PANCHANG पंचांग :: BASICS OF ASTROLOGY

PANCHANG पंचांग  
 (BASICS OF ASTROLOGY)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नमः 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। 
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
पंचांग भारत में प्रचलित कैलेंडर-काल गणना है। आदि काल से यह विभिन्न नामों से यथावत चला आ रहा है। यद्यपि नाम अलग हैं, तथापि तिथियाँ वही हैं। भिन्न-भिन्न रूपों में यह पूरे भारत में प्रचलित है। विक्रमी और शक संवत इसके उदाहरण हैं।  पंचांग (पंच + अंग यानि पांच अंग) पाँच प्रमुख घटकों से बना है, जो कि तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं। इसकी गणना के आधार पर पंचांग की तीन धाराएँ हैं :- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धतियाँ हैं। 
एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। 12 मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह होता है। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा गया है। सौर वर्ष में 12 राशियाँ, बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है, उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास*, मलमास* या अधिमास* कहते हैं। इसके अनुसार एक साल को बारह महीनों में बांटा गया है और प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। महीने को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। एक दिन को तिथि कहा गया है, जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक होती है। दिन को चौबीस घंटों के साथ-साथ आठ पहरों में भी बांटा गया है। एक प्रहर कोई तीन घंटे का होता है। एक घंटे में लगभग दो घड़ी होती हैं, एक पल लगभग आधा मिनट के बराबर होता है और एक पल में चौबीस क्षण होते हैं। पहर के अनुसार देखा जाए तो चार पहर का दिन और चार पहर की रात होती है अर्थात दिन और रात मिलाकर 8 प्रहर।
शक संवत :: विक्रम संवत 6,676 ई.पू. से भी पहले प्रचलित था। महाभारत में काल गणना इसी आधार पर की जाती थी। इसके बाद कृष्ण कैलेंडर और फिर कलियुग संवत का प्रचलन हुआ। इसके बाद 78 ई.पू. शक संवत और 57 ई. पू. विक्रम संवत का आरंभ हुआ था। शक संवत का आरंभ कुषाण राजा कनिष्क ने अपने राज्य आरोहण को उत्सव के रूप में मनाने और उस तिथि को यादगार बनाने के लिए किया। इस संवत के पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है और इसी तिथि पर कनिष्क ने राज्य सत्ता सम्हाली थी। यह संवत पूर्णतया वैज्ञानिक और त्रुटिहीन है। यह संवत प्रत्येक वर्ष में मार्च की 22 तारीख को शुरू होता है और इस दिन सूर्य विषुवत रेखा के ऊपर होता है और इसी कारण दिन और रात बराबर के समय के होते हैं। शक संवत के दिन 365 होते हैं और लीप ईयर होने पर शक संवत 23 मार्च को शुरू होता है और उसमें 366 दिन होते हैं। 
विक्रम संवत :: विक्रम संवत की शुरुआत महाराज वीर विक्रमादित्य ने 57 ई.पू. में की थी। विक्रमादित्य ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा का ऋण खुद चुकाकर, इस संवत की शुरुआत करी थी। विक्रम संवत में समय की पूरी गणना सूर्य और चाँद के आधार पर की गयी है अर्थात दिन, सप्ताह, मास और वर्ष की गणना पूरी तरह से वैज्ञानिक है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी, इसलिए हिन्दु इस तिथि को नववर्ष का आरंभ मानते हैं। इस तिथि से नवरात्रे भी शुरू होते हैं। 
शक संवत और विक्रम संवत में अन्तर :: इनके महीनों के नाम एक ही हैं और दोनों संवतों में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष भी हैं परन्तु विक्रम संवत में नया महीना पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष से होता है, जबकि शक संवत में नया महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। इसी कारण इन संवतों के शुरू होने वाली तारीखों में भी अंतर आ जाता है। शक संवत में चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, उस महीने की पहली तारीख है, जबकि विक्रम संवत में यह सोलहवीं तारीख है। 
चैत्र भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का प्रथम माह है। सामान्‍यत: 1 चैत्र 22 मार्च को होता है और लीप वर्ष में 21 मार्च को।
चैत्र 30 (दिन) 22 मार्च, वैशाख 31 (दिन) 21 अप्रैल, ज्येष्ठ 31 (दिन) 22 मई, आषाढ़ 31 (दिन) 22 जून, श्रावण31 (दिन) 23 जुलाई, भ्राद्रपद 31 (दिन) 23 अगस्त, अश्विन 30 (दिन) 23 सितम्बर, कार्तिक30 (दिन) 23 अक्टूबर, अग्रहायण (मार्गशीर्ष) 30 (दिन) 22 नवम्बर, पूस 30 (दिन) 22 दिसम्बर, माघ 30 (दिन) 21 जनवरी और फाल्गुन 30 (दिन) 20 फरवरी। 
अधिवर्ष में, चैत्र में 31 दिन होते हैं और इसकी शुरुआत 21 मार्च को होती है। वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते है, जिसका कारण इस समय कांतिवृत्त में सूरज की धीमी गति है। 
भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ का आधिकारिक उपयोग 1 चैत्र, 1879 शक् संवत या 22 मार्च 1957 में शुरू किया था। 
NAMES OF MONTHS महीनों के नाम :: चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्‍ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है, वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला अमांत मास मुख्‍य चंद्रमास है। कृष्‍ण प्रतिपदा से पूर्णिमात पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है। 
पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। यह सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है; इसीलिए चंद्र-वर्ष में हर 3 वर्ष में, एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे मलमास* या अधिमास* कहते हैं।
इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्रायः रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।  
