चारण करते हुए पीली सरसों हाथ में लेकर सरसों पर फूँक मारकर 3 बार हथेली पर ताली बजावें। ऐसे ही क्रिया करते हुए 7 बार सरसों घर में बिखेर दें सर्प भी दूर हो जायेगा।
This snake species is like a ghost, previously known only from two specimens, found exactly 50 years ago and never since then. After 50 years, rediscovered Ghost Blunt-headed Snake (Imantodes cenchoa) rising from the mist of the top on Cerro Pirre, Panama.
SNAKE BITE CURE सर्प विष उपचार ::
HERBAL TREATMENT FOR SNAKE BITE सर्प विष उपचार :: शिरीष पुष्प  के स्वर रस में भावित सफेद मिर्च लाभ प्रद हैं। 
साँप के काटे  का इलाज :: विष के पहले वेग में रोमांच, दूसरे वेग में पसीना, तीसरे में शरीर का कांपना, चौथे मेंश्रवण शक्ति का अवरुद्ध होना, पांचवें में हिचकी आना, छटे  में ग्रीवा लटकना, सातवें में प्राण निकलना। 
अवस्था (1) :: आँखों के आगे अँधेरा छा  जाये और शारीर में बार-बार जलन होने लगे, तो यह जानना चाहिये कि विष त्वचा में है। आक की जड़, अपा मार्ग, तगर और प्रियंगु को जल में घोंट कर पिलाने से विष शाँत हो सकता है।
अवस्था (2) ::  त्वचा से रक्त में विष पहुँचने पर दाह और मूर्च्छा आने लगती  है व शीतल पदार्थ अच्छा लगता है। उशीर (खस), चन्दन, नीलोत्पल, सिंदुवार की जड़, धतूरे की जड़, कूट, तगर, हींग और मिर्च को पीसकर देना चाहिये। अगर इससे बाधा शांत न हो तो भटकैया, इन्द्रायण की जड़ और सर्पगंधा को घी में पीसकर देना चाहिए। इससे भी शांत न हो तो, सिंदुवार और हींग का नस्य देना चाहिये और पिलाना चाहिये। इसी का अंजन और लैप भी करना चाहिये, इससे रक्त में विष बाधा शाँत हो जाती है। 
अवस्था (3) :: रक्त से पित्त में विष पहुँचने पर पुरुष उठ-उठ कर गिरने लगता है, शरीर पीला पड़ जाता है, सभी दिशाएँ पीली दिखती हैं। शरीर में दाह और प्रबल मूर्च्छा आती है-इस अवस्था में -पीपल, शहद, महुआ, घी, तुम्बे की जड़, इन्द्रायण की जड़ को गो मूत्र में पीसकर नास्य, लेपन तथा अंजन करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था (4) :: पित्त से विष के कफ़ में प्रवेश करने पर शरीर जकड जाता है, श्वास भली भांति नहीं आती, कंठ में घर-घर शब्द होने लगता है, मुँह से लार गिरने लगती है। पीपल, मिर्च, सौंठ, श्लेष्मातक (बहुबार वृक्ष), लोध, एवं, मधुसार को सामान भाग में पीसकर गौमूत्र में लेपन और अंजन और पिलाना भी चाहिए। ऐसा करने विष का वेग शांत हो जाता है।
अवस्था  (5) :: कफ से वात में विष प्रवेश करने पर पेट फूल जाता है, कोई भी पदार्थ दिखाई नहीं पड़ता, द्रष्टि भंग हो जाती है। ऐसा होने पर :- शोणा (सोनागाछा) की जड़, प्रियाल, गज पीपल, भ्रंगी, वचा, पीपल, देवदारु, महुआ, मधुसार, सिंदुवार और हींग; इन सब को पीस कर गोली बना कर रोगी को खिलाएं एवं अंजन और लेपन करें। यह सभी विषों का हरण करती है ।  
अवस्था  (6) :: वात से मज्जा  में विष पहुँच जाने पर द्रष्टि नष्ट हो जाती है, सभी अंग बेसुध हो शिथिल हो जाते हैं। ऐसा लक्षण होने पर घी, शहद, शर्करा युक्त, खस और चन्दन को घोंट कर पिलाना चाहिये और नस्य भी देना चाहिए। ऐसा करने विष का वेग हट जाता है।
अवस्था (7) ::
PROTECTION FROM DEATH :: Recitation of the following Mantr 5,00,000 times with procedure, empowers a devotee to cure a person on death bed. Conditions apply.