(1). चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), Mid of March to Mid of April, (2). विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), Mid of April to Mid of May, (3). ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर जेठ-ज्येष्ठ मास (मई-जून), Mid of May to Mid of June, (4). आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), Mid of June to Mid of July, (5). श्रवण नक्षत्र के नाम पर सावन-श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), Mid of July to Mid of August, (6). भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद-भादोँ मास (अगस्त-सितम्बर), Mid of August to Mid of September, (7). अश्विनी के नाम पर क्वार-आश्विन-असूज मास (सितम्बर-अक्टूबर), Mid of September to Mid of October, (8). कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर), (9). मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष-अगहन (नवम्बर-दिसम्बर), Mid of November to Mid of December, (10). पुष्य के नाम पर पौष-पूस (दिसम्बर-जनवरी), Mid of December Mid of January, (11). मघा के नाम पर माघ-महा (जनवरी-फरवरी), Mid of January Mid of February तथा  (12). फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च), Mid of February to Mid of March का नामकरण हुआ है।
NAMES OF THE LUNAR DATES (तिथियाँ) :: एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथियाँ हैं। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित तिथियाँ हैं।
(1). पूर्णिमा (पूर्णमासी), प्रतिपदा (पड़वा), प्रथमा, (2). द्वितीया, (दूज), (3). तृतीया (तीज), (4). चतुर्थी (चौथ), (5). पंचमी,(6). षष्ठी (छठ), (7). सप्तमी (सातम), (8). अष्टमी (आठम), (9). नवमी (नौमी), (10). दशमी, (दसम), (11). एकादशी (ग्यारस), (12). द्वादशी (बारस), (13). त्रयोदशी (तेरस), (14). चतुर्दशी (चौदस),  (15). पञ्चदशी;  शुक्लपक्ष में पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष में अमावस्या (अमावस) कहलाती है।
पक्ष :: प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।
PRAHR प्रहर :: एक दिन में तीन-तीन घंटों के आठ प्रहर होते हैं। दिन की शुरुआत प्रातः 4 बजे से होती है, जबकि अँग्रेजी चलन में दिन की शुरुआत रात के 12 बजे से होती है। A day constitutes of 8 Prahr and every Prahr consists of 3 hours. The day starts from 4 o'clock unlike 12 PM-mid night of other calendars.
KALI YUG (कलि युग PRESENT EPOCH-ERA) ::  As of May 18, 2014, 5,115 years of Kali Yug had elapsed. At present two calendars are followed simultaneously :: (1). VIKRAMI SAMWAT begun in 3012 BC. (विक्रमी सम्वत् ERA, FINANCIAL YEAR) & (2). SHAK SAM VAT-ERA (शक सम्वत् INDIAN NATIONAL CALENDAR) begun in 78 AD.कलियुग की शुरुआत भगवान् श्री कृष्ण ने गुरु संदीपन के आश्रम में भगवान् श्री परशराम जी के द्वारा धनुष-वान और शंख सौंपे जाने पर शंख ध्वनि करके की। 
DAYS OF THE WEEK वार :: एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। Sunday (रविवार, इतवार), Monday (सोमवार), Tuesday (मंगल वार), Wednesday (बुद्धवार), Thursday (वृहस्पति-गुरु वार),  Friday (शुक्र वार), Saturday (शनि वार) 
योग :: योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं :- विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति। 
करण :: एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
सौरमास :: इसका आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौर मास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है।
12 राशियों मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन को बारह सौर मास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है, उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना ‍शुरू माना गया है। 
सौर-वर्ष के दो भाग-अयन हैं :- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। जब सूर्य उत्तरायण होता है, तब यह काल तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है। अश्विन, कार्तिक मास में तीर्थ का महत्व है। उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चलता है।
सूर्य धनु संक्रमण से मकर संक्रमण तक मकर राशी में रहता हे, जिससे इसे धनुर्मास कहते है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है और सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सूर्य दक्षिणायन होता है। दक्षिणायन व्रतों का और उपवास का समय होता है, जबकि चंद्र मास के अनुसार अषाढ़ या श्रावण मास चल रहा होता है। व्रत से रोग और शोक मिटते हैं। दक्षिणायन में विवाह और उपनयन आदि संस्कार वर्जित है, जबकि अग्रहायण मास में ये सब किया जा सकता है, अगर सूर्य वृश्चिक राशि में हो।उत्तरायण सौर मासों में मीन मास में विवाह वर्जित है।
नक्षत्र मास :: आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं, जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं, किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं।मूलत: ज्योतिष में इन्हीं को नक्षत्र कहा गया है। 
चंद्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है, वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है। इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है।
नक्षत्रों के गृह स्वामी ::
केतु :- अश्विन, मघा, मूल।
शुक्र :- भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़।
रवि :- कार्तिक, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़।
चंद्र :- रोहिणी, हस्त, श्रवण।
मंगल :- मॄगशिरा, चित्रा, श्रविष्ठा।
राहु :- आद्रा, स्वाति, शतभिषा।
बृहस्पति :- पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा।
शनि :- पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपदा।
बुध :- अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती।
READING PANCHANG :: Date-Tithi, day-War, constellation-Nakshatr, Yog and Karn are vital among the several parameters of time measuring for casting a horoscope, given sequentially in Panchang.  
FIRST HORIZONTAL ROW :: It gives Shak Samvatsar name, Chandr Mas, Paksh (Fortnight viz. Shukl, the waxing phase of moon or Krashn, the waning phase of moon), the particular Gregorian month and year, the Hizri year, Samvat year and the Parsi year. 
SECOND HORIZONTAL ROW :: It constitute of the headings for the respective columns, which include Tithi & War. Ending time of the Tithi. Nakshatr-constellation close to the Moon. Ending time of the Nakshatr (the time when the moon leaves the particular constellation). Yog (a relatively complex parameter linked to positions of Sun and Moon). Ending time of Yog. Karan represents middle of a Tithi i.e., ending time of Karan. Dinman represents the time span between sunrise and sunset. It gives the Hizri year date time of Sun rise & Sun set, time of the moon entering a particular zodiac sign and the Gregorian date.
The next column in the same row contains Ratriman (the gap between sunset and sunrise) of the last day of the relevant fortnight, the Ayanansh, name of the prevailing Ayan and Ritu -season. 
The Panchang measure the day continuously from one sunrise to another sunrise. In case the day begins with the sunrise at 06:20 hours, the time is measured continuously up to the next sun rise, which may go beyond 24 hours count. So, whenever one comes across the timing like 29:33 hours in the Panchang, just deduct 24 from it, to get the next morning timing viz. 5:33 hours in this case.
ILLUSTRATION :: Panchang of, October 7, 2000. Open the page containing October 7, 2000 as per Gregorian date column.
REFER to UPPERMOST ROW of the TABLE :- It shows October 7, 2000 which falls under Shak, 1921 which is the Pramathi Samvatsar, the Hindu month of Ashwin, Shukl Paksh, the waxing phase of moon.
The column on right in the second row, denotes that the day is in Dakshinayan-the Sun moving towards (southern) Makar Vrat (the tropic of Capricorn) and the Sharad Ritu.
The row for this date reads :- At the sunrise, the Tithi was Navami, that is the 9th lunar date and the day was Tuesday. The third column conveys the change of Tithi. Here it changes at 8:25 hours and the Dashmi, the 10th lunar date of Ashwin begins.
Next column shows that the moon was in Shravan Nakshatr and it left the constellation at 11:53 hours.
The next ten columns if referred to, their headings can be understood trivially. (In case of Karan which the half part of a Tithi, the Date Panchang mentions only first half, since the second half ends with the end of the particular Tithi. Yet it needs an expert’s advice to determine the Karan for a particular moment.)
NEXT WIDE COLUMN to GREGORIAN DATE :: It contains the Shastrarth for the day.  For October 7, 2000 it says that the day is Maha Navami and it is of Navratrotpann-end of Nav Ratr, the Vijay Dashmi or the Dashhara. The rest of the information of the day continues elsewhere on the same page, with a reference to the same Gregorian date in parenthesis.
To understand the general bearing of the particular day, refer to the Shubh-Ashubh Divas, auspicious-inauspicious days column, placed next to the Kundali-the chart on the page. There are a few vital things to be remembered while reading the Panchang. Among the Tithi coming in succession, the missing number of Tithi is always considered as Kshay or eliminated Tithi. This is considered inauspicious. Similarly, when a Tithi repeats, it becomes Vraddhi-additional Tithi. This too is considered inauspicious. Among the inauspicious Tithi are all the 13th and 14th Tithi in Krashn Paksh-the waning phase of the moon, all the New Moon days and all the 1st Tithi of Shuddh Paksh, the waxing phase of the moon.
Of all the constellations, Pushy is considered inauspicious for weddings, while Bharni, Kratika, Ashlesha and Vishakha are considered inauspicious for a majority of tasks.
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