मृत्यु, रोग-शांति मन्त्र :: 
ॐ ह्रूमं हं स; ॐ जूं स: वषट
मृत-संजीवनी-मन्त्र ::  
ॐ हं स: हूं हूं स:। ॐ  ह: सौ:। ॐ हूं स:। ॐ जूं स:। 
PROTECTION FROM SNAKES :: Recitation of these Mantr methodologically is useful.
ॐ कुरुकुल्ले फट स्वाहा:(Om Kurukulle Phat Swaha.)  
 ॐ नगर  फट स्वाहा:।(Om Nagar Phat Swaha.)
Om Narmadayae Namah. Pratar Narmadyae Namo Nishi,
Namo Astu Narmadayae Trahimam Vishsarpth.
Please refer to ::  HOLY RIVER NARMDA  पवित्र नदी नर्मदा santoshkathasagar.blogspot.com
ॐ  नर्मदायै नम: प्रातर्नर्मदायै नमो निशि। 
नमोअस्तु नर्मदे तुभं त्राहि मां विश्सर्पत:
 ॐ नमो भगवते नील कंठाय। (Om Namo Bhagwate Neel Kanthay.)
Nearly 550 varieties of snakes are found in India, out of which 10 are venomous-poisonous. Cobra, viper, Krait are considered to be most dangerous-dreaded. Most of the people die due to heart attack/cardiac arrest after the bite caused by the fear. Snake releases the poison through its fangs, which causes restlessness and ultimate death in most of the cases. It takes 3 hours for the venom to reach the entire body. still death comes only when the poison reaches the brain.
भारत में 550 किस्म के साँप है, जैसे कोबरा, वाईपर, क्रेट।  इनमें 10 जहरीले हैं। साँप के काटने का डर इतना है कि आदमी दिल का दौरा पड़ने से या ह्रदय की गति अवरुद्ध हो जाने से ही मर जाता है, न कि जहर से। 
पूरे शरीर में  जहर पहुँचने मे 3 घंटे लगते हैं । जिस जगह सांप ने काटा है, वहाँ किसी रस्सी/नाड़े से बंध लगा दें।
FIRST AID-प्राथमिक चिकित्सा :: बंध के ऊपर, नीचे घाव को  दबाकर जहरीला खून निकला जा सकता है।
घर मे कोई पुराना इंजेक्शन  हो तो उसे ले लें और आगे जहां सुई/इंजेक्शन needle) लगी होती है, वहाँ से काटें।  सुई  जिस पलास्टिक मे फिट होती ह, उस प्लास्टिक वाले हिस्से को काटें। जैसे ही आप सुई के पीछे  लगे प्लास्टिक वाले हिस्से को काटेंगे तो वो इंजेक्शन   एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा। बिलकुल वैसा ही जैसा कि होली के दिनों में बच्चों की पिचकारी होती है। उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है, वो निशान ढूँढे। वह बिलकुल आसानी से मिल जाएगा, क्योंकि जहां साँप काटता है, वहाँ कुछ सूजन आ जाती है।
वह निशान जिस  पर हल्का खून लगा होता है, आपको आसानी से  मिल जायेगा। अब आप वो इंजेक्शन जिसका सुई वाला हिस्सा आपने काट दिया है, लें और उन दो निशानों में से पहले एक निशान पर रख कर, उससे खून को सिरिंज से चूसें-सोखें-रेचन करें। आप इंजेक्शन से जहरीला-नीला  खून  निकालते रहिये। साँप का जहर लगभग  0.5 मिलीग्राम के आस पास होता है । दो तीन बार  खीचने से ही जहर बाहर निकल जायेगा। रोगी की स्थिति में कुछ परिवर्तन महसूस होने से,  थोड़ी  देर में  चेतना आ जाएगी।
घबरायें नहीं तथा रोगी  को सोने न दें।
HOMEOPATHIC MEDICINE ::  NAJA-Potency 200. Quantity 5 ml. This is prepared from snake poison-venom. Its damn cheap. 2-3 drops of it are administered after 10 minutes of interval.
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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